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सार्वजनिक गणेशोत्सव के समय 24 घंटे ऊँची आवाज में लाउडस्पीकर बजने के कारण पुणे में रहने वाले अजय/अनीता के अध्ययन में बाधा पड़ती है। इस संदर्भ में वह शहर कोतवाल, शहर विभाग, पुणे को एक शिकायत पत्र लिखता/लिखती है।

औपचारिक पत्र लेखन

सार्वजनिक गणेशोत्सव के समय बजने वाले लाउडस्पीकर के कारण पढ़ाई में परेशानी का शिकायती पत्र

 

दिनांक : 3 अगस्त 2024

 

सेवा में,
श्रीमान नगर कोतवाल,
नगर विभाग, पुणे (महाराष्ट्र)

विषय : सार्वजनिक गणेशोत्सव में बजने वाले लाउडस्पीकर के कारण होने वाले शोर से पढ़ाई में बाधा के संबंध में

माननीय कोतवाल महोदय,
मेरा नाम अजय माहुरकर है। मैं पुणे की नव-निर्माण सोसायटी का निवासी हूँ। मैं पुणे में सायली इंटरनेशनल विद्यालय मैं कक्षा 9 का छात्र हूँ। जैसा कि हम सब जानते हैं कि इन दिनों गणेशोत्सव पर चल रहा है। इसी कारण जगह-जगह भगवान गणेश की विशाल प्रतिमायें स्थापित की गई है और गणेशोत्सव के पंडाल लगे हैं। मेरे घर के पास भी एक मैदान में सार्वजनिक गणेशोत्सव का पंडाल लगा है। इसी सार्वजनिक गणेशोत्सव पंडाल में बजने वाले लाउडस्पीकर के कारण मुझे बेहद परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

दरअसल इन दिनों मेरी परीक्षाएं चल रही है। जिस कारण मुझे हर समय परीक्षा की तैयारी हेतु पढ़ाई करते रहना पड़ता है। घर के पास ही मैदान में सार्वजनिक गणेशोत्सव का पंडाल लगा है, जिसमें पूरे दिन लगभग 24 घंटे तेज आवाज में लाउडस्पीकर बजते रहते हैं। इस कारण मेरी पढ़ाई में बाधा उत्पन्न होती है। मैं अपनी पढ़ाई पर अपना ध्यान नहीं कर पाता।

लाउडस्पीकर के शोर के कारण मेरी पढ़ाई बाधित हो रही है, इससे मेरी परीक्षा की तैयारियों पर नकारात्मक असर पड़ा है। परीक्षाओं की तैयारी पर्याप्त रूप से ना होने के कारण मुझे अपने भविष्य की चिंता होने लगी है। गणेशोत्सव मंडल के आयोजक द्वारा लाउड स्पीकर को बजाये जाने का कोई निश्चित समय नहीं है और लोग यह लगभग पूरा दिन ही लाउडस्पीकर तेज आवाज में बजाते रहते हैं। परेशानी होने के कारण जब गणेशोत्सव मंडल के आयोजकों से शिकायत कीि और उनसे कहा गया कि आप लोड स्पीकर को कम आवाज में बजाएं तथा एक निश्चित समय पर ही बजाएं तो मेरी बात को अनसुना कर दिया गया।

अतः मेरा श्रीमान जी से अनुरोध है कि इस संबंध में तुरंत उचित कार्रवाई करें और गणेशोत्सव मंडल के आयोजकों को लाउडस्पीकर की आवाज कम करने तथा निश्चित समय पर बजाने की आदेश दें, ताकि हम छात्रों निश्चिंत होकर अपनी पढ़ाई कर सकें। यह हमारे भविष्य का प्रश्न है।

आशा है आप इस संबंध में तुरंत कार्रवाई करके तेज आवाज में लाउडस्पीकर बजाने वाले लोगों पर अंकुश लगाएंगे।

धन्यवाद,

भवदीय,
अजय माहुरकर,
नव-निर्माण सोसायटी,
पुणे ।


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किसी महत्वपूर्ण पत्र के देरी से प्राप्त होने पर क्षेत्र के पोस्टमास्टर को इसकी शिकायत करते हुए पत्र लिखिए​।

अपने क्षेत्र के थाना अधिकारी को देर रात तक पटाखे चलाने की शिकायत करते हुए पत्र लिखिए।

दिए गए शब्दों के संधि-विच्छेद और संधि के भेद लिखिए। देवालय, मनोबल, निस्संदेह, सम्मान, सत्याग्रह, परोपकार, उल्लास, स्वागत, वाङ्मय, नमस्ते, निरोग, निश्चल।

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दिए गए शब्दों के संधि-विच्छेद और संधि के भेद इस प्रकार होंगे:

देवालय : देव + आलय
संधि भेद : दीर्घ स्वर संधि

मनोबल : मन: + बल
संधि भेद : विसर्ग संधि

निस्संदेह : नि: + संदेह
संधि भेद : विसर्ग संधि

सम्मान : सत् + मान
संधि भेद : व्यंजन संधि

सत्याग्रह : सत्य + आग्रह
संधि भेद : दीर्घ स्वर संधि

परोपकार : पर + उपकार
संधि भेद : गुण स्वर संधि

उल्लास : उत् + लास
संधि भेद : व्यंजन संधि

स्वागत : स्व + आगत
संधि भेद : दीर्घ स्वर संधि

वाङ्मय : वाक् + मय
संधि भेद : व्यंजन संधि

नमस्ते : नमः + ते
संधि भेद : विसर्ग संधि

निरोग : निर् + रोग
संधि भेद : व्यंजन संधि

निश्चल : निः + छल
संधि भेद : विसर्ग संधि


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‘चक्रमस्ति’ का संधि-विच्छेद क्या होगा? ​

पीलिया रोग की रोकथाम के लिए स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए​।

औपचारिक पत्र लेखन

पीलिया रोग की रोकथाम के लिए पत्र

 

दिनांक : 11 मई 2024

 

सेवा में,
श्रीमान स्वास्थ्य अधिकारी,
राजनगर नगर निगम,
राजनगर (उत्तम प्रदेश)

 

विषय : पीलिया रोग के रोकथाम हेतु अनुरोध पत्र

 

माननीय स्वास्थ्य अधिकारी महोदय,

मैं राजनगर की जनता कॉलोनी का निवासी हूँ। मेरा नाम विशाल रस्तोगी है। हमारी कॉलोनी में तथा आसपास की कई कालोनियों में पीलिया रोग फैला हुआ है। दिनोंदिन पीलिया रोग का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। आए दिन पीलिया के नए-नए केस सामने आ रहे हैं। हम सभी निवासी दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे पीलिया रोग के प्रकोप से बेहद चिंतित हैं और घर से बाहर निकलने से भी डरते हैं।

अतः मेरा आपसे अनुरोध है कि नगर के निवासियों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए पीलिया रोग के रोकथाम हेतु उचित उपाय करने की कृपा करें। ताकि हम सब निवासियों को इस रोग के आतंक से मुक्ति मिले।

धन्यवाद,

विशाल रस्तोगी,
ए-12, जनता कॉलोनी,
राजनगर (उत्तम प्रदेश) ।


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अपने गाँव में डॉ. भीमराव अम्बेडकर पार्क की स्थापना के लिए जिला अधिकारी को पत्र लिखिए l

अपने विद्यालय की वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति के लिए विद्यालय प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए।।

‘नमक’ कहानी के आधार पर साफिया का चरित्र चित्रण कीजिए।

‘नमक’ कहानी ‘रज़िया सज्जाद जहीर’ द्वारा लिखी गई एक कहानी है, जिसमें भारत और पाकिस्तान के विभाजन का त्रासदी और मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है।

‘नमक’ कहानी में साफिया का चरित्र-चित्रण

  • ‘नमक’ कहानी में साफिया इस कहानी की सबसे प्रमुख पात्र है। वह दिल्ली में रहती है और उसका भाई लाहौर में रहता है। ‘नमक’ कहानी के आधार पर सफिया का चरित्र चित्रण इस प्रकार है :
  • ईमानदार महिला : साफिया में एक ईमानदार महिला के दर्शन होते हैं, क्योंकि पहले तो वह चोरी छुपे नमक ले जाने का विचार करती है लेकिन फिर उसका जमीर उसे इस बात के लिए इजाजत नहीं देता। वह सोचती है कि जो नमक वह प्रेम के प्रतीक के रूप में सिख बीवी को भेंट स्वरूप लेकर जा रही है, उस प्रेम भरी सौगात को वह चोरी छुपे किसी जुर्म के तौर पर नहीं ले जाना सकती। इसलिए वह चोरी छुपे नमक ना ले जाकर उसके बारे में कस्टम अफसर को बता देती है।
  • वायदे की पक्की : सफिया अपने वादे पर अटल स्त्री है। उसने सिख बीवी को वायदा किया था कि वह उन्हें लाहौर से लाहौरी नमक लाकर देगी। इसलिए कानूनी रूप से नमक ना ले जाने की कानूनी अड़चनों के बावजूद पूरा करती है, क्योंकि उसे अपना वादा निभाना था।
    संवेदनशील महिला : सफिया में पूरी संवेदनशीलता है और वह रिश्तों को संवेदनशीलता को समझती थी और रिश्तों को निभाना जानती है।
  • जिम्मेदार नागरिक : पाकिस्तान से भारत नमक ले जाना गैरकानूनी था। इसलिए सफिया किसी भी तरह का कानून नहीं तोड़ना चाहती थी। नमक ले जाना भी जरूरी था इसीलिए उसने कानून का सम्मान करते हुए नमक की पुड़िया कस्टम ऑफिसर को दिखाकर एक जिम्मेदार नागरिक का फर्ज अदा किया। वह चाहती तो नमक की पुड़िया किसी ना किसी तरह चोरी छुपे ले जा सकती थी। इस तरह उसके मन में कानून के प्रति सम्मान भी है।

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‘पिटने का डर और जिम्मेदारी की दुधारी तलवार उनके कलेजे पर फिर रही थी।’ पंक्ति का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि लेखक ने किस का साथ दिया और क्यों? (पाठ-स्मृति)

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‘पिटने का डर और जिम्मेदारी की दुधारी तलवार उनके कलेजे पर फिर रही थी।’ पंक्ति का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि लेखक ने किस का साथ दिया और क्यों? (पाठ-स्मृति)

‘पिटने का डर और जिम्मेदारी की दुधारी तलवार उनके कलेजे पर फिर रही थी।’

संदर्भ : यह पंक्तियां ‘श्रीराम शर्मा’ द्वारा लिखित स्मृति नामक पाठ से ली गई है जो कि उनके बचपन का ही एक संस्मरण है। इन पंक्तियों में उस प्रसंग का वर्णन है, जब लेखक को बड़े भाई ने चिट्ठियां डाकखाने में डालने के लिए दी थीं। लेकिन लेखक की गलती से वे चिट्ठियां उस कुएं में गिर गई जिसमें सांप था। लेखक की उसी मनोस्थिति का वर्णन इन पंक्तियों के माध्यम से प्रकट हो रहा है।

व्याख्या : लेखक को लेखक के बड़े भाई ने थाने में चिट्ठियां डालकर लाने के लिए कहा था। लेखक के ऊपर ये एक जिम्मेदारी थी, लेकिन लेखक ने शरारतवश और लापरवाही के कारण वह चिट्ठियां गलती से उस कुएं में गिरा दी, जिसमें एक भयंकर साँप था।

कुएँ में साँप होने के कारण लेखक कुएं में उतर कर चिट्ठियों को वापस निकाल नहीं सकता था और यदि वह बिना चिट्ठियां डाले घर पहुंच कर भाई को बताता तो भाई से पिटाई होना निश्चित था। लेखक के भाई की ये चिट्ठियां बेहद महत्वपूर्ण थी। लेखक चाह कर भी भाई को चिट्ठियों के गिरने की बात नहीं कह सकता था।

भाई ने उस पर भरोसा करते हुए उसे एक जिम्मेदारी वाला कार्य दिया था। इसीलिए चिट्ठियां गिर जाने के कारण लेखक एक तरफ अपनी पिटाई का डर था तो वहीं दूसरी तरफ से उस जिम्मेदारी का एरसास भी था जो उसके भाई ने उस पर भरोसा करते हुए दी थी। इसलिए लेखक को समझ नहीं आ रहा था कि चिट्ठियों को वापस कुएं से कैसे निकाले ताकि भाई की पिटाई से भी बचे और अपने जिम्मेदारी भी पूरी कर दे।

संदर्भ पाठ

स्मृति, लेखक – श्रीराम शर्मा (कक्षा-9 पाठ-2, हिंदी संचयन)


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जीवन की सार्थकता किस बात में है​?

ऐसी कौन सी भाषा है, जो उल्टी-सीधी एक समान लिखी, पढ़ी और बोली जाती है।

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जीवन की सार्थकता का कोई निश्चित मापदंड नहीं है। समय एवं परिस्थिति के अनुसार जीवन की सार्थकता थोड़ी बहुत परिवर्तित होती रहती है। बड़े-बड़े दर्शनिक और धर्म शास्त्री भी मानव जीवन की सार्थकता के विषय में खोज करते रहे हैं।

सामान्य अर्थों में समझाया जाए तो जीवन की सार्थकता इस बात में है कि जीवन ऐसा जिया जाए जिसमें हम दूसरों के काम आ सकें। स्वयं के स्वार्थ के लिए ही जीवन बिता देना से मानव जीवन की सार्थकता सिद्ध नहीं होती। मानव जीवन की सार्थकता तब ही होती है जब हम प्रेम से रहें, लोगों में खुशियां बांटे, लोगों के सुख-दुख में काम आएं। मानव के लिए जो सद्गुण जरुरी हैं उन्हें धारण करें। मानव जीवन की सार्थकता प्रेम से रहने में है।

प्रेम एक भावना है जो मानव के अंदर उत्पन्न होती है और प्रेम मानव जीवन को उद्देश्य देकर जाती है। खुशी एक अनुभव है जो मानव के अंदर संतोष पैदा करती है। दूसरों की मदद करना एक आचरण है जो हर मानव के लिए एक आदर्श है। जीवन की सही सार्थकता तभी होगी जब हम दूसरों की मदद करें।


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गुरु ज्ञान की बारिश अज्ञान रूपी गंदगी को कैसे साफ़ कर देती है?​​

किसने कहा कि ‘समानों के साथ समानता का, असमानों के साथ असमानता का व्यवहार होना चाहिए।’

गर्मियों की छुट्टियों का सदुपयोग करने हेतु पिता और बेटी के बीच संवाद​ लिखिए।

संवाद लेखन

पिता और बेटी के बीच संवाद

 

पिता ⦂ बेटी आयुषी, तुम्हारी गर्मी की छुट्टियां शुरू हो रही हैं, तुमने गर्मी की छुट्टियों के बारे में क्या सोचा है?

बेटी ⦂ पिताजी, मैं सोच रही हूं कि गर्मियों की छुट्टियों का कुछ सदुपयोग किया जाए और कोई क्रैश कोर्स किया जाए ताकि मुझे भविष्य में काम आ सके।

पिता ⦂ बेटी, तुमने बहुत अच्छा सोचा। मुझे तो लग रहा था कि तुम कहीं घूमने जाने के लिए कहोगी।

बेटी ⦂ पिताजी, पहले मैंने घूमने जाने का प्लान बनाया था और मैंने लंबा प्लान बनाया था, लेकिन सोचा केवल घूमने भर में ही गर्मियों की छुट्टियां बता देने से उनका सदुपयोग नहीं हो पाएगा। मैंने सोचा है कि घूमने का छोटा सा टूर रखूं और बाकी समय कोई शॉर्ट टर्म कोर्स कर लूं ताकि भविष्य में मुझे कुछ मदद मिले।

पिता ⦂ तुम्हारी योजना और सोच बिल्कुल सही है। तुम कहीं पर थोड़े दिन के लिए घूम आओ फिर वापस आकर कोर्स कर लेना।

बेटी ⦂ नही पिताजी, मैं पहले कोर्स करूंगी। फिर कोर्स के पूरा होने के बाद हम सब लोग थोड़े दिनों के लिए कहीं घूमने चलेगें। गर्मियां की छुट्टियां डेढ़ माह की हैं। एक महीने का कोर्स है, उसके बाद 15 दिन में कहीं घूमने भी चलेंगे और मैं अपनी अगली कक्षा की तैयारी भी करूंगी।

पिता ⦂ बेटा, ठीक है। जैसा तुमने सोचा वैसा ही करेंगे। तुम ये जून माह में अपना कोर्स कर लो। जुलाई के पहले हफ्ते में हम लोग माउंट आबू घूमने चलेंगे। मैं अपने ऑफिस से 5 दिन की छुट्टी ले लूंगा।

बेटी ⦂ हाँ, पिताजी ये ठीक रहेगा।

पिता ⦂ बेटा तुम कौन सा कोर्स करने का सोच रही हो?

बेटी ⦂ पिताजी मैंने डिजिटल मार्केटिंग से संबंधित एक शार्ट टर्म कोर्स करने का सोचा है।

पिता ⦂ ठीक है बेटा। जो भी फीस हो मुझे बता देना। मैं पैसे दे दूंगा।

बेटी ⦂ हाँ, पिताजी।


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ऐसी कौन सी भाषा है, जो उल्टी-सीधी एक समान लिखी, पढ़ी और बोली जाती है।

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हाँ पर यह प्रश्न पूछा गया है कि ऐसी कौन सी भाषा है, जो बोलने में या लिखने अथवा पढ़ने में उल्टी-सीधी एक समान रूप से बोली जाती है अथवा लिखी जाती है अथवा पढ़ी जाती है। यानी उस भाषा को अगर बोलेंगे तो उल्टी-सीधी दोनों तरफ से एक समान बोली जाएगी, लिखेंगे तो उसे उल्टा सीधा एक तरह से लिख सकते हैं।

जैसे कनक शब्द का उदाहरण लेते हैं।

कनक ये शब्द एक समान लिखा जाएगा, पढ़ा जाएगा अथवा बोला जाएगा, उसी तरह एक ऐसी भाषा भी है, जिसे बोलें अथवा लिखें अथवा पढ़े। उल्टी-सीधी एक जैसी बोली, लिखी या पढ़ी जाएगी। तो हम आपको बता दें कि वह एक भारतीय भाषा है और उस भाषा का नाम है

मलयालम

मलयालम एक ऐसी भाषा है जिसे बोले अथवा लिखें अथवा पढ़े, यह उल्टी-सीधी एक ही जैसी लिखी, पढ़ी जाएगी। चलिए मलयालम को को उल्टा करते हैं, यानि इसके आखिरी अक्षर को पहले लाते हैं, सारे अक्षर एकदम घुमा देते हैं। तो मलयालम ऐसे लिखी जाएगी

मलयालम — मलयालम

आप बोलेंगे ये तो दोनो शब्द एक ही हैं। यही तो कमाल है। हमने शब्द को एकदम उलट दिया था,लेकिन उलटने पर भी वह वैसा ही रहा जैसा सीधा शब्द था।

अब ‘मलयालम’ को अंग्रेजी में लिखते हैं।

MALAYALAM इस शब्द को पूरा घुमा देते हैं, यानि उल्टा कर देते हैं। तो MALAYALAM शब्द को उल्टा कर देने पर भी वह बदलेगा नही।

MALAYALAM — MALAYALAM तो जान गए न आप कि वो भाषा मलयालम है जो उल्टी-सीधी एक समान लिखी जाती है।

मलयालम भाषा के बारे में कुछ और तथ्य

  • मलयालम भाषा दक्षिण भारत के राज्य केरल की प्रमुख भाषा है।
  • यह दक्षिण भारतीय भाषा है।
  • मलयालम भाषा द्रविड़ भाषा परिवार की भाषा है।
  • यह केरल राज्य की राजभाषा है।
  • केरल के अलावा यह तमिलनाडु तथा कर्नाटक के कई क्षेत्रों तथा लक्ष्यदीप में भी बोली जाती है।
  • मलयालम भाषा की लिपि द्रविड़ लिपि है जो कि ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई है।
  • मलयालम भाषा अन्य भारतीय भाषाओं की तरह संस्कृत से ही विकसित हुई है और इस पर संस्कृत भाषा का काफी प्रभाव रहा है।
  • मलयालम भाषा बोलने वालों की कुल संख्या पूरे विश्व में लगभग 4 करोड़ है, जिसमें अकेले 3:30 करोड़ के लगभग भारत में ही रहते हैं, जिनमें अधिकतर संख्या केरल के निवासियों की है।
  • उसकेअलावा मलयालम भाषा संयुक्त खाड़ी देशों तथा कई अन्य देशों में मलयाली लोगों द्वारा बोली जाती है, जो कि मूल रूप से मलयाली हैं और विदेशों में बस गए हैं।

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चाँद पर सबसे पहला आदमी कौन गया​?

ग्रीष्मावकाश में घूमने के लिए जाने की योजना बनाने हेतु हो रही अपने परिवार या मित्रों की बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

संवाद

ग्रीष्मावकाश में घूमने के लिए जाने की योजना पर परिवार के बीच संवाद

 

राहुल ⦂ पापा, गर्मियों में हम लोग गोवा घूमने जा रहे हैं। हमारी गोवा की टिकट कंफर्म हो गई क्या?

पिता ⦂ हाँ बेटा, हमारी टिकट कंफर्म हो गई हैं मुझे आज ही मैसेज आया। परसों गोवा के लिए दिल्ली से हमारी ट्रेन है।

माँ ⦂ गोवा जाने वाली ट्रेन का समय कब है?

पिता ⦂ ट्रेन सुबह 9 बजे नई दिल्ली स्टेशन निकलेगी और अगले दिन सुबह 7 बजे गोवा पहुंचा देगी। हमें घर से सुबह 7 बजे निकलना होगा। तुम लोग सारी तैयारी करके रखना।

राहुल ⦂ पापा, मैंने मैंने अपनी पैकिंग कर के रख ली है। मैंने सारे कपड़े पैक कर दिए हैं।

मिनी ⦂ पापा मैंने भी अपनी पैकिंग कर ली है। लेकिन मेरे पास अच्छा बैग नहीं है। प्लीज, मुझे बैग दिला दो।

पापा ⦂ शाम को मार्केट चलेंगे तब मैं तुम्हें एक बैग दिला दूंगा।

माँ ⦂ हम दोनों के कपड़े मैंने एक बड़े बैग में रख लिए हैं और एक बैग में हम सभी का कॉमन सामान है।

पिता ⦂ अच्छा।

माँ ⦂ हाँ और दूसरे बैग में खाने-पीने का सामान तथा छोटे-मोटे स्नैक्स वगैरह तथा दवाइयाँ आदि रख लिए हैं।

पिता ⦂ तुमने ठीक किया। ज्यादा गर्म कपड़े नहीं रखना। गोवा का मौसम ठंडा नहीं होता है और रास्ते में भी कुछ खास ठंड नहीं है। केवल हल्के कपड़े रखना।

माँ ⦂ ठीक है।

पिता ⦂ मैं शाम को मिनी को एक छोटा सा बैग दिला दूंगा। जिसमें उसके कपड़े आ जाएंगे। मिनी और राहुल बेटा तुम्हें कुछ और चाहिए।

राहुल ⦂ पापा मेरे मोबाइल के चार्जर खराब हो गया है मुझे दिला देना। और मुझे एक पॉवर बैंक दिला देना।

मिनी ⦂ पापा, मुझे एक हेडफोन चाहिए।

पापा ⦂ ठीक है, तुम दोनो शाम को मेरे साथ मार्केट चलना।

राहुल और मिनी ⦂ पापा, गोवा घूमकर सच में बहुत मजा आएगा।


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गर्मियों की छुट्टियों के बाद कक्षा में मिले दो सहेलियों के बीच हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

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संवाद लेखन

गर्मियों की छुट्टियों के बाद मिल रही दो सहेलियों के बीच संवाद

 

(मान लेते हैं कि गर्मियों की छुट्टियों के बाद सुनीता एवं शालिनी नाम की दो सहेलियां मिल रही हैं।)

सुनीता ⦂ शालिनी, कैसी हो? तुम्हारी गर्मियों की छुट्टियां कैसी बीती? तुम क्या कहीं बाहर गई थी?

शालिनी ⦂ मैं अच्छी हूँ। तुम अपना सुनाओ तुम्हारे क्या हालचाल हैं? हां मैं गर्मियों की छुट्टियों में अपनी नानी के घर उनके गाँव में गई थी।

सुनीता ⦂ मैं भी ठीक हूँ। तुम्हारी नानी का घर कहाँ पर है।

शालिनी ⦂ मेरी नानी का घर हिमाचल प्रदेश के एक गांव में है वहां पर गर्मी नहीं ज्यादा गर्मी नहीं पड़ती और हमेशा सुहावना मौसम रहता है। गर्मी की छुट्टियों में अपनी नानी के घर जाकर मुझे सच में बहुत मजा आ गया। मेरी गर्मियों की छुट्टियां कब वहां बीत गई पता ही नहीं चला मेरा तो वापस आने का मन नहीं कर रहा था।

सुनीता ⦂ वाह! फिर तो तुम्हारी गर्मियों की छुट्टियां बहुत अच्छी बीतीं। मैंने सुना है हिमाचल प्रदेश में अधिक गर्मी नहीं पड़ती।

शालिनी ⦂ तुमने सही सुना। मेरी नानी के गांव में अधिक गर्मी नहीं पड़ती और वहां या तो कड़ाके की ठंड पड़ती है अथवा मौसम सुहावना रहता है। वहां पर इस समय हल्की बर्फबारी हो रही थी मुझे सच में बहुत मजा आया।

सुनीता ⦂ चलो तुम्हारी गर्मियों की छुट्टियां सफल हो गईं।

शालिनी ⦂ अच्छा तुमने अपने बारे में नहीं बताया कि तुम गर्मियों की छुट्टियों में कहां गई थी?

सुनीता ⦂ मैं गर्मियों की छुट्टियों में कहीं नहीं गई थी बल्कि नहीं दिल्ली में ही थी। वैसे मुझे भी अपने परिवार सहित अपने दादा के घर जाना था जो कि उत्तराखंड में रहते हैं लेकिन कुछ कारणों से हम सबका कार्यक्रम कैंसिल हो गया।

शालिनी ⦂ अच्छा यह बताओ कि गर्मियों की छुट्टियों में क्या किया?

सुनीता ⦂ मैंने गर्मियों की छुट्टियों में क्रैश कोर्स किया था। मैंने सोचा क्यों ना गर्मियों की छुट्टियों का सदुपयोग कर लिया जाए। मैंने टूरिस्ट गाइड से संबंधित क्रैश कोर्स करने के अलावा फ्रेंच भाषा भी सीखी गर्मियों की छुट्टियों का पूरा फायदा उठाने की कोशिश की।

शालिनी ⦂ यह तुमने बहुत अच्छा किया। गर्मियों की छुट्टियां मैं कुछ नहीं सीख पाई। अगली गर्मियों की छुट्टियों में मैं पूरी कोशिश करूंगी कि छुट्टियों का सदुपयोग करते हुए मैं कोई कला सीख सकूं ताकि वह मेरे काम आ सके।

सुनीता ⦂ हां हमें ऐसा ही करना चाहिए अपने खाली समय का सदुपयोग कर सके तो खाली समय का महत्व बढ़ जाता है। चलो कोई ना मैं तुम्हें कुछ नई बातें सिखाउंगी।

शालिनी ⦂ हाँ, बहुत बातें हो गई, चलो कुछ खाने चलते हैं।

सुनीता ⦂ चलो।


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क्रिकेट मैच के विषय में दो मित्रों की बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

अपने दादाजी से योग दिवस तथा उसके महत्व के विषय में जानकारी लेते हुए योग दिवस के महत्व पर संवाद लिखिए।

क्या महानगरो में खुली हवा केवल सुबह के समय घूमते समय ही प्राप्त होती है? हमारे लिए ये हवा क्यों ज़रूरी है और इस हवा को प्रदूषण रहित करने में हम अपना योगदान कैसे दे सकते हैं?

