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पटाखे मुक्त दिवाली के बारे में आपके विचार लिखिए।

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विचार/अभिमत

पटाखे मुक्त दिवाली

 

पटाखे मुक्त दिवाली आज के समय की मांग है, क्योंकि आज हमारा पर्यावरण संकट में है। प्रदूषण के कारण और मानव द्वारा अनेक पर्यावरण विरोधी कर्म के कारण हमारा पर्यावरण बेहद दूषित हो चला है। ऐसी स्थिति में दिवाली पर पटाखे जलाकर हम अपने पर्यावरण में और जहर घोल रहे हैं, इसलिए पटाखे मुक्त दिवाली पर्यावरण की दृष्टि से आज के समय की मांग है।

यहाँ पर यह बात भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि केवल दिवाली पर पटाखे न जला कर ही पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त नहीं हुआ जा सकता। साल के 365 दिन में केवल दिवाली के दिन को हम पर्यावरण के लिए दोषी मानकर अपने उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं हो सकते। हमें पूरे साल ऐसे कार्यों से बचना होगा, जिससे प्रदूषण फैलता है, जिससे हमारा पर्यावरण खराब होता है।

यदि हम साल के एक दिन दिवाली के त्योहार पर पटाखे नहीं जलाएं और बाकी साल के 364 दिन वाहनों द्वारा, कल-कारखानों द्वारा, धूम्रपान द्वारा, विभिन्न तरह के यंत्रों के द्वारा पर्यावरण को दूषित करें तो यह बात बिल्कुल बेमानी होगी कि हम पर्यावरण की अशुद्धि के लिए सारा दोष दिवाली के ऊपर ही डाल दें।

दिवाली एक खुशी का त्यौहार है। जब दिवाली पर पटाखे चलाने का चलन चला था तो वह अपने खुशी को व्यक्त करने के लिए चला था। उस समय पर्यावरण इतना प्रदूषित नहीं होता था और ना ही दिवाली पर पटाखे जलाने से ही पर्यावरण प्रदूषित हुआ है। मानव की और दूसरी हरकतों के कारण ही पर्यावरण प्रदूषण फैलता गया और दिवाली पर पटाखे जलाने से प्रदूषण में कुछ दिनों के लिए और बढ़ोतरी हो जाती थी।

पटाखे मुक्त दिवाली एक सार्थक प्रयास है लेकिन हमें यह सार्थक प्रयास पूरे साल करना होगा ना कि केवल एक दिन दिवाली के दिन पटाखे ना जलाकर हम पर्यावरण को स्वच्छ नहीं कर सकते। हमें पूरे साल सतत रूप से अपने पर्यावरण के हित के लिए कार्य करने होंगे, तभी पटाखे मुक्त दिवाली सार्थक है, नहीं तो इसका कोई लाभ नहीं। आजकल का ट्रेंड चल गया है कि हम पटाखे मुक्त दिवाली के बारे में जोर-जोर से कैंपेन चलते हैं, लेकिन बाकी साल के 364 दिन ऐसे सारे कार्य करते हैं, जिससे प्रदूषण खूब हो। हमें इस पाखंड से मुक्ति पानी होगी। तभी पटाखे मुक्त दिवाली का सार्थक अर्थ होगा।


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निर्मम का क्या अर्थ है?

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निर्मम का अर्थ निम्नलिखित होता है…

  • जो बेहद कठोर हो,
  • जिसके अंदर दया का भाव ना हो,
  • जिसका मन बेहद कठोर हो,
  • जिसका मन कोमल ना हो,
  • जो बेहद कठोर आचरण करने वाला हो,
  • जो दयालु न हो जिसके अंदर दया का भाव ना हो अर्थात वह निर्दय हो,
  • जो बेहद क्रूर या कठोर निष्ठुर हो दुष्ट हो,
  • जिसे दूसरों को कष्ट देने में आनंद आता हो,
  • निर्मम शब्द बेहद कठोर व्यक्ति के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

उदाहरण के लिए वाक्य :

  • प्राचीनकाल में राक्षस बेहद निर्मम और क्रूर होते थे, जो वन में रहने वाले ऋषियो को बेहद परेशान करते थे।
  • कल रात किसी अन्जान अपराधी ने मोहल्ले में चमनलाल के घर में घुसकर चमनलाल दम्पत्ति की निर्ममता से हत्या कर दी।
  • चंबल में एक समय में निर्मम डाकुओं का बेहद आतंक था।

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तोमोए में पेड़ और बच्चे से जुड़ी परंपरा क्या है?​

निराला जी की परोपकार भावना इस विषय पर 100 शब्दों में लिखें।

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हिंदी साहित्य के सूर्य यानी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के अंदर परोपकार की भावना बेहद गहराई से व्याप्त थी। वह सच्ची मानवता के पुजारी थे और उनमें मानवीय गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे। वह बेहद उपकारी थे। उन्होंने दूसरों पर उपकार यानी परोपकार की सदैव चिंता रहती थी। हिंदी के इतने महान कवि होने के बावजूद उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उसके अलावा उनके व्यक्तिगत जीवन में भी सदैव दुख ही रहे। इन सारे दुखों के बीच भी उनके अंदर सदैव दूसरों के हित की चिंता लगी रहती थी।

निराला किसी के भी काम आने और किसी के भी दुखों को बांटने से नहीं चूकते थे। अतिथि सत्कार की बात की जाए तो अतिथि सत्कार में वह सदैव आगे रहते थे। यदि उनके घर कोई अतिथि आ जाता तो वह यथासंभव अतिथि का उचित सत्कार करते थे। आगंतुक के लिए वह स्वयं भोजन बनाते थे। भोजन की आवश्यक सामग्री ना होने पर वह अपने शुभचिंतकों और मित्रों आदि से भोजन सामग्री मांग कर ले आते और भोजन बनाते थे। अपने साथी हों, मित्र हों, शुभचिंतक हों या कोई भी अन्य सबके प्रति उनके मन में गहरे लगाव की भावना थी। निराला जी की यही परोपकार की भावना उन्हें एक महान कवि बनाती थी।


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सआदत अली जैसे लोग किस प्रकार देश के लिए घातक हैं ? ‘कारतूस’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।​

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सआदत अली जैसे लोग देश के लिए इस प्रकार घातक हैं कि सआदत अली जैसे लोग अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। उन्हें अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए अपने देश के मान-सम्मान के साथ खिलवाड़ करना पड़े तो भी वह कर सकते है। सआदत अली जैसी महत्वाकांक्षी लोग सत्ता सुख और ताकत पाने के लिए कुछ भी गलत करने से नही चूकते।

सआदत जाली अली भी बहुत महत्वाकांक्षी था। उसकी महत्वाकांक्षा अवध का बादशाह बनने की थी  वह अवध के नवाब आसिफउद्दौला का छोटा भाई था। आसिफउद्दौला की संतान न होने के कारण उसने ये सपना पाल रखा था कि आसिफउद्दौला के बाद वही अवध का नवाब बनेगा। लेकिन जब आसिफउद्दौल का पुत्र वजीर अली पैदा हो गया तो सआदत अली की  अवध का नवाब बनने की महत्वाकांक्षा चूर-चूर हो गई। ऐसी स्थिति में उसने अवध का नवाब बनने के लिए अनेक तरह के षड्यंत्र रचने शुरू कर दिए। अपनी इसी महत्वाकांक्षा के कारण अवध की गद्दी पाने के लिए अंग्रेजों से जा मिला। उसने अंग्रेजों के साथ मिलकर अवध की सत्ता हथिया ली, जिस कारण वजीर अली को दर-दर भटकना पड़ा। उसने वजीर अली को पकड़ने के लिए अंग्रेजों को हर संभव सहायता प्रदान की। इस तरह अपने उसने देश से विश्वासघात किया और अंग्रेजों के साथ मिलकर अपने ही भतीजे का दुश्मन बन बैठा। इसलिए सआदत जैसे लोग देश के लिए बेहद घातक होते हैं।

संदर्भ पाठ

“कारतूस”, लेखक : हबीब तनवीर (कक्षा – 10, पाठ – 17, हिंदी, स्पर्श भाग 2)


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क्रिकेट वनडे वर्ल्ड कप में भारत की ऑस्ट्रेलिया से हार पर दो दोस्तों के बीच संवाद लिखिए​।

संवाद लेखन

भारत की ऑस्ट्रेलिया से हार पर दो दोस्तों के बीच संवाद

 

अतुल तुमने कल भारत ऑस्ट्रेलिया के बीच का फाइनल मैच देखा?

विपिन हाँ, मैंने पूरा मैच देखा, लेकिन भारत की हार से मेरा दिल टूट गया।

अतुल सही कह रहे हो। कल का दिन हमारे लिए बड़ा ही दुख देने वाला दिन था। हमें बड़ी उम्मीद थी कि इस बार भारत वर्ल्ड कप चैंपियन बनेगा और हम लोग अपने देश के चैंपियन बनने का जश्न मनाएंगे। लेकिन हमारी यह मनोकामना पूर्ण नहीं हो पाई।

विपिन मैंने मैच देखने के लिए अपने जरूरी काम को भी डाल दिया था। मुझे किसी जरूरी काम से दूसरे शहर जाना था। लेकिन मैंने एक दिन के लिए वह कार्य टाल दिया। मैंने सोचा कि भारत को वर्ल्डकप जीतते हुए देखने का मौका बार-बार नहीं आता।

अतुल हाँ, बिल्कुल! मैं भी पूरा दिन अपने घर पर बैठकर मैच देखा। लेकिन मैच के शुरू के 10 ओवर बाद ही मैच की दिशा तय हो गई थी। जब भारत के तीन विकेट गिर गए, तभी हमें डर लगने लगा था कि कहीं यह मैच फंस ना जाए। जब कोहली और केएल राहुल दोनों बैटिंग कर रहे थे, तब तक हमें उम्मीद थी कि यह दोनों मैच को सही स्थिति में ले जाएंगे और एक अच्छा टोटल खड़ा कर देंगे। क्योंकि ऑस्ट्रेलिया के साथ पहले मैच में इन दोनों ने ही तीन विकेट गिरने के बाद भारत को संभाला था और जीत की ओर ले गए थे लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।

विपिन हां यह दोनों इस बार ऐसा नहीं कर पाए। यह भारत भी की रन गति को बढ़ा नहीं पाए और थोड़ा बहुत टिकने के बाद विकेट आउट भी हो गए।

अतुल हाँ, जब कोहली और राहुल आउट हो गए थे, तब मेरी उम्मीद ही पूरी तरह टूट गई थी। फिर भी जब भारत ने 241 रन का स्कूल खड़ा किया तो मुझे उम्मीद थी कि हमारे गेंदबाज भारत को मैच में वापस ले आएंगे क्योंकि हमारे गेंदबाजों ने पूरी टूर्नामेंट में अच्छा प्रदर्शन किया था।

विपिन शुरू के तीन विकेट जल्दी गिर जाने के बाद हमें लगने लगा था कि महाभारत यह मैच को जीत ले जाएगा, लेकिन बाद में ट्रेविस हेड और मार्नस लाबुशेन में सारे किए किराए पर पानी फेर दिया और और स्टेडियम में मौजूद सभी भारतीय फैंस को गहरा सदमा दे दिया।

अतुल यह सचमुच एक निराशाजनक पल था। मुझे अभी तक भारत की फाइनल में हुई हार का दुख हो रहा है।

विपिन हम क्रिकेट अब कर भी क्या सकते हैं। हम अब यही उम्मीद करते हैं कि अगली साल जून में होने वाले T20 वर्ल्ड कप में भारत अच्छा प्रदर्शन करें और वर्ल्ड कप जीतकर वनडे वर्ल्ड कप में हुई हार के जख्मों पर मरहम लगाए।

अतुल ⦂ हाँ, ऐसा ही होगा।


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लेखक ने ऐसा क्यों कहा कि प्रेमचंद में पोशाकें बदलने के गुण नहीं है? (प्रेमचंद के फटे जूते)

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लेखक ने ऐसा इसलिए कहा कि प्रेमचंद में पोशाकें बदलने के गुण नहीं है, क्योंकि लेखक के अनुसार प्रेमचंद में दिखावे  की भावना नहीं थी।

यहाँ पर लेखक का पोशाक में बदलने से तात्पर्य दिखावे की भावना से था। लोग दिखावा करने के लिए ही तरह की पोशाकें बदलते हैं और स्वयं को सुंदर एवं संपन्न दिखाने का प्रयास करते हैं। प्रेमचंद के अंदर यह गुण नहीं था। वह सरल एवं सहज स्वभाव वाले व्यक्ति थे। वह जिस तरह रहते थे, उसी तरह स्वयं को प्रदर्शित करते थे। उनमें व्यर्थ का दिखावा करने की प्रवृत्ति नहीं थी।

अपने फोटो खिंचवाते समय भी उन्होंने जैसी वेशभूषा पहने थी, उसी वेशभूषा में सरल एवं सहज भाव से फोटो खिंचवा लिया। फोटो खींचने के लिए उन्होंने कोई विशेष पोशाक नहीं धारण की, यानी उनमें दिखावा करने की भावना नहीं थी। इसीलिए लेखक ने ऐसा कहा है कि प्रेमचंद में पोशाकें बदलने के गुण नहीं थे।

प्रेमचंद के फटे जूते एक व्यंग्यात्मक निबंध है, जिसकी रचना हरिशंकर परसाई ने की है। इस निबंध के माध्यम से उन्होंने हिंदी साहित्य के महान उपन्यासकार कथाकार प्रेमचंद के अंतिम दिनों की व्यथा का वर्णन किया है।

इस निबंध में उन्होंने बताया है कि अपने अंतिम दिनों में प्रेमचंद किस तरह की आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। उन्होंने व्यंग्य एवं कटाक्ष के माध्यम से समाज के लोगों पर प्रहार करते हुए कहा है कि भले ही प्रेमचंद के नाम पर आज लोग लाखों रुपए कमाते हों, उनकी कहानी उपन्यासों के बल पर स्वयं को संपन्न बना बैठे हो, लेकिन वही प्रेमचंद अपने अंतिम दिनों में अनेक तरह की आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे, लेकिन उन्होंने इस बात की कोई शिकायत नहीं की और ना ही कोई दिखावा किया। वह अपने सादा जीवन को यूं ही जीते रहे।


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लेखक ने ऐसा क्यों कहा कि गुल्ली-डंडा सब खेलों का राजा है? (‘गुल्ली-डंडा’ – मुंशी प्रेमचंद)

प्रेमचंद की कहानियों का विषय समयानुकूल बदलता रहा, कैसे ? स्पष्ट कीजिए।

लेखक ने ऐसा क्यों कहा कि गुल्ली-डंडा सब खेलों का राजा है? (‘गुल्ली-डंडा’ – मुंशी प्रेमचंद)

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लेखक ने गुल्लीडंडा को सब खेलो का राजा इसलिए कहा क्योंकि गुल्लीडंडा खेल एक ऐसा खेल है, जिसमें बहुत अधिक महंगे सामान की जरूरत नहीं पड़ती।

लेखक के अनुसार गुल्ली डंडा के खेल में ना तो लॉन की जरूरत पड़ती है और ना ही कोर्ट की। ना ही नेट की और ना ही थापी की। गुल्ली डंडा खेलने के लिए केवल एक डंडा और गुल्ली की आवश्यकता पड़ती है, जिसके लिए किसी भी पेड़ से एक टहनी काटकर उसी से गुल्ली और डंडा दोनों बनाए जा सकते हैं।

गुल्ली-डंडा का खेल खेलने के लिए बहुत अधिक लोगों की जरूरत भी नहीं पड़ती। केवल दो लोगों के होने पर भी गुल्ली डंडा का खेल खेला जा सकता है।

लेखक के अनुसार विलायती यानी विदेशी खेलों में सबसे बड़ा ऐब यानी अवगुण यह है कि विलायती खेलों के समान बड़े महंगे होते हैं और इन खेल के समान को खरीदने के लिए कम से कम एक सैकड़ा की जरूरत पड़ती है। इन खेलों को खेलने के लिए बहुत अधिक खिलाड़ियों की भी जरूरत पड़ती है।

लेखक के अनुसार जबकि गुल्ली डंडा का खेल ऐसा है कि बिना हर्र-फिटकरी के रंग चोखा हो जाता है। लेखक के अनुसार हम भारतीय अंग्रेजी चीजे कैसे दीवाने हो गए हैं उनकी हर तरह की जीवन शैली और खेल अपना लिए हैं कि हमें अपनी देसी चीजों और खेलों से अरुचि हो गई है

गुल्लीडंडा कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहानी है, जिसमें उन्होंने गुल्ली-डंडा जैसे देसी खेल की विशेषताओं को वर्णन किया है।


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‘हिंसा परमो धर्म:’ कहानी में कहानीकार कौन सा संदेश देते हैं? (हिंसा परमो धर्मः – मुंशी प्रेमचंद)

लेखक ने ऐसा क्यों कहा कि प्रेमचंद में पोशाकें बदलने के गुण नहीं है? (प्रेमचंद के फटे जूते)

तोमोए में पेड़ और बच्चे से जुड़ी परंपरा क्या है?​

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तोमोए में में पेड़ और बच्चे से जुड़ी एक परंपरा यह थी कि तोमोए में हर बच्चा एक पेड़ को अपनी खुद की संपत्ति मानता था।  वहाँ का हर बच्चा बाग के किसी एक पेड़ को अपनी संपत्ति मानकर उस पर खुद के चढ़ना का पेड़ मानता था यानी वह उस पेड़ पर केवल वह ही चढ़ सकता था।

हर बच्चे को अपना एक पेड़ स्वयं की संपत्ति के रूप में चुने की परंपरा थी। हर बच्चा उस पेड़ को अपनी निजी संपत्ति मानता था और वह अपने पेड़ पर चढ़ने के अलावा किसी दूसरे पेड़ पर नहीं चढ़ता था। यदि उसे किसी दूसरे के पेड़ पर चढ़ना होता था तो उसे पहले उसे पेड़ के बच्चे से बेहद शिष्टतापूर्वक पूछना पड़ता था कि ‘माफ कीजिए, क्या मैं अंदर आऊं’ यानी क्या वह उसके पेड़ पर चढ़ जाए।

अपूर्व अनुभव पाठ जापानी लेखक तेत्सुको कुरियानागी द्वारा लिखा गया पाठ है इसमें यासुकी चान नाम के बालक का वर्णन है, जिसके पैरों में पोलियो है।

पोलियो होने के कारण वह किसी पेड़ पर नही चढ़ सकता था इसलिए वह किसी पेड़ को अन्य बच्चों की तरह निजी संपत्ति नही मानता था। तोत्तो चान उसकी मित्र थी, वह अपने पेड़ पर यासुकी चान को चढ़ाना चाहती थी, इसीलिए उसने तोत्तो चान की पेड़ में चढ़ने में मदद की।


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‘अपूर्व अनुभव’ पाठ में दूसरों की सहायता करने की प्रेरणा है। सिद्ध कीजिए।

आशय स्पष्ट कीजिए – “जो नहीं है, इस तरह उसी को पा जाता हूँ।”

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जो नहीं है, इस तरह उसी को पा जाता हूँ।

संदर्भ :  यह पंक्तियां ‘मिठाई वाला’ नामक पाठ की है। इसके लेखक भवानी प्रसाद वाजपेई है। यह छोटी सी कहानी है, जो ऐसे फेरी लगाने वाले व्यक्ति के बारे में है, जो तरह-तरह के छोटे-मोटे समान बेचता था।

आशय : ‘जो नही है, इस तरह उसी को पा जाता हूँ।’ ये कथन मिठाई वाले का है। इन पंक्तियों का आशय यह है कि मिठाई वाला इन पक्तियों के माध्यम से ये कहना चाह रहा है कि वह इन नन्हे-मुन्ने, छोटे-छोटे बच्चों को खिलौने और मिठाई जैसे सामान सस्ते दाम बेचकर उनके चेहरे की खुशी देखकर वह वात्सल्य और स्नेह पा लेता है जो उसे अपने बच्चों से मिला करता था। पैसे तो उसके बाद बहुत हैं, बस नहीं है तो केवल अपने बच्चों से मिलने वाला प्रेम। क्योंकि उसके बच्चे अब इस दुनिया में नहीं रहे। वह प्रेम वह महल्ले के बच्चों से पा लेता है।

व्याख्या

‘मिठाई वाला’ पाठ में मिठाई वाले का कहना था कि वह अपने बच्चों को अन्य बच्चों में ढूंढता है। उसके बच्चों की मृत्यु काफी समय पहले हो गई  थी। वह अपने बच्चों की याद में उनकी छवि सभी बच्चों में ढूंढता है। इस तरह बच्चों को सस्ते दामपर खिलौने, मिठाई आदि बेचकर बच्चों के चेहरे पर खुशी लाकर उसे जो संतुष्टि मिलती है उससे उसे अपने बच्चों के बिछड़ने का दुख कम हो जाता है।

मिठाई वालों का कहना था कि उसके पास काफी पैसे हैं, क्योंकि वह भी किसी समय में एक बड़ा सेठ था। उसके पास पैसे की कोई कमी नहीं है। वह खिलौने मिठाई आदि बेचने का काम केवल अपनी आत्म-संतुष्टि के लिए करता है। वह सभी बच्चों में अपने बिछड़े बच्चों की छवि खोजता है। इन सभी बच्चों के चेहरे पर खुशी लाकर उसे बेहद अच्छा लगता है इसीलिए वह खिलौने-मिठाई आदि बेचता है। खिलौने-मिठाई आदि बेचकर पैसे कमाना उद्देश्य नहीं है। उसका उद्देश्य बच्चों के चेहरे पर खुशी लाना है।


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पेड़ों की चीत्कारने से आप क्या समझते हैं?

