‘हे शरणदायिनी देवी ! तू करती सबका त्राण है’ इन पंक्तियों में शरण दायिनी मातृभूमि है। वह मातृभूमि जहाँ पर मनुष्य जन्म लेता है, जिसकी गोद में खेल कर पलता-बढ़ता है। वह मातृभूमि उसके लिए शरण देती है। पृथ्वी के सभी प्राणी अपनी मातृभूमि में ही शरण लेते हैं। उस मातृभूमि को अपना आवास बनाते हैं, उस मातृभूमि की गोद में खेल कर पलते हैं, बढ़ते हैं और अपना जीवन बिताते हैं। इस तरह मातृभूमि के लिए एक शरणस्थली यानि शरणदायिनी के समान है। कवि ने मातृभूमि को ही शरणदायिनी कहा है।
टिप्पणी
‘मातृभूमि’ नामक कविता जो कि राष्ट्रकवि ‘मैथिलीशरण गुप्त’ द्वारा रची गई है। इस कविता के माध्यम से कवि गुप्तजी ने मातृभूमि के महत्व को प्रकट किया है। उन्होंने मातृभूमि की महिमा मंडन करते हुए यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि हर मनुष्य के जीवन में उसके लिए उसकी मातृभूमि बेहद महत्वपूर्ण है और अपनी मातृभूमि के प्रति आदर एवं सम्मान की भावना हर मनुष्य के मन में होनी चाहिए। कवि इन पंक्तियों में कहते हैं कि…
हे शरणदायिनी देवि, तू करती सब का त्राण है।
हे मातृभूमि! सन्तान हम, तू जननी, तू प्राण है॥
अर्थात कवि मैथिली शरण गुप्त कहते हैं कि हे मातृभूमि! आप हमारी शरणस्थली हो। आप अपनी गोद में हमें शरण देती हो। आप की शरण में ही हम पृथ्वी पर आते हैं। हम आपके आंचल की छाया में ही पलते हैं, बढ़ते हैं और अपना जीवन बताते हैं। आप हमारी माँ हो। हम तो आपकी संतान के समान है। आप हमारे लिए प्राण हो, हमारा सर्वस्व हो, आप के प्रति हमारा श्रद्धा से नमन है।
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