महानगरों में खुली हवा केवल सुबह घूमते समय ही प्राप्त होती है यह बात काफी हद तक सही है। महानगर में अत्याधिक आबादी होने के कारण अत्यधिक वाहन होते हैं, औद्योगिक इकाइयां हैं, जिस कारण महानगरों में प्रदूषण होना आम समस्या है। महानगरों में स्वच्छ हवा मिलना बेहद मुश्किल कार्य है। खुली हवा सांस लेने के लिए बहुत जरूरी है।

महानगर के लोगों को अगर खुली हवा अगर मिलती भी है तो वह सुबह के समय ही मिलती है। सुबह के बाद महानगरों की गतिविधि चालू हो जाती है, वाहन सड़क पर आ जाते हैं और फिर प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगता है। यह क्रम रात तक चलता रहता है। इसलिए महानगरों में खुली हवा मिल पाना दूर की कौड़ी है। हमारे लिए खुली हवा बेहद आवश्यक है। यह हमारे प्राणों का आधार है। स्वच्छ हवा हमारे सांसो का आधार होती है। हमारे शरीर के लिए ऑक्सीजन बेहद आवश्यक है। अपने आसपास के क्षेत्र को की हवा को प्रदूषण रहित करने में हम अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।

हम निम्नलिखित उपाय आजमा सकते हैं…
  • हमें अधिक से अधिक वृक्ष लगाने का प्रयत्न करना चाहिए। हम जानते हैं कि वृक्ष ऑक्सीजन का सबसे बड़ा स्रोत होते हैं। अधिक से अधिक वृक्ष का मतलब है, अधिक से अधिक ऑक्सीजन अर्थात अधिक से अधिक शुद्ध हवा।
  • हमें वाहनों के प्रयोग पर भी नियंत्रण स्थापित करना चाहिए। हमें यह प्रयत्न करना चाहिए कि जितना संभव हो सके, हम निजी वाहनों का प्रयोग करने से बचें और कहीं आने जाने के लिए सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करें। इससे सड़क पर वाहन कम संख्या में उतरेंगे और प्रदूषण भी कम होगा।
  • धूम्रपान जैसी आदतों को छोड़ देने से भी हवा को प्रदूषण रहित करने में सहायता मिलेगी।
  • औद्योगिक इकाईयों द्वारा प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार को प्रदूषण के मानक तय करने होंगे। अधिक प्रदूषण उत्पन्न करने वाली इकाईयों को बंद करना होगा।
  • हमें ईधन के वैसे वैकल्पिक साधन प्रयोग में लाने होंगे जो प्रदूषण नहीं करते हों। जैसे इलेक्ट्रिक वाहन, इलेक्ट्रिक चूल्हा इत्यादि।

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गुरु ज्ञान की बारिश अज्ञान रूपी गंदगी को इस प्रकार साफ कर देती है कि गुरु अपने ज्ञान से जिसके मन के अज्ञानता को दूर कर देता है। मन में या तो ज्ञान रह सकता है अथवा अज्ञान। जब शिष्य गुरु के संपर्क में आता है तो वह अज्ञानता से भरा होता है, लेकिन गुरु धीरे-धीरे उसे अज्ञानता के अंधकार से निकालकर उसके मन में ज्ञान की ज्योति जलाता है।

गुरु के ज्ञान की बारिश से जिसके मन में अज्ञानता की जो भी गंदगी भरी होती है, वह धीरे-धीरे साफ होती जाती है। गुरु के सानिध्य में रहकर शिष्य निरंतर परिमार्जित होता जाता है, और उसका मन शुद्ध होता जाता है और उसके मन से अज्ञानता रूपी गंदगी अर्थात अज्ञानता दूर होती जाती है और ज्ञान का समावेश होता जाता है। इस तरह गुरु ज्ञान की बारिश अज्ञान रूपी गंदगी को साफ कर देती है।


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सतगुरु साँचा सूरिवाँ, सवद जु बाह्य एक। लागत ही मैं मिल गया,पड़ता कलेजे छेक।। संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए।

क्रिकेट मैच के विषय में दो मित्रों की बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

संवाद लेखन

क्रिकेट मैच के विषय में दो मित्रों की बातचीत

(क्रिकेट के मैच के विषय में दो मित्रों हरीश और रमन के बीच संवाद हो रहा है।)

हरीश ⦂ आज का मैच बड़ा ही मजेदार रहा लेकिन हम लोग केवल 1 रन से हार गए इस बात का दुख भी हुआ।

रमन ⦂ हम लोग केवल 1 रन से हारे। इसका मतलब हम लोगों ने संघर्ष किया और विपक्षी टीम को आसानी से मैच नहीं जीतने दिया। हार और जीत खेल का हिस्सा है किसी ना किसी एक टीम को हार और एक टीम को जीत मिली है यह खेल का अकाट्य सत्य है।

हरीश ⦂ हाँ, वही बात है। आखिरी ओवर में मैं छक्का नहीं लगा पाया। काश मैं छक्का लगा देता तो हमारी टीम जीत जाती। मैंने पूरी कोशिश की, लेकिन गेंद बाउंड्री लाइन से 2 इंच पहले गिर गई और वह छक्का ना होकर चौका हो गया, इससे हमारी टीम 1 रन से हार गई।

रमन ⦂ कोई बात नहीं। तुम निराश मत हो। तुमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी। हमारे विकेट जल्दी जल्दी गिर गए, इसी कारण बीच में खेल काफी धीमा हो गया था। हम आखिरी ओवर में लक्ष्य पाने वाली स्थिति में पहुंच गए थे। मैं भी जल्दी आउट हो गया और मैंने बॉलिंग करते समय रन भी काफी दे दिए जो हम लोगों पर भारी पड़े।

हरीश ⦂ हमें विपक्षी टीम को भी पूरा श्रेय देना चाहिए कि उन्होंने बहुत अच्छी गेंदबाजी और बल्लेबाजी की। वे लोग मैच जीतने के पूरे हकदार थे।

रमन ⦂ बिल्कुल सही बात। अब हमें इस मैच को भुलाकर अगले मैच की जोर-शोर से तैयारी करनी चाहिए। उम्मीद है कि अगला मैच हम जोर-शोर से जीतेंगे और टूर्नामेंट के फाइनल में भी पहुंचेंगे

हरीश ⦂ चलो अब चलते हैं। कल सुबह तुम जल्दी मैदान पर आ जाना। हमें जोरदार प्रैक्टिस करनी है और परसों का मैच हर हाल में जीतना है। मैं बाकी साथी खिलाड़ियों को भी सूचित कर देता हूं।

रमन ⦂ ठीक है कल सुबह 6 बजे मिलते हैं।


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किसने कहा कि ‘समानों के साथ समानता का, असमानों के साथ असमानता का व्यवहार होना चाहिए।’

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यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक ‘प्लेटो’ ने यह कथन कहा था कि ‘समानों के साथ समानता का, असमानों के साथ असमानता का व्यवहार होना चाहिए।’

प्लेटो ने ऐसा क्यों कहा होगा, उसके लिए पहले समानता और ससमानता को समझते हैं। समानता का अर्थ समान व्यवहार से नहीं होता जो अधिकार किसी एक व्यक्ति को प्राप्त हैं, वह सभी व्यक्ति को प्राप्त होनी चाहिए, ऐसा उचित नही होगा। उदाहरण के लिए लेकिन समानता समान स्तर पर ही कार्य करती है। यदि कोई अधिकार देश के सर्वोच्च पद जैसे राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को प्राप्त है वह किसी आम नागरिक को नहीं मिल सकता, इसीलिए समाज में ऊंचे नीचे और मध्यम तरह ये तीन स्तर होते हैं। इसलिए हर स्तर के लोगों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता। यहाँ पर समानता से तात्पर्य सामाजिक मानदंडों से है. जो मौलिक व आधारभूत अधिकार हर व्यक्ति को प्राप्त होने चाहिए वह उसे मिलने चाहिए यही समानता है। यही समानता के साथ समानता वाला व्यवहार है। जो अधिकार किसी विशेष पद पर बैठे व्यक्ति के लिए निश्चित है वह उसे ही मिलते हैं यह असमानता है और असमानता के साथ असमानता वाला व्यवहार है।


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आलस्य और परतंत्रता का जीवन जीने वाले को यह संदेश है कि जीवन का असली उद्देश्य आलस्य नहीं है। ईश्वर ने जीवन परतंत्र होने के लिए नहीं प्रदान किया है। आलस्य और परतंत्रता जीवन के नकारात्मक पहलू हैं? आलस्य पर मनुष्य का पूरा नियंत्रण होता है, वह अपने कमियों के कारण ही आलस्य जैसी गलत आदत को अपना लेता है।

परतंत्रता पर मनुष्य का पूरा नियंत्रण नहीं होता उसे किसी प्रतिकूल परिस्थिति के कारण भी परतंत्र बनना पड़ सकता है, लेकिन वह प्रयास करें तो परतंत्रता से भी मुक्ति पा सकता है। लेकिन जिन लोगों को आलस्य और परतंत्रता में जीने की आदत पड़ जाती है, वह इससे मुक्ति नहीं पाने का प्रयास करते। इसी कारण अपने पूरे जीवन आलस्य और परतंत्रता में निकाल देते हैं। मनुष्य को ईश्वर ने कर्म करने के लिए भेजा है।

कर्म ही मनुष्य का मूल मंत्र है। यदि मनुष्य कर्महीन होकर आलस्य को अपना लेगा तो उसका जीवन निरर्थक है। उसी प्रकार अपनी स्वतंत्रता को खोकर परतंत्रता में जीना मनुष्य के लिए लज्जा का विषय होना चाहिए। इसलिए आलस्य को को त्याग कर कर्मशील बनो तथा परतंत्रता की जंजीरों को तोड़ कर स्वतंत्रता का जीवन जियो। आलस्य और परतंत्रता का जीवन जीने वालों के लिए यही संदेश है।


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आपने अपने मित्र के साथ ग्रीष्मावकाश को कैसे बिताया, इस बात को बताते हुए अपनी माँ को पत्र लिखिए।

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ग्रीष्मावकाश पत्र बिताने पर माँ को पत्र

 

दिनांक : 10 मई 2024

 

आदरणीय माँ चरण स्पर्श माँ, मैं यहाँ अपने दोस्त के घर पर ठीक प्रकार से हूँ। मेरी गर्मी की छुट्टियां मजे में बीतीं। दो दिन बाद मैं वापस घर आ जाऊंगा। मैंने सोचा उससे पहले आप को पत्र लिख दूं और सारी बातें बताऊं। माँ, अपने दोस्त मयंक के घर में रहकर मुझे बहुत मजा आया। उसका घर एक छोटे से फूलपुर कस्बे में है।

फूलपुर कस्बा बेहद शांत कस्बा है। यहाँ पर बहुत अधिक हरियाली है। यहाँ के लोग भी बेहद सीधे-सादे और मिलनसार हैं। मेरे दोस्त का मकान भी बहुत अधिक बड़ा है। उसके मकान में एक शानदार बगीचा भी है, जहाँ तरह-तरह के फल-फूल के पड़े थे। मेरे दोस्त के पिता का एक खेत है, जहां पर हम लोग रोज जाते थे। हम लोग रोज सुबह नाश्ता करके खेतों की ओर चले जाया करते थे और खेतों पर खूब मस्ती करते थे।

दोपहर को हम लोग घर आते तो मेरे दोस्त की माँ मुझे अच्छा खाना खिलाती। मेरे दोस्त के परिवार वालों ने मेरा बहुत अधिक ध्यान रखा। छुट्टियों के यह 10 दिन कब बीत गए पता ही नहीं चला। मैं कस्बे मैं खूब घूमा। हम लोग एक दिन कस्बे के बाहर स्थित छोटे से जंगल में पिकनिक मनाने भी गए थे। यहाँ का मौसम अच्छा था और बहुत अधिक गर्मी नहीं थी। इसी कारण हमें कोई परेशानी नहीं हुई।

परसों सुबह की बस से मैं वापस घर आ जाऊंगा फिर आपको सारे फोटो भी दिखाऊंगा।

आपका बेटा,
सुनील


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आत्मविश्वास के बलबूते जीवन में क्या नहीं किया जा सकता। आत्मविश्वास के बलबूते जीवन में हर कठिन कार्य को सरल बनाया जा सकता है और असंभव कार्य को संभव बनाया जा सकता है।

आत्मविश्वास मनुष्य का आत्मबल होता है जो मनुष्य के अंदर किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए आवश्यक बल देता है। यह आत्मबल ही मनुष्य के आत्मविश्वास के रूप में उभर कर सामने आता है। इसलिए आत्मविश्वास के बलबूते इस जीवन में हर कठिन कार्य को किया जा सकता है। बिना आत्मविश्वास के जीवन में कभी भी सफलता नहीं प्राप्त की जा सकती।

जब तक मनुष्य के अंदर उसका आत्मविश्वास नहीं जगेगा वह सफलता के पथ पर नहीं चल सकता। आत्मविश्वास मनुष्य के अंदर एक शक्ति पैदा करता है। आत्मविश्वास मनुष्य को आगे बढ़ने का मार्ग सुझाता है।

संसार में जितने भी सफल मनुष्य हुए हैं, वह अपने आत्मविश्वास एवं परिश्रम के बल पर ही सफल हुए हैं। इसलिए आत्मविश्वास से जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है तथा अपने लक्ष्य को साधा जा सकता है।


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संवाद

दादा और पोते के बीच योग दिवस के महत्व पर संवाद

 

पोता ⦂ दादाजी योग दिवस के बारे में कुछ बताइए। हम 21 जून को ही योग दिवस क्यों मनाते हैं?

दादाजी ⦂ बेटा, 21 जून को योग दिवस मनाने का कोई ऐसा विशेष कारण नहीं है। 21 जून की तारीख योग संबंधी किसी महत्वपूर्ण घटना से नहीं जुड़ी है, जिसका 29 जून को योग दिवस मनाया जाने लगा हो।

पोता ⦂ फिर हम योग दिवस 21 जून को क्यों मनाते हैं?

दादाजी ⦂ बेटा, दरअसल इस दिन संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित कर दिया था। इसी कारण तब से 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय  योग दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। यह घटना बहुत पुरानी नहीं है। 2015 में ऐसा योग दिवस मनाने का प्रचलन शुरु हुआ।

पोता ⦂ दादा जी हमें योग करना जरूरी क्यों है? योग से हमें क्या लाभ हैं?

दादाजी ⦂ बेटा, योग से बहुत अधिक लाभ ही लाभ है। योग हमारे शरीर को ना केवल बाहरी रूप से बढ़कर आंतरिक रूप से भी स्वस्थ रखता है। शारीरिक व्यायाम करने से हम अपने शरीर को बाहरी तौर पर मजबूत बना लेते हैं। लेकिन आंतरिक रुप से हमारा शरीर इतना अधिक मजबूत नहीं बन पाता। लेकिन योग से हमारा शरीर बाहरी रूप से और आंतरिक रूप से दोनों तरह से स्वस्थ होता है तथा हमारा मन भी स्वस्थ होता है।

पोता ⦂ अच्छा।

दादाजी ⦂ बेटा, नियमित योग करना स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक होता है। यदि हम लोग को अपनी नियमित दिनचर्या का हिस्सा बना ले तो कोई भी बीमारी हमारे आसपास नहीं फटक सकती। योग हमें शारीरिक रूप से एवं मानसिक रूप से दोनों दृष्टि से मजबूत करता है।

पोता ⦂ योग्य और क्या-क्या लाभ हैं दादाजी ?

दादाजी ⦂ बेटा, योग हमारे शरीर को लचीला बनाता है। प्राणायाम करने से हमारे अपनी साँसों पर नियंत्रण स्थापित होता है और फेफड़ों का व्यायाम होता है। हमारे फेफड़े मजबूत बनते हैं। अलग-अलग आसन करने से हमारे शरीर की अनेक तरह की बीमारियां दूर होती हैं और हमारा शरीर लचीला तथा मुलायम बनता है। योग करने से हमारा मन शांत होता है, जिससे मन में बुरे विचारों का आगमन बंद होता है और हमारे जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है।

पोता ⦂ दादा जी, आपसे योग के अनेक लाभ जानकर मैंने मन में यह निश्चय कर लिया है कि मैं योग को अपने जीवन की नियमित दिनचर्या बना लूंगा।

दादाजी ⦂ शाबाश बेटा


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औपचारिक पत्र

जिला अधिकारी को पत्र

 

दिनाँक : 25 मई 2024

 

सेवा में,
श्रीमान जिलाधिकारी महोदय,
जिला – हवनगंज (उत्तम प्रदेश)

विषय : गाँव में अंबेडकर पार्क की स्थापन के संबंध में

 

माननीय जिलाधिकारी महोदय,
हम सभी फूलपुर गाँव के निवासी आपको यह पत्र हमारे गाँव में पार्क की स्थापना के संदर्भ में लिख रहे हैं। हमारे फूलपुर गाँव में एक भी पार्क नहीं है, जहाँ पर गाँव के निवासी चंद पल बैठ कर आराम से बातें कर सकें और हमारे गाँव के बच्चे खेल सकें। अतः जिलाधिकारी महोदय से विनती है कि हमारे गाँव में एक पार्क की स्थापना की जाए, जहाँ पर हरे-भरे वृक्ष हों, गाँव वासियों के लिए बैठने की पर्याप्त व्यवस्था हो।

गाँव के बच्चों के लिए खेलने का मैदान और झूले आदि हों। यह पार्क हमारे संविधान के रचयिता श्री भीमराव अंबेडकर के जीवन पर आधारित होना चाहिए। इस पार्क में श्री भीमराव अंबेडकर की मूर्ति स्थापित की जाए और पार्क में एक छोटा सा कक्ष भी बनाया जाए, जहाँ पर उनसे जुड़ी स्मृतियों का संग्रह एवं प्रदर्शन किया गया हो तथा उनसे संबंधित पुस्तकें आदि रखी जाएं। इस तरह पार्क में आने वाले लोगों को हमारे देश के संविधान निर्माता के बारे में जानने का अवसर मिलेगा बल्कि हमारे गाँव के बच्चों को पार्क में खेलने के लिए स्वच्छ वातावरण तथा बड़े बुजुर्गों को सुबह-शाम टहलने के लिए उचित स्थान मिल जाएगा।

आशा है, इस संबंध में जिलाधिकारी महोदय शीघ्र से शीघ्र ही उचित निर्णय लेंगे और हमारे गाँव में पार्क की स्थापना के संबंध में शासनादेश पारित करेंगे।
धन्यवाद,

भवदीय,
फूलपुर गाँव के समस्त निवासी


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‘जब मैं कक्षा में प्रथम आया।’ इस विषय पर एक निबंध लिखिए।

निबंध

जब मैं कक्षा में प्रथम आया

 

कक्षा में प्रथम आने का अनुभव ही अलग होता है। जब मैं अपनी कक्षा में प्रथम आया था तो वह मेरा प्रथम अनुभव था, क्योंकि इससे पहले मैं कभी भी कक्षा में प्रथम नहीं आया था। कक्षा में प्रथम आने का मुख्य कारण मेरे द्वारा की गई जी तोड़ मेहनत और पढ़ाई थी, लेकिन इसके पीछे बहुत बड़ी प्रेरणा भी छुपी हुई थी।

पिछली परीक्षा में मैं फेल होते-होते रह गया था। मेरे बेहद कम अंक आए थे और मैं अनुकंपा के आधार पर पास हुआ था। जब मैं अपना रिजल्ट लेकर निराश भावना से अपने घर में घुसा, तब मेरे मन में बेहद डर था। मुझे अपने माता-पिता से पढ़ने वाली डांट का डर था। मुझे इस बात की चिंता थी कि मैं उनको क्या जवाब दूंगा।

जब मैं घर में घुसा तो मेरे माता-पिता दोनों घर में मौजूद थे। मैंने डरते डरते उनको रिजल्ट दिखाया और इससे पहले वे कुछ बोलते मैंने उनके पैरों में बैठकर रोने लगा। मुझे रोते देखकर वह घबरा गए और उन्होंने मुझे प्यार से समझाया कि रो क्यों रहे हो। अगर तुम्हारे कम अंक आए हैं तो तुम्हारी कमी के कारण आए हैं। हमें अगर किसी कार्य में असफलता मिलती है तो हमें हमारी किसी गलती के कारण ही असफलता मिलती है। हमें अपनी असफलता के कारणों को समझना चाहिए और उन गलतियों को सुधार का प्रयास करना चाहिए। इस परीक्षा में तुम्हारे बेहद कम अंक आए और तुम बड़ी मुश्किल से पास हो पाए। तुम्हे इस बात पर गौर करना होगा कि तुम पढ़ाई में इतना पीछे क्यों रह गए।

मेरे पिता ने मुझे बहुत देर से समझाया कि आप से ही एक नया शेड्यूल बना लो और उसी के अनुसार पढ़ाई करो। तुम अपने मन में यह संकल्प लो कि अगली परीक्षा में तुम्हे बेहद अच्छे अंको से उत्तीर्ण होना है। यदि हम मन में कुछ ठान लें और अपने संकल्प के अनुसार कड़ी मेहनत करें तो हमारा लक्ष्य हमें अवश्य मिलता है। अपने पिता की इन सकारात्मक बातों का मुझ पर असर हुआ और मैंने उसी दिन से पूरी लगन से पढ़ाई करनी शुरू कर दी। मैंने खेलना बिल्कुल ही कम कर दिया था और दिन में केवल आधा घंटा बाहर खेलने के लिए जाता था। मेरी मेहनत का ही यह परिणाम हुआ कि वार्षिक परीक्षा में मेरे सारे पेपर अच्छे हुए।

मुझे इतना विश्वास अवश्य था कि मेरे परीक्षा में अच्छे अंक आएंगे, लेकिन मुझे यह आशा नहीं थी कि मैं अपनी कक्षा में प्रथम आऊंगा। जब मुझे अपनी कक्षा में प्रथम आने का समाचार मिला तो मुझे स्वयं पर विश्वास नहीं हुआ। कक्षा में जब हमारे कक्षाध्यापक ने मेरे प्रथम आने की घोषणा की तो कक्षा के सभी छात्र-छात्राएं ताली बजाने लगे। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच में कक्षा में प्रथम आने का समाचार सुनकर मेरे मन में बेहद खुशी हो रही थी। यह मेरे जीवन का सबसे अनमोल पल था और मेरे जीवन की पहली बड़ी सफलता थी। जीवन की इस पहली बड़ी सफलता को मैं आज तक नहीं भूल पाया।


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छुआ-छूत जैसी कुरीति के विषय में दो मित्रों के बीच हुए संवाद को​ लिखिए।

संवाद

छुआ-छूत पर दो मित्रों के बीच संवाद

(छुआ-छूत के विषय को लेकर दो मित्रों वरुण और वैभव में संवाद हो रहा है।)

वरुण ⦂ वैभव तुम जानते हो कि हमारे देश की सबसे बड़ी कुरीति कौन सी है?

वैभव ⦂ मेरे विचार में हमारे देश की सबसे बड़ी कुरीति और बुराई जाति प्रथा है, जिस कारण कुछ लोगों को तथाकथित उच्च वर्ग का व्यक्ति बना दिया गया है और कुछ लोगों को तथाकथित निम्न वर्ग का व्यक्ति बनाकर उनके साथ भेदभाव वाला व्यवहार किया जाता है।

वरुण ⦂ तुम बिल्कुल सही कह रहे हो। हमारे देश की सबसे बड़ी कुरीति जाति प्रथा पर आधारित भेदभाव कुरीति है, जिस कारण हमारे देश में अतीत काल में कितने ही लोगों को अन्याय एवं अत्याचार से गुजारना पड़ा है।

वैभव ⦂ मुझे छुआ-छूत वाली इस प्रथा से मैं जरा भी सहमत नहीं हूँ। मेरे विचार में हर मानव समान रूप से जन्म लेता है। जन्म से ही किसी व्यक्ति को तथाकथित उच्च अथवा निम्न जाति में बांध देना और फिर उसके साथ निम्न जाति वाले व्यक्ति के साथ गलत व्यवहार करना बिल्कुल भी अमानवीय है।

वरुण ⦂ यह बात सही है और हमारा देश सदियों से इस कुरीति से ग्रस्त रहा है। हालांकि हमारे देश के बेहद प्राचीन इतिहास को देखा जाए तो छुआ-छूत यह कुरीति इतनी अधिक प्रचलन में नहीं थी और किसी व्यक्ति के साथ उसकी निम्न जाति के आधार पर ऐसा अमानवीय भेदभाव नहीं किया जाता था, लेकिन मध्य काल के भारत में यह कुरीति बहुत अधिक प्रचलन में आ गई और हमारा समाज बढ़ता चला गया।

वैभव ⦂ हाँ, यह बात सही है लेकिन छुआ-छूत की इस प्रथा में अब काफी कमी आई है, लेकिन यह प्रथा अभी तक पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। शहरों में लोग भले ही जागरूक हो रहे हैं और छुआ-छूत जैसी किसी भी अवधारणा को नहीं मानते, लेकिन भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ पर जागरूकता नहीं है, वहाँ पर अभी भी छुआ-छूत की यह प्रथा प्रचलन में है। हमें सामाजिक स्तर पर यह प्रयास करना है कि छुआछूत की इस प्रथा को पूरी तरह समूल नष्ट कर दिया जाए तभी हमारा देश हमारा समाज विकसित समाज बन सकेगा।

वरुण ⦂ बिल्कुल ऐसा ही होना चाहिए और हम सबको इस कुरीति को पूरी तरह से मिटाने में अपना पूरा योगदान देना होगा।


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चाँद पर सबसे पहला आदमी कौन गया​?

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चाँद पर सबसे पहला आदमी जो गया, उसका नाम नील आर्मस्ट्रांग था।

चाँद पर कदम रखने वाले पहले मनुष्य का नाम नील आर्मस्ट्रांग था, जो अमेरिका के एक अंतरिक्ष यात्री थे। जिन्होंने सबसे पहले चाँद की सतह पर अपना कदम रखा था। नील आर्मस्ट्रांग ने चाँद की सतह पर पहला कदम 20 जुलाई 1969 को रखा था। नील आर्मस्ट्रांग का पूरा नाम नील एल्डन आर्मस्ट्रांग था। उनका जन्म 5 अगस्त 1930 को अमेरिका के ओहायो प्रांत के वेबकॉनेटा नामक शहर में हुआ था।

25 अगस्त 2012 को 82 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हुई। नील आर्मस्ट्रांग ने चाँद की सतह पर अपना पहला कदम 20 जुलाई 1969 को रखा था, जब अमेरिका का एक अंतरिक्ष यान लूनर मॉड्यूल चाँद की सतह पर पहुंचा। ये अंतरिक्ष यान अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा अपोलो 11 मिशन के अन्तर्गत चाँद पर भेजा गया था। इस अंतरिक्ष यान 20 जुलाई 1969 को उसने चाँद की सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की।

नील आर्मस्ट्रांगउस अंतरिक्ष अभियान दल के सदस्य थे, जिसे अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा चाँद पर भेजा गया था। नील आर्मस्ट्रांग के अलावा चांद की सतह पर दूसरे यात्री जिस दूसरे यात्री ने कदम रखा था, उनका नाम बज़ एल्ड्रिन था, जो उसी अभियान दल के सदस्य थे। बज़ एल्ड्रिन चाँद पर कदम रखने वाले दूसरे व्यक्ति भी बने। इस अभियान दल में नील आर्मस्ट्रांग सहित कुल तीन अंतरिक्ष यात्री थे, जिनका नाम नील आर्मस्ट्रांग, बज़ एल्ड्रिन तथा माइकल कॉलिंस था।


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आने वाली वार्षिक परीक्षा की तैयारी के लिए अपनी छोटी बहन को प्रेरक पत्र लिखिए​।

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वार्षिक परीक्षा की तैयारी के लिए छोटी बहन को प्रेरक पत्र

 

दिनांक : 25 मई 2024

 

प्रिय बहन बरखा,

तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ था। तुमने लिखा है कि तुम्हारी वार्षिक परीक्षाएं आरंभ होने वाली हैं। मैं तुम्हारी वार्षिक परीक्षा की तैयारी के संबंध में जानना चाहता हूँ कि तुम्हारी वार्षिक परीक्षा की तैयारी कैसी चल रही है? प्यारी बहन, तुमने पिछली बार कक्षा में बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए थे और अपनी कक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था। इस बार भी हम सबको तुमसे यही आशा है कि तुम वार्षिक परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करो और हम सबका मस्तक गौरवान्वित करो।

तुम अपनी परीक्षा के तैयारी के प्रति आशान्वित रहो और पूरी लगन से निरंतर पढ़ाई करती रहो। मुझे पूरा विश्वास है कि तुम इस बार भी परीक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त करोगी। यदि तुम्हें पढ़ाई संबंधी किसी प्रकार की परेशानी उत्पन्न हो रही हो तो मुझे पत्र में लिखना। मैं प्रयत्न करूंगा कि मुझे ऑफिस से कुछ दिनों की छुट्टी मिल जाए और फिर मैं घर पर आकर पढ़ाई में तुम्हारी मदद कर सकूं।

यदि पढ़ाई संबंधी कोई ऐसी समस्या उत्पन्न हो रही है जिसका तुरंत हल चाहिए तो मुझे पत्र में लिख भेजना, मैं जितना संभव होगा, तुम्हें सही मार्गदर्शन दूंगा।

तुम्हारा भाई,
शशिकांत ।


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अपने मित्र को पत्र लिखें जिसमें योग एवं व्यायाम का महत्व बताया गया हो।

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मित्र को पत्र

 

दिनांक : 20 जून 2024

 

प्रिय मित्र नीलेश,
मुझे पता चला है कि आजकल तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। जिसका मुख्य कारण तुम्हारी अनियमित जीवनशैली है। तुम्हें अपने जीवन शैली में सुधार करने की आवश्यकता है। आज मैं तुम्हें योग एवं व्यायाम के महत्व के बारे में बताना चाहूंगा ताकि तुम योग एवं व्यायाम के महत्व को समझ सको और उसे अपने जीवन शैली में नियमित रूप से प्रयोग में लाओ। मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि योग एवं व्यायाम को अपनाकर अपने स्वास्थ्य को पूरी तरह से दुरुस्त कर सकोगे और एक सफल एवं स्वस्थ जीवन जी सकोगे।

हमारा स्वास्थ्य हमारा सबसे बड़ा धन है। यदि यह धन हमारे पास से चला गया तो हम सचमुच में निर्धन हो जाएंगे। तुम जानते हो कि योग हमारे भारतीय जीवन शैली की एक प्राचीन पद्धति है। योग के माध्यम से शरीर को आंतरिक एवं बाहरी दोनों रूप से शुद्ध एवं सुदृढ़ बनाया जा सकता है। योग शरीर को स्वस्थ रखने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इसी कारण 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भी मनाया जाता है जो दुनिया भर में योग के महत्व को स्पष्ट करता है। अभी दो दिन बाद ही अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस आने वाला है। मेरा तुमको यह सुझाव है कि इसी दिन से योग को अपने जीवन की नियमित दिनचर्या बना लो। तुम विश्वास करो कि कुछ महीनों में ही तुम्हारे स्वास्थ्य में गजब का सुधार दिखाई देगा और तुम हमको पहले से बहुत बेहतर एवं स्वस्थ महसूस करोगे। योग के साथ-साथ तुम व्यायाम को भी अपने जीवन की नियमित दिनचर्या बना लो।

व्यायाम से मेरा तात्पर्य बड़े-बड़े यंत्रों के माध्यम से व्यायाम करने से नहीं अपने दैनिक जीवन में ही छोटे-मोटे हल्के-फुल्के व्यायाम करने से है। तुम रोज नियमित रूप से टहल सकते हो, दौड़ लगा सकते हो, उठक बैठक कर सकते हो, दंड बैठक कर सकते हो। यह सारे हल्के-फुल्के व्यायाम हमारे शरीर को स्वस्थ एवं मजबूत रखते हैं।

तुम्हारी सहायता के लिए में पत्र के साथ योग संबंधी एक पुस्तक भेज रहा हूँ, जिसमें योग कैसे किया जाए इसके बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। एक छोटी सी पुस्तक व्यायाम के ऊपर भी है, इसमें तुम्हे अनेक हल्के-फुल्के व्यायामों के बारे में विस्तार से जाने में मदद मिलेगी। आशा है कि तुम एवं व्यायाम के महत्व को समझ कर एवं व्यायाम को अपनाओगे और अपने दैनिक दिनचर्या बना लोगे।

तुम्हारा मित्र,
पवन ।


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‘वृक्षारोपण का महत्व’ समझाते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखें।

आपका मित्र किसी खेल प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए विदेश यात्रा पर जा रहा है। उसकी सफलता की मंगल कामना करते हुए उसे पत्र लिखिए।

हम अपने क्षेत्र को कैसे साफ रख सकते हैं? 10 वाक्यों में सुझाव लिखिए।

हम अपने क्षेत्र को कैसे साफ रख सकते हैं इसके लिए कुछ सुझाव इस प्रकार हैं…
  • हमें हर संभव यह प्रयास करना चाहिए कि जो भी कूड़ा करकट हो वह हम हमेशा कूड़ेदान में ही डालें।
  • अपने क्षेत्र को साफ रखने के लिए हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि हम अपने क्षेत्र की नियमित साफ-सफाई करते रहें।
  • हमारे क्षेत्र में कूड़ा-करकट डालने के लिए जगह-जगह कचरा पेटी लगी हों ताकि कोई भी व्यक्ति सड़क पर कूड़ा ना डालें।
  • अपने क्षेत्र को साफ रखने के लिए हमें सभी व्यक्तियों को जागरूक करना होगा कि वह साफ-सफाई के प्रति संवेदनशीलता अपनाएं और स्वच्छता के महत्व को समझें।
  • अपने क्षेत्र में शासन-प्रशासन की सहायता से अथवा क्षेत्र के गणमान्य व्यक्तियों की सहायता से यह नियम लागू करना होगा कि इधर-उधर कोई भी कूड़ा डालते पकड़ा गया तो उस पर सख्त जुर्माना लगाया जाएगा।
  • हमें अपने क्षेत्र को साफ रखने के लिए नगरपालिका की तरफ से नियुक्ति कर्मचारियों पर भी नजर रखनी होगी और उनके द्वारा साफ-सफाई और कूड़ा उठाने में की गई किसी तरह की लापरवाही होने पर तुरंत नगरपालिका के उच्च अधिकारियों को सूचित करना होगा।
  • अपने क्षेत्र को साफ रखने के लिए हमें निरंतर लोगों को जागरूक करते रहना होगा और समय-समय पर स्वच्छता अभियान चलाते रहना होगा।
  • इस तरह के यह कुछ प्रयास हैं, जिनको आजमा कर हम अपने क्षेत्र को साफ सुथरा रख सकते हैं।

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सफलता और परिश्रम के विषय पर एक छोटी-सी कहानी लिखिए।

छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता का क्या नाम था?