भोलानाथ के खाने के समय माता-पिता में नोंक-झोंक होती थी। आपको भी अपने बचपन क़ा समय याद आता होगा, जब घर में माता-पिता के बीच नोंक-झोंक होती थी । ऐसे कुछ आपबीते प्रसंगो का वर्णन कीजिए।​ (माता का आंचल)

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बचपन में हमने भी अपने माता-पिता में अक्सर नोंक-झोंक होते देखी है। घर की छोटी-छोटी बातों पर माता-पिता में नोंक-झोंक होने लगती थी।  मैं जब कोई शरारत करता तो पिता डांटते लेकिन माता मेरा पक्ष लेती। इस बात को लेकर भी माता-पिता में नोंक-झोंक हो जाती थी। माँ का अपने बच्चों के प्रति स्नेह अधिक होता है। वह बच्चों की छोटी-मोटी गलतियों को नजर अंदाज कर देती हैं, लेकिन पिता सख्त स्वभाव वाले होते हैं। वह छोटी सी गलती पर भी दांट लगाते हैं। वह जब छोटी सी गलती पर डांटने लगते तो इसी बात को लेकर अक्सर मेरे माता-पिता में अक्सर नोंकझोंक हो जाती थी।

खाना खाने में मैं अक्सर बहुत नखरे किया करता था। मुझे बहुत सी सब्जियां नापसंद थीं। इसी बात को लेकर माता-पिता में नोंक-झोंक हो जाती थी। मैं अपनी पसंद का खाना ही खाता था और मेरी माँ मुझे मेरी पसंद का खाना बनाकर खिलाती थीं, लेकिन पिताजी चाहते थे कि वह मैं हर तरह का खाना खाऊं, इसलिए मैं मुझे वह हर तरह का खाना खाने के लिए दवाब डालते थे। माँ को ये सब अच्छा नहीं लगता था। उनका मानना था कि बच्चा अगर किसी सब्जी आदि को नापंसद कर रहा है तो उस पर वह सब्जी आदि खाने का दवाब नहीं डालना चाहिए। इसी बात को लेकर भी माता-पिता मे नोक-झोंक हो जाती थी।

घर की अन्य कई छोटी-मोटी बातों पर मेरे माता-पिता मे नोंक-झोंक हो जाती थी। बाद में सब ठीक हो जाता। थोड़ा बड़े होकर मैंने जाना कि ये हर घर की कहानी थी। मेरे कई मित्रों के माता-पिता में ऐसी नोंक-झोंक होते मैं तब देखता था जब मित्र के घर मिलने जाता था।


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निमंत्रण मिलने पर अपने मित्र के घर जाने पर वहाँ मिले आदर-सत्कार की खुशी जाहिर करते हुए एक पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

आदर सत्कार मिलने पर मित्र को पत्र

 

दिनांक : 9 नवंबर  2023

 

प्रिय मित्र अनुभव,

तुम कैसे हो? मैं घर पर सकुशल पहुँच गया हूँ। लेकिन मेरे मन में अभी भी तुम्हारे घर में मिले सम्मान और अतिथि सत्कार की स्मृतिया बसी हुई हैं।

मित्र, तीन दिनों पहले मैं तुम्हारे घर तुम्हारे निमंत्रण पर आया था। तीन दिन में तुम्हारे घर पर रहा। तुम्हारे घर में मुझे जो प्यार और सम्मान मिला। तुम्हारे परिवार जन मेरा जो आदत सत्कार किया उससे मैं अभिभूत हो गया हूँ। इतना प्रेम सम्मान और आदर सत्कार प्रकार मुझे बहुत अच्छा लगा। तुम्हारे घर के सभी सदस्य बेहद विनम्र और मधुर स्वभाव के हैं।

तुम्हारे माता-पिता से बात करके मुझे बहुत अच्छा लगा। तुम्हारे माता-पिता और अपने माता-पिता में मुझे जरा भी अंतर नहीं लगा। उन्होंने मेरे सात बिल्कुल ऐसा व्यवहार कियास जैसे वह तुम्हारे साथ करते हैं यानी मुझे उन्होंने अपने पुत्र के समान ही व्यवहार किया। मुझे नहीं लग रहा था कि मैं किसी दूसरे के माता-पिता से बात कर रहा हूँ। उनका व्यवहार देखकर मुझे लग रहा कि मैं अपने माता-पिता से ही बात कर रहा हूँ।

तुम्हारी बड़ी बहन ने भी मुझे बिल्कुल छोटे भाई की तरह स्नेह किया और तुम्हारी छोटी बहन ने भी मुझे पूरा सम्मान दिया। तुम्हारे घर में मुझे जरा भी परायापन पर नहीं लगा। मुझे लगा कि मैं अपने ही घर में हूँ। तुम्हारे घर में यह आदर-सत्कार प्रकार मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं तुम्हारे तथा तुम्हारे घर के सभी सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त करता हूं और उन्हें धन्यवाद करना चाहता हूँ।

मैं चाहता हूँ तुम अपने माता-पिता और दोनों बहनों के साथ अगले रविवार को मेरे घर आओ। मैंने अपने माता-पिता को तुम्हारे बारे में सब कुछ बताया, वह भी तुम्हारे माता-पिता से मिलने के लिए उत्सुक हैं। रविवार को मैं सपरिवार तुम्हारे आने का इंतजार करूंगा।

तुम्हारा मित्र,
रमन ओझा ।


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दिनांक : 23/10/2023

 

प्रिय मित्र अनुभव,
तुम कैसे हो? तुम्हारा स्वास्थ्य कैसा है ? अभी थोड़ी देर पहले मुझे पता चला था कि कल रात को तुम्हारा साथ दुर्घटना घट गई थी। जिस कारण तुम्हें बहुत चोट आई हैं और तुम अस्पताल में भर्ती हो। मेरा शहर तुम्हारे शहर से बहुत दूर होने के कारण मैं तुरंत तुमसे मिलने नहीं आ सकता। तुम्हारे पिताजी से बात हुई थी। उनसे सारी बात पता चली। भगवान का शुक्र ये है कि तुम्हें बहुत अधिक चोट नहीं आई है। उन्होंने बताया है कि तुम सात आठ दिनों में ठीक हो जाओगे।

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शुभकामनाओं सहित,

तुम्हारा मित्र
रंजन ।


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निबंध

खेल और स्वास्थ्य

 

खेल और स्वास्थ्य का आपस में बड़ा ही गहरा संबंध है। खेल और स्वास्थ्य दोनों एक दूसरे से जुड़े होते हैं। खेलकूद हमारे स्वास्थ्य को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। खेलों के कारण खिलाड़ियों का स्वास्थ्य और शारीरिक फिटनेस अच्छी रहती है। खेलों के कारण मानसिक एवं शारीरिक दोनों तरह की गतिविधियां संपन्न होती है। खेल मनुष्य के शरीर को स्वस्थ स्वस्थ रखने का कार्य करते हैं। इसीलिए खेलों के कारण शारीरिक स्वास्थ्य सीधे तौर पर प्रभावित होता है।

अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है कि हम परिश्रम का कार्य करें, हमारी शारीरिक गतिविधि चलती रहे, हमारा खान-पान दुरुस्त रहे। खेल इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। खेलों के कारण अच्छी खासी शारीरिक परिश्रम और शारीरिक गतिविधियां हो जाती है। खेलों में हार जीत जैसे पलों से गुजरना पड़ता है और जीतने की रणनीति बनानी पड़ती है, जो मन को मजबूत करने का कार्य करते हैं।

खेलों में जीतने के लिए जिस तरह की रणनीति बनाती होती है तथा जीतने पर स्वयं को नियंत्रण रखने तथा हारने पर अपनी निराशा पर नियंत्रण रखने जैसे प्रयास करने पड़ते हैं जो मानसिक रूप से और मजबूत बनाते हैं। खेलों में हार जीत के लिए मजबूत मनोबल की आवश्यकता होती है, जिससे हमारा मानसिक व्यायाम भी अच्छा खासा हो जाता है। इसी कारण खेल एक अच्छे स्वास्थ्य की पक्की गारंटी होते हैं।

हर व्यक्ति को जीवन में किसी न खेल किसी खेल से जुड़े रहना चाहिए ताकि वह अपनी शारीरिक गतिविधि को हमेशा सुचारु रूप से करता रहे। इससे हमारी शारीरिक गतिविधि रुक जाती है और शरीर में तरह की बीमारियां जन्म लेने लगती हैं। यदि खेलों को नियमित दिनचर्या का हिस्सा बना लें तो शारीरिक गतिविधि भी संपन्न होती रहेगी और शरीर में बीमारियां आदि भी उत्पन्न नही होंगी।

खेल तन और मन दोनों को स्वस्थ रखने का कार्य करते हैं। जिस व्यक्ति का तन और मन दोनों स्वस्थ होते हैं, उस व्यक्ति का स्वास्थ्य उत्तम ही होता है। इसलिए खेल एक उत्तम स्वास्थ्य की गारंटी होते है। खेल और स्वास्थ्य का आपस में यही गहरा नाता है।


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कैप्टन की मृत्यु का समाचार देते वक्त पान वाला उदास क्यों हो जाता है?

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कैप्टन की मृत्यु का समाचार देते समय पान वाला उदास इसलिए हो गया था, क्योंकि उसे भी कैप्टन से थोड़ा बहुत लगाव हो गया था।

कैप्टन उसकी पान की दुकान के पास ही नुक्कड़ पर अपनी चश्मे की फेरी लगता था। दिन-प्रतिदिन उसे सामना होने के कारण दोनों में कुछ ना कुछ बातचीत अवश्य होती होगी। एक ही जगह पर पूरे दिन साथ-साथ रहने के कारण आपस में लगाव होना स्वाभाविक है। इसीलिए कैप्टन की मृत्यु का समाचार देते समय पान वाला उदास हो गया था।

पान वाला जब अपनी दुकान पर बैठा रहता होगा तो कैप्टन जब अपनी फेरी पर ग्राहकों को अपना चश्मा बेच रहा होता होगा तो पान वाला भी देखता होगा। वह नेताजी के मूर्ति पर कैप्टन द्वारा चश्मा लगाने और उतारते भी देखता होगा। इन सभी कामों से सहज रूप से लगाव हो जाना स्वाभाविक है। यही कारण था कैप्टन की मृत्यु का समाचार हालदार साहब को देते समय पान वाला उदास हो गया, क्योंकि अब उसे कैप्टन के वह सारे क्रियाकलाप देखने को नहीं मिलेंगे।


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क्या डिजिटल तकनीक कुछ हैकर्स के हाथों का खिलौना बनकर रह गई है? अपने विचार रखिए​।

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विचार/अभिमत

क्या डिजिटल तकनीक कुछ हैकर्स के हाथों का खिलौना बनकर रह गई है?

 

डिजिटल तकनीक कुछ हैकर्स के हाथों का खिलौना बनकर रह गई है, इस कथन से पूरी तरह सहमत नहीं हुआ जा सकता है। आज डिजिटल तकनीक का उपयोग हर कोई कर रहा है, चाहे वह गलत तरीके से हैकर्स उसका उपयोग कर रहे हों अथवा सही और लीगल तरीके से सामान्य-जन उसका उपयोग कर रहे हों।

यह अवश्य कहा जा सकता है कि जैसे-जैसे डिजिटल तकनीक अधिक लोकप्रिय होती जा रही है और लोगों के दैनिक जीवन का एक जरूरी हिस्सा बनती जा रही है, वैसे-वैसे इस तकनीक में गलत लोगों का प्रवेश भी हो रहा है, जो डिजिटल तकनीक के माध्यम से अपने गलत कार्य और उद्देश्यों को अंजाम दे रहे हैं। आज इंटरनेट पर तमाम तरह के फ्रॉड की भरमार है। मोबाइल पर स्पैम कॉल से लेकर स्पैम मैसेज, स्पैम ईमेल, एआई के माध्यम से गलत इमेज अथवा वीडियो बनाना, किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के फोटो का उपयोग करके एआई के माध्यम से उसे मॉर्फ करके गलत इमेज अथवा वीडियो बनाना, फोटोशॉप के माध्यम से फेक इमेज बनाना, स्पैम मैसेज अथवा इसमें स्पैम ईमेल बेजकर लोगों के बैंक अकाउंट को हैक करना अथवा जाने-माने व्यक्ति या प्लेटफार्म के नाम पर फेक आईडी बनाकर लोगों से ठगी करना आदि अनेक बातें हैं, जिन्हें हैकर्स अंजाम दे रहे हैं।

यह हमारे आज के डिजिटल युग में एक चिंता का विषय है और इससे निपटने के लिए अनेक तरह के प्रयास किया जा रहे हैं। आज के डिजिटल जगत में हैकर्स की भरमार हो गई है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता और डिजिटल जगत में इंटरनेट पर सर्फिंग-ब्राउजिंग करते समय बेहद सावधान रहने की आवश्यकता हो गई है, इस बात में भी कोई संदेह नहीं है, लेकिन डिजिटल तकनीक केवल हैकर्स के हाथों का खिलौना ही बन गई है, ऐसा पूरी तरह सत्य नहीं है। डिजिटल तकनीक में अच्छे-बुरे दोनों तरह के लोग हैं।

जहां एक ओर हैकर्स गलत कार्यों को अंजाम दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सही लोग उनके गलत कार्यों को रोक लगाने के लिए तमाम तरह के प्रयास कर रहे हैं। आम आदमी अपने सही कार्य भी डिजिटल तकनीक के माध्यम से संपन्न कर रहा है। आम आदमी आज अपने अनेक जीवन के कार्यों के लिए डिजिटल तकनीक पर आश्रित हो गया है, और वो इसका पूरा लाभ उठा रहा है, इस बात से भी इनकार नही किया जा सकता है। रही हैकर्स की बात तो धीरे-धीरे डिजिटल तकनीक में इतना अधिक विकास होता जाएगा कि हैकर्स द्वारा उनके गलत कार्यों पर पूरी तरह अंकुश लगाया जा सकेगा। डिजिटल जगत में अनेक प्लेटफार्म और डिवाइस आदि हैकर्स प्रूफ होने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। इस बारे में लगातार प्रयास जारी हैं।

निष्कर्ष

हमें बड़े ही थोड़े समय के लिए लग रहा हो कि डिजिटल तभी केवल हैकर्स के हाथ का खिलौना बन गई है, लेकिन इससे निपटने के उपाय भी बनाए जा रहे हैं और आगे भविष्य में डिजिटल तकनीक हैकर्स के हाथों का खिलौना नही बन पाएगी।


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किसी महत्वपूर्ण पत्र के देरी से प्राप्त होने पर क्षेत्र के पोस्टमास्टर को इसकी शिकायत करते हुए पत्र लिखिए​।

औपचारिक पत्र

पोस्ट मास्टर को शिकायत पत्र

 

दिनांक : 26 अप्रेल 2024

 

सेवा में,
श्रीमान पोस्टमास्टर,
रामनगर पोस्ट ऑफिस,
रामनगर, उत्तराखंड

विषय : पत्र देरी से प्राप्त होने के संबंध में शिकायत

 

मेरा नाम मोहित राज है। मैं रामनगर के विवेक विहार कॉलोनी में रहता हूँ। पिछले दिनों मेरा एक महत्वपूर्ण पत्र दिल्ली से आना था, जिसमें दिल्ली में हुई एक सेमिनार में मेरी उपस्थिति का निमंत्रण दिया गया था। सेमिनार आयोजकों ने सेमिनार आयोजित किए जाने वाली तारीख से 10 दिन पहले मुझे पत्र भेज दिया था। बीते 21 अप्रेल 2024 को दिल्ली में मेरी सेमिनार थी,  और आयोजकों  ने मुझे निमंत्रण पत्र 11 अप्रेल 2024 को ही भेज दिया था।

दिल्ली से कोई भी पत्र आमतौर पर 3 दिन में प्राप्त हो जाता है, लेकिन मुझे मेरा जरूरी पत्र ठीक 10वें दिन प्राप्त हुआ। जिस दिन सेमिनार थी, उसी दिन पत्र प्राप्त होने के कारण मैं दिल्ली में सेमिनार में भाग लेने नही जा सका। पत्र मुझे विलंब से प्राप्त होने के कारण मेरी एक महत्वपूर्ण सेमिनार मुझसे छूट गई। मेरे कार्य की इस हानि के लिए डाक विभाग ही जिम्मेदार है। क्या डाक विभाग अपनी इस गलती को स्वीकार करने और भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न होने देने के लिए कोई ठोस निर्णय लेगा?  डाक विभाग की ये लेट-लतीफी के कारण हमें कुरियर जैसे दूसरे साधनों की ओर जाना पड़ सकता है।

इसलिए महोदय से मेरा अनुरोध है कि अपने ग्राहकों के हित का ध्यान रखते हुए डाक विभाग ये सुनिश्चित करे कि उससे भविष्य में ऐसी कोई गलती फिर नहीं  होगी।

धन्यवाद,भवदीय,
मोहित राज,
B-12, विवेक विहार कॉलोनी,
रामनगर (उत्तराखंड)


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अपने क्षेत्र के थाना अधिकारी को देर रात तक पटाखे चलाने की शिकायत करते हुए पत्र लिखिए।

पूर्वी रेलवे के उप महाप्रबंधक को एक शिकायती पत्र लिखते हुए बताइए कि किस प्रकार की अव्यवस्था एवं गन्दगी आपको कोलकाता रेलवे स्टेशन पर देखने को मिली और स्टेशन मास्टर से शिकायत करने पर भी आपकी बात नही सुनी गई।

किस विकल्प में दोनों शब्द तत्सम शब्द हैं? (a) सूरज, अग्नि (b) भानु, आसमान (c) आकाश, सितारा (d) दिनकर, सूर्य.

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सही विकल्प होगा…

(d) दिनकर, सूर्य.

स्पष्टीकरण

विकल्प (d) दिनकर, सूर्य इन दोनों शब्दों में तत्सम हैं।

‘दिनकर’ और ‘सूर्य’ ये दोनों शब्द सूरज के पर्यायवाची हैं, और संस्कृत तथा हिंदी दोनों भाषाओं में प्रयुक्त किए जाते हैं।

‘दिनकर’ को संस्कृत भाषा में भी प्रयुक्त किया जाता है और हिंदी भाषा में भी तत्सम शब्द के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। उसी प्रकार ‘सूर्य’ भी संस्कृत में प्रयुक्त किया जाता है, और हिंदी भाषा में भी तत्सम शब्द के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इसीलिए विकल्प (d) दिनकर, सूर्य सही विकल्प होगा।

शेष तीनों विकल्पों में विकल्प (a) में सूरज एक तद्भव शब्द है जो कि हिंदी भाषा में सूर्य के तद्भव शब्द के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। ‘अग्नि’ एक तत्सम शब्द है, जो हिंदी और संस्कृत दोनों भाषाओं में जो मूल रूप से संस्कृत शब्द है और हिंदी में तत्सम शब्द के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।

विकल्प (b) में ‘भानु’ एक तत्सम शब्द है, जो संस्कृत भाषा का मूल शब्द है और हिंदी में संस्कृत के पर्यायवाची और तत्सम शब्द के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। ‘आसमान’ एक तद्भव शब्द है, जो आकाश के तद्भव शब्द के रूप में हिंदी भाषा में प्रयुक्त किया जाता है। यह शब्द संस्कृत भाषा में प्रयुक्त नहीं किया जाता।

विकल्प (c) में आकाश एक तत्सम शब्द है, जो मूल रूप से संस्कृत शब्द है और हिंदी भाषा में तत्सम शब्द के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। सितारा एक तद्भव शब्द है, जो संस्कृत भाषा में प्रयुक्त नहीं किया जाता बल्कि हिंदी भाषा में तद्भव शब्द के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।

‘तत्सम’ शब्द वे शब्द होते हैं, जो मूल रूप से संस्कृत के शब्द होते हैं और हिंदी भाषा में संस्कृत से ज्यों के त्यों ग्रहण करके प्रयोग किए जाते हैं अर्थात संस्कृत से हिंदी में प्रयोग करते समय उनका स्वरूप नहीं बदलता।

‘तद्भव’ शब्द संस्कृत भाषा के शब्द होकर हिंदी भाषा में अलग स्वरूप में प्रयुक्त किए जाते हैं।


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कठोर वचन त्यागने के लिए तुलसीदास जी क्यों कह रहे हैं?

