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‘मैं तुमसे शास्त्र सीखने नहीं आई हूँ, शस्त्रों से युद्ध करने आई हूँ।’ इस कथन के माध्यम से राजकुमारी क्या कहना चाहती थी? अशोक ने पद्मा के आगे सिर झुकाते हुए क्या कहा?

‘मैं तुमसे शास्त्र सीखने नहीं आई हूँ, शस्त्रों से युद्ध करने आई हूँ।’

इस कथन के माध्यम से राजकुमारी पद्मा का यह कहना है कि वह राजा अशोक के साथ युद्ध करना चाहती है, ताकि वह अपने पिता के हत्या का बदला ले सके। राजकुमारी पद्मा जोकि कलिंग की राजकुमारी थी, उसके पिता की हत्या युद्ध में अशोक और अशोक की सेना द्वारा कर दी गई थीय़ कलिंग के महाराज की हत्या के कारण कलिंग की राजकुमारी पद्मा बदले की भावना से जल रही थी और वह अपने पिता की हत्या का बदला अशोक को मारकर लेना चाहती थी। इसीलिए जब अशोक की सेना कलिंग महाराज के मृत्यु के बाद कलिंग के किले के द्वार पर खड़ी होकर अंदर घुसने का प्रयास कर रही थी, तब राजकुमारी पद्मा कई हजार स्त्री सैनिकों के साथ उनका सामना करने के लिए तैयार कर रखी थी।

जब राजकुमारी पद्मा को पता चला कि अशोक स्वयं उसके समक्ष खड़ा है। दोनों के बीच वाद-विवाद हुआ। राजा अशोक को अपनी भूल का अहसास था कि उसने निर्दोष प्राणियों की हत्या की। वह अपनी भूल को स्वीकार कर रहा था। जब राजकुमारी पद्मा ने यह कहा कि वह उनसे शास्त्र सीखने नहीं बल्कि शस्त्रों से युद्ध करने आई है तो राज अशोक ने सिर झुकाते हुए कहा कि उसके समक्ष वह अपना शीश झुकाए खड़ा है। वह चाहे तो अपने पिता की मृत्यु का बदला उसके सर को काट कर ले सकती है।

संदर्भ पाठ
‘अशोक का शस्त्र त्याग’, लेखक : वंशीधर श्रीवास्तव


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समाज के नवनिर्माण में श्रमिकों का क्या योगदान हो सकता है?

युद्ध से पीछे हटना कायरता है, क्षमाशीलता नहीं-अपने विचार बताइए।

समाज के नवनिर्माण में श्रमिकों का क्या योगदान हो सकता है?

समाज के नवनिर्माण में श्रमिक बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किसी भी समाज का निर्माण के अनेक पहलू होते हैं, जिनमें समाज का आर्थिक विकास, रोजगार, उत्पादन, सेवाएं आदि महत्वपूर्ण पहलू हैं। श्रमिक इन सभी पहलुओं में अपना अहम योगदान देते हैं।

श्रमिकों के योगदान के बिना कोई भी उत्पादन संभव नहीं हो सकता। श्रमिक सेवा कार्यों से भी जुड़े रहते हैं। जब समाज में पर्याप्त उद्योग होंगे, श्रमिकों को पर्याप्त रोजगार मिलेगा उत्पादन कार्य अपनी गति में होगा तो उस समाज का आर्थिक विकास भी निरंतर होता रहेगा। श्रमिक परिश्रम से जुड़े होते हैं, बिना परिश्रम के कोई भी समाज विकास नहीं कर सकता। केवल समाज की नहीं जीवन के हर क्षेत्र में परिश्रम की आवश्यकता होती है।

हर व्यक्ति किसी न किसी तरह से ही श्रम से ही जुड़ा है। हर व्यक्ति को श्रम करना ही पड़ता है तभी वह इस दुनिया में स्वयं का जीवन जी सकता है। श्रम से तात्पर्य केवल पत्थर या मिट्टी या ईंट उठाने वाले मजदूरों से ही नही, श्रमिक से तात्पर्य कारखानों में कार्य करने वाले कर्मचारियों से नही होता बल्कि बल्कि एक इंजीनियर, एक डॉक्टर या एक वकील या एक अधिकारी भी श्रमिक ही है, जो अपने संबंधित कार्य में श्रम कर रहा है। इसलिए समाज के नवनिर्माण में श्रमिकों का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है।


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शिक्षा रोजगारपरक हो या ज्ञानपरक हो। वाद-विवाद हेतु पक्ष-विपक्ष लिखें।

प्लास्टिक के खतरों से बचने के लिए क्या-क्या उपाय कर सकते है?

‘छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू’ इसमें कौन सा अलंकार है?

‘छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू।
मनि बिनु काज करिअ कत रोसू’

अलंकार भेद : अनुप्रास अलंकार

स्पष्टीकरण :

इस पंक्ति में ‘अनुप्रास अलंकार’ है, क्योंकि इस पंक्ति में ‘क’ वर्ण और ‘र’ वर्ण इन दोनों की एक से अधिक बार आवृत्ति हो रही है। ‘र’ की इस पंक्ति में दो बार आवृत्ति हुई है तथा ‘क’ वर्ण की तीन बार आवृत्ति हुई है।

‘अनुप्रास अलंकार’ किसी काव्य में वहां पर प्रकट होता है, जब उस काव्य में किसी शब्द के प्रथम वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हो अथवा कोई पूरा शब्द उस काव्य में एक से अधिक बार प्रयुक्त हो। अगर एक से अधिक बार कोई शब्द समान आवृत्ति लगातार प्रयुक्त किया जा रहा है, तो वहां पर अनुप्रास अलंकार नहीं बल्कि पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होगा। जैसे – धीरे-धीरे. धन-धन, छन-छन ये शब्द लगातार प्रयुक्त किए जा रहें है तो तो यहाँ पर अनुप्रास अलंकार नही बल्कि पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होगा। यही शब्द अगर काव्य में अलग-अलग स्थान पर प्रयुक्त किये जाते तो अनुप्रास अलंकार होता।

ऊपर दी गई पंक्ति राम लक्ष्मण परशुराम संवाद प्रसंग से ली गई है, जो कि तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के बालकांड का प्रसंग है। इस पंक्ति का अर्थ यह है कि… 

छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू।
मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू’

अर्थात श्रीराम द्वारा सीता स्वयंवर में शिवजी का धनुष तोड़े जाने पर जब परशुराम सीता स्वयंवर में आकर क्रोधित होते हैं तो लक्ष्मण परशुराम को समझाते हुए कहते हैं कि इसमें श्रीराम का कोई दोष नहीं। उन्होंने तो बस धनुष को छुआ था और छूते ही धनुष टूट गया। इसमें उनका कोई दोष नहीं। उन्होंने जानबूझकर धनुष नहीं तोड़ा। आप व्यर्थ ही क्रोधित हो रहे हैं।


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‘गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है’ पंक्ति में अलंकार है।

बड़े-बड़े मोती से आँसू में कौन सा अलंकार है?

शिक्षा रोजगारपरक हो या ज्ञानपरक हो। वाद-विवाद हेतु पक्ष-विपक्ष लिखें।

वाद-विवाद

शिक्षा रोजगारपरक हो या ज्ञानपरक हो।

 

शिक्षा रोजगारपरक हो या ज्ञान पर अब इस विषय पर पक्ष और विपक्ष में विचार प्रस्तुत हैं।

पक्ष

शिक्षा ज्ञानपरक होनी चाहिए। शिक्षा का अर्थ ही है ज्ञान को प्राप्त करना। शिक्षा सीधे तौर पर ज्ञान से संबंधित होती है। काम धंधा रोजगार तो हर आदमी करता है, चाहे वह छोटा सा मजदूर क्यों ना हो, या बड़ा व्यापारी क्यों ना हो। लेकिन ज्ञानी हर कोई नहीं बन पाता। क्योंकि ज्ञानी बनने के लिए शिक्षित होना पड़ता है।

यदि शिक्षा में ज्ञान नहीं होगा तो शिक्षा का कोई अर्थ नहीं। शिक्षा की प्राथमिकता ज्ञान को प्राप्त करना होती है। शिक्षा ज्ञान प्राप्त करने का ही साधन है। एक शिक्षित व्यक्ति ज्ञानी कहलाता है। अशिक्षित व्यक्ति को ज्ञानी नहीं कहते। शिक्षा मन में व्याप्त अज्ञानता के अंधकार को मिटाती है और ज्ञान का प्रकाश प्रज्वलित करती है। इसीलिए शिक्षा सदैव ज्ञानपरक होनी चाहिए।

विपक्ष

शिक्षा ज्ञानपरक होनी चाहिए इस बात में कोई संदेह नहीं। शिक्षा का सीधा संबंध ज्ञान से है, लेकिन ऐसे अभियान किस कार्य का जो जीवन में हमेशा हम ही नहीं बना सके। ऐसी शिक्षा भी किस काम की जो हमें हमारी आजीविका योग्य भी ना बना सके। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञानी बनाने के साथ-साथ समर्थ भी बनाना होता है।

शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो व्यक्ति को इतना समर्थ बना दे कि वह अपने जीवन को सम्मान पूर्वक जी सके। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के अंदर ऐसे गुण एवं कौशल विकसित होने चाहिए कि वह कोई ना कोई रोजगार परक कार्य करके स्वयं को सामर्थ्यनवान बना सके और अपने जीवन को सम्मान पूर्वक जी सके। जब शिक्षा इस तरह का माध्यम बन जाएगी तो शिक्षा की उपयोगिता बढ़ जाएगी। ज्ञानपरक शिक्षा केवल किताबी ज्ञान तक सीमित रह जाती है।

किताबी ज्ञान से जीवन की व्यवहारिक समस्याओं से नहीं निपटा जा सकता। जीवन में आ रही समस्याओं से निपटने के लिए व्यवहार कुशल होना आवश्यक है। शिक्षा का स्वरूप किताबी ज्ञान तक ना होकर व्यवहारिकता होना चाहिए। ताकि शिक्षा उपयोगी बन सके। इसलिए हमारे मत के अनुसार शिक्षा ज्ञान पर एक से अधिक रोजगारपरक होनी चाहिए तभी शिक्षा का उद्देश्य सार्थक होगा।


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जल संरक्षण के उपयोग के बारे में लिखिए​।

सड़क को कैसे साफ-सुथरा रख सकते हैं? इस पर अपने विचार लिखिए।

‘बिप्र बिचारि बचौं’ नृपद्रोही इस पंक्ति में नृपद्रोही शब्द किसके लिए प्रयोग हुआ है? (क) श्रीराम के लिए (ग) परशुराम के लिए (ख) विश्वामित्र के लिए (घ) लक्ष्मण जी के लिए

सही विकल्प होगा :

(ग) परशुराम के लिए

स्पष्टीकरण:

‘बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही’ में ‘नृपद्रोही’ शब्द परशुराम के लिए प्रयुक्त किया गया है।

नृपद्रोही का अर्थ होता है, राजाओं का शत्रु। नृप का अर्थ है, राजा और द्रोही मतलब शत्रु। लक्ष्मण ने यह शब्द परशुराम के लिए कहा है। तुलसीदास कृत रामचरित मानस के बालकांड में राम लक्ष्मण परशुराम संवाद प्रसंग में जब सीता स्वयंवर में लक्ष्मण और परशुराम के बीच वाद विवाद हुआ तो लक्ष्मण के कड़वे वचन सुनकर परशुराम उन पर क्रोधित हो गए तब लक्ष्मण ने उन्हें ऐसा कहा कि आप राजाओं के शत्रु हैं। मैं आपको ब्राह्मण समझ कर बचा रहा हूं और कुछ नहीं कह रहा।

पूरी चौपाई की पूरी पंक्तियां इस प्रकार हैं…

सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥
भृगुबर परसु देखावहु मोही। बिप्र बिचारि बचउँ नृपदोही॥

अर्थात लक्ष्मण परशुराम क्रोधित हुए और उन्होंने अपना फरसा उठा लिया। तब सभा में उपस्थित सभी सभाजन त्राहि-त्राहि कर उठे। तो लक्ष्मण ने परशुराम को संबोधित करते हुए कहा कि हे भृगुश्रेष्ठ, आप तो राजाओं के शत्रु हैं। मैं तो आपको ब्राह्मण समझ कर ही बचा रहा हूँ और आपका प्रत्युत्तर नही दे रहा। नही तो मैं भी आपको प्रत्युत्तर दे सकता था।


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निम्नलिखित समस्तपदों का विग्रह कर समास भेद बताइए: सत्याग्रह, लोकप्रिय, दशानन, चंद्रमुख, त्रिकोण, षट्कोण, नीलांबर, देहलता, राजकुमारी, रात-दिन, तुलसीकृत, वनवासी, देशभक्ति, यथाशक्ति, नीलकंठ, रसोईघर।

निम्नलिखित वाक्यों को एकवचन रूप में परिवर्तित कर दोबारा लिखिए (क) कल मेरी सहेलियाँ आई थीं। (ख) नेतागण पधार रहे हैं। (ग) तुम मुझे दोहे सुनाओ। (घ) रास्ते में गहरे गड्ढे हैं। (ङ) ये वस्तुएँ ले आइए। (च) बच्चों ने प्रश्नों के उत्तर लिखे। (छ) बिल्लियाँ, कुत्तों से डर कर भाग गईं। (ज) थालियाँ यहाँ पर मत रखो। (झ) बच्चे खेल रहे हैं। (ञ) घोड़े तेज़ी से दौड़ रहे हैं।

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निम्नलिखित समस्तपदों का विग्रह और उनका भेद इस प्रकार होगा :

सत्याग्रह : सत्य का आग्रह
समास भेद : तत्पुरुष समास (संबंध तत्पुरुष)

लोकप्रिय : लोक में प्रिय
समास भेद : तत्पुरुष समास (अधिकरण तत्पुरुष)

दशानन : दश है आनन है जिसके (रावण)
समास भेद : बहुव्रीहि समास

चंद्रमुख : चंद्र के समान मुख
समास भेद : कर्मधारण्य समास

त्रिकोण : त्रि (तीन) कोण वाला
समास भेद : द्विगु समास

षट्कोण : षट् (छः) कोण वाला
समास भेद : द्विगु समास

नीलांबर : नीला है अंबर (वस्त्र) जिसका
समास भेद : कर्मधारण्य समास

देहलता : देर रूपी लता
समास भेद : कर्मधारण्य समास

राजकुमारी : राजा की कुमारी
समास भेद : तत्पुरुष समास (संबंध तत्पुरुष)

रात-दिन : रात और दिन
समास भेद : द्वंद्व समास

तुलसीकृत : तुलसी द्वारा कृत (रचित)
समास भेद : तत्पुरुष समास

वनवासी : वन का वासी
समास भेद : तत्पुरुष समास (अधिकरण तत्पुरुष)

देशभक्ति : देश की भक्ति
समास भेद : तत्पुरुष समास (संबंध तत्पुरुष)

यथाशक्ति : शक्ति के अनुसार
समास भेद : अव्ययीभाव समास

नीलकंठ : नीला है कंठ जिनका अर्थात भगवान शिव
समास भेद : बहुव्रीहि समास

रसोईघर : रसोई का घर
समास भेद : तत्पुरुष समास (संबंध तत्पुरुष)


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निम्नलिखित वाक्यों को एकवचन रूप में परिवर्तित कर दोबारा लिखिए (क) कल मेरी सहेलियाँ आई थीं। (ख) नेतागण पधार रहे हैं। (ग) तुम मुझे दोहे सुनाओ। (घ) रास्ते में गहरे गड्ढे हैं। (ङ) ये वस्तुएँ ले आइए। (च) बच्चों ने प्रश्नों के उत्तर लिखे। (छ) बिल्लियाँ, कुत्तों से डर कर भाग गईं। (ज) थालियाँ यहाँ पर मत रखो। (झ) बच्चे खेल रहे हैं। (ञ) घोड़े तेज़ी से दौड़ रहे हैं।

निम्नलिखित में से क्या संचार की विशेषता का हिस्सा नहीं है? A. प्रतिवेदन B. समूह चर्चा C. नोटिस D. फैक्स

 

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सभी वाक्यों का एकवचन रूप में परिवर्तन

(क) कल मेरी सहेलियाँ आई थी।
एकवचन रूप : कल मेरी सहेली आई थी।

(ख) नेतागण पधार रहे हैं।
एकवचन रूप : नेता पधार रहा है।

(ग) तुम मुझे दोहे सुनाओ।
एकवचन रूप : तुम मुझे दोहा सुनाओ।

(घ) रास्ते में गहरे गड्ढे हैं।
एकवचन रूप : रास्ते में कितना गहरा गड्ढा है।

(ङ) ये वस्तुएँ ले आइए।
एकवचन रूप : यह वस्तु ले आइए।

(च) बच्चों ने प्रश्नों के उत्तर लिखे।
एकवचन रूप : बच्चे ने प्रश्न का उत्तर लिखा।

(छ) बिल्लियाँ, कुत्तों से डर कर भाग गईं।
एकवचन रूप : बिल्ली कुत्ते से डर कर भाग गई।

(ज) थालियाँ यहाँ पर मत रखो।
एकवचन रूप : थाली यहाँ पर मत रखो।

(झ) बच्चे खेल रहे हैं।
एकवचन रूप : बच्चा खेल रहा है।

(ञ) घोड़े तेज़ी से दौड़ रहे हैं।
एकवचन रूप : घोड़ा तेज़ी से दौड़ रहा है।


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‘चिलम’ शब्द का सही अर्थ क्या है? (i) हुक्के को बंद करने वाली वस्तु (ii) हुक्के के ऊपर रखने वाली वस्तु (iii) हुक्के को खोलने वाली वस्तु (iv) इनमे से कोई नहीं

इन शब्दों के लिए अनेक शब्दों के लिए एक शब्द बताइए। ‘जो विश्वास न करता हो’ ‘जो सब पर विश्वास करता हो’ जिसके पास बहुत साधन हो’

प्लास्टिक के खतरों से बचने के लिए क्या-क्या उपाय कर सकते है?

प्लास्टिक के खतरों से बचने के लिए उपाय

हम सभी जानते हैं कि प्लास्टिक हमारे पर्यावरण का का सबसे बड़ा दुश्मन है। पर्यावरण यह हमारे जीवन का आधार है, इसलिए प्लास्टिक हमारा भी दुश्मन है। प्लास्टिक के अविष्कार के समय यह पदार्थ बड़ा उपयोगी लगा था, इसीलिए इसको अत्याधिक लोकप्रियता मिलती गई, लेकिन समय बीतने के साथ-साथ प्लास्टिक के दुष्प्रभाव भी समझ में आने लगे। अब हम सबको समझ में आ चुका है कि प्लास्टिक जितना उपयोगी है, उससे अधिक खतरनाक है। आज हमें प्लास्टिक के खतरों से बचने की आवश्यकता है।

प्लास्टिक के खतरों से बचने के लिए हम निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं…

  • प्लास्टिक के खतरों से बचने के लिए सबसे पहले हमें प्लास्टिक के कम से कम उपयोग का संकल्प लेना होगा।
  • प्लास्टिक हमारे रोजमर्रा के जीवन में इतना अधिक घुल-मिल गया है कि हमारे दैनिक जीवन की बहुत सी वस्तुएं प्लास्टिक से बनी हुई होती हैं। हमें उन वस्तुओं का त्याग करना होगा और ऐसे वैकल्पिक पदार्थों से बनी वस्तुओं को अपनाना होगा जो पर्यावरण की हितेषी हो। जैसे कि जूट अथवा कागज अथवा गत्ते आदि से बनी वस्तुएं।
  • हमें पॉलिथीन की थैलियों का उपयोग पूरी तरह बंद करना होगा और उसकी जगह जूट अथवा कपड़े से बड़े थैलों का उपयोग करना होगा।
  • हमें प्लास्टिक के डिब्बे का उपयोग कम से कम करना होगा और उनकी जगह धातु या लकड़ी या गत्ते के बने डिब्बों का प्रयोग करना होगा।
  • यदि दुकानदार हमें प्लास्टिक की थैली अथवा प्लास्टिक के डिब्बे में कोई सामान पैक करके देता है तो हमें उसे ना भूलना होगा। हमें चाहिए कि हम अपने घर से ही कोई थैला अथवा डलिया (बास्केट) लेकर जाएं और उसमें सामान लेकर आएं।
  • हमारे जीवन में काम आने वाली अनेक जरूरी वस्तुएं प्लास्टिक से बनी होती हैं। हमें उन सभी प्लास्टिक से बनी वस्तुओं की जगह अन्य वैकल्पिक पदार्थों से बनी वस्तुओं का उपयोग करना होगा।
  • हमें धीरे-धीरे प्लास्टिक की वस्तुओं से दूरी बनाकर उनके उपयोग को सीमित करना होगा। जब प्लास्टिक का उपयोग। कम हो जाएगा तो प्लास्टिक की वस्तुओं का बाजार में आना भी बंद हो जाएगा।
इस तरह हम प्लास्टिक के खतरों को कम करने में अपना योगदान दे सकते हैं।

इसरो (ISRO) के वर्तमान चीफ़ कौन हैं?

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इसरो के वर्तमान चीफ का नाम एस. सोमनाथ है।

इसरो के वर्तमान चीफ़ का नाम ‘एस. सोमनाथ’ है। उनका पूरा नाम श्रीधर पड़िक्कर सोमनाथ है। वह एक एयरोस्पेस इंजीनियर हैं तथा भारतीय अनुसंधान अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी Indian Space Research Organisation के वर्तमान अध्यक्ष हैं।

एस. सोमनाथ ने 15 जनवरी 2022 को इसरो का कार्यभार ग्रहण किया था। इसरो के अध्यक्ष बनने से पूर्व वह विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (तिरुवंतनपुरम) के निदेशक थे, जहाँ उन्होंने 22 जनवरी 2018 से 14 जनवरी 2022 तक विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक के रूप में कार्य किया था। एस सोमनाथ यानी श्रीधर पड़िक्कर सोमनाथ का जन्म जुलाई 1963 में केरल के एक मलयाली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीधर पड़िक्कर है, जो एक केरल में एक हिंदी शिक्षक थे।

स. सोमनाथ इसरो के अध्यक्ष से पूर्व विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (तिरुवनतंपुरम) के निदेशक थे और उससे पहले वह तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र (तिरुवंतनपुरम) के निदेशक के रूप में कार्य कर चुके हैं।

सोमनाथ के इसरो का अध्यक्ष बनने से पूर्व इसरो केअध्यक्ष का नाम के ‘के. सिवन’ था। उनका पूरा नाम कैलासवादिवू सिवन था। कें. सिवन ने 15 जनवरी 2018 से 14 जनवरी 2018 तक इसरो के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।


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निम्न में से कौन ग्रामीण समाजशास्त्री नहीं है ? (i) टी. एल. स्मिथ (ii) बोगाईस (ii) ए. आर. देसाई (iv) जिम्मरमैन एण्ड गालपिन

प्रदूषण की समस्या को लेकर दो मित्रों के बीच में हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखें।

संवाद लेखन

प्रदूषण की समस्या को लेकर दो मित्रों के बीच संवाद

 

(प्रदूषण की समस्या को लेकर दो मित्रों राजीव और सचिन में संवाद हो रहा है।)

राजीव ⦂ सचिन, तुम जानते हो कि हमारा दिल्ली शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक शहर है।

सचिन ⦂ हाँ, मुझे पता है। केवल दिल्ली ही नहीं हमारे भारत के अनेक शहर बुरी तरह प्रदूषित शहरों में शामिल हैं।

राजीव ⦂ प्रदूषण की समस्या हम सभी के लिए एक बेहद गंभीर संकट बन गई है। प्रदूषण को बढ़ाने में हम सभी मनुष्यों का भी कम योगदान नहीं।

सचिन ⦂ यह बात तुम्हारी बिल्कुल ठीक है। प्रदूषण का मुख्य कारण हम सभी मनुष्य हैं। हर जगह बढ़ते प्रदूषण के लिए हम सभी मनुष्य ही जिम्मेदार हैं।

राजीव ⦂ हाँ, हम जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों का अत्याधिक उपयोग करते हैं। हम सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करने की जगह निजी वाहनों का प्रयोग करके अपने वैभव का प्रदर्शन करते हैं। लेकिन हम यह नहीं जानते कि इस झूठे दिखावे से हम प्रदूषण का लेवल बढ़ाने में अपना दुर्भाग्यपूर्ण योगदान देते हैं।

सचिन ⦂ बिल्कुल सही, वाहनों के अलावा हमारे कल-कारखाने भी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं।

राजीव ⦂ यहाँ पर बात केवल वायु प्रदूषण की नहीं बल्कि हर तरह के प्रदूषण की है। हम जीवन में हम अनेक तरह के प्रदूषण से जूझ रहे हैं। चाहे वह ध्वनि प्रदूषण हो, वायु प्रदूषण हो, जल प्रदूषण हो अथवा भूमि प्रदूषण हो।

सचिन ⦂ हम सभी नागरिकों का यह कर्तव्य बनता है कि हमें प्रदूषण को कम करने में अपना पूरा योगदान देना चाहिए। प्रदूषण को कम करने के लिए सबसे पहले सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है और सभी नागरिकों को सहयोग करना चाहिए।

राजीव ⦂ हाँ, हमारी सरकार को जल्दी से जल्दी कोई ना कोई ठोस कदम उठाना आवश्यक है, नहीं तो प्रदूषण का यही हाल रहा तो सभी नागरिकों का स्वास्थ्य और जीवन गंभीर संकट में पड़ जाएगा।

सचिन ⦂ सरकार को उसके कर्तव्य का याद दिलाने के लिए हमें एक जागरूकता अभियान चलाना चाहिए ताकि सरकार प्रदूषण को कम करने के लिए कोई ठोस नीति बनाए।

राजीव ⦂ तुम्हारा विचार बिल्कुल सही है, ऐसा ही करना चाहिए ।


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पिकनिक के आयोजन को लेकर शिक्षक व विद्यार्थी के बीच हुए संवाद को लिखिए।

मनुष्य के बारे में बातें करते हुए पिंजरे में बंद दो तोतों का संवाद लिखें।

पिकनिक के आयोजन को लेकर शिक्षक व विद्यार्थी के बीच हुए संवाद को लिखिए।

संवाद लेखन

पिकनिक के आयोजन को लेकर शिक्षक व विद्यार्थी के बीच संवाद

 

शिक्षक : अतुल, तुम्हारी तरफ से पिकनिक शुल्क अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। कल सुबह सभी को पिकनिक पर जाना है और आज शाम तक सभी को शुल्क जमा करना अनिवार्य था।

विद्यार्थी : सर मेरे पिताजी को अभी तक वेतन प्राप्त नहीं हुआ था आज ने वेतन प्राप्त होगा। वह शाम को विद्यालय के कार्यालय में आकर पिकनिक का शुल्क जमा कर देंगे।

शिक्षक : अच्छा ठीक है, फिर कोई बात नहीं। लेकिन यह बताओ तुमने अपनी पिकनिक की सारी तैयारी पूरी कर ली।

विद्यार्थी : हाँ, सर मैंने लगभग पूरी तैयारी कर ली है। थोड़ा सा जरूरी सामान लेना बाकी रह गया है, वह आज शाम को मैं अपनी माँ के साथ बाजार जा कर ले लूंगा क्योंकि शाम को ही पिताजी से पैसे मिलेंगे।

शिक्षक : चलो, कोई बात नहीं। तुम कल पिकनिक पर अवश्य आना यदि किसी कारणवश तुम्हारे पिताजी शाम को तुम्हारा पिकनिक शुल्क जमा करने विद्यालय नहीं आ पाए तो तो मैं तुम्हारी तरफ से तुम्हारा पिकनिक शुल्क जमा कर दूंगा। तुम मुझे बाद में अपने पिताजी से पैसे लेकर दे देना। मैं नहीं चाहता कि पिकनिक शुल्क न जमा करवाने के कारण पिकनिक पर जाने से वंचित रह जाओ।

विद्यार्थी : बहुत-बहुत धन्यवाद सर। आप सचमुच दयालु है। आप जैसे शिक्षक को पाकर कर मुझे बेहद गर्व का अनुभव हो रहा है।

शिक्षक : तुम सब विद्यार्थी मेरे बच्चे समान ही हो। तुम सब की खुशी ही मेरी खुशी है। इसलिए अब तुम जाओ। तुम अपनी पिकनिक की तैयारी पूरी रखो। कल की पिकनिक मनोरंजक होने के साथ-साथ ज्ञानवर्द्धक भी होगी और तुम्हे कुछ नई बातें सीखने को मिलेंगी।

विद्यार्थी : जी, सर। अब मैं चलता हूँ। शाम तक संभव में मेरे पिताजी पिकनिक शुल्क आकर जमा कर दें। सर, नमस्ते।

शिक्षक : ठीक है जाओ, नमस्ते।


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मनुष्य के बारे में बातें करते हुए पिंजरे में बंद दो तोतों का संवाद लिखें।

अच्छे स्वास्थ्य के बारे में स्वास्थ्य रक्षक और चिकित्सक के बीच में संवाद लिखिए।

मनुष्य के बारे में बातें करते हुए पिंजरे में बंद दो तोतों का संवाद लिखें।

संवाद लेखन

पिंजरे में बंद दो तोतों का संवाद

 

पहला तोता ⦂ यह मनुष्य लोग कितनी स्वार्थी होते हैं, अपने मनोरंजन के लिए हमें पिंजरे में बंद करके रखा है।

दूसरा तोता ⦂ हाँ, मित्र सही बात कह रहे हो। इन मनुष्यों ने अपने मनोरंजन के लिए हम पक्षियों को अपने पिंजरे में कैद करके रखा है।

पहला तोता ⦂ यह लोग खुद तो आजादी से घूम रहे हैं और हमें पिंजरे में कैद करके रखा है।

दूसरा तोता ⦂ हाँ मित्र, हम लोग कमजोर प्राणी हैं यह मनुष्य ताकतवर हैं। इस संसार मैं हमेशा ताकतवर कमजोर सताता ही है।

पहला तोता ⦂ मुझे अपने उन दिनों की याद आती है जब मैं आकाश में स्वच्छंद होकर घूमता था। मैं जब मर्जी होती इस पेड़ पर जा बैठता कभी उस पेड़ पर बैठता। मनचाहे फल खाता।

दूसरा तोता ⦂ मेरा भी वैसा ही जीवन था। कितना प्यारा और आह! सुंदर जीवन था। इन मनुष्यो ने हमारी स्वतंत्रता को छीन कर हमें इन सोने के पिंजरे में कैद कर लिया।

पहला तोता ⦂ यह मनुष्य में लुभाने के लिए हमें तरह-तरह के मीठे मीठे पकवान खिलाते हैं। सोने के पिंजरे में बंद रखते हैं और हर तरह की सुख-सुविधा देने की कोशिश करते हैं, लेकिन इन मनुष्यों को यह नहीं मालूम की आजादी के आगे यह तमाम तरह की सुख-सुविधाएं व्यर्थ है।

दूसरा तोता ⦂ हां हमें पेड़ों पर भटकना ज्यादा पसंद है। हमें यह स्वादिष्ट पकवान नहीं चाहिए। हमें अपनी आजादी चाहिए। हमें सोने के पिंजरे में कैद रहकर सुख-सुविधा नहीं चाहिए। हमें खुले आकाश में उड़ने की आजादी चाहिए। हमें पेड़ों की कड़वी निबौरियां खाना ज्यादा स्वादिष्ट लगता है, गुलामी के पिंजरों के स्वादिष्ट पकवान नही।

पहला तोता ⦂ आजादी से बढ़कर कुछ नहीं।

दूसरा तोता ⦂ काश भगवान हमारी सुन ले और इन मनुष्यों को सद्बुद्धि आए और हमें सोने के पिंजरों से आजाद कर दी।


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टीकाकरण क्या है? टीकाकरण क्यों किया जाता है?