‘चिड़ियाघर’ घूमकर आने के बाद दो मित्रों के बीच संवाद को लिखें।

संवाद

चिड़ियाघर घूमकर आने के बाद दो मित्रों के बीच संवाद

 

(दो दोस्तों शशांक और सुनील चिड़ियाघर घूमने गए। चिड़ियाघर घूम कर आने के बाद दोनों के बीच संवाद हो रहा है।)

शशांक ⦂सुनील, तुम्हें चिड़ियाघर कैसा लगा।

सुनील ⦂ मुझे तो सच में मजा आ गया। इतनी अलग अलग प्रजाति के जानवर एक ही जगह देखकर मेरा मन सच में प्रसन्न हो गया।

शशांक ⦂ मुझे भी बहुत मजा आया। इससे पहले मैंने कभी शेर को साक्षात नहीं देखा था। मैंने टीवी या फिल्मों में ही शेर को देखा था अथवा तस्वीरों में शेर को देखा था।

सुनील ⦂ मैंने तो बहुत से जानवर टीवी पर ही देखें। अपनी आँखों से साक्षात उन जानवरों को देखने का अनुभव ही अलग था।

शशांक ⦂ आप सही कह रहे हो। वह शेरों का जोड़ा कितना प्यारा लग रहा था और जिराफ देखकर तो सच में मेरे रोंगटे खड़े हो गए।

सुनील ⦂ और वह हिरण, वह कितने प्यारे लग रहे थे।

शशांक ⦂ मेरा तो मन ही नहीं कर रहा था कि मैं चिड़िया घर से बाहर आऊँ। लेकिन चिड़ियाघर बंद होने का समय हो गया था। इतने सारे जानवर साक्षात अपनी आँखों से देख कर मन नहीं भर रहा था।

सुनील ⦂ वही मेरा हाल है। अगले रविवार को हम लोग फिर चिड़ियाघर चलेंगे। और जी भर के सभी जानवरों को फिर से देखेंगे।

शशांक ⦂ हाँ ऐसा ही करेंगे।


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रक्तदान करने के विषय पर दो मित्रों के बीच संवाद लिखिए​।

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‘वृक्षारोपण का महत्व’ समझाते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखें।

अनौपचारिक पत्र

‘वृक्षारोपण का महत्व’ इस विषय पर मित्र को पत्र

 

दिनांक : 4 मई 2024

 

प्रिय मित्र हेमंत,

हमारी पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग का संकट दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण क्या तुम्हें पता है? इसका सबसे बड़ा कारण है, वृक्षों की निरंतर हो रही कटाई। हम मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए वृक्षों को निरंतर काटते जा रहे हैं। हमें अपने शहरों का विस्तार करने और कंक्रीट के जंगलों को बनाने की इतनी बड़ी धुन सवार हो गई है कि हम जंगलों को साफ करते जा रहे हैं। हम सड़कों और पुलों का जाल बिछाने के लिए जंगलों को पूरी तरह नष्ट करने पर तुले हुए हैं।

हमारी पृथ्वी पर वृक्षों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है। वृक्षों की इस घटती संख्या को रोकने का एकमात्र उपाय वृक्षारोपण है। वृक्षारोपण की सहायता से ही हम वृक्षों की घटती संख्या को नियंत्रित कर सकते हैं। एक जागरूक नागरिक होने के नाते हम सभी का यह कर्तव्य बनता है कि हम अधिक से अधिक वृक्ष लगाएं ताकि हमारे गाँव, हमारे नगर, हमारे देश की हरियाली में वृद्धि हो। भले ही हम मनुष्य ही वृक्षों की घटती संख्या के लिए जिम्मेदार हैं तो हम मनुष्यों को आगे बढ़कर वृक्षारोपण के लिए पहल करनी होगी। वृक्ष हमारे सबसे बड़े मित्र होते हैं। ये हमारे लिए शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करने का सबसे बड़ा स्रोत हैं। ये हमारे लिए प्राणदाता हैं। हमें अपने मित्र को बचाना है।

वृक्षारोपण करना एक बेहद पुण्य वाला कार्य है। एक वृक्ष को लगाना और उसकी देखभाल करना किसी बच्चे के पालन पोषण से कम नहीं। हम सभी को यह संकल्प लेना होगा कि हम अपने जीवन में अधिक से अधिक वृक्ष लगाएं। हम ना केवल वृक्ष लगाएं बल्कि उसकी निरंतर देखभाल करें ताकि वह पौधा विकसित होकर एक बड़े वृक्ष का रूप ले सके। वृक्षारोपण करने वाले वृक्ष लगाकर उसके बाद उसे भूल जाते हैं। उसके बाद उन्हें पता ही नहीं रहता कि वह पौधा विकसित हुआ कि नहीं। हमें ऐसा नहीं करना है। हमें निरंतर वृक्षारोपण करना है। नए नए पौधे लगाने हैं और समय-समय पर भी उनकी देखभाल भी करती रहनी है।

यदि हम सभी लोग ऐसा संकल्प लेंगे तो हमारी पृथ्वी की हरियाली वापस लौट आएगी। तभी हम अपनी पृथ्वी को बचा सकते हैं और हम ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से निपट सकते हैं। आशा है, मेरे इस पत्र से तुम्हें वृक्षारोपण का महत्व पता चल गया होगा।

तुम्हारा मित्र,
विनीत ।


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आपका मित्र किसी खेल प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए विदेश यात्रा पर जा रहा है। उसकी सफलता की मंगल कामना करते हुए उसे पत्र लिखिए।

आप छात्रावास में रहते हैं। कुछ दिनों से आप की तबीयत ठीक नहीं है। अपनी माँ को अपनी तबियत के बारे में बताते हुए पत्र लिखिए।

सफलता और परिश्रम के विषय पर एक छोटी-सी कहानी लिखिए।

कहानी

सफलता और परिश्रम

 

परिश्रम और सफलता एक दूसरे के पूरक है। किसी भी कार्य में सफलता परिश्रम के बिना नहीं मिलती। जो व्यक्ति परिश्रमी होता है उसे सफलता मिली निश्चित है। इसी संबंध में एक छोटी सी कहानी प्रस्तुत है।

मनोज पढ़ाई में बेहद औसत छात्र था। हालांकि वह अपनी कक्षा में सबसे अव्वल छात्र बनना चाहता था लेकिन उसे कक्षा में पढ़ाई हुई बातें आसानी से समझ में नहीं आती कि इसी कारण वह अक्सर पढ़ाई में पिछड़ जाता था। एक बार उसके मामा उसके घर आए और उन्होंने उसे उसकी पढ़ाई की प्रगति के बारे में पूछा।

तब मनोज ने अपने मामा को बताया कि वह अपनी कक्षा में अव्वल आना चाहता है लेकिन अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाता। वह पढ़ाई में उतना वेतन नहीं बन पा रहा जैसा वह चाहता है। तब मामा ने उसकी पढ़ाई की शैली पर गौर किया उसकी दिनचर्या देखी फिर उससे सुझाव दिया। मामा ने कहा मैंने तुम्हारी दिनचर्या और पढ़ाई की शैली देखी है। मैंने पाया है कि तुम्हारी दिनचर्या अनियमित है और तुम्हारा पढ़ाई का तरीका भी ठीक नहीं है।

किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए हमें कड़ा परिश्रम करना होगा। मैंने देखा है कि तुम बहुत देर से उठते हो। शाम को विद्यालय से घर आने के बाद भी तुम नियमित रूप से पढ़ाई करने नहीं बैठते बल्कि खेलने चले जाते हो और काफी देर तक खेलते हो। तुम्हारा पढ़ाई का समय निश्चित नहीं है। इसी कारण तुम पढ़ाई में पिछड़े जा रहे हो। किसने बरसे कोई काम नहीं होता हमें कड़ा परिश्रम करना होता है। मामा की बातों का मनोज पर गहरा असर हुआ उसने उसी दिन से कर लिया कि वह अपनी पढ़ाई में कड़ा परिश्रम करेगा। अपनी दिनचर्या का एक टाइम टेबल बनाएगा और उसी के अनुसार पढ़ाई करेगा।

वार्षिक परीक्षा में अभी 3 महीने का समय बाकी था। मनोज भी जानते पढ़ाई में जुट गया। उसने एक निश्चित टाइम टेबल बना लिया और उसी के अनुसार पढ़ाई करता। उसने अलग-अलग विषयों के लिए अलग-अलग समय निश्चित कर लिया था। खेल का समय भी उसने काफी कम कर दिया और उसके लिए एक छोटा सा समय निश्चित कर दिया। उससे अधिक वह खेलता नहीं था।

3 महीने तक उसने अथक परिश्रम किया। 3 महीने बाद जब उसने परीक्षा दी, तो उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे क्योंकि उसके सारे पेपर अच्छे गए थे। उसके मन में यह विश्वास अवश्य था कि वह परीक्षा में अच्छे अंको से पास होगा। अंततः एक दिन परीक्षा परिणाम घोषित हुआ। मनोज अपनी कक्षा में ही नहीं पूरे विद्यालय में सबसे अधिक अंक पाने वाला छात्र बना। उसने अपने पूरे विद्यालय को टॉप किया था। मनोज के अथक परिश्रम के कारण ही वह अपने लक्ष्य को पाने में सफल हो सका। आज मनोज बहुत खुश था क्योंकि उसकी वर्षों की इच्छा पूरी हो गई थी कि वह अपनी कक्षा में अव्वल आए। बल्कि पूरे विद्यालय में ही अव्वल आ गया।

इसीलिए विद्वान जनों ने कहा है कि परिश्रम से किसी भी कार्य में सफलता मिलनी निश्चित है। हमें जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए कठोर परेशान की आवश्यकता है।


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‘एक टोकरी भर मिट्टी’ कहानी का उद्देश्य लिखिए। इस कहानी के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है?

संस्कृत भाषा हमारी संस्कृति की पहचान है। संस्कृत भाषा के प्रोत्साहन हेतु संस्कृत को दसवीं कक्षा तक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए अथवा नहीं? अपने शब्दों में लिखिए

विचार/अभिमत

संस्कृत भाषा के प्रोत्साहन पर विचार

 

संस्कृत भाषा हमारी संस्कृति की पहचान है इस बात में संदेह वाली कोई बात ही नहीं है। संस्कृत भाषा भारत की पहचान है और सभी भारतीय भाषाओं की जननी है। विश्व की अनेक भाषाएं भी संस्कृत से ही प्रभावित हैं। संस्कृत भाषा देव भाषा है। हमारे भारत के सारे शास्त्र संस्कृत भाषा में ही रचे गए। हमारा भारत प्राचीन काल में ज्ञान का केंद्र रहा है।

किसी समय में भारत विश्व गुरु था और ज्ञान के विषय में विश्व के लोग भारत की ओर देखते थे। भारत में जो भी ज्ञान की धारा बही, वह सब संस्कृत भाषा में ही रची गई। इसीलिए संस्कृत भाषा का महत्व और अधिक स्पष्ट हो जाता है। लेकिन आज दुखद बात यह है कि संस्कृत भाषा बोलने वालों की संख्या ना के बराबर है। आज संस्कृत भाषा लुप्तप्राय हो गई है। हमें अपने इस धरोहर को बचा कर रखना होगा। आज हमारा नैतिक कर्तव्य बनता है कि हम संस्कृत भाषा रूपी धरोहर को संजोकर रखें। लुप्त होती जा रही हमारी संस्कृत भाषा को बचाने के प्रयास के लिए हमें संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार को बढ़ाना होगा। हमें अपने विद्यालयों में संस्कृत भाषा को प्रोत्साहन देने हेतु पाठ्यक्रम में संस्कृत भाषा को दसवीं तक अनिवार्य करना होगा। क्योंकि भारत की सभी भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा है, इसी कारण भारत के हर राज्य में स्थित भाषा अपना महत्व है।

हर राज्य संस्कृत भाषा को अन्य भाषा बनाने के लिए सहज रूप से सहमत हो जाएगा। भारत में हमें त्रिभाषा फार्मूला को चलाना होगा। जिसके अंतर्गत संस्कृत भाषा. हिंदी भाषा और क्षेत्रीय भाषा सिखाई जाएं। हर राज्य की अपनी क्षेत्रीय भाषा अनिवार्य हो तथा संस्कृत एवं हिंदी भाषा अनिवार्य हो। इस तरह विद्यार्थी संस्कृत भाषा से परिचित होंगे और अपनी संस्कृति विरासत को समझ सकेंगे। इन प्रयासों से ही हमारी संस्कृत भाषा पुनर्जीवित हो सकती है।


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‘समाज में हो रहे अपराधों के पीछे लोभ-वृत्ति भी एक कारण है।’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

“स्वार्थ के लिए ही सब प्रीति करते है।” इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता का क्या नाम था?

छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता नाम शाहजीराजे भोसले थे। छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता एक कुशल मराठा सेनापति थे। उन्होंने अनेक सल्तनत में अपनी सैन्य सेवाएं दी थीं।

शाहजीराजे के बारे में कुछ तथ्य

  • शाहजीराजे भोंसले एक कुशल सेनापति और कुशल प्रशासक थे, जिन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना में अपनी अहम भूमिका निभाई थी।
  • शहाजीराजे भोसले के पिता का नाम मालू जी राजे भोसले था।
  • शाहजीराजे भोसले का जन्म 18 मार्च 1554 ईस्वी को एक मराठा परिवार में हुआ था। शाहजी राजे भोसले के पूर्वज मूल रूप से राजस्थान के रहने वाले थे जो बाद में महाराष्ट्र में आकर बस गए।
  • शाहजीराजे भोसले ने अपने जीवनकाल में विभिन्न रियासतों जैसे कि बीजापुर सल्तनत, अहमद नगर सल्तनत तथा मुगल सल्तनत में मराठा सेनापति या सूबेदार के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान की थीं।
  • शाहजीराजे भोंसले एक कुशल सैन्य कमांडर और प्रशासक थे। वह सेनापति होने के साथ-साथ एक कवि और कलाप्रेमी भी थे। उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं का शिवाजी महाराज के आरंभिक जीवन पर महत्वपूर्ण असर पड़ा।
  • शाहजीराजे के पुत्र महान मराठा योद्धा और महान शासक शिवाजी महाराज का जन्म जुन्नार शहर के पास शिवनेरी के पहाड़ी किले में हुआ,जोकि वर्तमान समय में महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित है।
  • छत्रपति शिवाजी महाराज की जन्म तिथि 19 फरवरी को मानी जाती है, जो कि आधिकारिक रूप से शिवाजी जयंती के रूप में सूचीबद्ध है।
  • शिवाजी महाराज की माता का नाम जीजाबाई था। वह भी एक सुशिक्षित महिला थीं। उन्होंने ही शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व को निखारने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शिवाजी इतने महान योद्धा और कुशल प्रशासक अपनी माँ के द्वारा दी गई शिक्षाओं और संस्कारों के कारण ही बन पाए।
  • शाहजी राजे भोसले का निधन हुआ 23 जनवरी 1664 को एक दुर्घटना में हो गया, जब वह शिकार खेल रहे थे और घोड़े से गिर गए।

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शिवाजी अपने साथ आए घुड़सवारों को आगरा से बाहर क्यों भेजना चाहते थे?

लोकतंत्र का अभिजनवादी सिद्धांत यानि विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत के बारे में बताएं।

शिवाजी अपने साथ आए घुड़सवारों को आगरा से बाहर क्यों भेजना चाहते थे?

शिवाजी अपने साथ आए घुड़सवारों को आगरा से बाहर इसलिए भेजना चाहते थे, क्योंकि उन्होंने इसके पीछे एक योजना तैयार की थी। उस योजना के अंतर्गत वे अपने साथ के सारे घुड़सवारों को आगरा से बाहर भेजना चाहते थे, ताकि उनके सारे घुड़सवार आगरा से बाहर जाकर उनकी योजना पर काम कर सकें और औरंगजेब की कैद से उनकी रिहाई का बंदोबस्त कर सकें।

जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने जब शिवाजी को आगरा के किले में नजरबंद कर लिया, तब शिवाजी ने औरंगजेब की कैद से निकलने के लिए एक योजना तैयार की। उन्होंने ऐसा दर्शाया कि जैसे वह औरंगजेब आगे अपनी हार मान चुके हैं। उन्होंने औरंगजेब से कहा कि वह अपने साथ आए और घुड़सवारों को बाहर भेजना चाहते हैं ताकि वह अपनी पत्नी और माँ को भी आगरा बुला सकें। औरंगजेब को लगा कि शिवाजी उसके चंगुल में फंस चुके हैं। यह अपनी माँ और पत्नी को यहाँ बुला लेंगे तो उनकी भागने की संभावना कम हो जाएगी। भला अपनी माँ या पत्नी को छोड़कर कौन भागेगा। इसलिए औरंगजेब ने शिवाजी को अपने घुड़सवार बाहर भेजने की अनुमति दे दी।

शिवाजी के ये घुड़सवार ही बाद में रोज फलों और मिठाइंयों की टोकरियां शिवाजी महाराज के पास भिजवाते थे। एक दिन इन्ही टोकरियों में छुपकर ही शिवाजी महाराज औरंगजेब की कैद से निकलने में कामयाब रहे।


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विधायक कौन होता है? विधायक की भूमिका क्या होती है?

विग्रह और विनोद से क्या अभिप्राय है?

व्यक्ति का व्यवहार ही उसे सबका प्रिय या अप्रिय बनाता है। इस विषय पर 200 शब्दों में एक निबंध लिखें।

निबंध

व्यक्ति का व्यवहार ही उसे सबका प्रिय अप्रिय या अप्रिय बनाता है।

 

व्यक्ति का व्यवहार ही उसको सबका प्रिय या अप्रिय बनाता है। किसी भी व्यक्ति का व्यवहार उस व्यक्ति के लिए एक परिचय के समान होता है। व्यक्ति का जैसा व्यवहार होता है, उसका वैसा ही परिचय दूसरों को प्राप्त होता है। अर्थात व्यक्ति अपने व्यवहार के द्वारा ही स्वयं के व्यक्तित्व का परिचय दे देता है।

यदि व्यक्ति का व्यवहार विनम्र होगा, वह सबसे मधुर स्वर में बात कर रहा होगा तो स्पष्ट है कि वह व्यक्ति अच्छे स्वभाव का व्यक्ति है। उसके अंदर दूसरों के प्रति सम्मान की भावना है। उसके अंदर करुणा है, दया है। लेकिन जो व्यक्ति तीखे स्वर में बात करता है, जो व्यक्ति कड़वी बातें बोलकर बातें करता है, जो व्यक्ति सदैव गुस्से में बात करता है, तो उस व्यक्ति के बारे में स्पष्ट हो जाता है कि उस व्यक्ति से उसके नकारात्मक स्वभाव का पता चलता है। उसके बारे में स्पष्ट होता है, कि उसके मन में दूसरों के प्रति सम्मान की भावना नहीं है। ऐसे व्यक्ति से उलझना बेकार है क्योंकि वह आपका कभी भी अपमान कर सकता है।

इसलिए व्यक्ति का व्यवहार ही उसे सबका प्रिय प्रिय बनाता है। जो व्यक्ति विनम्र स्वभाव का होता है, उस व्यक्ति को सब लोग प्रिय होते हैं। जो व्यक्ति सबसे मधुर स्वर में बात करता है, हर व्यक्ति उसे मित्रता करना चाहता है। हर व्यक्ति उससे बात करना चाहता है। लेकिन जो व्यक्ति कड़वी बात करता है, जो व्यक्ति सदैव क्रोध में रहता है। उस व्यक्ति से कोई बात नहीं करना चाहता। सब ऐसे व्यक्ति से दूर भागते हैं। यदि कभी किसी कारणवश ऐसे व्यक्ति से बात करने करनी भी पड़े तो भी लोग जल्दी से जल्दी बात को समाप्त कर देना चाहते हैं, क्योंकि कड़वी बातें बोलने वाले, खराब व्यवहार वाले व्यक्ति को कोई पसंद नहीं करता। वह किसी का प्रिय नहीं होता। इसलिए स्पष्ट व्यक्ति का व्यवहार ही उसे लोगों का प्रिय या अप्रिय बनाता है।


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विधायक कौन होता है? विधायक की भूमिका क्या होती है?

विधायक किसी राज्य के विधानमंडल का सदस्य होता है, जो उस राज्य में अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। विधायक को संक्षेप में ‘एम एल ए’ कहा जाता है। जिसका पूर्ण रूप है, ‘मेंबर और लेजिस्लेटिव एसेंबली’ (Member of Legislative Assembly)

विधायक के अधिकार क्षेत्र में एक क्षेत्र आता है, जिसे विधानसभा क्षेत्र कहा जाता है। वह विधानसभा किसी जिले का छोटा सा भाग होता है। विधायक उसी क्षेत्र के प्रतिनिधि के रूप में विधानमंडल में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। विधायक को अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुनावी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। एक विधायक बनने के लिए किसी व्यक्ति को चुनाव लड़ना पड़ता है। वह जनता द्वारा चुनाव प्रक्रिया के अंतर्गत चुना जाता है और उसके बाद वह अपने राज्य के विधान मंडल में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार प्राप्त कर लेता है।

विधायक का कार्य

एक विधायक का मुख्य कार्य अपने क्षेत्र से संबंधित समस्याओं को सुलझाना, अपने क्षेत्र के विकास के लिए कार्य करना, अपने विधानसभा क्षेत्र से संबंधित समस्याओं को विधानमंडल में मुख्यमंत्री तथा मंत्रिमंडल के सामने प्रस्तुत करना होता है। एक विधायक विधानसभा क्षेत्र में हो रहे विकास कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है। एक विधायक अपने विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधि होता है, इसलिए उस क्षेत्र की जो भी जन समस्याएं हैं, उन्हें जनता से सुनना और उन्हें सुलझाना विधायक का कार्य होता है। विधायक भारत की त्रिस्तरीय शासन व्यवस्था के दूसरे स्तर यानि राज्य स्तर के सदन विधानसभा का महत्वपूर्ण सदस्य होता है।


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विग्रह और विनोद से क्या अभिप्राय है?

लोकतंत्र का अभिजनवादी सिद्धांत यानि विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत के बारे में बताएं।

विग्रह और विनोद से क्या अभिप्राय है?

विग्रह और विनोद से अभिप्राय कलह और प्रेम से है।

विस्तार से समझें

विग्रह हिंदी भाषा का शब्द है, जिसके अनेक अर्थ निकलते हैं। व्याकरण की दृष्टि से विग्रह का अर्थ है, यौगिक शब्दों अथवा पदों को एक दूसरे से अलग करना। धर्म एवं भक्ति की दृष्टि से विग्रह का अर्थ किसी देव या ईश्वर आदि की मूर्ति से होता है। ईश्वर के साकार स्वरूप को भी विग्रह कहा जाता है।

यहाँ पर विग्रह का तीसरा अर्थ निकलता है, जिसका अर्थ है कलह करना, लड़ाई करना, झगड़ा करना है। विनोद का अर्थ प्रेम करना, हंसी ठिठोली करना, एक दूसरे से से मजाक करना, हास्य करना है। इस तरह विग्रह एवं विनोद दोनों एक दूसरे के विलोम शब्द है।

जहाँ एक ओर विग्रह से अभिप्राय लड़ाई और झगड़े से है, वहीं दूसरी ओर विनोद से अभिप्राय प्रेम हंसी एवं ठिठोली व हास्य से है। जिस तरह सुख और दुख एक दूसरे के विलोम होकर भी एक दूसरे के साथ युग्म शब्द के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं, उसी तरह विग्रह एवं विनोद दोनों एक दूसरे के विलोम होकर एक दूसरे के साथ युग्म शब्द के रूप में प्रयोग किए जा सकते हैं।


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लोकतंत्र का अभिजनवादी सिद्धांत यानि विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत के बारे में बताएं।

‘रुधिर’ का समानार्थी शब्द क्या है?

लोकतंत्र का अभिजनवादी सिद्धांत यानि विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत के बारे में बताएं।

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‘लोकतंत्र का अभिजनवादी सिद्धांत’ की अवधारणा का विकास लोकतंत्र के विकास के साथ ही आरंभ हो गया था। लोकतंत्र के अभिजनवादी सिद्धांत का प्रतिपादन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद होने लगा था, जब विश्व में लोकतंत्र अपने विस्तार की ओर बढ़ रहा था। लोकतंत्र के अभिजनवादी सिद्धांत के समर्थकों में अनेक राजनीतिक विद्वान थे। जिनमें विल्फ्रेडो परेटो, रॉबर्ट मिशेल्स, जेम्स बर्नहाम, सी राइट मिल्स, ग्रेटामोनोस्का आदि के नाम प्रमुख हैं।

लोकतंत्र के अभिजनवादी सिद्धांत के अनुसार समाज में दो तरह की श्रेणी के लोग पाए जाते हैं। पहली श्रेणी के लोग वह लोग होते हैं, जो संख्या में गिने-चुने होते हैं और विशिष्ट लोगों की श्रेणी में आते हैं। ऐसे लोग शिक्षित होते हैं, बुद्धिजीवी होते हैं अपने विषय से संबंधित विद्वान होते हैं। ऐसे लोग महान विचारक भी होते हैं तथा यह लोग प्रबुद्ध वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन लोगों की बुद्धि और चेतना का स्तर समाज के अन्य लोगों से काफी ऊपर होता है। इन लोगों की सामाजिक प्रतिष्ठा भी सामान्य लोगों से अधिक होती है।

इसी कारण ऐसे लोगों को ‘अभिजन’ यानि ‘विशिष्ट जन’ कहा जाता है। लोकतंत्र के अभिजनवादी सिद्धांत में दूसरी श्रेणी के लोग वह लोग होते हैं जो आम जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस श्रेणी में विशिष्ट लोगों को छोड़कर लगभग सभी लोग समाहित हो जाते हैं। यह बहुसंख्यक समूह है, जिसमें आम जनता होती है। विशाल जनसमूह की यह श्रेणी कुल जनसंख्या का 90 से 95% तक हो सकती है।

लोकतंत्र के अभिजनवादी सिद्धांत की मूल धारणा यह है कि विशिष्ट श्रेणी यानी गिने-चुने लोगों का समूह समूह यानी द्वितीय श्रेणी वाले आम जनसमूह पर शासन करता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अभिजन यानि विशिष्ट लोग विशिष्ट गुणों से युक्त होते हैं। ऐसे लोग सत्ता पर एकाधिकार भी स्थापित करते हैं और सत्ता से जुड़े सारे लाभ भी उठा लेते हैं। इस धारणा का एक पहलू यह भी है कि संगठन अल्पसंख्यक सदैव असंगठित बहुसंख्यक पर शासन करता अथवा उन्हें निर्देशित करता है। लोकतंत्र के अभिजनवादी सिद्धांत की मुख्य विशेषताएं यह है :

  • लोकतंत्र के अभिजनवादी सिद्धांत के अनुसार सामान्य लोग योग्य नहीं होते। उनमें गुणों का अभाव पाया जाता है।
  • इस सिद्धांत के अनुसार विशिष्ट लोग ही योग्य होते हैं। विशिष्ट लोग अपनी योग्यताओं के बलबूते एकाधिकार स्थापित करते हैं और शक्ति को नियंत्रित करते हैं।
  • विशिष्ट लोगों का यह समूह सदैव एक सा नहीं रहता बल्कि इसमें लोग आते जाते रहते हैं।
  • बहुत संख्यक जनसमुदाय कम गुणों से युक्त होता है। इनमें नेतृत्व की क्षमता नहीं होती। यह प्रायः अनुसरण करने वाले, आलसी और उदासीन होते हैं।

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पिकासो कौन थे? उनकी प्रसिद्ध कृति का नाम क्या है ?

‘रुधिर’ का समानार्थी शब्द क्या है?

‘रुधिर’ का समानार्थी शब्द :

शब्द : रुधिर
समानार्थी शब्द : रक्त, खून, लहू, शोणित, लोहित, असृक, खूँ।

रुधिर क्या है?
रुधिर अर्थात रक्त यानि खून शरीर में प्रवाहित होने वाला वह द्रव है, जो किसी भी प्राणी के जीवन के लिए बेहद आवश्यक होता है। रुधिर लाल रंग का एक द्रवीय पदार्थ होता है, जिसके अंदर अनेक प्रकार के तत्व पाए जाते हैं। रुधिर पूरे शरीर में नसों के माध्यम से संचरण करता है, और शरीर की अनेक आंतरिक गतिविधियों में सहायक होता है। रुधिर की कमी होने पर अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं अथवा जान को खतरा हो सकता है।

समानार्थी शब्द वह शब्द होते हैं, जो समान अर्थ वाले शब्द होते हैं। इन शब्दों को पर्यायवाची शब्द भी कहते हैं।


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प्रेमचंद’ की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ में आनंदी ने विवाद होने पर घर टूटने से कैसे बचाया?

रक्तदान करने के विषय पर दो मित्रों के बीच संवाद लिखिए​।

संवाद

रक्तदान करने के विषय पर दो मित्रों के बीच संवाद

(रक्तदान करने के विषय पर दो मित्रों तरुण और राजीव में संवाद हो रहा है।)

तरुण ⦂ राजीव, आज मैं रक्तदान करके आया।

राजीव ⦂ अच्छा, मैंने तो कभी आज तक रक्तदान नहीं किया है।

तरुण ⦂ तुमने अभी तक रक्तदान क्यों नहीं किया।

राजीव ⦂ मुझे रक्तदान करते बड़ा डर लगता है। एक दो बार मैंने रक्तदान करने का सोचा था, लेकिन मेरे एक दोस्त ने बताया कि रक्तदान करने के बाद बहुत कमजोरी आ जाती है और खून बनने में काफी समय लगता है। इसीलिए मैं रक्तदान करने से डरता हूँ।

तरुण ⦂ तुम्हारे उस दोस्त ने तुम्हें बिल्कुल गलत बताया है। रक्तदान करना एक बेहद पुण्य का कार्य है। रक्तदान करके हम किसी के जीवन को बचाने में अपना योगदान देते हैं।

राजीव ⦂ अच्छा।

तरुण ⦂ और हाँ रक्तदान करने से कोई कमजोरी नहीं आती। हम जो भी रक्त का दान करते हैं वह कुछ ही दिनों में दुबारा से हमारे शरीर में बन जाता है। रक्तदान करने के कुछ घंटों तक ही हमारे सही में थोड़ी सी कमजोरी लगती है, उसके बाद अगले दिन से सब कुछ ठीक हो जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति अगर रक्तदान करता है तो उसके स्वास्थ्य पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता।

राजीव ⦂ रक्तदान के बारे में ऐसी बातें मुझे पहली बार पता चलीं हैं। मुझे आज तक सच्चाई नहीं पता थी।

तरुण ⦂ रक्तदान करना एक बेहद पुण्य कार्य है। इसको महादान माना गया है। तुम जानते हो हमारे देश में दुर्घटना के कारण अनेक व्यक्ति घायल हो जाते हैं, जिन्हें उपचार के समय तुरंत रक्त की आवश्यकता पड़ती है। ऑपरेशन तथा अन्य रोगों के उपचार में भी रक्त की बहुत अधिक मांग होती है। जितनी रक्त की मांग है, उसके अनुपात में रक्त की आपूर्ति नहीं है। इसका मुख्य कारण हम लोगों के बीच जागरूकता की कमी होना है। हम लोग रक्तदान करने में संकोच करते हैं। इस वजह से रक्त के अभाव में कई लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ता है।

राजीव ⦂ तुम्हारी बातें सुनकर मेरी आँखे खुल गई है। अब मैं भी रक्तदान करूंगा और समय-समय पर रक्तदान करता रहूंगा।

तरुण ⦂ यह हुई ना बात। यह लो ये पेपर ले लो। इसमें रक्तदान के एक कैंप का पता लिखा हुआ है, जहाँ पर मैं रक्तदान करके आया था। तुम भी कल वहाँ पर जाकर रक्तदान कर देना। तुम्हें एक कार्ड मिलेगा। जिसमें तुम्हारे द्वारा किए गए रक्तदान का विवरण होगा। जिसे दिखाने पर तुम किसी भी सरकारी अस्पताल में आवश्यकता पड़ने पर ले सकते हो।

राजीव ⦂ दोस्त तुम्हारे सुझाव के लिए धन्यवाद। मेरी तुम से विनती है तुम भी कल मेरे साथ चलना। एक बार में रक्तदान पर आओ फिर मुझे सब कुछ जानकारी हो जाएगी।

तरुण ⦂ ठीक है मैं भी कल तुम्हारे साथ चलूंगा और रक्तदान करने में तुम्हारी पूरी सहायता करूंगा।

राजीव ⦂ धन्यवाद दोस्त।


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मेरा प्रिय खेल – क्रिकेट​ (निबंध)

निबंध

मेरा प्रिय खेल – क्रिकेट

 

क्रिकेट का खेल एक ऐसा अनूठा खेल है जो रोमांच से भरपूर खेल है। क्रिकेट का खेल भारत का सबसे लोकप्रिय खेल है। आज भारत का बच्चा-बच्चा क्रिकेट खेलना चाहता है। वह क्रिकेट के क्षेत्र में एक उच्च स्तरीय खिलाड़ी बनना चाहता है। भारत में आईपीएल जैसी घरेलू क्रिकेट लीग में क्रिकेट को लोकप्रियता की बुलंदियों पर पहुंचाया है। आज भारत का हर युवा एक अच्छा क्रिकेट खिलाड़ी बनने का सपना लिए क्रिकेट के क्षेत्र में अपने भविष्य को तलाश रहा है।

क्रिकेट हमेशा मेरा प्रिय खेल रहा है। मुझे क्रिकेट में जितना अधिक रोमांच प्राप्त होता है, उतना अन्य किसी खेल में नहीं प्राप्त होता। क्रिकेट का खेल रोमांच से इतना भरपूर है कि अंतिम गेंद पर मैच की हार-जीत का फैसला होता है। एक विकेट गिरने पर पूरे मैच की बाजी पलट जाती है अथवा एक चौका या एक छक्का लगने पर ही पूरे मैच की बाजी पलट जाती है। जब भी क्रिकेट का कोई इंटरनेशनल मैच होता है अथवा आईपीएल का मैच होता है तो मेरे उत्साह की कोई सीमा नहीं रहती। क्रिकेट के मैच को देखने के लिए मैं अपने सारे काम जल्दी-जल्दी निपटा कर मैच देखने बैठ जाता हूँ।

क्रिकेट के खेल में मेरे आदर्श सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी रहे हैं। वह मेरे फेवरेट खिलाड़ियों में से एक है। कपिल देव सुनील गावस्कर जैसे महान क्रिकेट खिलाड़ियों के बारे में भी मैंने काफी कुछ सुना है। उनको मैंने अभी साक्षात खेलते हुए तो नहीं देखा लेकिन क्रिकेट के खेल में उनके योगदान के बारे में काफी सुना है। आज के समय में क्रिकेट के खेल में विराट कोहली, रोहित शर्मा, सूर्यकुमार यादव, हार्दिक पांड्या, ऋषभ पंत, शुभमन गिल जैसे खिलाड़ी मेरे फेवरेट खिलाड़ी हैं। इनको मैदान पर खेलते हुए देखकर मेरी खुशी की सीमा नहीं रहती।