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तुलसीदास कठोर वचन त्यागने के लिए इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि कठोर वचन से कटु वातावरण पैदा होता है। यदि हम किसी को कठोर वचन बोलेंगे तो वह भी हमको कठोर वचन बोलेगा, इससे कटु वातावरण पैदा होगा जो किसी के हित में नहीं होगा।

इसीलिए हमें कठोर वचन त्याग कर सदैव मधुर वाणी में ही एक दूसरे से बातचीत करनी चाहिए। मधुर वाणी में एक तरह का सम्मोहन होता है जो किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है। किसी से मधुर वाणी में बोलने से सामने वाला हमसे सीधे प्रभावित हो जाता है। कठोर वचन में इसका विपरीत होता है, किसी को कठोर वचन बोलने पर वह हमसे प्रसन्न नही होगा बल्कि या तो उसे दुख होगा या उसे गुस्सा आएगा। ऐसा ही हमारे साथ होगा। यदि कोई हमें कठोर वचन में बात करे तो हमें बिल्कुल भी अच्छा नही लगेगा। यही कारण है कि तुलसीदास कठोर वचन त्यागने को कह रहे हैं।

तुलसी दास कहते हैं कि…

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।

अर्थात मीठे वचन बोलने से चारों तरफ प्रसन्नता का वातावरण ही उत्पन्न होता है। सबके मन को प्रसन्नता होती है, जबकि कठोर वचन बोलने से कटु वातावरण ही उत्पन्न होता है, जो सबके लिए तनाव का कारण बनता है इसलिए सदैव मधुर वाणी में ही बात करनी चाहिए।


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आधुनिक युग में तकनीक हमें एक-दूसरे से दूर कर दिया है, लेकिन हमारे त्योहार इन्हीं दूरियों को पास करते हैं।

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विचार लेखन

आधुनिक युग तकनीक के कारण दूरी और त्योहारों के कारण एक दूसरे के पास आना

 

आधुनिक युग में तकनीक ने हम सभी को एक दूसरे से दूर कर दिया है, यह इस बात में पूरी तरह सच्चाई है। आधुनिक युग में तकनीक के विकास के कारण अब हम धीरे-धीरे एक आभासी संसार यानी वर्चुअल वर्ल्ड में समझते जा रहे हैं। हमने अपने जीवन को अपने गैजेट्स जैसे मोबाइल, टीवी, कंप्यूटर आदि तक सीमित कर लिया है। हम सब सामाजिक जीवन से कटते जा रहे हैं।

अपने काम से थोड़ा सा समय पाते ही हम अपने गैजेट्स पर जुट जाते हैं और इस पर अपना समय बिताते हैं। हमें अपने आसपास के लोगों, अपने परिवारजनों, अपने मित्र संबंधियों से बात करने की फुर्सत नहीं होती। यदि हम कभी उनसे बात करते भी हैं, तो प्रत्यक्ष नहीं बल्कि इन गैजेट के सहारे बात करते हैं। इस तरह तकनीक ने हम सबको एक दूसरे से दूर कर दिया है।

हमारे आज के त्यौहार हमारी इस दूरी को कम करने का कार्य कर रहे हैं। त्योहार शुरू से ही सामाजिकता की भावना से परिपूर्ण रहे हैं। त्योहार ने सामाजिक संबंधों को मजबूत करने में सदैव अपनी भूमिका निभाई है। त्योहारों के माध्यम से लोग पहले भी एक दूसरे के निकट आते थे और आज भी एक दूसरे के निकट आ रहे हैं। पहले यह था कि त्योहारों के अलावा भी लोग एक दूसरे के निकट थे, लेकिन अब त्योहारों के अवसर पर ही लोग एक-दूसरे के निकट आ रहे हैं। कम से कम दिन प्रतिदिन दूर होते जा रहे लोगों को हमारे त्योहार पास लाने का कार्य कर रहे हैं, यह भी एक उल्लेखनीय यह बात है। हमारे त्यौहार, वो चाहे दिवाली हो अथवा होली अथवा नवरात्रि, दशहरा, रक्षाबंधन आदि हो, सभी त्योहारों हमें भौतिक क्रियाकलाप करने पड़ते हैं। इससे हमें गैजेट्स आदि के वर्चुअल वर्ल्ड से बाहर निकलना पड़ता है।

जैसे दिवाली पर हम एक दूसरे के घर मिठाई भिजवाते हैं, एक दूसरे को आमंत्रित करते हैं, आतिशबाजी करते हैं, पूजन कार्य करते हैं, दीप जलाते है। होली पर हम रंग खेलते हैं, एक दूसरे को रंग लगाते हैं, बधाई देते हैं। रक्षाबंधन पर भाई-बहन राखी बांधते हैं। नवरात्रि पर हम व्रत रखते हैं, मंदिर जाते हैं, गरबा-डांडिया जैसे धार्मिक नृत्य करते हैं।इस तरह यह सारे त्यौहार हम सबको सामाजिक बंधन के दायरे के अंदर ले आते हैं। तकनीक के कारण हमारे बीच जो दूरियां व्याप्त हो गई होती हैं, त्यौहार इस दूरी को कम करने का कार्य कर रहे हैं। इसलिए इस बात में जरा भी संदेह नहीं है की तकनीक के कारण उत्पन्न दूरी को हमारे त्योहारों कम कर रहे हैं।


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आत्मशक्ति और दृढ़ विश्वास वह हथियार है, जो व्यक्ति की नकारात्मकता को खत्म कर उसकी सकारात्मक सोच को विकसित करता है, स्पष्ट कीजिए।

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विचार/अभिमत

जी हाँ, इस बात में कोई भी संदेह नहीं है। आत्मशक्ति और दृढ़ विश्वास ही वह हथियार है, जो व्यक्ति की नकारात्मकता को खत्म कर उसकी सकारात्मक सोच को विकसित करता है। व्यक्ति के अंदर आत्म शक्ति और दृढ़ विश्वास तभी उत्पन्न होता है, जब वह अपनी सोच को सकारात्मक रखना है। जो व्यक्ति हार नहीं मानते, जो व्यक्ति किसी भी परिस्थिति से हार नहीं मानते और निरंतर अपने लक्ष्य प्राप्ति में लगे रहते हैं। उनका आत्मशक्ति ही उनका सबसे बड़ा हथियार होता है, वह व्यक्ति बेहद दृढ़ विश्वासी होते हैं।

किसी भी व्यक्ति की सफलता और असफलता अधिकतर उसके हाथ में ही होती है। व्यक्ति की मानसिक स्थिति, उसके सोचने की शक्ति, उसका दृष्टिकोण ही उसकी सफलता को तय कर देता है। यदि व्यक्ति की आत्मशक्ति मजबूत है, दृढ़ विश्वास से परिपूर्ण है, तो उसकी सफलता की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। आत्मशक्ति उसके लिए एक प्रेरक का कार्य करती है, जो उसे आगे अपने लक्ष्य की ओर धकेलती रहती है और दृढ़ विश्वास उसकी ताकत बनकर उसकी हर कठिन एवं विषम परिस्थिति से लड़ने में सहायता करता है।

जो व्यक्ति असफल होते हैं, उनमें निश्चय ही आत्मविश्वास की कमी होती है। वह व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति सशंक्ति होते हैं। जिन व्यक्तियों ने भी अपने जीवन में अपने लक्ष्य को पाया है, अपने जीवन में सफलता पाई है, उनके जीवन चरित्र को उठाकर देखें, जानें, समझें और यदि उनसे बात करने का, उनसे संपर्क करने का सौभाग्य प्राप्त हों, करें तो पता चलेगा कि उनके लक्ष्य प्राप्ति के पीछे उनकी आत्मशक्ति और उनका विश्वास ही मुख्य कारण था।

आत्मशक्ति और दृढ़ विश्वास एक ऐसे हथियार हैं, जो नकारात्मकता रूपी दानव को व्यक्ति के पास पटकने नहीं देते और इन हथियारों से युक्त व्यक्ति निश्चय ही अपने लक्ष्य को पाकर रहता है।


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आंचलिक शब्द व देशज शब्दों में अंतर स्पष्ट करे।

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आंचलिक शब्द और देशज शब्द में मुख्य अंतर यह है कि आंचलिक शब्द किसी क्षेत्र विशेष से संबंधित शब्द होते हैं। यह केवल इस क्षेत्र के दायरे में ही बोले जाते हैं। आंचलिक शब्द अधिकतर उसे क्षेत्र की बोली से संबंधित होते हैं और उसे क्षेत्रीय बोली में बोले जाते हैं। उस क्षेत्र से बाहर उन शब्दों का कोई अधिक प्रचलन नहीं होता।

देशज शब्द वह शब्द होते हैं, जो देशी भाषाओं से संबंधित शब्द होते हैं। देशज शब्द उस पूरी भाषा में बोले जाते हैं चाहे वह भाषा किसी भी क्षेत्र में बोली जाती हो। ऐसे शब्दों की उत्पत्ति के विषय में कुछ विशेष पता नहीं होता, लेकिन देश में काफी समय से प्रचलन में होते हैं, इसलिए उन्हें देशज शब्दों की श्रेणी में रखा जाता है।

आंचलिक शब्द और देशज शब्द में मुख्य अंतर यही है कि आंचलिक शब्दों का दायरा एक क्षेत्र विशेष तक ही सीमित होता है, जबकि देशज शब्दों का दायरा क्षेत्र से अधिक होता है, लेकिन यह देश की सीमाओं के अंदर ही होता है।


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विद्यालय के पुस्तकालयाध्यक्ष को पसंदीदा पुस्तक मंगाने हेतु एक पत्र

 

दिनांक : 26 अप्रेल 2024

 

सेवा में,
श्रीमान पुस्तकालय अध्यक्ष,
राजकीय विद्यालय,
सज्जनपुर (हिम प्रदेश)

विषय : विद्यालय में पंसदीदा पुस्तक मंगाने के संबंध में

 

महोदय,
मेरा नाम गौरव शर्मा है। मैं हमारे राजकीय विद्यालय के पुस्तकालय का नियमित सदस्य हूँ। मुझे तरह-तरह की पुस्तक पढ़ना अच्छा लगता है। मैं पुस्तकालय में नियमित रूप से आता रहता हूँ।

महोदय, मुझे हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति और प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम की आटोबायोग्राफी ‘द विंग्स ऑफ फायर’ पढ़ने की बहुत इच्छा है, लेकिन हमारे पुस्तकालय में वह पुस्तक उपलब्ध नहीं है।

अतः आपसे अनुरोध है कि ‘द विंग्स ऑफ फायर’ पुस्तक का हिंदी संस्करण पुस्तकालय में मंगवाने की कृपा करें, ताकि हम सभी विद्यार्थी उस पुस्तक को पढ़कर डॉ. कलाम के जीवन से प्रेरणा लेकर लाभ उठा सकें।
आशा है आप हमारे अनुरोध को मानते हुए पुस्तक शीघ्र से सीखने मँगवाएँ ।
धन्यवाद ।

भवदीय,
गौरव शर्मा, (कक्षा-10)
राजकीय विद्यालय,
सज्जनपुर (हिम प्रदेश) ।


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औपचारिक पत्र

ग्राम प्रधान को घर के आगे वाली पोल पर सोलर लाइट लगवाने हेतु पत्र

 

दिनांक : 24 अप्रेल 2024

 

सेवा में,
श्रीमान ग्राम प्रधान,
ग्राम – फूलपुर
उत्तम प्रदेश

आदरणीय प्रधानजी,
प्रार्थी का नाम सोहनलाल है। प्रार्थी फूलपुर गाँव के निरंकारी मोहल्ले में रहता है। प्रार्थी के घर के सामने गली में रात के संबंध में अंधकार छाया रहता है। इस कारण रात को आते-जाते समय हमें बेहत परेशानी का सामना करना पड़ता है। यूँ तो गाँव में जगह-जगह पर सोलर लाइट लगी है, लेकिन प्रार्थी के घर के आगे वाले खंबे पर यह सोलर लाइट नहीं लगी है।

यदि प्रार्थी के घर के आगे लगे खंभे पर सोलर लाइट लग जाए तो घर के सामने गली में रात में प्रकाश हो जाया करेगा। जिससे रात के समय हम सभी गलीवासियों को परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। दिन में सोलर लाइट चार्ज हो जाएगी और रात में हमें प्रकाश देगी।

आशा है प्रार्थी के परेशानी को ध्यान में रखते हुए प्रार्थी के घर सामने के पोल पर सोलर लाइट लगवा देंगे।
धन्यवाद,

प्रार्थी
सोहनलाल
ग्राम – फूलपुर
उत्तम प्रदेश ।


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औपचारिक पत्र

थाना अधिकारी को देर रात तक पटाखे चलाने के संबंध में शिकायत पत्र

 

दिनांक – 13 नवंबर 2023

 

सेवा में,
श्रीमान थानाधिकारी महोदय,
पश्चिम विहार, दिल्ली

विषय : देर रात तक पटाखे जलाने के संबंध में शिकायत

 

महोदय,
मेरा नाम सुनील सक्सेना है। मैं विशाल नगर कॉलोनी का निवासी हूँ। गत 12 नवंबर को दीपावली का त्यौहार था। त्योहार के उपलक्ष्य में कई लोगों ने पटाखे जलाए। हालांकि प्रशासन की तरफ से अधिक पटाखे न जलाने की अपील की गई थी। विशेषकर अधिक धुआं उत्पन्न करने वाले, और अधिक ध्वनि उत्पन्न करने वाले पटाखे को ना जलाने की अपील की गई थी। लेकिन लोगों ने प्रशासन का आदेश नहीं माना और देर रात तक पटाखे जलाए।

अब दिवाली बीत जाने के बाद भी 2 दिन से लगातार देर रात तक पटाखे जलते रहते हैं। इस कारण नाक तेवर हमारे आसपास का वातावरण प्रदूषण हुआ है बल्कि पटाखे की तीव्र आवाज के कारण हम लोगों को बड़ी सुविधा का सामना करना पड़ता है।

मेरे घर में मेरे पिताजी बीमार हैं और डॉक्टर ने किसी भी शोर से दूर रखने का निर्देश दिया है। लेकिन पटाखे की आवाज के कारण मेरे पिताजी को बेहद परेशानी हो रही है। हमने पटाखे चलाने वाले लोगों से अनुरोध किया कि वह पटाखे ना चलाएं तो वह हमारी सुनते नहीं और ज्यादा बोलने पर हमसे झगड़ा करने पर उतारू हो जाते हैं। केवल हमारा परिवार ही नही बल्कि हमारे कई पड़ोसी इसी समस्या से परेशान है।

अतः मेरा आपसे अनुरोध है कि हम सभी नागरिकों की समस्या को ध्यान में रखते हुए पटाखे चलाने वालों पर उचित कार्रवाई करें और उन्हें पटाखे चलाने से रोकें ताकि सभी नागरिकों को राहत मिल सके।
आशा है इस संबंध में आपसे अपेक्षित कार्रवाई की आवश्यकता है।

धन्यवाद,

शिकायतकर्ता
सुनील सक्सेना,
पश्चिम विहार,
दिल्ली ।


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आप सुमन हैं। नई कॉलोनी, कलकत्ता से आपके नाम से प्रेषित एक हजार रुपए के मनीऑर्डर की प्राप्ति होने की शिकायत करते हेतु अधीक्षक, डाक विभाग को पत्र लिखिए।

झरने और नदी में क्या अंतर है?

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झरने और नदी में मुख्य अंतर यह होता है कि झरना ऊँचाई से गिरने वाली एक जलधारा है, जिसकी धारा बेहद सीमित होती है, जबकि नदी एक बहती हुई लंबी जल धारा होती है, जिसका आकार छोटे से बड़ा कितना भी हो सकता है।

झरना केवल एक छोटे क्षेत्र तक सीमित रहता है, जबकि नदी का दायरा बेहद बड़ा होता है। वह अपने उद्गम स्थल से बहती हुई समुद्र तक की यात्रा करती है। उद्गम स्थल से समुद्र तक की ये दूरी कुछ किलोमीटर से लेकर, सैकड़ों किलोमीटर अथवा हजार किलोमीटर से ज्यादा भी हो सकती है। जबकि झरना की लंबाई या ऊँचाई केवल कुछ मीटर की होती है। झरना किसी पर्वत के ऊपरी शिखर से नीचे गिरने वाली जलधारा है। यही जलधारा जब मैदानी क्षेत्र में बहती हुई जाती है, तो वह नदी बन जाती है।

झरना नदी का ही एक एक भाग होता है। नदी जब ऊँचाई से नीचे गिरती है, तो वह एक या कई झरनों का रूप धारण कर लेती है और आगे समतल मैदान में वह पानी नदी बन जाता है, इसलिए झरने और नदी का आपस में गहरा संबंध भी है।

झरने को जलप्रपात भी कहा जाता है। झरने का पानी निरंतर ऊँचाई से नीचे की ओर गिरता रहता है। उसका पानी बहुत स्वच्छ होता है। ऊँचाई से गिरने के कारण पानी की गति तेज होती है। नदी का पानी भी निरंतर आगे की और बहता रहता है, लेकिन उसकी गति बेहद सामान्य या धीमी होती है।

झरने केवल पहाड़ी क्षेत्रों तक ही सीमित होते हैं, जबकि नदी का बहाव क्षेत्र पहाड़ी और समतल मैदानी क्षेत्रों सब जगह होता है।


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संधि भेद : दीर्घ स्वर संधि

स्पष्टीकरण

दीर्घ स्वर संधि का नियम : ‘जीवनाधार’ में ‘दीर्घ स्वर संधि’ है। यहाँ पर दीर्घ स्वर संधि का वह नियम लागू होता है, जिसमें जब किसी प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण के स्वर ‘अ’ और द्वितीय शब्द के प्रथम वर्ण के स्वर ‘आ’ का मेल होता है, तो ‘आ’ बनता है।

इस संधि में ‘जीवन’ के अंतिम वर्ण ‘न’ का स्वर ‘अ’ तथा ‘आधार’ का प्रथम वर्ण का स्वर ‘आ’ का संयोजन होकर ‘आ’ वर्ण बन रहा है।

इसलिए जीवन + आधार = जीवनाधार होगा। इस संधि में दीर्घ स्वर संधि होती है।

‘स्वर संधि’ के पाँच उपभेद होते हैं, ‘दीर्घ स्वर संधि’ इन्हीं पाँच उपभेदों में से एक भेद है।

स्वर संधि के पाँच भेद :
1. दीर्घ संधि
2. गुण संधि
3. यण संधि
4. अयादि संधि
5. वृद्धि संधि


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जाति प्रथा भारत में बेरोज़गारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण कैसे बनी हुई है?

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जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी का प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण इस प्रकार बनी है, क्योंकि जाति प्रथा के कारण व्यक्ति विशेष को किसी एक निश्चित पेशे से ही बांध दिया जाता था। जाति प्रथा के अंतर्गत हर समुदाय को एक पेशा निश्चित कर दिया गया था, उस समुदाय को वही पेशा करना पड़ता था।

उदाहरण के लिए बढ़ाई जाति केवल फर्नीचर आदि बनाने का ही काम करते थे। नाई जाति से संबंधित लोग केवल बाल काटने का ही कार्य करते थे। उसी प्रकार जूते-चप्पल बनाने और मरम्मत का कार्य वह मोची समुदाय के लोगों को निश्चित कर दिया गया था। लोहार जाति के लोग लोहे से संबंधित कार्य ही करते थे। वैश्य समुदाय के लोग व्यापार के कार्य में संलग्न होते थे। ब्राह्मणों के लिए शिक्षा प्रदान करना और पूजा पाठ के कार्य निश्चित थे। क्षत्रियों  का कार्य शासन-प्रशासन का कार्य करना होता था।

इस तरह भारत में जाति प्रथा के अंतर्गत हर समुदाय के लिए एक निश्चित पेशा ही सुनिश्चित कर दिया गया था। इसी कारण वह व्यक्ति दूसरा कोई पेशा नहीं अपना पाता था। यदि उस व्यक्ति के सामने अपने पेशे में पर्याप्त रोजगार उपलब्ध नहीं होता था तो वह कोई दूसरा पेशा नहीं कर पता था। इसी कारण उस विशेष जाति से संबंधित लोग अपने जाति से संबंधित पेशे में पर्याप्त रोजगार न होने पर बेरोजगार रह जाते थे।

प्राचीन भारत में यह व्यवस्था बड़े जोरों पर प्रचलित थी, लेकिन आधुनिक भारत में ऐसा नहीं है। हालाँकि कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह प्रथा अभी भी जारी है। आज के आधुनिक भारत में जाति प्रथा अब पूरी तरह प्रासंगिक नहीं रह गई है। अब व्यक्ति को अपने योग्यता के आधार पर किसी भी पेशे को चुनने का अधिकार है। वह अपनी शिक्षा और योग्यता के आधार पर किसी भी तरह के पेशे में जा सकता है।

भारतीय संविधान के मुताबिक किसी जाति के आधार पर एक व्यक्ति को एक निश्चित पेशे में नहीं  बांधा जा सकता है। हालांकि पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में जाति प्रथा अभी भी जारी है, जिस कारण यह बेरोजगारी का प्रमुख कारण भी बनी है।

यही कुछ बिंदु हैं, जिनके कारण जातिप्रथा भारत में बेरोजगारी का प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।


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‘सत्य हरिश्चंद्र’ नाटक से हमें क्या सीख मिलती है?

जब माता सती अपने पिता दक्ष का हवन भस्म करती है, तो महादेव के कितने आँसू गिरे थे

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जब माता सती अपने पिता दक्ष का हवन में स्वयं को भस्म करती है, तो उनकी ये दशा देखकर महादेव अर्थात भगवान शिव की आँखों से कुछ आँसू छलककर धरती पर गिर गए। इन्हीं आँसुओं सो रुद्राक्ष के पेड़ की उत्पत्ति हुई। ये आँसू संख्या में 14 थे इसीलिए 14 तरह के रुद्राक्ष पाए जाते हैं।

जब माता सती अपने पिता दक्ष द्वारा आयोजित किए गए यज्ञ (हवन) में भगवान शिव को न बुलाए जाने के कारण क्रोधित और दुखी जो जाती हैं। अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव के इस अपमान ने दुखी होकर वे इसी दुख में उसी हवन कुड में स्वयं को भस्म कर देती हैं और अपना जीवन समाप्त कर लेती हैं। तब भगवान शिव वहाँ आते हैं और उनके जले हुए शरीर को हवन कुंड से बाहर निकाल कर ब्रह्मांड की परिक्रमा करने लगते हैं। माता सती की यह हालत देखकर भगवान शिव की आँखों से कुछ आँसू छलक कर धरती पर गिर जाते हैं और वही आँसुओं से रुद्राक्ष का पेड़ का जन्म होता है।

भगवान शिव के आँख से कितने आँसू गिरे थे, इस बारे में स्पष्ट प्रमाण नहीं है, लेकिन माना जा सकता है कि उनके आँख से लगभग 14 आँसू गिरे थे। इसीलिए 14 प्रकार के रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई। इसी कारण 14 तरह के रुद्राक्ष तक पाए जाते हैं। एक मुखी रुद्राक्ष भगवान शिव का सबसे प्रिय रुद्राक्ष माना जाता है और यह सबसे बहुमूल्य रुद्राक्ष होता है। उसके अतिरिक्त दो मुखी रुद्राक्ष, तीन मुखी रुद्राक्ष, चार मुखी रुद्राक्ष, पंचमुखी रुद्राक्ष, षष्ठ मुखी रुद्राक्ष, सप्त मुखी रुद्राक्ष, अष्ट मुखी रुद्राक्ष, नवमुखी रुद्राक्ष, दशमुखी रुद्राक्ष, ग्यारहमुखी रुद्राक्ष, बारह मुखी रुद्राक्ष, तेरह मुखी रुद्राक्ष, चौदह मुखी रुद्राक्ष होते हैं। इस तरह भगवान शिव के 14 आँसुओं से इन 14 मुखी रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई, हालांकि रुद्राक्ष 21 मुखी भी माने जाते हैं, लेकिन सामान्यतः 14 तरह के रुद्राक्ष ही पाए जाते हैं।


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मनीषा को आम काटकर खाना चाहिए। – संयुक्त वाक्य में बदलिए।

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मनीषा को आम काटकर खाना चाहिए।

संयुक्त वाक्य : मनीषा को आम काटना चाहिए और खाना चाहिए।

स्पष्टीकरण

दिया गया वाक्य एक सरल वाक्य है, इसको संयुक्त वाक्य में बदलने के लिए इसमें योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाएगा, क्योंकि योजक चिन्ह के द्वारा दो प्रधान वाक्य को जोड़ा जाता है।

संयुक्त वाक्य वह वाक्य होते हैं, जिनमें एक से अधिक प्रधान उपवाक्य होते हैं। यहाँ पर जो वाक्य दिया गया है, वह सरल वाक्य है। सरल वाक्य में केवल एक ही प्रधान वाक्य होता है। इसे संयुक्त वाक्य में बदलने के लिए योजक चिन्ह के द्वारा इस दो प्रधान वाक्य में बदल जाएगा।

