लेखक के घर में खिचड़ी त्योहार पर हँसी-खुशी का माहौल है। पूरे घर में चहल-पहल मची हुई हैष लेखक के घर के सभी सदस्य नहा धोकर एक कमरे में इकट्ठे हो गए हैं। लेखक के दादा और चाचा ने सफेद चकाचक मांड लगी धोती और कुर्ता पहना हुआ है। लेखक के पिता ने भी धोती पहन रखी है, लेकिन उस धोती में उन्हें ठंड लग रही है।
लेखक की दादी खादी सफेद साड़ी पहने हुए मचिया पर बैठी हुई हैं। उन्होंने आज अपने सफेद रुई जैसे बाल भी धोए हैं। दादी के सामने केले के पत्ते रखे हुए हैं। उन पत्तों पर तिल, गुड़स चावल आदि के छोटे-छोटे ढेर रखे हुए हैं।
लेखक के घर के सभी सदस्यों को बारी-बारी से उन सभी चीजों को छूने और उन्हें प्रणाम करने के लिए कहा गया है। जब सब लोगों ने ऐसा कर दिया तो सभी चीजों को एक जगह इकट्ठा करते दान दे दिया जाएगा।
उसके बाद सभी लोग खिचड़ी खाने के लिए तैयार हो गए हैं। सभी लोगों ने चावल और दाल की बनी खिचड़ी खाई है। खिचड़ी खाने के बाद सभी ने ‘गया’ से आए तिल, गुड़ और चीनी के बने ‘तिलकुट’ को बड़े प्रेम से खाया। इस तरह खिचड़ी का त्योहार लेखक के घर में हर्षोल्लास से मनाया गया।
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