क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट का खेल मुझे पसंद है विशेषकर टी-20 मुझे बहुत अधिक पसंद है। टी20 मैच क्रिकेट का ऐसा फॉर्मेट है जिसमें 3 घंटे में ही खेल पूरा हो जाता है। जिससे बहुत अधिक समय की आवश्यकता नहीं पड़ती। क्रिकेट का ये सबसे छोटा फॉर्मेट आज सबसे अधिक लोकप्रिय क्रिकेट फार्मेट बन गया है।

क्रिकेट का खेल हमारे भारत में बेहद लोकप्रिय खेल है। हमारे भारत में क्रिकेट एक धर्म के समान है और क्रिकेट के खिलाड़ियों को बहुत अधिक लोकप्रियता मिलती है। यहां तक कि सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का भगवान कहा जाता था। यह हमारे प्रति दीवानगी का सबूत है। हमारे भारत में दो बार वनडे वर्ल्ड कप और एक बार टी20 वर्ल्ड कप जीता है। पुरुष क्रिकेट चाहिए तीनों वर्ल्ड कप जीतकर हमारे खिलाड़ियों ने भारत का नाम विश्व में रोशन किया है। पुरुष क्रिकेट के अलावा महिला क्रिकेट भी बहुत लोकप्रिय होता जा रहा है और मैं महिला क्रिकेट को भी उतनी ही अधिक रुचि से देखता हूं जितना पुलिस क्रिकेट को देखता हूँ। अब आईपीएल के अलावा डब्ल्यूपीएल जैसी घरेलू लीग ने महिला क्रिकेट की लोकप्रियता को और चरम पर पहुंचा दिया है। इसके अलावा भारत ने अंडर-19 वर्ल्ड कप जीतकर इतिहास रचा। भारत की पुरुष और महिला दोनों टीमें भारत का नाम रोशन कर रही हैं।

क्रिकेट जैसा विविधता से भरा हुआ और रोमांचक खेल और कोई खेल नहीं है, इसी कारण क्रिकेट को जेंटलमैन गेम भी कहा जाता है। मेरा प्रिय खेल क्रिकेट सच में बहुत मजेदार खेल है।


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मेरे विद्यालय में नशा विरोधी दिवस मनाया गया। (वृत्तांत लेखन)

वृत्तांत लेखन

मेरे विद्यालय में नशा विरोधी दिवस

 

दिनांक : 2 जनवरी 2024

हमारे विद्यालय स्वामी विवेकानंद विद्यालय में कल 1 जुलाई 2023 को नशा विरोधी दिवस का आयोजन किया गया। नशा हमारे समाज की एक बहुत बड़ी बुराई है, जो युवाओं में फैल कर उनके भविष्य को चौपट कर रही है। इसी संबंध में छात्रों-छात्राओं में जागृति के लिए नशा-विरोधी दिवस का आयोजन किया गया था।

विद्यालय के सभी छात्र-छात्राएं सुबह 8:00 बजे विद्यालय पहुंच चुके थे। सबसे पहले सभी छात्र-छात्राओं को अलग-अलग समूहों में बांटा गया। छात्र-छात्राएं सफेद यूनिफॉर्म में आए थे। जिसके लिए विद्यालय में कल ही दिशा निर्देश दे दिया गया था। सभी छात्र छात्राओं के हाथ में तख्तियां थीं, जिन पर नशा विरोधी नारे लिखे थे। तख्तियां लेकर छात्र-छात्राएं अलग-अलग समूहों में शहर के विभिन्न हिस्सों में बंट गए। छात्र छात्राओं ने शहर के अलग-अलग हिस्सों में छोटे-छोटे जुलूस निकाले। तख्तियों पर लिखें नारों के अलावा छात्र- छात्राएँ  नशा विरोधी नारे भी लगा रहे थे।

दोपहर 11:00 बजे तक जुलूस निकालने का सारा कार्यक्रम संपन्न हो गया और सभी छात्र- छात्राएँ विद्यालय वापस लौट आए। उसके बाद विद्यालय में मंचीय प्रोग्राम हुए कुछ छात्र-छात्राओं ने भाषण, कविता और गानों के रूप में अलग-अलग प्रस्तुतियां दीं। सभी प्रस्तुतियां नशे के दुष्प्रभाव पर आधारित थीं।

अंत में सबसे पहले प्रधानाचार्य का भाषण हुआ और फिर मुख्य अतिथि का भाषण हुआ जो कि शहर के पुलिस कमिश्नर थे। दोनों गणमान्य व्यक्तियों ने छात्र-छात्राओं को जीवन में कभी भी कोई किसी भी तरह का नशा ना करने का संकल्प लेने का आह्वान किया। उसके बाद हल्के जलपान के बाद कार्यक्रम संपन्न हो गया।


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पत्र लेखन

खेल प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए विदेश जाते हुए मित्र की सफलता की मंगल कामना के लिए पत्र

 

दिनाँक : 05 मई 2024

 

प्रिय मित्र दीपांशू,

कल तुम अंतरराष्ट्रीय शतरंज चैंपियनशिप खेल प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए लंदन निकल जाओगे। अंतरराष्ट्रीय स्तर की शतरंज प्रतियोगिता में तुम हमारे देश का प्रतिनिधत्व कर रहे हो। हम सबको तुमसे बहुत आशाएं हैं। इस खेल प्रतियोगिता में सफल होने के लिए मेरी तरफ से शुभकामनाएं। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि तुम अंतरराष्ट्रीय स्तर की शतरंज प्रतियोगिता को जीत कर ना केवल हमारे देश का नाम रोशन करो बल्कि हम सब का सिर भी गर्व से ऊंचा करो। हम सबको पूरा विश्वास है कि तुम इस खेल प्रतियोगिता में अवश्य सफल हो करोगे। तुम्हारी सफलता के लिए मेरी तरफ से पुनः तुम्हें हार्दिक शुभकामनाएं।

तुम्हारा मित्र,
रोहित ।


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‘आद्योपांत’ का शाब्दिक अर्थ क्या है? सेठजी को सारी कथा ‘आद्योपांत’ क्यों सुनानी पड़ी​? (महायज्ञ का पुरस्कार)

आद्योपांत का शाब्दिक अर्थ है, आरंभ से अंत यानी शुरू से आखिर तक।

‘महायज्ञ का पुरस्कार’ कहानी में सेठ जी को आद्योपांत यानि शुरू से आखिर तक कहानी इसलिए सुनानी पड़ गई क्योंकि सेठ जी के वापस लौटने पर सेठानी ने उन्हें खाली हाथ वापस आते देखा तो उनके मन में अनेक तरह की शंकाएं उत्पन्न हुई।

सेठ जी जिस कार्य हेतु गए थे, वह कार्य ना करके खाली हाथ वापस आए थे। इसी कारण सेठानी ने उनसे खाली हाथ वापस आने का कारण पूछा। तब सेठ जी ने आद्योपांत शुरू से आखिर तक सारी कहानी सुनाई।

सेठजी ने कहा कि किस तरह जब वह धन्ना सेठ के यहाँ पहुंचे और उन्हें अपने आने का कारण बताया। तब धन्ना सेठ की पत्नी ने उनसे कहा कि हम यज्ञ खरीदने के लिए तैयार हैं, लेकिन आपको अपना महायज्ञ बेचना होगा। उनके यह कहने पर मैं आश्चर्य में पड़ गया कि मैंने तो वर्षों से कोई भी यज्ञ नहीं किया है और यह लोग महायज्ञ की बात कर रहे हैं। मेरी मन में उत्पन्न हुए संशय को जानकर धन्ना सेठ की पत्नी ने कहा, कि आप जब हमसे मिलने आ रह थे तो रास्ते में एक भूखे कुत्ते को अपनी वह चारों रोटियां खिला दी जो आप स्वयं के लिए लेकर आए थे। अर्थात आपने स्वयं भूखे रहकर एक भूखे कुत्ते को अपनी चारों रोटियां खिला दीं। इससे बड़ा महायज्ञ और क्या हो सकता है। यदि आप इसे बेचने को तैयार हैं तो हम आपका महायज्ञ को खरीदने के लिए तैयार हैं। सेठ जी यह सुनकर हैरान रह गए। उन्होंने कहा कि किसी भी भूखे को अन्न दान देना, मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ। यह कोई महायज्ञ नहीं, यह मेरा कर्तव्य पालन था और अपने कर्तव्य को यूंही बेच कर मैं उसके महत्व को कम नहीं करना चाहता। इसमें बेचने वाली कोई बात नहीं। यह कहकर वहाँ से वापस आ गया।

ये सारी कहानी सुनकार सेठानी को अपने सेठ पति पर बहुत गर्व हुआ कि उन्होंने इतनी कठिन परिस्थिति में भी अपने कर्तव्य पालन से मुख नही मोड़ा।

‘महायज्ञ का पुरस्कार’ कहानी ‘यशपाल’ द्वारा लिखित एक कहानी है। जिसमें एक धनी एवं उदार प्रवृत्ति के सेठ की कहानी का वर्णन किया गया है। सेठ बेहद दान-धर्म और यज्ञ करने वाले सेठ थे। उनके द्वार से कोई खाली हाथ वापस नहीं जाता था।

समय के फेर के कारण उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो चुकी थी। इसी कारण उनकी पत्नी सेठानी ने उनके द्वारा किए गए अनेक यज्ञों में से एक यज्ञ को नगर के धन्ना सेठ के पास बेचने का सुझाव दिया था ताकि बदले में कुछ धन प्राप्त हो सके। उस समय वह मनुष्य द्वारा किए गए यज्ञ का क्रय विक्रय हुआ करता था और उसका यज्ञ के अनुसार मूल्य मिल जाता था। इसी सिलसिले में सेठ जी धन्ना सेठ के यहाँ अपना यज्ञ बेचने गए थे। धन्ना सेठ की पत्नी के बारे में यह मान्यता प्रचलित थी कि वह कोई दैवीय शक्ति से युक्त हैं, जिस कारण वह कोई भी बात जान लेती हैं। इसी कारण उन्हें सेठजी के साथ रास्ते में हुई घटना का पता चल गया था।


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अनौपचारिक पत्र

माँ को अपनी तबियत के बारे में बताते हुए पत्र

 

दिनांक : 28 फ़रवरी 2024

 

प्रिय माँ,
आप कैसी हो?

आप का पत्र प्राप्त हुआ। आपने मेरी तबियत के बारे में पूछा है। माँ, पिछले कुछ दिनों से मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मुझे बहुत सर्दी जुकाम हो गया है। मेरे गले में बहुत दर्द हो रहा है तथा हल्की सी खांसी भी आ रही है। मैं कल डॉक्टर के पास गया था और डॉक्टर से दवा ली। डॉक्टर ने मेरा चेकअप करके बताया कि मेरे सीने में कफ जाम हो गया है। डॉक्टर ने मुझे दवा दी है और कहा है कि 2 दिन में आराम मिल जाएगा। कल से मुझे थोड़ा आराम है।

माँ, आप मेरे बारे में जरा भी चिंता मत करो। मैं जल्दी ही अच्छा हो जाऊंगा। मैंने विद्यालय से 5 दिन की छुट्टी ले ली है, और मैं यही छात्रावास के कमरे में आराम कर रहा हूँ। मेरा रूम मेट मेरी बहुत मदद कर रहा है और मेरे लिए जरूरी सारा सामान लाकर मुझे देता है। वही मेरे लिए दवाइयां आदि लेकर आता है। मेरी तबीयत ठीक नहीं है, लेकिन बहुत अधिक चिंता की कोई बात नहीं है। अगर तबीयत बहुत अधिक खराब होती तो मैं घर आ जाता या आप लोगों को बुला लेता। आप मेरे बारे में चिंता मत करो और अपना ध्यान रखो। अगला पत्र मैं तबीयत ठीक होने के बाद लिखूंगा।

आपका बेटा,
मानस


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आपने नए घर में शिफ्ट किया है। अपने नए घर के विषय में बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।

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माता-पिता के प्रति संतान के कर्तव्य क्या होने चाहिए, कम से कम 10 लाइनों में लिखें।

माता-पिता के प्रति संतान के कर्तव्य

माता-पिता संतान के लिए सबसे पूज्यनीय होते हैं। माता पिता अपनी संतान के लिए जो करते हैं उसका मूल्य नहीं चुकाया जा सकता। फिर भी संतान का यथासंभव होना चाहिए कि वह अपने कि वह यथासंभव माता पिता के प्रति अपने सभी जरूरी कर्तव्यों का पालन करें। एक संतान का माता पिता के प्रति क्या कर्तव्य होने चाहिए वह इस प्रकार है…

  • संतान चाहे वह पुत्र हो अथवा पुत्री उसका प्रथम कर्तव्य बनता है कि वह अपने माता-पिता का पूर्ण आदर एवं सम्मान करें।
  • संतान का अपने माता पिता के प्रति कर्तव्य बनता है कि वह अपने माता-पिता की कहीं और बात को माने।
  • जीवन में कोई भी महत्वपूर्ण कार्य करने से पहले माता पिता की आज्ञा और सलाह लेना संतान का कर्तव्य है।
  • संतान का कर्तव्य बनता है कि वह समाज में एक अच्छा मनुष्य बन कर दिखाएं, जिससे उसके माता-पिता को गर्व हो और वह समाज में सिर उठाकर जा सकें।
  • संतान का माता पिता के प्रति कर्तव्य बनता है कि वह बुढ़ापा आने पर माता-पिता का पूरा ध्यान रखें और उनकी तन-मन-धन से सेवा करे।
  • जब माता-पिता बूढ़े हो जाएं तो संतान को कभी भी अपने माता-पिता को असहाय नहीं छोड़ना चाहिए।
  • संतान को अपने माता-पिता का कभी भी अनादर नहीं करना चाहिए।
  • कोई भी विशिष्ट अवसर हो, कहीं बाहर जाना हो अथवा संतान बहुत दिनों के बाद कहीं बाहर से वापस घर आई हो तो माता पिता के चरण स्पर्श अवश्य करने चाहिए।
  • संतान को यह बात मन में पूरी तरह समझ लेनी चाहिए कि माता पिता की उसके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण संबंधी हैं। माता-पिता कभी भी अपनी संतान का अहित नहीं सोच सकते।
  • अपने माता-पिता की सेवा करने में संतान को कभी भी संकोच नहीं करना चाहिए। माता-पिता की सेवा करने का कोई भी मौका कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
  • वह संतान सच्ची संतान नहीं हो सकती, जिसने कभी अपने माता-पिता की सेवा नहीं की हो।

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मतदान जागरूकता एवं उसके महत्व को ध्यान में रखते हुए अपने मित्र के साथ हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

संवाद

मतदान जागरूकता एवं उसके महत्व पर दो मित्रों के बीच संवाद

 

(मतदान जागरूकता एवं उसका महत्व क्या है? इस विषय दो मित्रों नवीन और रंजीत के बीच संवाद हुआ हो रहा है।)

नवीन ⦂ रंजीत, तुमने पिछली बार के चुनाव मतदान किया था?

रंजीत ⦂ बिल्कुल! मतदान करना ना केवल मेरा अधिकार है बल्कि यह मेरा कर्तव्य भी है। मैं मतदान करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता।

नवीन ⦂ यह बात तुमने बिल्कुल सही कही। मुझे तुमसे ऐसे ही उत्तर की अपेक्षा थी। मैं भी तुम्हारी तरह कभी मतदान करने का कोई ऑप्शन नहीं छोड़ता। कोई भी लोकतंत्र तब ही सफल रह सकता है जब उसके नागरिक अपने अधिकारों एवं कर्तव्य के प्रति जागृत रहें।

रंजीत ⦂ बिल्कुल सही बात है। अगर हम मतदान नहीं करेंगे तो हमारे प्रतिनिधि कैसे चुने जाएंगे। और यदि हम यह सोचने की मेरे एक व्यक्ति के मतदान न करने से क्या फर्क पड़ेगा तो यह बिल्कुल गलत सोच है। क्योंकि मत का महत्व होता है।

नवीन ⦂ बिल्कुल। यदि लोकतंत्र में हम सरकार की किसी गलत नीति के प्रति सवाल करते हैं तो हमें यह भी विचार करना होगा कि क्या हमने मतदान किया था कि नहीं। हमने अपने कर्तव्य का पालन किया था कि नहीं? किसी भी लोकतंत्र के नागरिक का कर्तव्य बनता है कि वह मतदान के अपने अधिकार का पूरा उपयोग करें।

रंजीत ⦂ लेकिन मुझे दुख है कि हमारे आसपास ही बहुत से लोग ऐसे हैं जो मतदान के दिन मतदान करने नहीं जाते बल्कि उस दिन अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं अथवा कहीं घूमने चले जाते हैं। वह मतदान करना जरूरी नहीं समझते।

नवीन ⦂ बिल्कुल सही। लोगों में मतदान के प्रति जागरूकता का अभाव है इसीलिए लोग ऐसा करते हैं। क्यों ना हम लोग लोगों को मतदान के प्रति जागरूक करने के लिए अभियान चलाएं। उन्हें यह पता चले कि उनके एक-एक मत का महत्व है।

रंजीत ⦂ तुम्हारा विचार उत्तम है। यह एक अच्छा कार्य होगा। लोगों को मतदान के प्रति जागरूक करने से हम अपने देश में लोकतंत्र की भलाई के प्रति अपना थोड़ा सा योगदान दे सकेंगे।

नवीन ⦂ हाँ, अगले वर्ष ही हमारे देश में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। हम अभी से लोगों को मतदान के प्रति जागरूक करने का अभियान शुरू कर देते हैं।

रंजीत ⦂ हाँ, ऐसा करते हैं। इसके लिए हमें अपने कुछ और दोस्तों को जोड़ना पड़ेगा।

नवीन ⦂ हाँ, कल कुछ और दोस्तों से मिलते हैं और उन्हें इसी विचार के बारे में बताते हैं।

रंजीत ⦂ ठीक है।


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12 वर्ष पहले बैजू ने उस घटना को दोहराया, जिसमें उसके पिता की जान को तानसेन ने बक्श दिया था। 12 वर्ष बाद बैजू ने भी तानसेन की जान बख्श कर 12 वर्ष पूर्व की घटना को दोहराया।

‘सुदर्शन’ द्वारा लिखित ‘आदर्श बदला’ नामक पाठ में बैजू बावरा के जीवन का घटना का वर्णन किया गया है। पाठ में बताया गया है कि आगरा शहर में साधुओं की एक मंडली भजन गाते गाते हुए शहर में घूम रही थी। उन साधुओं के साथ एक छोटा बच्चा भी था।

आगरा शहर में उस समय अकबर का शासन था और अकबर के दरबार में तानसेन नवरत्नों में से एक था, जो एक महान संगीतकार था। तानसेन अपनी संगीत विद्या पर अभिमान था। इसी कारण उसने पूरे नगर में यह नियम बना रखा था कि जो व्यक्ति उसे राग विद्या में हरा नहीं पाएगा, वह आगरा की सीमा में कोई भी गीत नहीं गाएगा। यदि कोई व्यक्ति ऐसा गीत गाते पाया गया तो उसे मौत की सजा मिलेगी।

आगरा में प्रवेश करने वाले साधुओं की मंडली को यह नियम पता नहीं था। इसी कारण उन्हें पकड़ लिया गया और मौत की सजा दी गई, लेकिन बच्चे को छोड़ दिया गया। तानसेन ने बच्चे पर दया करके उसे छोड़ दिया और उसकी जान बख्श दी। साधुओं में बच्चे का पिता भी था। वह बच्चा बैजू था, जो फिर आगरा शहर में करता रहा और फिर जंगल में बाबा हरिदास नामक एक साधु ने उसे शरण दी और उसे एक महान संगीतकार बनाया। बाद में बड़ा होकर बैजू ने संगीत विद्या में तानसेन को परास्त किया, लेकिन उसने तानसेन पर जान लेने का नियम नहीं लगाया और उसकी जान बख्श दी। इस तरह उसने 12 वर्ष पहले की गई घटना को दोहराया और अपने पिता की मौत का आदर्श बदला लिया।


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‘बस की यात्रा’ पाठ हिंदी के प्रसिद्ध व्यंग्य लेखक ‘हरिशंकर परसाई’ द्वारा लिखा गया एक व्यंगात्मक निबंध है। इस पाठ में उन्होंने अपने मित्रों के साथ की गई अनोखी बस यात्रा के बारे में व्यंगात्मक वर्णन किया है।


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संवाद

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(फलवाला अपनी दुकान पर खड़ा है, तभी एक वृद्ध महिला वहाँ फल लेने आती हैं। फलवाले और वृद्ध महिला (माताजी) के बीच सौदेबाज़ी होती है और संवाद शुरु होता है।)

फलवाला ⦂ आइए, माता जी नमस्ते।

माताजी ⦂ नमस्ते, यह सेब कैसे भाव दिए हैं।

फलवाला ⦂ माता जी आप ले लीजिए। मैं आपको सही दाम लगा दूंगा।

माताजी ⦂ भैया, पहले भाव तो बताओ।

फलवाला ⦂ माताजी, सेब वैसे तो ₹200 किलो है, लेकिन मैं आपको ₹160 किलो दे दूंगा।

माताजी ⦂ भैया, यह सही दाम लगाओ। ₹160 भी बहुत ज्यादा है।

फलवाला ⦂ माता जी आप हमारी रोज की ग्राहक हो आपसे ज्यादा दाम नहीं लूंगा। आपको बिल्कुल सही दाम बताए हैं।

माताजी ⦂ भैया सही दाम नहीं है थोड़ा और कम करो।

फलवाला ⦂ ठीक है माता जी आप ₹150 दे देना।

माताजी ⦂ भैया मैं ₹140 से एक पैसा ज्यादा नहीं दूंगी। देना है तो बोलो।

फलवाला ⦂ ठीक है माता जी जैसी आपकी मर्जी। आप आप ₹140 में ले जाओ। कितना बोल दूं?

माताजी ⦂ मुझे 2 किलो तो दो, लेकिन रुको पहले मुझे सेब छांट लेने दो।

फलवाला ⦂ ठीक है माता जी आपसे छांट लो।

माताजी ⦂ यह लो भैया। यह वाले सेब तोल दो।

फलवाला ⦂ यह लो माता जी आपके 2 किलो सेब, और क्या दूं?

माताजी ⦂ अंगूर किस भाव दिए हैं?

फलवाला ⦂ माताजी अंगूर ₹160 किलो है लेकिन मैं आपको ₹120 लगा दूंगा।

माताजी ⦂ ठीक है तुम 1 किलो अंगूर दे दो।

फलवाला ⦂ ये लो माता जी अंगूर।

माताजी ⦂ यह लो भैया, ₹400।

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माताजी ⦂ नमस्ते।


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लालबिहारी सिंह ये बात सुनकर दुःखी मन से घर से जाने लगा। जब वह रोते-रोते अपने बड़े भइया-भाभी से विदा लेने आया। तो उसको दुखी देखकर आनंदी का गुस्सा भी शांत हो गया और उसने अपने पति श्रीकंठ से लाल बिहारी सिंह को क्षमा कर देने के लिए कहा। वह लाल बिहारी को घर से ना जाने के लिए कहने लगी। श्रीकंठ का हृदय भी पिघल गया और दोनों भाई गले लग गए। इस प्रकार आनंदी ने अपनी सूझबूझ से लाल बिहारी को छोड़कर नहीं जाने दिया और घर टूटने से बचा लिया।


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औपचारिक पत्र

सफाई कर्मचारियों की शिकायत करते हुए प्रशासनिक अधिकारी को एक पत्र

 

दिनांक : 22 अप्रेल 2024

 

सेवा में,
श्रीमान प्रशासनिक अधिकारी,
दिल्ली नगर निगम, दिल्ली

विषय : सफाई कर्मचारियों के काम न करने के संबंध में शिकायत

माननीय प्रशासनिक अधिकारी,

मेरा नाम गौरव चौधरी है। दिल्ली के राजेंद्र नगर क्षेत्र का निवासी हूँ। मैं आपसे हमारे क्षेत्र में निरंतर बढ़ रही गंदगी के विषय में आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूँ। हमारे क्षेत्र राजेंद्र नगर में गंदगी का अंबार लगा हुआ है। सफाई कर्मचारी नियमित रूप से सफाई करने नहीं आते। जिस कारण कूड़े की मात्रा बढ़ती रहती है।

कूड़ेदान पूरी तरह भर जाते हैं और कूड़ा कूड़ेदान से बाहर इधर-उधर फैलने लगता है। सफाई कर्मचारी कई दिनों के बाद कूड़ा उठाने आते हैं। उनसे शिकायत करो तो वह हमारी बातों पर कोई ध्यान नहीं देते और बातों को टालमटोल कर देते हैं। ज्यादा बहस करने पर सीधे से बात नही करते हैं। हर क्षेत्र में कूड़ा उठाने की गाड़ी और सफाई कर्मचारी रोज सफाई करने आते हैं, लेकिन हमारे क्षेत्र में ऐसा नहीं हो रहा। चारों तरफ फैली गंदगी और कूड़े से क्षेत्रों में बीमारियों आशंका बढ़ गई है।

कूड़े की बदबू के कारण बाहर निकलना दूभर हो गया है। अतः आपसे निवेदन है कि इस संबंध में हम नागरिकों को राहत प्रदान करने के लिए इस संबंध में तुरंत कोई उचित कार्रवाई करें। आप हमारे क्षेत्र के लिए नियुक्त सफाई कर्मचारियों को सख्त निर्देश दें कि वह नियमित रूप से सफाई करने आए और रोज कूड़ा उठाएं । आशा है कि आप शीघ्र ही आम नागरिकों के हित को ध्यान में रखते हुए इस संबंध में तुरंत ही उचित एवं ठोस कार्रवाई करें।

धन्यवाद,

भवदीय,
गौरव चौधरी,
राजेंद्र नगर, दिल्ली ।


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अपने विद्यालय की वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति के लिए विद्यालय प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए।।

दुर्घटनाग्रस्त मित्र को 100 से 120 शब्दों मे सांत्वना देते हुए पत्र लिखिए ।

पिकासो कौन थे? उनकी प्रसिद्ध कृति का नाम क्या है ?

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पिकासो स्पेन के एक महान चित्रकार थे। वह बीसवीं शताब्दी के सबसे महान चित्रकारों में जाने जाते हैं। उनका पूरा नाम पाब्लो पिकासो था। पिकासो की प्रसिद्ध कृति का नाम ‘गुएर्निका’ है, जो कि बीसवीं शताब्दी की सबसे प्रसिद्ध और महान कृतियों में से एक मानी जाती है।

पिकासो का जन्म 25 अक्टूबर 1881 को स्पेन के मलागा में हुआ था। वह जन्म से ही प्रतिभा के धनी थे और बचपन से ही चित्रकारी करने लगे थे। उनके पिता भी कला अध्यापक थे इसीलिए उन्हें कला विरासत में मिली थी। वे मात्र 15 वर्ष की आयु तक में ही वह एक से अच्छे चित्र बनाने लगे थे। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति का नाम ‘गुएर्निका’ है जो कि उन्होंने 1937 में बनाई थी। पिकासो का निधन 1973 में हुआ। वह बीसवीं शताब्दी के सबसे महान, विवादास्पद और प्रसिद्ध चित्रकारों में एक माने जाते हैं।


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लेखक ने नवाब साहब के खीरा खाने के आग्रह को क्यों नकार दिया, जबकि लेखक के मुँह में खीरे को देखकर पानी आ रहा था। (लखनवी अंदाज)

लेखक ने नवाब साहब के खीरा खाने के आग्रह को इसलिए नकार दिया था क्योंकि इससे पहले नवाब साहब द्वारा किया गया रुखा व्यवहार लेखक को अच्छा नहीं लगा था। जब लेखक ट्रेन के डिब्बे में घुसा तो सामने की सीट पर बैठे नवाब से लेखक ने औपचारिकतावश बात करने की कोशिश की, लेकिन नवाब साहब ने लेखक के प्रति रूखा रवैया अपनाया और लेखक की औपचारिक बात का कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया। इसी कारण लेखक के आत्मसम्मान को चोट पहुंची।

बाद में जब नवाब साहब ने अपने साथ लाए खीरे को काटा और लेखक से खीरा खाने का आग्रह किया तो लेखक नवाब द्वारा किया गया रूखा व्यवहार याद आ गया। हालाँकि लेखक रसीले खीरों को देखकर लेखकर के मुँह में पानी आ रहा था, लेकिन नवाब साहब द्वारा इससे पहले किए गए व्यवहार के कारण लेखक अपना आत्मसम्मान आहत हुआ महसूस हुआ था। इसी कारण अपने आत्मसम्मान को बचाने की खातिर ही लेखक ने नवाब साहब द्वारा खीरे खाने के आग्रह को ठुकरा दिया।

‘लखनवी अंदाज’ पाठ ‘यशपाल’ द्वारा लिखी गई कहानी है जिसमें उन्होंने अपनी एक रेल यात्रा का वर्णन किया है। जब वह किसी काम से ट्रेन से यात्रा कर रहे थे और ट्रेन के डिब्बे में उनका एक नवाब से सामना हुआ। नवाब के साथ हुए घटनाक्रम उन्होंने इस कहानी के माध्यम से प्रस्तुत किया है।

संदर्भ पाठ
‘लखनवी अंदाज’ लेखक यशपाल (कक्षा-10 पाठ-12 हिंदी क्षितिज)


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लेखक ने नग्न व सजीव मौत किसे कहा था? (पाठ – स्मृति)

नर्सिंग होम में लेखक ने मदर टेरेसा से फ्रांस के बारे में क्या पूछा? (पाठ – राबर्ट नर्सिंग होम में)

नर्सिंग होम में लेखक ने मदर टेरेसा से फ्रांस के बारे में क्या पूछा? (पाठ – राबर्ट नर्सिंग होम में)

लेखक ने मदर टेरेसा से फ्रांस के बारे में यह पूछा कि आप फ्रांस की हैं और सिस्टर क्रिस्टहैल्ड आपके शत्रु देश जर्मनी की हैं, फिर भी आप सिस्टर क्रिस्टहैल्ड से प्रेम करती हैं। इसके जवाब में मदर टेरेसा ने कहा कि चाहे मैं हूँ, या सिस्टर क्रिस्टहैल्ड दोनों ईश्वर के लिए कार्य कर रही हैं। इसलिए हम दोनों एक हैं। इसमें मित्र देश अथवा शत्रु देश वाली कोई बात नहीं। ईश्वर की दृष्टि में हम सब एक हैं। यह जवाब सुनकर लेखक के मन में यही विचार आया कि मनुष्यों ने खुद ही भौगोलिक क्षेत्रों एवं जाति धर्म आदि की अनगिनत दीवारें खड़ी कर दी हैं, जिनके कारण वह एक दूसरे से लड़ते रहते हैं, नहीं तो ईश्वर ने तो हम सभी को एक समान ही बनाया है।

‘रॉबर्ट नर्सिंग होम में’ पाठ ‘कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर’ द्वारा लिखा गया एक संस्मरणात्मक पाठ है, जिसमें उन्होंने प्रसिद्ध समाजसेविका ‘मदर टेरेसा’ के साथ हुई अपने के संस्मरणों का वर्णन किया है। मदर टेरेसा से भेंट करने के बाद वह उनकी सेवा भावना तथा उनके विचारों से बेहद प्रभावित हुए थे।

संदर्भ पाठ :
‘राबर्ट नर्सिंग होम में’ लेखक : कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर


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लेखक ने नग्न व सजीव मौत किसे कहा था? (पाठ – स्मृति)

लेखक ने नग्न व सजीव मौत साँप को कहा था।

‘स्मृति’ पाठ ‘श्रीराम शर्मा’ द्वारा लिखा गया एक संस्मरणात्मक निबंध है। इस निबंध के माध्यम से लेखक ने गाँव में बिताए गए बचपन के दिनों का वर्णन किया है।

एक बार लेखक के बड़े भाई ने लेखक को कुछ चिट्टियां मक्खनपुर डाकखाने में डालकर आने के लिए दी जो कि लेखक के घर से थोड़ी दूर पर था। लेखक के भाई ने लेखक को सख्त हिदायत दी कि वह जल्दी से जाए और चिट्ठियाँ डाल आए ताकि शाम की डाक से ही चिट्टियाँ निकल जाएं। उस समय ठंड का मौसम था। लेखक अपने छोटे भाई के साथ और हाथ में एक-एक डंडा लेकर चल पड़ा। लेखक के हाथ में बबूल का डंडा था। क्योंकि लेखक के कुर्ते में जेब नहीं थी इसीलिए लेखक ने वह चिट्ठियाँ अपनी टोपी में रखी और टोपी सर पर पहन ली। लेखक ने रास्ते में पड़ने वाले एक सुनसान सूखे कुएं में लेखक ने एक साँप को देखा। लेखक के अंदर बाल सुलभ चंचलता थी इसी कारण लेखक ने शरारतवश उस साँप को कुएं के पास पड़ा ढेला उठाकर मारने की कोशिश की। इसी कोशिश में जब उसने अपनी टोपी उतारी तो चिट्ठियाँ कुएं में गिर पड़ीं।

भयंकर जहरीले साँप के पास पड़ी चिट्ठियाँ देखकर ही लेखक ने साँप को नग्न व सजीव मौत कहा था। उसके सामने यह समस्या उत्पन्न हो गई थी कि वह उन चिट्ठियों को साँप के पास से कैसे उठाएं यदि वह चिट्ठियों को नहीं उठाएगा तो भाई से बहुत मार पड़ेगी। इसी घटनाक्रम का वर्णन लेखक ने पाठ में किया है।


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प्रेमचंद’ की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ में आनंदी ने विवाद होने पर घर टूटने से कैसे बचाया?