संयुक्त वाक्य में ‘और’, ‘तथा’, ‘व’, ‘एवं’ आदि योजक चिन्ह प्रयोग किए जाते हैं। इस वाक्य में योजक चिन्ह के द्वारा सरल वाक्य को दो प्रधान उपवाक्य में बदल दिया गया है।

सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य परिवर्तन के कुछ उदाहरण

सरल वाक्य : राजू को सुबह 6 बजे उठकर पढ़ाई करना चाहिए।
सयुक्त वाक्य : राजू को सुबह 6 बजे उठना चाहिए और पढ़ा करनी चाहिए।

सरल वाक्य : मोहन सोहन का बड़ा भाई है।
संयुक्त वाक्य : मोहन बड़ा और सोहन छोटा भाई है।

रचना के आधार पर वाक्य के तीन भेद होते हैं,

  • सरल वाक्य
  • संयुक्त वाक्य
  • मिश्र वाक्य

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‘समय का सदुपयोग’ पर एक निबंध लिखिए।

निबंध

समय का सदुपयोग

हम सभी जानते हैं की समय एक ऐसी चीज़ है जिसे कभी वापस नहीं लाया जा सकता । कहते हैं समय बहुत बलवान होता है और यह सत्य भी है । जिस व्यक्ति के पास समय है वह कोई भी मुकाम हासिल कर सकता है । हमारे जीवन में समय का अपना महत्व है । कहते हैं कि समय दिखाई नहीं देता पर बहुत कुछ दिखा देता है ।

समय का कहाँ पर उपयोग कितना करना है यह आपकी समझदारी पर निर्भर करता है । क्योंकि ”आपकी घड़ी सुधारने वाले तो कई मिल जायेंगे पर समय को आपको स्वयं सुधारना पड़ता है इसलिए समय के महत्व को समझें और इसका आदर करें ।
यदि आप अपने गुजरे हुए समय पर अफ़सोस कर रहे होते हैं तो ध्यान दें कि इस अफ़सोस में भी आप अपना वर्तमान समय गुजर रहे होते हैं। इसलिए गुजरे वक्त पर अफ़सोस के स्थान पर वर्तमान समय पर ध्यान देना चाहिए और इसे बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए।
सही चीज़ों को करने के लिए समय हमेशा ही सही होता है । कबीर दास जी ने भी अपने एक दोहे में कहा है कि अपने काम को कल पर मत टालिए। जो काम कल करने की सोच रहे हैं, उसे आज करें और जो आज करना है, उसे इसी वक्त करें, क्योंकि किसी भी पल का कोई भरोसा नहीं। जीवन बहुत छोटा है, अपना काम कब करोगे।

समय का सदुपयोग करने से मनुष्य की व्यक्तिगत उन्नति होती है । हमें बाल्यकाल से ही समय की अमूल्यता पर ध्यान देना चाहिए । शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए समय पर सोना ,समय पर उठना, समय पर भोजन करना , समय पर व्यायाम करना , समय पर पढ़ना बहुत ही आवश्यक है। मानसिक उन्नति के लिए हमें प्रारम्भ से ही सद्दग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए तथा अपने से बड़े, अपने से अधिक बुद्धिमान लोगों के साथ जीवनोपयोगी विषयों पर चर्चा करनी चाहिए । जिस काम के लिए जो समय निश्चित हो, उस समय वह काम अवश्य कर लेना चाहिए, तभी मनुष्य जीवन में उन्नति कर पाता है ।
कभी किसी काम को देर से शुरू न करो क्योंकि प्रारंभ में विलम्ब हो जाने से अन्त तक विलम्ब होता रहता है और उस कार्य में सफलता संदिग्ध रहती है । विदेशों में समय का मूल्य बहुत समझा जाता है । वहाँ का प्रत्येक व्यक्ति उसका सदुपयोग करना जानता है । यदि आपने किसी व्यक्ति को आठ बजे बुलाया है तो वह आपके पास ठीक आठ बजे आ जायेगा ,न एक मिनट पहले , और न एक मिनट पश्चात ।देश और समाज के प्रति हमारे कुछ कर्तव्य हैं । हमें अपना कुछ समय उनकी सेवा में भी लगाना चाहिए , जिससे देश और समाज की उन्नति हो । असहायों की सहायता करने में , भूखों के पेट भरने में, दूसरों के हित सम्पादन में जो अपना कुछ समय व्यतीत करता है वह भी समय का सदुपयोग करता है तथा उसका समाज में सम्मान होता है ।निष्कर्ष “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए ।” स्वामी विवेकानंद जी द्वारा कहे गए इन वाक्यों को अपने जीवन में अपनाना चाहिए । समय एक रेत की तरफ है जो हर पल आपकी मुट्ठी से फिसलता जा रहा है । हम समय को नहीं रोक सकते न ही समय हमारे लिए रुकता है । बचपन से जवानी और जवानी से बुढ़ापा यहाँ समय ही तो है जो आपमें परिवर्तन आया है ।
समय पैसा से कहीं ज्यादा अधिक वैल्यू रखता है क्यूंकि आप खोया हुआ धन दुबारा कमा सकते हैं किन्तु खोया हुआ समय दुबारा नहीं ला सकते । इसलिए अपने इस समय की कदर करें और इसका सदुपयोग करना सीखें ।

 

 

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‘नेता नहीं, नागरिक चाहिए।’ इस विषय पर निबंध लिखें।

प्लास्टिक (Plastic) क्या है? परिभाषित कीजिए​।

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प्लास्टिक ⦂ आज की दुनिया को अगर हम प्लास्टिक की दुनिया कहें तो इसमें कुछ गलत नहीं है। ​ आज प्लास्टिक का मनुष्य से बहुत गहरा संबंध हो गया है जैसे चोली और दामन का। प्लास्टिक के बर्तन, प्लास्टिक के खिलौने, प्लास्टिक का फ्रिज, कंप्युटर, वाशिंग मशीन, मोबाइल फ़ोन और ना जाने कितनी अनगिनत वस्तुएं जिनका इस्तेमाल हम रोजमर्रा की ज़िंदगी में करते हैं। आजकल प्लास्टिक की थैली का चलन तो बहुत ज्यादा हो गया है। बाज़ार में कुछ भी खरीदने जाओ तो वह चाहे दूध, दहीं, राशन, सब्जी हो सब कुछ प्लास्टिक की थैली में ही मिलता है। और तो और दूध, ब्रेड आदि तो पहले से ही प्लास्टिक की थैली में पैक होकर आता है। इस युग को अगर कलयुग ना कहकर प्लास्टिक युग कहा जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।

प्लास्टिक की परिभाषा

प्लास्टिक, संश्लेषित अथवा अर्धसंश्लेषित कार्बनिक ठोस पदार्थों के एक बड़े समूह का सामान्य नाम है। इससे बहुत सारे औद्योगिक उत्पाद निर्मित होते हैं। प्लास्टिक प्रायः उच्च अणुभार वाले बहुलक होते हैं जिनमें मूल्य कम करने या अधिक कार्यक्षम बनाने के लिये कुछ अन्य पदार्थ भी मिश्रित किए जा सकते है। प्लास्टिक को बहुलकीकरण की प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है। प्लास्टिक असल में बहुलक ही होता है,जैसे कि-पॉलीथीन, पोलीविनायल क्लोराइड,इत्यादि। प्लास्टिक पदार्थ और प्लास्टिक पदार्थों के एक गुण अलग-अलग हैं। एक गुण के रूप में प्लास्टिक उन पदार्थों की विशेषता का द्योतक है, जो अधिक खींचने या तानने (विकृति पैदा करने) से स्थायी रूप से अपना रूप बदल देते हैं और अपने मूल स्वरूप में नहीं लौट पाते।

प्लास्टिक दो प्रकार की होती है

थर्मोप्लास्टिक ⦂ यह वह प्लास्टिक होती है जो गर्म करने पर विभिन्न रूपों में बदल जाती है। जैसे-पॉलीथीन, पॉली प्रोपीलीन, पॉली विनायल क्लोरायड ।
थर्मोसेटिंग यह वह प्लास्टिक होती है जो गर्म करने पर सेट हो जाती है जैसे :- यूरिया, फॉर्मेल्डिहाइड, पॉली यूरेथेन ।


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पेन और कॉपी के बीच हुए एक काल्पनिक संवाद को लिखें।

संवाद लेखन

पेन और कॉपी का संवाद

 

पेन ⦂ कॉपी ! क्या मेरा तुम पर घिसे जाना तुम्हें अच्छा लगता है।

कॉपी ⦂ पेन ! जब तुम्हारे द्वारा छात्र मुझ पर सुंदर-सुंदर शब्द लिखते हैं तो मुझे बहुत खुशी होती है।

पेन ⦂ कॉपी ! मैं इतना छोटा हूँ और तुम इतनी बड़ी हो फिर भी मैं तुम्हें रंग देता हूँ।

कॉपी ⦂ तुम्हारे रंगने से ही मेरी शोभा बढ़ती है। मैं लोगों के लिए अधिक उपयोगी हो जाती हूँ। मैं तुम्हारी आभारी हूँ।

पेन ⦂ ऐसा मत बोलो, तुम्हारे बिना मेरी भी कोई वजूद नहीं है।

कॉपी ⦂ पेन ! पर मुझे तुमसे सिर्फ एक ही शिकायत है।

पेन ⦂ वह क्या है ? मुझे बताओ मैं उसे दूर करने की पूरी कोशिश करूंगा।

कॉपी ⦂ मुझे तो तुम पर गर्व है क्योंकि तुम्हारे बिना मेरा होना ही अधूरा है। तुम्हारे बिना मेरी कोई उपयोगिता नहीं है।

पेन ⦂ कॉपी ! तुम मुझे बहुत मान दे रही हो। सच पूछो तो हम दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।

कॉपी ⦂ कभी-कभी तुम बहुत गंदा लेख लिखते हो जिससे मेरा आकर्षण खत्म हो जाता है।

पेन ⦂ अच्छा , मैं आगे से इस ध्यान रखूंगा और नियमित सुलेख द्वारा अपना लेख सुधारने का प्रयास करूंगा।


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‘एक टोकरी भर मिट्टी’ कहानी का उद्देश्य लिखिए। इस कहानी के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है?

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‘एक टोकरी भर मिट्टी’ कहानी माधवराव सप्रे द्वारा लिखित एक सामाजिक कहानी है, जिसके माध्यम से उन्होंने अमीरों द्वारा गरीबों पर किए जाने वाले अन्याय के प्रसंग को उठाया है।

इस कहानी के दो मुख्य पात्र हैं जो एक अमीर जमींदार तथा एक विधवा स्त्री हैं। अमीर जमींदार के महल के सामने एक विधवा स्त्री की झोपड़ी है। अपने आलीशान महल के सामने विधवा स्त्री की वह झोपड़ी उसे फूटी आँख नहीं सुहाती। इसी कारण वह विधवा स्त्री को वह झोपड़ी वहाँ से हटाने को कहता हैं, लेकिन विधवा स्त्री वह अपनी झोपड़ी हटाने के लिए तैयार नहीं है। वह उस झोपड़ी में कई वर्षों से रहे रही है। उसके पति, बेटे तथा पुत्रवधू सभी उसके साथ इस झोपड़ी में रहते थे, जो अब इस दुनिया में नहीं है। उनकी यादे उस झोपड़ी में बसी हुई हैं। उसके साथ केवल उसकी एक पोती रह गई है। उस झोपड़ी में उसकी जीवन भर की यादें बसी हुई हैं।

अनेक तरह के जतन करने के बाद भी जब विधवा स्त्री जमीदार के महल के सामने से अपनी जोड़ी झोपड़ी हटाने के लिए तैयार नहीं हुई तो उसने कुटिल चाल चलकर अदालत में वकीलों आदि को पैसा खिलाकर अदालत के माध्यम से विधवा स्त्री की झोपड़ी पर अपना कब्जा कर लिया और मजबूरन विधवा स्त्री को अपनी पोती सहित झोपड़ी छोड़कर जाना पड़ा। वह आसपास ही रहने लगी, लेकिन एक दिन उसके और जमीदार के बीच घटित एक घटना के कारण जमींदार का हृदय परिवर्तित हो गया और उसने विधवा स्त्री की झोपड़ी वापस कर दी।

इस कहानी के माध्यम से लेखक के कहने का यही उद्देश्य है कि उच्च वर्ग के लोग जो धन-बल से संपन्न होते हैं, वह अपने धन-बल के कारण निर्धन लोगों के जीवन के सारे अधिकार छीन लेते हैं। उन्हें अपने शानो-शौकत में कोई भी कमी नहीं आनी चाहिए। इसके लिए चाहे उन्हें किसी निर्धन व्यक्ति के जीवनावश्यक अधिकारों का हनन क्यों न करना पड़े। अमीर जमींदार केवल अपनी शान-शौकत के कारण ही विधवा स्त्री की वह झोपड़ी हटाना चाहता था जो उसके लिए रहने का एकमात्र सहारा थी।

अमीर लोगों को अपने सुख-सुविधा के आगे गरीबों की जीवन आवश्यक जरूरत का भी ख्याल नहीं होता। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के बीच उपजे गहरी खाई पर ध्यान आकर्षित कराने की चेष्टा की है। हालांकि कहानी का अंत अच्छा है और विधवा स्त्री जमींदार को अपने किए पर पछतावा होने के कारण उसकी झोपड़ी उसे वापस मिल गई। इस तरह कहानी नकारात्मक पक्षों से गुजरती हुई अंत में सकारात्मक पर जाकर खत्म होती है।


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निबंध

वैदिक शिक्षा और विज्ञान

 

वैदिक शिक्षा और विज्ञान वैदिक युग में शिक्षा व्यक्ति के चहुँमुखी विकास के लिए थी । जब विश्व के शेष भाग बर्बर एवं प्रारम्भिक अवस्था में थे, भारत में ज्ञान, विज्ञान तथा चिन्तन अपने चरमोत्कर्ष पर था ।

वैदिक काल में शिक्षा

वैदिक काल में विद्वानों का मानना था कि शिक्षा ज्ञान है और वह मनुष्य का तीसरा नेत्र है । शिक्षा के द्वारा समस्त मानव जीवन का विकास सम्भव है। वैदिक काल में ईश्वर-भक्ति तथा धार्मिकता की भावना बहुत अधिक प्रबल थी।

चरित्र- निर्माण, व्यक्तित्व का विकास, नागरिक तथा सामाजिक कर्तव्यों का पालन को प्राथमिकता दी जाती थी। सामाजिक कुशलता की उन्नति तथा राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण और प्रसार भी बहुतायत से होता था।

वैदिक काल में गुरुकुल प्रणाली थी । छात्र माता-पिता से अलग, गुरु के घर पर ही शिक्षा प्राप्त करता था, यह पद्धति गुरुकुल पद्धति कहलाती थी। अन्य सहपाठियों के साथ वह गुरुकुल मे ब्रह्मचर्य का पालन करता हुआ शिक्षा प्राप्त करता था। आचरण की शुद्धता व सात्विकता को प्रमुखता दी जाती थी । अविवाहित छात्रों को ही गुरुकुल में प्रवेश मिलता था।

वैदिक युग में शिक्षा, गुरु प्रत्येक छात्र का विकास करने के लिए प्रयत्नशील रहता था तथा उनका शारीरिक तथा मानसिक विकास करता था । वैदिक युग में शिक्षा मौखिक रूप से शिक्षण किया जाता था । इसका प्रमुख कारण था-लेखन कला तथा मुद्रण कला का अभाव ।

उस समय मौखिक रूप से अध्यापक आवश्यक निर्देश देते थे । छात्र उन निर्देशों का पालन करते थे । शिक्षण विधि में प्रयोग एवं अनुभव, कर्म तथा विवेक को महत्व दिया जाता था ।

विज्ञान

वर्तमान युग में विज्ञान का प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र में देखने को मिलता है । आज विज्ञान के बिना समाज की कल्पना करना असंभव है । हमारी संस्कृति में विज्ञान घुल-मिल गया है । विज्ञान की शिक्षा के प्रचार व प्रसार से मानव की विचारधारा में बहुत परिवर्तन आया है । विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।

प्राचीन समय में इसे भौतिक विज्ञान के नाम से जाना जाता था एवं उच्च शैक्षिक संस्थानों में छात्र इसे अत्यंत उत्साह से पढ़ते थे । भारतीय पुनर्जागरण के समय (बीसवीं सदी के प्रारंभ) में भारतीय वैज्ञानिकों ने उल्लेखनीय प्रगति की थी ।

1947 में देश के आजाद होने के पश्चात संस्थाओं की स्थापना की गई ताकि विज्ञान के क्षेत्र में हुई इस सहज एवं रचनात्मक प्रगति को और बढ़ावा मिल सके । इस कार्य में विभिन्न राज्यों ने भी अपना भरपूर सहयोग दिया । इसके बाद से भारत सरकार ने देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की आधुनिक अवसंरचना के निर्माण में कोई कसर नहीं छोड़ी है ।

निष्कर्ष 

इस प्रकार हम पाते हैं कि वैदिक काल में शिक्षा और ज्ञान का बेहद महत्व था। आज के वैज्ञानिक युग में विज्ञान का महत्व है। वैदिक काल में शिक्षा के महत्व से हमें पता चलता है कि हमारे भारत में प्राचीनकाल से ही शिक्षा और ज्ञान की एक समृद्ध परंपरा रही है।


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RJ45 संयोजक आर जे-45 संयोजक (RJ-45 Connecter) वह केबल होता है, जो किसी कम्प्यूटर नेटवर्क में अलग-अलग कंप्यूटरों को जोड़ने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस केबल नेटवर्क केबल भी कहा जाता है। इसका आधिकारिक नाम आर जे-45 संयोजक (RJ-45 Connecter) होता है। एक नेटवर्क से जुड़े जुड़े अलग-अलग कंप्यूटर में जो भी डाटा और सूचनाएं आदि एक से दूसरे कंप्यूटर तक पहुंचती है, वह इसकी आर जे-45 संयोजक (RJ-45 Connecter) के माध्यम से पहुंचती हैं।


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मैन (MAN) का पूरा नाम है, Metropolitan Area Network (मेट्रोपॉलिटन एरिया नेटवर्क)

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मैन (MAN) यानि मेट्रोलपॉलिटन एरिया नेटवर्क से तात्पर्य उस नेटवर्क से होता है, जो किसी बड़े महानगर, बड़े शहर अथवा कस्बे के पूरे नेटवर्क को संदर्भित करता है। मैन नेटवर्क के अंतर्गत पूरे नगर में नेटवर्क बिछा होता है।

लैन (LAN) यानि लोकल एरिया नेटवर्क से तात्पर्य किसी इमारत, मोहल्ले, कॉलोनी में बिछे हुए नेटवर्क से होता है। किसी बड़े संस्थान की इमारत में कंप्यूटर अथवा केबल आदि का जो नेटवर्क स्थापित किया जाता है, वह लोकल एरिया नेटवर्क कहा जाता है। मैन लैन का ही विस्तृत रूप है और दोनों एक ही तरह के संसाधनों का उपयोग करते हैं।


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साइमन कमीशन ‘3 फरवरी, 1928’ को भारत आया।

साइमन कमीशन 3 फरवरी को भारत में आया और सबसे बंबई पहुँचा। साइमन कोलकाता लाहौर लखनऊ, विजयवाड़ा और पुणे सहित जहाँ-जहाँ भी पहुंचा उसे जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा और लोगों ने उसे काले झंडे दिखाए ।

लखनऊ में साइमन कमीशन का विरोध करते हुए जवाहर लाल नेहरू और गोविंद बल्लभ पंत को पुलिस की लाठियाँ खानी पड़ी थी । इसके अलावा लखनऊ में खलीकुज्जमा ने भी साइमन कमीशन का विरोध किया था । मद्रास में साइमन कमीशन का विरोध टी प्रकाशम के नेतृत्व में किया गया था । 30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया ।

पुलिस ने लाला लाजपत राय की छाती पर निर्ममता से लाठियाँ बरसाई । वह बुरी तरह घायल हो गए और मरने से पहले उन्होंने बोला था कि आज मेरे ऊपर बरसी हर एक लाठी कि चोट अंग्रेजों की ताबूत की कील बनेगी अंततः इस कारण 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई । लाला लाजपत राय की मृत्यु पर मोतीलाल नेहरू ने श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें ‘प्रिंस अमंग पीस मेकर्स’ कहकर पुकारा था । जबकि मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि “इस क्षण लाला लाजपत राय की मृत्यु भारत के लिए एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य है।”

महात्मा गांधी ने भी लाला लाजपत राय की मृत्यु पर खेद प्रकट करते हुए कहा था कि “लाला जी की मृत्यु ने एक बहुत बड़ा शून्य उत्पन्न कर दिया है, जिसे भरना अत्यंत कठिन है। वे एक देशभक्त की तरह मरे हैं और मैं अभी भी नहीं मानता हूँ कि उनकी मृत्यु हो चुकी है, वे अभी भी जिंदा है।”

इसके अलावा, महात्मा गांधी ने लाला लाजपत राय की मृत्यु पर यह भी कहा था कि “भारतीय सौर मंडल का एक सितारा डूब गया है ।”

लाला लाजपत राय की मृत्यु पर शोक प्रकट करते हुए साइमन कमीशन के अध्यक्ष जॉन साइमन ने खुद कहा था कि “एक उत्साही सामाजिक कार्यकर्ता और एक मुख्य राजनीतिक कार्यकर्ता का अवसान हो गया है ।”


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हॉस्टल का जीवन छात्रों के जीवन का सबसे प्यारा समय होता है । हॉस्टल में हम सब अनजान बनकर जाते है । किसी को भी नहीं जानते है पर बाद में एक परिवार बन जाते है । हॉस्टल में सब अलग-अलग जगह से आते है । हॉस्टल में सब एक दूसरे का ध्यान रहते है । परिवार की तरह रहते है । किसी को परिवार की याद नहीं आने देते है। आप सारी खुशियाँ एक साथ बांटते है । हॉस्टल में सबसे बड़ी बात, वह अनुशासन सीखते है । सभी मिलकर थोड़ी शरारतें भी करते है । हॉस्टल जीवन में जिसमें सभी छात्र मिलकर अपना जीवन ख़ुशी से व्यतीत करते है । यह हॉस्टल का समय जीवन में कभी वापिस नहीं आता है । यही जीवन के अच्छे लम्हे होते है, जो एक बार चले जाते है वापिस नहीं आते है । जीवन में हॉस्टल में बिताया हुआ समय सबसे खास होता है । सभी को हॉस्टल में बिताया हुआ समय हमेशा याद रहता है ।


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स्विच (Switch) एवं हब (Hub) में मुख्य अंतर इस प्रकार हैं…

  • स्विच (Switch) ओएसआई मॉडल की दूसरी लेयर यानि डाटा लिंक लेयर पर आधारित होता है, जबकि हब (Hub) ओएसआई मॉडल की पहली लेयर यानि फिजिकल लेयर पर आधारित होता है।
  • स्विच (Switch) मल्टीपल डिवाइस और पोर्ट (Port) को जोड़ने का काम करता है, जबकि हब (Hub) पर्सनल कंप्यूटर नेटवर्क को आपस में जोड़ने का काम करता है।
  • स्विच (Switch) में डाटा इलैक्ट्रिक संकेतों और बिट (Bit) के रूप में प्रोसेस किया जाता है, जबकि हब (Hub) में डाटा फ्रेम और पैकेट के रूप में प्रोसेस किया जाता है।
  • स्विच (Switch) एक निष्क्रिय उपकरण यानी पैसिव डिवाइस (Passive device) है, जो किसी भी तरह के सॉफ्टवेयर के बिना कार्य करता है। जबकि हब (Hub) निष्क्रिय उपकरण एक्टिव डिवाइस (Active device) है जो सॉफ्टवेयर नेटवर्क डिवाइस पर आधारित होकर कार्य करता है।
  • स्विच (Switch) हाप डुपलेक्स (half-duplex) होता है, जबकि हब (Hub) फुल डुपलेक्स (Full duplex) होता है।
  • स्विच (Switch) में सन सिस्टम (Sun system), ओरेकल (Oracle) तथा सिस्को (Cisco) द्वारा तैयार किया जाता है, जबकि हब (Hub) सिस्को (Cisco) तथा डी-लिंक जूनिपर (D-link Juniper) द्वारा तैयार किया जाता है ।

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ब्लूटूथ के उपयोग बताइये।

अपने छोटे भाई को पत्र लिखिए कि वह अपने स्कूल में सदा उपस्थित रहे और परीक्षा की भली-भाँति तैयारी करे।

अनौपचारिक पत्र

छोटे भाई को विद्यालय न जाने के संबंध में पत्र

 

दिनांक – 25 अप्रेल 2024

 

प्रिय लक्ष्मण
स्नेह !