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टीकाकरण एक जैविक प्रक्रिया है जिसमें एक विशेष रोग के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए कमजोर या मृत जीवाणुओं या विषाणुओं को शरीर में प्रवेश कराया जाता है। इसके द्वारा शरीर रोग से लड़ने की प्रतिरक्षा विकसित कर लेता है।

टीकाकरण किसी भी रोग से बचाव की वह प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत रोगजनक जीवाणुओं की थोड़ी सी मात्रा लेकर शरीर में टीका के माध्यम से पहले से ही पहुंचा दी जाती है। जिससे उस रोग के विरुद्ध शरीर में एक तरह की प्रतिरोधक क्षमता का विकास हो जाता है। इस प्रतिरोधक क्षमता के विकसित होने के कारण शरीर उस जीवाणु से होने वाले रोग से बचाव के लिए स्वयं को पहले से तैयार कर लेता है और उस बीमारी का जीवाणु शरीर पर रोग के संक्रमण का प्रभाव नहीं डाल पाता। इसी कारण विभिन्न तरह के रोगों का टीका विकसित कर लिया जाता है। टीका बनाने के लिए, जिस जीवाणु से कोई रोग उत्पन्न होता है, उसी मृत जीवाणु का थोड़ा सा अंश लेकर उससे टीके का विकास किया जाता है।

टीकाकरण की कार्यप्रणाली इस प्रकार होती है…

  • टीके वे मृत या कमजोर जीवाणु/विषाणु होते हैं जो उस रोग को उत्पन्न करने का कारक होते हैं। ये जीवाणु रोग पैदा नहीं करते लेकिन शरीर को उनसे लड़ना सिखाते हैं।
  • जब टीका शरीर में प्रवेश करता है, तो प्रतिरक्षा प्रणाली इन रोगकारक पदार्थों को पहचानती है और उनके खिलाफ प्रतिरक्षक बनाना शुरू कर देती है।
  • ये प्रतिरक्षक जैसे एंटीबॉडी और मेमोरी सेल रोग के वास्तविक आक्रमण के खिलाफ लड़ने में सक्षम होते हैं।
  • अगर भविष्य में वास्तविक संक्रमण होता है, तो शरीर तुरंत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कर संक्रमण से लड़ना शुरू कर देता है और रोग गंभीर होने से पहले ही उसे नियंत्रित कर लेता है।

टीकाकरण के लाभ इस प्रकार हैं…

  • टीकाकरण गंभीर और घातक रोगों जैसे पोलियो, खसरा, हैजा, रूबेला, कोविड-19 जैसी बीमारियों के संक्रमण से बचाता है।
  • यह समुदाय की प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ाकर रोगों के प्रसार को रोकता है।
  • कुछ एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरियल संक्रमणों से लड़ने में मदद करता है।
  • यह कुछ कैंसर जैसे लिवर और गर्दन कैंसर से भी बचाव करता है।
  • मौतों और गंभीर बीमारियों को कम करके स्वास्थ्य लागत को भी कम करता है।

टीकाकरण आज की दुनिया में स्वास्थ्य संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीक बन गया है। इसलिए सभी को टीकाकरण कराना चाहिए ताकि गंभीर बीमारियों से बचा जा सके।


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निम्नलिखित में से क्या संचार की विशेषता का हिस्सा नहीं है? A. प्रतिवेदन B. समूह चर्चा C. नोटिस D. फैक्स

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सही विकल्प होगा :

A. प्रतिवेदन

विस्तार से समझें

‘प्रतिवेदन’ संचार की विशेषता का हिस्सा नहीं होता। प्रतिवेदन एक दस्तावेज होता है, जो किसी विशेष घटना के संदर्भ में प्रस्तुत किया जाता है। प्रतिवेदन दस्तावेज को अंग्रेजी में रिपोर्ट कहा जाता है। कोई भी रिपोर्ट तथा प्रतिवेदन एकपक्षीय संचार का हिस्सा है, यानी रिपोर्ट केवल प्रस्तुत की जाती है। उसके प्रत्युत्तर में किसी संवाद की अपेक्षा नहीं की जाती। यह एकपक्षीय होता है। इसीलिए यह संचार की विशेषता का हिस्सा नहीं है।

संचार की विशेषता के लिए यह आवश्यक है कि वह द्विपक्षीय हो, संचार में एक प्रेषक तथा एक प्राप्तकर्ता होते हैं, जो एक-दूसरे को संदेश का आदान-प्रदान करते हैं। प्रतिवेदन में केवल एक तरफा संदेश प्रदान किया जाता है।

समूह चर्चा संचार की विशेषता का हिस्सा है, क्योंकि समूह चर्चा में एक से अधिक प्रेषक और प्राप्तकर्ता होते है, जो एक-दूसरे से संवाद स्थापित करते हैं।

नोटिस भी संचार का हिस्सा है, क्योंकि नोटिस भेजने के बाद उसके प्रत्युत्तर की अपेक्षा की जाती है।
फैक्स एक ऐसा यंत्र है, जो संचार का ही माध्यम है। फैक्स के माध्यम से कोई संदेश भेजा जाता है अथवा संदेश प्राप्त किया जाता है। तीनों माध्यम द्विपक्षीय हैं इसलिए संचार का हिस्सा है। प्रतिवेदन ही संचार की विशेषता का हिस्सा नही है।

निष्कर्ष
अतः अंत में हमने यह पाया कि प्रतिवेदन ही सही विकल्प होगा जो संचार की विशेषता का हिस्सा नहीं  है।


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‘तुम चंदन हम पानी’ में कवि क्या कहना चाहता है? (क) ईश्वर की भक्ति सबके लिए है। (ख) ईश्वर सदा हम में निवास करते हैं। (ग) मेरी आत्मा पूर्ण आप में लीन है। (घ) ईश्वर श्रेष्ठ व सर्वगुण संपन्न है​।

‘चिलम’ शब्द का सही अर्थ क्या है? (i) हुक्के को बंद करने वाली वस्तु (ii) हुक्के के ऊपर रखने वाली वस्तु (iii) हुक्के को खोलने वाली वस्तु (iv) इनमे से कोई नहीं

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‘सही विकल्प होगा..

(घ) ईश्वर श्रेष्ठ व सर्वगुण संपन्न है​।

कवि रैदास इस पंक्ति के माध्यम से यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि ईश्वर सर्वगुण संपन्न है। ईश्वर के गुणों के आगे भक्त (कवि) के गुणों की कोई महत्ता नहीं। कवि ये कहना चाहते हैं कि ईश्वर गुणों से भरपूर हैं। वह चंदन के समान हैं। चंदन गुणों से युक्त होता है, जिसकी सुगंध मन आत्मविभोर कर देती है। ईश्वर के भक्त तो पानी के समान है। वह पानी जिसमें चंदन को घिसा जाता है, जिससे चंदन की सुगंध पानी में समाहित हो जाती है। उसी प्रकार ईश्वर की भक्ति भी भक्त के कण-कण में बस जाती है।

यह पंक्ति कवि रैदास द्वारा रचित रैदास से पद से ली गई हैं। संत रैदास को रविदास के नाम से भी जाना जाता है। वे चौदहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि थे। पूरा पद इस प्रकार है।

प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग-अंग बास समानी॥
प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा॥
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राती॥
प्रभु जी तुम मोती हम धागा। जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा। ऐसी भक्ति करै ‘रैदासा॥

अर्थात कवि रैदास कहते हैं कि हे प्रभु आप तो चंदन के समान है, हम तो पानी हैं। चंदन रूपी ईश्वर हम भक्त रूपी पानी में मिश्रित हो जाता है, वह पानी भी सुगंधित हो जाता है। उसी तरह आपकी भक्ति हमारे अंदर समा जाती है। प्रभु जी आप तो वह बादल हैं, जिसे देखकर हम मोर रूपी भक्त नाचने लगते हैं। आप वह चांद है जिसे देखकर हम भक्त रूपी चकोर के अंदर प्राणों का संचार होता है।

प्रभु आप तो दीपक हैं, हम उस दीपक की बाती के समान हैं। हे प्रभु आपकी भक्ति रूपी ज्योति निरंतर हमारे अंदर जलती रहे। प्रभु आप तो मोती हैं, हम उस मोती में पड़े हुए धागे के समान हैं। आप तो सोना है हम उस सोने पर लगने वाले सुहागे के समान हैं।

प्रभु जी आप तो हमारे स्वामी है हम तो केवल आपके दास हैं और हम सदैव आपके दास बने रहना चाहते हैं। आपकी भक्ति हमारे मन में निरंतर प्रवाहित होती रहे यही हमारी कामना है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि रैदास ने अपनी भक्ति भावना व्यक्त की है, और ईश्वर को स्वामी मानते हुए उनके प्रति दास्य भाव प्रकट किया है।


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चित्रगुप्त कौन है? वह क्या काम करता है ?

चित्रगुप्त कौन है? वह क्या काम करता है ?

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चित्रगुप्त हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार एक हिंदू देवता हैं, जिनका मुख्य कार्य धर्मराज यानी परलोक के देवता धर्मराज के यहाँ पाप और पुण्य का लेखा-जोखा रखने का है। चित्रगुप्त धर्मराज के सचिव के तौर पर कार्य करते हैं। वह मृत्यु लोक यानि पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों  के द्वारा किए जाने वाले पाप और पुण्य का हिसाब रखते हैं।

जीव की मृत्यु हो जाने के बाद जब जीव की आत्मा परलोक गमन करती है, तो जीवन में किए उसके द्वारा किए गए पाप-पुण्य के आधार पर ही उसकी आत्मा को स्वर्ग अथवा नरक में जगह दी जाती है अथवा उसे मुक्ति दी जाती या उसे फिर मृत्युलोक में संसारिक बंधनों में भेजा जाता है। हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार चित्रगुप्त भगवान ब्रह्मा की कई संतानों में से एक संतान हैं। वह भगवान ब्रह्मा के 14वें पुत्र माने जाते हैं। चित्रगुप्त परलोक यानी वह लोक जहाँ पर जीव की मृत्यु होने के बाद उसकी आत्मा जाती है, उस लोक में धर्मराज के सचिव हैं, जो सभी जीवों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा अपने पास रखते हैं। उनके पास मृत्यु लोक यानी पृथ्वीलोक के रहने वाले सभी जीवों के पापों का बही खाता है।

चित्रगुप्त को कायस्थों का इष्टदेव भी माना जाता है, क्योंकि वह ब्रह्मा के 13 ऋषि पुत्रों के बाद 14 पुत्र के रूप में उत्पन्न हुए जोकि कायस्थ कहलाए।


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इस प्रश्न के लिए सही विकल्प होगा —

(ii) हुक्के के ऊपर रखने वाली वस्तु

समझे कैसे?

चिलम का सही अर्थ हुक्के के ऊपर रखी जाने वाली एक वस्तु है। चिलम एक नालीदार वस्तु होती है, जो हुक्के के ऊपर रखी जाती है। चिलम में तंबाकू भरी जाती है ताकि हुक्के के माध्यम से तंबाकू को जलाने पर उसका धुआँ व्यक्ति द्वारा साँसों के माध्यम से अंदर खींचकर धूम्रपान किया जा सके।

चिलम मिट्टी की बनी एक नलीदार पात्र होता है। इसमें तंबाकू भरकर उसके ऊपर जलते हुए अंगारे रखकर तंबाकू को जलाया जाता है और फिर इसे हुक्के के ऊपर रखा जाता है, जिससे इसमें धुआ निकलता है। इस धुएँ को हुक्के के माध्यम से व्यक्ति अपने अंदर खींचता है और धुएँ का धूम्रपान करता है।

हुक्का और चिलम ग्रामीण भारत में प्रयोग की जाने वाली वस्तुएं थी। ग्रामीण लोग विशेषकर जमीदार या संपन्न वर्ग के लोग अक्सर हुक्का पीते थे। अभी भी कई ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषकर उत्तर भारत के हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यो को ग्रामीण क्षेत्रों में हुक्का पीने का प्रचलन है। हुक्का एक एक ऐसा यंत्र होता है, जिसके माध्यम से गांजा, चरस, तंबाकू आदि का धूम्रपान किया जाता है। यह धूम्रपान करने की प्राचीन भारतीय विधि है।

हुक्का लकड़ी का बना एक उपकरण होता है, जिसके ऊपर चिलम रखी जाती है जो कि मिट्टी का बना नालीदार पात्र होता है। इस चिलम में तंबाकू भरकर उसमें अंगारे रख दिए जाते हैं, जिससे तंबाकू सुलगती रहती है और उसमें से धुआँ निकलता रहता है, जिसे हुक्के का प्रयोग करने वाला व्यक्ति अपने मुंह और साँस के माध्यम से अंदर खींचता है और धूम्रपान करता है।
संक्षेप में कहें तो हुक्का और चिलम दोनो उपकरण धूम्रपान द्वारा नशा करने के उपकरण हैं।


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‘गहरे पानी में बैठने से ही मोती मिलता है।’ यह वाक्य कबीर द्वारा रचित दोहे का वाक्य है। इस वाक्य और पूरे दोहे का मुख्य अभिप्राय यही है कि प्रयत्न करने से ही सफलता प्राप्त होती है। निरंतर प्रयत्न करना तथा कठिनाइयों से ना घबराने से ही सफलता प्राप्त होती है।
यहाँ पर गहरे पानी का तात्पर्य कठिनाइयों से है। कबीर ने गहरे पानी और मोती का उदाहरण देकर जीवन में कठिनाइयों से जूझने की प्रेरणा दी है। उन्होंने यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि जीवन में आने वाली कठिनाइयां गहरे पानी के समान है और इन्हीं कठिनाइयों रूपी गहरे पानी के अंदर ही सफलता रूपी मोती छुपा होता है। इसीलिए हमें कठिनाइयों से घबराकर से नहीं घबराना चाहिए और उन पर विजय पाकर सफलता मोती प्राप्त करना चाहिए। मोती पानी के अंदर ही पाया जाता है और मोती पाने के लिए गहरे पानी में छलांग लगानी पड़ती है।

गहरे पानी का डर मन में रखकर पानी में छलांग नहीं लगाएंगे तो मोती नहीं मिलेगा। उसी तरह हम कठिनाइयों का भय मन में रखकर कठिनाइयों से घबराएंगे, उनका सामना नहीं करेंगे तो हमें सफलता नहीं मिल सकती, इस वाक्य का अभिप्राय यही है।

कबीर दास जी का यह पूरा दोहा इस प्रकार है…

जिन खोजा तिन पाइयां,  गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।अर्थात कबीरदास कहते हैं कि जो खोजते हैं, वही पाते हैं, बिना खोजे कुछ नहीं मिलता। जो जीवन में कठिनाइयों से नहीं घबराते हैं, वही सफलता पाने के अधिकारी हैं। जो गहरे पानी को देखकर नदी किनारे बैठे रहते हैं, उन्हें मोती नहीं मिलता। मोती पाने के लिए गहरे पानी में छलांग लगानी पड़ती है। सफलता प्राप्त करने के लिए जीवन में संघर्ष करना पड़ता है। कठिनाइयों  का सामना करना पड़ता है, तब ही सफलता मिलती है।

 

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‘युगे-युगे क्रांति’ नाटक में नई और पुरानी पीढ़ी का संघर्ष है। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए ।

खनिज किसे कहते हैं उदाहरण सहित समझाइए?

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खनिज से तात्पर्य उन पदार्थों से होता है, जो प्राकृतिक रूप से पृथ्वी पर पाए जाते हैं। जिन्हें पृथ्वी के अंदर से खनन करके निकाला जाता है। ऐसे पदार्थ जिनकी रसायनिक संगठन और भौतिक गुण में एक रुप पदार्थ होते हैं और जिन पदार्थों की एक निश्चित आंतरिक संरचना होती है, ऐसे पदार्थ खनिज कहलाते हैं। खनिज पृथ्वी की भूपर्पटी में पाए जाने वाले पदार्थ हैं। खनिज वह पदार्थ हैं, जिसका मनुष्य के लिए किसी ना किसी दृष्टि से उपयोग होता है। खनिज प्रकृति में अशुद्ध अवस्था में पाए जाते हैं और इनका खनन करके इन्हें निकाल कर इन्हें शुद्ध किया जाता है तथा उसके पश्चात ही यह खनिज मनुष्य के लिए उपयोगी बन पाते हैं। प्रकृति में 3 तरह के खनिज पाए जाते हैं…

  1. धात्विक खनिज
  2. अधात्विक खनिज
  3. ऊर्जा खनिज

धात्विक खनिज : धात्विक खनिज से तात्पर्य होता है, जो पृथ्वी की भूपर्पटी से खनन करके अयस्क के रूप में प्राप्त किए जाते हैं। यह अशुद्ध अवस्था में नहीं होते बल्कि इनमें कई अशुद्धियां मिली होती हैं। इन अशुद्धियों को रसायनिक और भौतिक क्रियाओं द्वारा दूर किया जाता है और इन्हें मिलाकर अलग-अलग धातुओं का निर्माण किया जाता है, इसी कारण ये धात्विक खनिज कहलाते हैं। धात्विक खनिज के उदाहरण जैसे लोहा, मैंगनीज, बॉक्साइट, लेड, तांबा, सोना, चाँदी इत्यादि।

अधात्विक खनिज : अधात्विक खनिज वे पदार्थ होते हैं, जो प्रकृति में अधातु के रूप में पाए जाते हैं। अधात्विक खनिज भी पृथ्वी से खनन करके प्राप्त किए जाते हैं। ये भी अशुद्ध अवस्था में होते हैं और इन्हें भी रसायनिक और भौतिक प्रक्रियायो द्वारा शुद्ध किया जाता है और इन्हें उपयोग में लाया जाता है। अधात्विक खनिज से धातु प्राप्त नहीं होती हैं। अधात्विक खनिज के उदाहरण जैसे कार्बन, सोडियम, पोटेशियम, ग्रेफाइट इत्यादि।

ऊर्जा खनिज : ऊर्जा खनिज से तात्पर्य उन खनिज से है, जो ऊर्जा प्रदान करते हैं अर्थात वह खनिज पदार्थ जिनसे ऊर्जा प्राप्त होती है, उन्हें ऊर्जा खनिज कहते हैं। यह ऊर्जा खनिज पृथ्वी की भूपर्पटी के अंदर से खनन करके प्राप्त किए जाते हैं ।ऊर्जा खनिज बेहद ज्वलनशील पदार्थ होते हैं जिनका दहन करके ही ऊर्जा प्राप्त होती है। ऊर्जा खनिज के उदाहरण जैसे पेट्रोलियम, पदार्थ, कोयला, प्राकृतिक गैस इत्यादि।


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सही उत्तर होगा…

1) काशीफल को

‘कुम्हड़ बतिया’ काशीफल को कहते हैं। काशीफल को कद्दू भी कहा जाता है। ‘कुम्हड़ बतिया’ कद्दू का ही छोटा सा फल होता है, जो बेहद कोमल फल होता है। इस फल को यदि हाथ से छू लिया जाए तो यह फल छूते ही मुरझा जाता है। यह बेहद संवेदनशील होने के कारण इस कुम्हड़बतिया कहा जाता है। रामचरितमानस के बालकांड में राम लक्ष्मण परशुराम संवाद प्रसंग में लक्ष्मण परशुराम से इसी कुम्हड़बतिया उल्लेख करते हुए कहते हैं कि वह उन्हें कुम्हड़बतिया ना समझे जो उनकी उंगली के मुरझा जाएंगे।

‘राम लक्ष्मण परशुराम संवाद’ तुलसीदास कृत रामचरितमानस के बालकांड अध्याय में उद्धृत है। यह प्रसंग तब का है जब सीता स्वयंवर में श्री राम शिवजी का धनुष तोड़ देते हैं। वह धनुष परशुराम को शिवजी से वरदान स्वरूप प्राप्त हुआ था। वह धनुष उन्होंने राजा जनक के यहां धरोहर के रूप में रखा हुआ था। इसीलिए धनुष टूटने की बात जानकर वह स्वयंवर स्थल पर आ जाते हैंऔर सब पर क्रोधित होते हैं। तब उनका लक्ष्मण से वाद-विवाद हो जाता है। लक्ष्मण और परशुराम के बीच हो रहे वाद विवाद को ही इस प्रसंग में प्रस्तुत किया गया है।


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कीदृशम् तथा कथम् में अंतर इस प्रकार है…

कीदृशम् तथा कथम् मे सबसे मुख्य अंतर ये है कि ‘कीदृशम्’ संस्कृत भाषा में एक सर्वनाम है तो ‘कथम्’ संस्कृत भाषा में एक ‘अव्यय’ है।

कीदृशम् 

‘कीदृशम्’ संस्कृत भाषा का एक शब्द है, कीदृशम् अर्थ है ‘किस तरह’
‘कीदृशम्’ एक सर्वनाम शब्द है।
कीदृशम् का उपयोग किसी पुरुष (पुल्लिंग) व्यक्ति या वस्तु के बारे में बताने के लिए किया जाता है।
कीदृशम् के कुछ शब्द रूप हैं, इस प्रकार हैं:

प्रथमाःकीदृक्/कीदृग्,कीदृशौकीदृशः
द्वितीयाःकीदृशम्,कीदृशौ,कीदृशः
तृतीयाःकीदृशा,कीदृग्भ्याम्,कीदृग्भिः
चतुर्थीःकीदृशे,कीदृग्भ्याम्कीदृग्भ्यः
पंचमीःकीदृशः,कीदृग्भ्याम्,कीदृग्भ्यः
षष्ठीःकीदृशः,कीदृशोः,कीदृशाम्
सप्तमीःकीदृशि,कीदृशोः,कीदृक्षु
सम्बोधनःहे कीदृक्/कीदृग्!हे कीदृशौ!हे कीदृशः!

कथम्

‘कथम्’ भी संस्कृत भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है ‘कैसे’ या ‘किस प्रकार’। ‘कथम्’ एक अव्यय है।
‘कथम्’ का उपयोग विस्मयादिबोधक प्रश्नों आश्चर्य का भाव प्रकट करने के लिए अथवा प्रश्नवाचक प्रश्नों में प्रश्न पूछने के लिए किया जाता है।

उदाहरण के लिए,

‘परीक्षा कथम् अभवत्?’ अर्थात ‘परीक्षा कैसी थी?’
‘छात्राः संस्कृतपठनं कथं कृतवन्तः?’ अर्थात ‘छात्रों ने संस्कृत का अध्ययन कैसे किया?’
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किताब-उल-हिंद पर टिप्पणी

‘किताब-उल-हिंद’ अलबिरूनी द्वारा अरबी भाषा में लिखी गई एक कृति है, जो भारत के विषय में बताती है। किताब-उल-हिंद अल बिरूनी ने अरबी भाषा में तब लिखी थी, जब वह भारत की यात्रा करके गया था। किताब-उल-हिंद में अल बिरूनी ने भारतीय उपमहाद्वीप के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की जीवन संस्कृति, उनके रीति-रिवाजों, उनकी प्रथाओं, सामाजिक जीवन, धर्म और दर्शन, त्यौहारों, खगोल विज्ञान, भार और मापन की विधियां, मापन यंत्र विज्ञान, कानून, मूर्तिकला जैसे विषयों का विवेचन प्रस्तुत किया है।

किताब-उल-हिंद अनुवाद अरबी भाषा से विश्व की कई अन्य भाषाओं में भी हुआ है। यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो लगभग अपने विषयों के आधार पर लगभग 80 अध्यायों में विभाजित है। लेखक ने इस ग्रंथ की भाषा को बेहद सरल स्पष्ट बनाया है। इस ग्रंथ के अध्याय में एक विशेष शैली का प्रयोग किया गया है तथा हर अध्याय एक प्रश्न से आरंभ होता है। हर अध्याय में संस्कृति वादी परंपराओं का वर्णन है और अध्याय के अंत में उसकी अन्य संस्कृतियों से तुलना भी की गई है। बहुत से विद्वान यह मानते हैं कि अल-बिरूनी का झुकाव गणित की हो होने के कारण ये पुस्तक एक प्रकार से ज्यामितीय संरचना पर आधारित पुस्तक है।

अल बिरूनी
‘अल बिरूनी’ के बारे में बात करें तो अलबरूनी के जन्म के विषय में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है, लेकिन उसके बारे में कहा जाता है कि वह ईरानी मूल का एक मुस्लिम भाषाविद और विद्वान था, जिसने अनेक पुस्तकें लिखी। उसकी मातृभाषा खवारिज्म थी, जो ईरान के उत्तरी क्षेत्र में बोली जाती थी। अल बिरूनी इब्रानी, सीरियाई और संस्कृत भाषा का भी विद्वान था। वह ख्वारिज्म के स्थानीय राजवंश में उसके शासक के संरक्षण में अधिकतर रहा। उसका जन्म 973 हिजरी संवत् को माना जाता है। वह भारत और भारत के दर्शन से बेहद प्रभावित था और संस्कृत भाषा का विद्वान भी था, इसी कारण उसने भारत के अनेक ग्रंथों का अध्ययन किया और फिर भारतीय ज्ञान एवं दर्शन पर किताब-उल-हिंद पुस्तक की रचना की।


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ओजोन धरती का सुरक्षा कवच है, इस बात के प्रमाण के लिए निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत हैं :

  • ओजोन परत धरती के वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत होती है, जो सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावायलेट किरणों) को अवशोषित करने का कार्य करती है। यह पराबैंगनी किरणे (अल्ट्रावायलेट किरणें) मनुष्य के लिए बेहद घातक होती हैं और मनुष्य तथा धरती के अन्य प्राणियों में त्वचा कैंसर तथा अन्य स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का कारण बन सकती हैं।
  • ओजोन परत ओजोन परत पृथ्वी के लिए एक छाते की तरह काम कार्य करती है। ओजोन परत सूर्य से पृथ्वी की ओर आने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है और इसे पृथ्वी की सतह पर नहीं पहुंचने देती। यह हानिकारक पराबैंगनी किरणों से हमारी सुरक्षा करती है।
  • ओजोन परत इसके अतिरिक्त पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करने में भी अहम भूमिका निभाती है। ये सूर्य से आने वाली अत्याधिक गर्मी को परावर्तित करके पृथ्वी पर आने देती है, जिससे पृथ्वी पर अधिक गर्मी नहीं हो पाती और पृथ्वी का तापमान नियंत्रित रहता है।
  • ओजोन परत कुछ अपरिहार्य कारणों और गैर-पर्यावरण गतिविधियों के कारण ओजोन परत में छिद्र हो गया है, जिस कारण सूर्य की किरणों का पृथ्वी की सतह पर आने के खतरे बढ़ गए हैं।

अतः इन सभी तर्कों के आधार पर हम कह सकते हैं कि ओजोन परत पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करती है।


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जल संरक्षण के उपयोग के बारे में लिखिए​।

जैवविविधता के तप्त स्थलों के बारे में समझाइये।

‘एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

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‘एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना’ इन पंक्तियों का भाव यह है कि जीवन में सदैव मिलजुल कर कार्य करना चाहिए। जीवन में किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मिलजुल कर कार्य करने से लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सकता हैय़ जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को करने की बात मन में ठान लेता है और वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कठोर परिश्रम करता है। लेकिन कहते हैं कि अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता है। एक और एक मिलकर दो नही बल्कि एक और एक मिलकर ग्यारह होते हैं। यानि मिलजुलकर कार्य करने से कठिन से कठिन कार्य आसान हो जाता है। इन पक्तियों का भाव यही है कि हमें सदैव मिल-जुलकर कार्य करना चाहिए। मिल-जुलकर कार्य करना हर कार्य को आसान बना देता है। ये पक्तियाँ ‘साथी हाथ बढ़ाना’ गीत की है, जो कि साहिर लुधियानवी द्वारा लिखा गया है।


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ये सुमन लो, यह चमन लो, नीड़ का तृण-तृण समर्पित, चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।​ भावार्थ बताएँ।

ज्ञान घटै कोई मूढ़ की संगत ध्यान घटै बिन धीरज लाये। प्रीत घटै परदेश बसै अरु भाव घटै नित ही नित जाये। सोच घटै कोइ साधु की संगत रोग घटै कुछ ओखद खाये। गंग कहै सुन शाह अकब्बर पाप कटै हरि के गुण गाये॥ भावार्थ बताइए।

इन शब्दों के लिए अनेक शब्दों के लिए एक शब्द बताइए। ‘जो विश्वास न करता हो’ ‘जो सब पर विश्वास करता हो’ जिसके पास बहुत साधन हो’

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दिए गए अनेक शब्दों के लिए एक शब्द वाले शब्द समूह के लिए एक शब्द इस प्रकार होंगे…

जो विश्वास न करता हो : भ्रमित

जो सब पर विश्वास करता हो : आस्थावान

जिसके पास बहुत साधन हो : साधनसंपन्न

व्याख्या :
वह व्यक्ति जो किसी पर भी विश्वास ना करे, जो अविश्वास की स्थिति में रहे तो उसे ‘भ्रमित’ कहा जाता है, क्योंकि उसका किसी पर भी विश्वास नहीं है।
जो व्यक्ति सब पर सहज रूप से विश्वास करता है, उसे ‘आस्थावान’ कहते हैं क्योंकि वह किसी पर भी विश्वास कर लेता है।

जो व्यक्ति साधनों से संपन्न है, इसके पास बहुत सारे साधन हैं तो वह ‘साधनसंपन्न’ कहलाता है। जैसे साधन से संपन्न व्यक्ति को साधनसंपन्न कहते हैं तो गुणों से संपन्न व्यक्ति को गुणसंपन्न कहते हैं।

कुछ और अनेक शब्दों के शब्द समूह के लिए एक शब्द

जो ईश्वर पर विश्वास करता हो : आस्तिक
जो ईश्वर पर विश्वास न करता हो : नास्तिक
जो विश्वास करने योग्य न हो : अविश्वसनीय
जिस पर विश्वास किया जा सके : विश्वसनीय
जो विश्वास को तोड़े : विश्वासघाती
किसी के विश्वास को तोड़ना : विश्वासघात
जो विश्वास करने योग्य हो : विश्वासपात्र


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दिए गए शब्दों के बहुवचन लिखिए। 1. घोंसला 2. टहनी 3. तैयारी 4. नदी 5. नारी 6. लड़का 7. आँख 8. चिडिया. 9. अंडा 10. प्याली 11. घोसला 12. कपड़ा 13. ताला 14. कविता 15. चिड़िया 16. कुटिया

आपको स्कूल जाना क्यों अच्छा लगता है?​ (एक विद्यार्थी के नज़रिए से बताएं)

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विचार/अभिमत

स्कूल जाना क्यों अच्छा लगता है?

