‘सही विकल्प होगा..(घ) ईश्वर श्रेष्ठ व सर्वगुण संपन्न है। |
कवि रैदास इस पंक्ति के माध्यम से यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि ईश्वर सर्वगुण संपन्न है। ईश्वर के गुणों के आगे भक्त (कवि) के गुणों की कोई महत्ता नहीं। कवि ये कहना चाहते हैं कि ईश्वर गुणों से भरपूर हैं। वह चंदन के समान हैं। चंदन गुणों से युक्त होता है, जिसकी सुगंध मन आत्मविभोर कर देती है। ईश्वर के भक्त तो पानी के समान है। वह पानी जिसमें चंदन को घिसा जाता है, जिससे चंदन की सुगंध पानी में समाहित हो जाती है। उसी प्रकार ईश्वर की भक्ति भी भक्त के कण-कण में बस जाती है।
यह पंक्ति कवि रैदास द्वारा रचित रैदास से पद से ली गई हैं। संत रैदास को रविदास के नाम से भी जाना जाता है। वे चौदहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि थे। पूरा पद इस प्रकार है।
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग-अंग बास समानी॥
प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा॥
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राती॥
प्रभु जी तुम मोती हम धागा। जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा। ऐसी भक्ति करै ‘रैदासा॥
अर्थात कवि रैदास कहते हैं कि हे प्रभु आप तो चंदन के समान है, हम तो पानी हैं। चंदन रूपी ईश्वर हम भक्त रूपी पानी में मिश्रित हो जाता है, वह पानी भी सुगंधित हो जाता है। उसी तरह आपकी भक्ति हमारे अंदर समा जाती है। प्रभु जी आप तो वह बादल हैं, जिसे देखकर हम मोर रूपी भक्त नाचने लगते हैं। आप वह चांद है जिसे देखकर हम भक्त रूपी चकोर के अंदर प्राणों का संचार होता है।
प्रभु आप तो दीपक हैं, हम उस दीपक की बाती के समान हैं। हे प्रभु आपकी भक्ति रूपी ज्योति निरंतर हमारे अंदर जलती रहे। प्रभु आप तो मोती हैं, हम उस मोती में पड़े हुए धागे के समान हैं। आप तो सोना है हम उस सोने पर लगने वाले सुहागे के समान हैं।
प्रभु जी आप तो हमारे स्वामी है हम तो केवल आपके दास हैं और हम सदैव आपके दास बने रहना चाहते हैं। आपकी भक्ति हमारे मन में निरंतर प्रवाहित होती रहे यही हमारी कामना है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि रैदास ने अपनी भक्ति भावना व्यक्त की है, और ईश्वर को स्वामी मानते हुए उनके प्रति दास्य भाव प्रकट किया है।