एक और पानवाला कैप्टन का मजाक उड़ाता है, पर दूसरी तरफ उसके हृदय में उसके प्रति संवेदनशीलता भी है, स्पष्ट कीजिए।

एक तरफ तो पान वाला कैप्टन चश्मे वाले का मजाक उड़ाता है तो दूसरी तरफ उसके हृदय में कैप्टन चश्मे वाले के प्रति संवेदनशीलता भी है क्योंकि पान वाले द्वारा कैप्टन का मजाक उड़ाने का मुख्य कारण कप्तान का साधारण व्यक्तित्व था।

कैप्टन एक साधारण सा विकलांग और पतला-दुबला, गरीब आदमी था जो चौराहे पर चश्मे की फेरी लगाता था। उसके व्यक्तित्व और सामाजिक स्थिति के कारण की पानवाले मे शायद उसके प्रति तुच्छ भाव उत्पन्न हो गए होंगे। इसीलिए पानवाला उसका मजाक उड़ाता था।

हालदार साहब द्वारा यह पूछे जाने पर की उसको कैप्टन क्यों कहते हैं, क्या वह नेताजी की आजाद हिंद फौज में कोई अधिकारी रह चुका था, तो पानवाला हँस पड़ता है और वह कहता है कि वह लंगड़ा क्या फौज में जाएगा। इस तरह वह कैप्टन चश्मे वाले का मजाक उड़ाता है, वहीं दूसरी तरफ पान वाले के हृदय में उसके प्रति संवेदनशीलता भी है।

संवेदनशीलता होने का मुख्य कारण रोज-रोज कैप्टन चश्मे वाले का उसी जगह पर फेरी लगाना था। अक्सर एक ही जगह पर अलग-अलग कार्य करने वाले लोगों के बीच जान-पहचान और मित्रता हो ही जाती है। कैप्टन चश्मा वाला उसी जगह पर रोज अपनी फेरी लगाता था, जहाँ पर पानवाले की दुकान थी। दोनों में कुछ बातचीत अवश्य होती होगी, इसी कारण दोनों में थोड़ी बहुत जान-पहचान हो गई होगी।

दूसरा कारण कैप्टन चश्मे वाले का नेताजी की मूर्ति के प्रति सम्मान की भावना के कारण भी पान वाला कैप्टन चश्मे वाले से प्रभावित हुआ होगा।

तीसरा कारण ये हो सकता किअपने आसपास के किसी भी साथी की मृत्यु आदि हो जाने पर मन को दुख तो अवश्य होता ही है, इसी कारण कैप्टन चश्मे वाले की मृत्यु होने पर पानवाला भी उदास हो जाता है। भले ही वह पूर्व में उसका मजाक उड़ा चुका था, लेकिन उसके अंदर कैप्टन चश्मे वाले के प्रति थोड़ी बहुत संवेदनशीलता भी थी।


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कैप्टन की मृत्यु का समाचार देते वक्त पान वाला उदास क्यों हो जाता है?

आपने नए घर में शिफ्ट किया है। अपने नए घर के विषय में बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

नए घर के विषय में बताते हुए अपने मित्र को पत्र

 

दिनांक : 27 अप्रेल 2024

 

प्रिय मित्र वागीश,

आज हम अपने नए घर में शिफ्ट हो गए। हमारा नया घर पुराने घर की अपेक्षा बेहद बड़ा है। हमारे नए घर में तीन मंजिलें हैं मेरा कमरा तीसरी मंजिल पर है। मेरी बहन का भी कमरा तीसरी मंजिल पर है। पुराने घर में हम दोनों का एक ही कमरा था। अब हम दोनों को अलग अलग कमरा मिल गया है। मेरे माता-पिता का कमरा दूसरी मंजिल पर है। सबसे निचली मंजिल पर ड्राइंग रूम, रसोई घर है। मेरे दादा दादी भी नीचे ग्राउंड फ्लोर पर रहते हैं। इतना बड़ा घर देख कर मन खुश हो गया।

हमारे घर के सामने एक छोटा सा बगीचा भी है मैं अब उसमें तरह-तरह के पेड़ लगाऊंगा। बगीचे में पहले से ही काफी अलग-अलग पेड़ लगे हुए हैं। सुबह एवं शाम के समय अपने बगीचे में बैठने का आनंद ही अलग होगा। मेरे कमरे की खिड़की से हमारी पूरी कॉलोनी नजर आती है। अपने कमरे की बालकनी में बैठकर बाहर का दृश्य देखने का अलग ही आनंद है। हम लोगों के घर में अभी सामान पूरी तरह सेट नहीं हुआ है। दो-तीन दिन में सारा सामान सेट हो जाएगा। जब सब कुछ सेट हो जाएगा, उसके बाद उसके बाद किसी दिन समय निकालकर तुम मेरे घर लंच करने के लिए आना, तब मैं तुम्हें अपना नया बड़ा सा घर दिखाऊंगा।

मुझे अपने नए घर को देखकर बेहद गर्व का अहसास हो रहा है, ऐसा लग रहा है कि मेरे सपनों का घर है। अब पत्र समाप्त करता हूँ।

तुम्हारा दोस्त,
अभय ।


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अपनी छोटी बहन को एक पत्र लिखें, जिसमें पत्र-पत्रिकाओं का महत्व बताया गया हो।

44, आदर्श सोसायटी, वीरमगाम से निकिता मुंबई-निवासिनी अपनी सखी को ‘मोबाइल के लाभ-हानि’ बताते हुई पत्र लिखती है।

अपनी छोटी बहन को एक पत्र लिखें, जिसमें पत्र-पत्रिकाओं का महत्व बताया गया हो।

अनौपचारिक पत्र

पत्र-पत्रिकाओं का महत्व बताते हुए छोटी बहन को एक पत्र

 

दिनांक : 5 मई 2024

 

प्रिय बहन मेधांशी,

मैं पिछले कुछ दिनों से यह नोटिस कर रही हूँ कि तुम आजकल मोबाइल पर बहुत अधिक व्यस्त रहती हो। मैं जानती हूँ कि मोबाइल आज के आधुनिक युग में एक जरूरी यंत्र बन गया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम हम अपना अधिकतर समय इसी पर बिता दें और इस पर व्यर्थ के कार्यों में अपना समय बर्बाद करें। इसीलिए मैं तुम्हें पत्र-पत्रिकाओं का महत्व समझाना चाहती हूँ।

आज के डिजिटल युग में जब आज के युवा मोबाइल और कंप्यूटर की स्क्रीन के इतने आदी हो गए हैं कि उन्हें शायद पत्र-पत्रिकाओं का महत्व नहीं पता हो। पत्र पत्रिकाएं और पुस्तकें पढ़ना हमारे जीवन की एक स्वभाविक प्रवृत्ति है। पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने से हमें देश-दुनिया के बारे में जानने का अवसर मिलता है। कंप्यूटर की स्क्रीन अथवा मोबाइल की स्क्रीन पर कुछ पढ़ने में वह आनंद नहीं जोकि किसी पत्र-पत्रिका को पढ़ने में होता है। यह हमारी आँखों के लिए भी अनुकूल होती हैं, और हमारी आँखों पर कोई दुष्प्रभाव नही पड़ता।

इसीलिए मैं तुमको साथ सलाह देना चाहती हूं कि तुम्हें जब भी खाली समय मिले और तुम्हें कुछ जानकारी चाहिए हो, तुम्हें मनोरंजन करना है तो तुम पत्र-पत्रिकाएं पढ़ा करो। इससे ना केवल तुम्हारे ज्ञान में वृद्धि होगी बल्कि तुम मोबाइल या कंप्यूटर की स्क्रीन की चमक से आँखों पर पड़ने वाले नुकसान से बच सकोगी। पत्र-पत्रिकाएं ज्ञान का अतुल्य भंडार हैं।

मैंने इस पत्र के साथ कुछ पत्र-पत्रिकाओं की लिस्ट भेजी है और अगले पत्र में मैं तुम्हें कुछ पत्र पत्रिकाएं पार्सल करके भेज दूंगी। तुम इनको पढ़ना और तब तुम्हें मानना पड़ेगा कि पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने में जो आनंद आता है, वह मोबाइल और कंप्यूटर की स्क्रीन पर किसी पठन सामग्री को पढ़ने में नहीं आता। तुम भी फिर मुझसे पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने की मांग करा करोगी।

तुम्हारी बड़ी बहन,
दिव्यांशी ।


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आपके पिता ने आपको आपके जन्मदिन पर एक साइकिल उपहार में दी है। उनको धन्यवाद करते हुए पत्र लिखिए।

आप अपने मोहल्ले के अध्यक्ष हैं। अपने मोहल्ले की सफाई सुचारू रूप से करवाने व उसे गंदा न होने देने हेतु मोहल्ले वालों के लिए एक सूचना-पत्र तैयार कीजिए।

दीवान के पद के लिए आवश्यक योग्यताएँ क्या थीं?​ (पाठ- परीक्षा)

दीवान पद के लिए आवश्यक योग्यताएं यह थी कि उम्मीदवार हृष्ट-पुष्ट हो। शरीर से सेहतमंद हो। मंदाग्नि का मरीज ना हो। उसका रहन-सहन और आचार विचार अच्छा हो। भले ही बहुत अधिक पढ़ा लिखा ना हो, ग्रेजुएट ना हो, लेकिन अपने कर्तव्य का के प्रति निष्ठावान हो। वह सदाचारी और विनम्र हो।

‘मुंशी प्रेमचंद’ द्वारा लिखित ‘परीक्षा’ नामक कहानी एक रियासत के दीवान पद के लिए उचित उम्मीदवार की खोज पर आधारित कहानी है। रियासत देवगढ़ के दीवान सरदार सरदार सुजान सिंह बूढ़े हुए तो उन्होंने राजा साहब से स्वयं के सेवानिवृत्त होने की आज्ञा मांगी। राजा साहब ने उनके सेवानिवृत्त होने की आज्ञा तो दे दी लेकिन यह भी कहा कि वह दीवान के पद के लिए नया दीवान खुद ही ढूंढेंगे। इस तरह सरदार सुजान सिंह के ऊपर रियासत के लिए नया दीवान ढूंढने की जिम्मेदारी आ गई।

इसीलिए उन्होंने प्रसिद्ध पत्रों में यह विज्ञापन निकाला कि एक सुयोग्य दीवान की जरूरत है। दीवान के लिए आवश्यक योग्यताओं में उसका शरीर से हृष्ट-पुष्ट होना आवश्यक है। वह मंदाग्नि आदि का मरीज बिल्कुल न हो। भले ही वह अधिक पढ़ा-लिखा न हो लेकिन उसकी अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा हो। वो समझदार और ईमानदार व्यक्ति हो।


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‘चेतक’ कविता का मूल भाव समझिये​।

चीन और अमेरिका को संसार में प्रदूषण का सबसे बड़ा खिलाड़ी को क्यों कहा गया है?

आपके स्कूल की ट्रिप 10 दिनों के लिए गोवा जा रही है। ट्रिप की तैयारी करने के संबंध में दो सहेलियों के बीच संवाद को लिखिए।

संवाद

गोवा ट्रिप की तैयारी करने के संबंध में दो सहेलियों के बीच संवाद

 

(दो सहेलियां गरिमा और समीक्षा अपने स्कूल की तरफ से 10 दिनों के लिए गोवा ट्रिप पर जा रही हैं। इस संबंध में वह बातचीत कर रही हैं।)

गरिमा ⦂ समीक्षा, क्या तुमने ट्रिप की तैयारी पूरी कर ली?

समीक्षा ⦂ नहीं, अभी मुझे कुछ कपड़े लेने हैं। मैं आज शाम को अपनी मां के साथ कपड़े लेने जाऊंगी। तुम्हारी तैयारी कैसी है?

गरिमा ⦂ मेरा हाल भी तुम्हारे जैसा ही हैं। मुझे भी कुछ कपड़े लेने हैं। लेकिन मेरे पापा को अभी सैलरी नहीं मिली है। 2 दिनों बाद उनको सैलरी मिलेगी। तब मैं उनसे पैसे लेकर कपड़े लेने जाऊंगी।

समीक्षा ⦂ अच्छा, लेकिन तुम जल्दी करो क्योंकि ट्रिप के लिए केवल 5 दिन का समय बाकी है।

गरिमा ⦂ हाँ मुझे पता है। परसों जैसे ही मेरे पापा को सैलरी मिलेगी, मैं शाम को मार्केट जाऊंगी। मुझे यह ट्रैवलिंग बैग भी लेना है।

समीक्षा ⦂ तुम ट्रेवलिंग बैग मत लो मेरे पास एक एक्स्ट्रा ट्रैवलिंग बैग पड़ा है तुम मुझसे वह बैग ले लेना।

गरिमा ⦂ अरे वाह यह तो अच्छा हुआ। मैं आज ही शाम को तुम्हारे घर ट्रेवलिंग बैग लेने आओगी।

समीक्षा ⦂ हाँ तुम आ जाना। जानती हो हम लोग पहली बार 10 दिनों की थी लंबी ट्रिप पर स्कूल की तरफ से कहीं बाहर जा रहे हैं।

गरिमा ⦂ मुझे सच में बहुत रोमांच हो रहा है। गोवा के बारे में मैंने काफी कुछ सुन रखा है। वहाँ के खूबसूरत समुद्र तट बेहद प्रसिद्ध हैं। मुझे गोवा जाने का बड़ी इच्छा थी और आज यह इच्छा पूरी होने को है।

समीक्षा ⦂ हाँ सच में, गोवा जाकर खूब मस्ती करेंगे। 10 दिनों की यह ट्रिप यादगार बन जाएगी।

गरिमा ⦂ हमें गोवा की संस्कृति के बारे में जानने का भी अवसर मिलेगा। गोवा हमारे भारत का एक छोटा सा सुंदर राज्य है। जिस पर पुर्तगाली संस्कृति का बहुत प्रभाव है, क्योंकि यह पहले पुर्तगाल का ही उपनिवेश था जो पुर्तगाल से आजाद होकर भारत में शामिल हुआ।

समीक्षा ⦂ हाँ, हमें गोवा के बारे में जानने का पूरा अवसर मिलेगा। इससे हमारा ज्ञान बढ़ेगा। ये केवल मौज-मस्ती की ट्रिप ही नही बल्कि हमारे लिए एजुकेशनल ट्रिप भी है।

गरिमा ⦂ बिल्कुल सही कहा तुमने। चलो अब मैं चलती हूँ। तुम शाम को ट्रैवलिंग बैग लेने घर आ जाना। उसके बाद मुझे माँ के साथ शॉपिंग को जाना है।

समीक्षा ⦂ ठीक है। बॉय

गरिमा ⦂ बॉय


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प्रदूषण की समस्या को लेकर दो मित्रों के बीच में हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखें।

पिकनिक के आयोजन को लेकर शिक्षक व विद्यार्थी के बीच हुए संवाद को लिखिए।

‘आलस करना बुरी आदत है’ इस विषय पर अनुच्छेद लिखें।

अनुच्छेद लेखन

आलस करना बुरी आदत है

 

लालच करना बुरी आदत है। यह बात हम अपने बड़ों से और विद्वान जनों से सुनते आ रहे हैं। एक आलसी व्यक्ति जीवन में कभी भी सफल नहीं हो सकता। जीवन में सफलता का एकमात्र मूल मंत्र है परिश्रम और प्रयास। आलसी व्यक्ति इन इन गुणों को नहीं अपना पाता। इसीलिए वह अपने जीवन में कभी सफल नहीं हो पाता। एक विद्यार्थी के लिए एक विद्यार्थी के लिए आदत की आदत से दूर रहना ही सर्वोत्तम उपाय है। आलस करने की आदत विद्यार्थी के जीवन पर दुष्प्रभाव डाल सकती है। यदि यदि किसी विद्यार्थी ने आलस करने की आदत अपना ली। तो वह परिश्रम करना छोड़ देगा। उसका मन पढ़ाई में नहीं लगेगा। लह पढ़ाई को हमेशा टालता रहेगा। इस तरह कल करूंगा यह कहकर टालते हुए परीक्षा की घड़ी आ जाएगी और वह विद्यार्थी पढ़ाई पूरी ना कर पाने के कारण परीक्षा में असफल रह जाएगा। इस तरह आलस की आदत किसी भी व्यक्ति के जीवन में हितकारी नहीं होती। हमें अपने जीवन में परिश्रम करने से और निरंतर प्रयास करते रहने से ही सफलता मिलती है। आलस के दुर्गुण के समान है। इसलिए हमें आलस की आदत को कभी भी नहीं अपनाना चाहिए।

आलस को मार भगाएंगे, परिश्रम को अपनाएंगे यह मूल मंत्र जीवन में सफलता का मूल मंत्र है।


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‘चेतक’ कविता का मूल भाव समझिये​।

चेतक कविता कवि श्याम नारायण पांडे द्वारा रचित कविता है, जो महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की वीरता के वर्णन पर आधारित कविता है। इस कविता का मूल भाव यह है कि कवि ने इस कविता के माध्यम से चेतक नाम के वीर घोड़े की स्वामिभक्ति और उसकी वीरता का वर्णन किया है।

सिसोदिया वंश के महान राजा महाराणा प्रताप के पास चेतक नाम का बेहद वीर, कुशल, चपल, बलशाली और स्वामिभक्त घोड़ा था। यह घोड़ा पल भर में ही तेज गति से दौड़ने लगता था। उसकी वीरता को देखकर ऐसा लगता था कि वह घोड़ा नहीं बल्कि आज हवा का झोंका, कोई तूफान हो।

चेतक घोड़े ने अपने स्वामी महाराणा प्रताप के साथ अनेक बार अनेक युद्धों में भाग लिया और महाराणा प्रताप को हर तरह के संकट से बचाया। महाराणा प्रताप पराक्रम में चेतक घोड़े का भी बहुमूल्य योगदान था। कवि ने इस कविता के माध्यम से घोड़े के इन्हीं सभी गुणों का वर्णन किया है। यह कविता चेतक की वीरता को दर्शाती हुई कविता है।

 


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‘एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

चीन और अमेरिका को संसार में प्रदूषण का सबसे बड़ा खिलाड़ी को क्यों कहा गया है?

चीन और अमेरिका को संसार में प्रदूषण का सबसे बड़ा खिलाड़ी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि चीन और अमेरिका पूरे संसार में ग्रीन हाउस गैसों के सबसे बड़े उत्सर्जक हैं। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में चीन संसार में पहले स्थान पर है, जबकि अमेरिका दूसरे स्थान पर है। इसी कारण चीन और अमेरिका को प्रदूषण का सबसे बड़ा खिलाड़ी कहा जाता है। ग्रीनहाउस गैस से वह गैसे होती है जो संसार में प्रदूषण का कारण बनती है। यह गैसें वातावरण में गर्मी पैदा करने के लिए जिम्मेदार होती हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग के खतरे बढ़ते हैं।

निम्नलिखित बिंदुओं पर गौर करें तो हम पाएंगे कि चीन और अमेरिका संसार में प्रदूषण के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं।

  • चीन की जनसंख्या संसार में सबसे बड़ी जनसंख्या है। इसका सीधा तात्पर्य यह है कि वहाँ अधिक लोग गैसों का उत्सर्जन कर रहे हैं। चीन में बढ़ती हुई विकास की गतिविधियां वहाँ के लोगों की जीवनशैली को अधिक विलासिता पूर्ण बना रही है। इस कारण भी वहाँ पर अधिक गैसों का उत्सर्जन हो रहा है। अमेरिका सम्पन्न देश है। वहाँ सबसे अधिक भौतिक संसाधनों का प्रयोग किया जाता है जो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का कारण बनते हैं।
  • चीन और अमेरिका दोनों संसार की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। दोनों देशों में बड़े स्तर पर औद्योगिक क्षेत्र हैं जो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का कारण बन रहे हैं।
  • चीन और अमेरिका पूरे संसार में सबसे अधिक ऊर्जा का उपयोग करते हैं। सबसे जीवाश्म ईधन का भी प्रयोग करते हैं जो प्रदूषण का कारण है।
  • चीन और अमेरिका की जीवन शैली विलासित पूर्ण है, जहां पर अधिक से अधिक संसाधनों का दोहन किया जा रहा है और दोनों  देशों की आबादी सबसे अधिक प्रदूषण भी उत्पन्न कर रही है।

इन बिंदुओं पर गौर करने के बाद हम पाएंगे कि चीन और अमेरिका संसार में प्रदूषण के सबसे बड़े खिलाड़ी माने जाते हैं। दोनों देशों ने अपने यहाँ ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए 2030 से 2060 तक का लक्ष्य रखा है, लेकिन ये एक लंबी प्रक्रिया है। इसलिए कहा जाता है कि चीन और अमेरिका संसार में लंबे समय प्रदूषण के बड़े खिलाड़ी बने रहेंगे।


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बढ़ते हुए प्रदूषण पर क्या सावधानी की जाए। इस विषय पर माँ और बेटे के जो चर्चा हुई, उस पर संवाद लिखिए।

प्रदूषण की समस्या को लेकर दो मित्रों के बीच में हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखें।

चरन चोंच लोचन रंग्यो, चलै मराली चाल। क्षीर-नीर बिबरन समय, बक उघरत तेहि काल।। ​भावार्थ बताएं।

चरन चोंच लोचन रंग्यो, चलै मराली चाल।
क्षीरनीर बिबरन समय, बक उघरत तेहि काल।।

तुलसीदास द्वारा रचित इस दोहे का भावार्थ इस प्रकार है :

भावार्थ : तुलसीदास कहते हैं कि बगुला हंस जैसी मतवाली चाल भले क्यों न चले, वह अपने पैरों और आंखों को हंस जैसा क्यों ना रंग ले लेकिन वह कभी हंस नहीं बन सकता। सही अवसर पर उसका झूठ सामने आ ही जाता है, और उसका भेद खुल जाता है। असली हंस में यह सामर्थ होती है कि वह दूध में मिले पानी को दूर से अलग कर सकता है, लेकिन बगुला ऐसा नहीं कर सकता। यहीं पर बगुले की पोल खुल जाती है। इस तरह हंस जैसा रूप धारण करने से बगुला हंस नहीं बन जाता। एक ना एक दिन उसकी पोल खुल जाती है, क्योंकि वह हंस जैसा रूप धारण कर लेता है, लेकिन हंस जैसे गुणों को नहीं अपना सकता ।

विशेष व्याख्या : यहाँ पर कवि ने इस दोहे के माध्यम से यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि किसी भी तरह का न ली रूप किसी गुणी व्यक्ति के जैसा नकली रूप धारण करने से हम उस व्यक्ति के समान नहीं हो जाते। किसी भी गुणी व्यक्ति के गुणों की जब बात आती है तो नकली व्यक्ति की पोल खुल जाती है। इसलिए किसी व्यक्ति के रूप की नकल न करके उसके गुणों को धारण करना चाहिए। कवि ने इसीलिए बगुले का उदाहरण दिया है। बगुला और हंस में दिखने में बहुत अधिक अंतर नहीं होता, लेकिन दोनों के गुणों में भारी अंतर होता है। इसीलिए बगुला थोड़ा बहुत परिवर्तन करके स्वयं को हमसे जैसा दिखाने का तो करता है, लेकिन उसके गुणों को नहीं अपना पाता और यहीं पर उसकी पोल खुल जाती है।


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कठोर वचन त्यागने के लिए तुलसीदास जी क्यों कह रहे हैं?

तुलसीदास ने किन बालकों के बचपन के करतब का वर्णन किया है? माता का मन प्रसन्नता से कब और क्यों भर जाता है?

सेनापति बापट की संक्षिप्त जीवनी लिखें।

सेनापति बापट की जीवनी

सेनापति बापट महाराष्ट्र के एक जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम में बढ़ चढ़कर भाग लिया और अपने अदम्य साहस से स्वतंत्रता संग्राम में अपना अमूल्य योगदान दिया। वह गांधीवादी विचारधारा के समर्थक थे। स्वतंत्रता संग्रामी होने के साथ-साथ वह एक पर्यावरण संरक्षक तथा सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। उन्होंने पर्यावरण के संरक्षण के लिए अनेक कार्य किए।

सेनापति बापट का जन्म 12 नवंबर 1880 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के पारनेर नामक गाँव में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा दीक्षा पुणे के डेक्कन कॉलेज से प्राप्त की और कॉलेज के जीवन में ही वह चापेकर क्लब के सदस्य दामोदर बलवंत भिड़े के संपर्क में आ गए, जिस कारण उन्हें क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने की प्रेरणा मिली।

1904 में वह मंगलदास नाथूभाई छात्रवृत्ति प्राप्त होने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए। वहाँ पर वह अलग-अलग विचारधाराओं के व्यक्तियों के साथ संपर्क में आए। जहाँ एक ओर वह समाजवादी व साम्यवादी विचारधारा से परिचित हुए तो वहीं दूसरी ओर वह बी. डी. सावरकर के साथ संपर्क में भी आए।

उस समय भारत का स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था, इसलिए सावरकर की सलाह पर वह बम बनाने की तकनीक सीखने के लिए पेरिस चले गए। वहाँ उन्होंने बम एवं हथियार बनाने की ट्रेनिंग ली और 1960 में भारत लौटे। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया तथा क्रांतिकारियों के बीच बम बनाने की तकनीक का प्रचार किया। इससे क्रांतिकारियों के आंदोलन को बल मिला।

स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के कारण उन्हें अंग्रेजों द्वारा 1912 में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 3 साल की सजा हुई। 1915 में उन्होंने ‘मराठा’ नामक समाचार पत्र के सहायक संपादक के रूप में काम करना शुरू कर दिया।

1920 में गांधीजी के संपर्क में आने पर वह गांधी जी के दर्शन से प्रभावित हुए और फिर पर्यावरण संरक्षण के रूप में भी कार्य करने लगे। उन्होंने अनेक तरह के सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया उसके साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए भी तरह के कार्य किए। उन्होंने सार्वजनिक स्थानों की सफाई अभियान भी शुरू किया। उन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के अलावा गोवा मुक्ति आंदोलन तथा संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में भाग लिया।

मुंबई और पुणे में सेनापति बापट मार्ग नाम से उनके नाम पर सड़कें हैं। उनके सम्मान में 1970 में डाक-टिकट जारी किया गया था। उनका निधन 1967 में हुआ।


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म्यानमार को आज़ादी किसके नेतृत्व मे और कब मिली?

मोबाइल (MOBILE) की फुल फॉर्म क्या है?

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मोबाइल (Mobile) की फुल फॉर्म

मोबाइल हम सबके दैनिक जीवन की आवश्यकता बन चुकी है। लेकिन क्या हम सबको मालूम है कि मोबाइल एक शार्ट फॉर्म भी है। मोबाइल एक पूरा स्वतंत्र  नाम नही है, बल्कि एक शॉर्ट फॉर्म है। क्या किसी को मोबाइल की फुल फॉर्म पता है। आइए हम आपको मोबाइल की फुल फॉर्म बताते है। मोबाइल एक अनोखा यंत्र है, जो 21वीं सदी की सबसे बड़ी क्रांति बनकर उभरा है।

आज हर किसी के हाथ में मोबाइल है। मोबाइल हर किसी के दैनिक जीवन की आवश्यकता बन चुकी है। सुबह से लेकर शाम तक लोग मोबाइल से लोग अपने जीवन के अनेक काम कर लेते हैं। चाहे किसी को गुड मॉर्निंग करनी हो, किसी को संदेश भेजना हो। किसी को शुभकामनाएं भेजनी हों, जन्मदिन की बधाई भेजनी, किसी से बात करने हो या किसी से वीडियो कॉल करके बात करनी हो। खरीदारी के लिए भुगतान करते समय मोबाइल से पैसे ट्रांसफर करने हो या किसी मित्र/संबंधी को व्यक्ति को पैसे भेजने हों। कोई गेम खेलना हो, मूवी या यात्रा का टिकट बुक करना हो। ऐसे दैनिक जीवन से संबंधित अनेको काम मोबाइल के माध्यम से किए जा सकते हैं। ये हैं एक छोटे से मोबाइल नामक यंत्र के अनेक उपयोग।

हमारे रोज की जरूरत मोबाइल नामक यंत्र के बारे में लोगों को ये नहीं मालूम कि मोबाइल एक पूरा नाम नही है, बल्कि ये एक शार्ट फॉर्म है। मोबाइल की शॉर्ट फॉर्म क्या है, चलिए आज हम आपको बताते हैं….

मोबाइल ( Mobile) की शॉर्ट फॉर्म है.

MOBILE : Modified Operation Byte Integration Limited Energy

हिंदी में इसका अर्थ होगा : संशोधित ऑपरेशन बाइट एकीकरण लिमिटेड ऊर्जा

तो है न मजेदार बात कि हम जिस मोबाइल फोन को रोज यूज करते हैं, उसकी भी एक फुल फॉर्म है।

Post topic: मोबाइल (Mobile) की फुल फॉर्म


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मैडम क्यूरी को नोबेल पुरस्कार कब प्राप्त हुआ था?

झरने और नदी में क्या अंतर है?

‘विराटा की पद्मिनी’ उपन्यास में ‘देवी सिंह’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

विराटा का पद्मिनीउपन्यास में ‘देवी सिंहका चरित्रचित्रण इस प्रकार है:

  • ‘विराटा का पद्मिनी’ उपन्यास में देवी सिंह उपन्यास का एक प्रमुख पात्र है।
  • वहएक योग्य व कुशल शासक था। उसमें शासन करने के सभी गुण थे।
  • वह दरबारियों तथा सामंतो के बीच संतुलन स्थापित करके रखता था और उन्हें अपने अनुकूल बनाए रखता था।
  • देवीसिंह निवासी युवक था। अपने विवाह के समय जब दुल्हन के द्वार पर पहुंचता है और यह देखता है कि राजा नायक सिंह और मुस्लिम आक्रमणकारियों के बीच युद्ध हो रहा है तो वह बिना कुछ परवाह किए हुए दूल्हे के भेष में ही आक्रमणकारियों से लड़ने लगता है। देवीसिंह चरित्रवान युवक था और धर्म के प्रति श्रद्धा का भाव रखने वाला धर्म परायण युवक था।
  • वह व्यवहार कुशल युवक था और सभी का आदर करता था।
  • युवक देवी सिंह एक संवेदनशील शासक था। उसके अंदर अपनी प्रजा के हित की चिंता रहती थी।
  • अपने कुशल प्रशासन  के कारण ही बेहद कम समय में अपने राज्य में प्रसिद्ध हो जाता है।

विराटा की पद्मिनी उपन्यास वृंदावन लाल वर्मा द्वारा लिखा गया हिंदी का प्रथम ऐतिहासिक उपन्यास है। ये उपन्यास उन्होंने सन 1933 ईस्वी में लिखा था। उपन्यास का प्रकाशन 1936 ईस्वी में हुआ था। विराटा की पद्मिनी उपन्यास कुमुद नामक एक दांगी युवती के संघर्ष की कहानी है। इस उपन्यास में कुमुद के प्रेम और बलिदान की कहानी प्रस्तुत की गई है।

उपन्यास की पृष्ठभूमि बुंदेलखंड पर आधारित है। वृंदावन लाल वर्मा हिंदी के प्रथम ऐतिहासिक उपन्यास का माने जाते हैं। उनका जन्म  1890 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के मऊरानीपुर नामक गाँव में हुआ था। ‘विराटा की पद्मिनी’ के अलावा उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, टूटे कांटे, माधवजी सिंधिया, भुवन विक्रम नामक उपन्यास लिखे। उनका निधन सन 1969 ईस्वी में हुआ था।


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‘अधिकार का रक्षक’ एकांकी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिये।

बाबा को अनाज़ मुफ्त मिलने की बात पर क्यों नहीं विश्वास हुआ ? ​

बाबा को अनाज मुफ्त मिलने की बात पर इसलिए विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उस समय शहर में भयंकर अकाल पड़ा हुआ था। सब लोग अकाल के कारण दानेदाने को तरस रहे थे और भूख से तड़पमर रहे थे।किसी के पास रोटी बनाने के लिए अनाज  था। ऐसी स्थिति में कौन होगा जो अनाज मुफ्त देगा? इसीलिए बाबा को अनाज मुफ्त मिलने की बात पर विश्वास नही हुआ।

‘राजा’ नामक कहानी में कपड़े प्रेस करने वाला लेखक को अपनी कहानी सुना रहा था तो उसने बताया कि जब वह छोटा बच्चा था तो लाहौर शहर में भयंकर अकाल पड़ा था। जब वह रोटी की तलाश में शहर में निकला तो उसने महाराजा रणजीत सिंह के द्वारा करवाई गई मुनादी सुनी कि महाराजा रणजीत सिंह गरीबों के लिए मुफ्त में अनाज बंटवा रहे हैं। जब उसने ये बात अपने बाबा को सुनाई तो बाबा को अनाज मुफ्त मिलने की बात पर विश्वास नहीं हुआ।

उन दिनों लाहौर शहर में भयंकर अकाल पड़ा हुआ था। चारों तरफ अकाल का शोर मचा हुआ था। लगातार ढाई साल से वर्षा नहीं हुई थी और अकाल के कारण सब भूखे मर रहे थे। ऐसी स्थिति में जब बाबा को अपने बेटे के मुख से यह बात सुनकर कि महाराजा रणजीत सिंह ने अनाज मुफ्त बांटने की मुनादी कराई है तो बाबा को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। लेकिन बेटे द्वारा बार-बार विश्वासपूर्वक कहने पर उन्होंने बात पर विश्वास किया और दोनों चादर लेकर अनाज लेने के लिए महाराजा के महल की ओर चल पड़े।

संदर्भ पाठ

राजा (पाठ-6, कक्षा-7 हिंदी पाठमाला अभिव्यक्ति)


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जिमी वैलेंटाइन को जेल की सज़ा क्यों हुई?