मुझे यह जान कर बहुत दुःख हुआ कि तुम विद्यालय नियमित रूप से नहीं जा रहे हो । मुझे पता चला है कि आधी छुट्टी के पश्चात तुम कक्षाओं में उपस्थित नहीं होते और विद्यालय से भाग जाते हो । इसी कारण विद्यालय में तुम्हारी उपस्थिति जितनी आवश्यक है, उससे कम हो रही है।

कल मुझे तुम्हारी कक्षा अध्यापिका का पत्र मिला। जिसमें उन्होंने तुम्हारे सभी कार्यकलापों के विषय में लिखा है। उनके अनुसार आजकल तुम्हारा साथ भी कुछ ठीक नहीं है जो तुम्हें बिगाड़ रहा है। यह तुम्हारे जीवन का बहुत महत्त्वपूर्ण समय है। अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। अपना समय बर्बाद मत करो, नहीं तो तुम जीवन भर पछताओगे। अच्छे मित्र बनाओ, वे तुम्हें अच्छे रास्ते पर ले जाएंगे।

उम्मीद है, आगे मुझे अब कभी तुम्हारी शिकायत नहीं मिलेगी। तुम अपनी आदतों को सुधारोगे और नियमित रूप से कक्षाओं में जाओगे। अब तो तुम्हारी परीक्षाएं भी नजदीक आ रहीं हैं, इसलिए तुम अब अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगाओ। निरंतर अभ्यास से ही जीवन में स्थिरता आती है। संपूर्ण पाठ्यक्रम को एक बार दुहरा कर उसे लिखने का प्रयास करो । तुम्हारी मेहनत अवश्य रंग लाएगी।
शेष मिलने पर ।

तुम्हारा बड़ा भाई,
राम ।


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अपनी माताजी के धीरे-धीरे स्वस्थ होने का समाचार देते हुए अपने पिताजी को पत्र लिखिए। ​

आपकी बहन आई. ए. एस. की तैयारी शुरू कर रही है। शुभकामनाएँ देते हुए पत्र लिखें।

निम्न में से कौन ग्रामीण समाजशास्त्री नहीं है ? (i) टी. एल. स्मिथ (ii) बोगाईस (ii) ए. आर. देसाई (iv) जिम्मरमैन एण्ड गालपिन

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सही विकल्प होगा…

(ii) बोगाईस

स्पष्टीकरण :

निम्नलिखित में से बोगाईस (Bogais) एक  ग्रामीण समाजशास्त्री नहीं है। बाकी तीनों विकल्पों में दिए गए नाम ग्रामीण समाजशास्त्री हैं।

टी.एल. स्मिथ (T. L. Smith) प्रमुख ग्रामीण समाज शास्त्री थे, एक जिन्होंने ‘द सोशियोलॉजी आफ रूरल लाइफ’ (The Sociology of Rural life) नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने ग्रामीण ग्रामीण समाज के सामाजिक संबंधों को व्यवस्थित और सही अर्थों में प्रस्तुत किया है।

ए. आर. देसाई (A. R. Desai) भी एक प्रमुख ग्रामीण समाजशास्त्री थे। ए. आर. देसाई ने ‘रूरल सोशियोलॉजी इन इंडिया’ (Rural Sociology in India) नामक पुस्तक लिखी है, जिन्होंने जिसमें उन्होंने भारत के ग्रामीण समाज की व्याख्या की है।

जिम्मरमैन एण्ड गालपिन (Zimmerman and Galpin) भी एक प्रमुख ग्रामीण समाजशास्त्रील, जिन्होंने जिन्होंने ‘ए सिस्टमैटिक सोर्स बुक इन रूरल सोशियोलॉजी’ (A Systematic Source Book In Rural Sociology)  नामक पुस्तक लिखी।

बोगाईस (Bogais) एक समाजशास्त्री तो थे,  लेकिन वह ग्रामीण समाजशास्त्री नहीं थे, बल्कि वह मनो-समाजशास्त्री थे।

ग्रामीण समाजशास्त्र तात्पर्य उसे समाजशास्त्र है, जिसके अंतर्गत ग्रामीण जीवन की सामाजिक संरचना का अध्ययन किया जाता है। प्रमुख ग्रामीण समाजशास्त्रियों  जे. बी. चितांबर, डी. सेंडरसन, लोरी नेलसन  आदि के नाम प्रमुख है।


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निम्नांकित में से कौन एक ग्रामीण समाज की विशेषता हैं ? (i) द्वितीयक सम्बन्ध का प्रभुत्व (iii) प्रकृति से सीधा सम्बन्ध (ii) व्यक्तिवादिता (iv) पेशा की बहुलता ​

निम्नांकित में से कौन एक ग्रामीण समाज की विशेषता हैं ? (i) द्वितीयक सम्बन्ध का प्रभुत्व (iii) प्रकृति से सीधा सम्बन्ध (ii) व्यक्तिवादिता (iv) पेशा की बहुलता ​

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सही विकल्प होगा…

(iii) प्रकृति से सीधा सम्बन्ध

स्पष्टीकरण

निम्नलिखित में से प्रकृति से सीधा संबंध ग्रामीण समाज की विशेषता है। ग्रामीण समाज के लोग प्रकृति से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं। उनका प्रकृति से प्रत्यक्ष जुड़ाव होता है। उनकी जीवन शैली प्राकृतिक होती है। ग्रामीण समाज के लोग अधिकतर कृषि कार्यों में संलग्न होते हैं। कृषि कार्य में अधिक सलंग्नता उन्हें सीधे तौर पर प्रकृति से जोड़ती है।

ग्रामीण समाज में भौतिक साधनों की प्रचुरता नहीं होती। वहां पर प्रकृति से जुड़ी जीवन शैली को अधिक महत्व दिया जाता है, इसीलिए उपरोक्त में से ‘प्रकृति से सीधा संबंध ग्रामीण समाज की विशेषता है।

द्वितीयक संबंध का प्रभुत्व ग्रामीण समाज की विशेषता नहीं है। ये नगरीय समाज की विशेषता है।

व्यक्तिवादिता भी नगरीय समाज की विशेषता है, क्योंकि ग्रामीण मसाज सामुदायिक भावना पर कार्य करता है। ग्रामीण समाज में व्यक्तिवादिता नही होती है।

पेशा की बहुलता भी नगरीय समाज की विशेषता है। जहाँ पर अनेक पेशों की प्रचुरता होती है।


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खेल खेलने से भिन्न क्षमता वाले खिलाड़ियों के जीवन में परिवर्तन आना अच्छी बात है, कैसे?

सर्वर व होस्ट पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।

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सर्वर (Server) :

सर्वर से तात्पर्य एक विशाल कंप्यूटर से है, जो किसी भी कंप्यूटर नेटवर्क का सबसे प्रमुख केंद्रीय कंप्यूटर होता है। सर्वर का मुख्य कार्य अपने अंदर विशाल मात्रा में डाटा का संग्रहण करना, अन्य कंप्यूटरों से जुड़े रहना तथा पर उन सभी कंप्यूटर या दूसरी इंटरनेट डिवाइसों से रिक्वेस्ट प्राप्त करके उसकी मांगी गई सूचना को प्रोसेस करके उसे उपलब्ध कराना होता है। सर्वर किसी भी इंटरनेट नेटवर्क का मुख्य बिंदु होता है और सभी सूचनाओं को नियंत्रित करने का कार्य करता है। इंटरनेट पर हम जो कुछ एक्सेस करते हैं, वह सभी सूचना के रूप में सर्वर में ही संग्रहित होता है। सर्वर में ही बड़ी मात्रा में इंटरनेट पर उपलब्ध सारी वेबसाइट संग्रहित होती हैं और यूजर द्वारा एक रिक्वेस्ट किए जाने पर उन वेबसाइट से डाटा सर्वर के माध्यम से ही प्रोसेस होकर यूजर तक पहुंचता है।

होस्ट (Host)

एक तरह का रूट रूट कंप्यूटर होता है, जो नेटवर्क में स्थित सभी तरह के नोड या कंप्यूटर को विशिष्ट सेवाएं प्रदान करने का कार्य करता है। इसका प्रमुख कार्य वाइड एरिया नेटवर्क की सेवाओं को प्रदान करने के लिए नोड की रिक्वेस्ट का निष्पादन करना है। उपयोगकर्ता ईमेल मैसेंजर, फाइल ट्रांसफर प्रोटोकोल (FTP) आदि एप्लीकेशन का प्रयोग करता है, वह सब होस्ट के माध्यम से ही संचालित होते हैं।


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विभिन्न बेतार संचार माध्यमों के नाम बेतार संचार के अनेक माध्यम होते हैं ,जो विद्युत चुंबकीय तरंगों और युक्तियों के आधार पर प्रयोग में लाए जाते हैं।

अलग-अलग तरह के बेतार संचार माध्यमों के नाम इस प्रकार हैं…

· रेडियो तरंग (Radio wave)
· सूक्ष्म तरंग प्रसारण (Micro Wave Transmission),
· उपग्रह संचरण (Satellite Communication)
· इनफ्रारेड (Infrared)
· वाई-फाई (Wi-Fi)
· ब्लूटूथ (Bluetooth).

 

 

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राउटर का मुख्य कार्य अलग-अलग माध्यमों में प्रयोग होने वाले नेटवर्क को आपस में जोड़ने का होता है। राउटर संकेतों को परिष्कृत करता है और उन्हें आगे प्रेषित करता है। राउटर अपने से जुड़े सभी नेटवर्क से डाटा प्राप्त करता है तथा उसे आगे प्रेषित कर देता है। इस तरह राउटर का मुख्य कार्य किसी नेटवर्क में डाटा को ट्रांसमीटर से रिसीवर तक पहुंचाने का होता है।


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मेट्रोपॉलिटन एरिया नेटवर्क से तात्पर्य एक बड़े क्षेत्र में फैले हुए उस एरिया नेटवर्क से होता है, जिसकी इसकी भौगोलिक सीमा किसी महानगर, नगर अथवा कस्बे के संदर्भ में होती है। मेट्रोपॉलिटन एरिया नेटवर्क यानी मैन (MAN) लोकल एरिया नेटवर्क यानी लैन (LAN) का विस्तृत रूप है। जहाँ LAN किसी विशेष छोटे से क्षेत्र को संदर्भित करता है। वहीं MAN एक महानगर, बड़े नगर को संदर्भित करता है। मैन का मुख्य उद्देश्य किसी भी नगर के अलग-अलग क्षेत्रों में स्थित किसी को उपक्रम और संस्थान की अलग-अलग शाखाओं को आपस में जोड़ने का काम होता है। मेट्रोपॉलिटन एरिया सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर संसाधनों का मिलकर उपयोग करता है और इसका कार्यप्रणाली भी लैन की तरह ही होती है, लेकिन इसका नेटवर्क विशाल होता है। मेट्रोपॉलिटन एरिया नेटवर्क में शहर का सेलुलर नेटवर्क और केबल टीवी नेटवर्क आदि इसके उदाहरण हैं।


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माइक्रोवेब टॉवर अधिक ऊंचाई पर इसलिए लगाए जाते हैं, क्योंकि माइक्रोवेव टॉवर के माध्यम से जो माइक्रोवेब यानी माइक्रोवेब प्रसारित की जाती हैं, वह अपनी प्रकृति में सीधी रेखा में चलती है। टॉवरर अधिक ऊंचाई पर लगाने से इनके मार्ग में इमारत, पहाड़ आदि के रूप में कोई बाधा नहीं आती और यह सरलता से संचारित होती रहती हैं। यदि इन तरंगों के मार्ग में इमारतव या पड़ाड़ या अन्य कोई भौतिक के रूप में कोई बाधा आ जाए तो यह तिरंगे उसे पार नहीं कर सकती। इसीलिए तरंगों प्रेषट यानी ट्रांसमीटर एवं प्रात्तकरा यानी रिसीवर एक सीधी रेखा में संचारित हैं, बिना किसी बाधा के संचरण करें। इसलिए माइक्रेवेबस टावर ऊँचाई पर लगाये जाती हैं।


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बैकबोन से तात्पर्य एक उच्च बैंड विड्थ संयोजक से होता है, जिसे अंग्रेजी में High Band Width Link कहते हैं। एक बैकबोन में अनेक नोड एवं हब जोड़े जा सकते हैं। बैकबोन की के माध्यम से डाटा विशाल मात्रा में प्रोसेस हो सकता है। जब किसी बड़े संस्थान की इमारत में लोकल एरिया नेटवर्क जाया जाता है, तो बैकबोन के माध्यम से इस नेटवर्क को विस्तृत नेटवर्क बनाया जा सकता है। किन्ही दो नेटवर्क के बीच का जो सारा डाटा यातायात होता है, वह बैकबोन के माध्यम से ही गुजरता है।


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ब्लूटूथ ब्लूटूथ का सबसे मुख्य उपयोग डाटा का आदान प्रदान करना है। ब्लूटूथ एक ऐसी तकनीक है, जो रेडियो तरंगों के आधार पर कार्य करती है। ब्लूटूथ तकनीक में रेडियो तरंगों का प्रयोग करके अलग-अलग इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में को आपस में जोड़ा जाता है और यह डिवाइस से डाटा दूसरे डिवाइस में आदान प्रदान किया जा सकता है। ब्लूटूथ तकनीक का प्रयोग मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप, टैबलेट जैसे उपकरणों में किया जाता है। कंप्यूटर के माउस, कंप्यूटर के कीबोर्ड को कंप्यूटर से जोड़ने के लिए भी किया जाता है।


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पुनरावर्तक की आवश्यकता संचार व्यवस्था में क्यों पड़ी ? समझाओ।

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पुनरावर्तक यानी रिपीटर्स की आवश्यकता संचार में इसलिए पड़ी, क्योंकि हर प्रकार के संचरण माध्यम में जैसे-जैसे दूरी बढ़ती जाती है, वैसे वैसे ही संचार के संकेत यानी सिग्नल कमजोर होते जाते हैं। तब संकेतों को मजबूत बनाने की आवश्यकता पड़ती है ताकि वह प्राप्तकर्ता तक स्पष्ट पहुँच सकें। इसलिए इन संकेतों को मजबूत बनाने के लिए पुनारवर्तक यानि रिपीटर्स का प्रयोग किया जाता है। पुनरावर्तक यानि रिपीटर्स के माध्यम से संचार संकेत दूरी बढ़ने के साथ-साथ भी मजबूत बने रहते हैं, तथा आसानी एवं स्पष्टता के साथ प्राप्तकर्ता तक पहुंच जाते हैं। इसीलिए पुनरावर्तक की आवश्यकता संचार में पढ़ती है।


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पड़ोस में हुई अग्नि दुर्घटना पर अग्निशमन दल ने तुरंत कार्यवाही करके आग को फैलने से रोक लिया नगर के दमकल विभाग को प्रशंसा भरा ईमेल लिखिए ।

ईमेल लेखन

अग्निशमन दल को धन्यवाद हेतु ईमेल

 

To: fbshimla@firebrigadeindia.com

From: krishna17@gmail.com

विषय  : अग्निशमन दमकल को धन्यवाद

 

अग्निशमन दल के कर्मचारी बंधुओं ,

नमस्कार

मैं कृष्ण कुमार, गोकुल नगरी का स्थाई निवासी हूँ। बीती रात हमारे पड़ोस में अचानक आग लग गई थी। सभी लोगों ने उसे बुझाने की बहुत कोशिश की परंतु घर के अंदर रखे गैस सिलिन्डर के फट जाने के कारण आग और अधिक फैल गई।

कुछ लोग घर के अंदर फस गए थे और हम लोगों में से किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी घर के अंदर जाने की। ठीक उसी समय अग्निशमन दल के लोग पहुँच गए और उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना फौरन आग बुझाने का काम शुरू कर दिया।

वे घर के अंदर घुस गए और अपनी जान पर खेल कर लोगों की जान बचाई । कुछ दमकल अधिकारियों को चोटें भी लगी परंतु उन्होंने अपनी परवाह ना करते हुए हमारे जान माल का कोई नुकसान नहीं होने दिया। उनके द्वारा किए गए इस कार्य के लिए हम नगर वासी सदैव उनके आभारी रहेंगे । मैं उन सभी अग्निशमन दल के कर्मचारियों को कोटिशः धन्यवाद देता हूँ।

धन्यवाद सहित ।
कृष्ण कुमार,
गोकुल पुरी,
शिमला


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बैंक द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं और सेवाओं की पूछताछ करने के लिए बैंक अधिकारी को एक ईमेल लिखिए।

आप पिकनिक पर गए। दोस्त को ई-मेल करें। ई-मेल में उसे पिकनिक के बारे में बताते हुए लिखें।

ग्रीष्मावकाश गंगा के किनारे बिताने के संबंध में दो मित्रों के मध्य संवाद लिखिए।

संवाद

ग्रीष्मावकाश गंगा किनारे बिताने के संबंध दो मित्रों के मध्य संवाद

 

पहला मित्र ⦂ मित्र इस बार तुम ग्रीशमवकाश में कहाँ जा रहे हो।

दूसरा मित्र ⦂ मैं हरिद्वार जा रहा हूँ अपनी नानी के घर।

पहला मित्र ⦂ मित्र क्या तुम जानते हो कि भारत की सबसे प्रमुख नदी कौन सी है?

दूसरा मित्र ⦂ कौन सी है?