 

हमें स्कूल जाना इसलिए अच्छा लगता है क्योंकि स्कूल में हमें नई-नई बातें सीखने को मिलता है। स्कूल में हमें ज्ञान प्राप्त होता है। स्कूल में जाकर हम शिक्षित होते हैं। शिक्षा हम सबके जीवन के लिए बेहद आवश्यक है, शिक्षा ही हमें सक्षम बनाती है। बिना शिक्षा के हमारा जीवन संघर्षों से भरा हो सकता है। शिक्षा हमारे जीवन के संघर्ष को आसान बनाती है, शिक्षा हमें समाज में रहने का तरीका सिखाती है, वह हमें समर्थ बनाती है ताकि हम भविष्य में कोई कार्य करके अपना जीवन यापन कर सकें।

स्कूल हमारे लिए शिक्षा प्राप्त करने का केंद्र है। स्कूल में हमें नई-नई बातें सीखने को मिलती है। स्कूल में हमें नए-नए दोस्त-साथी मिलते हैं, जो हमारे अंदर मित्रता और सामाजिकता की भावना विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इससे हमारे अंदर मित्रता और सामाजिकता की भावना विकसित होती है, जो हमें एक सामाजिक प्राणी बनने में सहायता करती है। इन्हीं सभी कारणों से हमें स्कूल जाना अच्छा लगता है।


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आपके पिता ने आपको आपके जन्मदिन पर एक साइकिल उपहार में दी है। उनको धन्यवाद करते हुए पत्र लिखिए।

हिंदी पत्र लेखन

पिता को धन्यवाद करते हुए पत्र

 

दिनांक : 1 मई 2024

 

आदरणीय पिताजी,
चरण स्पर्श,

मैं आज बहुत खुश हूँ कि आपने मेरी मन की इच्छा को पूरा किया। पिताजी मुझे अपनी खुद की साइकिल होने की बड़ी इच्छा थी। मैं अपने दोस्तों को साइकिल चलाता देखता था तो मेरा मन भी साइकिल चलाने को करता था। घर से मेरा विद्यालय दूर है। मेरे सारे साथी छात्र अपनी अपनी साइकिल से विद्यालय आते हैं।

मुझे भी घर से विद्यालय साइकिल से जाने का मन करता था। इसके अलावा शहर में अन्य जगह पर जाने के लिए भी मुझे साइकिल की आवश्यकता थी। साइकिलिंग करना हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत अच्छा है। आपने मेरे मन की इच्छा को पूरा कर दिया और मुझे साइकिल दिला दी। पिताजी, मेरी इस इच्छा को पूरा करने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।

पिताजी, मुझे पता है कि इस बार कक्षा में मेरे प्रथम आने पर ही आपने मुझे साईकिल दिलाई है। मैं आपको वचन देता हूँ कि मैं आगे और अच्छी तरह पढ़ाई करूंगा और आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरूंगा। मैं आपका भी वचन देता हूँ कि मैं साइकिल को बेहद सुरक्षित तरीके से चलाया करूंगा ताकि कोई दुर्घटना न हो। पिताजी, आपको पुनः धन्यवाद।

आपका पुत्र,
हिमांशु ।


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44, आदर्श सोसायटी, वीरमगाम से निकिता मुंबई-निवासिनी अपनी सखी को ‘मोबाइल के लाभ-हानि’ बताते हुई पत्र लिखती है।

अपने छोटे भाई को पत्र लिखिए कि वह अपने स्कूल में सदा उपस्थित रहे और परीक्षा की भली-भाँति तैयारी करे।

आप अपने मोहल्ले के अध्यक्ष हैं। अपने मोहल्ले की सफाई सुचारू रूप से करवाने व उसे गंदा न होने देने हेतु मोहल्ले वालों के लिए एक सूचना-पत्र तैयार कीजिए।

जलविहार कॉलोनी, दिल्ली

सूचना

 

दिनाँक : 30 अप्रेल 2024

सभी मोहल्लावासियों को सूचित किया जाता है, कि अपने मोहल्ले की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। हमारे मोहल्ले की स्वच्छता हम सभी जल विहार कॉलोनी के निवासियों का उत्तरदायित्व है। इसलिए कॉलोनी के सभी निवासियों को यह सलाह दी जाती है कि वह कॉलोनी में किसी भी तरह का कूड़ा-करकट इधर-उधर ना भेजें। कॉलोनी में जगह-जगह कूड़ेदान लगे हुए हैं। कूड़ा कूड़ेदान में ही डालें।

यदि कॉलोनी का कोई निवासी किसी अन्य व्यक्ति को कॉलोनी की सड़क पर इधर-उधर पूरा डालते देखें तो वह तुरंत उसको कूड़ा डालने से रोकें। कॉलोनी में कूड़ेदान के अतिरिक्त इधर-उधर सड़क आदि पर कूड़ा डालने और गंदगी करते हुए पाए जाने पर ₹500 का जुर्माना लिया जाएगा। मोहल्ले की साफ-सफाई और स्वच्छता हम सभी के लिए बहुत जरूरी है। मोहल्ले में नियमित रूप से साफ-सफाई रखने से इसका सीधा सकारात्मक असर सभी कॉलोनी वासियों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसीलिए अपने कॉलोनी की नियमित साफ-सफाई रखने में कॉलोनी के सभी निवासी अपना यथासंभव योगदान दें।

धन्यवाद,

आज्ञा से विपिन कुमार (अध्यक्ष )
मोहल्ला समिति,
जल विहार कॉलोनी, दिल्ली ।


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अपनी माता जी को अपने हॉस्टल की व्यवस्था की सूचना देते हुए एक पत्र लिखिए।

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अमेरिका में अध्ययन के दौरान जयप्रकाश जी को किस प्रकार का संघर्ष करना पड़ा​? (पाठ- लोकनायक जयप्रकाश नारायण)

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अमेरिका में अध्ययन के दौरान जयप्रकाश नारायण को अनेक तरह के संघर्ष करने पड़े थे।

जब जयप्रकाश नारायण अमेरिका गए तो उन्हें अपने पढ़ाई के साथ-साथ अपनी आजीविका चलाने के लिए छोटे-मोटे हर तरह के काम करने पड़ते थे। उन्होंने वहां के बागानों में श्रम किया। वहाँ के कल-कारखानों में भी श्रमिक के तौर पर काम किया। उन्होंने बूचड़खाना में भी काम किया। इस तरह छोटे-मोटे काम करके वह इतनी कमाई अवश्य कर लेते थे कि उनका अमेरिका में रहने का खर्चा चल जाए। उन्हें अपनी पढ़ाई के लिए फीस की भी आवश्यकता होती थी और अपने रहने के लिए खर्चे की भी आवश्यकता होती थी।

इसलिए इन छोटे-मोटे काम के अलावा वे एक घंटा किसी रेस्त्रां या होटल में बर्तन धोने का अथवा वेटर का कार्य भी करते थे ताकि उन्हें पर शाम का भोजन मिल जाए। जिस जगह पर वे रहते थे, वहां पर केवल एक ही चारपाई थी जिस पर उनके साथ एक लड़का रहता था और दोनों एक ही एक ही रजाई से काम चलाते थे। वे रविवार और छुट्टी के दिनों में किसी होटल में अतिरिक्त कार्य भी करते थे ताकि उनकी अतिरिक्त कमाई हो जाए। इस तरह उन्होंने वहाँ किसी तरह संघर्ष करते हुए बी.ए. पास किया और उनकी पढ़ाई आसान हो गई।


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अच्छे स्वास्थ्य के बारे में स्वास्थ्य रक्षक और चिकित्सक के बीच में संवाद लिखिए।

संवाद लेखन

स्वास्थ्य रक्षक और चिकित्सक के बीच में संवाद

 

चिकित्सक ⦂ आओ भाई, कहो कैसा चल रहा है तुम्हारा स्वस्थ अभियान? मैंने तुम्हें जो कार्य दिया था वह ठीक प्रकार से कर रहे हो ना?

स्वास्थ्य रक्षक ⦂ हाँ, सर, सब कुछ ठीक चल रहा है। मैं आपके द्वारा दिए गए कार्य को भलीभांति कर रहा हूँ। आपने मुझे इस कस्बे के लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने की जिम्मेदारी सौंपी है। मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा हूँ कि इस कस्बे के लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हों।

चिकित्सक ⦂ बहुत अच्छे, मुझे तुमसे ऐसी ही उम्मीद थी।

स्वास्थ्य रक्षक ⦂ पर सर, मेरे मन में कुछ शंकाएँ हैं, कृपया उनका समाधान करें। ताकि मैं लोगों को अच्छी तरह समझा सकूं।

चिकित्सक ⦂ हाँ-हाँ, बोलो।

स्वास्थ्य रक्षक ⦂ इस कस्बे में डेंगू और मलेरिया दोनों बीमारियों का बहुत आतंक है, लेकिन दोनों बीमारियों से बचाव के लिए कुछ उपाय अलग-अलग हैं। आप थोड़ा मुझे विस्तार से बताएं, तो मैं लोगों को इस बारे में अधिक जागरूक कर सकता हूं और दोनों बीमारियों का अंतर और दोनों के बचाव के उपाय बता सकता हूँ।

चिकित्सक ⦂ हाँ-हाँ, जरूर डेंगू और मलेरिया दोनों मच्छर के कारण ही होने वाली बीमारियां हैं, लेकिन दोनों में अंतर है। डेंगू के मच्छर साफ-सुथरे पानी में पनपते हैं, जबकि मलेरिया के मच्छर गंदे पानी में पनपते हैं, इसीलिए तुम लोगों को यह सुझाव दो कि वह अपने आसपास ना तो साफ पानी और ना ही गंदा पानी जमा रखें। मतलब पानी को खुला न छोड़ें।

स्वास्थ्य रक्षक ⦂ अच्छा।

चिकित्सक ⦂ हाँ, डेंगू एक बेहद खतरनाक बीमारी है जो एडीज़ नामक मच्छर के काटने से फैलती है। तुम लोगों को बताया करो कि वह अपने पानी अपने घर में जो भी पानी स्टोर करके रखें उस खुला ना छोड़ें। पानी को सदैव कर रखें। मच्छर साफ पानी में भी हो सकते हैं, इसीलिए सब पानी को भुला ना छोड़े। घर में अधिक नमी की स्थिति ना होने दें। हमेशा मच्छरदानी का इस्तेमाल करें और मच्छरों को भगाने की दवा या क्रीम अथवा स्प्रे का इस्तेमाल करें।

स्वास्थ्य रक्षक ⦂ जी अच्छा।

चिकित्सक ⦂ मलेरिया मच्छरों से बचाव का भी यही उपाय है, लेकिन मलेरिया के मच्छर गंदे पानी में भी पनपते हैं, इसीलिए मलेरिया के मच्छरों से बचने के लिए अपने आसपास किसी भी तरह की गंदगी और ना होने दें और मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी, क्रीम अथवा स्प्रे आदि का इस्तेमाल करें।

स्वास्थ्य रक्षक ⦂ जी बहुत अच्छा। मैं लोगों को इस बारे में अब अच्छे से समझा सकूंगा।

चिकित्सक ⦂ इन रोगों से सावधानी सावधानी रखने के उपाय इस पुस्तिका में हैं। इस पुस्तिका को ध्यान से पढ़ लेना। सब बातें अच्छी तरह याद हो जाएगी और तुम लोगों को अच्छी तरह समझा सकते हो।

स्वास्थ्य रक्षक ⦂ बहुत अच्छा आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। अब मैं चलता हूँ, नमस्ते।

चिकित्सक ⦂ नमस्ते ।


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‘हिमयुग’ शब्द में कौन सा समास है?

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हिमयुग : हिम का युग

समास का नाम : तत्पुरुष समास

तत्पुरुष समास का उपभेद : संबंध तत्पुरुष

हिमयुग में ‘तत्पुरुष समास’ होगा। यहाँ पर तत्पुरुष समास का उपभेद ‘संबंध तत्पुरुष’ होगा। संबंध तत्पुरुष समास में दोनों पदों के बीच का संबंध ‘का’‘की’ कारक चिन्ह के माध्यम से संबंध दर्शाया जाता है।

तत्पुरुष समास’ की परिभाषा के अनुसार समास का वह भेद जिसमें द्वितीय पद अर्थात उत्तर पद प्रधान हो, वह तत्पुरुष समास कहलाता है। तत्पुरुष समास में द्वितीय पद अर्थात उत्तर पद प्रधान होता है और प्रथम पद संज्ञा अथवा विशेषण का कार्य करता है। तत्पुरुष समास के छः उपभेद होते हैं।

इस समास में लिंग, वचन आदि का निर्धारण उत्तर पद यानि द्वितीय पद के अनुसार ही किया जाता है। तत्पुरुष समास में अक्सर कारक चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। इन्हीं कारक चिन्हों के आधार पर तत्पुरुष समास के 6 उपभेद होते हैं।

1. कर्म तत्पुरुष
2. करण तत्पुरुष
3. अधिकरण तत्पुरुष
4. संप्रदान तत्पुरुष
5. अपादान तत्पुरुष
6. संबंध तत्पुरुष


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स्कूल में साफ-सफाई करवाने हेतु प्रधानाचार्य जी को प्रार्थना-पत्र लिखिए​।

औपचारिक पत्र

स्कूल में साफ-सफाई करवाने हेतु प्रधानाचार्य जी को प्रार्थना-पत्र

 

दिनांक : 10 अप्रेल 2024

 

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य महोदय,
जीएस. पोदार सीनियर सेकेंडरी स्कूल,
सांताक्रुझ (मुंबई)

विषय : स्कूल में साफ-सफाई करवाने हेतु अनुरोध

 

आदरणीय प्रधानाचार्य सर, मेरा नाम आदित्य लखेरिया है। मैं कक्षा – 8, सेक्शन – B  में पढ़ता हूँ। मैं अपनी सभी साथी छात्रों की तरफ से आपसे विद्यालय में साफ-सफाई की व्यवस्था में सुधार के लिए यह पत्र लिख रहा हूँ। हमारे विद्यालय में विद्यालय के जो सफाई कर्मचारी नियुक्त हैं, वह विद्यालय में साफ-सफाई तत्परता से नहीं करते हैं, इसी कारण विद्यालय में बहुत गंदगी रहती है। हमारे क्लास रूम में भी पर्याप्त स्वच्छता का अभाव है। सफाई कर्मियों को टोके जाने पर वह कहते हैं कि विद्यालय में सफाई कर्मियों की संख्या में कमी है और कुछ ही सफाई कर्मी हैं जो पूरे विद्यालय में सफाई के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

अतः हम सबका आपसे अनुरोध है कि विद्यालय में पर्याप्त सफाई कर्मियों का प्रबंध किया जाए और उन्हें निर्देश दिए जाएं कि वह विद्यालय में उचित रूप से साफ-सफाई रखें। यह हम सब विद्यार्थियों के स्वास्थ्य के जरूरी है। यदि विद्यालय में गंदगी रहेगी तो न केवल हम सब विद्यार्थियों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ेगा बल्कि हम विद्यार्थी भी साफ-सफाई के प्रति प्रेरित नहीं हो पाएंगे।  यदि हमें विद्यालय में ही साफ-सफाई-स्वच्छता  के प्रति सचेत रहने का पाठ नही मिलेगा तो हम अपने जीवन में स्वच्छता के संस्कार कैसे ढाल पाएंगे।

आशा है कि हम सबके अनुरोध को ध्यान में रखते हुए आप शीघ्र से शीघ्र विद्यालय में पर्याप्त सफाई कर्मियों का प्रबंध करवाएंगे और विद्यालय को नियमित रूप से स्वच्छ रखने के लिए उचित कदम उठाएंगे।

धन्यवाद,

आपका आज्ञाकारी शिष्य
आदित्य लखेरिया,
कक्षा-10 B,
अनुक्रमांक – 4 ।


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किसी महत्वपूर्ण पत्र के देरी से प्राप्त होने पर क्षेत्र के पोस्टमास्टर को इसकी शिकायत करते हुए पत्र लिखिए​।

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‘सर्वत्र एक अपूर्व युग का हो रहा संचार है’ का तात्पर्य

ये पंक्तियाँ कवि ‘मैथिलीशरण गुप्त’ द्वारा रचित ‘भारत-भारती’ काव्य के ‘भविष्यत्’ खंड से ली गई हैं। ‘भारत-भारती’ तीन खंडों में विभाजित है, अतीत खंड, वर्तमान खंड और भविष्यत् खंड। उपरोक्त पंक्तियां भविष्यत् खंड से ली गई है। पंक्तियों वाला पूरा अंतरा इस प्रकार है,

सर्वत्र एक अपूर्व युग का हो रहा संचार है,
देखो, दिनोंदिन बढ़ रहा विज्ञान का विस्तार है;
अब तो उठो, क्यों पड़ रहे हो व्यर्थ सोच-विचार में?
सुख दूर, जीना भी कठिन है श्रम बिना संसार में।।

भावार्थ : कवि मैथिलीशरण गुप्त भारतवासियों का आह्वान करते हुए कहते हैं कि पूरे संसार में चारों तरफ नए युग का आगमन हो रहा है। नवीन सोच-विचारों और विकास गूंज पूरे संसार में सुनाई दे रही है। जिधर देखो, विज्ञान का प्रचार-प्रसार बढ़ता जा रहा है। लोग विज्ञान के सहारे विकास के पद पर अग्रसर हैं, तो हे भारतवासियों! तुम क्यों बेकार की बातें सोचने विचारने में लगे हो क्यो अपना समय नष्ट कर रहे हो। इसलिए अब उठो और श्रम कार्य में लगा जाओ।

बिना परिश्रम किये इस संसार में कुछ भी नहीं मिलता। यदि सुखों की प्राप्ति करनी है, अपने जीवन को सरल बनाना है, तो श्रम करना ही पड़ेगा। यहाँ पर ‘सर्वत्र एक अपूर्व युग का हो रहा है संचार’ इस पंक्ति का तात्पर्य यह है कि कवि ये कहना चाह रहा है कि पूरे संसार में चारों तरफ में नवीन और प्रगतिशील विचारों को अपनाया जा रहा है। विज्ञान का महत्व बढ़ता जा रहा है। विज्ञान और विकास के इस युग में हर देश विकास के पथ पर चल पड़ा है।

विशेष टिप्पणी

‘भारत-भारती’ कविता एक ऐसी काव्य कृति है, जिसके माध्यम से कवि मैथिली शरण गुप्त ने भारत वासियों का आह्वान किया है। मैथिली शरण गुप्त भारतवासियों को प्रेरित करते हुए उनमें जोश भरने का प्रयास करते हैं और भारत के प्राचीन वैभवशाली इतिहास की याद दिलाकर उनके अंदर चेतना भरना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि बाहरी आक्रांताओं के कारण भारतवासियों के मन में जो वेदना और निष्क्रियता की भावना भर गई थी वह अब उस भावना से मुक्ति पा लें और एक नए युग के आरंभ में लग जाएं।


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सरकारी अस्पतालों  में निर्धन व्यक्ति की स्थिति

 

सरकारी अस्पतालों में निर्धन व्यक्ति की स्थिति बहुत अधिक अच्छी नहीं है। हालांकि सरकारी अस्पताल निर्धन व्यक्ति यानी आम जनता के लिए ही खोले जाते हैं, ताकि वह व्यक्ति जो धन अभाव के कारण अपनी बीमारी का इलाज नहीं करवा पाने में असमर्थ हो वह सरकारी अस्पताल के माध्यम से अपनी बीमारी का इलाज करवा सके।

सरकारी अस्पताल आम जनता के कल्याण के लिए खोले जाते हैं, जहां पर उन्हें मुफ्त में चिकित्सा मिल सके। लेकिन  सच बात तो यही है कि सरकारी अस्पतालों में निर्धन व्यक्ति की स्थिति बहुत अधिक अच्छी नहीं है। सरकारी अस्पताल केवल खाना-पूरी का साधन बनकर रह गए हैं। वह निर्धन व्यक्ति जो बिल्कुल ही विवश है, जिसके पास अपना इलाज कराने के लिए अन्य कोई विकल्प नहीं है, वह ही सरकारी अस्पताल में इलाज करने के लिए आता है।

सभी सरकारी अस्पतालों के संदर्भ में यह बात सच नहीं हो सकती कि सभी सरकारी अस्पतालों की स्थिति बेकार है। बड़े शहरों के कुछ बड़े सरकारी अस्पतालों में स्थिति थोड़ी ठीक-ठाक है और वहां पर निर्धन व्यक्ति को सही उपचार मिल जाता है लेकिन अधिकतर सरकारी अस्पतालों की स्थिति खराब ही होती है। न तो वहाँ पर पर्याप्त उपचार के साधन होते हैं और न ही सही ढंग से उपचार मिलता है।

सरकारी अस्पतालों का स्टाफ जिसमें डॉक्टर नर्स तथा कर्मचारी आदि शामिल हैं, वह ना तो निर्धन जनता के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं और ना ही उनका उस लगन से उपचार करते हैं, जैसा उन्हें करना चाहिए। निर्धन व्यक्ति को अपने इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में इधर-उधर दौड़ना पड़ता है और डॉक्टरों तथा नर्सों की खुशामद करनी पड़ती है, तब कहीं जाकर उसे थोड़ा इलाज मिल पाता है।

सरकारी अस्पतालों में सरकार की तरफ से अनेक सुविधाएं के रूप में दवा तथा अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, लेकिन बीच के बिचौलिए इन सभी को बीच में ही गबन कर जाते हैं और इनका असल लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच पाता। सरकारी अस्पताल में सरकार की तरफ से नियमित रूप से मुफ्त दबाए उपलब्ध कराई जाती हैं लेकिन अधिकतर दवाईयां बीच के बिचौलिए अस्पताल तक आने ही नहीं देते और उन्हें बीच में ही बेचकर खा जाते हैं, इसमें अस्पताल के कर्मचारियों की मिली भगत शामिल होती है। इसका परिणाम यह होता है कि जो भी गरीब व्यक्ति अपना जो निर्धन व्यक्ति अपना उपचार करने अस्पताल में आया है, उसे सरकारी अस्पताल का डॉक्टर बाहर की दवाई लिखकर दे देता है।

सरकारी अस्पताल में जहाँ देखो अव्यवस्था और भ्रष्टाचार फैला हुआ है। इस कारण वह व्यक्ति जो आर्थिक रूप से थोड़ा ठीक स्थिति में है, वह सरकारी अस्पताल में इलाज करने की जगह किसी निजी अस्पताल में अपना इलाज करना बेहतर समझता है। हालांकि अस्पताल में भी धन के नाम पर लूट मची होती है, लेकिन वहां पर बेहतर इलाज और अच्छी देखभाल हो जाती है जबकि सरकारी अस्पताल में ऐसा नहीं होता। इसलिए निर्धन व्यक्ति के संदर्भ में बात की जाए तो सरकारी अस्पताल की स्थिति निर्धन व्यक्ति की स्थिति बहुत अधिक अच्छी नहीं है।


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‘समुद्र में खोया हुआ आदमी’ उपन्यास की समीक्षा

‘समुद्र में खोया हुआ आदमी’ हिंदी के जाने-माने उपन्यासकार और कहानीकार ‘कमलेश्वर’ द्वारा लिखित एक उपन्यास है। ये उपन्यास रोजगार के लिए महानगरों के आकर्षण में खिंचे चले आए लोग और महानगर की समस्याओं में उलझकर महानगरों के प्रति घटते उनके मोहभंग को दर्शाती एक कहानी है।

उपन्यास की कथावस्तु एक मध्यमवर्गीय परिवार की है। परिवार का मुखिया श्यामलाल है, जो रोजगार की तलाश में अपने गाँव को छोड़कर दिल्ली जैसे बड़े महानगर में आता है। यहाँ पर उसकी एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी लग जाती है, लेकिन कुछ समय बाद में ट्रांसपोर्ट कंपनी बंद होने के कारण उसे नौकरी छोड़नी पड़ती है। ऐसी स्थिति में घर परिवार के सामने जीवन-यापन की समस्या खड़ी हो जाती है। श्यामलाल गाँव से रोजगार के लिए अपने परिवार सहित दिल्ली महानगर में आया था, लेकिन यहां पर उसका रोजगार कुछ समय बाद ही छूट गया। अब महानगरीय खर्चो की भरपाई कैसे करें। यही आर्थिक समस्या उसके सामने खड़ी रहती है। वह आर्थिक उपार्जन की जद्दोजहद में काम को ढूंढता रहता है।

श्यामलाल की दो बेटियां तारा और समीरा है तो एक बेटा बीरन है। श्यामलाल की बेटियां बड़ी हो रही हैं और वह अपने पिता का हाथ बंटाने के लिए काम करना चाहती हैं, लेकिन श्यामलाल पुराने विचारों वाला व्यक्ति है। उसे अपने घर की स्त्रियों का काम बाहर काम करना पसंद नहीं। अंत में घर की जरूरत के आगे समझौता करते हुए श्यामलाल अपनी बेटी तारा को पैटर्न हाउस में काम करने की अनुमति दे देता है। यह पैटर्न हाउस हरबंस का है। अब तारा पर ही घर की सारी जिम्मेदारी आ जाती है।

श्यामलाल को कोई काम नहीं मिलता और वह यूं ही समय काट रहा होता है। श्यामलाल को अपनी बेटियों से अधिक उम्मीद नहीं थी। वह दकियानूसी सोच वाला पिता था जो अपने बेटियों के अपेक्षा अपने बेटों से अधिक उम्मीद रखते हैं। उसे अपना एकमात्र सहारा अपना पुत्र बीरन ही नजर आ रहा था। बीरन 12वीं परीक्षा पास करने के बाद सेना में भर्ती हो जाता है और ट्रेनिंग के लिए दिल्ली से दूर चला जाता है। नौकरी लगने के कुछ माह तक वह घर के खर्चे के लिए मनी ऑर्डर भेज देता है, लेकिन फिर उसका मनी ऑर्डर आना बंद हो जाता है। ऐसी स्थिति में अब घर के खर्चों को देखने की सारी जिम्मेदारी श्यामलाल के हाथ में आ गई थी।

उसकी बड़ी बेटी तारा भी उसी व्यक्ति हरबंस से विवाह कर लेती है, जिसके यहाँ वह काम करती है। श्यामलाल ऐसा नहीं चाहता था, लेकिन उसे मजबूरी में उसकी मंजूरी देनी पड़ती है। उधर बीरन का जहाज समुद्र में खो गया है और वह अब कभी ना लौट कर आएगा, यह बात श्यामलाल को पता चल चुकी है, लेकिन वह इस सच्चाई को स्वीकारना नहीं चाहता। बीरन का मनीआर्डर बंद होने के बाद अब घर के खर्चों के प्रबंध की सारी जिम्मेदारी श्यामलाल के पास, फिर तारा के आ जाती है।

श्याम लाल की छोटी बेटी समीरा नर्स की ट्रेनिंग करने लगती है। श्यामलाल को घर के खर्च के लिए फैक्ट्री में दरबार की नौकरी करनी पड़ती है। इस तरह श्यामलाल का पूरा परिवार महानगरीय जनसमुद्र में खो जाता है। महानगरी खर्चों और महानगरीय जीवन शैली के आगे उसका पूरा परिवार बिखर जाता है। यही व्यथा इस उपन्यास के माध्यम से व्यक्त की गई है।

कमलेश्वर का यह उपन्यास महानगरों में टूटे हुए परिवारों की कहानी की करुण गाथा को ही प्रकट करता है। श्यामलाल की कहानी को भले ही इस उपन्यास का आधार बनाया गया हो, लेकिन यह हर महानगरीय मध्यम वर्गीय परिवार की करुण गाथा है। महानगर के भारी भरकम खर्चों के बोझ तले मध्यमवर्गीय परिवार के हर सदस्य को काम करने के लिए विवश होना पड़ता है और इसी बेरहम महानगर के भंवरजाल में फंसकर परिवारों टूट जाते हैं। परिवार के सदस्यों को रोजगार के बेहतर अवसर के लिए अलग-अलग रास्ते अपनाने पड़ते हैं, यही महानगरों की सच्चाई है।

अंत में…

कमलेश्वर जी ने ‘समुद्र में खोया हुआ आदमी’ उपन्यास के माध्यम से श्यामलाल के परिवार की करुण गाथा को आधार बनाकर जिस कथानक की रचना की है, वह एक प्रतीक है। यह कहानी केवल श्यामलाल की कहानी ही नहीं, बल्कि हर उस मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है, जो महानगर में बेहतर जीवन की तलाश में आते हैं और फिर बेरहम महानगरों की कठोर और बनावटी जीवन-शैली में उलझ कर रह जाते हैं।

परिवार के जो सदस्य छोटे गाँव-कस्बों में मिलजुल कर रहते थे, इन महानगरों में आकर उनके सोच विचार बदल जाते हैं अथवा उन्हें विवश होकर अपने रास्तों और विचारों को बदलना पड़ता है। किसी जद्दोजहद में परिवार टूट कर बिखर जाते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि समुद्र में खोया हुआ आदमी महानगर में धीरे-धीरे टूटे हुए परिवार की करुण गाथा है।


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वाणी मनुष्य के लिए परमात्मा का एक अनुपम वरदान है। इस वरदान के कारण ही मनुष्य सचमुच मनुष्य है । यह वरदान एक अभिशाप भी बन सकता है, यदि इसका उपयोग समझ कर नही किया जाय तो । बिना सोच-विचार के मुह से निकले शब्द अनर्थ कर सकते हैं। इसीलिए यह परामर्श दिया गया है कि देखो और सुनों अथिक और बोलो कम । प्रश्नः 1. वाणी का वरदान किसे प्राप्त हुआ ? प्रश्नः 2. वरदान अभिशाप कब बन सकता है ? प्रश्नः 8. शब्द अनर्थ कैसे होते हैं ? प्रश्नः 9. गद्यांश में युग्म शब्द पहचान कर लिखिए । प्रश्नः 10. उपयुक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए ।

शिक्षा के विकास में सूचना और संचार की क्या भूमिका है?

