तुलसीदास कठोर वचन त्यागने के लिए इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि कठोर वचन से कटु वातावरण पैदा होता है। यदि हम किसी को कठोर वचन बोलेंगे तो वह भी हमको कठोर वचन बोलेगा, इससे कटु वातावरण पैदा होगा जो किसी के हित में नहीं होगा।
इसीलिए हमें कठोर वचन त्याग कर सदैव मधुर वाणी में ही एक दूसरे से बातचीत करनी चाहिए। मधुर वाणी में एक तरह का सम्मोहन होता है जो किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है। किसी से मधुर वाणी में बोलने से सामने वाला हमसे सीधे प्रभावित हो जाता है। कठोर वचन में इसका विपरीत होता है, किसी को कठोर वचन बोलने पर वह हमसे प्रसन्न नही होगा बल्कि या तो उसे दुख होगा या उसे गुस्सा आएगा। ऐसा ही हमारे साथ होगा। यदि कोई हमें कठोर वचन में बात करे तो हमें बिल्कुल भी अच्छा नही लगेगा। यही कारण है कि तुलसीदास कठोर वचन त्यागने को कह रहे हैं।
तुलसी दास कहते हैं कि…
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।
अर्थात मीठे वचन बोलने से चारों तरफ प्रसन्नता का वातावरण ही उत्पन्न होता है। सबके मन को प्रसन्नता होती है, जबकि कठोर वचन बोलने से कटु वातावरण ही उत्पन्न होता है, जो सबके लिए तनाव का कारण बनता है इसलिए सदैव मधुर वाणी में ही बात करनी चाहिए।