पहला मित्र ⦂ गंगा नदी भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है और यह हरिद्वार में है।

दूसरा मित्र ⦂ मैं जानता हूँ और यह सबसे अधिकतम गहराई वाली नदी भारत में पवित्र नदी भी मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ तथा देवी के रूप में की जाती है।

पहला मित्र ⦂ क्या तुम जानते हो गंगा नदी विश्व भर में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी जाती है । लम्बे समय से प्रचलित इसकी शुद्धीकरण की मान्यता का वैज्ञानिक आधार भी है।

दूसरा मित्र ⦂ हाँ मित्र, मेरे पिता जी नें मुझे बताया है कि वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं।

पहला मित्र ⦂ हाँ मित्र मैंने एक किताब में पढ़ा है कि गंगा नदी के जल में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की मात्रा को बनाए रखने की असाधारण क्षमता है, किन्तु इसका कारण अभी तक अज्ञात है।

दूसरा मित्र ⦂ मित्र, लेकिन गंगा के तट पर बसे औद्योगिक नगरों के नालों की गंदगी सीधे गंगा नदी में मिलने से प्रदूषण पिछले कई सालों से भारत सरकार और जनता के चिन्ता का विषय बना हुआ है।

पहला मित्र ⦂ हाँ मित्र, तुम सच कह रहे हो औद्योगिक कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरे की बहुतायत ने गंगा जल को बेहद प्रदूषित किया है।

दूसरा मित्र ⦂ सच कह रहे हो , अब तो गंगा का पानी ना तो स्नान करने योग्य है और ना ही पीने योग्य।

पहला मित्र ⦂ मित्र वैसे तो गंगा को राष्ट्रीय धरोहर भी घोषित कर दिया गया है और गंगा एक्शन प्लान व राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना लागू की गई हैं। हालाँकि इसकी सफलता पर प्रश्न चिह्न भी लगाये जाते रहे हैं।

पहला मित्र ⦂ सरकारी लालफीताशाही के कारण सारी योजनायें सफल नही हो पाती और कागज पर रह जाती हैं।

दूसरा मित्र ⦂ हाँ सही है।

पहला मित्र ⦂ पता नहीं हमारी गंगा कब तक साफ होगी।

दूसरा मित्र ⦂ मित्र वैसे तो प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गंगा नदी में प्रदूषण पर नियन्त्रण करने और इसकी सफाई का अभियान चलाया ।

पहला मित्र ⦂ क्या तुम जानते हो कि भारत में 2020 के लॉक डाउन होने का कारण गंगा के किनारे सभी फैक्टरी बंद रही थीं, जिस कारण उनका गंदा पानी गंगा में नहीं गया और गंगा का जल बहुत अधिक साफ हुआ था। पिछले दस वर्षों में पहली बार हर की पोड़ी में गंगा का पानी पीने के लायक बताया गया था।

दूसरा मित्र ⦂ हाँ मित्र, पर अब हमें इसे गंदा न होने देना होगा।


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बढ़ते हुए प्रदूषण पर क्या सावधानी की जाए। इस विषय पर माँ और बेटे के जो चर्चा हुई, उस पर संवाद लिखिए।

परीक्षा की समाप्ति पर छुट्टियों के उपयोग के बारे में दो मित्रों का पारस्परिक संवाद लिखिए।

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क्लाइंट (Client) या नोड (Node) से तात्पर्य किसी सर्वर (Server) यानि केंद्रीय कंप्यूटर से जुड़े उन सभी दूसरे कंप्यूटर से होता है, जो सर्वर (Server) से सूचनाएं प्राप्त करते हैं। सरल अर्थों में कहें तो उपयोगकर्ता (User) जिन कंप्यूटर पर कार्य करते हैं, वह क्लाइंट या नो़ड हैं। हर नोड का एक नाम और पता होता है। किसी उपयोगकर्ता द्वारा प्रयोग किए जाने वाला कोई भी कंप्यूटर डिवाइस या दूसरा कोई नेटवर्क डिवाइस जैसे कि टैबलेट या मोबाइल क्लाइंट अथवा नोड कहा जाता है। जब क्लाइंट या नोड पर कोई भी सूचना रिक्वेस्ट डाली जाती है तो वह इंटरनेट के माध्यम से सर्वर तक पहुँचती है और वहां से उस रिक्वेस्ट के अनुसार सूचना प्रोसेस होकर वापस नोड (क्लाइंट) तक आती है।


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क्रॉस-टॉक क्रॉस-टॉक (Cross Talk) से तात्पर्य उस स्थिति से है, जब नेटवर्किंग के लिए प्रयोग किए जाने वाले संचरण माध्यम ट्विस्टेड पेअर केबल, जिसमें दो अलग-अलग इंसुलेटेड (पृथक्कत्) और तांबे के तार लगे होते हैं जो एक दूसरे से कुंडलीनुमा स्थिति में लिपटे होते हैं। तारों को इस तरह लपेटने का मुख्य उद्देश्य विद्युत प्रतिरोध को कम करना होता है। इस तरह लिपटे दोनों तारों में विद्युत ऋण के एक दूसरे के विपरीत होने के कारण इनका वास्तविक प्रभाव कम हो जाता है। इस तरह की स्थिति को क्रॉस टॉक (Cross Talk) कहते हैं।


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चतुराई से हम किसी भी समस्या का समाधान कर सकते हैं। इस विषय पर अपने विचार कुछ पंक्तियों में लिखिए।

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कंप्यूटर – एक अनिवार्य आवश्यकता

 

आज का युग विज्ञान का युग है। मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति लिए सदैव नवीनतम आविष्कार करता आया है। आज मनुष्य समय और श्रम की बचत के साथ शुद्धता भी चाहता है। अत्यंत विकट समस्याओं को भी वह मशीनों द्वारा हल करना चाहता है। मनुष्य की इसी आवश्यकता के फलस्वरूप का आविष्कार हुआ।

आज के युग को यदि हम कंप्यूटर का युग कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसी युग की सबसे बड़ी उपलब्धि है कंप्यूटर। कंप्यूटर टेक्नोलॉजी जिसने मानव जीवन को बदल कर रख दिया है । इसके अलावा भी कंप्यूटर ने लगभग सभी क्षेत्रों में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है । शिक्षा, चिकित्सा, अंतरिक्ष, मनोरंजन, यातायात, संचार माध्यम सभी में कंप्यूटर अपनी उपयोगिता सिद्ध कर चूका है ।

मेडिकल के क्षेत्र में कंप्यूटर की मदद से काफी बीमारियों के उपचार में आसानी हो गई है। डॉक्टर नई-नई तकनीक इस्तेमाल करके आजकल मरीजों का इलाज़ बड़ी आसानी से कर देते हैं। किसी हॉस्पिटल और क्लीनिक में कम्प्यूटर का इस्तेमाल किसी भी बीमारी की जांच के लिए, रोगी के रिकॉर्ड, डॉक्टर की समय सारणी, नर्स आदि की जानकारी, दवाइयों की खरीद और बाकी के उपकरणों का सारा लेखा-जोखा रखने के काम में लेते हैं । मेडिकल लैबोरेटरी में तो सारा काम ही आजकल कंप्यूटर पर निर्भर करता है। मेडिकल रिसर्च के क्षेत्र में भी कम्प्यूटर का भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है।

संचार के क्षेत्र में जब से कंप्यूटर आया है तब से संचार के क्षेत्र में एक अद्भुत क्रांति सी आ गई है। अब हम ई-मेल के माध्यम से हजारों मील दूर बैठे अपने संबंधी अथवा मित्र को कोई भी सन्देश चंद सेकंडों में भेज या प्राप्त कर सकते हैं । इंटरनेट न केवल सूचनाओं के आदान-प्रदान को संभव बनाता है, बल्कि व्यक्ति को उसके निजी समय या अवकाश के अनुसार किसी भी नवीनतम जानकारी को हासिल करने का सुनहरा अवसर भी प्रदान करता है ।

यातायात के क्षेत्र में यातायात के क्षेत्र में भी कंप्यूटर की विशेष उपयोगिता है । ऑनलाइन टिकट प्रणाली, हवाई मार्गों का निर्धारण एवं नियंत्रण, छोटे-बड़े शहरों में लाइट सिग्नल प्रणाली आदि कंप्यूटर से ही चलाई जाती है ।

अंतरिक्ष अनुसन्धान में भारत की सबसे बड़ी अंतरिक्ष संस्था इसरो/ISRO और अमेरिका की सबसे बड़ी संस्था नासा/NASA कंप्यूटर तकनीक से ही अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में सबसे आगे है । वहीँ मौसम संबंधी जानकारी, भूकंप मापन, मुद्रण आदि में कंप्यूटर का विशेष योगदान है।

शिक्षा के क्षेत्र में कंप्यूटर के माध्यम से पठन-पाठन की क्रिया में बहुत सुधार हुआ है। आजकल ऐसी बहुत सारी ऑनलाइन शिक्षा देने वाली संस्थाएं है जो इंटरनेट के माध्यम से व्यक्ति को घर बैठे ज्ञान दे रही हैं। सबसे ज्यादा शिक्षा के क्षेत्र में कंप्यूटर का योगदान रहा है। आजकल लगभग सभी स्कूल और कालेजों में कंप्यूटर विषय को अनिवार्य कर दिया गया है।

आप किसी भी छोटे से गावं से लेकर किसी भी बड़े शहर में कंप्यूटर शिक्षा देने वाली संस्थाओं की बढ़ती संख्या से ही इस बात का अंदाज़ा लगा सकते हैं । कार्यालयों में कार्यालयों में कंप्यूटर के माध्यम से काम करना अत्यंत सरल एवं सहज हो गया है । अब कार्यालय संबंधी सभी महत्वपूर्ण आंकड़ों व तथ्यों को कंप्यूटर फाइल में सुरक्षित रखा जाता है, जिससे समय और जगह की काफी बचत होती है।

ऐसे अनेक काम हैं जिनमें कई व्यक्तियों की आवश्यकता होती थी, लेकिन अब वही काम एक कंप्यूटर के माध्यम से बहुत कम समय में ही संपन्न हो जाता है । यही कारण है कि अब प्रत्येक सरकारी तथा गैर-सरकारी कार्यालयों में कंप्यूटर का उपयोग अनिवार्य हो गया है । सभी व्यापारिक सूचनाएँ इसमें दर्ज होती हैं जिससे व्यापार करना सरल हो गया है ।

इस प्रकार हम देखते हैं कि आधुनिक युग में कंप्यूटर मानव जीवन के हर क्षेत्र में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल है । कंप्यूटर अपने शुरुआती दौर में अवश्य ही एक विशिष्ट जनसमूह तक सीमित था, लेकिन टेक्नोलॉजी में हुए अद्भुत विकास के कारण आज कंप्यूटर जन-जन तक अपनी पहुँच बना चुका है । आज कम्प्यूटर मानव जीवन की आवश्यकता बन गया है। आज के समय में कम्प्यूटर के बिना मानव का जीवन सुलभ नही होगा।


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हम अभी पूरी तरह से कर्मवीर नहीं बने हैं और हमें खुद को कर्मवीर बनाने के लिए कर्मनिष्ठ बनाना होगा । कर्मवीर बनने के लिए कर्म करने की आवश्यकता होती है। कर्मठ बनना पड़ता है। हमें समय का महत्व समझना होगा , परिश्रमी बना होगा तथा आलस्य को त्यागना होगा। मन, वचन एवं कर्म से एक रहना होगा ।

उपरोक्त कर्मवीर गुणों को अपने में उतारकर हम स्वयं को कर्मवीर बना सकते है । कर्मवीर बाधाओं से घबराते नहीं है वे भाग्य भरोसे नहीं रहते । कर्मवीर आज के कार्य को आज ही कर लेते है । वह भाग्य के भरोसे रहकर दुख नहीं भोगते और ना ही पछताते है । कर्मवीर अपने समय को व्यर्थ नहीं जाने देते है । वे मेहनत करने से जी नहीं चुराते है।वह काम से जी नहीं चुराते हैं । कर्मवीर कठिन–से-कठिन परिस्थितियों में भी कठिन कार्य कर दिखाते है । जिस कार्य को आरम्भ करते हैं, उसे पूरा करके ही छोड़ते है। कर्मवीर उलझनों के बीच में उत्साहित दिखते हैं। यदि हमारे अंदर ये सभी गुण आ जाएं तो हम भी कर्मवीर है।


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‘सत्य हरिश्चंद्र’ नाटक से हमें क्या सीख मिलती है?

प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरूँ, प्रेमी मिलै न कोइ। प्रेमी कूँ प्रेमी मिलै तब, सब विष अमृत होइ।। अर्थ बताएं।

‘सत्य हरिश्चंद्र’ नाटक से हमें क्या सीख मिलती है?

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‘सत्य हरिश्चंद्र’ नाटक से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में हमेशा सत्य का पालन करना चाहिए। ‘सत्य हरिश्चंद्र’ नाटक हमें सत्य के पालन करने की सीख देता है। यह हमें सत्य के मार्ग पर चलने की सीख देता है। इस नाटक के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में कैसी भी कठिन परिस्थितियां क्यों ना आ जाए, लेकिन हमें सत्य का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए। अंत में सत्य की ही विजय होती है यह बात भी इस नाटक के माध्यम से सीखने को मिलता है। ये नाटक हमें झूठ से दूर रहने की सीख देता है।

सत्य हरिश्चंद्र नाटक राजा हरिश्चंद्र के जीवन पर आधारित नाटक है। राजा हरिश्चंद्र सूर्यवंशी राजा थे, वह कभी भी झूठ नहीं बोलते थे। सत्य का पालन करने के लिए उन्होंने सब कुछ त्याग दिया। सत्य के मार्ग पर चलने के लिए उन्हे अपना राजपाट तक त्यागना पड़ा। यहाँ तक कि एक समय उन्हें अपनी पत्नी और पुत्र को भी त्यागना पड़ा। लेकिन उन्होंने सत्य का साथ नही छोड़ा। अंत में सत्य के मार्ग पर चलने का उन्हे अच्छा फल ही मिला और उन्हे अपना खोया हुआ सब कुछ वापस मिल गया।

इस तरह अंत में सत्य की ही विजय होती है। इसलिए सत्य का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।


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हमें वीरों से क्या सीखना चाहिए? (कविता – वीरों को प्रणाम)

प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरूँ, प्रेमी मिलै न कोइ। प्रेमी कूँ प्रेमी मिलै तब, सब विष अमृत होइ।। अर्थ बताएं।

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प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरूँ, प्रेमी मिलै न कोइ।
प्रेमी कूँ प्रेमी मिलै तब, सब विष अमृत होइ।।

भावार्थ : कबीर दास कहते हैं कि इस संसार में मैं ईश्वर के प्रेमी को ढूंढता फिर रहा हूँ। इतनी खोजबीन के बाद भी मुझे  मेरे जैसा ईश्वर प्रेमी नहीं मिला। कबीरदास कहते हैं कि यदि एक ईश्वर प्रेमी को दूसरा ईश्वर प्रेमी मिट जाए तो जब दोनों जो ईश्वर प्रेमी मिल जाते हैं तो सारे विषय वासनाएं मिट जातीं हैं और मैं सारे विषय वासनाएं मिटककर अमृत बन जाते हैं।

विशेष व्याख्या : कबीर दास ने इस साखी के माध्यम से ईश्वर भक्तों के सत्संग को स्पष्ट किया है उन्होंने कहा है कि यदि एक ईश्वर भक्ति को दूसरा ईश्वर भक्ति मिल जाए तो दोनों के सद्विचारों का संगम होकर उनके मन के विषय विकार भी मिट जाते हैं।

कबीर ये भी कहते हैं कि इस दुनिया में सच्चा ईश्वर भक्त मिलना बेहद कठिन है। लेकिन अगर एक ईश्वर भक्त को दूसरा ईश्वर भक्त मिल जाए तो फिर बात ही निराली है।


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चुप रहने के यारों, बड़े फायदे हैं, जुबाँ वक्त पर खोलना, सीख लीजे । भावार्थ बताएं?

“काव्य वो है जो हृदय में अलौकिक आनंद या चमत्कार की सृष्टि करे” ये परिभाषा किसने दी है​

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“काव्य वो है जो हृदय में अलौकिक आनंद या चमत्कार की सृष्टि करे” ये परिभाषा ‘डॉ. श्याम सुंदर दास’ ने दी है।

 डॉक्टर श्याम सुंदर दास हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक, शिक्षाविद और विद्वान थे, जिन्होंने काव्यशास्त्र और भाषा विज्ञान का गहन विवेचन करके अनेक सिद्धांत और कथन प्रतिपादित किए हैं।  उन्होंने हिंदी भाषा को समृद्ध बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

डॉक्टर श्यामसुंदर दास ने काव्यशास्त्र की व्याख्या करते हुए कहा था कि काव्य वह है, जो हिंदी में ‘काव्य वो है जो हृदय में अलौकिक आनंद या चमत्कार की सृष्टि करे’। उनकी हिंदी भाषा विज्ञान पर अच्छी पकड़ थी।

हिंदी के अनेक विद्वानों जैसे सभी मैथिली शरण गुप्त, महावीर प्रसाद द्विवेदी, डॉक्टर राधाकृष्णन आदि ने डॉक्टर श्यामसुंदर दास की विद्वता की परिभाषा देते हुए उनके भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

डॉक्टर श्याम सुंदर दास का जन्म 14 जुलाई 1875 को वाराणसी में हुआ था। उनका निधन 1945 ई में हुआ।


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‘बाबू गुलाब राय’ की रचना ‘मेरी असफलताएं’ किस विधा की रचना है?

रोहन के पिता सेना में कर्नल हैं। उनकी बहादुरी पर एक लघु कथा लिखिए।

लघुकथा

 

रोहन के पिताजी शमेशर सिंह गोरखा रैजिमेंट में कर्नल हैं और सन 1976 में वो उत्तर पूर्वी भारत में कार्यरत थे। एक रात तकरीबन 100 ख़ासी ट्राइब्स डाकुओं ने वहाँ के एक गाँव पर हमला कर दिया और लूट पाट करने लगे। उन्होंने लोगों  के घरों में घुस कर उनके कीमती समान निकाल लिए और उस झड़प में जो आगे आया, उसे मारने लगे ।

इसकी सूचना स्थानीय पुलिस को जब मिली तो उन्होंने जवाबी कार्रवाई की लेकिन इतने डाकुओं के आगे वो तिनका भर भी नहीं थे और जल्द ही स्थानीय पुलिस को भी उन्होने वहाँ से खदेड़ दिया।

इस दौरान 30 पुलिस वालों को उन डाकुओं ने मार गिराया। अब स्थिति नियंत्रण से बाहर थी और इसलिए अब सेना को मदद के लिए बुलाया गया। कर्नल शमशेर सिंह उस सेना की टुकड़ी की अगुवाई कर रहे थे।

उन्होंने वहाँ पहुँचते ही उन डाकुओं पर आक्रमण शुरू कर दिया और तकरीबन 60 डाकुओं को मार गिराया और 15 को अपने कब्जे में ले लिया । अब स्थिति खराब होते देख डाकू बोखला गए और उन्होंने एक घर में घुस कर वहाँ के परिवार को बंदी बना लिया। उस घर में एक बुजुर्ग और एक बच्ची थी। अब सेना के जवान भी असहाय थे क्योंकि अगर वह उन पर वार करते तो वह उन लोगों को मार भी सकते थे।
कर्नल शमशेर सिंह ने उन डाकुओं को बहुत समझने की कोशिश की लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थे और सेना को पीछे हटने को कह रहे थे।

अब रोहन के पिताजी ने एक योजना के तहत सारी सेना को पीछे हटने को कहा और खुद चुपके से घर के पीछे जाकर छुप गए। डाकुओं को जब लगा कि सेना वहाँ से चली गयी है वह निडर हो गए और वहाँ से बाहर निकालने लगे, तभी कर्नल शमशेर सिंह ने अचानक अकेले ही उन डाकुओं पर हमला कर दिया और अपनी जान की परवाह किए बिना उस घर के अंदर घुस कर उन डाकुओं पर गोलियां चलाने लगे।

तभी एक डाकू की गोली शमशेर सिंह जी के पाँव पर लगी और वह गिर पड़े । लेकिन इतने पर भी उन्होंने हार नहीं मानी और डाकुओं पर गोलियां बरसाते रहे और अंत में सभी डाकुओं को मार गिराया और उस घर में रह रहे दोनों लोगों की जान बचा ली । इस घटना में वह उनका दाहिना पैर जख्मी भी हुआ लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अंत तक उन डाकुओं का सामना करते रहे।

जिस धैर्य और वीरता से कर्नल शमशेर सिंह ने उन डाकुओं को मारा और लोगों की जान बचाई, उसके लिए सरकार द्वारा उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।


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यूनेस्को द्वारा दुर्गा पूजा को वैश्विक विरासत (World heritage) बनाने पर अपने विचार अनुच्छेद के रुप में लिखें ।

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अनुच्छेद लेखन

 

यूनेस्को द्वारा दुर्गा पूजा को विश्व विरासत का दर्जा दे जाना बेहद सराहनीय कदम है। इससे ना केवल भारत का गौरव बढ़ा बल्कि विश्व के लोगों को लोगों द्वारा भारतीय संस्कृति जाने का और अधिक अवसर मिला।

दुर्गा पूजा के विशेष भव्य रूप के कारण दिसंबर 2021 में यूनेस्को ने मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक की प्रतिनिधि सूची में कोलकाता की दुर्गा पूजा को दर्जा दिया था। दुर्गा पूजा बंगाल का गौरव है और यह बंगाल का बेहद लोकप्रिय सांस्कृतिक पर्व है। भले ही दुर्गा पूजा बंगाल में एक विशेष भव्य तरीके से मनाई जाती हो, लेकिन माँ दुर्गा की आरााधना नवरात्रि के रूप में भारत के हर हिस्से में की जाती है।

भारत के ऐसे अनेक त्योहार हैं जो विश्व विरासत की सांस्कृतिक सूची में स्थान पाने का अधिकार रखते हैं, जिनमें दिवाली, होली, ओणम, पोंगल, गरबा, गणपति, जन्माष्टमी, दशहरा अधिक उत्सव प्रमुख हैं।

भारत के इन सभी अद्भुत भव्य और सांस्कृतिक से समृद्ध त्योहारों को भी विश्व सांस्कृतिक विरासत की सूची में स्थान मिलना चाहिए ताकि त्योहारों का महत्व बढ़े और नई पीढ़ी अपने पारंपरिक त्यौहारों से और अधिक निकटता से जुड़ सके।


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दुर्गा पूजा पर 100 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखें।

भाव स्पष्ट कीजिए। व्याकुल व्यथा मिटानेवाली वह अपनी प्राकृत विश्रांति ।

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व्याकुल व्यथा मिटानेवाली वह अपनी प्राकृत विश्रांति।

भाव : ‘सुभद्रा कुमारी द्वारा’ रचित मेरा बचपन नामक कविता की इन पंक्तियों का भाव यह है कि कवयित्री अपने बचपन को याद करते हुए बचपन के लौट आने की कामना कर रही है।

कवयित्री चाहती है, कि वह सुहाना बचपन वापस लौट आए, जिससे कवयित्री के बेचैन मन को शांति मिले। बचपन के दिन सभी के लिए सुहाने होते हैं। बचपन बीत जाने के बाद बड़े होने पर जीवन के संघर्षों से सामना करना पड़ता है और तब जीवन में बेचैनी व तनाव आदि उत्पन्न हो जाते है। ऐसी स्थिति में उस सुहाने बचपन की याद सबको आती है, जब जीवन के यह तनाव, बेचैनी आदि कुछ नहीं होते थे।

इसीलिए कवयित्री भी अपने उसी सुहाने बचपन को याद कर रही है और चाहती है कि उसका वह सुहाना बचपन वापस लौट आए और उसके जीवन की बेचैनी मिटे।


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सर्वधर्म समभाव पर अपने विचार लिखिए।

सरसों की फसल से वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ा है । (पाठ – ग्राम श्री )

बीकानेर में डेंगू रोग के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए बीकानेर की महापौर को निवारण हेतु पत्र लिखिए।

औपचारिक पत्र

बीकानेर के महापौर को पत्र

 

दिनांक – 16/4/2024

सोमेश राठौर,
ग्रीन अपार्टमेंट,
बीकानेर, राजस्थान,

सेवा में,
श्रीमान महापौर,
नगरपालिका,
बीकानेर (राजस्थान)

विषय: डेंगू रोग के बढ़ते प्रकोप के विषय में

 

महोदय,
मैं, सोमेश राठौर, ग्रीन अपार्टमेंट , बीकानेर का स्थायी निवासी हूँ । महोदय, इस पत्र के माध्यम से मैं आपको हमारे क्षेत्र में बढ़ते डेंगू के बढ़ते प्रकोप के बारे में बताना चाहता हूँ ।

महोदय, जैसे कि आप जानते हैं कि इस बार बरसात पिछले वर्षों के मुक़ाबले अधिक हुई है। बरसात के कारण क्षेत्र की सड़कों में अनेक बड़े बड़े गड्ढे हो गए हैं और बरसात का पानी उन में इकट्ठा हो गया है और उस कारण हमारे क्षेत्र में मच्छरों का प्रकोप बहुत बढ़ गया है और मच्छरों के कारण ही डेंगू का प्रकोप बढ़ता जा रहा है।

इस बारे में हम सभी बीकानेर निवासियों ने लोक निर्माण विभाग अधिकारियों से भी बात की थी और उन्हें अपनी समस्या से अवगत करवाया था और उनसे अनुरोध किया था कि कृपया इन गड्ढों को भरवाया जाए ताकि गंदा पानी इकट्ठा न हो सके, जिससे मच्छर भी वहाँ नहीं होंगे । लेकिन उन्होंने हमें यह कह कर टाल दिया कि आपका यह क्षेत्र तो नगर पालिका के अधीन आता है, इसलिए यह काम नगर पालिका ही करवाएगी ।

श्रीमान जी, इन मच्छरों के कारण पिछले 10 दिनों में 30-35 लोग डेंगू से संक्रमित हो चुके हैं । इसके अलावा, हमारे क्षेत्र के साथ बनाए गए पार्क में भी बरसात के कारण हरी घास बहुत बड़ी-बड़ी हो गई है जो मच्छरों के प्रकोप का एक और मुख्य कारण है ।

कृपया हमें मच्छरों के प्रकोप से बचाने के लिए सड़क के गड्ढों को ठीक करवाने और आस पास के क्षेत्रों की बढ़ी हुई हरी घास को कटवाने की कृपा करें । इस संदर्भ में हम लोगों से जो भी मदद की आवश्यकता होगी, वो हम ज़रूर करेंगे । हमें पूर्ण आशा है कि आप हमारी समस्या को अपने संज्ञान में लेंगे और इस बावत तुरंत कार्यवाही करने के लिए संबन्धित अधिकारियों को उचित निर्देश देंगे ।

प्रार्थी,
सोमेश राठौर


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विद्यालय छोड़ने का प्रमाण पत्र लेने के लिए प्रधानाचार्य को पत्र लिखें।

पूर्वी रेलवे के उप महाप्रबंधक को एक शिकायती पत्र लिखते हुए बताइए कि किस प्रकार की अव्यवस्था एवं गन्दगी आपको कोलकाता रेलवे स्टेशन पर देखने को मिली और स्टेशन मास्टर से शिकायत करने पर भी आपकी बात नही सुनी गई।

बढ़ते हुए प्रदूषण पर क्या सावधानी की जाए। इस विषय पर माँ और बेटे के जो चर्चा हुई, उस पर संवाद लिखिए।

संवाद लेखन

प्रदूषण पर माँ-बेटे के बीच संवाद

 

माँ ⦂ (खिड़की बंद करते हुए) बेटा क्या तुम बता सकते हो यह जो बाहर दूर–दूर तक धुंध दिखाई दे रही है यह क्या है ?