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शिक्षा के विकास में सूचना और संचार की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सूचना एवं संचार के माध्यम से शिक्षा को दूर-दराज इलाकों तक पहुंचा जा सकता है। सूचना एवं संचार वह माध्यम है, जिनके द्वारा शिक्षा का विस्तार किया जा सकता है। सूचना एवं संचार के माध्यम से शिक्षा की पहुंच हर किसी तक बनाई जा सकती है।

दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्र या दुर्गम क्षेत्रों में जहाँ पर बड़े विद्यालय खोल पाना संभव नहीं हो अथवा विद्यालय खोल पाने में कठिनाई हो रही हो, ऐसी स्थिति में वहाँ सूचना एवं संचार के माध्यम से वहाँ के बच्चों को शिक्षित किया जा सकता है। सूचना एवं संचार के माध्यम में समाचार-पत्र, टीवी, रेडियो, कंप्यूटर, इंटरनेट आदि प्रमुख हैं।

इन सभी सूचना-संचार माध्यमों से शिक्षा की प्रचार-प्रसार को बढ़ाया जा सकता है। आज का युग सूचना एवं संचार का युग है और ऑनलाइन शिक्षा इसी सूचना एवं संचार के कारण ही संभव हो पाई है। आज कोई भी विद्यार्थी शिक्षा से संबंधित हर समस्या का समाधान घर पर बैठे-बैठे सूचना-संचार के माध्यम जैसे मोबाइल, कंप्यूटर आदि के द्वारा आसानी से प्राप्त कर सकता है। जब सूचना एवं संचार के साधन बहुत अधिक विकसित नहीं हुए थे। तब शिक्षा का प्रचार-प्रसार भी कम था जो सूचना एवं संचार के नए-नए साधन विकसित होते गए वैसे-वैसे शिक्षा का प्रचार-प्रसार भी बढ़ता गया।

निष्कर्ष : हम कह सकते हैं कि शिक्षा के विकास में सूचना एवं संचार की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका होती है।


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विचार लेखन

सड़क को कैसे साफ-सुथरा रख सकते हैं

 

अपने  देश, राज्य, शहर, कॉलोनी आदि और आसपास की सड़क को साफ-सुथरा रखने के लिए हमें ये बातें ध्यान में रखनी चाहिए।

  • सड़क को साफ-सुथरा रखने के लिए हमें चाहिए कि हम सड़क पर किसी भी तरह की गंदगी ना करें। हम एक जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य निभाकर सड़क पर किसी भी तरह की गंदगी ना करने का संकल्प ले सकते हैं।
  • हमें कूड़ा डालते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि हम सड़क पर इधर-उधर कूड़ा ना फेक बल्कि सड़क किनारे जो भी कूड़ेदान रखे होते हैं, उनमें कूड़ा डालें।
  • यदि हमें सड़क किनारे कोई कूड़ेदान ना दिखे तो हम उस समय उस कूड़े को किसी थैली में या कागज में लपेटकर अपने पास रख ले और बाद में उचित जगह आने पर वह कूड़ा डाल दें।
  • हमें ये अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि हमें किसी भी स्थिति में कैसा भी कूड़ा सड़क पर नही डालना है। सड़क पर कूड़ादन ना होने की स्थिति में हम नगर पालिका में शिकायत करें कि सड़क पर उस जगह पर कूड़ादान नहीं है।
  • एक जागरूक नागरिक की तरह यदि नगर पालिका को इस संबंध में शिकायत करेंगे तो नगर पालिका भी साफ-सफाई के प्रति सचेत होगी और वह साफ-सफाई संबंधी सभी सुविधाएं उपलब्ध कराएगी। वह जगह-जगह कूड़ेदान लगवाएगी।
  • अक्सर लोग पान खाते समय सड़क पर थूकते हैं या खाँसते हुए थूकते हैं। हमे ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। सड़क पर इधर-उधर थूकने से न केवल गंदगी होती है, बल्कि बीमारियां फैलने का भी खतरा बढ़ता है। इसलिए हमें कभी सड़क पर इधर-उधर नहीं थूकना चाहिए।

इस तरह इन छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर हम अपने क्षेत्र और नगर-गाँव की सड़क को सड़क को साफ-सुथरा रख सकते हैं।


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वाणी मनुष्य के लिए परमात्मा का एक अनुपम वरदान है। इस वरदान के कारण ही मनुष्य सचमुच मनुष्य है । यह वरदान एक अभिशाप भी बन सकता है, यदि इसका उपयोग समझ कर नही किया जाय तो । बिना सोच-विचार के मुह से निकले शब्द अनर्थ कर सकते हैं। इसीलिए यह परामर्श दिया गया है कि देखो और सुनों अथिक और बोलो कम । प्रश्नः 1. वाणी का वरदान किसे प्राप्त हुआ ? प्रश्नः 2. वरदान अभिशाप कब बन सकता है ? प्रश्नः 8. शब्द अनर्थ कैसे होते हैं ? प्रश्नः 9. गद्यांश में युग्म शब्द पहचान कर लिखिए । प्रश्नः 10. उपयुक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए ।

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वाणी मनुष्य के लिए परमात्मा का एक अनुपम वरदान है। इस वरदान के कारण ही मनुष्य सचमुच मनुष्य है । यह वरदान एक अभिशाप भी बन सकता है, यदि इसका उपयोग समझ कर नही किया जाय तो । बिना सोच-विचार के मुह से निकले शब्द अनर्थ कर सकते हैं। इसीलिए यह परामर्श दिया गया है कि देखो और सुनो अधिक  और बोलो कम ।

 

प्रश्नः 1. वाणी का वरदान किसे प्राप्त हुआ ?
उत्तर : वाणी का वरदान मनुष्य के लिए प्राप्त है।

प्रश्नः 2. वरदान अभिशाप कब बन सकता है ?
उत्तर : वरदान तब अभिशाप बन जाता है, जब उस वरदान का उपयोग सोच-समझ कर सार्थक और सकारात्मक उपयोग नही किया जाये।

प्रश्नः 3. शब्द अनर्थ कैसे होते हैं ?
उत्तर : बिन सोचे-समझे बोले गए शब्द अनर्थ बन जाते है। जब हम कोई बात बिना सोचे-समझे बात के परिणाम के अच्छे-बुरे पर विचार किए बिना शब्दों को बोल देते हैं, तो वे शब्द अनर्थ बन जाते हैं।

प्रश्नः 4. गद्यांश में युग्म शब्द पहचान कर लिखिए ।
उत्तर : गद्यांश में शब्द युग्म इस प्रकार होंगे…
शब्द युग्म ⇒ सोच-विचार

प्रश्नः 5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए ।
उत्तर : उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक होगा, ‘वाणी का प्रभाव


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चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।

संदर्भ : यह पंक्तियां कवि ‘रामावतार त्यागी’ द्वारा रचित कविता ‘और भी दूं’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने देश के प्रति अपना सर्वस्व त्याग देखने की भावना को प्रकट किया है। इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार होगा…

भावार्थ :  कवि कहते हैं कि वह अपने देश के प्रति वे सभी फूल, वे सभी बगीचे, मेरे घर रूपी घोंसला का तिनका-तिनका अपने देश की सेवा में अर्पित कर देना चाहता हूँ। मेरे पास जो कुछ भी है, वह सब मेरे देश के लिए है। मेरी तो यही आकांक्षा है कि जितना से अधिक से अधिक अपने हो सके अपने देश के लिए अर्पण कर सकूं।

विशेष टिप्पणी : कवि ने इस कविता इन पंक्तियों के माध्यम से देश के प्रति अपना सर्वस्व समर्पित करने की बात कही है। यहाँ पर नीड़ यानि घोंसला से तात्पर्य है, उसके घर से है। घर से तात्पर्य मकान से नहीं बल्कि उसकी पूरी सामाजिक संरचना से है। कवि अपना सब कुछ अपने देश के लिए समर्पित कर देना चाहता है।


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राम और रावण के बीच हुए एक प्रभावशाली काल्पनिक संवाद को लिखिए।

संवाद लेखन

राम और रावण के बीच हुआ एक संवाद

 

राम ⦂ रावण, मेरा कहना मान लो अभी भी सही रास्ते पर आ जाओ, नहीं तो तुम्हारा अंत निश्चित है।

रावण ⦂ राम, तुम साधारण से मानव मेरा क्या बिगाड़ सकते हो। मुझे तुमसे कोई डर नहीं।

राम ⦂ कभी भी किसी को निर्बल नहीं समझना चाहिए और ये भी जान लो कि असत्य पर सदैव सत्य की विजय होती है। तुम असत्य के मार्ग पर चल रहे हो और मैं सत्य का साथ दे रहा हूँ। इसलिए डरने की तुम्हें आवश्यकता है, मुझे नहीं।

रावण ⦂ हा हा हा, राम तुम्हारी बातों से मुझे हंसी आ रही है।

राम ⦂ मैं तुम्हें आखिरी बार चेतावनी देता हूँ, मेरी पत्नी सीता जिनका तुमने अपहरण किया हुआ है, उन्हें तुम ससम्मान मुझे वापस सौंप दो और सीताजी से अपने कृत्य के लिए क्षमा मांग लो, तो हो सकता है कि वो तुम्हें क्षमा कर दें।

रावण ⦂ क्षमा और तुम लोगों से? ये रावण के स्वभाव में नही। तुम्हें मेरी शक्ति का आकलन नहीं है। तुम जैसे साधारण मानव के आगे में राक्षस राज रावण क्षमा मांगूंगा, हा हा हा।

राम ⦂ तुम किसी की नहीं सुनने वाले। मुझे तुम्हारे भाई विभीषण ने सच ही कहा था कि तुम बेहद जिद्दी हो। अब तुम्हारा भला नहीं हो सकता। अब इस इस संसार से तुम्हारे अत्याचारों का अंत करने के लिए मुझे तुम्हारा वध करना ही पड़ेगा।

रावण ⦂ मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। तुम्हें अपनी सुरक्षा की चिंता होनी चाहिए। जिस तरह तुम्हारे भाई लक्ष्मण को मेरे पुत्र मेघनाथ ने बुरी तरह घायल कर दिया था, वैसे ही मैं तुम्हारा हाल करूंगा। हर बार संजीवनी बूटी तुम्हारी रक्षा नहीं करेगी।

राम ⦂ ठीक है, कौन किसको घायल करता है, देखते हैं। मिलते हैं रणभूमि में।

रावण ⦂ हाँ अब रणभूमि में मैं तुम्हारा वही हाल करूंगा, जो मेरे पुत्र मेघनाथ ने तुम्हारे भाई लक्ष्मण का किया था। इस बार तुम दोनों भाई बच नहीं पाओगे।

राम ⦂ चलो देखते हैं, कौन किसका बुरा हाल करता है। तुम्हें समझाना मेरा कर्तव्य था। ना समझना तुम्हारा स्वभाव। कल के युद्ध के लिए तैयार रहो। कल का दिन इतिहास में विजयादशमी के नाम से जाना जाएगा, जब मैं तुम्हारा वध करूंगा।

रावण ⦂ हा हा हा


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यदि सरदार पटेल ने रियासतों को भारतीय संघ में न मिलाया होता तो क्या होता?

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यदि सरदार पटेल ने रियासतों को भारतीय संघ में ना मिलाया होता तो आज हम भारत का जो संगठित स्वरूप देख रहे हैं, वह नहीं होता तब शायद आज का भारत वैसा भारत नहीं होता। भारत के कई भाग अलग-अलग स्वतंत्र रियासत के रूप में अस्तित्व में होते। इस तरह एक संगठित भारत का निर्माण नहीं हो पाया होता।

यह सरदार पटेल की कुशलता, राजनीतिक कूटनीति और दृढ़ निश्चयता ही थी, जिसके बल पर उन्होंने 1947 में भारत की आजादी के बाद लगभग 562 राजे-रजवाड़ो (रियासतों) को मिलाकर एक संगठित भारत के निर्माण में अहम योगदान दिया।

जब अंग्रेजों ने भारत को आजादी दी तो भारत के दो टुकड़े कर दिए, जिसे भारत और पाकिस्तान में बांट दिया गया। भारत के हिस्से में ब्रिटिश इंडिया के नाम से जो भूभाग आया उसमें ब्रिटिश इंडिया के अलावा अन्य कई छोटी-बड़ी राजवाड़े-रियासत आदि थे जो अंग्रेजों द्वारा शासित ब्रिटिश इंडिया के पूरी तरह अधीन नहीं थे बल्कि उनका प्रशासनिक ढांचा स्वतंत्र था। हालांकि कई मामलों में वह अंग्रेजों के अधीन भी थे।

भारत की आजादी के बाद अंग्रेजों ने उन सभी रियासतों को स्वतंत्र कर दिया और उन्हें अपनी इच्छाानुसार भारत के संग अथवा पाकिस्तान में शामिल होने अथवा स्वतंत्र रहने की छूट दे दी। यह स्वतंत्र राजवाड़े-रियासत यदि पूर्ण रूप से भारतीय संघ में नहीं मिले होते तो आज भारत जैसे विशाल देश का निर्माण नहीं हो पाया होता।

सरदार पटेल भारत की आजादी के बाद भारत सरकार में गृहमंत्री बने और उन्होंने यह निश्चय कर लिया था कि वह इन सभी छोटी-छोटी रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करेंगे और एक वृहद भारत का निर्माण करेंगे। अपने इस कार्य के लिए उन्हें कहीं पर जनमत संग्रह, कहीं पर विनम्रता, कहीं पर बातचीत, तो कहीं पर कूटनीतिक दृढ़ता और बल-शक्ति का सहारा लेना पड़ा। उन्होंने हर तरह के प्रयास से इन छोटी-मोटे छोटे-बड़े सभी रियासत राजवाड़े को भारतीय संघ में शामिल करवा कर एक वृहद भारत के योगदान में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसीलिए यदि हर सरदार पटेल ने रियासतों को भारतीय संघ में ना मिलाया होता तो हमारा हमारे भारत का यह वर्तमान स्वरूप सहित देखने को नहीं मिल पाता। बहुत सी रियासतें या तो स्वतंत्र ही रह जाती अथवा पाकिस्तान आदि के साथ भी शामिल हो सकती थी।

इसलिए भारत के वर्तमान भौगोलिक स्वरूप के निर्माण एकमात्र श्रेय सरदार वल्लभ भाई पटेल को जाता है।


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‘युगे-युगे क्रांति’ नाटक में नई और पुरानी पीढ़ी का संघर्ष है। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए ।

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‘युगे युगे क्रांति’ नाटक हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार ‘विष्णु प्रभाकर’ द्वारा लिखा गया एक सामाजिक पृष्ठभूमि का नाटक है, जिसमें पारिवारिक संबंधों के ताने-बाने को आधार बनाकर उपन्यास की कथावस्तु रची गई है। विष्णु प्रभाकर बहुमुखी प्रतिभा वाले साहित्यकार थे। वह सामाजिक संबंधों पर आधारित उपन्यासों की रचना के सिद्धहस्त साहित्यकार रहे हैं। उन्होंने समाज में फैली सामाजिक कुरुतियों को आधार बनाकर अनेक उपन्यासों की रचना की है।

‘युगे-युगे क्रांति’ उपन्यास भी ऐसा ही एक उपन्यास है, जिसमें नई एवं पुरानी पीढ़ी के बीच उपजे संघर्ष को दर्शाया गया है। इस उपन्यास में दो पीढ़ियों नहीं बल्कि पांच पीढ़ियों के बीच संघर्ष के को दर्शाया गया है।

उपन्यास में घटित घटनाओं का कालक्रम 1875 से लेकर 1942 तक समय का दर्शाया गया जिसमें एक ही परिवारी की पाँच अलग-अलग पीढ़ियों का संघर्ष दिखाया गया है। उपन्यास में यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है कि एक पीढ़ी यदि अपनी तात्कालिक सामाजिक मान्यता के विरुद्ध कोई नया एवं साहसिर कदम उठाती है तो वह तात्कालिक समय में भले ही क्रांतिकारी कदम माना जाता हो, लेकिन यही पीढ़ी जब पुरानी हो जाती है, तो उसका यही क्रांतिकारी कदम क्रांतिकारी नहीं रह जाता और उसके आगे की नई पीढ़ी उससे भी आगे बढ़कर नया साहसिक कदम उठाती है। तब वही पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी द्वारा उठाए गए साहसिक कदम का विरोध करती है, भले उस पुरानी पीढ़ी ने अपने समय में खुद कोई क्रांतिकारी कदम क्यो न उठाया हो।

इस तरह किसी भी पीढ़ी द्वारा उठाया गया कदम क्रांतिकारी कदम सर्वकालिक क्रांतिकारी कदम नहीं मान जाया जाता। नई पीढ़ियों ने हमेशा पुरानी पीढ़ियों की मान्यताओ का विरोध ही किया है। यह क्रम निरंतर चलता रहता है।

इस उपन्यास में लाल जी, कल्याण सिंह, प्यारेलाल, शारदा-विमल, प्रदीप, अनिरुद्ध जैसी पांच पीढ़ियो की क्रांतियों को दर्शाया गया है। पहली पीढ़ी की क्रांति 1875 के समयकाल की है, जब सामाजिक मान्यता के अनुसार अपनी पत्नी का मुख देखने तक को पाप माना जाता था। पत्नी को परिवार में परदे मे रहना पड़ता था। यहाँ तक कि उसका पति भी उसका मुख नही देख सकता था।

उस समय कल्याण सिंह स्वामी दयानंद के आधुनिक विचारों से प्रभावित है। वह अपनी पत्नी रामकली का मुँह देखना चाहता है, लेकिन उसके पिता लाल जी इसे कुल की मर्यादा का उल्लंघन मानते हैं। पत्नी भी मुँह दिखाने से मना करती है, लेकिन कल्याण सिंह इसे पाप नहीं मानता और वह अपनी पत्नी रामकली का मुँह देखता है। जब कल्याण सिंह के पिता लाल जी को यह बात पता चलती है तो वह अपने पिता के हाथों मारा खाता है. लेकिन वह इस सामाजिक कुरीति के विरुद्ध आगे बढ़कर एक क्रांतिकारी कदम उठाता है। इस तरह यह पहली क्रांति हुई।

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तीसरी क्रांति 1921 में हुई जब प्यारे लाल की पुत्री शारदा प्यारेलाल की इच्छा के विरुद्ध जाकर अपनी मर्जी से विमल से अंतर्जातीय विवाह करती है। वह आधुनिक विचारों की समर्थक है।

चौथी क्रांति 1942 में तब हुई, जब विमल और शारदा का पुत्र प्रदीप अपनी मर्जी से जाकर जेनेट नामक ईसाई स्त्री से अंतर्धार्मिक विवाह कोर्ट में जाकर करता है।

पांचवी क्रांति और अधिक आधुनिक युग में घटती है, जब प्रदीप और जेनेट की संतान अनिरुद्ध विवाह के बंधन को ही नहीं मानती और वह बिना विवाह के ही साथ स्त्री पुरुष के साथ रहने को उचित मानती है। अनिरुद्ध अलग अलग स्त्रियों के साथ बिना विवाह के ही रहता है और वह कुछ समय बाद उससे संबंध विच्छेद भी कर लेता है, इस तरह वह विवाह को जरूरी नही मानता।

निष्कर्ष

‘युगे-युगे क्रांति’ उपन्यास में हर पीढ़ी दर पीढ़ी कोई ना कोई क्रांतिकारी कदम उठाने की घटना हुई है, लेकिन जिस भी पीढ़ी ने क्रांतिकारी कदम उठाया है, उसने अपनी अगली पीढ़ी द्वारा उठाए गए क्रांतिकारी कदम का विरोध ही किया है। इस तरह यह उपन्यास नई एवं पुरानी पीढ़ी के बीच उपजे संघर्ष की कथा को स्पष्ट करता है।


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‘मैं सबसे छोटी होऊँ’ कविता में कवि ‘सुमित्रानंदन पंत’ ने एक छोटी सी बच्ची के मनोभावों को व्यक्त किया है। एक छोटी सी बच्ची अपने माँ के प्रेम-स्नेह के प्रति जो मनोभाव रखती है, वह इस कविता में प्रकट किया गया हैं।

इसी कविता के आधार पर कहें तो अगर हमें भी छोटा-छोटा बनने का अवसर मिले और तो हम बचपन को दुबारा से जीना चाहेंगे। अपना बचपन किसको प्यार नहीं होता बचपन मासूम होता है, जो दुनिया के छल-कपट से दूर होता है। यदि हमें दोबारा से छोटा बनने का अवसर मिले तो हम फिर खेत-खलिहानों, मैदानों में उछल कूद करते हुए, धमा-चौकड़ी मचाते हुए घूमा करेंगे।

हम बागों में पेड़ों पर लगे फलों को तोड़ा करेंगे। बाग बगीचों में खेला करेंगे झूलों पर झूला करेंगे हमें दोबारा से छोटा बनने का अवसर मिले तो हम अपने बचपन को फिर से जीना चाहेंगे। अपने बचपन की उन सभी सुखद अनुभूतियों को दोहराना चाहेंगे जो हमने बचपन में की थी। हम अपने माता-पिता से जिद करके अपनी मनचाही वस्तु या खिलौने मांगा करेंगे।

हम अपनी माँ के सामने अपने मनपसंद खाने बनाने की जिद कर करेंगे और यदि हमें हमारा मनपसंद खाना नहीं मिले तो हम रूठ जाया करेंगे। तब हमारी माँ हमें मना कर हमारे मनपसंद खाना बनाकर खिलाया करेगी। हम अपने पिता से अपने मनपसंद कपड़े, खिलौने अथवा कोई मनपसंद वस्तु पाने की खुशामद किया करेंगे। पिता हमारे सामने परीक्षा में अच्छे अंक लाने की शर्त रखेंगे तो हम वह शर्त पूरी करने की कोशिश कर करेंगे।

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मुहावरे का भाषा पर क्या प्रभाव पड़ता है​?

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मुहावरे का भाषा पर बेहद सकारात्मक और अच्छा प्रभाव पड़ता है। कोई बात को साधारण तरीके से जिस तरह व्यक्त किया जाता है, उसी बात को यदि किसी मुहावरे के माध्यम से या उसे वाक्य में मुहावरे को जोड़कर कहा जाए तो उस बात में एक विशिष्ट प्रभाव पैदा हो जाता है। मुहावरे किसी भी बात को कहने की शैली को बेहद आकर्षक बनाते हैं। मुहावरे बात को वजनदार बना देते हैं। यदि कोई बात मुहावरे के माध्यम से कह दी कही जाती है तो सुनने वाले का ध्यान अपने-आप ही उस बात की ओर आकर्षित हो जाता है। कोई बात साधारण शैली में कही जाए तो हो सकता है कि सुनने वाला उस पर ध्यान ना दे लेकिन वही बात यदि मुहावरे के रूप में कही जाती है, तो उसे बात में एक सहज आकर्षण उत्पन्न हो जाता है और सुनने वाला भी उस बात पर ध्यान देने बिना नही रहता। मुहावरे किसी भी बात, घटना, वाक्य अथवा कथन को बेहद प्रभावशाली और वजनदार बना देते हैं ।

उदाहरण के लिए

मुहावरा : नजरों में गिर जाना
अर्थ : किसी एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के लिए सम्मान खो देना।

मान लिया एक व्यक्ति जिसका नाम महेश है, उसका मित्र हरीश है। महेश की नजरों में हरीश का सम्मान कम हो गया है। महेश हरीश से नाराज है। यदि महेश हरीश से सीधे कहे तो वह कहेगा मेरे लिए तुम्हारा सम्मान कम हो गया है। इस बात में इतना प्रभाव नहीं पैदा होता। यही बात महेश हरीश से मुहावरे के रूप में रहेगा तो कहेगा ‘मेरी नजरों में तुम गिर चुके हो’ यह बात बेहद वजनदार बन जाती है। इस बात का प्रभाव अलग ही दिखता है। इसीलिए मुहावरे किसी भी बात को बेहद प्रभावशाली बना देते हैं।

मुहावरे क्या होते हैं?

मुहावरे वे वाक्यांश होते हैं, जो अपने मूल अर्थ से भिन्न कोई विशिष्ट अर्थ प्रकट करते हैं। मुहावरों में प्रयुक्त शब्दों का जो अर्थ बनता है, मुहावरे उन शब्दों से इतर कोई विशिष्ट अर्थ बताते हैं। मुहावरों का वह अर्थ किसी विशेष घटना अथवा कहानी आदि से जुड़ा होता है, और वह विशिष्ट अर्थ पूरे मुहावरे रूपी वाक्यांश के साथ जुड़ जाता है। जहाँ पर वह मुहावरा रूपी वाक्यांश प्रयुक्त किया जाता है, उसका विशिष्ट अर्थ वही समझ लिया जाता है। मुहावरे में किसी भी बात को प्रभावशाली, वजनदार और रोचक रूप में कहने की एक व्याकरणीय शैली हैं।


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वह हर साल गंगा स्नान करने को जाते थे, गंगा स्नान में उनकी बहुत अधिक आस्था नहीं थी, लेकिन संतों के समागम और लोक दर्शन के मोह में वह हर साल गंगा स्नान करने जाते थे। गंगा स्नान करने के लिए वह हमेशा पैदल ही जाते थे। पैदल तीन कोस चलकर गंगा स्नान के लिए जाना उनका नियम था। वह अपने को साधु नहीं बल्कि गृहस्थ मानते थे इसलिए यात्रा पर जाते समय खाना किसी से मांगना ना पड़े इसलिए घर से खाना खाकर ही निकलते थे और गंगा स्नान करने के पश्चात घर लौटकर ही खाना खाते थे।

गंगा स्नान के लिए जाते समय रास्ते पर वह खंजड़ी बजाते हुए जाते थे और प्यास लगने पर पानी पी लेते थे। उनकी इस पूरी यात्रा में चार-पाँच दिन का समय लगता था और इस चार-पाँच दिन की अवधि में उनका उपवास हो जाता था। लेकिन उनके माथे पर शिकन नहीं आती और वह मस्ती में झूमते गाते गंगा स्नान को जाते और वापस लौटते।

उनकी जवानी बीत गई और बुढ़ापा आ गया लेकिन उनका यह क्रम उनकी यह टेक यानी उनकी यह आदत नहीं छूटी और बुढ़ापे में भी उन्होंने अपने इस दिनचर्या का ही पालन करना जारी रखा। एक बार गंगा स्नान से लौट के बाद उनकी तबीयत कुछ खराब हो गई और बुखार आ गया। उसके बाद भी उन्होंने अपना व्रत नहीं छोड़ा स्नान, ध्यान, खेती-बाड़ी आदि जैसे नियमित काम जारी रखें। एक दिन सोते-सोते  ही उनका निधन हो गया।

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नेताजी की मूर्ति से क्षमा मांगने के पीछे कैप्टन का क्या भाव छिपा होता था ? (नेताजी का चश्मा)

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नेताजी की मूर्ति से क्षमा मांगने के पीछे कैप्टन का यह भाव छुपा होता था कि वह नेताजी के प्रति बेहद सम्मान का भाव रखता था। 

कैप्टन चश्मे वाला एक दुकानदार था। वह चश्मे की फेरी लगाने का व्यवसाय करता था। बेचने के लिए लाए गए उन्हीं चश्मों में से कोई चश्मा उतार कर नेता जी की मूर्ति पर लगा देता था। जब कोई ग्राहक आकर वैसे ही फ्रेम वाला चश्मा मांगने लगता तो कैप्टन चश्मे वाले को नेताजी की मूर्ति पर से वह चश्मा उतार कर देना पड़ता था। फिर वह कोई दूसरा चश्मा नेताजी की मूर्ति पर लगा देता था। इन्हीं कारणों से वह चश्मा उतारते समय नेता जी की मूर्ति के सामने क्षमा मांगता था, क्योंकि वह नेताजी के प्रति बेहद सम्मान का भाव रखता था। बार-बार चश्मा उतारना और चढ़ाना से उसे लगता था कि यह नेताजी के प्रति असम्मान है। इसी कारण है नेता जी की मूर्ति से क्षमा मांगता था।

संदर्भ पाठ 

नेताजी का चश्मा, लेखक – स्वतंत्र प्रकाश


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महापुरुषों के प्रति हमारे कर्तव्य क्या हैं?​

धृतराष्ट्र ने संजय को युधिष्ठिर के पास दूत बनाकर भेजा। संजय की बात सुनकर युधिष्ठिर असमंजस में क्यों पड़ गए?

महापुरुषों के प्रति हमारे कर्तव्य क्या हैं?​

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महापुरुषों के प्रति हमारे अनेक कर्तव्य होते हैं, जिनको हमें निभाना चाहिए।

  • हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम उन महापुरुषों द्वारा स्थापित किए गए आदर्श का पालन करें और उनके पद चिन्हों पर चलें।
  • महापुरुषों ने अपने जीवन काल में जो भी अच्छे कार्य किये, हम उन अच्छे कार्यों को आगे बढ़ाएं और उन कार्यों के प्रभाव को व्यर्थ न जाने दें।
  • जो भी हमारे महापुरुष रहे, उन्होंने जो भी अच्छे कार्य किये, उनको याद करते हुए उनकी जयंती या पुण्यतिथि पर केवल उनको याद करके फूलमाला चढ़ाना ही अपने कर्तव्य की इतिश्री न समझ लें बल्कि हम महापुरुषों के सिद्धांतों को भी अपने जीवन में उतरें, उन सिद्धांतों का पालन करें।
  • हम अपने महापुरुषों को भूल नहीं जाएं और सदैव उनका स्मरण करते रहें और उनके द्वारा किए गए महान कार्यों को याद रखें ताकि हमें भी उनसे प्रेरणा मिले।
  • हम महापुरुषों के जीवन को अपने जीवन में एक प्रेरणा के रूप में ग्रहण करें और उनसे प्रेरणा लेते हुए हम भी महापुरुषों जैसा ही बनने का प्रयत्न करें।

इस तरह महापुरुषों के प्रति हमारे अनेक कर्तव्य बनते हैं।


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‘समय का सदुपयोग’ पर एक निबंध लिखिए।

‘नेता नहीं, नागरिक चाहिए।’ इस विषय पर निबंध लिखें।

मान लीजिए आपके चाचा जी आपके मित्र के पड़ोसी हैं। आपने अपने मित्र को कुछ सामान अलग-अलग लिफाफों में डालकर उन्हें देने के लिए दिया। मित्र द्वारा सामान चाचा जी को पहुंचाने के बाद उसका विवरण देते हुए आपके मित्र और आप में हुई बातचीत को लिखें।​

 संवाद लेखन

चाचाजी को सामान भिजवाने के बाद मित्र के साथ संवाद

(मान लेते हैं उन दोस्तों का नाम जय और विजय है।)

जय ⦂ हेलो विजय, तुमने मेरे चाचाजी को सारा सामान दिया?

विजय ⦂ हाँ जय, मैंने तुम्हारे चाचाजी को वे चारों लिफाफे दे दिए जो तुमने मुझे उन्हें देने के लिए दिए थे।

जय ⦂ बहुत-बहुत धन्यवाद विजय। तुमने मेरा बहुत बड़ा काम। मैं बहुत दिनों से उलझन में था कि अपने चाचाजी तक सामान कैसे पहुँचाऊ। तुमने मेरा काम आसान कर दिया।

विजय ⦂ धन्यवाद की कोई बात नही मित्र, अपने मित्र के काम आना हर मित्र का कर्तव्य है।

जय ⦂ चाचाजी ने सामान लेकर क्या कहा?

वियय ⦂ चाचा जी ने तुम्हें धन्यवाद कहा है।

जय ⦂ उन्होंने तुम्हारे सामने लिफाफे खोले थे?

