संवाद लेखन
पिंजरे में बंद दो तोतों का संवाद
पहला तोता ⦂ यह मनुष्य लोग कितनी स्वार्थी होते हैं, अपने मनोरंजन के लिए हमें पिंजरे में बंद करके रखा है।
दूसरा तोता ⦂ हाँ, मित्र सही बात कह रहे हो। इन मनुष्यों ने अपने मनोरंजन के लिए हम पक्षियों को अपने पिंजरे में कैद करके रखा है।
पहला तोता ⦂ यह लोग खुद तो आजादी से घूम रहे हैं और हमें पिंजरे में कैद करके रखा है।
दूसरा तोता ⦂ हाँ मित्र, हम लोग कमजोर प्राणी हैं यह मनुष्य ताकतवर हैं। इस संसार मैं हमेशा ताकतवर कमजोर सताता ही है।
पहला तोता ⦂ मुझे अपने उन दिनों की याद आती है जब मैं आकाश में स्वच्छंद होकर घूमता था। मैं जब मर्जी होती इस पेड़ पर जा बैठता कभी उस पेड़ पर बैठता। मनचाहे फल खाता।
दूसरा तोता ⦂ मेरा भी वैसा ही जीवन था। कितना प्यारा और आह! सुंदर जीवन था। इन मनुष्यो ने हमारी स्वतंत्रता को छीन कर हमें इन सोने के पिंजरे में कैद कर लिया।
पहला तोता ⦂ यह मनुष्य में लुभाने के लिए हमें तरह-तरह के मीठे मीठे पकवान खिलाते हैं। सोने के पिंजरे में बंद रखते हैं और हर तरह की सुख-सुविधा देने की कोशिश करते हैं, लेकिन इन मनुष्यों को यह नहीं मालूम की आजादी के आगे यह तमाम तरह की सुख-सुविधाएं व्यर्थ है।
दूसरा तोता ⦂ हां हमें पेड़ों पर भटकना ज्यादा पसंद है। हमें यह स्वादिष्ट पकवान नहीं चाहिए। हमें अपनी आजादी चाहिए। हमें सोने के पिंजरे में कैद रहकर सुख-सुविधा नहीं चाहिए। हमें खुले आकाश में उड़ने की आजादी चाहिए। हमें पेड़ों की कड़वी निबौरियां खाना ज्यादा स्वादिष्ट लगता है, गुलामी के पिंजरों के स्वादिष्ट पकवान नही।
पहला तोता ⦂ आजादी से बढ़कर कुछ नहीं।
दूसरा तोता ⦂ काश भगवान हमारी सुन ले और इन मनुष्यों को सद्बुद्धि आए और हमें सोने के पिंजरों से आजाद कर दी।
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