बेटा ⦂ हाँ, यह धुंध ठंड के कारण पढ़ रही है।

माँ ⦂ बेटा यह सिर्फ सर्दी के कारण नहीं है बल्कि वातावरण में फैले इस प्रदूषण के कारण है।

बेटा ⦂ हाँ माँ हमारे चारों ओर प्रदूषण है, पानी में प्रदूषण, वायु में प्रदूषण कहीं आवाज़ का प्रदूषण, नदी नालों में प्रदूषण। हमारे चारों ओर प्रदूषण ही प्रदूषण है।

माँ ⦂ हाँ बेटा, तुमने बिल्कुल सच कहा पर क्या तुम जानते हो इसका क्या कारण है ?

बेटा ⦂ नहीं माँ, मैंने तो ऐसा कभी भी नहीं सोचा।

माँ ⦂ यह प्रदूषण कहीं ओर से नहीं आया है हमने ही इसे पैदा किया है।

बेटा ⦂ (बड़ी हैरानी से) वह कैसे माँ ?

माँ ⦂ हवा में प्रदूषण का कारण है जो कारखानों से निकलने वाला धुआँ हमारे वाहनों से निकलने वाला धुआँ और जब प्लास्टिक को जलाया जाता है तो उससे निकलने वाला धुआँ बहुत ही ज़हरीला होता है। आजकल लोगों को अधिकतर साँस की बीमारियाँ होने का कारण यही है।

बेटा ⦂ माँ जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण का क्या कारण है ?

माँ ⦂ बेटा जब हम अपने मवेशियों को नदियों में नहलाते हैं तो उस कारण भी जल प्रदूषण होता है, नदियों के किनारे कपड़े धोने और कारखानों से जो रसायन निकलता है उसे नदियों में निष्कासित कर दिया जाता है उसके कारण जल प्रदूषण होता है और इसके कारण हमें पेट की बीमारियाँ हो जाती है। ध्वनि प्रदूषण गाड़ियों के शोर से बड़े–बड़े लाउड स्पीकर लगाने से ध्वनि प्रदूषण होता है और इसके कारण हमें ऊंचा सुनने की बीमारी हो जाती है।

बेटा ⦂ हम ऐसा क्या कर सकते हैं जिस कारण प्रदूषण को होने से रोका जा सके ?

माँ ⦂ बेटा हमें ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाने चाहिए ताकि वायु प्रदूषण को कम किया जा सके | जल प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार को भी उचित कदम उठाने होंगे और हमें खुले मैं शौच जाना, नदियों में कूड़ा फेंकने और मवेशियों को नहलाना और कपड़े धोना आदि बंद करना होगा तभी जल प्रदूषण कम होगा ।  बिना वजह के हॉर्न ना बजे लाउड स्पीकर का इस्तेमाल कम से कम करें।

माँ ⦂ तो अब तुम क्या करोगे ?

बेटा ⦂ सबसे पहले तो मैं यह कोशिश करूंगा कि प्रदूषण करने से कैसे बचूँ और साथ ही साथ अपने दोस्तों को भी प्रदूषण ना करने के बारे में बताऊँगा और सब को प्रदूषण से होने वाले नुकसान के बारे में बताऊँगा।

माँ ⦂ शाबाश ! बेटा।


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परीक्षा की समाप्ति पर छुट्टियों के उपयोग के बारे में दो मित्रों का पारस्परिक संवाद लिखिए।

12वीं की परीक्षा की समाप्ति के बाद भविष्य में पढ़ाई के संबंध में पिता और पुत्र के बीच हुए संवाद को लिखें।

परीक्षा की समाप्ति पर छुट्टियों के उपयोग के बारे में दो मित्रों का पारस्परिक संवाद लिखिए।

संवाद लेखन

परीक्षा के बाद छुट्टियों के सदुपयोग के विषय में संवाद

 

पहला मित्र ⦂ कैसे हो श्याम और तुम्हारी परीक्षा कैसी रही ?

दूसरा मित्र ⦂ मेरे सारे पेपर तो ठीक रहे लेकिन गणित का पेपर ठीक नहीं हुआ। सिर्फ पास होने लायक नंबर आ ही जाएंगे और तुम बताओ तुम्हारे पेपर कैसे हुए ?

पहला मित्र ⦂ विज्ञान का पेपर छोड़ कर सभी ठीक रहे।

दूसरा मित्र ⦂ अब छुट्टियाँ शुरू हो रही है , तुम इन छुट्टियों में क्या करने वाले हो।

पहला मित्र ⦂ मैं जानता हूँ कि इस बार अर्द्धवार्षिक परीक्षा के अंक अच्छे नहीं आएंगे। इसलिए मैंने अपने मामा के घर जाने का फैसला किया है।

दूसरा मित्र ⦂ मामा के घर क्यों जा रहे हो ?

पहला मित्र ⦂ मेरे मामा जी विज्ञान के अध्यापक हैं , मैं उनके पास जाकर विज्ञान की पढ़ाई करूंगा।

दूसरा मित्र ⦂ मैंने भी फैसला किया है कि मैं गणित की ट्यूशन लूँगा। नहीं तो गणित में पास होना बहुत ही मुश्किल है।

पहला मित्र ⦂ हम ने बोर्ड की परीक्षा की तैयारी ठीक से नहीं की थी।

दूसरा मित्र ⦂ ठीक कहा तुमने अब हमें बहुत अच्छे से तैयारी करनी होगी।

पहला मित्र ⦂ सही कह रहे हो मित्र।


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12वीं की परीक्षा की समाप्ति के बाद भविष्य में पढ़ाई के संबंध में पिता और पुत्र के बीच हुए संवाद को लिखें।

कल्पना कीजिए कि आप दिल्ली निवासी है, आपका नाम सोनिया है। सिक्किम निवासी अपनी मित्र रजनी को दिल्ली के प्रमुख दर्शनीय स्थलों के बारे में बताना चाहती हैं। आप दोनों के बीच हुए संवाद को लिखें।

‘रिक्त तूणीर हुए’ से क्या आशय है? (उनको प्रणाम कविता)

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‘रिक्त तूणीर हुए’ से आशय युद्ध भूमि में सैनिकों के पास से हथियार खत्म हो जाने से है। ‘तूणीर’ अर्थ तरकश होता है। तरकश वह होता है जिसमें सैनिक अपने तीर रखते हैं। युद्ध भूमि में जो सैनिक युद्ध के मोर्चे पर शत्रुओ से युद्ध करने गए हैं और युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है लेकिन उससे पहले ही उनके तरकश के तीर खत्म हो चुके हैं।

यहां पर तरकश और तीर से तात्पर्य युद्ध भूमि में हथियारों से है। प्राचीन युद्ध संदर्भ में इन्हें तीर कहा जा सकता है। आधुनिक संदर्भ में सैनिकों के पास हथियार खत्म हो चुके हैं। युद्ध भूमि में युद्ध समाप्त होने से पहले ही सैनिक हथियार विहीन हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में उनकी पराजय और उनके जीवन को संकट उत्पन्न हो गया है।

कवि नागार्जुन ऐसे वीरों को भी प्रणाम कर रहे हैं, क्योंकि भले ही युद्ध समाप्ति से पहले उनके तरकश के तीर खत्म हो गए अर्थात उनके हथियार खत्म हो गए लेकिन पूरे साहस के साथ उन्होंने तब तक युद्ध लड़ा, जब तक उनके पास हथियार रहे। कवि उनके साहस के प्रणाम कर रहे हैं।

‘उनको प्रणाम’ कविता में कवि ‘नागार्जुन’ ने छोटे-छोटे पदों के माध्यम से अलग-अलग क्षेत्र में असफल हुए उन सभी व्यक्तियों को प्रणाम किया है, जिन्होंने अपने अलग-अलग लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास किए। भले ही वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सके।


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सागर पार करने की इच्छा मन में ही क्यों रह गई? (‘उनको प्रणाम’ कविता)

सागर पार करने की इच्छा मन में ही क्यों रह गई? (‘उनको प्रणाम’ कविता)

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सागर पार करने की इच्छा मन में ही इसलिए रह गई क्योंकि  वे लोग छोटी सी नाव लेकर सागर पार करने की इच्छा लेकर निकले थे। छोटी सी नौका के द्वारा विशाल सागर को पर नहीं किया जा सकता। बड़े-बड़े कार्यो को सिद्ध करने के लिए बड़े-बड़े हौसले और बड़ी-बड़ी योजनाओं और साधनों की आवश्यकता होती है। विशाल सागर के सामने उनकी नौका बहुत छोटी थी। इस नौका से सागर को पार नही किया जा सकता था।  यही कारण था कि सागर को पार करने की उनकी इच्छा मन में ही रह गई और वे बीच सागर में विलीन हो गए।

हालाँकि उनके प्रयास को सराहा जा सकता है क्योंकि उन्होंने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कम से कम प्रयास तो किया। भले ही वह अपने लक्ष्य को पा नहीं सके।

‘उनको प्रणाम’ कविता में कवि नागार्जुन ऐसे लोगो को प्रणाम करते हैं जो अपने लक्ष्यों को जीवन में पा नहीं सके। अपने लक्ष्य की प्राप्ति में वह असफल हो गए और लक्ष्यों को पाने की कोशिश में वह रास्ते में ही खत्म हो गए।

फिर भी कवि ऐसे लोगो को प्रणाम करते हैं क्योकि कवि के अनुसार ऐसे लोगों ने कम से कम प्रयास को तो किया। भले ही वह अपने लक्ष्य को पा नही सके और असफल हो गए लेकिन उनके प्रयास तो किया। कवि ऐसे लोगों की कर्मठता को प्रणाम करते हैं।


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‘जिनकी सेवाएं अतुलनीय , पर विज्ञापन से दूर रहे, प्रतिकूल परिस्थितियों ने जिनके, कर दिये मनोरथ चूर चूर।’ उदाहरण देते हुए उपयुक्त पंक्तियों की व्याख्या कीजिए।

इसकी छाया में रंग गहरा किसलिए और क्यों कहा गया है​?

आप सीमा पर तैनात सैनिक नहीं हो है, परंतु फिर भी आप देश की सेवा कर सकते हैं, कैसे?​

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हम सीमा पर तैनात सैनिक नहीं है, फिर भी हम अपने देश की सेवा कर सकते हैं। देश की सेवा करने के लिए ना ही सैनिक बनना जरूरी है और ना ही सैनिक बनकर देश की सीमा पर तैनात होना आवश्यक है।

इस बात को कहने का यह मतलब ये नहीं है कि सीमा पर तैनात सैनिक देश की सेवा नहीं करते। वह तो देश की तन-मन से सेवा करते ही हैं और देश की सीमा की रक्षा के लिए सजग प्रहरी के रूप में खड़े रहते हैं। यहाँ पर कहने के तात्पर्य ये है कि सैनिक बनकर सुरक्षा के लिए देश की सीमा पर तैनात होना देश सेवा का ही एक तरीका है।

इसी तरह देश सेवा करने के लिए कई तरह के तरीके हैं। एक खिलाड़ी भी देश के लिए पद जीतकर देश का नाम ऊँचा करके देश की सेवा ही करता है। एक वैज्ञानिक भी अपने शोध और आविष्कारों द्वारा देश की सेवा ही करता है। इस तरह अलग-अलग क्षेत्रों के लोग अपने विशिष्ट क्षेत्र में अपना योगदान देकर देश की सेवा कर सकते हैं।

देश की सेवा करने के लिए सैनिक बनना ही आवश्यक नहीं हम एक सच्चा और आदर्श नागरिक बनकर भी अपने देश की सेवा कर सकते हैं।

देश सेवा करने का तात्पर्य यह है कि हम अपने देश के लिए ऐसा कार्य करें जिससे हमारे देश का नाम ऊंचा हो, हमारा देश विकास के पथ पर तीव्र गति से दौड़े, हमारे देश का किसी भी दृष्टि से नुकसान ना हो, हमारे देश की सुरक्षा से खिलवाड़ न हो।

सैनिक ना रहते हुए भी हम अपने देश की सेवा कर सकते हैं, उसके लिए निम्नलिखित तरीके हो सकते हैं…

  • देश का ईमानदार नागरिक बनते हुए अपनी जिम्मेदारी निभाएं।
  • देश में सरकार द्वारा जो भी योग्य टैक्स है, उन्हें सही समय पर चुकाएं। जिससे देश का आर्थिक नुकसान ना हो। टैक्स चोरी करने की कोशिश कभी भी ना करें।
  • देश के संविधान में लिखित सभी कानूनों का उचित पालन करें। कोई भी गैरकानूनी कार्य न करें।
  • देश की जो भी सार्वजनिक संपत्ति है, उसे किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाएं। किसी भी आंदोलन या हड़ताल आदि में हिस्सा लेते समय उग्र होकर देश की सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान ना पहुंचाएं।
  • यदि रेल में यात्रा करें तो रेल के समान के साथ छेड़छाड़ ना करें। ना ही किसी अन्य सार्वजनिक परिवहन के साधन के साथ छेड़छाड़ करें।
  • ना तो भ्रष्टाचार करने की कोशिश करें और ना ही किसी भ्रष्टाचारी का साथ दें। यदि कोई सरकारी अधिकारी रिश्वत मांग रहा है तो उसे किसी भी तरह के रिश्वत देने की कोशिश ना करें और रिश्वत मांगने पर उसकी शिकायत करें।
  • अपने देश की भाषा, संस्कृति, संविधान सभी का सम्मान करें।
  • देश के सभी नागरिकों के साथ प्रेम एवं सौहार्द से रहें। धर्म जाति के आधार पर किसी के साथ भेदभाव ना करें।
  • देश चुनावी प्रक्रिया में भी ईमानदारी से अपनी भागीदारी करें और योग्य एवं उचित प्रतिनिधि चुने ताकि देश में एक स्वस्थ और ईमानदार सरकार बने।

इस तरह के उपाय अपनाकर एक सच्चा और देशभक्त नागरिक होने का प्रमाण दे सकते हैं। यह भी देश सेवा का एक अलग रूप है।


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मेक इन इंडिया अभियान को सफल बनाने हेतु प्रधानमंत्री की ओर से एक संदेश।

तुम अपने देश की सेवा कैसे करोगे ?​अपने विचार लिखो।

‘सुआटा’ किस प्रकार का लोकगीत है- (क) ऋतुगीत (ख) श्रम गीत (ग) धार्मिक गीत (घ) संस्कार गीत

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सही उत्तर है…

(ग) धार्मिक गीत

विस्तृत विवरण

‘सुआटा’ लोकगीत एक धार्मिक लोकगीत है। ‘सुआटा’ लोकगीत बुंदेलखंड की लोक संस्कृति का एक बेहद प्रमुख धार्मिक लोकगीत है।  इस लोकगीत को ‘नौरता’ भी कहा जाता है, क्योंकि ये नवरात्रि में आयोजित किया जाता है।

सुआटा लोकगीत बुंदेलखंड में कुंवारी कन्याओं द्वारा खेला जाने वाला एक अनुष्ठानात्मक खेल है। यह नवरात्रि के दिनों में 9 दिनों तक चलता है। यह नवरात्रि में अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होकर आश्विन शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि तक 9 दिनों तक आयोजित किया जाता है।

इस धार्मिक लोकगीत और खेल रूपी आयोजन का सबसे प्रमुख पात्र ‘सुआटा’ नाम की स्त्री ही होती है, इसी कारण लोकगीत को ‘सुआटा’ कहा जाता है। इस ‘नौरता’ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह नवरात्रि में ही खेला जाता है।

बुंदेलखंड में आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को स्कंद माता की पूजा आयोजित की जाती थी। नवरात्रि में ही कुंवारी कन्याओं द्वारा गौरी माता की पूजा की जाती थी। बाद में बुंदेलखंड में इन दोनों पूजा उत्सव को मिलाकर एक कर दिया गया और पूरा आयोजन सुआटा या नौरता के नाम से जाना जाने लगा।

सुआटा लोकगीत जो कि आख्यानात्मक खेल है, इसमें प्राचीन धार्मिक लोककथा को आधार मानकर तथा लोकगीत के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। कथा की पृष्ठभूमि दानव या राक्षस से संबंधित होती है। प्राचीन काल में वह कुआंरी कन्याओं को बहुत सताता था और उनका अपहरण कर लेता था या उन्हे पकड़कर खा जाता था। इसी कारण अपनी कन्याओं ने राक्षस से अपनी रक्षा के लिए देवी माँ गौरी की आराधना की। माँ गौरी ने प्रसन्न होकर उस राक्षस का वध किया। तभी से बुंदेलखंड में इस धार्मिक लोकगीत का प्रचलन चल पड़ा।


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महाराज छत्रसाल ने अपने घोड़े का स्मारक क्यों बनाया?

सुप्रिया कौन थी? उसने महात्मा बुद्ध से क्या कहा था?​

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सुप्रिया तथागत यानि महात्मा अनाथपिंडत की पुत्री थी, उसने महात्मा बुद्ध से कहा था कि “यह तुच्छ का सेविका आपकी आज्ञा का पालन करेगी। मैं नगर के हर आँगन में अनाज पहुंचाने का भार लेती हूँ।”

सुप्रिया द्वारा तथागत यानि महात्मा बुद्ध को दिए गए इस वचन को सुनकर आसपास के सेठों ने सुप्रिया से कहा कि खुद को तो दाने-दाने का अभाव है, फिर इतना बड़ा काम अपने सिर पर कैसे ले रही है? तेरे घर में क्या अन्न के भंडार भरे पड़े हैं?

यह प्रसंग उस समय का है, जब नगर में भयंकर अकाल पड़ा था। नगर की प्रजा अन्न के दाने-दाने को तरस गई। तब महात्मा बुद्ध से प्रजा का दुख देखा नहीं गया।  महात्मा बुद्ध ने नगर के संपन्न लोगों को बुलाकर उनके सामने प्रश्न किया और बोले, ‘प्रियजनों! भूखी प्रजा को अन्न देने के लिए तुम सब में कौन-कौन तैयार है?

यह सुनकर नगर के बड़े-बड़े सेठों में कोई आगे नहीं आया। नगर के बड़े सेठ रत्नाकर सेठ ने भगवान बुद्ध के सामने हाथ जोड़ लिया और कहा,  ‘भगवन! नगर के हर प्राणी तक अन्न पहुंचाना मेरे वश की बात नहीं है।’ अन्य सेठों ने भी ऐसे ही कुछ बहाने बनाए।

तब तथागत के शिष्य अनाथपिंडत की पुत्री सुप्रिया जो वहीं पर थी, उसने महात्मा बुद्ध के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उनके द्वारा दी गई जिम्मेदारी को अपने सिर पर लिया और कहा कि वह नगर के हर प्राणी, नगर के हर आंगन में अनाज पहुँचाने का भार लेती है।

उसकी इस सेवा भावना को देखकर महात्मा बुद्ध ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, तथास्तु, तुम्हारा कार्य पूरा हो।


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‘माँ का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा होता है।’ इस कथन के आधार अपनी माँ के गुणों को बताएं।

किसी एक राजकीय नेता का साक्षात्कार लेने के लिए एक प्रश्नावली तैयार कीजिए?

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किसी राजकीय नेता का साक्षात्कार लेने के लिए प्रश्नावली इस प्रकार होगी :

प्रश्न-1 ⦂ आपको राजनीति में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

प्रश्न-2 ⦂ आपने अपनी शिक्षा कहां तक प्राप्त की है?