विजय ⦂ उन्होंने मेरे सामने ही चारों लिफाफे खोले थे। लिफाफे में से जो किताबें निकलीं, वह किताबें देखकर वह बड़े खुश हुए। एक लिफाफे में कुछ कपड़े भी थे।

जय ⦂  उन्हें कुछ किताबें चाहिए थी। वह उनके शहर में नहीं मिल रही थीं। उन्होंने मुझे इसके बारे में पत्र लिखा था यहां पर किताबें मिल गई और मैंने उन्हें भेज दी मैं किताबों के बड़े शौकीन हैं। मेरी माँ ने उन्हे, चाची और बच्चों के लिए कुछ कपड़े भी भेजे थे।

विजय ⦂ हाँ, यह बात उनके चेहरे को देखकर पता चल रही थी। जब उनकी मनपसंद किताबें उनको मिल गई तो वह बड़े खुश हुए उनके चेहरे उन्होंने तुम्हारे प्रति बहुत आभार व्यक्त किया। वह तुम्हारी बहुत तारीफ कर रहे थे।

जय ⦂ तारीफ के हकदार तुम भी हो, तुमने वह सामान उन तक पहुँचाने में तुमने मेरी मदद की।

विजय ⦂  ऐसी कोई बात नहीं हम सब एक दूसरे के काम आते हैं।

जय ⦂ अच्छा चलो मैं चलता हूँ, बाद में मिलते हैं। एक बार फिर से धन्यवाद।

विजय ⦂  तुम्हारा स्वागत है मित्र, फिर मिलेंगे।


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परीक्षा परिणाम आने के बाद दो मित्रों के मध्य संवाद लिखें l

परीक्षा में सफल होने पर पिता द्वारा पुत्र को शुभकामनाएँ देते हुए होने वाली बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

परीक्षा में सफल होने पर पिता द्वारा पुत्र को शुभकामनाएँ देते हुए होने वाली बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

संवाद लेखन

परीक्षा में सफल होने पर पिता द्वारा शुभकामनाएँ देते हुए पिता-पुत्र के बीच संवाद

 

पिता ⦂ बेटा, राहुल। आज मैं बहुत खुश हूँ। परीक्षा में तुम्हारी सफलता से मेरा मन अभिभूत है। मेरी तरफ से तुम्हें हार्दिक शुभकामनाएं।

पुत्र ⦂ धन्यवाद पिताजी, यह सब आपके और माँ के आशीर्वाद के कारण ही संभव हो पाया है। आप लोगों ने सदैव मुझ में अपना विश्वास बनाए रखा, इसी कारण में सफल हो पाया।

पिता ⦂ यह तुम्हारे परिश्रम का परिणाम है। जब तक हम परिश्रम नहीं करेंगे हमें सफलता नहीं मिल सकती। तुमने अपनी पढ़ाई में कठोर परिश्रम किया, इसीलिए तुम्हें आज परीक्षा में सफलता प्राप्त हुई।

पुत्र ⦂ परंतु पिताजी आप लोगों ने मुझे हर तरह की सुख सुविधा उपलब्ध कराई। मुझे मेरी पढ़ाई में आप लोगों ने कोई भी कमी नहीं आने दी। यह बात भी बहुत महत्वपूर्ण है। आप लोगों ने पढ़ाई के हर विषय में मेरा सहयोग किया, इसी कारण में सफल हो पाया।

पिता ⦂ बेटा, हम लोगों का साथ और आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ रहेगा। हम लोग ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि तुम आगे अपने जीवन में हर क्षेत्र में यूं ही सफल होते रहो। अगली कक्षा की परीक्षा में भी तुम यूं ही प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हो ऐसा मेरा आशीर्वाद है।

पुत्र ⦂ जी पिताजी, मैं आपको वचन देता हूँ, कि मैं अपनी तरफ से हर संभव प्रयास करूंगा और आप लोगों की आशाओं पर खडा उतरने का प्रयत्न करूंगा।

पिता ⦂ मेरा शुभ आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। आने का समय हो गया है हम सब लोग खाना खाते हैं तुम्हारी माँ इंतजार कर रही हैं।
पुत्र ⦂ जी पिताजी।


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G-20 सम्मेलन को लेकर दो मित्रों के बीच हुए संवाद को लिखें।

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संवाद

परीक्षा परिणाम आने के बाद दो मित्रों के मध्य संवाद

(दो मित्र शेखर और मनन हैं। उनके विद्यालय में परीक्षा परिणाम घोषित हो चुका है। परीक्षा परिणाम आने के बाद दोनों मित्र बातचीत कर रहे हैं।)

शेखर ⦂ मनन, तुम्हारा परीक्षा परिणाम कैसा रहा कितने अंक मिले।

मनन ⦂ मुझे 600 में से 500 अंक मिले हैं, और मैं द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ हूँ। तुम्हारा परीक्षा परिणाम कैसा रहा?

शेखर ⦂ मुझे 600 में से 556 अंक मिले हैं, मैं द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ हूँ। मैं प्रथम श्रेणी से मात्र 4 अंकों से चूक गया।

मनन ⦂ अच्छा, फिर तो तुम्हारा अंक मुझसे अच्छे आए है। मेरा गणित का एक पेपर खराब हो गया था। गणित में ही मुझे सबसे कम अंक मिले हैं। इसी कारण ऐसा रिजल्ट रहा।

शेखर ⦂ चलो, अब जो हुआ सो हुआ। हमें अब आगे देखना है। अब हम दसवीं में आ गए। हमें इस साल खूब मेहनत करनी होगी ताकि हम दोनों ही बोर्ड की परीक्षा में प्रथम श्रेणी ला सकें।

मनन ⦂ हाँ, जरूर। हम लोग अपनी पूरी कोशिश करेंगे। हम दोनों इस साल मिलकर पढ़ाई करेंगे। इससे हम दोनो को एक-दूसरे से मदद मिल जाया करेगी।

शेखर ⦂ हाँ हम लोग अपने उद्देश्य में जरूर कामयाब होंगे। चलो अब घर चलते हैं, अपने पैरेंट्स को रिजल्ट भी दिखाना है।

मनन ⦂ हाँ ठीक हैं। बाय, कल मिलते हैं।

शेखर ⦂ बाय


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G-20 सम्मेलन को लेकर दो मित्रों के बीच हुए संवाद को लिखें।

एक गृहिणी और सब्जी बेचने वाले के मध्य संवाद को लिखिए।

धृतराष्ट्र ने संजय को युधिष्ठिर के पास दूत बनाकर भेजा। संजय की बात सुनकर युधिष्ठिर असमंजस में क्यों पड़ गए?

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धृतराष्ट्र ने संजय को युधिष्ठिर के पास दूत बनाकर भेजा। संजय धृतराष्ट्र के राजदूत बनकर युधिष्ठिर के पास गए और संजय ने युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र का संदेश सुनाया। संजय ने युधिष्ठिर को कहा कि महाराज ने कुशल से पूछा है। वह आपसे मित्रता करना चाहते हैं, लेकिन उनके पुत्र अपने पिता या पितामह भीष्म की बात पर ध्यान नहीं दे रहे। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप युद्ध को टालने का प्रयास करें।

युधिष्ठिर ने जब संजय के द्वारा धृतराष्ट्र का यह संदेश सुना तो युधिष्ठिर को यह बात बेहद अच्छी लगी। लेकिन वह असमंजस में पड़ गए। वह संजय से बोले कि हमें अपना हिस्सा तो मिलना चाहिए लेकिन हम अभी कुछ निर्णय नहीं ले सकते। हम अभी श्रीकृष्ण की सलाह लेंगे। वह जो सलाह देंगे, हमें वैसा ही करना होगा। उसी समय श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि मैं स्वयं हस्तिनापुर जाऊंगा और आपकी तरफ से कौरवों से संधि की बात करूंगा।

युधिष्ठिर ने संजय से कहा, आप महाराज से विनय पूर्वक मेरा इतना संदेश का दो कि मैं हमें कम से कम पांच गाँव ही दे दे ताकि हम पांचो भाई संतोष पूर्वक अपना जीवन यापन कर सकें। हम पाँच गाँव के आधार पर संधि के लिए तैयार हैं।


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15 अगस्त को झंडा फहराने से नागरिकों पर क्या प्रभाव पड़ता है​?

‘दो विद्यालयों के मध्य क्रिकेट मैच हुआ’ इस विषय पर एक प्रतिवेदन तैयार कीजिए​।

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प्रतिवेदन

क्रिकेट मैच पर प्रतिवेदन

 

22 मार्च 2024

कल दिनाँक 22 मार्च को हमारे विद्यालय विवेकानंद हाई स्कूल और सिटीजन  हाई स्कूल के बीच क्रिकेट मैच का आयोजन किया गया। मैच T20 फॉर्मेट में खेला गया। मैच का आरंभ दोपहर 1.30 बजे हुआ। विवेकानंद इंटरनेशनल स्कूल ने के कप्तान मानस बोहरा ने टॉस जीतकर पहले बैटिंग करने का निर्णय लिया। पहले बैटिंग करते हुए विवेकानंद हाईस्कूल ने सलामी बल्लेबाजों आकाश सिंह के 65 और प्रदीप रावत के 54 रनों की बदौलत जोरदार शुरुआत की। दोनों सलामी बल्लेबाजों के बीच शतकीय साझेदारी हुई। कप्तान मानस बोहरा ने 36 रन बनाए। अन्य बल्लेबाज कुछ खास योगदान नही दे सके। विवेकानंद हाईस्कूल की टीम ने कुछ 172 रन बनाए और सिजीजन हाईस्कूल को 173 रन का लक्ष्य दिया।

सिटीजन हाईस्कूल की शुरुआत बेहद खराब रही और उसके दोनो सलामी बल्लेबाज रमन राज और सोमेश भारद्वाज क्रमशः 7 रन और 12 रन बनाकर आउट हो गए। बाद में तीसरे नंबर बैटिंग करने आए मयंक वर्मा ने पारी को संभाला। उनका साथ सिटीजन हाईस्कूल की टीम के कप्तान अमर उपाध्याय ने दिया, जो चौथे नंबर पर बैटिंग करने आए थे। दोनो ने टीम के स्कोर को 140 तक पहुँचा दिया। उसके बाद 17वें ओवर में दोनो बल्लेबाजों के आउट के बाद पूरी टीम लड़खड़ा गई और सिटीजन हाईस्कूल की टीम कुल 166 रन के स्कोर पर आल आउट हो गई।

विवेकानंद हाईस्कूल की तरफ से राजीव भटनागर ने सर्वाधिक 4 विकेट लिए। इस तरह विवेकानंद हाईस्कूल ने ये मैच 6 रन से जीत लिया।

मैच लगभग 5.00 बजे खत्म हुआ। उसके बाद हल्का सा जलपान हुआ और कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा हुई। हमारे विद्यालय विवेकानंद हाईस्कूल की जीत पर हम सबने अपने स्कूल की टीम का अभिनंदन किया।

द्वारा,
सुमित अरोड़ा ।


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विद्यालय में आयोजित खेल कूद प्रतियोगिता पर एक प्रतिवेदन लिखिए।

अपनी पाठशाला में मनाए गए ‘पर्यावरण रक्षा दिन समारोह’ के बारे में वृत्तांत लेखन लिखिए​।

दी+पा+व+ली शब्द का दीपावली उत्सव के संदर्भ में अर्थ बताओ।

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दी+पा+व+ली शब्द का दीपावली उत्सव के संदर्भ में अर्थ

दीपावली शब्द दो शब्दों के संयोजन से बना है, दीप + आवली दीप अर्थात दिया (दीपक) और आवली अर्थात पंक्ति।

दीपावली = दीपों की पंक्ति

दीपावली शब्द का दीपावली उत्सव के संदर्भ में अर्थ

दीपावली का शाब्दिक अर्थ दीपों की पंक्ति होता है, क्योंकि दीपावली के दिन दीपों को पंक्तिबद्ध करके सजाया जाता है, इसीलिए इस त्यौहार का नाम दीपावली पड़ गया। दीपावली का ही संक्षिप्त रूप दिवाली बन गया। इस त्यौहार के साथ पौराणिक एवं धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं।

चूँकि यह त्यौहार हिंदुओं का सबसे प्रमुख त्यौहार है और हिंदू मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान श्री राम रावण का वध करके लंका पर विजय करने के बाद अपना 14 वर्ष का वनवास पूर्ण करके अपनी नगरी अयोध्या लौटे थे और उनके स्वागत में अयोध्या वासियों ने पूरे अयोध्या नगर को दीपों से सजाया था, इसीलिए तब से दीपावली का त्यौहार मनाने की परंपरा चल पड़ी।

दीपावली का त्यौहार जीवन के अंधकार को दूर करके जीवन में प्रकाश भरने का त्यौहार है। यह त्यौहार हमें सीख देता है कि हम अपने जीवन की अंधकार रूपी बुराइयों को अपने जीवन से दूर करें और उसमें अच्छाइयों का प्रकाश प्रज्वलित करें। दीपावली का त्योहार अंधेरे यानी अज्ञानता पर प्रकाश यानी ज्ञान की विजय का भी प्रतीक त्यौहार है।


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दिए गए शब्दों के बहुवचन लिखिए। 1. घोंसला 2. टहनी 3. तैयारी 4. नदी 5. नारी 6. लड़का 7. आँख 8. चिडिया. 9. अंडा 10. प्याली 11. घोसला 12. कपड़ा 13. ताला 14. कविता 15. चिड़िया 16. कुटिया

दिए गए शब्दों का वर्ण-विच्छेद कीजिए- (क) पुस्तक- (ख) रंगीन (ग) सर्प (घ) दर्पण (ङ) संगीत (च) स्मृतियाँ (छ) स्पष्ट (ज) संभावना (झ) आविष्कार (ञ) पूजनीय (ट) आदर्श (ठ) सौंदर्य (ड) ग्राहक (ढ) अस्पताल (ण) रेणु

दिए गए शब्दों के बहुवचन लिखिए। 1. घोंसला 2. टहनी 3. तैयारी 4. नदी 5. नारी 6. लड़का 7. आँख 8. चिडिया. 9. अंडा 10. प्याली 11. घोसला 12. कपड़ा 13. ताला 14. कविता 15. चिड़िया 16. कुटिया

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दिए गए शब्दों के बहुवचन इस प्रकार हैं :

1. घोंसला
बहुवचन : घोंसले

2. टहनी
बहुवचन : टहनियाँ

3. तैयारी
बहुवचन : तैयारियाँ

4. नदी
बहुवचन : नदियाँ

5. नारी
बहुवचन : नारियाँ

6. लड़का
बहुवचन : लड़के

7. आँख
बहुवचन : आँखें

8. चिडिया.
बहुवचन : चिड़ियाएँ

9. अंडा
बहुवचन : अंडे

10. प्याली
बहुवचन : प्यालियाँ

11. कुटिया
बहुवचन : कुटियाएँ

12. कपड़ा
बहुवचन : कपड़े

13. ताला
बहुवचन : ताले

14. कविता
बहुवचन : कविताएँ

15. रानी
बहुवचन : रानियाँ

एकवचन और बहुवचन

हिंदी भाषा के व्याकरण में वचन के दो रूप होते हैं, एकवचन और बहुवचन।

एकवचन किसी एक वस्तु, व्यक्ति या स्थान को संदर्भित करता है अर्थात एकवचन रूप वहाँ पर प्रयुक्त किया जाता है, जहाँ पर केवल एक व्यक्ति, वस्तु अथवा स्थान हो। जैसे : लड़का, स्त्री, पुस्तक, नगर इत्यादि। बहुवचन एक से अधिक व्यक्ति, वस्तु या स्थान को संदर्भित करता है, अर्थात बहुवचन वहाँ पर प्रयुक्त किया जाता है, जहाँ पर एक से अधिक व्यक्ति, वस्तु अथवा स्थान हो। जैसे : लड़के, स्त्रियाँ, पुस्तकें, नगर इत्यादि।


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दिए गए शब्दों का वर्ण-विच्छेद कीजिए- (क) पुस्तक- (ख) रंगीन (ग) सर्प (घ) दर्पण (ङ) संगीत (च) स्मृतियाँ (छ) स्पष्ट (ज) संभावना (झ) आविष्कार (ञ) पूजनीय (ट) आदर्श (ठ) सौंदर्य (ड) ग्राहक (ढ) अस्पताल (ण) रेणु

कवि का नूतन कविता से क्या अभिप्राय है? (क) नवीन प्रेरणा (ख) नवजीवन (ग) क, ख दोनों (घ) इनमें से कोई नहीं

दिए गए शब्दों का वर्ण-विच्छेद कीजिए- (क) पुस्तक- (ख) रंगीन (ग) सर्प (घ) दर्पण (ङ) संगीत (च) स्मृतियाँ (छ) स्पष्ट (ज) संभावना (झ) आविष्कार (ञ) पूजनीय (ट) आदर्श (ठ) सौंदर्य (ड) ग्राहक (ढ) अस्पताल (ण) रेणु

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दिए गए शब्दों का वर्ण-विच्छेद इस प्रकार है…

(क) पुस्तक : प् + उ + स् + त् + अ + क् + अ

(ख) रंगीन : र् + अं + ग् + ई + न् + अ

(ग) सर्प : स् + अ + र् + प् + अ

(घ) दर्पण : द् + अ + र् + प् + अ + ण् + अ

(ङ) संगीत : स् + अं + ग् + ई + त् + अ

(च) स्मृतियाँ : स् + म् + ऋ + अ + त् + इ + य् + आँ

(छ) स्पष्ट : स् + प् + अ + ष् + ट् + अ

(ज) संभावना : स् + अं + भ् + आ + व् + अ + न् + आ

(झ) आविष्कार : आ + व् + इ + ष् + क् + आ + र् + अ

(ञ) पूजनीय : प + ऊ + ज् + अ +  न् + ई + य् + अ

(ट) आदर्श : आ + द् + अ + र् + श् + अ

(ठ) सौंदर्य : स् + औ + अं + द् + अ + र् + य् + अ

(ड) ग्राहक : ग् + र् + आ + ह् + अ + क् + अ

(ढ) अस्पताल : अ + स् + प् + अ + त् + आ + ल् + अ

(ण) रेणु : र् + ए + ण् + उ


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‘चक्रमस्ति’ का संधि-विच्छेद क्या होगा? ​

‘आज्ञा’, ‘अवज्ञा’, ‘ज्ञानी’, ‘विद्वान’ इन शब्दों का वर्ण-विच्छेद करें।

ज्ञान घटै कोई मूढ़ की संगत ध्यान घटै बिन धीरज लाये। प्रीत घटै परदेश बसै अरु भाव घटै नित ही नित जाये। सोच घटै कोइ साधु की संगत रोग घटै कुछ ओखद खाये। गंग कहै सुन शाह अकब्बर पाप कटै हरि के गुण गाये॥ भावार्थ बताइए।

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ज्ञान घटै कोई मूढ़ की संगत ध्यान घटै बिन धीरज लाये।
प्रीत घटै परदेश बसै अरु भाव घटै नित ही नित जाये।
सोच घटै कोइ साधु की संगत रोग घटै कुछ ओखद खाये।
गंग कहै सुन शाह अकब्बर पाप कटै हरि के गुण गाये॥

संदर्भ : ये पंक्तियां कवि रीतिकाल के कवि ‘गंग’ के दोहे की हैं। इस दोहे के माध्यम से कवि ने ये स्पष्ट करने का प्रयत्न करना चाहिए कि व्यक्ति की संगत करनी चाहिए और किनकी नही करनी चाहिए। इस दोहे का भावार्थ इस प्रकार है…

भावार्थ : कवि का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति ज्ञानी व्यक्ति मूर्ख व्यक्ति की संगत में पड़ जाता है, तो उसके ज्ञान में कमी आना स्वाभाविक है, उसका ज्ञान घटता जाता है। इसी तरह ध्यानी व्यक्ति अर्थात जो ध्यान-साधना में लीन व्यक्ति है, वह किसी ऐसे व्यक्ति की संगत में पड़ जाता है, जो अधैर्यवान हैं चंचल स्वभाव का है, जिसमे धीरज धारण करने की क्षमता नहीं है, तो ऐसे व्यक्ति की संगत करने से ध्यान भी भटकेगा और वह अपनी एकाग्रता को खो सकता है।

इस प्रकार जो व्यक्ति अपने घर से दूर सदैव परदेश में निवास करता है, उसकी अपने प्रियजनों के साथ प्रेम कम होता जाता है। जो व्यक्ति किसी व्यक्ति के घर रोज-रोज तो उसका मान-सम्मान घटता जाता है, अर्थात किसी के घर रोज नहीं जाना चाहिए।

अब कवि सार्थक बात भी कहते है। कवि कहते हैं कि जो व्यक्ति निरंतर साधु की संगत में रहता है, उसके दूषित विचारों में कमी आती है। साधु की संगत से उसके विचार शुद्ध होते हैं। जो व्यक्ति अपने भोजन पर नियंत्रण रखता है, संतुलित भोजन करता है उसे किसी भी तरह की दवाई खाने की आवश्यकता नहीं पड़ती और उसका रोग भी घटता जाता है। कवि गंग कहते हैं कि जो व्यक्ति प्रभु के गुणगान को हमेशा गाता रहता है, हमेशा प्रभु का चिंतन करता रहता है, उसके पाप निरंतर घटते जाते हैं।

विशेष व्याख्या

यहाँ पर कभी गंग ने सकारात्मक और नकारात्मक दोनों बातों को स्पष्ट किया है। कवि ने यह बात कहने का प्रयास किया है कि ज्ञानी व्यक्ति को मूर्ख की संगत नहीं करनी चाहिए नही तो ज्ञानी व्यक्ति भी अपने ज्ञान को हानि पहुँचा सकता है। ध्यान व्यक्ति यानी ध्यान साधना में लीन जाने वाले व्यक्तियों को चंचल व्यक्तियों की संगत नहीं करनी चाहिए नही तो ध्यानी व्यक्ति का मन भी भटक सकता है। हमेशा अपने घर से दूर परदेस में ही नहीं रहना चाहिए नही तो अपने परिवार जनो के प्रति प्रेम कम हो सकता है। किसी के भी घर रोज नहीं जाना चाहिए नहीं तो रोज-रोज किसी के घर जाने से वहाँ पर मान सम्मान होता है।

कवि ये भी कहते हैं कि हमेशा साधु की संगत करनी चाहिए, इससे विचार शुद्ध होते हैं। संतुलित भोजन करना चाहिए। अपनी जिह्वा पर नियंत्रण रखना चाहिए। इससे किसी औषधि को खाने की आवश्यकता नहीं पड़ती और सारे रोग मिटाते जाते हैं। अंत में कवि कहते हैं कि हमेशा भगवान का ध्यान मनन करते रहना चाहिए इससे व्यक्ति के विचार शुद्ध होते हैं और उसके सारे पापों का क्षय होता है।


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जो किसी मे हो बड़प्पन की कसर’ पंक्ति आशय स्पष्ट कीजिए

जायसी की रचना पद्मावत की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

‘जो किसी में हो बड़प्पन की कसर’ पंक्ति आशय स्पष्ट कीजिए।

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‘जो किसी में हो बड़प्पन की कसर’

संदर्भ : ये पंक्तियाँ कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ की कविता ‘फूल और काँटा’ से गई हैं। पूरा पद्यांश इस प्रकार है:

है खटकता एक सब की आँख में,
दूसरा है सोहता सुर सीस पर।
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे,
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर॥

भावार्थ : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने फूल और कांटे की तुलना की है। कवि के अनुसार कांटा सबकी आंखों में खटकता है और वह किसी को भी नहीं सुहाता, जबकि फुल सभी को अच्छा लगता है। वह देवताओं के सिर की शोभा पाता है। कवि के अनुसार फूल और कांटे दोनों एक ही पौधे पर लगाते हैं, लेकिन जहाँ एक ओर फूल सबका प्रिय होता है, वहीं कांटा सबके तिरस्कार का पात्र बनता है। उसे सब बुरा समझते हैं, क्योंकि उसके अंदर बड़प्पन नहीं होता। बड़प्पन से तात्पर्य निर्मल और मधुर तथा अहंकार रहित स्वभाव से होता है।

फूल का स्वभाव निर्मल होता है, वो किसी कष्ट नही पहुँचाता बल्कि सबको प्रसन्न रखता है, इसलिए उसका स्वभाव निर्मल होता है, जबकि कांटा अपनी चुभन से सबको कष्ट देता है, इसलिए उसे सब नापंसद करते हैं। इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति कितने भी ऊंचे कुल में जन्म लेने लेकिन वह महान ऊंचे कुल में जन्म लेने के कारण नहीं बनता बल्कि अपने गुण और कर्मों के कारण बनता है।

जिस प्रकार कांटा और फूल दोनों एक ही पौधे पर लगने के बावजूद कांटा सबके तिरस्कार का पात्र बनता है, जबकि फूल सबके द्वारा प्रिय होता है। इसका मुख्य कारण गुण और बड़प्पन है, कांटे में न तो गुण होता है और न ही बड़प्पन होता है, जबकि फूल में बड़प्पन होता है, इसलिए वह सबका प्रिय होता है। उसी प्रकार किसी व्यक्ति को महान बनने के लिए केवल किसी ऊँचे कुल में जन्म लेना ही पर्याप्त नही होता बल्कि ऊँचे कर्म करने पड़ते हैं, गुणों को अपनाना पड़ता है, बड़प्पन का भाव लाना पड़ता है, तभी वह महान बनता है।


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अगीत से कवि का आशय क्या है? क्या वह महत्वपूर्ण हैं ? कैसे? ​(गीत-अगीत)

आशय स्पष्ट कीजिए – “जो नहीं है, इस तरह उसी को पा जाता हूँ।”

जायसी की रचना पद्मावत की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

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पद्मावत महाकाव्य की विशेषताएं

मलिक मोहम्मद जायसी सूफी धारा के सिद्धहस्त कवि माने जाते हैं। पद्मावत उनका सबसे अधिक प्रसिद्ध और विशिष्ट रचना है। यह एक महाकाव्य है, जिसमें मलिक मोहम्मद जायसी ने रानी पद्मावती को आधार बनाकर इस महकाव्य की रचना की है। ठेठ अवधी भाषा में रचित इस महाकाव्य की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं…

  • पद्मावत महाकाव्य की भाषा ठेठ अवधी है, लेकिन उसके साथ-साथ इसमें खड़ी बोली और ब्रजभाषा का भी मिश्रण दिखाई पड़ता है।
  • पद्मावत महाकाव्य में लोकोक्तियां का भी सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है।
  • भाषा शैली की बात करें तो पद्मावत महाकाव्य की भाषा माधुर्य गुण से परिपूर्ण है। यह महाकाव्य अवधी भाषा की मिठास से भरा हुआ महाकाव्य है।
  • जायसी ने इस महाकाव्य में कहीं-कहीं पर सूक्तियां का प्रयोग भी किया है, जिससे उनकी काव्य चातुर्य का कला प्रकट होती है।
  • पद्मावत महाकाव्य में सादृश्य मूल अलंकारों का सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है। जिनमें उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकार प्रमुख हैं।
  • महाकाव्य में उठने वाले भागों के अनुसार ही अलंकारों की योजना की गई है। इस महाकाव्य में अलंकार योजना परंपरागत रूप से की गई है।
  • पद्मावत महाकाव्य भाषा शैली की बात की जाए तो मलिक मोहम्मद जायसी ने लोक प्रचलित प्रेम कथा को आधार बनाकर इस महकाव्या की रचना की है, जिसमें उन्होंने रानी पद्मावती के जीवन को आधार बनाया है।
  • इस महाकाव्य में अलंकारिक शैली, प्रतीकात्मक शैली, शब्द चित्रात्मक शैली तथा अतिशयोक्ति प्रधान शैली का प्रयोग किया गया है।
  • मलिक मोहम्मद जायसी ने इस महाकाव्य में दोहा, चौपाई और छंदों का प्रयोग किया गया किया है।
  • इस तरह ‘पद्मावत’ महाकाव्य अनेक तरह की विशेषता से युक्त महाकाव्य है।

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जल संरक्षण का उपयोग

जल संरक्षण आज के समय की मांग है। जल संरक्षण के उपाय अपनाकर हम पृथ्वी पर सीमित मात्रा में उपलब्ध पीने योग्य जल को आने वाली पीढियां के लिए भी सुरक्षित कर सकते हैं। यूँ तो पृथ्वी के पूरे क्षेत्रफल में दो तिहाई से अधिक क्षेत्रफल में जल ही जल है, लेकिन यह जल पीने योग्य नहीं है। पृथ्वी पर जितना भी जल मौजूद है उसका केवल तीन प्रतिशत जल ही पीने योग्य है। इसी सीमित जल संसाधन पर ही पृथ्वी की पूरी जनसंख्या निर्भर है। जनसंख्या के अनुपात में साफ पीने योग्य जल की बेहद कमी है, इसीलिए जल संरक्षण ऐसी पद्धति है जिसके माध्यम से पीने योग्य साफ जल को संरक्षित करके जमा किया जाता है ताकि भविष्य में उसे उपयोग में लाया जा सके और हर जगह जल उपलब्ध कराया जा सके।

जन संरक्षण पद्धति बेहद उपयोगी और लाभदायक है। इसके अनेक उपयोग हैं…
  • जल संरक्षण करके वर्षा ऋतु का जल संरक्षित किया जाता है और इस जल का पूरे वर्ष उपयोग किया जाता है, इससे वर्षा ऋतु के न होने पर जल की कमी नहीं हो पाती।
  • जल संरक्षण के अन्तर्गत बांध, जलाशय, नहरों आदि का निर्माण करके अत्यधिक जल होने पर बाढ़ को नियंत्रित किया जाता है।
  • जल संरक्षण का उपयोग करके सिंचाई योग्य जल को उन क्षेत्रों में पहुंचाया जाता है, जहाँ पर जल की बेहद कमी है, इससे ऐसे क्षेत्रों में भी कृषि की संभावना बढ़ती है, जहाँ पर जल की कमी के कारण कृषि कार्य संभव नहीं हो पाता।
  • जल संरक्षण करके भूमिगत जल स्तर को भी बढ़ाया जाता है, जिससे भूमि में नमी बनी रहती है और उस भूमि की कृषि उत्पादकता भी बढ़ती है।
  • जल संरक्षण पद्धति के कारण ऐसे क्षेत्रों में भी जनसंख्या बसाई जा सकती है जहाँ पर जल का प्राकृतिक स्रोत न होने के कारण जनसंख्या बेहद कम या न के बराबर होती है, इससे किसी एक क्षेत्र में जनसंख्या के दबाव को कम किया जा सकता है।

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निबंध

घटते संयुक्त परिवार – बढ़ते एकल परिवार

 

घटते संयुक्त परिवार – बढ़ते एकल परिवार – संयुक्त परिवार हमारे प्राचीन भारतीय समाज की एक मजबूत व्यवस्था थी, जो हमारे भारत की पहचान थी। लेकिन आज बदलते समय में संयुक्त परिवार बढ़ते जा रहे हैं और एकल परिवार बढ़ते जा रहे हैं।

प्रस्तावना

संयुक्त परिवार भारत की वह प्राचीन पारिवारिक व्यवस्था थीं या हैं, जिसके अंतर्गत परिवार के सभी सदस्य माता-पिता हो, दादा-दादी, चाचा चाची सभी मिलकर साथ रहते थे। भारतीय समाज में परिवार कुटुंब का प्रतीक है। कुटुंब यानि बहुत बड़ा परिवार। संयुक्त परिवार भारतीय परिवारों की एकता का परिचायक था और संयुक्त परिवार होना पहले भारत के हर परिवार की पारिवारिक व्यवस्था थी।

संयुक्त परिवार क्या है ?

संयुक्त परिवार वह परिवार है, जिसमें परिवार के अनेक सदस्य मिलकर एक साथ रहते हैं, जिसमें पति-पत्नी, उनके बच्चे, उनके माता-पिता, उनके भाई बहन सभी मिलकर साथ रहते हैं। संयुक्त परिवार में दादा-दादी होते हैं, चाचा-चाची होते हैं, ताऊ-ताई होते हैं, काका-काकी होते हैं, तथा उन सभी के बच्चे होते हैं। संयुक्त परिवार में सभी भाई-बहन साथ मिलकर रहते हैं।

शादी होने के बाद भी सभी भाई-बहन साथ रहते हैं और अलग अलग नहीं होते। उनके बूढ़े माता-पिता भी उनके साथ रहते हैं। यह संयुक्त परिवार का प्रारूप है। भारतीय समाज में संयुक्त परिवार का प्रचलन बेहद सहज और आम था। भारतीय समाज में संयुक्त परिवार का प्रचलन आम ही नही बल्कि यह एक जरूरी व्यवस्था भी थी। आज से कुछ वर्ष पूर्व तक भारतीय समाज में संयुक्त परिवार के बिना परिवार की कल्पना नहीं की जा सकती थी।

सयुंक्त परिवार का सही अर्थ

संयुक्त परिवार सच्चा अर्थ ये है कि संयुक्त परिवार वह परिवार होता था, जहाँ पर बूढ़े माँ-बाप को बूढ़ा होने पर उनका साथ नही छोड़ा जाता था, बल्कि उनकी सेवा की जाती थी, उन्हें साथ रखा जाता था। संयुक्त परिवार वह परिवार होता है, जहाँ पर पुत्र-पुत्री बड़े और सक्षम होने पर माँ-बाप को छोड़कर अलग नही रहने लगते है। सयुंक्त परिवार वह परिवार है, जहाँ पर सभी भाई-बहन मिलजुक एक साथ प्रेम से रहते हैं और सुख-दुख में एक दूसरे के काम आते हैं। संयुक्त परिवार एकता का परिवार होता है। संयुक्त परिवार वह परिवार है, जहां पर एकता, प्रेम, सद्भाव ही सब कुछ है।

सयुंंक्त परिवार के लाभ

संयुक्त परिवार के लाभ यह है कि एक परिवार में सभी सदस्य मिलकर एक ही घर में साथ साथ रहते हैं। इससे वे एक दूसरे के सुख दुख में काम आते हैं। किसी भी तरह की बीमारी या संकट की अवस्था में एक सदस्य के लिए परिवार के अन्य सदस्य तत्पर रहते हैं। संयुक्त परिवार में किसी भी तरह का संकट आने पर उसे मिलकर निपटा दिया जाता है। किसी भी तरह की आर्थिक समस्या होने पर परिवार के अन्य सदस्य उसकी मदद करते हैं और आगे बढ़ने मदद करते हैं।

संयुक्त परिवार के लाभ

संयुक्त परिवार की हानि यह है कि संयुक्त परिवार में अक्सर व्यक्ति को निजता नहीं मिल पाती। संयुक्त परिवार में अक्सर झगड़े और मनमुटाव होने की संभावनाएं बनी रहती हैं। विचारों का टकराव होता है। संयुक्त परिवार में खर्चे अधिक होते हैं। अक्सर किसी एक सदस्य पर ही बाकी सदस्यों के खर्चे का बोझ आ पड़ता है। संयुक्त परिवार का कोई न कोई सदस्य अक्सर नकारा निकल जाता है क्योंकि बाकी सदस्यों द्वारा उसका खर्चा वहन कर लेने के कारण उसे अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास नहीं होता।

एकल परिवार क्या है?