मैडम क्यूरी को नोबेल पुरस्कार कब प्राप्त हुआ था?

फूलों और काँटों में उपस्थित कौन सी समानताएँ हैं? (पाठ – फूल और काँटे)

फूलों और काँटों में अनेक समानताएं होती हैं। फूल और काँटे एक ही जगह पर जन्म लेते हैं। फूल और काँटे एक ही पौधे पर पलते बढ़ते हैं। रात के समय जब आकाश में चाँद अपनी शीतल चाँदनी चारों तरफ बिखेरता है तो वह समान रूप से फूल और काँटे दोनों को अपनी चाँदनी से नहलाता है। जब बादल पृथ्वी पर बारिश करते हैं तो वह समान रूप से फूल और काँटे दोनों पर बारिश करते हैं। जब हवा मंद-मंद बैठती है तो वह फूल और काँटे दोनों पर समान रूप से बहती है। इस तरह फूल और कांटे दोनों में उपरोक्त समानताएं होती हैं। हालांकि एक जैसी समान परिस्थितियों में पल-बढ़कर भी फूल और काँटे दोनों के स्वभाव में बड़ा अंतर होता है।

फूल और कांटे पाठ ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध द्वारा लिखा गई एक कविता है,,जिसमें उन्होंने फूल और काँटे दोनों के स्वभाव के विषय में बताया है। कवि ने इस कविता के माध्यम से फूल और काँटों का उदाहरण देकर यह कहा है कि फूल और काँटे एक ही जगह पर जन्म लेने और एक ही समान परिस्थितियों में पलने-बढ़ने के बावजूद एक दूसरे से विपरीत स्वभाव रखते हैं। उसी तरह जीवन में अनेक व्यक्ति ऐसे होते हैं जो समान परिस्थितियों में जन्म लेकर भी एक दूसरे से विपरीत स्वभाव रख सकते हैं। किसी व्यक्ति की कुलीनता ही उसे समाज में सम्मान नहीं दिलाती बल्कि व्यक्ति का व्यवहार ही उसे समाज में सम्मान दिला सकता है।

संदर्भ पाठ:

‘फूल और काँटे’, लेखक – अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध (कक्षा-7, पाठ-2 हिंदी सुलभ भारती (महाराष्ट्र बोर्ड)


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फूलों को अनंत तक विकसित करने के लिए कवि कौन कौन सा प्रयास करता है?

ये सुमन लो, यह चमन लो, नीड़ का तृण-तृण समर्पित, चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।​ भावार्थ बताएँ।

लैकै सुघरु खुरुपिया, पिय के साथ। छइबैं एक छतरिया, बरखत पाथ ।। रहीम के इस दोहे का भावार्थ लिखिए।

लैकै सुघरु खुरुपिया, पिय के साथ।
छइबैं एक छतरिया, बरखत पाथ ।। 

संदर्भ : ये दोहा (बरवा छंद) रहीमदास जी की रचना है। इस दोहे के माध्यम से रहीमदास ने नायिका के उस मनोदशा का वर्णन किया है, जब वो अपने प्रियतम के साथ बाहर घूमने निकली है।

भावार्थ : रहीम दास कहते हैं कि नायिका अपने प्रियतम के साथ बाहर घूमने जा रही है।  वह अपने प्रियतम के साथ बाहर घूमने जाने के लिए बेहद उत्साहित है। इसी कारण उसने बना श्रृंगार किया है। वह अपने प्रिय के साथ छतरी लेकर भ्रमण कर रही है। अपने प्रियतम का साथ और मनमोहक वातावरण उसके मन को बेहद उत्साहित किए हैं। एक ही छतरी के नीचे दोनों हल्की-हल्की बारिश में घूमते हुए जा रहे हैं। नायिका के लिए अपने प्रियतम के साथ बताया गया यह सुंदर दिन भाव-विभोर कर रहा है।

विशेष : रहीमदास ने इस छंद के माध्यम के नायिका के प्रेमभरे मनोभावों का सुंदर चित्रण किया है।


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अँखियाँ हरि दरसन की भूखी। कैसे रहैं रूपरसराची, ये बतियाँ सुनी रू।। अवधि गनत इकटक मग जोवत, तब एती नहिं झूखी। अब इन जोग सँदेसन ऊधो, अति अकुलानी दूखी।। ‘बारक वह मुख फेरि दिखाओ, दुहि पय पिवत पतूखी। सूर सिकत हुठि नाव चलायो, ये सरिता है सूखी।। भावार्थ बताएं।

लालमणि का अपनी माँ के प्रति कैसा व्यवहार था?​ (पाठ – गौरा गाय)

लालमणि का अपनी माँ गौरा गाय के साथ व्यवहार एकदम स्नेह और आत्मीयता भरा था। वह अपनी माँ के द्वारा आपके साथ मिलता-जुलता रहता था। जब उसका जन्म हुआ तो उसके बाद वह हमेशा अपनी माँ के आसपास ही मंडराता रहता था। उसे किसी दूसरी गाय का दूध हजम नहीं होता था। वह केवल अपनी माँ गौरा गाय का ही दूध पीता था। वह हर समय गौरा के साथ खेलना चाहता था।

जब गौरा बीमार पड़ी तो लालमणि को अपनी माँ की बीमारी और उसकी संभावित मृत्यु का बोध नहीं था। वह तो पहले की तरह ही अपनी माँ के साथ खेलना चाहता था और अपनी माँ का ही दूध पीना चाहता था। जब भी उसे अवसर मिलता है वह और आपके पास पहुंचकर अपना सिर मार कर गौरा को उठाना चाहता था और उसके साथ खेलने के लिए उछल-कूद करने लगता था।

‘गौरा गाय’ रेखाचित्र महादेवी वर्मा द्वारा लिखा गया है। जिसमें उन्होंने गोरा नामक एक पालतू गाय के बारे में वर्णन किया है। इस गाय को महादेवी वर्मा ने अपने घर में पाल रखा था और उसे इतने स्नेह और प्यार से पाला था कि वह महादेवी वर्मा की प्रिय गाय बन गई थी।

लेकिन गाय के प्रति लेखिका का ये लगाव के लेखिका घर में दूध देने वाले एक ग्वाले को पसंद नहीं आया। गौरा गाय के कारण लेखिका ने उस ग्वाले दूध लेना बंद कर दिया था। इसलिए ग्वाले ने चुपचाप गौरा के खाने में गुड़ के साथ सुइयां मिलाकर खिला दीं। वह सुइयां गौरा के पेट में चली गईं और गौरा के अंदरूनी अंग घायल हो गए और वह मृत्युतुल्य अवस्था में जा पहुंची। बाद में उसकी इसी कारण मृत्यु हो गई।


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‘गिल्लू’ पाठ में लेखिका की मानवीय संवेदना अत्यंत प्रेरणादायक है । टिप्पणी लिखिए ।

‘दीपदान’ एकांकी का सारांश लिखते हुए एकांकी तत्वों के आधार पर ‘दीपदान’ एकांकी की समीक्षा कीजिए।

‘दीपदान’ एकांकी

‘दीपदान’ एकांकी ‘डॉ रामकुमार वर्मा’ द्वारा लिखा गया एक ऐतिहासिक एकांकी है। इसकी कथावस्तु ऐतिहासिक घटना पर आधारित है। यह एकांकी एक माँ के त्याग और बलिदान की प्रेरणादायक गाथा के आसपास एक केंद्रित है।

सारांश

एकांकी की मुख्य पात्र एक राजपूतानी स्त्री है, जिसका नाम पन्नाध्याय है। वह चित्तौड़गढ़ के महाराजा महाराणा सांगा के यहाँ धाय का कार्य करती है। एकांकी के अन्य प्रमुख पात्रों में राजपूत राजा कुंवर उदय सिंह और एक सेविका सोना है।

एकांकी की कथावस्तु 1536 ईस्वी में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ रियासत के किले में घटित हुए घटनाक्रम पर आधारित है। उस चित्तौड़गढ़ महाराजा महाराणा सांगा की मृत्यु हो चुकी थी। उनके पुत्र उदय सिंह बेहद छोटी आयु के थे और सिंहासन को संभालने की दृष्टि से बेहद छोटे थे। इसलिए उनके संरक्षण के लिए महाराणा सांगा में अपनी मृत्यु से पहले ही एक पन्ना नाम की एक धाय स्त्री को नियुक्त कर दिया था। राणा सांगा की मृत्यु के बाद पन्नाधाय के ऊपर ही उदय सिंह के संरक्षण और सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी आ गई थी क्योंकि उदय सिंह चित्तौड़गढ़ के सिंहासन के उत्तराधिकारी थे।

सिंहासन पर अन्य कई लोगों की कुदृष्टि थी और वह उस सिंहासन पर कब्जा करना चाहते थे। एकांकी की कथास्तुति के अनुसार चित्तौड़गढ़ के महाराणा सांगा की मृत्यु हो चुकी है उनके पुत्र उदय सिंह राज्य के उत्तराधिकारी हैं लेकिन उनकी आयु अभी छोटी है और केवल 14 वर्ष की आयु है इसलिए पन्नाधाय उदय सिंह की का संरक्षण कर रही है ताकि वह सुरक्षित रहें और बड़े होकर सिंहासन को संभाले का एक 13 वर्षीय पुत्र भी है जिसका नाम चंदन है पन्नाधाय का पुत्र और उदय सिंह दोनों साथ चलते हैं

चित्तौड़गढ़ का सिंहासन खाली है। इस खाली सिंहासन पर महाराणा सांगा का भाई पृथ्वीराज का एक दासी पुत्र बनवीर कब्जा करने की फिराक में है। वह जानता है कि जब तक उदय सिंह जिंदा है, वह सिंहासन पर आसानी से कब्जा नहीं कर सकता इसीलिए वह उदय सिंह को अपनी रास्ते का कांटा मानकर बताना चाहता है।

वह उदय सिंह को किसी न किसी तरह षडयंत्र करके मारना चाहता है ताकि उसकी राह का कांटा साफ हो जाए और निश्चिंत होकर आसानी से चित्तौड़गढ़ के सिंहासन पर कब्जा कर ले। इसी कारण मनवीर उदय सिंह को करने के तमाम तरह के प्रयास करता है, लेकिन हर बार वह असफल हो जाता है। पन्नाधाय ये सब पता है कि इसलिए उदय सिंह को एक अलग महल में सुरक्षित रखे हुए हैं।

एक दिन बनवीर को उदय सिंह के रहने का पता चल जाता है और वह अपनी तलवार लेकर उदय सिंह को मारने महल में आ जाता है। पन्नाधाय को बनवीर के आने की जानकारी पहले से हो जाती हैय ऐसी स्थिति में उदय सिंह के प्राणों की रक्षा के लिए पन्नाधाय उदय सिंह के पलंग पर अपने पुत्र चंदन को सुला देती और उसे चादर ओढ़ा देती है। फिर वह उदय सिंह को दूसरी जगह छुपा देती है।

बनवीर आता है और उदय सिंह के पलंग पर पन्नाधाय के पुत्र चंदन को उदय सिंह समझ कर तलवार से उसकी गर्दन काट देता है। उसे लगता है कि उसने उदय सिंह को मार दिया है और वह महल से चला जाता है। उदय सिंह को सुरक्षित निकाल कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देती है। वह उदय सिंह की रक्षा के लिए वह अपने स्वयं के पुत्र का बलिदान कर देती है। यह घटना एक स्त्री की स्वामी भक्ति, कर्तव्यनिष्ठा और एक राजपूताना स्त्री की वीरता का प्रतीक है।

समीक्षा

‘दीपदान’ एकांकी भारतीय नारी के कुछ अनमोल त्याग की प्रतिमूर्ति को प्रस्तुत करता है, जिसमें भारतीय नारी अपने कर्तव्य के आगे अपनी पुत्र का बलिदान करने से भी नहीं चूकती अपने स्वामी के पुत्र की रक्षा के लिए उसने अपने स्वयं के पुत्र के प्राणों को न्योछावर कर दिया लेकिन अपने कर्तव्य पर आँच नहीं आने देती। उसने अपने निजी स्वार्थ की जगह अपने कर्तव्य को प्राथमिकता दी। भले इसके लिए उसको अपने पुत्र के प्राणों का बलिदान क्यों करना पड़ा। लेकिन उसका प्रथम कर्तव्य यह था कि वह चित्तौड़गढ़ के उत्तराधिकारी के प्राणों को रक्षा करे। उसने अपने इसी कर्तव्य की पूर्ति की।

यह कहानी एक माँ के त्याग और बलिदान के साथ-साथ एक भारतीय नारी की वीरता, साहस, स्वामी भक्ति और कर्तव्यनिष्ठा को भी दर्शाता है।

रामकुमार वर्मा आतंकी का रामकुमार वर्मा ने इस एकांकी में एकांकी के सारे तत्वों को समाहित किया है, जो किसी एकांकी को पूर्णता प्रदान करते हैं। रामकुमार वर्मा एकांकी के सिद्धहस्त एकांकीकार माने गए हैं और उन्होंने अनेक सफल एकांकियों की रचना की है।

एकांकी की संवाद योजना और दृश्य प्रभाव में पूर्णतारतम्यता है, इसी कारण की यह एकांकी के तत्वों की दृष्टि से एक पूर्ण और सफल एकांकी है।


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‘एक दिन’ एकांकी में भारतीय आदर्श की प्रतिष्ठा की गई है। स्पष्ट कीजिए​।

मैडम क्यूरी को नोबेल पुरस्कार कब प्राप्त हुआ था?

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मैडम क्यूरी को भौतिक विज्ञान में नोबेल पुरस्कार 1903 में प्राप्त हुआ था। मैडम क्यूरी को  1903 में अपने पति की पियरे क्यूरी के साथ भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। मैडम क्यूरी 1911 में दूसरी बार रसायन विज्ञान में नोबेल पुरुस्कार भी मिला। 

मैडम क्यूरी को 1903 में अपने पति पियरे क्यूरी के साथ  रेडियोधर्मिता की खोज के लिए भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। 1903 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार क्यूरी दंपत्ति और हेनरी बेकेरल को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया था। मैडम क्यूरी ने अपने पति पियरे क्यूरी के साथ मिलकर रेडियधर्मिता की खोज की थी। उन्होंने रेडियम नामक एक नए तत्व की खोज भी की और उसके परमाणु भार का पता भी लगाया था। उनकी इन्हीं उल्लेखनीय खोजों के लिए उन्हें 1903 का भौतिक का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

मैडम क्यूरी को 1911 में दूसरी बार रसायन विज्ञान में नोबेल उसका पुरस्कार प्राप्त हुआ ,जब उन्हें रेडियोएक्टिविटी पर अपने मौलिक अनुसंधान के लिए 1911 में रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।

मैडम क्यूरी नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली  महिला थीं और दो बार नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली एकमात्र महिला हैं।

मैडम क्यूरी का पूरा नाम मैरी स्कोलोडोस्का (Marie Skłodowska) था। उनका  उनका जन्म 7 नवंबर 1867 को पोलैंड में हुआ। पोलैंड उस समय रूसी साम्राज्य का एक हिस्सा था।

पोलैंड में जन्म होने के बाद और आरंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद वह फ्रांस में शिफ्ट हो गई जहां पर उन्होंने भौतिक विज्ञान में अनेक शोध कार्य किया। वहीं पर पियरे क्यूरी के साथ उनकी मुलाकात हुई। जिनके साथ उन्होंने विवाह किया और मैरी क्यूरी के नाम से जानी जानें लगीं।  1903 मे नोबेल प्राइज मिलने के बाद उन्हे सम्मानपूर्वक मैरी क्यूरी से मैडम क्यूरी के नाम से जाना जाने लगा।

4 जुलाई 1934 को उनका निधन फ्रांस मे हुआ।

इस तरह मैडम क्यूरी न केवल नोबल पुरुस्कार प्राप्त करने वाली पहली महिला हैं बल्कि दो बार नोबेल दो अलग-अलग क्षेत्रों में पुरुस्कार प्राप्त करने वाली एकमात्र  महिला भी हैं।


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चिपको आंदोलन का उद्देश्य क्या था?

इटली के एकीकरण में काउंट कैवोर की भूमिका का वर्णन कीजिए।

‘निरंतर अभ्यास का छात्र पर प्रभाव’ इस विषय पर 200 शब्दों में अनुच्छेद लिखें।

अनुच्छेद

निरंतर अभ्यास का छात्र पर प्रभाव

 

छात्र जीवन में अभ्यास का अपना ही महत्व है। निरंतर अभ्यास से अल्पबुद्धि छात्र भी बुद्धिमान बन सकता है। जब किसी बात का निरंतर अभ्यास किया जाता है तो एक न एक दिन उस कार्य में महारत हासिल हो ही जाती है। कवि वृंद का एक दोहा है कि ‘करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, रसरी आवत-जात है ते सिल पर पड़त निसान’ ये दोहा अभ्यास के महत्व को स्पष्ट करते हैं। इसके में बताया गया है कि कुएँ के पत्थर पर उस रस्सी की रगड़ से निशान पड़ जाते हैं जिससे बाल्टी बांधकर पानी निकाला जाता है। जब रोज रगड़ खाकर कोमल रस्सी से कठोर पत्थर पर निशान पड़ सकते हैं तो निरंतर अभ्यास से मंदबुद्धि भी बुद्धिमान बन सकता है। इसी से स्पष्ट हो जाता है कि यदि छात्र अपने पाठ का निरंतर अभ्यास करें तो उसे सबकुछ याद हो सकता है। छात्र जीवन में अभ्यास बहुत जरूरी है। निरंतर अभ्यास से ही छात्र पढ़ाई को सही अर्थों में ग्रहण किया जा सकता है। बिना अभ्यास के शिक्षा का कोई महत्व नही है।निरंतर अभ्यास करने से छात्र के दिमाग में उसकी पढ़ाई का मूल भाव बैठ जाता है। जिनकी कमजोर बुद्धि है वह भी निरंतर अभ्यास अपनी बुद्धि को परिमार्जित कर सकते हैं। इसलिए छात्र के लिए अभ्यास का विशेष महत्व है।


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“करो योग-रहो निरोग” जीवन में योग का महत्व बताते हुए एक अनुच्छेद लिखिए​।

हॉस्टल का जीवन पर अनुच्छेद लिखें।

खेलों के महत्व पर अनुच्छेद लिखिए।

‘अवधू गगन-मण्डल घर कीजै’ इस पंंक्ति में ‘अवधू’ का आशय बताइए। इस पंक्ति का भावार्थ भी स्पष्ट कीजिए।

‘अवधू गगन-मण्डल घर कीजै’ इस पंक्ति में ‘अवधू’ का आशय ‘मन’ से है।

ये पंक्तियां कबीर द्वारा रचित  यह पंक्तियां कबीर द्वारा रचित सखियां की है। इन पंक्तियों के माध्यम से कबीर योगसाधना और कुंडली जागरण का महत्व समझा रहे हैं। वह अपने मन से कह रहे हैं कि हमारे शरीर ही एक ब्रह्मांड के समान है। इसमें जो कुंडलिनी है, उसको जागृत करके पूरे ब्रह्मांड को अपने अंदर ही अनुभव किया जा सकता है। अपना अपने शरीर और मन को ही गगन मंडल रूपी घर बनाया जा सकता है।

कबीर द्वारा रचित इस पंक्ति का पूरा पद इस प्रकार है

अवधू गगन मंडल घर कीजै,
अमृत झरै सदा सुख उपजै, बंक नालि रस पीजै।।
मूल बाँधि सर गगन समाना, सुखमन यों तन लागी।
काम क्रोध दोऊ भया पलीता, तहँ जोनणीं जागी।।
मनवाँ जाइ दरीबै बैठा, गगन भया रसि लागा।
कहै कबीर जिय संसा नाँहीं, सबद अनाहद बागा।।

अर्थात कबीरदास अपने मन को अवधू कहकर संबोधित करते हुए कहते हैं कि वह अपने शरीर में कुण्डलिनी रूपी गगन मण्डल को ही अपना स्थायी निवास बना ले रहे हैं। उन्होंने अपने मन को अवधूत कहा है, अवधू यानि जो जानने की प्रक्रिया में हो।

कबीर अपने अवधू मन की आकांक्षा को अभिव्यक्त कर रहे हैं और कहते हैं कि मैं अपने शरीर में स्थिति कुण्डलिनी को जागृत करके अपने इस गगन मंडल को ही अपना स्थाई निवास बना लेता हूँ। जहाँ पर ज्ञान रूपी अमृत निरंतर बह रहा है। मैं वहाँ की बंकनाल से रसपान कर रहा हूँ। कुंडलिनी जागरण के कारण उपजे ज्ञान से अद्भुत सुखद अनुभूति हो रही है। सुषुम्ना नाड़ी के माध्यम से कुंडलिनी जागरण कर मूलाधार  से सहस्रार यानि आकाश तक पहुँच गया हूँ।

कबीर कह रहे हैं कि सहस्रार पर पहुँच कर मेरे मन के सारे विकार जैसे काम, क्रोध आदि जलकर नष्ट हो गए हैं। मेरा मन सहस्रार रूप दरीबे में जा बैठा है। मेरे मन अमृत रस का पान कर रहा है। उसे ये अमृतरस भा गया है। अब मन के सारे संशय-संदेह मिट गए हैं और चारों तरफ ज्ञान रूपी अनाहद गूँज रहा है।


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कबीर दास का भक्ति भाव दास्य भाव था या शाक्य भाव?​

कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है, इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं?

लेखक के घर में खिचड़ी त्योहार पर क्या-क्या किया जा रहा है? (फसलों के त्योहार)

लेखक के घर में खिचड़ी त्योहार पर हँसी-खुशी का माहौल है। पूरे घर में चहल-पहल मची हुई हैष लेखक के घर के सभी सदस्य नहा धोकर एक कमरे में इकट्ठे हो गए हैं। लेखक के दादा और चाचा ने सफेद चकाचक मांड लगी धोती और कुर्ता पहना हुआ है। लेखक के पिता ने भी धोती पहन रखी है, लेकिन उस धोती में उन्हें ठंड लग रही है।

लेखक की दादी खादी सफेद साड़ी पहने हुए मचिया पर बैठी हुई हैं। उन्होंने आज अपने सफेद रुई जैसे बाल भी धोए हैं। दादी के सामने केले के पत्ते रखे हुए हैं। उन पत्तों पर  तिल, गुड़स चावल आदि के छोटे-छोटे ढेर रखे हुए हैं।

लेखक के घर के सभी सदस्यों को बारी-बारी से उन सभी चीजों को छूने और उन्हें प्रणाम करने के लिए कहा गया है। जब सब लोगों ने ऐसा कर दिया तो सभी चीजों को एक जगह इकट्ठा करते दान दे दिया जाएगा।

उसके बाद सभी लोग खिचड़ी खाने के लिए तैयार हो गए हैं। सभी लोगों ने चावल और दाल की बनी खिचड़ी खाई है। खिचड़ी खाने के बाद सभी ने ‘गया’ से आए तिल, गुड़ और चीनी के बने ‘तिलकुट’ को बड़े प्रेम से खाया। इस तरह खिचड़ी का त्योहार लेखक के घर में हर्षोल्लास से मनाया गया।


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दी+पा+व+ली शब्द का दीपावली उत्सव के संदर्भ में अर्थ बताओ।

पटाखे मुक्त दिवाली के बारे में आपके विचार लिखिए।

जिमी वैलेंटाइन को जेल की सज़ा क्यों हुई?

जिमी वैलेंटाइन को जेल की सजा चोरी के आरोप के कारण हुई थी। जिमी वेलेंटाइन पर यह आरोप था कि उसने एक बैंक में चोरी की की थी। उसने स्प्रिंगफील्ड में बैंक में सेंध लगाई थी। इसी आरोप के कारण उसे गिरफ्तार कर लिया गया और उसे 4 वर्ष की सजा हुई।

‘ओ हेनरी’ द्वारा लिखित कहानी ‘ओ जिम्मी वेलेंटाइन’ (Alias Jimmy Valentine) में जिम्मी वेलेंटाइन एक पेशेवर चोर था। उसे बैंक में सेंध लगाने की चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और से 4 साल की सजा हुई थी। अपनी सजा के दौरान जेल में उसकी मुलाकात जेल के एक वार्डन से हुई। जेल के वार्डन ने उसकी तिजोरी आदि तोड़ने की प्रतिभा को पहचान लिया और उसने जिमी को जेल में काम करने की पेशकश की। जिम इस बात पर सहमत हो गया और उसने अपनी प्रतिभा और कौशल का उपयोग जेल में कैदियों से जब्त की गई तिजोरियों को तोड़ने के लिए किया। 4 साल बाद जिम्मी वेलेंटाइन की रिहाई हो गई और वह छोटी सी नौकरी करके अपना जीवन जीने लगा।


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चिपको आंदोलन का उद्देश्य क्या था?

क्या यूनिफार्म ही विद्यार्थियों की सच्ची पहचान है?

क्या इंटरनेट पुस्तकों का विकल्प बन सकता है? (निबंध)

निबंध

इंटरनेट पुस्तकों का विकल्प

 

प्रस्तावाना

प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जो क्रांति हुई है उसने हमारे जीवन कि दशा और दिशा दोनों ही बदल दी है । सूचना प्रौद्योगिकी की तीव्र गति और सही और सटीक सूचना को अपना आधार बनाकर चलती है । आज विश्व के किसी भी कोने से समाचार कुछ क्षणों में ही आप तक पहुँच जाते है ।

क्या इंटरनेट पुस्तकों का विकल्प बन सकता है?

आप अपने कंप्यूटर से ई-मेल करके अपना संदेश किसी को भी क्षण भर मे ही भेज सकते है । ई-कॉमर्स की एक पूरी दुनिया हमारे सामने खुल रही है । घर बैठे कंप्यूटर की सहायता से व्यापार किया जा रहा है ।

इंटरनेट, पुस्तक का विकल्प नहीं, सहायक है

प्रकाशकों को लग सकता है कि इंटरनेट पर पुस्तकें आ जाने से उनका व्यवसाय खतरे में पड़ जाएगा । यह विचार भ्रामक है । मनुष्य के ज्ञान का मूल स्रोत पुस्तकें है, पुस्तकें ही रहेंगी । अमेरिका और यूरोप में इंटरनेट का सर्वाधिक प्रयोग होता है, परंतु वह पुस्तकों का व्यापार फल फूल रहा है । एक–एक उपन्यास की दस–दस लाख प्रतिया बिक रही है । पुस्तकों को स्थाई संपत्ति के रूप में देखा जाता है । जिन्हें पाठक अपने साथ कही भी ले जा सकता हैं ।

पाठक और पुस्तक

पाठक की दृष्टि से देखे तो इंटरनेट कभी भी पुस्तक का विकल्प नहीं बन सकता। यह ठीक है कि किसी सूचना विशेष को पाने के लिए इंटरनेट का प्रयोग किया जा सके परंतु किसी उपन्यास अथवा काव्य संग्रह को इंटरनेट पर पढ़कर उसका आनंद नहीं लिया जा सकता । लेकिन एक पुस्तक को हाथ में लेकर जो सुख मिलता है वह टीवी अथवा कंप्यूटर स्क्रीन में आंखें गाड़कर नहीं मिल सकता ।

पुस्तक पाठक की संपत्ति भी होती हैं और साथी भी। पाठक के लिए आवश्यक नहीं है कि वह उससे कुर्सी पर बैठ के पढ़े। वह हरी घास पर चलते हुए, बैठे या चलते हुए भी पुस्तक पढ़ने का आनंद ले सकता है। लंबी यात्राओं में पुस्तक एक अच्छे साथी का काम करती है और होटल के एकांत में पुस्तक आनंद देती है।

पाठक पुस्तक को जब चाहे बंद करके सुस्ता सकता है, घूमने जा सकता है और लौटकर पुस्तक वही से आगे पढ़ सकता है। पुस्तक की जो पंक्ति अच्छी लगी उससे रेखांकित किया जा सकता है। पुस्तक कि छपाई, रंग-रूप में भी अपना ही आकर्षण होता हैं। इंटरनेट में यह सुविधा कहा। इंटरनेट पर तो अलग से फाइल खोल कर उससे अपने कंप्यूटर में सुरक्षित करना होगा जो एक झंझट का काम हैं। इंटरनेट तो बेजान माध्यम हैं, उसमें आकर्षण नहीं है।

भारत में कंप्यूटर का प्रयोग

कंप्यूटर का प्रयोग करने वाले और इंटरनेट का लाभ उठा सकने वालों कि संख्या बहुत कम है । जिस देश में बच्चों को दो समय का भोजन न मिलता हो और बच्चों को स्कूलों में टाट–फटी और पुस्तकें भी उपलब्ध न हो, वहाँ पर इंटरनेट से पुस्तकों को भला कैसा खतरा। पुस्तक व्यवसाय और पाठक–पुस्तक व्यवसाय में लेखक, प्रकाशन और पाठकों की प्रमुख भूमिका रहती हैं लेखकों के लिए क्या इंटरनेट खतरा हैं? लेखकों को अपनी पुस्तक इंटरनेट पर डालने के बदले रियलिटी मिलेगी, अधिक धन मिलेगा, लेखक का महत्व बढ़ेगा। आज लेखक के लिए लिखना सरल हो गया है।

इंटरनेट की सहायता से वह नवीनतम जानकारियाँ प्राप्त कर अपनी पुस्तक में लिख सकता हैं। इंटरनेट कि सहायता से लेखक कि रचना विश्व–बाजार में पहुँच जाती है। एक विशाल पाठक समुदाय से मिल जाता है। पुस्तक छपवाने के लिए प्रकाशक खोजने, पुस्तकें बाजार में पहुंचाने के झंझट से लेखक मुक्त हो जाता है। इंटरनेट ने लेखक–व्यवसाय को अतिरिक्त गरिमा, मान और धन दिया है। लेखक के लिए इंटरनेट खतरा नहीं है।

पुस्तक व्यवसाय की कमियां

पुस्तक व्यवसाय को खतरा इंटरनेट से नहीं अपनी ही आंतरिक कमियों से हैं । पुस्तकों का अत्यधिक महंगा होना , पुस्तक कि सामग्री का पाठकों कि इच्छा और आवश्यकता से अनुकूल न होना तथा पुस्तकों का सहज उपलब्ध न होना कुछ कारण है। पुस्तक प्रशासन व्यवसाय में अनेक अनपढ़ व्यापारी आ गए हैं जो पुस्तकों को भी अन्य सामान की तरह तैयार करवाने तथा बेचने का काम करते हैं। पुस्तक विक्रेताओं को अपने तौर तरीके बदलने होंगे और उचित दामों पर अच्छी पुस्तकें तैयार करनी होगी। पुस्तकें पढ़ने की आदत बचपन से ही बनती है और हमारे प्रकाशक बच्चों के लिए अच्छी पुस्तकें छपवाने पर ध्यान ही नहीं देते । यदि पुस्तक व्यवसाय को विकसित होना है तो बच्चों की पुस्तकों पर अधिक बल देना होगा।

समापन

जो लोग इंटरनेट की प्रतिस्पर्धा में पुस्तक व्यवसाय के नष्ट होने की भविष्यवाणी कर रहे हैं वे मानव के स्वभाव से परिचित नहीं है । पुस्तकें सदा से मानव के साथ रही हैं और रहेंगी। कुछ लोगों ने तो साहित्य, इतिहास, धर्म, विवाह प्रथा तथा प्रजातन्त्र के समाप्त होने की भविष्यवाणी भी की थी जो गलत सिद्ध हुई है। भारत में अभी भी साक्षरता के लिए संघर्ष चल रहा है, पचास प्रतिशत भारतीय अभी भी निरक्षर हैं। इंटरनेट और कंप्यूटर अभी भी बहुत कम लोगों की पहुँच में है इसलिए भारत में इस माध्यम से पुस्तक व्यवसाय को कोई खतरा नहीं है। पुस्तकों की लोकप्रियता साक्षरता बढ़ने के साथ बढ़ेगी।


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चिपको आंदोलन का उद्देश्य क्या था?

