क्या यूनिफार्म ही विद्यार्थियों की सच्ची पहचान है?

यूनिफॉर्म ही विद्यार्थियों की सच्ची पहचान नहीं होती है, लेकिन यह विद्यार्थियों के लिए बेहद आवश्यक है क्योंकि यह विद्यार्थियों के अंदर समानता और अनुशासन की भावना भरती है।

केवल यूनिफॉर्म ही विद्यार्थियों की सच्ची पहचान नहीं होती है। विद्यार्थियों की सच्ची पहचान के लिए अनेक गुणों की आवश्यकता है।

इन गुणों में विद्यार्थियों में अनुशासन, परिश्रम, अपने बड़ों एवं गुरुजनों के प्रति आदर सम्मान की भावना, विनम्रता, सदाचार आदि गुणों का होना आवश्यक है। लेकिन यूनिफार्म के महत्व को भी कम करके नहीं आंका जा सकता। यदि विद्यालयों में विद्यार्थियों के लिए यूनिफॉर्म आवश्यक नहीं होगी, तो विद्यार्थी अनुशासनहीन हो सकते हैं। वह अपनी मर्जी के अनुसार तथा अपनी पारिवारिक स्थिति के अनुसार कपड़े पहन कर आएंगे। जो धनी परिवार वाले विद्यार्थियों होंगे वे सुंदर आर्कषण और महंगे कपड़े पहन कर आएंगे। जो गरीब परिवार के विद्यार्थी होंगे वह साधारण कपड़े पहन कर आएंगे।

ऐसी स्थितियों में धनी परिवार वाले विद्यार्थियों में दिखावा करने की प्रवृत्ति जन्म ले सकती है। वे अपने साथी छात्रों के सामने अपने सुंदर कपड़ों का प्रदर्शन करने की आदत से ग्रस्त हो सकते हैं। इससे विद्यार्थियों में असमानता की भावना विकसित होगी। विद्यार्थियों में इस तरह की गलत प्रवृतियां विकसित होना किसी भी तरह उचित नहीं है।

यूनिफॉर्म विद्यार्थियों में एक समानता की भावना लाती है। यूनिफॉर्म सभी विद्यार्थियों को समान रूप से वस्त्र पहने की आदत विकसित करती है।

यूनिफॉर्म से विद्यार्थी को यह संदेश जाता है कि विद्यालय से बाहर भले ही उनकी पारिवारिक स्थिति कैसी हो लेकिन विद्यालय में सभी विद्यार्थी एक समान हैं। यहाँ पर धर्म, जाति, लिंग अथवा आर्थिक स्थिति के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं है। यह किसी भी विद्यार्थी के लिए इस तरह बहुत आवश्यक है।


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