एकल परिवार वो परिवार है, जिसमें केवल पति-पत्नी और उनके बच्चे होते हैं। जिनमें अधिकतर एक या दो बच्चे ही होते हैं। ऐसे एकल परिवार अपने माता पिता और भाई-बहन तथा परिवार के अन्य सदस्यों से दूर रहते हैं। यह परिवार केवल पति-पत्नी और बच्चों पर केंद्रित परिवार होता है। आजकल के समय में महानगरों के अधिकतर परिवार एकल परिवार ही होते हैं।

एकल परिवार के लाभ

एकल परिवार के लाभ यह है कि एकल परिवार में पति पत्नी अपने बच्चों की अच्छी परवरिश कर पाते हैं।उनके बच्चों की संख्या एक या दो ही होती है, इससे वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवा पाते हैं और अच्छी परवरिश कर पाते हैं। एकल परिवार में निजता भंग होने की कोई समस्या नहीं होती और लोग अपनी इच्छा अनुसार अपना जीवन जीते हैं। उन्हें रोक-टोक करने वाला कोई नहीं होता।

एकल परिवार की हानि

एकल परिवार के सदस्य अक्सर एकाकीपन के शिकार हो जाते हैं। किसी संकट आदि में उनकी सहायता करने वाला कोई नहीं होता। एकल परिवार के बच्चे भी अक्सर एकाकीपन के शिकार होते हैं, क्योंकि उनके माता-पिता काम पर जाते हैं। उन्हें कहानी सुनाने वाला दादा-दादी आदि नही होते और उनको सही सहयोग नहीं मिल पाता। एकल परिवार के बच्चे अक्सर अंतर्मुखी बन जाते हैं। एकल परिवार स्वार्थ का परिवार होता है, जिससे बूढ़े माँ-बाप और पारिवारिक सदस्यों की कोई परवाह नहीं होती है।

घटते संयुक्त परिवार : बढ़ते एकल परिवार

घटते अकल संयुक्त परिवार आज के समय का फैशन हो गया है। अब कुछ ग्रामीण इलाकों को छोड़ दें तो अधिकतर शहरों और महानगरों में एकल परिवार का ही प्रचलन निरंतर बढ़ता जा रहा है। व्यक्ति जैसे ही पढ़-लिखकर नौकरी पर लग जाता है, या व्यापार करने लगता है तो वह तुरंत अपने माँ-बाप को छोड़कर अपना अलग अलग घर बसा लेता है।

एकल परिवार का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। एकल परिवार आज के समाज के स्वार्थी होने के परिचायक बन गए हैं, क्योंकि जिन माँ-बाप ने हमें पाल पोस कर बड़ा किया, उन्हीं माँ-बाप को लोग अपना स्वार्थ सिद्ध होने पर छोड़ देते हैं और अपना ही जीवन जीने में व्यस्त हो जाते हैं। एकल परिवार की सार्थकता तब है, जब अलग रहते हुए भी अपने माँ-बाप की सेवा की जाए। यथासंभव माता-पिता को अपने साथ रखा जाए नहीं तो उनकी देखभाल की पूरी व्यवस्था की जाए।


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कवि का नूतन कविता से क्या अभिप्राय है? (क) नवीन प्रेरणा (ख) नवजीवन (ग) क, ख दोनों (घ) इनमें से कोई नहीं

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सही विकल्प होगा—

(ख) नवजीवन

कवि का नूतन कविता से अभिप्राय नवजीवन के संचार से है, इसलिए सही विकल्प ‘नवजीवन’ होगा।

विस्तार से समझें…

नूतन कविता से कवि का अभिप्राय नवजीवन के संचार से है। कवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ अपनी ‘उत्साह’ कविता में नवजीवन के संचार की बात करते हैं।

बादल, गरजो! घेर घेर घोर गगन,
धाराधर ओ!
 ललित ललित,
काले घुँघराले,

बाल कल्पना।
के-से पाले,
 विद्युत छवि उर में,
कवि, नवजीवन वाले
 वज्र छिपा
नूतन कविता
 फिर भर दो- बादल गरजो!

भावार्थ : कवि बादलों का आह्वान कर रहे हैं और बादलों का आह्वान करते हुए कहते हैं कि बादलो तुम संपूर्ण आकाश में छा जाओ और अपनी वज्र के समान कठोर गर्जना से गरजते हुए बरस कर पूरे जनमानस में नई चेतना रूपी नवजीवन का संचार कर दो अर्थात एक नूतन कविता का निर्माण कर दो। इस तरह कवि ने नूतन कविता को नवजीवन के संचार के रूप में प्रयुक्त किया है।

टिप्पणी

‘उत्साह’ कविता कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित कविता है, जिसमें उन्होंने बादलों का आह्वान करते हुए बादलों को क्रांति का दूत बताया है, जो जनमानस के जीवन में नवजीवन रूपी क्रांति लाने का कार्य करते हैं।


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अपने गुरु के प्रति घीसा के स्वभाव से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

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अपने गुरु के प्रति घीसा के व्यवहार से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव अपने गुरु का सम्मान करना चाहिए। गुरु हमारे लिए श्रद्धा के पात्र होते हैं, उनके प्रति सम्मान और उनके प्रति समर्पण का भाव शिष्य के मन में सदैव होना चाहिए।

अपने गुरु के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए बहुत अधिक सुविधा संपन्न होना आवश्यक नहीं है, मन में केवल भाव होना चाहिए, गुरु कैसे भी हों, उनके प्रति श्रद्धा एवं सम्मान का भाव होना चाहिए। घीसा एक साधारण गड़रिया का बालक था। वह बेहद गरीब था, लेकिन लेखिका के प्रति अपार सम्मान की भावना थी। लेखिका ने ही उसे पढ़ाई के लिए प्रेरित किया और उसे पढ़ाने का उपक्रम आरंभ किया। इसी कारण घीसा लेखिका को अपना गुरु मानकर बेहद सम्मान करता था।

घीसा एक गरीब बालक था, इसी कारण लेखिका को गुरु दक्षिणा के रूप में कुछ धन आदि नहीं दे सकता था, इसी कारण जब गुरु दक्षिणा देने का समय आया तो उसने अपने कुर्ते को बेचकर एक तरबूज ले लिया और वह तरबूज अपने गुरु साहब यानि लेखिका को गुरु दक्षिणा के रूप में भेंट किया। उसकी यह गुरु दक्षिणा लेखिका के अंतरात्मा को छू गई। लेखिका स्वयं कहती है कि ऐसी अनमोल गुरु दक्षिणा आज तक कभी नहीं मिली।

इस तरह घीसा के स्वभाव से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव अपने गुरु के प्रति सम्मान प्रकट करना चाहिए तथा पढ़ाई के प्रति भी लगन होनी चाहिए। घीसा में भी अपनी पढ़ाई के प्रति लगन थी और वह अपनी गुरु लेखिका महादेवी वर्मा का बेहद सम्मान करता था।

‘घीसा’ पाठ के विषय में कुछ

‘घीसा’ पाठ लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखा गया एक संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। यह उनके जीवन में घटित वास्तविक घटनाओं पर आधारित रेखाचित्र है। यह कहानी उन्होंने एक गड़रिया के गरीब बालक घीसा को आधार बनाकर लिखी है। लेखिका के ग्रामीण प्रवास के दौरान उनकी मुलाकात गाँव के अनेक बच्चों से हुई। उनमें घीसा नामक एक गरीब बालक था। उसे पढ़ाने का दायित्व लेखिका ने लिया। गुरु एवं शिष्य के बीच जो प्रसंग घटे, उसी को आधार बनाकर उन्होंने यह कहानी लिखी है।


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अपने क्षेत्र मे बढ़ते अपराधों की समस्या के बारे में सूचना देते हुए थानाध्यक्ष को पत्र लिखिए।

औपचारिक पत्र

बढ़ते अपराधों की समस्या के बारे में सूचना देते हुए थानाध्यक्ष को पत्र

 

दिनांक : 25 अप्रेल 2024

 

सेवा में,
श्रीमान थाना अध्यक्ष महोदय,
सिविल लाइन थाना क्षेत्र,
आगरा (उत्तर प्रदेश)

विषय : बढ़ते अपराधों के संबंध में संज्ञान लेने के लिए अनुरोध पत्र

थाना अध्यक्ष महोदय,

मेरा नाम रामकुमार है। मैं नई कॉलोनी का निवासी हूँ। मैं आपका ध्यान हमारी सिविल लाइन थाना क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली नई कॉलोनी और आसपास के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे अपराधों के संबंध में आकृष्ट कराना चाहता हूँ। महोदय, पिछले कुछ दिनों से हमारी कॉलोनी और आसपास के क्षेत्र में अपराध की दर बढ़ती जा रही है। छीना-छपटी, झपटमारी, जेब काटने की घटनाएं, नशेड़ी लोगों का जमावड़ा आदि जैसी घटनाएं आम हो चली हैं। इस कारण हम शरीफ नागरिकों का जीना दूभर हो गया है।

हमारे घर की महिलाएं और लड़कियां घर से बाहर निकलने में डरती हैं। वह जब घर से बाहर निकलती हैं तो आसपास घूमते चोर-उचक्के और असामाजिक तत्व उन्हें घूरते हैं। कुछ बोलने पर वह लड़ने-झगड़े पर उतारू हो जाते हैं। इन लोगों के पास हथियार होने के कारण हम लोग इनसे कुछ भी बोलने से डरते हैं। हमारे घर की महिलाएं परिवार के किसी पुरुष सदस्य के बिना घर से बाहर नहीं निकल सकती।

केवल महिलाएं ही नहीं पुरुष भी आते जाते समय सुरक्षित नहीं हैं। शाम के समय अंधकार होने पर लूटपाट और जेब काटने की घटनाएं बढ़ती जाती हैं। जरा सी सुनसान जगह होने पर ये असामाजिक तत्व लूटपाट करने से नहीं चूकते। हमारे क्षेत्र में पुलिस कर्मियों की कमी है, इसी कारण इन असामाजिक तत्वों का हौसला बढ़ गया है।

अतः मेरा श्रीमाजी से आपसे अनुरोध है कि हमारे क्षेत्र में पुलिस कर्मियों की संख्या बढ़ते हुए निरंतर पुलिस गश्त करवायें और असामाजिक तत्वों को पकड़कर हमारे क्षेत्र को इन लोगों के आतंक से मुक्त करें।

आशा है, आप हम सभी नागरिकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए शीघ्र ही कठोर से कठोर कार्रवाई करेंगे।
धन्यवाद,

भवदीय,
रामकुमार
नई कॉलोनी,
राजनगर, (उत्तम प्रदेश) ।


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अपने विद्यालय के पुस्तकालयाध्यक्ष को अपनी पसंदीदा पुस्तक मंगाने हेतु एक पत्र लिखिए​।

अपने ग्राम प्रधान को घर के आगे वाली पोल पर सोलर लाइट लगवाने हेतु पत्र ​लिखिए।

G-20 सम्मेलन को लेकर दो मित्रों के बीच हुए संवाद को लिखें।

संवाद लेखन

G-20 सम्मेलन को लेकर दो मित्रों के बीच संवाद

 

(G-20 शिखर सम्मेलन के बारे में दो मित्रों आशीष और संजीव में वार्तालाप हो रहा है।)

आशीष ⦂ पिछले दिनों हमारे देश में G-20 शिखर सम्मेलन की बेहद चर्चा हुई। तुम मुझे इसके बारे में कुछ बताओ।

संजीव ⦂ जी-20 विश्व की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का समूह है। यह सभी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले प्रमुख देश अपने देश के आर्थिक नीतियों को साझा करने और की वैश्विक आर्थिक मामलों को सुलझाने के लिए एक मंच पर एकत्रित होते हैं।, ताकि वैश्विक स्तर आर्थिक समस्याओं का निपटारा कर सके और आपसी आर्थिक सहयोग को बढ़ावा दें।

आशीष ⦂ अच्छा, पिछले दिनों जिस तरह से समाचारों में जी-20 शिखर सम्मेलन की खबरें छाई रही थी और शिखर सम्मेलन की सफलता के बारे में काफी कुछ पढ़ा और सुना उससे मुझे बेहद गर्व की अनुभूति हो रही थी। इसी कारण मेरे मन में जी-20 शिखर सम्मेलन के बारे में और अधिक जानने की इच्छा हो रही थी।

संजीव ⦂ हाँ, यह जी-20 शिखर सम्मेलन 19 देश और एक यूरोपीय यूनियन यानी कुल 20 सदस्यों का एक समूह है। यह शिखर सम्मेलन 2008 से नियमित रूप से बारी-बारी से सभी सदस्य देशों में आयोजित किया जाता रहा है। इस बार भारत का नंबर था, इसलिए ये सम्मेलन हमारे देश में आयोजित किया गया।

आशीष ⦂ अच्छा। विश्व की जानी-मानी 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में हमारे देश भारत का भी नाम है, यह जानकर मुझे बड़ा ही अच्छा लग रहा है।

संजीव ⦂ हमारा भारत देश विश्व की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में ही नहीं है बल्कि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है और जल्दी ही आने वाले कुछ वर्षों में हमारा देश विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

आशीष ⦂ वाह! ये बात सुनकर मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया। कुछ और बताओ जी-20 सम्मेलन के बारे में।

संजीव ⦂ अब ये जी-20 शिखर सम्मेलन नहीं रहा बल्कि अब यह जी-21 सम्मेलन बन गया है क्योंकि इसमें एक और सदस्य शामिल हुआ है, जो अफ्रीकी यूनियन है। इस तरह अब अगली बार से इसे जी-21 सम्मेलन नाम से जाना जाएगा।

आशीष ⦂ अच्छा फिर अगला सम्मेलन अब कहाँ होगा ?

संजीव ⦂ अब अगला सम्मेलन ब्राज़ील में होगा जो अगले साल होगा, क्योंकि बारी-बारी से सभी सदस्य देशों में यह सम्मेलन हर साल आयोजित किया जाता है। अब इस समूह में 19 देश और दो राष्ट्र यूनियन शामिल हैं ये यूनियन अफ्रीकी यूनियन और यूरोपीय यूनियन हैं।

आशीष ⦂ अब अगला जी-21 सम्मेलन हमारे देश में कब होगा?

संजीव ⦂ इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन इसके लिए अभी समय लगेगा। अब अगला जी-21 सम्मेलन हमारे देश में 10 से 15 साल बाद हो सकता है, जब हमारे देश का नंबर आएगा।

आशीष ⦂ हमारे देश में जी-20 शिखर सम्मेलन करने से क्या लाभ हुआ?

संजीव ⦂ जी-20 शिखर सम्मेलन का सफलतापूर्वक आयोजन करके हमारे देश भारत की प्रतिष्ठा विश्व में और अधिक बढ़ी है। यह एक महत्वपूर्ण सम्मेलन था, इसमें सभी प्रमुख बड़े देश शामिल थे। इस सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए जिनमें अफ्रीकी यूनियन को 21वें सदस्य के रूप में शामिल करना एक महत्वपूर्ण फैसला था। इसकी पहल भी भारत ने ही की थी। इसके अलावा कई आर्थिक नीतियों पर भी महत्वपूर्ण फैसले लिए गए। कुल मिलाकर यह आयोजन बिल्कुल बेहद सफल रहा

आशीष ⦂ अच्छा। जी-21 के सभी सदस्य देश कौन-कौन से हैं?

संजीव ⦂ इस समूह के सदस्य देशों में भारत, अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, सऊदी अरब, ब्राज़ील, तुर्की, मेक्सिको, जर्मनी, फ्रांस, इटली, यूनाइटेड किंगडम, जापान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, अर्जेंटीना, ब्राज़ील, यूरोपीय यूनियन और अफ्रीकी यूनियन हैं।

आशीष ⦂ मित्र तुमने बहुत उपयोगी जानकारी दी। तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद।

संजीव ⦂ स्वागत है तुम्हारा मित्र।


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एक गृहिणी और सब्जी बेचने वाले के मध्य संवाद को लिखिए।

44, आदर्श सोसायटी, वीरमगाम से निकिता मुंबई-निवासिनी अपनी सखी को ‘मोबाइल के लाभ-हानि’ बताते हुई पत्र लिखती है।

हिंदी पत्र लेखन

सखी को ‘मोबाइल के लाभ-हानि’ बताते हुई पत्र

 

दिनांक : 15 अप्रेल 2024

 

निकिता,
44, आदर्श सोसायटी,
वीरमगाम

शर्मिला चौधरी,
204/12, योगधाम सोसायटी,
गोरेगाँव – पश्चिम (मुंबई)

प्रिय सखी शर्मिला,
तुम कैसी हो? तुम्हारा स्वास्थ्य कैसा है? मुझे पता चला है कि तुम आजकल मोबाइल पर बहुत अधिक व्यस्त रहती हो। तुम मोबाइल का जरूरत से ज्यादा उपयोग करने लगी हो, इसीलिए एक अच्छी मित्र होने के नाते मैं तुम्हें मोबाइल के लाभ और हानि से अवगत कराना चाहती हूँ, ताकि तुम मोबाइल के लाभ के अलावा मोबाइल से होने वाली हानियों को भी जान सको और मोबाइल का उपयोग करने के समय को सीमित कर सको।

तुम जानती हो कि आजकल तकनीक और डिजिटल युग है और मोबाइल आज के समय में सबसे बड़ा क्रांतिकारी उपकरण बनकर हम सबके जीवन का आवश्यक अंग बन गया है। आज हर किसी के व्यक्ति के पास मोबाइल है। इस मोबाइल से हमें अनेक तरह के लाभ प्राप्त हो रहे हैं। चाहे वह एक दूसरे से संपर्क करना हो अथवा छोटे-मोटे तकनीकी संबंधी कार्य करना हो, किसी को पैसे भेजना हो, फोटो क्लिक करना हो, वीडियो बनाना हो। इन सब महत्वपूर्ण कार्यों के लिए मोबाइल के माध्यम से सारे कार्य किया जा सकते हैं। ये तो मोबाइल के लाभ हो गए।

अब हमें मोबाइल से होने वाली हानियां भी जान लेनी चाहिए। मोबाइल से हमें अनेक तरह की हानियां भी होती हैं। हमेशा मोबाइल पर व्यस्त रहने से हमारी आँखों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। लगातार मोबाइल की स्क्रीन को देखते रहने से आँखों पर बुरा असर पड़ता है। मोबाइल पर गेम खेलने की लत लग जाती है, जिस कारण पढ़ाई चौपट होती है।

सोशल मीडिया पर बिजी रहना भी मोबाइल के बुरे प्रभावों में से एक है। मोबाइल पर अनेक तरह की गलत सामग्री को देखना भी मोबाइल से होने वाली हानियों का एक प्रकार है, जिससे अनेक युवा गलत बाते सीखते हैं। इस तरह मोबाइल के अनेक लाभ और हानियां हैं। यह हमारे विवेक के ऊपर है कि हम मोबाइल का किस तरह उपयोग करते हैं। मेरे विचार में हमें मोबाइल का एक सीमित उपयोग करना चाहिए और अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए केवल अच्छे और सकारात्मक उद्देश्य के लिए ही मोबाइल का उपयोग करना चाहिए।

आशा है, तुम मेरे इस पत्र में कही गई बातों को समझ सकी होगी और मोबाइल के लाभ और हानि दोनों को जानकर अपने विवेक से मोबाइल का सही इस्तेमाल करने के बारे में सोचोगी।

तुम्हारी सहेली,
निकिता,
44, आदर्श सोसायटी,
वीरमगाँव (गुजरात) ।


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निमंत्रण मिलने पर अपने मित्र के घर जाने पर वहाँ मिले आदर-सत्कार की खुशी जाहिर करते हुए एक पत्र लिखिए।

दुर्घटनाग्रस्त मित्र को 100 से 120 शब्दों मे सांत्वना देते हुए पत्र लिखिए ।

15 अगस्त को झंडा फहराने से नागरिकों पर क्या प्रभाव पड़ता है​?

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15 अगस्त को झंडा फहराने से नागरिकों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। झंडा भारत की पहचान का प्रतीक है। हर देश का अपना एक राष्ट्रीय ध्वज होता है, जो उस देश का प्रतिनिधित्व करता है। झंडा किसी एक व्यक्ति का नहीं होता बल्कि यह हर भारतवासी का होता है। यह हर भारतवासी का प्रतिनिधित्व करता है। इस पर हर भारतवासी का अधिकार है।

जब 15 अगस्त अथवा 26 जनवरी अथवा अन्य किसी सार्वजनिक उत्सव के अवसर पर नागरिक झंडा फहराते हैं, तो नागरिकों के मन में देशभक्ति की भावना प्रबल होती है। ऐसे शुभ अवसरों पर राष्ट्रीय ध्वज फैलाने से नागरिकों को अपने देश के प्रति देशभक्ति प्रदर्शित करने का अवसर मिलता है। राष्ट्रीय झंडा फहराना देश के प्रति अपना सम्मान प्रकट करने का एक अवसर है। इसके अलावा यह राष्ट्रीय गौरव का भी प्रतीक है। जब कोई नागरिक राष्ट्रीय झंडा फहराना है तो ये बात उसके अंदर गर्व की भावना भर देता है।

निष्कर्ष : इसलिए 15 अगस्त को झंडा फहराने से नागरिकों पर एकदम सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और उनके मन में अपने देशभक्ति की भावना अधिक प्रबल होती है।


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यह प्रश्न रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित कविता ‘गीत और अगीत’ से संबंधित है। इस कविता में कवि रामधारी सिंह दिनकर ने गीत और अगीत इन दो भावों का विवेचन किया है।

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अगीत से कवि का आशय यह है कि जब मन के भाव उत्पन्न होकर मन में ही रह जाते हैं तो वह अगीत बन जाते हैं। गीत और गीत दोनों मन के भावों के प्रकटीकरण के स्वरूप हैं। अगीत भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मन के भाव पहले अगीत रूप में उत्पन्न होते है। अगीत से ही गीत की रचना होती है। जब तक मन के भाव प्रकट नही होंगे गीत कैसे बनेगा। गीत पहले अगीत ही होता है, जो बाद में गीत बनता है।

गीत और गीत में मुख्य अंतर यही होता है कि जब मन के भाव प्रकट होकर शब्द अथवा स्वरों के रूप में फूट पड़ते हैं, तो वह गीत का रूप ले लेते हैं, लेकिन यही मन के भाव प्रकट होकर केवल अनुभव ही किया जा सकते हैं, वह शब्द या स्वर का रूप नहीं ले पाते और मन ही मन में रह जाते हैं तो वह अगीत कहलाते हैं।

गीत का अस्तित्व होता है, जबकि अगीत का अस्तित्व नहीं होता। ना तो उन्हें गाया जा सकता है और ना ही उन्हें प्रकट किया जा सकता है। उन्हें केवल अनुभव ही किया जा सकता है। संक्षेप में कहीं तो अगीत का आशय मन के भावों का मन में ही दबे रह जाने से होता है। जब मन के भाव उत्पन्न होकर प्रकट नहीं हो पाते हैं, तो वह अगीत बन जाते हैं। जब मन के भाव प्रकट होकर किसी काव्य आदि का स्वरूप ले लेते हैं तो वह गीत बन जाते हैं।


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अगर कंकड़ नदी में ही पड़ा रहता, तो अंत में वह क्या बन जाता ?

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अगर कंकड़ नदी में ही पड़ा रहता तो वह अंत में अपना अस्तित्व खोकर रेत का एक छोटा सा कण बन जाता। कंकड़ जब नदी में ही पड़ा रहता तो धीरे-धीरे वह नदी के पानी में ही घुलता चला जाता। धीरे-धीरे उसका अस्तित्व क्षीण होने लगता और अंत में वह नदी के पानी में घुल-घुल कर रेत का एक छोटा सा कण बन जाता।

नदी के पानी में घुलकर उसका अस्तित्व पूरी तरह नदी के पानी में ही विलीन हो जाता। नदी में पड़े रहने से कंकड़ के किनारे और कोनों का निरंतर क्षरण होता रहता और अंत में वह रेत के बेहद नन्हे से कण में ही बदलकर रह जाता। कंकड़ नदी के पानी से बाहर कहीं पड़ा होता तो संभव है कि वह कोई बड़ा पत्थर बन जाता अथवा किसी चट्टान में भी तब्दील हो सकता था। नदी के पानी में उसका अस्तित्व नदी में ही मिल जाना था जबकि नदी के बाहर रहकर अपने अस्तित्व की रक्षा कर सकता था।


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‘चाँदी का जूता’ कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

‘चंपा काले अक्षर नहीं चीन्हती’ पाठ में चंपा का पढ़ाई के प्रति क्या दृष्टिकोण है? बताइए​।

‘नारी के बढ़ते कदम​’ पर अनुच्छेद लेखन करिए।

अनुच्छेद लेखन

नारी के बढ़ते कदम​

 

आज की नई एक प्रगतिशील नारी है और वह तेज गति से हर जीवन के हर क्षेत्र में अपने कदम को आगे बढ़ा रही है। आज की नारी के बढ़ते कदमों को कोई नहीं रोक सकता। नारी ने सदियों से अपने ऊपर अत्याचार और बंधन सहे हैं। लेकिन नारी के अत्याचार, शोषण और बंधन का वह दौर बीत चुका है। अब नारी पुरुष के साथ कदम से कदम मिलाकर जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। जिन क्षेत्रों में पहले पुरुष का ही वर्चस्व स्थापित था, उन क्षेत्र में नारी ने अपना मुकाम बनाया है। कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं बचा जहां पर नारी में अपनी उपस्थिति को दर्ज नहीं कराया। पहले बहुत से क्षेत्र ऐसे थे, जहाँ पर स्त्रियों को काम करने के योग्य नहीं समझा जाता था, लेकिन आज की नारी उन सभी क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति को स्थापित कर चुकी है। आज की नारी  हर जगह अपनी काबिलियत का लोहा मंगवाया। नारी ने अपने हुनर द्वारा सिद्ध किया है कि वह पुरुषों से कम नहीं है और उस हर कार्य को कर सकती है, जो पुरुष कर सकते हैं। आज लड़के और लड़की के बीच भेद-भाव मिट गया है। माता-पिता की सोच बदल रही है। वह अपनी बेटियों को भी उतना पढ़ा रहे हैं, जितना पहले केवल बेटों को ही पढ़ाते थे। बेटियों को वह सारी सुख-सुविधाएँ और अधिकार दिए जाने लगें हैं, जो पहले केवल बेटों को ही दिए जाते थे। नारी ने भी स्वयं को मिले इस अवसर को पूरी तरह भुनाया है. हर जगह अपनी काबिलियत सिद्ध की है। जीवन के हर क्षेत्र में लड़कियां प्रगति कर रही हैं। नारी के बढ़ते कदमों को अब कोई नहीं रोक सकता।


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हॉस्टल का जीवन पर अनुच्छेद लिखें।

‘काश मैं पक्षी होता’ इस विषय पर अनुच्छेद लिखें।

ज्ञान का भंडार क्या हैं? किन ग्रंथों को ज्ञान का भंडार कहा गया है?​

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समाचार पत्रों को ज्ञान का भंडार कहा गया है। समाचार पत्रों के माध्यम से हर तरह की उपयोगी जानकारी प्राप्त होती है। समाचार पत्र में अनेक तरह के स्तंभ होते हैं, जहाँ पर उपयोगी जानकारी होती है। समाचार पत्रों में उपयोगी और ज्ञानवर्द्धक लेख होते हैंं। समाचार पत्रों में कहानियाँ होती हैं, कविताएं होती हैं। समाचार पत्रों के समाचारों और फीचर रिपोर्ट के माध्यम से देश-दुनिया की ताजातरीन घटनाओं की जानकारी मिलती है। समाचार पत्र अनेक तरह के स्थायी स्तंभों, जिन्हे कॉलम कहा जाता है, के माध्यम से सभी के ज्ञान में वृद्धि होती है। इसीलिये समाचार पत्रों को ज्ञान का भंडार कहा गया है।

भारत के अनेक ग्रंथ ज्ञान का भंडार माने जाते हैं। भारत के वेद-उपनिषद ज्ञान का भंडार है। इन ग्रंथों में मंत्रों और श्लोकों के माध्यम से ज्ञानवर्द्धक बाते बताई गई हैं। वेदों को संसार की सबसे प्राचीनतम पुस्तक माना जाता है। भारत प्राचीन का से ज्ञान के विषय में विश्व गुरु कहलाया है।

प्राचीन काल में जब पूरा विश्व अंधकार के युग मे था तब भारत एक ऐसा देश था, जहाँ पर ज्ञान की ज्योति जगमगाई  हुई थी। यहाँ के ऋषि-मुनियों में अनेक ग्रंथों द्वारा भारत में ज्ञान की पताका लहराई है। वेद उपनिषद ऐसे ही ग्रंथ है, इसलिए ग्रंथ की दृष्टि से भारत के वेद-उपनिषद ज्ञान का सीमित भंडार हैं।


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‘चाँदी का जूता’ कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि। मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।। भावार्थ लिखिए।

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माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि 
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।।

संदर्भ : यह दोहा कबीर द्वारा रचित साखी है, जो कबीर की सखियां से लिया गया है।  कबीर दास ने इस साखी के माध्यम से संसार के लोगों द्वारा की जाने वाली आडंबर एवं दिखावे की भक्ति पर कटाक्ष किया है।

भावार्थ : कबीर कहते हैं कि इस संसार के लोग ईश्वर की भक्ति करने का दिखावा ही करते हैं। वह हाथ में माला लेकर माला को घुमाते हुए जाप करते रहते हैं, और वह ऐसा दर्शाते हैं कि जैसे वह ईश्वर को याद कर रहे हैं। लेकिन वास्तव में केवल उनका हाथ ही चल रहा होता है, उनका मन कहीं और होता है उनका मन ईश्वर में नहीं होता। उनका अपने मन पर नियंत्रण नहीं होता। ऐसी स्थिति में ईश्वर के स्मरण का कोई लाभ नहीं क्योंकि वह बाहरी दिखावे के तौर पर तो ईश्वर की भक्ति कर रहे हैं, लेकिन उनका मन ईश्वर की भक्ति में नहीं लगा है, वह इधर-उधर भटक रहा है।

विशेष टिप्पणी : कबीर जी ने इस साखी के माध्यम से पाखंड एवं आडंबर पर करारा व्यंग्य किया है। वह यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि ईश्वर की भक्ति करने के लिए मन की शुद्धता, मन की निर्मलता होनी आवश्यक है। ईश्वर की भक्ति मन से की जाती है तन से नही। तन को ईश्वर की भक्ति करते हुए दिखाने से कोई लाभ नहीं जब तक न ईश्वर के ध्यान स्मरण में पूरी तरह से एकाग्र नहीं है। इसलिए ईश्वर का नाम जपते रहने का दिखावा करने से कोई लाभ नही है। ईश्वर की भक्ति करने के लिए पूरी तरह से मन से समर्पित होना पड़ता है और मन को साधना पड़ता है।


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“हरषे सकल भालु कपि ब्राता” – यहाँ ‘ब्राता’ का अर्थ है : (क) बात (ख) भाई (ग) समूह (घ) बाराती

समानार्थी शब्द लिखो। 1) अभिलाषा 2) अच्छा 3) ध्वनि 4) उजाला 5) धन​

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दिए गए शब्दों के समानार्थी शब्द इस प्रकार होंगे :

1) अभिलाषा 

समानार्थी शब्द : इच्छा, कामना, आकांक्षा, इच्छा, चाहत,  लालसा, हसरत, लोभ, चाह, मनोकामना, स्पृहा, इष्टि।

2) अच्छा

समानार्थी शब्द : सही, उचित, बढ़िया, भला, उत्तम, चोखा, खरा।

3) ध्वनि

समानार्थी शब्द :  आवाज, शोर, शब्द, स्वर, वाणी, नाद, निनाद, सुर, तान, रव, सदा, पुकार।

4) उजाला 

समानार्थी शब्द :  प्रकाश, रोशनी, प्रदीप, चमक, ज्योति, उजियाला, प्रदीप्त, दीप्त, कान्ति, आभा, प्रभा, चमक, आलोक दीप्ति, छवि, सुषमा, छटा, द्युति।

5) धन

समानार्थी शब्द :  पैसा, रुपया, दौलत, संपदा, संपत्ति, मनी, माल, टका, पैसा-पानी।


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किस विकल्प में दोनों शब्द तत्सम शब्द हैं? (a) सूरज, अग्नि (b) भानु, आसमान (c) आकाश, सितारा (d) दिनकर, सूर्य.