‘चिपको आंदोलन’ का उद्देश्य वनों की अंधाधुंध कटाई को रोकना और लोगों को वनों के महत्व के बारे में जागरूक करना था। चिपको आंदोलन के तहत, लोग पेड़ों के साथ चिपक कर यानि उन्हें को गले लगाकर उनकी कटाई को रोकते थे।

चिपको आंदोलन एक अहिंसक पर्यावरण आंदोलन था। इस आंदोलन की शुरुआत भारत के उत्तराखंड राज्य में 1973 में हुई थी। उस समय उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में नही था बल्कि उत्तर प्रदेश राज्य का ही हिस्सा था। इस आंदोलन का नेतृत्व सुंदरलाल बहुगुणा और गौरा देवी ने किया था। चिपको आंदोलन एक सफल आंदोलन था और इसने भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक नई क्रांति ला दी।

चिपको आंदोलन के कुछ मुख्य उद्देश्य इस प्रकार थे:

  • सरकार द्वारा विकास के नाम पर वनों की अंधाधुंध कटाई को रोकना।
  • लोगों को वनों के महत्व के बारे में जागरूक करना तथा उन्हें पेड़ों को काटने के रोकना।
  • वनों को संरक्षित करना तथा वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करना।
  • पर्यावरण के संरक्षण के लिए लोगों के अधिक से अधिक जागरूक करना।

चिपको आंदोलन ने भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक नई क्रांति ला दी थी। इस आंदोलन ने लोगों को वनों के महत्व के बारे में जागरूक किया और उन्हें वनों की कटाई के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया। चिपको आंदोलन के बाद, भारत में कई अन्य पर्यावरण आंदोलन हुए और इन आंदोलन के कारण भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए कई कानून बनाए गए।


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क्या यूनिफार्म ही विद्यार्थियों की सच्ची पहचान है?

“करो योग-रहो निरोग” जीवन में योग का महत्व बताते हुए एक अनुच्छेद लिखिए​।

क्या यूनिफार्म ही विद्यार्थियों की सच्ची पहचान है?

यूनिफॉर्म ही विद्यार्थियों की सच्ची पहचान नहीं होती है, लेकिन यह विद्यार्थियों के लिए बेहद आवश्यक है क्योंकि यह विद्यार्थियों के अंदर समानता और अनुशासन की भावना भरती है।

केवल यूनिफॉर्म ही विद्यार्थियों की सच्ची पहचान नहीं होती है। विद्यार्थियों की सच्ची पहचान के लिए अनेक गुणों की आवश्यकता है।

इन गुणों में विद्यार्थियों में अनुशासन, परिश्रम, अपने बड़ों एवं गुरुजनों के प्रति आदर सम्मान की भावना, विनम्रता, सदाचार आदि गुणों का होना आवश्यक है। लेकिन यूनिफार्म के महत्व को भी कम करके नहीं आंका जा सकता। यदि विद्यालयों में विद्यार्थियों के लिए यूनिफॉर्म आवश्यक नहीं होगी, तो विद्यार्थी अनुशासनहीन हो सकते हैं। वह अपनी मर्जी के अनुसार तथा अपनी पारिवारिक स्थिति के अनुसार कपड़े पहन कर आएंगे। जो धनी परिवार वाले विद्यार्थियों होंगे वे सुंदर आर्कषण और महंगे कपड़े पहन कर आएंगे। जो गरीब परिवार के विद्यार्थी होंगे वह साधारण कपड़े पहन कर आएंगे।

ऐसी स्थितियों में धनी परिवार वाले विद्यार्थियों में दिखावा करने की प्रवृत्ति जन्म ले सकती है। वे अपने साथी छात्रों के सामने अपने सुंदर कपड़ों का प्रदर्शन करने की आदत से ग्रस्त हो सकते हैं। इससे विद्यार्थियों में असमानता की भावना विकसित होगी। विद्यार्थियों में इस तरह की गलत प्रवृतियां विकसित होना किसी भी तरह उचित नहीं है।

यूनिफॉर्म विद्यार्थियों में एक समानता की भावना लाती है। यूनिफॉर्म सभी विद्यार्थियों को समान रूप से वस्त्र पहने की आदत विकसित करती है।

यूनिफॉर्म से विद्यार्थी को यह संदेश जाता है कि विद्यालय से बाहर भले ही उनकी पारिवारिक स्थिति कैसी हो लेकिन विद्यालय में सभी विद्यार्थी एक समान हैं। यहाँ पर धर्म, जाति, लिंग अथवा आर्थिक स्थिति के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं है। यह किसी भी विद्यार्थी के लिए इस तरह बहुत आवश्यक है।


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“करो योग-रहो निरोग” जीवन में योग का महत्व बताते हुए एक अनुच्छेद लिखिए​।

कबीर घास न निंदिए, जो पाऊँ तलि होइ। उड़ी पडै़ जब आँखि मैं, खरी दुहेली हुई।। अर्थ बताएं।

“करो योग-रहो निरोग” जीवन में योग का महत्व बताते हुए एक अनुच्छेद लिखिए​।

अनुच्छेद

करो योग-रहो निरोग

योग के महत्व से अब कौन अपरिचित है। आज हम सब योग के महत्व को जानते हैं। हमारे भारत की प्राचीन पद्धति योग अब पूरे विश्व में अपना परचम लहरा रही है। योग के महत्व को आज संसार के सभी लोग समझ चुके हैं, इसीलिए यूं हर देश में लोकप्रिय होता जा रहा है। योग केवल व्यायाम ही नहीं बल्कि यह एक जीवन पद्धति है जो हमारे शरीर को निरोगी बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ पद्धति है।

यदि योग को हम अपने जीवन की नियमित आदत बना लें तो कोई भी दो हमारे शरीर को छू नहीं सकता। योगी रहकर निरोगी बन जाने का मूल मंत्र हमारे पूर्वजों ने हमें दिया। लोगों को अपनाकर हम निरोग रहने का वरदान पा सकते हैं। जोगना केवल हमारे तन को स्वस्थ रखता है बल्कि हमारे मन को भी स्वस्थ रखता है। यह केवल तन का व्यायाम नहीं बल्कि मन का भी व्यायाम है। जो भी केवल व्यायाम तक सीमित नहीं बल्कि यह पूरी जीवन शैली है। योग के अनेक अंग होते हैं जो योग को विविधता प्रदान करते हैं, इसलिए योग को अपनाकर हम निरोग होने का वरदान पा सकते हैं इस बात में जरा भी संदेह नहीं होना चाहिए।

 

 

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‘नारी के बढ़ते कदम​’ पर अनुच्छेद लेखन करिए।

हॉस्टल का जीवन पर अनुच्छेद लिखें।

कबीर घास न निंदिए, जो पाऊँ तलि होइ। उड़ी पडै़ जब आँखि मैं, खरी दुहेली हुई।। अर्थ बताएं।

कबीर घास न निंदिए, जो पाऊँ तलि होइ।
उड़ी पडै़ जब आँखि मैं, खरी दुहेली हुई।।

अर्थ : कबीरदास कहते हैं के इस संसार में हर छोटी से छोटी वस्तु का महत्व होता है। हमें किसी भी वस्तु को छोटा नहीं समझना चाहिए। हर छोटी से छोटी वस्तु का कोई ना कोई महत्व अवश्य होता है।

कबीरदास उदाहरण देते हुए कहते हैं कि रास्ते में पड़ा हुआ घास का छोटा सा तिनका लोगों को भले ही महत्वहीनलगे और मनुष्य अपने अहंकार में आकर घास के उस तिनको को अपने पैर से रौंदता रहता हो, लेकिन वही घास का छोटा सा तिनका यदि हवा में उड़ कर मनुष्य की आँख में पड़ जाए मनुष्य बेचैन हो जाता है।

घास का एक छोटा सा तिनका भी मनुष्य को बेचैन कर सकता है। यहाँ पर कबीरदास ने तिनके का उदाहण देकर यह समझाने का प्रयत्न किया है कि संसार में हमें कभी भी दूसरों को छोटा नहीं समझना चाहिए। छोटी से छोटी वस्तु का अपना महत्व होता है।


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अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख क्षेत्र के नाम बताएं और उनके बारे में विस्तार से वर्णन करें।

‘गहरे पानी में बैठने से ही मोती मिलता है।’ इस वाक्य में निहित अभिप्राय को स्पष्ट कीजिए।

‘काकी’ कहानी के आधार पर माँ तथा बच्चों के मधुर संबंध को स्पष्ट करें।

‘काकी’ कहानी के आधार पर माँ तथा बच्चों के बीच मधुर संबंध की बात करें तो माँ एवं बच्चे के बीच बेहद ही आत्मीय संबंध होता है। कोई भी बच्चा अपनी माँ के बिना आसानी से रह नहीं पाता। बचपन में जिस बच्चे की माँ का देहांत हो जाए तो बिना माँ के उस बच्चे का जीवन-उथल-पुथल भरा हो जाता है, यह काफी कहानी के माध्यम से स्पष्ट हो जाता है।

जिस तरह का की कहानी में बच्चा श्यामू अपनी माँ, जिसे वह काकी कहता था, के देहांत के बाद उसकी याद में बेचैन रहता है और अपनी माँ को वापस बुलाना चाहता है। उससे उसका अपने माँ के प्रति प्रेम का पता चलता है। नादान बच्चा हो जाने के कारण उसे यह आभास नही हो पाता है कि उसकी माँ का देहांत हो चुका है और एक बार जो व्यक्ति इस दुनिया से चला जाए वह वापस नहीं आता। वह अपनी नादान एवं भोली बुद्धि से केवल इतना समझता है कि उसकी माँ भगवान के पास चली गई है और वह अपनी माँ को भगवान के पास से वापस बुला सकता है।

माँ और बच्चों के बीच आत्मीय संबंधों की व्याख्या आसानी से नहीं की जा सकती। एक माँ अपने बच्चे से जितना स्नेह करती है और एक छोटा बच्चा अपनी माँ के प्रति जितना लगाव रखता है, वह शब्दों में आसानी से बताया नहीं जा सकता। माँ और बच्चे के बीच आत्मीय संबंध अद्भुत होते हैं। काकी कहानी में यही बात स्पष्ट की गई है।

संदर्भ पाठ

‘काकी’ लेखक – सियारामशरण गुप्त


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एक विदेशी पर्यटक ताजमहल देखने भारत आया है। उसको हिंदी भाषा नहीं आती। आप उसकी मदद कैसे करेंगे?

‘एक से एक’ वाक्यांश का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए।

‘एक से एक’ वाक्यांश का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए।

‘एक से एक’ वाक्यांश का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य इस प्रकार होंगे…
एक से एक
वाक्य – 1 : हम लोग कल दिल्ली हाट में लगी शिल्प काल प्रदर्शनी देखने गए। वहाँ पर हमने हैंडीक्राफ्ट्स की एक से एक सुंदर वस्तुएं देखीं।
वाक्य – 2 : दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के अमृत उद्यान में एक से एक दुर्लभ प्रजातियों के पौधे हैं।
वाक्य – 3 : वर्मा जी को कुत्ते पालने का बहुत शौक है। उनके पास जितने भी कुत्ते हैं सब एक से एक विदेशी नस्ल के कुत्ते हैं।
वाक्य – 4 : अभी-अभी मैने मुंशी प्रेमचंद की कहानियों की पुस्तक पढ़कर खत्म की है। सारी कहानी एक से एक अद्भुत थीं। वाकई! कहानियाँ लिखने में मुंशी प्रेमचंद का जवाब नही।
वाक्य – 5 : चिड़ियाघर में तरह-तरह के जानवर थे। लगभग हर तरह के एक से एक दुर्लभ जानवर थे।

 

 

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एक विदेशी पर्यटक ताजमहल देखने भारत आया है। उसको हिंदी भाषा नहीं आती। आप उसकी मदद कैसे करेंगे?

इटली के एकीकरण में काउंट कैवोर की भूमिका का वर्णन कीजिए।

एक विदेशी पर्यटक ताजमहल देखने भारत आया है। उसको हिंदी भाषा नहीं आती। आप उसकी मदद कैसे करेंगे?

विचार/अभिमत

एक विदेशी पर्यटक ताजमहल देखने भारत आया है और हिंदी भाषा नहीं आती है। ऐसी स्थिति में उसे संवाद स्थापित करने में परेशानी हो रही होगी। भारत के एक जागरूक नागरिक और एक अच्छे मेजमान होने के नाते उसकी मदद करना हमारा कर्तव्य बनता है। कोई भी विदेशी पर्यटक जो भारत घूमने आया है, उसकी हर दृष्टि से मदद करना हमारा नैतिक कर्तव्य है। इससे वह पर्यटक हमारे देश भारत के विषय में एक अच्छी छवि लेकर वापस अपने देश जाएगा।

अगर उस पर्यटक को हिंदी भाषा नहीं आती है तो सबसे पहले हम यह जानने का प्रयत्न करेंगे कि वह पर्यटक किस देश से आया है? उसके देश की भाषा कौन सी है? यदि वह पर्यटक अंग्रेजी भाषी देश से आया है तो हम अंग्रेजी भाषा में उससे संवाद स्थापित करने की कोशिश करेंगे। हमारे देश में अंग्रेजी भाषा के जानकार अनेक व्यक्ति मिल जाते हैं। इसलिए उसके अंग्रेजी भाषा से संवाद करने की कोशिश की जा सकती है, और उसकी समस्या को समझा जा सकता है।

अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त अन्य विदेशी भाषा के जानकार हमारे देश में मिलना थोड़ा कठिन है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति किसी ऐसे देश से आया हो जहां अंग्रेजी भाषा उस देश की भाषा ना हो और वह व्यक्ति अंग्रेजी भाषा भी नहीं जानता हो। तो हम मोबाइल के माध्यम से गूगल ट्रांसलेटर या दूसरे किसी ट्रांसलेटर टूल के द्वारा उससे संवाद स्थापित करेंगे।

तकनीक के इस युग में आज अलग-अलग भाषाओं के व्यक्तियों से संवाद स्थापित करना कठिन कार्य नहीं रह गया है। यदि उस पर्यटक को हिंदी भाषा नहीं आती है तो मोबाइल के माध्यम से गूगल ट्रांसलेटर या अन्य किसी ट्रांसलेटिंग टूल के माध्यम से संवाद स्थापित कर सकता है। हम भी ऐसे ही किसी ट्रांसलेटिंग टूल के द्वारा स्थापित करेंगे और उसकी समस्या को जानने का प्रयत्न करेंगे। जितना संभव होगा उसकी मदद करेंगे। हम उसकी मदद करने में कोई भी कमी नहीं रखेंगे। हमारे देश में घूमने आया है वह पर्यटक हमारा अतिथि है।

हमारे देश की संस्कृति ‘अतिथि देवो भवः’ की रही है। वह जब भी हमारे देश से वापस अपने देश में जाए तो वह अपने देश के लोगों से यह कहे कि भारत के लोग इतने मददगार और विनम्र हैं कि उन्होंने मुझे अपने देश में जरा भी तकलीफ नहीं होने दी। हम ऐसा व्यवहार उसके साथ करेंगे कि वो अपने देश एक अच्छी स्मृति लेकर जाए यही हमारे देश के लिए हमारी तरफ से सबसे अच्छा योगदान होगा।

 

 

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“स्वार्थ के लिए ही सब प्रीति करते है।” इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

 

इटली के एकीकरण में काउंट कैवोर की भूमिका का वर्णन कीजिए।

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इटली के एकीकरण में काउंट कैवोर की भूमिका

इस बात में कोई संदेह नही कि काउंट कैवोर ने इटली के एकीकरण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। काउंट कैवोर जिनका पूरा नाम Count Camillo Benso di Cavour था, उन्होंने इटली के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह आधुनिक इटली के संस्थपाकों में से एक माने जाते हैं। काउंट 1852 से 1861 तक सार्डिनिया साम्राज्य के प्रधानमंत्री भी रहे थे। वह एक कुशल राजनीतिक थे। उन्होंने फ्रांस तथा कई अन्य यूरोपीय शक्तियों के साथ गठबंधन करने में सफलता प्राप्त की।

काउंट कैवोर की इटली एक आधुनिकीकरण में निभाई गई भूमिका इस प्रकार हैं…

  • दूसरे इतालवी स्वतंत्रता संग्राम में वह इटली के आर्थिक आधुनिकीकरण के प्रबल समर्थक थे। Count Cavour का मानना था कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था इटली को एकजुट करने और उसे एक शक्तिशाली साम्राज्य बनाने में मदद करेगी।
  • उन्होंने 1847 में उदारवादी समाचार पत्र इल रिसोर्गमिंटो (Il Risorgimento) निकाला। जो बाद में एकीकरण आंदोलन की अग्रणी आवाज बन गया था।
  • उन्होंने 1848 में राजा चार्ल्स अल्बर्ट को एक उदार संविधान देने के लिए मनाने में मदद की।
  • उन्होंने 1858 से 1861 के बीच सार्डिनिया के प्रधानमंत्री के रूप में सफलतापूर्वक कार्य किया।
  • उन्होंने आस्ट्रिया के साथ युद्ध जीतने के लिए पीडमोंट-सार्डिनिया और फ्रांस के बीच गठबंधन करने में सफलता प्राप्त की।
  • उन्होंने द्वितीय इतालवी संग्राम का नेतृत्व किया ताकि जिसके कारण 1859 में द्वितीय इतालवी स्वतंत्रता संग्राम हुआ। इस युद्ध में, पीडमोंट-सार्डिनिया और फ्रांस ने ऑस्ट्रिया को हराया, और उत्तरी इतालवी राज्य ऑस्ट्रियाई शासन से मुक्त हो गए।
  • उन्होंने मजेंटा की लड़ाई और सोलफेरिनो की लड़ाई में ऑस्ट्रिया पर जीत के लिए सार्डिनियन सेना का नेतृत्व किया।
  • काउंट कैवोर ने 1861 में इटली साम्राज्य की घोषणा की।
  • काउंट कैवोर एकीकृत इटली साम्राज्य के पहले प्रधानमंत्री थे।

इस बात में कोई संदेह नहीं काउंट कैवोर एक कॉम्पलेक्स और विवादास्पद व्यक्तित्व थे, लेकिन वह एक कुशल राजनीतिक तथा कुशल शासक थे। उन्होंने अपनी कूटनीति और राजनीतिक पैंतरेबाजी के कारण इटली को एकीकृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें आधुनिक इटली के संस्थापकों में एक माना जाता है।


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अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख क्षेत्र

अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख क्षेत्र होते हैं। किसी भी अर्थव्यवस्था को ठीक प्रकार से समझने के लिए उसके तीनों प्रमुख क्षेत्रों को समझना आवश्यक होता है। अर्थव्यवस्था को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है, ये तीन क्षेत्र हैं… प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीयक क्षेत्र और तृतीयक क्षेत्र इन तीनों क्षेत्रों के आधार पर ही अर्थव्यवस्था की संरचना तैयार होती है।

अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख क्षेत्र और उनके नाम

अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख क्षेत्र होते है, जो कि इस प्रकार हैं :·

  • प्राथमिक क्षेत्र
  • द्वितीयक क्षेत्र
  • तृतीयक क्षेत्र

प्राथमिक क्षेत्र

प्राथमिक क्षेत्र वह क्षेत्र होता है, जो प्राकृतिक संसाधनों का सीधे दोहन करता है और उनसे उत्पाद का निर्माण करता है। प्राथमिक क्षेत्र सीधे प्रकृति के संसाधनों को या उनकी सहायता से या तो संपूर्ण उत्पाद का निर्माण करता है अथवा ऐसे कच्चे उत्पाद का निर्माण करता है, जो द्वितीयक या तृतीयय क्षेत्र में में प्रयोग किया जाए। प्राथमिक क्षेत्र में कृषि, वानिकी, मछली उद्योग, पशुपाल उद्योग, कुक्कुट उद्योग, खनन, उत्खनन आदि गतिविधियां शामिल हैं। जैसे प्राथमिक क्षेत्र कृषि में कपास का उत्पादन किया जाता है, यही कपास द्वितीय क्षेत्र में वस्त्र उद्योग के लिए कच्चे माल का कार्य करती है। प्राथमिक क्षेत्र में कृषि कार्य में अनाज, दाल-दलहन, फल-सब्जी का उत्पादन किया जाता है जो कि एक पूर्ण उत्पाद है, और सीधे उपभोग के लिये तैयार है।

द्वितीयक क्षेत्र

द्वितीय क्षेत्र में समस्त उत्पादन संबंधी गतिविधियां शामिल होती हैं। द्वितीयक क्षेत्र विनिर्माण उद्योग, निर्माण उद्योग, उत्पादन उद्योग आदि से संबंधित होता है। विनिर्माण उद्योग की सारी गतिविधियां द्वितीयक क्षेत्र में की जाती है। द्वितीयक क्षेत्र में विनिर्माण, निर्माण, उत्पादन, गैस, जल, बिजली आपूर्ति जैसी गतिविधियां शामिल होती है। विनिर्माण उद्योग में वे गतिविधियां शामिल होती हैं, जिन्हें कारखाना कहा जाता है। कारखाने में कच्चे माल द्वारा एक उत्पाद का निर्माण किया जाता है। ये कच्चा माल प्राथमिक क्षेत्र से ही प्राप्त होता है।

विनिर्माण उद्योग में लघु उद्योग एवं वृहद उद्योग दोनों उद्योग शामिल होते हैं,जैसे कपड़ा उद्योग, चमड़ा उद्योग, मुद्रण उद्योग, लौह इस्पात उद्योग, कुटीर उद्योग, बर्तन उद्योग आदि अनेक उद्योग शामिल हैं। द्वितीयक क्षेत्र की एक अन्य गतिविधि निर्माण उद्योग है। निर्माण उद्योग के अंतर्गत आवासीय तथा गैर आवासीय संरचनाओं का निर्माण किया जाता है। इन संरचनाओं में इमारत, सड़क, पुल, बांध, हवाई अड्डे, बस अड्डे, रेलवे स्टेशन, पार्क आदि संरचनाएं शामिल होती हैं। इस तरह की गतिविधियां अधिकतम शहरी क्षेत्रों में की जाती हैं। द्वितीयक क्षेत्र की अन्य गतिविधियों में गैस उत्पादन, जल उत्पादन, विद्युत उत्पादन आदि गतिविधियां शामिल हैं।

तृतीयक क्षेत्र

तृतीयक क्षेत्र सेवा से संबंधित क्षेत्र होता है। इस क्षेत्र में अधिकतर वे गतिविधियां शामिल होती हैं, जो सेवा कार्य से संबंधित होती हैं। तृतीयक क्षेत्र में कोई भी उत्पादन कार्य नहीं किया जाता। उदाहरण के लिए व्यापार करना, होटल चलाना, रेस्टोरेंट, जलपानगृह, परिवहन संचालन, संचार सेवाएं प्रदान करना, वित्तीय सेवाएं जैसे बैंकिंग बीमा आदि सेवाएं प्रदान करना, लोक प्रशासन तथा अन्य छोटी-मोटी सेवाएं प्रदान करना तृतीयक क्षेत्र की गतिविधियां हैं।


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इसरो (ISRO) के वर्तमान चीफ़ कौन हैं?

अब कहाँ दूसरे के दुःख से दुःखी होने वाले- लेखक ने पाठ में किस बात पर बल दिया है तथा उसके अनुसार धरती पर किस-किस का अधिकार है?

‘अब कहाँ दूसरे के दुःख से दुःखी होने वाले’ पाठ मे लेखक ने इस बात पर बल दिया है, कि संसार के लोग अब बदल गए हैं। अब लोग अधिक स्वार्थी हो गए हैं। अब लोगों को इस धरती पर रह रहे अन्य प्राणियों की चाहे वह मनुष्य हो या अन्य पशु-पक्षी, किसी के दुःख-तकलीफ से कोई चिंता नहीं। पहले लोगों में संवेदनाएं अधिक थी। वह छोटे से छोटे प्राणी का ख्याल रखते थे, चाहे वह मनुष्य हो अथवा कोई पशु पक्षी। लेकिन अब लोगों में संवेदनाएं खत्म हो गई हैं। अब लोग अपने जीवन के भाग दौड़ में ही व्यस्त रहते हैं। दूसरों के विषय में सोचने की उन्हें फुर्सत नहीं है। लेखक के अनुसार पहले के लोग सब लोग मिल जुल कर रहते थे। मनुष्य आपस में तो मिल-जुलकर रहते ही थे, मनुष्यों दूसरे प्राणियों की भी चिंता रहती थी, और वह उन्हें कोई नुकसान नही पहुँचाते थे। लेकिन अब लोग बदल चुके हैं।। बढ़ती जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव पड़ रहा है और लोगों में अधिक से अधिक संसाधनों का दोहन करने की होड़ मची हुई है।

लेखक के अनुसार धरती पर रहने वाले सभी प्राणियों का इस पर समान अधिकार है। किसी भी प्राणी को दूसरे प्राणी से भेदभाव नहीं करना चाहिए। प्रकृति ने सबको समान रूप से रहने का अधिकार प्रदान किया है और प्रकृति अपने सभी तत्वों को भी धरती पर रहने वाले सभी प्राणियों को समान रूप से बांटती है, चाहे वे रोशनी हो, हवा हो या पानी हो। हम मनुष्यों को भी सभी का ध्यान रखना चाहिए तथा प्रकृति के नियमों का पालन करना चाहिए।

संदर्भ पाठ
‘अब कहाँ दूसरों के दुख दुखी होने वाले’ लेखक- निदा फाज़ली

 

 

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अपने विद्यालय की वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति के लिए विद्यालय प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए।।

औपचारिक पत्र

विद्यालय की वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र

 

दिनांक : 12 जनवरी 2024

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य महोदय,
महावीर विद्यालय,
राजनगर, उत्तम प्रदेश

विषय : वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए अनुमति की प्रार्थना

 

आदरणीय प्रधानाचार्य सर,
मेरा नाम रोहित अवस्थी है। मैं कक्षा 10-ब का छात्र हूँ। आगामी 26 जनवरी को हमारे विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। उन्हीं कार्यक्रमों में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जा रहा है। मैं इस वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता हूँ। इसलिए मुझे वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति प्रदान करें और मेरा नाम विद्यालय कार्यालय में वाद-विवाद प्रतियोगिता में दर्ज करने करवाएं।

मैंने पिछले वर्ष भी वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लिया था और द्वितीय पुरस्कार जीता था। मैं इस वर्ष भी वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेकर और अच्छा प्रदर्शन करने का प्रयत्न करूंगा।
आशा है, आप मुझे वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति प्रदान करेंगे। आपकी अति कृपा होगी।

धन्यवाद,

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
रोहित अवस्थी,
कक्षा – 10-ब
अनुक्रमांक – 35
महावीर विद्यालय, राजनगर (उत्तम प्रदेश)


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अख़बार के जिन शौकीनों की ओर लेखक ने संकेत किया है, क्या वे सच्चे शौकीन कहे जा सकते हैं?

अख़बार के जिन शौकीनों की ओर लेखक ने संकेत किया है, वो अख़बार के सच्चे शौकीन नही कहे जा सकते क्योंकि वे अखबार में छपी खबरों को मनोरंजन की दृष्टि से पढ़ते हैं। वह अखबार की खबरों के बारे में गहराई से नहीं सोचते। ऐसे लोग केवल मनोरंजन की दृष्टि से अखबार की खबरों को पढ़ते हैं और खबरों को भूल जाते हैं। उन खबरों का उनके मन पर कोई असर नहीं होता।

का मानना है ऐसे लोग अखबार के सच्चे शौकीन नहीं कहे जा सकते। लेखक के अनुसार वे लोग अखबार के सच्चे शौकीन होते हैं, जो अखबार में छपी खबरों को अपने देश-दुनिया को समझने तथा अपने ज्ञान को बढ़ाने के माध्यम के रूप में पढ़ते हैं। ये लोग अख़बार की ख़बरों के माध्यम से देश-दुनिया को समझने की कोशिश करते हैं। अपने ज्ञान को परिमार्जित करते हैं। ख़बरों तथा अख़बार के अन्य सामग्री को पढ़कर अपनी समझ को विकसित करते हैं। ऐसे लोगों के मन पर अख़बार की ख़बरों का असर होता है। वह अपने मन और समझ को विकसित करते हैं, इससे उनके अंदर एक जागरूक एवं बुद्धिजीवी नागरिक विकसित होता है।

अखबार में छपी खबरों को आत्मसात करने वाले ही अखबार के सच्चे शौकीन हैं। लेखक का यही मानना है।


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अँखियाँ हरि दरसन की भूखी। कैसे रहैं रूपरसराची, ये बतियाँ सुनी रू।। अवधि गनत इकटक मग जोवत, तब एती नहिं झूखी। अब इन जोग सँदेसन ऊधो, अति अकुलानी दूखी।। ‘बारक वह मुख फेरि दिखाओ, दुहि पय पिवत पतूखी। सूर सिकत हुठि नाव चलायो, ये सरिता है सूखी।। भावार्थ बताएं।

अँखियाँ हरि दरसन की भूखी।
कैसे रहैं रूपरसराची, ये बतियाँ सुनी रू।।
अवधि गनत इकटक मग जोवत, तब एती नहिं झूखी।
अब इन जोग सँदेसन ऊधो, अति अकुलानी दूखी।।
‘बारक वह मुख फेरि दिखाओ, दुहि पय पिवत पतूखी।
सूर सिकत हुठि नाव चलायो, ये सरिता है सूखी।।

संदर्भ : यह पंक्तियां सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ नामक ग्रंथ के ‘भ्रमरगीत’ प्रसंग से ली गई है। इन पंक्तियों में उस प्रसंग का वर्णन है, जब उद्धव और गोपियों के बीच संवाद स्थापित हो रहा है। उद्धव गोपियों को योग को अपनाने की शिक्षा दे रहे हैं, जबकि गोपियां श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम के विरह में पागल हैं और वह उन्हें उद्धव की ज्ञान भरी बातें जरा भी पसंद नहीं आ रही।

भावार्थ : श्रीकृष्ण द्वारा भेजे गए योग-साधना अपनाने के संदेश को उद्धव के मुख से बार-बार सुनने पर गोपियां उन्हें ताने मारते हुए कहती हैं कि एकदम आप अभी तक हमारी बात को समझ क्यों नहीं पा रहे। आपके इस योग के ज्ञान की हमें आवश्यकता नहीं है। हमारी आँखें तो केवल अपने प्रिय आराध्य श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए ही पीड़ित हैं। आपके योगशास्त्र की नीरस बातो से हम पर कुछ असर नहीं होने वाला। आपके इन योग एवं ज्ञान के उपदेशों से हमारी समस्या का हल नहीं होने वाला। जो आँखें श्रीकृष्ण के अद्भुत सौंदर्य के रस में डूबी रहती थीं, वह आँखें इन नीरस योग उपदेशों के सुनकर कैसे संतुष्ट हो सकती है। हमें तो केवल श्रीकृष्ण के मथुरा लौटने की प्रतीक्षा थी। हम केवल उनकी राह में ही अपनी पलके बिछाए बैठे उनके वापस आने की प्रतीक्षा कर रहे थे।

हमारी आँखें उनकी राह देखते-देखते भी इतनी नहीं थकी थीं जितनी आपके इन योग संदेशों को देखकर हमारी आँखें व्याकुल हो उठी हैं। आप अपने योग एवं ज्ञान के संदेशों को हमें मत सुनाइए। हमारी आपसे केवल इतनी विनती है कि आप हमें केवल हमारे प्रिय श्रीकृष्ण के दर्शन करा दीजिए। हमें उन पलों के दर्शन करा दीजिए जब वह वन में पत्तों के पात्र में गायों का दूध दुहकर पीते थे। आप हठ मत करो, हम तो सूखी नदियो के समान हैं। जिस तरह सूखी नदियों में बालू में नाव नही चलाई जा सकती उसी प्रकार आपकी ये योग-ज्ञान की बातें हम पर कोई असर नही करने वाली हैं। श्रीकृष्ण के प्रेम रस मे डूबी हम गोपियों को भला योग-ज्ञान की इन बातो के क्या मतलब?


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‘हे शरणदायिनी देवी ! तू करती सबका त्राण है’ -यहाँ ‘शरणदायिनी देवी’ कौन है?

‘हे शरणदायिनी देवी ! तू करती सबका त्राण है’ इन पंक्तियों में शरण दायिनी मातृभूमि है। वह मातृभूमि जहाँ पर मनुष्य जन्म लेता है, जिसकी गोद में खेल कर पलता-बढ़ता है। वह मातृभूमि उसके लिए शरण देती है। पृथ्वी के सभी प्राणी अपनी मातृभूमि में ही शरण लेते हैं। उस मातृभूमि को अपना आवास बनाते हैं, उस मातृभूमि की गोद में खेल कर पलते हैं, बढ़ते हैं और अपना जीवन बिताते हैं। इस तरह मातृभूमि के लिए एक शरणस्थली यानि शरणदायिनी के समान है। कवि ने मातृभूमि को ही शरणदायिनी कहा है।

टिप्पणी

‘मातृभूमि’ नामक कविता जो कि राष्ट्रकवि ‘मैथिलीशरण गुप्त’ द्वारा रची गई है। इस कविता के माध्यम से कवि गुप्तजी ने मातृभूमि के महत्व को प्रकट किया है। उन्होंने मातृभूमि की महिमा मंडन करते हुए यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि हर मनुष्य के जीवन में उसके लिए उसकी मातृभूमि बेहद महत्वपूर्ण है और अपनी मातृभूमि के प्रति आदर एवं सम्मान की भावना हर मनुष्य के मन में होनी चाहिए। कवि इन पंक्तियों में कहते हैं कि…

हे शरणदायिनी देवि, तू करती सब का त्राण है।
हे मातृभूमि! सन्तान हम, तू जननी, तू प्राण है॥

अर्थात कवि मैथिली शरण गुप्त कहते हैं कि हे मातृभूमि! आप हमारी शरणस्थली हो। आप अपनी गोद में हमें शरण देती हो। आप की शरण में ही हम पृथ्वी पर आते हैं। हम आपके आंचल की छाया में ही पलते हैं, बढ़ते हैं और अपना जीवन बताते हैं। आप हमारी माँ हो। हम तो आपकी संतान के समान है। आप हमारे लिए प्राण हो, हमारा सर्वस्व हो, आप के प्रति हमारा श्रद्धा से नमन है।


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औरै भाँति कुंजन में गुंजरत भीर भौर, औरे डौर झौरन पैं बौरन के हूवै गए। कहै पद्माकर सु औरै भाँति गलियानि, छलिया छबीले छैल औरै छबि छ्वै गए। औँर भाँति बिहग-समाज में आवाज़ होति, ऐसे रितुराज के न आज दिन द्वै गए। औरै रस औरै रीति औरै राग औरै रंग, औरै तन औरै मन औरै बन ह्वै गए। इस पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।

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औरै भाँति कुंजन में गुंजरत भीर भौर,
औरे डौर झौरन पैं बौरन के हूवै गए।
कहै पद्माकर सु औरै भाँति गलियानि,
छलिया छबीले छैल औरै छबि छ्वै गए।
औँर भाँति बिहगसमाज में आवाज़ होति,
ऐसे रितुराज के  आज दिन द्वै गए।
औरै रस औरै रीति औरै राग औरै रंग,
औरै तन औरै मन औरै बन ह्वै गए॥

संदर्भ : यह पद्यांश सुप्रसिद्ध कवि रत्नाकर द्वारा रचित ‘जगद्विनोद’ नामक ग्रंथ से उद्धृत किया गया है। इस पद्यांश के माध्यम से कवि ने वसंत ऋतु की सुंदरता का शब्द चित्र प्रस्तुत किया है।

भावार्थ : कवि रत्नाकर कहते हैं कि वसंत ऋतु में वृक्षों के झुंड में भंवरों की भीड़ द्वारा की जाने वाली गुंजन अब बिल्कुल अलग ही प्रकार की है। इस गुंजन में अब अधिक मस्ती है। इसका मुख्य कारण वसंत ऋतु है। आम के वृक्षों पर जो बौरों के गुच्छे लगते हैं, उनका आकार भी अब पहले जैसा नहीं रहा। वह वृक्ष अधिक सुगंधित और बड़े हैं।

कवि कहते हैं कि अब तो नगर-कस्बों की गालियां भी बिल्कुल बदल गई हैं और इन गलियों में घूमने वाले छैल छबीले नायक भी पहले जैसे नहीं रहे। अब उनके रंग-रूप में भी बदलाव आ गया है। पक्षियों का समूह भी अब पहले जैसे नहीं रहा। अब वह अलग प्रकार की मनमोहक आवाज निकाल रहे हैं। सभी लोगों में आए इस परिवर्तन का मुख्य कारण वसंत ऋतु है।

कवि कहते हैं कि अभी वसंत को आए हुए दो दिन भी नहीं हुए हैं और केवल दो दिन के अंदर ही सभी लोगों में इस तरह के परिवर्तन आ गए हैं। चारों तरफ राग-रंग का वातावरण फैल गया है। सभी प्राणियों में शारीरिक स्फूर्ति आ गई है और उनका मन उत्साह से भर उठा है। क्या संजीव और क्या निर्जीव सभी पदार्थों में एक अलग प्रकार का ही चमत्कारी परिवर्तन आ गया है। वसंत ऋतु का प्रभाव ही अलग दिखाई पड़ रहा है।


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रस के प्रयोगनि के सुखद सु जोगनि के, जेते उपचार चारु मंजु सुखदाई हैं । तिनके चलावन की चरचा चलावै कौन, देत ना सुदर्शन हूँ यौं सुधि सिराई हैं ॥ करत उपाय ना सुभाय लखि नारिनि को, भाय क्यौं अनारिनि कौ भरत कन्हाई हैं । ह्याँ तौ विषमज्वर-वियोग की चढ़ाई भई, पाती कौन रोग की पठावत दवाई है।। अर्थ स्पष्ट कीजिए

‘समाज में हो रहे अपराधों के पीछे लोभ-वृत्ति भी एक कारण है।’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

विचार/अभिमत

समाज में हो रहे अपराधों के पीछे लोभ-वृत्ति भी एक कारण है

 

समाज में हो रहे अपराधों के पीछे लोभ-वृत्ति भी एक मुख्य कारण है, इस बात में कोई भी संदेह नहीं है। हर अपराध के पीछे लोग वृत्ति ही छुपी हुई है। मनुष्य की लोभ वृत्ति ही उसे अपराध करने के लिए प्रेरित करती है। बिना लोभ के कोई भी अपराध नहीं करता। अधिकतर अपराध संज्ञान यानि जानकारी में किए जाते हैं और संज्ञान में किए गए अपराध लोभ वृत्ति के कार्य किए जाते हैं।

किसी को धन को पाने के लोभ होता है, किसी को सम्पत्ति पाने का लोभ होता है, किसी को पद पद या यश पाने का लोभ होता है, किसी को अन्य मनुष्य को पाने का लोभ होता है, जो कि प्रेमी या प्रेमिका के रूप में हो सकता है। हर अपराध के पीछे कोई न कोई लोभ ही छुपा होता है। कभी-कभी कोई अपराध अनजाने में किया जा सकता है और उसके पीछे शायद कोई लोभ वृत्ति नहीं होती हो, लेकिन अधिकतर अपराधों के पीछे लोभ वृत्ति ही मुख्य कारण होती है।

आज के समाज में मनुष्य पैसो के पीछे अंधाधुंध भाग रहा है। वह जीवन में विलासिता के हर साधन को एकत्रित कर लेना चाहता है। विलासिता और सुख की हर वस्तु को एकत्रित करने के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है। सुख भरा जीवन जीने के लिए अथाह धन की आवश्यकता पड़ती है।

जिन मनुष्यों के पास धन नहीं होता और उन्हें वैध तरीके से धन कमाने का अवसर नहीं मिलता, या वह वैध तरीके से उतना धन नही कमा पाते जो उन्हें भोग-विलास के जीवन के लिए आवश्यक है, तो वे अपराध की ओर मुड़ जाते हैं। क्योंकि उन्हें जीवन में सुख-सुविधा चाहिए इसलिए उनके अंदर धन कमाने का नशा सवार हो जाता है। उनको धन के अलावा कुछ नहीं दिखता, इसके लिए उन्हें अपराध करना पड़े, वह उसके लिए भी तत्पर रहते हैं। मनुष्य का लोभ-लालच उसे अपराध करने की और धकेलता है, इसलिए समाज में बढ़ रहे अपराधों में लोग-वृत्ति भी एक बड़ा कारण होने के साथ-साथ सबसे प्रमुख कारण भी है।


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‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि अभिभावकों को बच्चों की पढ़ाई में रुचि क्यों नहीं थी? पढ़ाई को व्यर्थ समझने में उनके क्या तर्क थे?

‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर कहें तो अभिभावकों को बच्चों की पढ़ाई में रुचि इसलिए नहीं थी क्योंकि उस समय के समाज में पढ़ाई के प्रति इतनी जागरुकता नहीं थी।

लेखक के गाँव में आसपास के जितने भी परिवार थे, वह परिवार छोटा मोटा व्यवसाय करने वाले मध्यमवर्गीय लोग थे। ये लोग आढ़तिये, किराने की दुकान, खेती अथवा अन्य कोई छोटा-मोटा व्यवसाय करते थे। वह लोग पीढ़ी दर पीढ़ी आधार पर अपने व्यवसाय करते थे और अपने बच्चों को भी अपने व्यवसाय में ही लगाना चाहते थे। अपनी इसी मनोवृति के आधार पर अभिभावकों की अपने बच्चों की पढ़ाई में रुचि नहीं थी। क्योंकि उनका मानना था कि बच्चों को पढ़ाई के लिए विद्यालय भेजना बेहद आवश्यक नहीं है।

उनका मानना था कि बच्चे केवल हिसाब किताब करना और बहीखातों को जांचना-परखना सीख जाएं इतनी ही पढ़ाई पर्याप्त हैय़ बच्चों को बहुत अधिक पढ़ा-लिखा पर कोई लाभ नहीं क्योंकि अंत में तो बच्चों को उनके व्यवसाय में ही लगना है, उनकी दुकान पर ही बैठना है या उनका व्यापार आदि ही संभालना है अथवा कृषि कार्य करना है।

इसी कारण अभिभावकों की अपने बच्चों की पढ़ाई में बहुत अधिक रुचि नहीं थी। वह पढ़ाई का खर्चा उठाने कोई जरूरी नहीं समझते थे, और इसे फिजूलखर्ती मानते थे। इसी सोच के कारण लेखक के गाँव में उसके आसपास के परिवार वाले अपने बच्चों को विद्यालय नहीं भेजते थे।

‘सपनों के से दिन’ पाठ लेखक ‘गुरुदयाल सिंह’ द्वारा लिखा गया एक संस्मरणात्मक निबंध है, जिसमें उन्होंने अपने बचपन के दिनों के प्रसंगों का वर्णन किया है।


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समाचार पत्रों का महत्व (निबंध)

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समाचार पत्रों का महत्व

 

समाचार पत्रों का महत्व

समाचार पत्रों का महत्व आज किसी से छिपा नही है। पत्राकारिता का लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है और समाचार पत्र उसी का एक सबसे मजबूत आधार है। समाचा पत्र समाज में क्रांति लाने का कार्य करते हैं, ये बात भारत की स्वाधीनता संग्राम के समय से सिद्ध हो चुकी है।

भूमिका

मनुष्य एक चेतनशील एवं बुद्धिजीवी प्राणी है । अपने आस-पास , मित्रों , सगे-संबंधियों एवं देश-विदेश में होने वाली घटनाओं के बारे में विस्तार से जानने के लिए स्वयं लालायित रहता है । बात करें तो,  दूरदर्शन एवं रेडियो के माध्यम से भी वह देश-विदेश के सभी प्रकार के समाचारों से अपनी उत्सुकता शांत कर सकता है परंतु समाचारों को बारीकी एवं विस्तृत रूप केवल समाचार-पत्र ही दे सकते हैं । समाचार पत्र समाचार जानने का एक सर्वसुलभ एवं सस्ता साधन है । यही कारण है कि प्रातः उठते ही जब तक समाचार पत्र पर एक दृष्टि ना डाली जाए तब तक मन शांत ही नहीं होता ।

आरंभ

समाचार पत्र का प्रारंभ सातवीं शताब्दी में चीन में हुआ था । इसका नाम ‘पैकिंग गजट’ तथा  भारतवर्ष में सर्वप्रथम 20 जनवरी सन् 1780 ई. को ‘बंगाल गजट’ के नाम से समाचार पत्र प्रकाशित किया गया था । आज भारत – वर्ष में प्रत्येक भाषा में प्रकाशित समाचार पत्र उपलब्ध है । समाचार पत्र आज समूचे विश्व में लोकप्रिय है । यद्यपि अन्य आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से भी समाचार  पत्र प्राप्त किए जा सकते है, परंतु समाचार पत्र का स्थान कोई नहीं ले सकता । इसलिए इसका प्रकाशन दिन-प्रतिदिन फैलता जा रहा है ।

समाचार पत्र के प्रकार

समाचार अपने विषय के अनुरूप विभिन्न प्रकार के दिखाई पड़ते हैं – दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक तथा अर्द्धवार्षिक आदि । आजकल कुछ समाचार – पत्र संध्याकाल में भी प्रकाशित होने लगे हैं । भारत वर्ष में दैनिक प्रकाशित होने वाले समाचार – पत्रों में प्रत्येक भाषा में नव भारत टाइम्स, हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, जनसत्ता, दैनिक भास्कर, वीर अर्जुन, मिलाप , पंजाब केसरी तथा दैनिक ट्रिब्यून आदि चपटे हैं । दैनिक समाचार – पत्र सामान्य जनता में अधिक लोकप्रिय है ।

सामग्री

समाचार  पत्रों में विभिन्न प्रकार की सामग्री उपलब्ध होती है । देश – विदेश के मुख्य समाचारों को समाचार  पत्र के मुख्य – पृष्ठ पर छापा जाता है । समाचार पत्रों में व्यापारिक वस्तुओं के मूल्यों, राजनीतिक घात – प्रतिघात, वैज्ञानिक आविष्कारों, खेल-कूद के निर्णयों को भी विशेष स्थान दिया जाता है । समाचार पत्रों का संकलन दिन-रात चलता रहता है। बड़े-बड़े समाचार  पत्रों के संवादता देश-विदेश में नियुक्त होते हैं। कम्पोजीटरों से लेकर संपादकों तक का काम बंटा रहता है।

लाभ

समाचार पत्रों के अनेक लाभ हैं । आज के युग में इनकी उपयोगिता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है । जीवन के विभिन्न दृष्टि कोणों, विचारधाराओं का सार इनमें हमें प्रतिदिन पढ़ने को मिलता है । समाचार  पत्र जन साधारण में राष्ट्रीय जागरण तथा सामाजिक चेतना उत्पन्न करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । आज विश्व में अधिकांश देशों में प्रजातान्त्रिक सरकारें हैं । समाचार पत्र एक ओर सरकार के दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हैं तो दूसरे ओर जन भावनाओं को व्यक्त करते हैं | इन्हीं के द्वारा जनता के विचार सरकार तक पहुंचते हैं तथा सरकारी नीतियाँ जनता तक पहुँचती है ।

मानसिक विकास

समाचार–पत्रों से पाठकों का मानसिक विकास होता है । उनकी जिज्ञासा शांत होती है तथा ज्ञान में वृद्धि होती है । व्यापारियों के लिए समाचार – पत्र विशेष रूप से लाभदायक है । वह विज्ञापन द्वारा वस्तुओं की बिक्री में वृद्धि कर सकते हैं । समाचार – पत्रों में रिक्त स्थानों की सूचना , सिनेमा जगत के समाचार , खोया – पाया , वैवाहिक विज्ञापनों का विशेष स्थान है । क्रीडा जगत की उपलब्धियों , परीक्षाओं के परिणाम, वस्तुओं के भाव आदि भी समाचार – पत्रों द्वारा अर्जित किए जा सकते हैं । कुछ समाचार – पत्र अपने विशेषांक निकलते हैं जो अत्यंत महत्वपूर्ण और आवश्यक होते हैं ।

समाज में परिवर्तन

समाचार पत्र जनमत तैयार करने का आसान साधन है । इसमें प्रकाशित समाचार अग्रलेख, संपादकीय टिप्पणियाँ जनता की विचार धारा को मोड़ने एवं उनके दृष्टिकोण को बदलने में प्रमुख भूमिका अदा करते हैं । सामाजिक बुराइयों, धार्मिक प्रपंचों की पोल खोलने, कुरीतियों एवं कुप्रथाओं के बचाव में समाचार – पत्रों का महत्वपूर्ण योगदान है । वर्तमान युग में निवेदित लेखकों , कवि कवयित्रियों को प्रकाशन में लाने का श्रेय भी समाचार पत्रों को ही जाता है । अनेक लेखों के माध्यम से कोई विशेष लेखक जनता का चहेता बन बैठता है । इसके अतिरिक्त समाचार  पत्र लाखों व्यक्तियों को रोजगार देता है ।

मनोरंजन

समाचार पत्रों से मनोरंजन भी होता है । आज शायद ही कोई समाचार पत्र होगा जिसमें प्रतिदिन कविताएं, चुटकुले, संस्मरण, कार्टून या प्रतियोगिताएं न छपती हो | छोटे तथा बड़े सभी इन स्तंभों को पढ़कर मनोरंजन करते है तथा अपने ज्ञान में वृद्धि करते हैं । अतः वर्तमान युग में समाचार – पत्र की अत्यंत उपयोगिता है ।

उपसंहार

समाचार पत्र हम सभी के जीवन में बहुत महत्व रखते है । समाचार पत्रों के सहारे हम दुनिया की खबरों से जुड़े रहते है । समाचार पत्र हमें देश-विदेश से जोड़ कर रखते है । हमें समाचार पत्र क महत्व को समझना चाहिए । समाचार पत्र हमें खबरों के साथ हमारे ज्ञान को बढ़ाता है। हमारी भाषा को सुधरता है । समाचार पत्र पढ़ने से शब्दकोश का ज्ञान होता है । हम सब के जीवन समाचार पत्रों का बहुत महत्व है।


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प्रकृति का महत्व

 

प्रकृति ईश्वर का बहुत ही खूबसूरत और अनमोल तोहफ़ा है। जो कुछ भी हमारे चारों और है, जिसे हम देख या महसूस कर सकते हैं, वह प्रकृति है, जैसे पेड़ पौधे, हवा, पानी, जमीन, आकाश, आग, बारिश, पशु पक्षी, जीव जंतु आदि। प्रकृति का अस्तित्व मानव जीवन के अस्तित्व से भी प्राचीन है। प्रकृति है तो हम हैं, अर्थात प्रकृति ही है जो पृथ्वी पर जीवन को संभव बनाती है।

प्रकृति का पारिस्थितिक तंत्र पृथ्वी पर जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पारिस्थितिक तंत्र के दो घटक हैं, पहला जैविक घटक और दूसरा भौतिक या अजैविक घटक। जैविक घटक में सभी जीवित प्राणी जैसे कि मानव, पेड़-पौधे, जीव जंतु, पशु पक्षी आदि शामिल हैं, जबकि अजैविक घटक में जलवायु, तापमान, आर्द्रता, बारिश, चट्टानें आदि शामिल हैं।

पारिस्थितिक तंत्र के सभी कारक एक दूसरे पर निर्भर करते हैं, और जीवन पारिस्थितिक तंत्र पर निर्भर करता है। प्रकृति के सभी रूप मानव जीवन के लिए आवश्यक हैं, जैसे जो पानी हम पीते हैं, जिस हवा में हम सांस लेते हैं, सूरज की रोशनी जो हमारे लिए तापमान संतुलित करती है, और जो फल और भोजन हम खाते हैं, मिट्टी और जमीन जो हमें आश्रय प्रदान करती है। सभी अन्य कारक जैसे फल-फूल चहचहाते पक्षी, चांद तारे, सूरज चांद की चांदनी, बदलते मौसम यह सब हमारे पर्यावरण को और भी सुंदर और रहने योग्य बनाते हैं।

प्रकृति पृथ्वी पर जीवन के लिए एक सुरक्षात्मक कवच प्रदान करती है, और मानव को हर नुकसान से बचाती है। मानव जीवन की हर जरूरत को पूरा करके मानव को पोषित करती है। इसलिए प्रकृति को “प्रकृति माँ” भी कहते हैं, क्योंकि प्रकृति एक माँ की तरह ही मानव की देखभाल करके उसकी सभी आवश्यकताओं को पूरा करती है।

प्रकृति को शिक्षा का भी एक बहुत अच्छा स्रोत माना गया है। प्रकृति मनुष्य को बहुत कुछ सिखाती है। प्रकृति समय के साथ बदलती रहती है, जैसे बदलती ऋतुएं बदलती प्रकृति का हिस्सा हैं। बदलती ऋतुएँ हमें परिस्थितियों के हिसाब से बदलना सिखाती हैं, पेड़ हमें नम्रता सिखाते हैं, फूल हमें हर मुसीबत में मुसकुराना सिखाते हैं, और पहाड़ हमें मजबूती सिखाते हैं।

प्रकृति कई वर्षों से कवियों लेखकों चित्रकारों और कलाकारों आदि के लिए प्रेरणा का स्त्रोत रही है। इसके अलावा प्रकृति में कई औपचारिक गुण भी शामिल है यह कई गंभीर रोगों से पीड़ित लोगों को ठीक करने में सहायता करती हैं। प्रकृति मानसिक तनाव को भी कम करती हैं। अस्पताल में पड़े मरीज भी प्रकृति की गोद में जल्दी ही ठीक हो जाते हैं प्रकृति मानव के तन मन को तरोताजा करती हैं, इसलिए प्रकृति को प्राकृतिक चिकित्सक भी कहा गया है।

प्रकृति की गोद में समय बिताने से मानव स्वस्थ और लंबा जीवन व्यतीत कर सकता है। प्रकृति बहुत ही शक्तिशाली है अगर यह मानव की रक्षा कर सकती हैं तो मानव के जीवन को पल भर में नष्ट करने की क्षमता भी रखती है। हमें प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ हमें बुरे परिणाम दे सकती हैं, जैसे कि भूकंप, बाढ़, सुनामी, सूखा आदि। प्रकृति हमारे जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। प्रकृति के एक भी कारक में खराबी से पूरा का पूरा जीवन प्रभावित हो सकता है इसलिए प्रकृति के संरक्षण की आवश्यकता को हमें समझना चाहिए। प्रकृति के ऊर्जा के स्त्रोत अनंत नहीं है। हम उन्हें निरंतर और लापरवाही से उपयोग करके नष्ट करते जा रहे हैं।

औद्योगीकरण और शहरीकरण से ग्लोबल वार्मिंग और ग्रीन हाउस प्रभाव में तेजी से वृद्धि हो रही है। जिससे हमारा वातावरण बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। पेड़ों को काटने और बढ़ते परिवहन से प्रदूषण तेजी से फैल रहा है। फैक्टरियों आदि से निकलने वाला कचरा, धुआं और अन्य हानिकारक पदार्थ धरती पर जीवन के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं अतः कई बड़ी बीमारियों का कारण बन रहे हैं। अगर हम अपनी आने वाली पीढ़ी को विरासत में सुंदर और स्वस्थ वातावरण देना चाहते हैं, तो आज हमें प्रकृति के संरक्षण के महत्व को समझना होगा। हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाकर, पर्यावरण को हरा-भरा तथा साफ सुथरा रखना चाहिए। पॉलीथिन प्लास्टिक आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।


मिठाई वाले का स्वर रोहिणी के लिए परिचित क्यों था?

मिठाई वाले का स्वर रोहिणी के लिए परिचित स्वर इसलिए था, क्योंकि मिठाईवाला इससे पहले भी खिलौना वाला बनकर और मुरली वाला बनकर खिलौने और मुरली बेचने आ चुका था।

मिठाई वाले का स्वर हमेशा मीठा होता था यानि वह बड़ी मीठी आवाज लगाकर अपना सामाना बेचता था। इसीलिए जब रोहिणी को मिठाई वाले का मीठा स्वर सुनाई दिया तो उसे वह स्वर परिचित लगा। रोहिणी ने अपने मकान की छत से खड़े होकर देखा तो कि मिठाई वाला मीठे स्वर में मिठाई बेचने की आवाज लगा रहा है। रोहिणी को लगा कि उसने यह आवाज पहले कही सुनी है। उसे यह स्वर जाना पहचाना लगा। फिर जब रोहिणी की बात मिठाई वाले से हुई तो रोहिणी का अनुमान सच निकला। रोहिणी द्वारा पूछने पर मिठाई वाले ने कहा, कि हाँ वह इससे पहले खिलौने और मुरली बेचने आया था। इसीलिए मिठाई वाले का स्वर रोहिणी को परिचित लगा।

संदर्भ पाठ :
पाठ – मिठाई वाला, कक्षा-7 पाठ-3


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स्कूल में आप क्या-क्या करते हैं ? सोचकर लिखिए।

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स्कूल में हम सब कार्य करते हैं, जो करने के लिए हम स्कूल जाते हैं और जिस कार्य के लिए स्कूल बना है। हमें पता है कि स्कूल शिक्षा का केंद्र है। हमें स्कूल में शिक्षा प्राप्त होती है, जब हम स्कूल जाते हैं तो हम सबसे पहले अपने सभी अध्यापकों से नमस्ते करते हैं और फिर सभी साथी छात्रों से मिलते हैं। उसके बाद स्कूल में हम यह कार्य करते हैं।

  • यदि अध्यापक हमें कोई विषय पढ़ा रहे हैं और हमें कुछ समझ नहीं आ रहा है तो हम अध्यापक से प्रश्न पूछते हैं।
  • अध्यापक जो हमें पढ़ा रहे हैं, हम उसे गहराई से समझते हैं ताकि हम उसे याद रखें।
  • स्कूल में हमारी जिज्ञासाओं का समाधान होता है, हमें नई बातें सीखने को मिलती है।
  • हम स्कूल में हम खेलते कूदते भी हैं। अलग-अलग खेलों में भाग लेते हैं ताकि हमारी शारीरिक फिटनेस भी बनी रहेय़
  • स्कूल हमारे लिए हमारे मन और तन दोनों को समृद्ध करने का माध्यम बनता है। स्कूल में शिक्षा द्वारा हमारे मन को ज्ञान प्राप्त होता है और व्यायाम तथा और खेल-कूद द्वारा शारीरिक शिक्षा के रूप में हमारे स्वास्थ्य प्राप्त होता है।

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विचार/अभिमत

स्वार्थ के लिए सब प्रीति करते हैं

 

इस विचार से सहमत हुआ जा सकता है कि स्वार्थ के लिए ही सब प्रीति करते हैं। इस संसार में सब स्वार्थ की डोर से ही जुड़े हुए हैं। हर प्राणी का कोई ना कोई स्वार्थ ही है। प्रीति यानी प्रेम की भावना के पीछे भी स्वार्थ ही होता है। लेकिन हर किसी का प्रेम केवल स्वार्थ पर ही आधारित हो यह भी आवश्यक नहीं। माता-पिता का अपने संतान के प्रति प्रेम केवल स्वार्थ पर नहीं होता।

अक्सर हमें सुनने में आता है कि फलां व्यक्ति के बेटे बुढ़ापे में उनका साथ नहीं दे रहे। फलां दंपत्ति को अपने घर से दर-दर भटकना पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण संतानों का एकदम स्वार्थी हो जाना होता है। लेकिन वही माता-पिता अपनी संतान का कभी बुरा नहीं सोचते। संतान भले कितनी भी स्वार्थी हो जाए, लेकिन माता-पिता कभी स्वार्थी नहीं होते। संतान कितना भी उनके साथ खराब व्यवहार करें लेकिन माता पिता अपनी संतान के लिए अहित कभी नहीं सोचते। यह उनका निस्वार्थ प्रेम है।

इस संसार में बहुत से प्रेम इसने वाले संबंध ऐसे हैं, जो किसी न किसी स्वार्थ बस एक दूसरे से जुड़े होते हैं, लेकिन हर किसी का प्रेम स्वार्थ पर आधारित हो ऐसा आवश्यक नहीं होता। निस्वार्थ प्रेम बहुत कम संख्या में भले ही पाए जाते हैं, लेकिन निस्वार्थ प्रीति भी होती है। इस कथन से आंशिक रूप से अवश्य सहमत हुआ जा सकता है कि स्वार्थ के लिए ही अधिकतर लोग प्रीति करते हैं।


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रस के प्रयोगनि के सुखद सु जोगनि के, जेते उपचार चारु मंजु सुखदाई हैं । तिनके चलावन की चरचा चलावै कौन, देत ना सुदर्शन हूँ यौं सुधि सिराई हैं ॥ करत उपाय ना सुभाय लखि नारिनि को, भाय क्यौं अनारिनि कौ भरत कन्हाई हैं । ह्याँ तौ विषमज्वर-वियोग की चढ़ाई भई, पाती कौन रोग की पठावत दवाई है।। अर्थ स्पष्ट कीजिए

रस के प्रयोगनि के सुखद सु जोगनि के, जेते उपचार चारु मंजु सुखदाई हैं ।
तिनके चलावन की चरचा चलावै कौन, देत ना सुदर्शन हूँ यौं सुधि सिराई हैं ॥
करत उपाय ना सुभाय लखि नारिनि को, भाय क्यौं अनारिनि कौ भरत कन्हाई हैं ।
ह्याँ तौ विषमज्वर-वियोग की चढ़ाई भई, पाती कौन रोग की पठावत दवाई है।।

संदर्भ : यह पद कवि ‘जगन्नाथ दास रत्नाकर’ द्वारा रचित पद है, जो उनके ‘उद्धव शतक’ नामक पद संग्रह से लिए गए हैं। इन पदों के माध्यम से कवि प्रेम के विषय में और प्रेम मार्ग में आने वाली कठिनाईयों के विषय में अपने मन के विचार प्रस्तुत किए हैं।

अर्थ : कवि कहते हैं कि प्रेम के सुखद पलों के अनुभवों की अनुभूति करने के लिए अनेक तरह के सुंदर और सुखद उपचार होते हैं। यह सुखद उपचार प्रेमी प्रेमिका के मन को प्रसन्न करते हैं। लेकिन इन सुखद उपचारों को अपनाया कैसे जाए, उन्हें निभाया कैसे जाए, इसकी चर्चा कौन करेगा। कवि को स्वयं इन उपचारों का ज्ञान नही है।

कवि कहते हैं कि प्रेमी और प्रेमिका के मन की स्थिति बड़े ही विकट होती है। उनके मन की मनोस्थिति को समझना बेहद कठिन कार्य है। इसीलिए प्रेमी प्रेमिका के प्रेम विह्वल मन की शांति के लिए उपयुक्त उपचार ढूंढना बेहद कठिन कार्य है। कवि यह भी कहते हैं कि प्रेमी प्रेमिका एक-दूसरे से बेहद प्रेम करते हैं और इसी प्रेम के कारण उन्हें अपने प्रेम मार्ग में अनेक तरह के कष्ट एवं कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उनके इन कष्टों और कठिनाइयों को दूर करने का भी कोई उपचार नहीं है।

इस तरह कवि प्रेम के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों और कष्टों के प्रति अपनी व्यथा व्यक्त कर रहे हैं। कवि के अनुसार प्रेम में वियोग किसी ज्वर के समान है। यह एक ऐसा रोग है, जिसका कोई भी उपचार संभव नहीं है। हर प्रेमी-प्रेमिका को प्रेम वियोग नामक रोग अवश्य ही पीड़ित होना पड़ता है।


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