‘चाँदी का जूता’ कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

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‘चाँदी का जूता’ कहानी के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हम अपने जीवन में जो भी आदर्श स्थापित करें, हमें उन्हें स्वयं भी पालन करना चाहिए। आदर्श को केवल दूसरों की उपदेश देने तक ही सीमित नहीं करना चाहिए बल्कि हमें स्वयं भी उनका दृढ़ता से पालन करना चाहिए।

‘चाँदी का जूता’ कहानी दहेज प्रथा पर आधारित कहानी है। जिसमें लेखक के मित्र दहेज के विरोधी थे और उन्होंने अपने पुत्र के विवाह में दहेज ना लेने का संकल्प लिया था, लेकिन उनकी पत्नी को दहेज चाहिए था। इसलिए अपनी पत्नी की जिद के आगे उन्होंने अपने आदर्शों की तिलांजलि दे दी और वधू पक्ष से दहेज की मांग कर बैठे। इस तरह वह भले ही दूसरों को दहेज ना लेने का उपदेश देते रहे और उन्होंने स्वयं के लिए दहेज न लेने का जो आदर्श स्थापित किया था, लेकिन जब अपने पुत्र के विवाह के समय स्वयं उसका दृढ़ता से पालन करने की बात आई तो वह उसका पालन नहीं कर पाए । ‘चाँदी का जूता’ कहानी समाज के इसी पाखंड पर कठाक्ष करते के साथ-साथ दहेज प्रथा जैसी कुरीति पर भी कुठाराघात करती है।

लेखक के बारे में

‘चाँदी का जूता’ कहानी तेलुगु भाषा के लेखक ‘बालशौरि रेड्डी’ द्वारा लिखी गई एक हिंदी कहानी है। उन्होंने तेलुगु भाषा के अलावा हिंदी भाषा में भी कई कहानियां लिखी हैं

‘बालशौरि रेड्डी’ मूल रूप से तेलुगूभाषी लेखक हैं लेकिन उन्होंने हिंदी में भी लेखन कार्य किया है। वह दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा (मद्रास) में लेखन कार्य और संपादन का कार्य करते थे, इसी कारण उन्होंने कई हिंदी कहानियां भी लिखीं। उन्होंने बच्चों की प्रसिद्ध पत्रिका ‘चंदा मामा’ का कई वर्षों तक संपादन कार्य भी किया था। वह भारतीय भाषा परिषद कोलकाता में भी कार्य कर चुके हैं। उन्होंने तेलुगु भाषा में कई रचनाओं के अलावा हिंदी में भी कई कहानियां लिखीं हैं और कई हिंदी कहानियों का हिंदी से तेलुगु भाषा में अथवा तेलुगु कहानियों का हिंदी भाषा में अनुवाद भी किया है।


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‘चंपा काले अक्षर नहीं चीन्हती’ चीन्हती’ के माध्यम से चंपा का पढ़ाई के प्रति क्या दृष्टिकोण है? बताइए​।

‘एक दिन’ एकांकी में भारतीय आदर्श की प्रतिष्ठा की गई है। स्पष्ट कीजिए​।

‘चंपा काले अक्षर नहीं चीन्हती’ पाठ में चंपा का पढ़ाई के प्रति क्या दृष्टिकोण है? बताइए​।

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‘चंपा काले अक्षर नहीं चीन्हती’ पाठ में चंपा का पढ़ाई के प्रति दृष्टिकोण उपेक्षा भरा हुआ है, वह पढ़ाई को बहुत अधिक उपयोगी नहीं मानती। जब लेखक दिन भर कुछ ना कुछ पढ़ाई लिखाई करता रहता है तो चंपा को बड़ा ही अचरज होता है। लेखक जब उसे पढ़ने-लिखने की सीख देता है तो वह लेखक को ही ताने-उलाहने देती है। उसे पढ़ना-लिखना पसंद नहीं। चंपा एक भोली-भाली मासूम ग्रामीण बालिका है, जो गाय चराने का काम करती है। वह एक ग्वालन है, उसने कभी भी बचपन में कभी भी पढ़ाई नहीं की, इसीलिए वह पढ़ाई का महत्व नहीं जानती थी। शुरू से पढ़ाई का महत्व पता न होने के कारण, उसकी पढ़ाई के प्रति उपेक्षा का भाव है। वह पढ़ाई को व्यर्थ का कार्य मानती है और उसे पढ़ने लिखने में जरा भी रुचि नहीं है।


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‘एक दिन’ एकांकी में भारतीय आदर्श की प्रतिष्ठा की गई है। स्पष्ट कीजिए​।

‘एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा’ पाठ के आधार पर बचेंद्री पॉल की विशेषताओं की वर्णन कीजिए।

‘एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा’ पाठ के आधार पर बचेंद्री पॉल की विशेषताओं की वर्णन कीजिए।

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‘एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा’ पाठ के आधार पर बचेंद्री पॉल की विशेषताएं..
‘एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा’ पाठ बचेंद्री पाल द्वारा लिखा गया एक आत्म संस्मरण जो उन्होंने एवरेस्ट शिखर के अपने पर्वतारोहण अभियान को आधार बनाकर लिखा है। इस पाठ में उनके चरित्र की अनेक विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं….

  • बचेंद्री पाल एक जुझारू और मजबूद मनोबल वाली महिला हैं। पर्वतारोहण में अनेक तरह की कठिनाइयां आती हैं, यह जानकर भी बचेंद्री पाल ने पर्वतारोहण को चुना।
  • अपने पर्वतारोहण के अभियान के दौरान विपरीत परिस्थितियों में भी वह अपने निश्चय से वह डगमगाई नहीं। जब उनका अभियान चल रहा था तो मार्ग में ऐसी अनेक विषम परिस्थितियां उत्पन्न हो गई कि उनकी तबियत खराब हो गई और उनके साथी पर्वतारोहियों द्वारा उन्हें वापस जाने का सुझाव दिया गया ताकि उनके जान पर संकट नहीं आए। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और वह दृढ़ता पूर्वक कठिन परिस्थितियों का सामना करती रहीं। उन्होंने अपने पर्वतारोही साथियों को बीच में छोड़ के जाने से इनकार कर दिया।
  • बचेंद्री पाल एक विनम्र एवं सहयोगी स्वभाव वाली महिला उभर कर सामने आती है। उनका अपने अभियान दल के सदस्यों के साथ व्यवहा बेहद सौहार्द एवं सहयोगपूर्ण व्यवहार था। वह अपने अभियान दल के साथी सदस्यों के भोजन-पानी-चाय का विशेष ध्यान रखती थीं और समय पड़ने पर अपने साथियों के लिए भोजन-पानी आदि का प्रबंध करती रहती थीं।
  • इस पाठ में बचेंद्री पाल का आध्यात्मिक व्यक्तित्व निकल कर सामने आता है। मार्ग में पड़ने वाली विपरीत परिस्थितियों और कठिनाइयों में उन्होंने अपने आराध्य को याद किया और अपने आराध्य से प्रेरणा पाकर निरंतर आगे बढ़ती रहीं।
  • बचेंद्री पाल अपने माता-पिता का सम्मान करने वाली महिला भी थीं। जब भी कठिन परिस्थितियां आई उन्होंने ईश्वर के साथ-साथ अपने माता-पिता का भी स्मरण किया। इस बात ने उन्हें निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
  • बचेंद्री पाल में जबरदस्त धैर्य था और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की लगन कूट-कूट कर भरी थी। इसी कारण इतने कठिन अभियान को भी उन्होंने अपने धैर्य और लगन के बल पर सफल पूरा किया।
इस तरह इस पाठ में हम बचेंद्री पाल के एक जुझारू, साहसी, विनम्र, दृढ़ निश्चय वाली महिला के रूप में पाते हैं, जो उनकी प्रमुख चरित्र विशेषताएं हैं।

‘एक दिन’ एकांकी में भारतीय आदर्श की प्रतिष्ठा की गई है। स्पष्ट कीजिए​।

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‘एक दिन’ एकांकी की समीक्षा

‘एक दिन’ एकांकी लक्ष्मी नारायण मिश्र द्वारा रचित एकांकी है। इस एकांकी के माध्यम से उन्होंने भारतीय आदर्श की प्रतिष्ठा स्थापित की है। एकांकी की कथावस्तु पूरी तरह भारतीय आदर्शों पर ही आधारित है। एकांकी की कथावस्तु सामाजिक ताना-बाना लिए हुए हैं। एकांकीकार ने इस विशेष सामाजिक संदर्भ में प्रस्तुत किया है। इस एकांकी के माध्यम से एकांकीकार मिश्र जी ने सामाजिक परंपराओं को प्रतिष्ठित करते हुए पाश्चात्य मान्यताओं को विखंडित करने का प्रयास किया है। इस तरह उन्होंने भारतीय आदर्श आदर्श को प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने का सफल प्रयास किया है। एकांकीकार ने बहुत ही ठोस एवं सधे हुए कथानक के माध्यम से अपनी बात को कहने का प्रयत्न किया है।

एकांकी के पात्र और उनके चरित्र-चित्रण की बात की जाए तो एकांकी के सभी पात्र एकांकी के उद्देश्य को सफल बनाते हैं। इस एकांकी में चार पात्र हैं जिनके नाम निरंजन, शीला, राजनाथ और मोहन है। एकांकी की पृष्ठभूमि 20वीं सदी की है। तत्कालीन समाज में भारतीय समाज जिस तरह की मान्यताएं व्याप्त थी, लेखक ने उन्हें ही उकेरा है। इस एकांकी के माध्यम से एकांकीकार ने भारतीय नारी के कोमल स्वभाव को और भारतीय पुरुष के आत्मसंयमी, निडर और साहसी स्वभाव को प्रकट किया है। अभिनय की दृष्टि से ‘एक दिन’ एकांकी एक सफल एकांकी कहा जा सकता है और एकांकीकार अपनी बात को कहने में पूरी तरह सफल रहे हैं।


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सआदत अली जैसे लोग किस प्रकार देश के लिए घातक हैं ? ‘कारतूस’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।​

आशय स्पष्ट कीजिए – “जो नहीं है, इस तरह उसी को पा जाता हूँ।”

एक गृहिणी और सब्जी बेचने वाले के मध्य संवाद को लिखिए।

संवाद लेखन

गृहिणी और सब्जी बेचने वाले के बीच संवाद

 

गृहिणी ⦂ भैया, यह आलू क्या भाव दिए हैं।

सब्जीवाला  बहन जी, ₹20 किलो दिए हैं। आपको कितना चाहिए?

गृहिणी  भैया सही दाम लगाओ तो मैं 2 किलो ले लूंगी।

सब्जीवाला  बहनजी आप 2 किलो ले रही हो इसलिए मैं 15 रुपये किलो लगा दूंगा।

गृहिणी  अच्छा ठीक है। 2 किलो तोल दो, लेकिन यह बताओ कि आलू मीठे तो नहीं निकलेंगे।

सब्जीवाला  बहन जी एकदम नए आलू हैं। नए आलू मीठे नही होते।

गृहिणी  ठीक है, अच्छा ये टमाटर का क्या भाव है? अब तो सस्ते हो गए होंगे।

सब्जीवाला  हाँ, बहन जी, अब टमाटर 40 रुपये किलो हैं। कहिए कितने तोल दूं।

गृहिणी  फिर तो 1 किलो तोल दो। महीने भर पहले तो टमाटर ने हालत खराब कर दी थी। 150 रुपये किलो जा पहुँचे थे।

सब्जीवाला  हाँ, बहनजी, टमाटर की फसल बर्बाद होने कारण बाजार मे टमाटर की सप्लाई कम हो गई थी इसलिए टमाटर मंहगे हो गए थे। अब टमाटर की नई फसल होने से टमाटर की सप्लाई भरपूर हो रही है।

गृहिणी  फिर तो ठीक है। तुम स 10 रुपये की हरीमिर्च और धनिया दे दो।

सब्जीवाला  ये लीजिए बहनजी और क्या दूं।

गृहिणी  1 किलो सब्जी फूल गोभी दे दो लेकिन सही दाम लगाना।

सब्जीवाला  आपको एकदम सही दाम लगाऊंगा। वैसे तो फूलगोभी 60 रुपये किलो है लेकिन आपको 50 रुपये लगा दूंगा।

गृहिणी  कितने पैसे हुए?

सब्जीवाला  130 रुपये, बहनजी।

गृहिणी  ये लो भैया।

सब्जीवाला  धन्यवाद, ये रही आपकी सब्जी।


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संवाद लेखन : कक्षा एवं सदन फलक की साज-सज्जा पर दो सहपाठियों के मध्य हुए वार्तालाप को संवाद रूप में लिखिए।

क्रिकेट वनडे वर्ल्ड कप में भारत की ऑस्ट्रेलिया से हार पर दो दोस्तों के बीच संवाद लिखिए​।

सतगुरु साँचा सूरिवाँ, सवद जु बाह्य एक। लागत ही मैं मिल गया,पड़ता कलेजे छेक।। संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए।

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सतगुरु साँचा सूरिवाँ, सवद जु बाह्य एक।
लागत ही मैं मिल गया,पड़ता कलेजे छेक।।

संदर्भ और प्रसंग : यह दोहा कबीर की सखियां है, जो कबीर की द्वारा रचित सखियां से लिया गया है। इस साखी के माध्यम से कबीर ने गुरु के महत्व को बताया है। इस सखी का भावार्थ इस प्रकार है।

व्याख्या : कबीर दास कहते हैं कि मेरे सतगुरु ही सच्चे वीर पुरुष हैं। उनके शब्द रूपी वचन से मेरे हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उनके ज्ञान रूपी वचनों ने मेरे हृदय को झकझोर दिया है। उनके ज्ञान भरे शब्दों से मेरा अंतर्मन उद्वेलित हुआ है और मैं आत्म चिंतन करने के लिए प्रेरित हुआ हूँ। सतगुरु के शब्द रूपी शब्दों से ही मेरे अंदर ज्ञान का उदय हुआ है। मेरे अंदर जो भी अज्ञानता का अंधकार व्याप्त था, सतगुरु के शब्द रूपी तीर ने उस अंधकार को सदैव के लिए मिटा दिया है, इसलिए मेरे सतगुरु ही सच्चे वीर हैं।


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‘जिनकी सेवाएं अतुलनीय , पर विज्ञापन से दूर रहे, प्रतिकूल परिस्थितियों ने जिनके, कर दिये मनोरथ चूर चूर।’ उदाहरण देते हुए उपयुक्त पंक्तियों की व्याख्या कीजिए।

आशय स्पष्ट कीजिए – “जो नहीं है, इस तरह उसी को पा जाता हूँ।”

“हरषे सकल भालु कपि ब्राता” – यहाँ ‘ब्राता’ का अर्थ है : (क) बात (ख) भाई (ग) समूह (घ) बाराती

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इस प्रश्न का सही विकल्प होगा :

(ग) समूह

विस्तार से समझे कैसे?

‘श्रीराम चरित मानस’ की चौपाई की इन पंक्तियों में ‘ब्राता’ का अर्थ ‘समूह’ से है। भालू और बंदरों के भालू-कपि ब्राता अर्थात बंदर-भालू का समूह कहा गया है। पूरी चौपाई इस प्रकार है,

हृदयँ लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता।
कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा।।

अर्थात प्रभु श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण को अपने हृदय से लगाकर गले मिले। दोनों भाइयों का यह मिलन देखकर समस्त भालू और बंदरों के समूह हर्षोल्लास से भर गए। उसके बाद उपचार के उपरांत हनुमान जी ने वैद्य को उसी जगह पर वापस सकुशल पहुंचा दिया, जहाँ से वह उन्हें लेकर आए थे।

विशेष

यह चौपाइयां गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस के लंका कांड से ली गई हैं। राम और रावण की सेना के बीच युद्ध में जब लक्ष्मण रावण के पुत्र मेघनाथ के वाणों से घायल होकर मूर्छित हो गए और उनके प्राणों पर संकट आ गया। तब उनके उपचार के लिए हनुमान जी लंका जाकर सुषेण वैद्य को लेकर आए।

सुषेण वैद्य ने लक्ष्मण को देखकर उनके लिए संजीवनी बूटी औषधि का प्रबंध करने के लिए कहा। तब हनुमान हिमालय पर्वत जाकर संजीवनी बूटी लेकर आए और उस संजीवनी बूटी से सुषेण वैद्य ने लक्ष्मण का उपचार किया और लक्ष्मण स्वस्थ होकर उठ खड़े हुए। लक्ष्मण को स्वस्थ देख प्रभु श्री राम हर्षितसुशील बेड को लेकर आए थे हर्ष से भर उठे और उन्होंने हर्षविभोर होकर अपने भाई लक्ष्मण को गले से लगा लिया।

दोनों भाई राम और लक्ष्मण के सुंदर मिलन को देखकर आसपास के सभी वानर और भी भालू भी हर्षोल्लास से भर उठे। उसके बाद श्री हनुमान वैद्य को सम्मानपूर्वक उसी जगह पहुंच आए जहां से उन्हें लेकर आए थे।


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राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी। तुलसी के इस भरोसे का कारण क्या है?

प्रो. श्रीनिवासन की बातें सुनकर कलाम क्यों परेशान हुए?

“हमारा जीवन दूसरों को सहायता करने से ही सफल होता है।” ‘गानेवाली चिड़िया’ कहानी के आधार पर बताइए?

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हमारा जीवन दूसरों की सहायता करने से ही सफल होता है यह बात बिल्कुल सच प्रतिशत सत्य है। ‘गानेवाली चिड़िया’ पाठ के आधार पर कहा जाए तो यह बात बिल्कुल सही सिद्ध होती है।

हमारे जीवन का उद्देश्य केवल अपने स्वार्थ के लिए ही जीना नहीं होता बल्कि हमारा जीवन सार्थक तभी होता है, जब हम दूसरों के भी काम आए। हम दूसरों के लिए भी कुछ ऐसे कार्य करें जिससे उनका भला हो। केवल अपने स्वार्थ के लिए जीवन जीने वाले व्यक्ति का जीवन कभी भी सफल जीवन नहीं माना जा सकता। अपने हित की चिंता करना, हर मनुष्य का स्वभाविक लक्षण है, लेकिन केवल अपने हित के बारे में ही सोचना ये बिल्कुल भी उचित नही है। अपने लिए तो सभी जीते हैं, सच्चा मनुष्य तो वही है जो दूसरों के लिए जीए। आज तक जितने भी प्रसिद्ध महापुरुष हुए हैं, उन्होंने हमेशा समाज के लिए कुछ अच्छे कार्य किये। उन्होंने दूसरों के लिए कुछ ना कुछ दिया। वह दूसरों के हित के लिए कुछ करके गए, इसलिए हम आज तक तक याद करते हैं। सभी महापुरुषों में कोई भी ऐसा नहीं है, जिसने दूसरों के लिए कुछ ना कुछ नहीं किया हो। जो केवल अपने लिए ही जीवन जीते रहे, उनका आज नाम लेने वाला कोई नहीं है। कोई उन्हें याद नहीं करता।

‘गानेवाली चिड़िया’ पाठ में भी चिड़िया सदैव दूसरों की भलाई का सोचती थी। वह राजा को गाना सुनाने के लिए राजी हुई तो उसे मजदूर और किसानों को भी गाना सुनाने की चिंता थी। उसने अपने मधुर गाना केवल राजा के लिए ही नहीं बल्कि किसान मजदूर सभी के लिए सुनाया। उसे सबके हित की चिंता थी। इसी कारण वह सबको प्रिय थी। उसका जीवन वास्तव में सफल जीवन था क्योंकि वह अपने मधुर सबकों खुश रखने का प्रयास करती थी।

निष्कर्ष :

अंत में ‘गानेवाली चिड़िया’ पाठ में चिड़िया के आचरण से हमें यही सीख मिलती है कि हमारे जीवन दूसरों की सहायता करने से ही सफल होता है। हमें केवल स्वयं के बारे में नहीं सोचना चाहिए बल्कि दूसरों की सहायता करने के लिए भी सदैव तत्पर रहना चाहिए। हमारा जीवन केवल स्वार्थ (स्वयं का हित) पर नही बल्कि परमार्थ (दूसरों का हित) पर आधारित होना चाहिए।


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‘एक टोकरी भर मिट्टी’ कहानी का उद्देश्य लिखिए। इस कहानी के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है?

कहानी में मोटे-मोटे किस काम के हैं, किनके बारे में और क्यों कहा गया?

सेठ जी ने कितनी रोटियां कुत्ते को खिला दी व क्यों ? (महायज्ञ का पुरुस्कार)

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सेठ जी ने अपनी चार रोटियां कुत्ते को खिला दी, क्योंकि जब वह अपनी यात्रा के समय रास्ते में विश्राम करके भोजन करने के लिए बैठे तो वहीं पास में एक कुत्ता जमीन पर भूख से बड़ा छटपटा रहा था। भूख के कारण कुत्ता बेहद दुर्बल हो गया था और दुर्बलता के कारण वह अपने सर को भी नहीं उठा पा रहा था। कुत्ते की ऐसी दयनीय हालत देखकर सेठ जी को दया आ गई और उन्होंने अपनी चारों रोटियां धीरे-धीरे कुत्ते को खिला दी।

‘महायज्ञ का पुरुस्कार’ नामक कहानी जो यशपाल द्वारा लिखी गई कहानी है, उसके मुख्य पात्र सेठजी एक नगर सेठ थे। वह बेहद दयालु प्रवृत्ति के थे। उनके घर से कोई भी खाली हाथ नही जाता था। सेठ के व्यापार में हानि होने के कारण एक बार उन्हें धन की आवश्यकता पड़ी तो उनकी पत्नी सेठानी ने नगर के एक धन्ना सेठ के पास जाकर सहायता माँगने का सुझाव दिया।

उन दिनों अपने द्वारा किए गए अच्छे कर्मों के यज्ञ के फल की बिक्री हुआ करती थी। इसलिए सेठ जी ने अपना यज्ञ बेचने बेचने सोची और वह धन्ना सेठ के पास कुंदनपुर नगर चल दिए। उनकी पत्नी ने रास्ते में भोजन के लिए चार मोटी-मोटी रोटियां बनाकर पोटली में बांध कर दे दीं। अपनी यात्रा के समय रास्ते में जब वह एक जगह विश्राम करके भोजन करने बैठे तो वहीं पास में एक भूखे कुत्ते की दयनीय हालत देखकर उन्होंने अपनी चारों रोटियां कुत्ते के खिला दीं और स्वयं केवल पानी पीकर आगे चल दिए।


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‘संघर्ष में ही जीवन है।’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

मौसी ने अपनी जमीन जुम्मन के नाम क्यों कर दी?

संवाद लेखन : कक्षा एवं सदन फलक की साज-सज्जा पर दो सहपाठियों के मध्य हुए वार्तालाप को संवाद रूप में लिखिए।

संवाद लेखन

कक्षा एवं सदन फलक की साज-सज्जा पर सहपाठियों का संवाद

 

सहपाठी 1  हमारी कक्षा कितनी सुंदर लग रही है ना?

सहपाठी 2  हाँ, सच में केवल हमारी कक्षा ही नहीं बल्कि विद्यालय का पूरा भवन ही सुंदर लग रहा है।

सहपाठी 1  यह हम सभी विद्यार्थियों के परिश्रम का ही परिणाम है कि हम अपने विद्यालय को इतना सुंदर बना पाए।

सहपाठी 2 ⦂ हाँ, हमारे शिक्षकों को भी इसका श्रेय देना चाहिए क्योंकि उन्होंने ही हम लोगों को इसके लिए प्रेरित किया और आवश्यक साधन उपलब्ध कराए।

सहपाठी 1 ⦂ हाँ, सही बात है। अब हमारा विद्यालय पूरे शहर का सबसे सबसे सुंदर विद्यालय है।

सहपाठी 2  हाँ, हमारी कक्षा पूरे विद्यालय में सबसे अधिक सुंदर लग रही है। सदन फलक की साज-सज्जा तो देखते ही बनती है।

सहपाठी 1  इसके लिए हम सबने कुछ विशेष प्रयास किए थे ताकि हमारी कक्षा पूरे विद्यालय में अलग दिखे।

सहपाठी 2  हाँ, लेकिन इसमें सबसे बड़ा योगदान तो तुम्हारा है, आखिर तुम इस पूरी टीम के लीडर जो थे।

सहपाठी 1  अब हमें अपनी इस कक्षा को हमेशा ऐसे ही सुंदर रखे रखना है और इसकी अच्छे से देखभाल करनी है।


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‘संघर्ष में ही जीवन है।’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

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विचार लेखन

संघर्ष में ही जीवन है

 

संघर्ष में ही जीवन है, इस बात में पूरी सच्चाई है। जीवन और संघर्ष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। जब जीवन है, तो जीवन में संघर्ष अवश्य होगा और संघर्ष करके ही सफलता प्राप्त होती है। बिना संघर्ष के जीवन का कोई आनंद नहीं और ना ही कोई अर्थ है। जब संघर्ष करके सफलता प्राप्त होती है तो उस सफलता का आनंद कुछ अलग ही होता है। हर किसी के जीवन में कुछ ना कुछ संघर्ष अवश्य होता है। बिना संघर्ष किया कुछ भी प्राप्त नहीं होता। इसलिए संघर्ष और जीवन दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं।

जीवन का असली आनंद संघर्षों से लड़कर अपने लक्ष्य को पाने में है। जो कुछ हमें आसानी से मिल जाता है, उसकी हमें कद्र नहीं होती, और जब हमें परिश्रम और संघर्ष से कुछ प्राप्त होता है, तो न केवल हम उसकी कद्र करते हैं बल्कि अपने जीवन में संघर्ष से प्राप्त होने वाले अनुभवों से कुछ सीखने भी हैं। संघर्ष के समय हमें अनेक तरह के अच्छे-बुरे अनुभव होते हैं। यह अनुभव हमारे भविष्य के जीवन में काम आते हैं और हमें अपनी गलतियों से सबक लेने का अवसर प्रदान करते हैं। इसीलिए संघर्ष में ही जीवन है, इस बात में पूरी तरह सच्चाई है।


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विक्रेता द्वारा माल विलम्ब से भेजने तथा पैकिंग सही न करने के संबंध में क्रेता की ओर से एक पत्र लिखिए​।

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औपचारिक पत्र लेखन

विक्रेता द्वारा माल विलम्ब से भेजने तथा पैंकिंग सही न करने के संबंध में पत्र

 

दिनांक : 25 अप्रेल 2024

सेवा में,
मैसर्स रामसरन साड़ी भंडार,
34, करोल बाग, दिल्ली

 

विषय : आर्डर की समय डिलीवर समय पर न होने कारण और आर्डर कैंसिल करने के बाबत

 

विक्रेता महोदय,
मेरा नाम अभय माथुर है। पिछले दिनों मेरी पुत्री का विवाह था। इसी कारण मैंने आपकी दुकान से 10 बनारसी साड़ियां मंगाई थीं। मेरी पुत्री का विवाह 5 नवंबर को था। मैंने आपको साड़ी का ऑर्डर 15 अक्टूबर को दिया था। आपकी तरफ से हमें यह आश्वासन मिला था कि 25 अक्टूबर तक हमारे घर पर साड़ियों की डिलीवरी हो जाएगी। लेकिन 25 अक्टूबर तक प्रतीक्षा करने के बाद भी साड़ियां हमारे घर पर नहीं पहुंची। जब 2 नवंबर तक साड़ियां हमारे घर पर नहीं पहुंची तो आनन-फानन में हमें मार्केट में जाकर दूसरी साड़ियां खरीदनी पड़ीं, क्योंकि विवाह में हमें साड़ियां की आवश्यकता थी। 5 नवंबर 2023 को विवाह के दिन हमें आपके द्वारा भेजे गए ऑर्डर का पैकेट प्राप्त हुआ। पूरे माल की पैकेजिंग बिल्कुल ही गलत की हुई थी। जिस कारण पैकेट में पानी चला गया था और साड़ियाँ गीली हो गई थी।

आपके द्वारा भेजा गया हमारे ऑर्डर की डिलीवरी का हमारे लिए अब कोई औचित्य नहीं था क्योंकि ना तो हमें हमारा सामान समय पर प्राप्त हुआ और ना ही सही स्थिति में हमें सामान प्राप्त हुआ। इस पत्र के साथ ही मैं सभी साड़ियां रिटर्न कर रहा हूं और आपसे अनुरोध करता हूं कि आप तुरंत ही हमारे द्वारा किया गया भुगतान हमें वापस करने की कृपा करें। सामान वापस करने का हमारा औचित्य बनता है, क्योंकि आपने ना तो समय पर हमें सामान की डिलीवरी की और ना ही हमें सही कंडीशन में हमारे आर्डर का सामान भेजा। इसीलिए हमारे द्वारा किए गए भुगतान की वापसी अपेक्षित है। आशा है, आप अपने दुकान की साख को ध्यान में रखते हुए हमारे पैसे वापस कर देंगे। पत्र के साथ ही मेरा यूपीआई आईडी दिया गया है, जिस पर आप तुरंत हमारे पैसे का भुगतान कर दें।

धन्यवाद,

भवदीय,
अभय माथुर
सी-47, संतोष नगर, मेरठ ।


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राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी। तुलसी के इस भरोसे का कारण क्या है?

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राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी। तुलसी के इस भरोसे का मुख्य कारण यह है, क्योंकि तुलसी को विश्वास है कि राम बेहद दयालु हैं, वह कृपालु हैं, वह दया निधान है, वह हर किसी पर कृपा करते हैं।

तुलसी दास राम के प्रति भक्ति भाव से भरे हुए हैं। वह उनकी भक्ति में इतनी अधिक डूबे हुए हैं कि उन्हें सर्वत्र राम ही राम दिखाई देते हैं। उनके अंदर यह दृढ़ विश्वास है कि राम तक जब उनकी पुकार पहुंचेगी तो उनकी बिगड़ी बात बन जाएगी। उनकी सारी समस्याओं और कष्टों का निवारण हो जाएगा। राम उनकी पुकार सुनकर उनके ऊपर अपनी कृपा बरसा देंगे। राम के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति-भाव होना ही तुलसी के भरोसे का सबसे मुख्य कारण है।


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मौसी ने अपनी जमीन जुम्मन के नाम क्यों कर दी?

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मौसी ने अपनी जमीन जुम्मन के नाम क्यों कर दी?

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मौसी ने अपनी जमीन जुम्मन के नाम इसलिए कर दी थी क्योंकि जमीन अपने नाम लिखवाते समय जुम्मन ने मौसी से वादा किया था कि वह मौसी की जिंदगी पर देखभाल करेगा और उन्हें पूरी जिंदगी खाना देगा तथा उनकी हर जरूरत पूरी करेगा।

‘मुंशी प्रेमचंद’ द्वारा लिखित कहानी ‘पंच परमेश्वर’ में जुम्मन शेख की एक बूढ़ी खाला (मौसी) थी। मौसी के पास थोड़ी सी जमीन थी। मौसी की कोई संतान में नहीं थी और ना ही कोई और निकट का रिश्तेदार था। जुम्मन शेख ही मौसी का एकमात्र रिश्तेदार था। इसीलिए जुम्मन शेख ने मौसी से उनकी जमीन अपने नाम करने का प्रस्ताव दिया। जुम्मन शेख ने मौसी से लंबे-चौड़े वायदे करके मौसी की जमीन अपने नाम करवा ली। जुम्मन ने मौसी और कहा कि वह मौसी की पूरी जिंदगी देखभाल करेगा। जब तक मौसी ने जुम्मन के नाम जमीन नहीं की, तब तक जुम्मन ने मौसी की खूब खातेदारी की और उन्हें तरह-तरह के पकवान खिलाता था। लेकिन जैसे ही जमीन की रजिस्ट्री हो गई, जुम्मन के तेवर बदल गए। जुम्मन और उसकी पत्नी करीमन दोनों मौसी को खाना-पानी देने में आनाकानी करने लगे। वे अब पूरी-पकवान की जगह रूखा-सूखा भोजन देते तथा भोजन देते समय भी ताने देते थे। जुम्मन के इस बदले व्यवहार और अपने साथ हुए धोखे के खिलाफ मौसी ने न्याय पाने के लिए गाँव में पंचायत की शरण ली।


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‘बिस्मिल’ ने अपनी माँ के सदैव सत्य का पालन करने, शत्रु को भी क्षमा करने, किसी भी परिस्थिति में शत्रु को प्राणदंड न देने अथवा शत्रु का किसी भी तरह से अहित न करने के गुण को अपनाया। उन्होंने अपनी माँ के पढ़ने के शौक के गुण को भी अपनाया। बिस्मिल ने अपनी माँ के अच्छे विचारों को सदैव अपनाया। उन्होंने अपनी माँ के कठिन से कठिन संकट में भी धैर्य न खोने के गुना को गुण को अपनाया। जीवन को भोग-विलास एवं ऐश्वर्य के बिना सदा तरीके से जीने के गुण को अपनाया।

‘मेरी माँ’ आत्मकथा जो प्रसिद्ध क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा लिखी गई है, उसमें उन्होंने अपनी माँ के बारे में लिखते हुए कहा है कि उनकी माँ का जब केवल 11 वर्ष की आयु में जब विवाह हुआ था तो वह बेहद सीधी-सादी ग्रामीण और अशिक्षित कन्या थी, लेकिन उनके अंदर पढ़ने की रुचि थी। इसी कारण उन्होंने अपने आसपास की सखियों आदि की सहायता से अक्षर ज्ञान प्राप्त किया और धीरे-धीरे उन्होंने हिंदी पढ़ना सीख लिया। इसके बाद वह हिंदी की पुस्तक पढ़ने लगीं। इस तरह वह पुस्तक प्रेमी बनी। उनके इसी गुण का असर उनके पुत्र यानी राम प्रसाद बिस्मिल पर भी पड़ा। राम प्रसाद बिस्मिल की माँ बेहद सीधी-सादी सात्विक विचारों वाली महिला थी, जिन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल को सदैव जीवन में अच्छा कार्य करने की शिक्षा दी। उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल से प्रतिज्ञा ली थी कि वह अपने किसी भी शत्रु को कभी भी प्राण-दंड नहीं देंगे अर्थात शत्रु के जीवन को हानि नहीं पहुंचाएंगे। चाहे कैसी भी स्थिति क्यों ना हो उन्होंने अपने बेटे को सदैव सत्य के मार्ग पर चलने की शिक्षा भी दी थी।


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प्रो. श्रीनिवासन की बातें सुनकर कलाम क्यों परेशान हुए?

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प्रो. श्रीनिवासन की बात सुनकर अब्दुल कलाम परेशान इसलिए हुए क्योंकि प्रोफेसर श्रीनिवासन ने उन्हें उनके काम से संतुष्ट न होते हुए, उन्हें 3 दिन की समय सीमा दी थी और उन्हें 3 दिन की सीमा के अंदर ही अपना टास्क पूरा करके देना था, नहीं तो उनकी छात्रवृत्ति निरस्त करने की चेतावनी दी थी। छात्रवृत्ति रद्द होने की आशंका के कारण ही कलाम परेशान हुए।

प्रोफेसर श्रीनिवासन उस एमआईटी के डायरेक्टर थे, जहां पर डॉक्टर अब्दुल कलाम शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। एक बार प्रोफेसर श्रीनिवासन ने अब्दुल कलाम को एक विमान डिजाइन करने का प्रोजेक्ट अलॉट किया। डॉक्टर अब्दुल कलाम ने उसे प्रोजेक्ट का मॉडल बनाकर प्रोफेसर श्रीनिवासन के सामने प्रस्तुत किया। श्रीमान प्रोफेसर श्रीनिवासन ने उनके प्रोजेक्ट का मूल्यांकन किया और उसे देखकर वे बेहद निराश हुए। उन्होंने डॉक्टर अब्दुल कलाम से कहा कि वह तीन दिनों के अंदर ही अपना प्रोजेक्ट दोबारा से पूरा करके दें, नहीं तो उनकी छात्रवृत्ति रद्द कर दी जाएगी। फिर डॉक्टर अब्दुल कलाम को तीन दिनों तक लगातार काम करना पड़ा और निर्धारित समय में अपना प्रोजेक्ट पूरा करना पड़ा। डॉक्टर अब्दुल कलाम ने इंजीनियरिंग करने के दौरान दूसरे वर्ष में एअरनॉटिकल इंजीनियरिंग का अध्ययन चुना था और इसीलिए उन्होंने एमआईटी में दाखिला लिया था।

डॉ. अब्दुल कलाम भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे, जिन्हें मिसाइल मैन के नाम से जाना जाता है। वह भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं। उन्होंने भारत के मिसाइल कार्यक्रम को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। डॉ. अब्दुल कलाम 2002 से 2007 तक भारत के 11वें राष्ट्रपति भी रहे। प्रोफेसर श्रीनिवासन जी जिनका पूरा नाम नटेसन श्रीनिवासन था, वह भारत में विमान डिजाइन और वैमानिक शिक्षा के अग्रणी थे। वह लंबे समय तक एमआईटी के डायरेक्टर भी रहे। इसी एमआईटी संस्थान में डॉक्टर अब्दुल कलाम ने इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की थी।


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स्वामी जी ने जापान के विषय में क्या टिप्पणी की और क्यों?

साइकिल चलाने पर शुरू में महिलाओं को किस प्रकार के ताने सुनने पड़े? (जहाँ पहिया है)

स्वामी जी ने जापान के विषय में क्या टिप्पणी की और क्यों?

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स्वामी जी ने जापान के विषय में यह टिप्पणी की थी कि “जापान में शायद अच्छे फल नहीं मिलते।” उनके द्वारा टिप्पणी करने का मुख्य कारण यह था कि जापान यात्रा करते समय उनका मुख्य भोजन फल ही होते थे और जापान में रेलवे यात्रा के समय भूख लगने पर उनको उनकी इच्छा के अनुसार फल नहीं मिले। इसीलिए उन्होंने जापान के विषय में यह टिप्पणी की।

स्वामी रामतीर्थ जो एक प्रसिद्ध संत और समाज सेवी थे, वह एक बार जापान की यात्रा पर गए थे। वह अधिकतर फलाहार ही करते थे। एक बार वह जापान में रेल के द्वारा किसी जगह जा रहे थे तो रास्ते में उनको भूख लगी। इसलिए वह एक स्टेशन उतरकर फल की दुकान को खोजने लगे। लेकिन काफी खोजने पर भी उन्हें अच्छे फलों की दुकान नहीं मिली। तब उन्होंने जापान के विषय में यह टिप्पणी की कि “जापान में शायद अच्छे फल नहीं मिलते”।

उनकी टिप्पणी को पास में खड़े एक जापानी युवक ने सुन लिया। वह युवक अपनी पत्नी को ट्रेन में बैठाने आया था। स्वामी रामतीर्थ की यह टिप्पणी सुनकर वह युवक तुरंत वहाँ से गया और एक टोकरी बढ़िया ताजा फल लेकर स्वामी रामतीर्थ के पास आया और उन्हें फल देते हुए कहा, कि यह लीजिए ताजे फल। स्वामी रामदेव ताजे फलों को देखकर प्रसन्न हुए। उन्होंने उस युवक का धन्यवाद करते हुए उसे फलों का मूल्य देना चाहा।

उस युवक ने स्वामी जी से कहा कि मुझे फलों का मूल्य नहीं चाहिए। यदि आप मूल्य देना चाहते हैं तो अपने देश में जाकर यह ना कहें कि जापान में अच्छे फल नहीं मिलते। स्वामी रामदेव से युवक द्वारा ऐसा कहने का मुख्य कारण यह था कि वह युवक नहीं चाहता था कि स्वामी जी उसके देश जापान के विषय में बाहर जाकर कुछ नकारात्मक बात कहें, वह अपने देश की बदनामी नहीं चाहता था। यह उसका अपने देश के प्रति प्रेम और निष्ठा को प्रकट करता था।


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साइकिल चलाने पर शुरू में महिलाओं को किस प्रकार के ताने सुनने पड़े?

विवाह में लड़कियों को भी पसंद-नापसंद का अधिकार मिलना चाहिए, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

साइकिल चलाने पर शुरू में महिलाओं को किस प्रकार के ताने सुनने पड़े? (जहाँ पहिया है)

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साइकिल चलाने पर शुरु में महिलाओं को अनेक तरह के ताने सुनने पड़ते थे। जब उन्होंने साइकिल चलाना शुरु किया तो उनके आसपास के लोगों ने उन पर जमकर प्रहार किया। लोग उन्हें तरह-तरह के ताने देते। उनका मजाक उड़ाते। उन पर गंदी-गंदी टिप्पणियां करते। लेकिन महिलाओं ने इन सारी बातों को नजर-अंदाज कर दिया और साइकिल चलाने के अपने प्रयासों को जारी रखा। वह धीरे-धीरे अपने सारे दैनिक क्रियाकलापों को करने के लिए साइकिल का सहारा लेने लगीं यानी उन्हें बाहर किसी कार्य से जाना होता, कोई सामान लेकर जाना होता तो वह साइकिल का उपयोग करने लगीं।

अब कार्य जल्दी होने लगे। इस तरह धीरे-धीरे उनके साइकिल चलाने को सामाजिक स्वीकार्यता मिलती लगी। कुछेक महिलाओं से शुरू हुआ यह आंदोलन धीरे-धीरे पुडुकोट्टई जिले के सभी गाँवों में फैल गया और महिलाओं ने साइकिल चलाने को अपनी सहज आदत के रूप में विकसित कर लिया। अब हालात यह हो गए हैं कि महिलाएँ साइकिल चलाने के प्रशिक्षण शिविर भी लगाने लगी हैं, जहाँ साइकिल चलाना सीखने की इच्छुक महिलाएं इकट्ठी होती है।

‘जहाँ पहिया है’ पाठ में लेखक पी. साईनाथ ने पुडुकोट्टई जिले के बारे में वर्णन किया है, जोकि तमिलनाडु का बेहद पिछड़ा हुआ जिला माना जाता है। मुस्लिम बाहुल्य इस जिले में महिलाओं को घर से बाहर निकलने की आजादी नहीं थी। उन्हें घर से बाहर अपने किसी कार्य के लिए जाना भी पड़ता था तो पैदल जाना पड़ता था। इस कारण उन्हें अपने कार्यों को करने में बेहद परेशानी होती थी। जब एक महिला ने साइकिल चलाना सीखा तो अन्य महिलाएं भी साईकिल चलाना लगीं, जिससे उनके कार्यों में आसानी हो गई। अब है बिना रोक-टोक के दूर-दूर तक चली जाती है और अपने सारे जरूरी कार्यों को निपटा लेती हैं।


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विवाह में लड़कियों को भी पसंद-नापसंद का अधिकार मिलना चाहिए, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

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विवाह में लड़कियों को भी पसंद-नापसंद का अधिकार मिलना चाहिए, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

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विचार लेखन

विवाह में लड़कियों को भी पसंद-नापसंद का अधिकार

 

विवाह में लड़कियों को पसंद-नापसंद का अधिकार मिलना चाहिए, इस विषय पर हमारा मत बिल्कुल स्पष्ट है। हमारे मत के अनुसार विवाह में लड़कियों को पसंद और नापसंद का अधिकार अवश्य मिलना चाहिए।

विवाह हमारे समाज की एक एक ऐसा संबंध है, जो दो लोगों के पूरे जीवन से संबंधित होता है। दो मनुष्यों यानी स्त्री एवं पुरुष के बीच विवाह उनके पूरे जीवन का बंधन होता है। यह दो-स्त्री पुरुषों को जीवन भर के लिए एक दूसरे के साथ बांध देता है। ऐसी स्थिति में जिस जीवन साथी के साथ पूरा जीवन गुजारना है, उसे अपनी पसंद के अनुसार चुनने का अधिकार सबको होना चाहिए। बिना पसंद के जीवन साथी मिलने पर संभव है कि वैवाहिक जीवन तनावपूर्ण रहे। इससे स्त्री-पुरुष दोनों का जीवन तनावपूर्ण होगा। इससे बेहतर यह है कि अपनी पसंद के आधार पर विवाह किया जाए।

अब हमारा समाज एक प्रगतिशील समाज बनता जा रहा है। यहाँ पर स्त्री एवं पुरुषों के बीच भेदभाव मिटाने के पूरे प्रयत्न किया जा रहे हैं। यदि लड़कों को अपनी पसंद की लड़की चुनने का अधिकार है, तो लड़कियों को भी विवाह के समय अपनी पसंद-नापसंद चुनने का पूर्ण अधिकार होना चाहिए।

हमारे पहले के समय में लड़कियों से पूछे बिना ही उनका विवाह तय कर दिया जाता था और लड़कियों को उस व्यक्ति के साथ अपना पूरा जीवन निर्वाह करना पड़ता था, जिसे उसने स्वयं नहीं चुना होता था। यह बिल्कुल गलत प्रवृत्ति थी। विवाह किसी के जीवन से संबंधित होता है। यह किसी का व्यक्तिगत मामला है। उस व्यक्ति को नए अनजान व्यक्ति के साथ अपना पूरा जीवन बिताना है, तो उसे नए व्यक्ति को, चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष हो, दोनों को अपनी पसंद चुनने का पूर्ण अधिकार होना चाहिए। जब पुरुषों को विवाह के समय अपनी पसंद की लड़की चुनने का अधिकार है, तो स्त्रियों को भी वही अधिकार मिलना चाहिए, तभी हमारे समाज से स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव मिटेगा।


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भारी-भरकम में कौन सा समास है?

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भारी-भरकम में ‘द्वंद्व समास’ है।

शब्द : भारी-भरकम

समास विग्रह : भारी और भरकम

समास का नाम : द्वंद्व समास

स्पष्टीकरण :

भारी-भरकम में ‘द्वंद्व समास होगा। इसका मुख्य कारण ये है कि इसमें दोनों पद-प्रधान हैं। ‘भारी’ किसी वस्तु-पदार्थ-व्यक्ति के वजन के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है। ‘भरकम’ भी किसी वस्तु-पदार्थ-व्यक्ति के वजन को और अधिक व्याख्यायित करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। दोनों पदों का एक ही संदर्भ में प्रयोग किया जा रहा है, इसलिए दोनों पद समान है। इसीलिए यहाँ पर द्वंद समास होगा।

द्वंद्व समास

द्वंद समास में दोनों पद प्रधान होते हैं। समास विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। यह योजक चिन्ह ‘और’, ‘तथा’, ‘अथवा’, ‘या’, ‘एवं’ आदि के रूप में होते हैं।‘द्वंद्व समास’ समास के छः भेदों में से एक भेद है। समास के छः भेद इस प्रकार हैं…· अव्यवीभाव समास

  • तत्पुरुष समास
  • कर्मधारय समास
  • बहुव्रीहि समास
  • द्विगु समास
  • द्वंद समास

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मीराबाई के पदों की विशेषताएँ बताइए।

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मीराबाई के पदों की विशेषताएँ इस प्रकार हैं…

  • मीराबाई ने अपने पदों के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति अलौकिक प्रेम भाव को प्रकट किया है। वह बचपन से ही श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति भरे प्रेम से डूब गई थी और उन्होंने श्रीकृष्ण को अपना प्रेमी मानकर उनके प्रति अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था।
    मीराबाई के पदों में माधुर्य भावना की प्रधानता मिलती है। उनकी भक्ति भावना ईश्वर के सगुण रूप पर आधारित भक्ति थी। उन्होंने श्रीकृष्ण को अपना प्रियतम माना था, जोकि सगुण रूपी ईश्वर का प्रतीक है। उन्होंने अपनी इसी भक्ति भावना को अपने पदों में माधुरी भक्ति भाव से प्रकट किया है।
  • मीराबाई के पदों में प्रेम की भावना स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। उनके पद श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम भावना से ओत-प्रोत रहे हैं। उन्होंने अपने प्रेम की प्रगति को कृष्ण के प्रति प्रेम में लीन होकर प्रकट किया है।
    मीराबाई के पदों में आत्मसमर्पण का भाव भी स्पष्ट रूप से प्रकट होता है। उनका यह आत्मसमर्पण का भक्ति भाव उनके पदों की विशेषता रही है।
  • मीराबाई ने अपने पदों में विरह-वेदना को भी व्यक्त किया है, क्योंकि उनके जीवन काल में अनेक दुख रहे थे। इच्छा के विपरीत विवाह किए जाना, उसके बाद पति की मृत्यु होना तथा ससुराल वालों द्वारा उनका उत्पीड़न तथा समाज का तिरस्कार आदि अनेक दुख उनके जीवन में रहे हैं। उनके पदों में उनकी यह विरह-वेदना भी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है।
  • मीराबाई के पदों में तत्कालीन समाज में व्याप्त स्त्री विरोधी कठोर मान्यताओं के प्रति विद्रोह का स्वर प्रमुख रूप से मुखरित होता है। मीराबाई के समय कालीन समाज में जिस तरह नारी स्वतंत्रता नहीं थी और उसको पग-पग पर विरोध झेलना पड़ता था। मीराबाई ने इसके प्रति विद्रोह भी किया है। वह सब उन्होंने अपने पदों के माध्यम से भी व्यक्त किया है।
  • मीराबाई का पद गीतिकाव्य का सुंदर रूप हैं। उनके का पदों के माध्यम से आत्मानुभूति, गेयता, संगीतात्मकता, लयात्मकता आदि सभी गुण प्रकट होते हैं। उनके पदों को गीत रूप में सरल-सहज रूप से गया जा सकता है।
  • मीराबाई के पदों का अभिव्यक्ति पक्ष बेहद मजबूत रहा है। मीराबाई के पदों की भाषा सरल व सहज रही है। उन्होंने अपने तत्कालीन समय में प्रयुक्त होने वाली आम जनमानस की भाषा का प्रयोग किया है। उनके पदों की भाषा राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा रही है। कहीं कहीं पर उन्होंने पंजाबी एवं गुजराती शब्दों का भी कुशलता से प्रयोग किया है। अलग-अलग मुहावरे एवं लोकोक्तियां के माध्यम से भी उन्होंने अपने पदों को सरस बनाया है।

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‘पथ का दीपक बनना’ से क्या अभिप्राय है?

बेटी शिक्षित होने के लाभ (कक्षा-7 पाठ-2 ‘बेटी युग’)

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‘बेटी युग’ कविता के आधार पर अगर कहा जाए तो बेटी शिक्षित होने के अनेक लाभ हैं।
  • जब बेटी शिक्षित होती है तो वह देश की उन्नति में अपना पूरा योगदान देती है। शिक्षा सबके लिए जरूरी है, चाहे वह बेटा हो अथवा बेटी।
  • कहा जाता है कि यदि बेटा शिक्षित हो तो वह केवल स्वयं को शिक्षित करता है, लेकिन यदि बेटी शिक्षित हो तो वह पूरे परिवार को शिक्षित करती है।
  • बेटी एक माँ, एक बहन, एक पत्नी, एक पुत्री के रूप में अपने परिवार के प्रति अनेक कर्तव्य निभाती है और यदि वह बेटी शिक्षित हो तो अपने कर्तव्य को और अधिक कुशलता से निभा सकती है।
  • बेटी शिक्षित होगी तो वह आगे बढ़ेगी। जब बेटी आगे बढ़ेगी तो समाज का उत्थान होगा। समाज प्रगतिशील बनेगा, एक प्रगतिशील समाज के लिए आवश्यक है कि उसमें लैंगिक आधार पर भेद नहीं किया जाए।
  • बेटा-बेटी के आधार पर भेद नहीं किया जाए इसलिए बेटी का शिक्षित होना समाज के लिए बेहद आवश्यक है।

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बड़ का तत्सम शब्द क्या होता है?

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बड़ का तत्सम शब्द ‘वट’ होगा।

तद्भव शब्द : बड़

तत्सम : वट

तत्सम शब्द वह शब्द होते हैं, जो संस्कृत भाषा से हिंदी भाषा में ज्यों के त्यो ग्रहण कर लिए जाते हैं और तद्भव शब्द वह शब्द होते हैं, जो संस्कृत भाषा से हिंदी भाषा में ग्रहण तो किए गए हैं, लेकिन हिंदी भाषा में उनका स्वरूप बदल गया है।

बड़ और वट दोनों इसी प्रकार के उदाहरण हैं। वट को यदि हिंदी भाषा में ज्यों का त्यों वट के रूप में प्रयोग किया जाए तो यह तत्सम शब्द कहलाएगा। इसी वट को हिंदी भाषा में बड़ के रूप में प्रयोग किए जाने लगा तब यह तद्भव शब्द बन गया।

बड़ का पेड़ जिसे सामान्य भाषा में बरगद का पेड़ कहा जाता है। इसे वट वृक्ष अथवा ‘बड़ का पेड़’ भी कहते हैं। बड़ का पेड़ एक द्विबिजपत्रिय और संपुष्पक वृक्ष होता है। इसकी जड़े केवल जमीन में ही नही पाई बल्कि ये तने की शाखा से निकलकर हवा में लटकती हुई दिखाई देती हैं। यह वृक्ष बेहद विशाल वृक्ष होता है। बड़ का पेड़ अथवा बरगद का पेड़ अधिकतर भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है। यह भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश जैसे भारतीय महाद्वीप के देशों में पाया जाता है। भारत के हिंदू धर्म में इस वृक्ष को धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना गया है और इस वृक्ष की पूजा भी की जाती है। बट वृक्ष से संबंधित कई त्यौहार भी हैं, जिनमें वट पूर्णिमा एक प्रमुख त्यौहार है।


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किस विकल्प में दोनों शब्द तत्सम शब्द हैं? (a) सूरज, अग्नि (b) भानु, आसमान (c) आकाश, सितारा (d) दिनकर, सूर्य.

‘पथ का दीपक बनना’ से क्या अभिप्राय है?

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‘पथ का दीपक बनना’ से अभिप्राय दूसरों का मार्गदर्शन करना है। वे लोग जो अज्ञानता के अंधकार में जी रहे हैं, उनके मन की अज्ञानता को दूर करके, उन्हें अज्ञानता के अंधकार से निकलकर, उन्हें ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाना ही पथ का दीपक बनना कहलाता है।

‘पथ का दीपक’ का शाब्दिक अर्थ समझे तो वह दिया जो अंधेरे रास्ते पर रखा होता है। उस दिया से फैले प्रकाश के कारण उस पथ यानि उस रास्ते से गुजरने वाले लोग अपने मार्ग से नहीं भटकते और उन्हें सही रास्ते का ज्ञान होता है। यदि वह यदि वहाँ पर नहीं जल रहा होगा, तो अंधकार के कारण लोग अपने मार्ग से भटक जाते।

‘पथ का दीपक’ ऐसे लोगों के लिए प्रकाश फैलाकर भटकने से रोकता है। यानी वह लोगों को गलत मार्ग पर भटकने से रोकता है।इस तरह वह एक अच्छा कार्य करता है, जिससे लोगों का भला होता है।

‘पथ का दीपक’ शब्द का भाव यही है कि लोगों को पथ का दीपक की तरह ही बनना चाहिए अर्थात गलत मार्ग पर जा रहे लोगों को सही मार्ग दिखाना चाहिए। उन्हें गलत मार्ग पर भटकने से रोकना चाहिए। हम अपने जीवन में ऐसे कार्य करें, ऐसे अच्छे कार्य करें, जिससे लोगों का भला हो, यही पथ का दीपक बनने का सही सार्थक उद्देश्य है।


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(ख) साइकिल

विस्तार से वर्णन

पुडुकोट्टई जिले में साइकिल की धूम मची हुई है। यहाँ पर महिलाओं द्वारा साइकिल चलाना एक सामाजिक आंदोलन बन गया है। पहले साइकिल चलाना यहां पर एक सामाजिक आंदोलन नहीं था। लेकिन पुडुकोट्टई जिले की हजारों नव-साक्षर ग्रामीण महिलाओं ने साइकिल को एक सामाजिक आंदोलन बना दिया। साइकिल के माध्यम से उन्होंने अपने पिछड़ेपन पर लात मारी और स्वयं को पुरानी जंजीरों से आजाद करते हुए साइकिल का पहिया थाम लिया। साइकिल को उन्होंने अपने सशक्तिकरण का प्रतीक बना लिया।

‘जहाँ पहिया है’ पाठ लेखक ‘पालगम्मी साईनाथ’ द्वारा लिखा गया एक ऐसा पाठ है, जिसमें उन्होंने तमिलनाडु के बेहद पिछड़े जिले ‘पुडुकोट्टई’ का वर्णन किया है। पुडुकोट्टई जिला तमिलनाडु के पिछड़े जिले में शामिल है। यहाँ पर अधिकतक आबादी मुस्लिम है। इस जिले की अधिकतर ग्रामीण मुस्लिम महिलाएं रूढ़िवादी परिवार से संबंध करती थी।

इन मुस्लिम लड़कियों को घर से बाहर निकालने की बिल्कुल भी आजादी नहीं थी। उन्हें हमेशा पर्दे में रहना पड़ता था। लेकिन धीरे-धीरे उनमें जागरूकता आती गई। उन्होंने साइकिल के माध्यम से उन्होंने घर से बाहर निकलना सीख लिया।

जमीला बीवी नामक एक मुस्लिम युवती जिसने साइकिल चलाना सीखा अब अपने सारे काम साइकिल से जाकर कर लेती है। अब वो कहीं पर भी साइकिल से आसानी से आ जा सकती है। उसने साइकिल चलाने को अपने अधिकार के प्रतीक के तौर पर लिया। इसी तरह इस जिले की अनेक ग्रामीण महिलाओं ने साइकिल को अपनी आजादी का हथियार बनाया और अब इस जिले में साइकिल चलाना एक सामाजिक आंदोलन बन गया है और यहां पर साइकिल चलाने की धूम मची हुई है।

इस जिले की 70000 से अधिक ग्रामीण महिलाएं साइकिल चलाना सीख चुकी हैं और अपनी दैनिक जीवन के रोजमर्रा के कार्य करने के लिए अब वह साइकिल का पूरा उपयोग करती हैं।


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पेड़-पौधों की संख्या वृद्धि के लिए हमें वृक्षारोपण करने की आदत को अपनाना होगा। हम अपने चारों तरफ देख रहे हैं कि पेड़ पौधों की निरंतर कटाई होती जा रही है। विकास के नाम पर ऊँची ऊँची इमारतें बनाने और सड़क, पुल आदि बनाने के नाम पर जिधर देखो, उधर पेड़-पौधों को काटा जा रहा है और बंजर भूमि तैयार की जा रही है, ताकि वहां पर कंक्रीट के जंगल खड़े किए जा सके। इस तरह पेड़-पौधों की संख्या कम होती रही तो हमारा पर्यावरण खतरे में पड़ जाएगा। यदि हमारा पर्यावरण खतरे में पड़ा तो मनुष्य का अस्तित्व भी खतरे में होगा।

अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हमें पेड़-पौधों की संख्या को कम होने से बचना होगा। जब पेड़-पौधे रहेंगे तभी ही हमारा भी अस्तित्व रहेगा। इसलिए हमें चाहिए कि हम पेड़-पौधों की संख्या को अधिक से अधिक बढ़ाएं। हम अपने क्षेत्र में वृक्षारोपण के कार्य करके पेड़ पौधों की संख्या को बढ़ा सकते हैं। हमें न केवल वृक्षारोपण करना है, बल्कि वृक्षारोपण करने के बाद उन पौधों की निरंतर देखभाल भी करनी है ताकि वह पौधा अच्छी तरह से विकसित होकर पेड़ का रूप ले सके।

अक्सर ऐसा होता है कि वृक्षारोपण करने वाले एक बार वृक्ष लगाने के बाद दोबारा उस जगह उस पौधे की तरफ नहीं देखते तक नही कि उस पौधे का क्या हुआ? पर्याप्त देखभाल के अभाव में वह पौधा सूख जाता है और वृक्षारोपण करने का औचित्य ही व्यर्थ हो जाता है, इसलिए हमें चाहिए कि हम न केवल केवल वृक्षारोपण करें बल्कि उन पेड़-पौधों की निरंतर देखभाल भी करें।

हमें अपने आसपास के लोगों को भी जागरूक करना चाहिए कि वह पेड़ों को नहीं काटे और अधिक से अधिक वृक्ष लगाए। हमें अपने शहर में, अपने गाँव में, अपने कस्बे में हरियाली को निरंतर बढ़ाने के लिए न केवल खुद प्रयास करने चाहिए बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी जागरूक करना होगाा। इस तरह के प्रयासों से हम पेड़-पौधों की संख्या को निरंतर बढ़ा सकते हैं।


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