प्रश्न-3 ⦂ देश की राजनीतिक स्थिति के बारे में आप क्या सोचते हैं?

प्रश्न-4 ⦂ देश के भविष्य के बारे में आपके क्या विचार हैं?

प्रश्न-5 ⦂ आपको क्या लगता है, लोकतंत्र की दृष्टि से हमारा देश विश्व में कहाँ पर खड़ा है? प्रश्न-6 ⦂ क्या हमारा देश विश्व को एक नई दिशा दे सकता है?

प्रश्न-7 ⦂ क्या हमारे देश में लोकतंत्र अपने सही स्वरूप में कार्य कर रहा है?

प्रश्न-8 ⦂  देश में सबसे अधिक 5 मूलभूत समस्याएँ आपकी दृष्टि में कौन-कौन सी हैं?

प्रश्न-9 ⦂ देश में फैले भ्रष्टाचार के संबंध में आपकी क्या राय है? इसका खात्मा कैसे हो?

प्रश्न-10 ⦂ देश में बढ़ रही धार्मिक कट्टरता के विषय में आपके क्या विचार हैं?

प्रश्न-11 ⦂ देश की युवा पीढ़ी के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे?


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किसी खिलाड़ी का साक्षात्कार लिखें।

मोबाइल हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। मोबाइल के अनेक उपयोग हैं, उसके अनेक फायदे है। मोबाइल के उपयोग और फायदों के बारे में लिखिए।

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हम सभी जानते हैं कि मोबाइल हम सब की जिंदगी का एक जरूरी उपकरण बन चुका है।  आज हर किसी के हाथ में मोबाइल है। बिना मोबाइल के अब जिंदगी की कल्पना भी नही की जा सकती है। जहाँ मोबाइल के द्वारा अनेक तरह के नुकसानों और उसके नकारात्मक प्रभावों की चर्चा होती है, वहीं मोबाइल के अनेक फायदे भी है। ये हमारे लिए अनेक तरह से एक उपयोगी उपकरण बना है।

मोबाइल के अनेक उपयोग और इसके अनेक फायदे हैं जो इस प्रकार हैं…

  • मोबाइल फोन का उपयोग कर हम एक दूसरे से बातचीत कर सकते हैं। इस आधुनिक युग में हम हजारों किलोमीटर दूर बैठे किसी व्यक्ति से फोन पर बातें कर सकते हैं ये अपने आप में एक बहुत बड़ी बात हैं और सबसे बड़ी बात ये है की इन मोबाइल फ़ोन में कोई तार भी नहीं लगे रहते हैं।
  • आज मोबाइल फोन सिर्फ मोबाइल फोन नहीं रहा है। उसमें बहुत सारे फीचर आ चुके हैं जिनके जरिए हम अपनी जिंदगी को सुविधाजनक बना सकते हैं। आज मोबाइल फोन में सोशल साइट, जीमेल, व्हाट्सएप आदि का उपयोग करके हम अपने दोस्तों से चैट कर सकते हैं। उन्हें अपने मोबाइल के द्वारा मैसेज भेज सकते हैं और तो और हम उन्हें लाइव देख-सुन भी सकते हैं। इस तरह मोबाइल फोन के ये फीचर हमारे लिए बड़े ही उपयोगी साबित हुए हैं।
  • आज के जमाने में मोबाइल फोन में पूरी दुनिया समाई हुई है। यानि मोबाइल फोन में हम इंटरनेट चला सकते हैं। पहले इंटरनेट हम सिर्फ कंप्यूटर में चला सकते थे लेकिन बदलते जमाने में मोबाइल फोन में ही इंटरनेट उपलब्ध है। हम इंटरनेट के जरिए किसी भी जगह का पता लगा सकते हैं। किसी भी प्रकार की जानकारी इंटरनेट के जरिए तुरंत पा सकते हैं। हम इंटरनेट के द्वारा पढ़ाई भी कर सकते हैं। किसी भी प्रकार का अगर हमारे मन में सवाल हो तो इंटरनेट हमें उसका जवाब तुरंत दे सकता है।
  • आज मोबाइल में उपलब्ध इंटरनेट में पूरी दुनिया समाई हुई है। हम इंटरनेट के जरिए घर पर बैठे-बैठे ही विदेशों के लोगों से भी बातचीत कर सकते हैं। उनके हाल चाल पूछकर दूसरे देशों के बारे में जानकारी भी ले सकते हैं और इतना ही नहीं मोबाइल के द्वारा घर बैठे इंटरनेट के जरिए हम कुछ पैसे भी कमा सकते हैं।
  • मोबाइल फोन पढ़ाई करने में भी बहुत मदद करता है, जैसे हम किसी विषय की पढ़ाई कर रहे हैं और हमारे विषय से संंबंधित कोई सवाल हमारे मन में है तो हम मोबाइल फोन में उपलब्ध इंटरनेट का उपयोग करके उसके बारे में जान सकते हैं, समझ सकते हैं। मोबाइल फोन के जरिए हम अनेक भाषाएं भी सीख सकते हैं। ये अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है।
  • आज के समय में वैसे तो हर इंसान व्यस्त है, लेकिन इस व्यस्तता के समय में भी उसे मनोरंजन के साधन चाहिए होते हैं। अब मोबाइल के माध्यम से हर तरह का कंटेट मोबाइल के माध्यम से उपलब्ध है।
  • अगर हम किसी गलत जगह पर पहुंच जाते हैं और वहां से निकलने का रास्ता हम भूल जाते हैं और वहां पर कोई भी हमें रास्ता बताने के लिए नहीं होता तो मोबाइल फोन हमारी इसमें बहुत मदद कर सकता है। मोबाइल फोन के जरिए हम अपने दोस्तों, रिश्तेदारों आदि से बात करके मार्ग के बारे में जान सकते हैं, जिससे हम सुरक्षित अपने घर पहुंच सकते हैं ।
  • मोबाइल फोन का उपयोग लड़कियां भी अपनी सुरक्षा के लिए कर सकती हैं। आज के इस समय में लड़कियां सुरक्षा एक बड़ा प्रश्न है। अगर किसी कारणवश कोई लड़की अपनी कोचिंग या फिर कहीं से भी देर रात को आ रही हो और उसे अपने साथ कुछ भी गलत होने की शंका मन में आये तो वह मोबाइल फ़ोन के जरिये अपने नजदीकी सम्बन्धी को इस बारे में जानकारी दे सकती है, जिससे वह बड़ी प्रॉब्लम में फंसने से बच सकती है।
  • मोबाइल फोन के माध्यम से इंटरनेट द्वारा घर बैठे हर तरह की वस्तु को खरीद सकते हैं। इससे अपनी जरूरत वस्तुओं के लिए इधर-उधर भटकने की जरूरत नही होती।
  • मोबाइल के माध्यम से अब बैंक की सारे लेनदेन और सुविधा घर बैठे कर सकते हैं। इसलिए अब किसी भी तरह के वित्तीय लेनदेन जैसे पैसा निकालना या पैसा भेजना आदि के लिए बैंक जाने की जरूरत नहीं, जिससे हमारे काफी समय की बचत होती है और वह समय हम किसी उपयोगी कार्य में लगा सकते हैं। मोबाइल में हमारे लिए ये बेहद आसान बना दिया है।

इस तरह हम देखते हैं कि मोबाइल हमारे जीवन का एक अहम और जरूरी उपकरण बन गया है। इसके अनेक फायदे भी है। यदि हम मोबाइल का सकारात्मक उपयोग करें और उसके उपयोगी फीचर्स का पूरा लाभ उठाएं तथा मोबाइल का हम सही उपयोग कर सकते हैं।


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नई पीढ़ी के बच्चों में मोबाइल के प्रति बढ़ते आकर्षण के कारण के बारे में विस्तार से लिखिए।

जब मैंने साईकिल चलाना सीखा? इसका वर्णन करते हुए एक संस्मरण लिखिए।

नई पीढ़ी के बच्चों में मोबाइल के प्रति बढ़ते आकर्षण के कारण के बारे में विस्तार से लिखिए।

हम और आप सभी जानते हैं कि मोबाइल की लत ने व्यक्ति को अपने अधीन कर लिया है। गैजेट हमारे उपयोग के लिए है, लेकिन यहाँ गैजेट्स हमारा उपयोग कर रहे हैं। व्यक्ति को मोबाइल की ऐसी लत है कि वह पास बैठे लोगों से बात करने के स्थान पर सोशल मीडिया पर मित्रों से लगा रहता है। इससे उसके अपनों से आपसी संबंध कमज़ोर होते चले जाते है। साथ ही व्यक्ति के जीवन की विभिन्न पहलुओं को भी यह लत प्रभावित करता है, जैसे स्वास्थ्य, आजीविका, अध्ययन आदि।
मोबाइल से सबसे बुरी तरह हमारी नई पीढ़ी प्रभावित हुई है। नई-पीढ़ी को मोबाइल ने जिस तरह आकर्षित किया है और इसके अनेक कारण है…
  • सोशल मीडिया : नई पीढ़ी का मोबाइल के प्रति आकर्षण की सबसे बड़ी वजह सोशल मीडिया है। सोशल मीडिया का लुभावना कंटेट नई पीढ़ी को अपनी तरफ खींच लाता है। सोशल मीडिया पर ऐसे कंटेंट की भरमार है जो नई पीढ़ी को अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल रहा है।
  • नए-नए मित्र बनाने की चाहत : सोशल मीडिया के द्वारा नई पीढ़ी घर बैठे-बैठे अनेक तरह के अनजान लोगों से बात करने का मौका मिलता है और नई पीढ़ी का यही स्वभाव रहा है कि उसकी अधिक से अधिक नए दोस्त बनाने में रुचि होती है। इस कारण मोबाइल के प्रति उनका आकर्षण बढ़ा है।
  • सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर बनने की चाहत : सोशल मीडिया पर अलग-अलग प्लेटफार्म पर कंटेंट बनाने की होड़ और रील, शॉर्ट, वीडियो क्लिप आदि के द्वारा कंटेंट बनाकर खुद को लोगों के बीच में फेमस करना तथा सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर बनने के आकर्षण के कारण नई पीढ़ी मोबाइल की तरफ खिंची चली आ रही है क्योकि मोबाइल उनके लिए सोशल मीडिया पर प्रसिद्ध होने का सबसे उपयोगी टूल बनता है। इसी कारण नई पीढ़ी का सोशल मीडिया मोबाइल के प्रति आकर्षक बढ़ा है।
  • पैसा कमाने का आकर्षण : कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कंटेंट बनाकर पैसा कमाने का अवसर प्रदान करते हैं। इसी कारण भी नई पीढ़ी तेजी से सोशल मीडिया की तरफ आकर्षित हुई है और अनेक तरह का उपयोगी और लुभावना कंटेंट बनाकर पैसा कमाना चाहती है, मोबाइल उनके लिए इसमें सबसे उपयोगी औजार बना है।
  • मोबाइल गेम : वीडियो गेम के प्रति बच्चों और युवा टीवी का आकर्षण पहले भी था, अब मोबाइल पर एक से एक आकर्षक गेम हैं, इस कारण नई पीढ़ी मोबाइल पर गेम खेलकर अपना मनोरंजन करना चाहती है। धीरे-धीरे वह मोबाइल गेम की लत का शिकार हो जाती है।
  • एक वर्चुअल वर्ल्ड का निर्माण : नई पीढ़ी तकनीक के संसार में एक आभासी दुनिया में जीने लगी है। वह वास्तविक दुनिया से दूर होती जा रही है। वह अब खेल के मैदाने से दूर मोबाइल की स्क्रीन को ही अपना खेल का मैदान समझने लगी हैं। बच्चे अब नुक्कड़, गली-कूचों की जगह मोबाइल में स्थित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को भी अपना गली-कूचा नुक्कड़ समझने लगे हैं।
  • कामकाजी माता-पिता का अपने बच्चों को समय नहीं दे पाना : आज के कामकाजी माता-पिता अपने बच्चों को वह समय नहीं दे पा रहे जो पहले के माता-पिता देते थे। इससे बच्चे भी एक एकाकी जीवन में व्यतीत करने लगे हैं और वह अपना मोबाइल को अपना साथी बना लेते हैं। इस कारण भी मोबाइल उनकी जिंदगी में जरूरी हिस्सा बन जाता है।
  • माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराना : पहले के माँ-बाप अपने बच्चों को सोच समझकर ही किसी तरह की सुविधा देते थे, लेकिन आजके माँ-बाप अच्छा पैसा कमाने लगे हैं। वह हर अपने बच्चों को हर तरह की सुख सुविधा उपलब्ध करा देते हैं। वह अपने बच्चों के हाथ में बेहद कम उम्र में ही मोबाइल थमा देते हैं, इससे बच्चे को मोबाइल की लत लग जाती है। यह भी एक बड़ा कारण है, जिसके कारण मोबाइल के प्रति बच्चों का आकर्षण बढ़ा है।
  • हर तरह के जानकारी का आसानी से उपलब्ध हो जाना :  सर्च इंजन द्वारा हर तरह की जानकारी चाहे वह वांछित जानकारी हो या अवांछित जानकारी पल भर में एक क्लिक पर मोबाइल स्क्रीन पर उपलब्ध हो जाने की सुविधा के कारण युवा पीढ़ी जानकारी को मोबाइल पर ही खोजने लगी है। वह किताबों में सर खपाने की जगह मोबाइल की स्क्रीन के माध्यम से सब कुछ जान लेना चाहती है। यह कारण भी है जिसके कारण बच्चों और युवाओ में मोबाइल के प्रति आकर्षण बढ़ा है।

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छोटों के प्रति बाबूजी के प्रेम के इस उदाहरण से आप क्या प्रेरणा ग्रहण करेंगे? (माता का आंचल)

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‘माता का आंचल’ पाठ में भोलानाथ और उसके दोस्त सभी बच्चे कनस्तर का तंबूरा बजाकर, शहनाई बजाकर और वह टूटी चूहेदानी की पालकी बनाकर नकली बारात निकालने थे। उसमें बच्चे बाराती बनते, समधी बनते, दूल्हा दुल्हन बनते। वह किसी बकरे पर चढ़कर ऐसा स्वांग रचते जैसे दूल्हा घोड़े पर चढ़कर बारात लेकर जा रहा है। कुछ बच्चे बाराती बनते तो कुछ बच्चे समधी बनते। बच्चे आंगन के एक कोने से दूसरे कोने लगाते। जब बच्चे वापस लौटते तो खटौली लाल कपड़ा डालकर उसने दुल्हन को चढ़ा देते। वह इस तरह का खेल खेलते जैसे वह दुल्हन लेकर लौटे हैं।

वापस लौटने पर भोलानाथ के बाबूजी भी इस कार्यक्रम में शामिल हो जाते थे। वह लाल कपड़ा उठाकर दुल्हनिया का चेहरा निहारते और फिर सभी बच्चे हंसकर छुप जाते। बाबूजी का भी छोटों के साथ इस तरह बच्चों के खेल में शामिल होना उनका छोटो के प्रति वात्सल्य प्रेम का एक उदाहरण था।  भोलेनाथ के बाबूजी भोले-भाले परम स्नेही व्यक्ति थे। उनके मन में सभी बच्चों के प्रति अनुराग और स्नेह की भावना थी। इसी कारण वह बच्चों के झूठे-मोटे खेल वाले नाटक में सम्मिलित हो जाते थे और बेहद खुशी से सभी बच्चों का साथ देते और उनका खेल भी देखा करते थे। हम छोटों के प्रति बाबूजी के इस प्रेम से ये प्रेरणा ग्रहण करेंगे कि बच्चे मन के निर्मल होते हैं। उनके सरल-सहज खेलों में यदि बड़े शामिल होते हैं, तो इससे बच्चों पर सकारात्मक असर पड़ता है। बच्चों के प्रति इस तरह के वात्सल्यपूर्ण व्यवहार से बच्चे और बडों को प्रति आत्मयी संबंध मजबूत होते हैं।

‘माता का आंचल’ पाठ शिवपूजन सहाय द्वारा लिखा गया एक संस्मरण पाठ है, जिसमें लेखक ने तारकेश्वरनाथ के बचपन के दिनों का वर्णन किया है। तारकेश्वरनाथ का बचपन का नाम भोलानाथ था। भोलानाथ के अपने माता और पिता के साथ कैसे सहज संबंध थे, किस तरह बचपन में भोलानाथ के माता-पिता ने उसका लालन पालन किया, इस पाठ में लेखक ने यही बताया है। बचपन की छोटी-छोटी घटनाओं को आधार बनाकर लेखक ने पूरी कहानी को रचा है।


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कवि और कोयल के वार्तालाप का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।

जब मैंने साईकिल चलाना सीखा? इसका वर्णन करते हुए एक संस्मरण लिखिए।

संस्मरण

जब मैंने साईकिल चलाना सीखा

 

मुझे साइकिल सीखने का बचपन में काफी शौक था। जब भी मैं ओर लड़कियों को साइकिल चलाता देखती थी तो सोचती थी कि साइकिल चलना कौन सी बड़ी बात है । बस फिर हर रोज़ पापा के पीछे पड़ जाती की मुझे भी साइकिल चाहिए । एक दिन मेरी ज़िद से तंग आकर मेरे लिए साइकिल ले ही आए । फिर सब ने कहा कि चलो अब चलाओ लेकिन मैंने जैसे ही साइकिल पर बैठने की कोशिश की मैं गिर गई। फिर मैंने दोबारा साइकिल को हाथ भी नहीं लगाया, सब ने मुझे समझाया कि साइकिल स चलाना सीखते समय सब लोग गिरते हैं तो कोई बात नहीं, हम तुम्हें सिखा देंगे, लेकिन मैं तो साइकिल के पास भी नहीं गई।

मेरा छोटा भाई जोकि अभी सिर्फ आठ साल का था उसने दो दिन में साइकिल चलाना सीख लिया। फिर तो सब लोग मुझे चिढ़ाते थे कि तुम तो बस खड़े होकर देखती रहो। साइकिल चलाना तुम्हारे वश की बात नहीं है । मुझे बहुत बुरा लगता था । एक दिन रात को मैं अपने कमरे मैं बैठ कर चुपचाप रो रही थी । मेरे छोटे भाई नें मुझे रोते हुए देखा तो वह बोला कि दीदी, मैं तुम्हें साइकिल चलाना सिखाऊँगा।

अगले दिन हम सुबह 5 बजे उठकर घर के पास वाले पार्क में चले गए । उसने जैसे ही मुझे सिखाना शुरू किया मैं साइकिल के साथ उस पर ही गिर गई। उसे बहुत ज्यादा चोट लगी थी, लेकिन उसनें घर पर किसी को कुछ नहीं बताया। बस कह दिया कि मैं गिर गया था । वह बेचारा मेरी वजह से डाँट खाता रहा लेकिन मुंह से उफ़ तक नहीं किया।

फिर तो मैंने फैसला कर लिया कि अब चाहे कुछ भी हो जाए मैं साइकिल चलाना सीख के रहूँगी। मैं अगले दिन जल्दी उठ कर चुपचाप साइकिल लेकर पार्क में चली गई और मैंने वो बातें याद कीं, जो पिछले दिन मेरे छोटे भाई नें मुझसे कही थी कि अगर मन में एक बार इस डर को निकाल दो कि तुम साइकिल नहीं चला सकती, बस यह याद रखो कि जब एक लड़की हवाई जहाज़ उड़ा सकती है तो फिर यह साइकिल क्या चीज़ है।

बस फिर क्या था मैंने पैडल मारा और उछल कर सीट पर बैठ गई। मेरा भाई वहीं पर मुझे छुप कर देख रहा था। अब कुछ ही दिनों में साईकिल चलाना सीख चुकी थी। बस वह दिन और आज का दिन है मैं पायलट हूँ और मैं आज हवाई जहाज़ भी उड़ा रही हूँ।


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जब खेल के पीरियड में मैथ की टीचर पढ़ाने आ गयी तो दो बच्चों के बीच हुए संवाद को लिखें।

चतुराई से हम किसी भी समस्या का समाधान कर सकते हैं। इस विषय पर अपने विचार कुछ पंक्तियों में लिखिए।

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हाँ, ये सही है कि चतुराई से हम किसी भी समस्या का समाधान कर सकते हैं अक्सर कोई समस्या आने पर हम घबरा जाते हैं और इस घबराहट में हमसे कोई गलती हो जाती है।

यदि कोई भी समस्या हमारे सामने उपस्थित हो और हम दिमाग को ठंडा रखते हुए कुछ समस्या से निपटने के लिए चतुराई का प्रयोग करें तो कोई भी समस्या चुटकियों में हल की जा सकती है।

हमें यह याद रखना चाहिए कि समस्या अपने साथ समाधान भी लेकर आती है।

हमें समस्या के मूल में जाकर उसके समाधान को खोजना होगा।

किसी भी समस्या के समाधान के लिए चतुराई बेहद आवश्यक है, तब ही हम किसी समस्या का समाधान कर सकते हैं।

समस्या के समाधान के लिए धैर्य धारण करना भी एक आवश्यक गुण है। धीरज धारण करके ही हम समस्या के मूल में जा सकते हैं तभी हमें उसका सही समाधान मिल सकता है।

समस्या को सामने पाकर घबरा जाने से समस्या हम पर हावी हो जाती है और चतुराई से उसका सामना करने से समस्या का समाधान होने का कोई न कोई रास्त अवश्य निकलता है।


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‘माँ का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा होता है।’ इस कथन के आधार अपनी माँ के गुणों को बताएं।

‘कॉर्न ला’ क्या था? ‘कॉर्न लॉ’ के द्वारा किस फसल के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया था?

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‘कॉर्न ला’ 19वीं शताब्दी में ब्रिटेन में लगाया गया एक आयातित खाद्य कानून था। यह खाद्य कानून मक्का फसल के आयात के प्रतिबंध लगाने हेतु बनाया गया था।

‘कॉर्न ला’ के द्वारा मक्का फसल के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया था। 1815 ई से 1840 ई के बीच ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए इस कानून के तहत कुछ निश्चित खाद्य पदार्थों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इन खाद्य पदार्थों के आयात पर प्रतिबंध लगाने का मुख्य उद्देश्य ब्रिटेन में घरेलू अनाज के उत्पादन को बढ़ावा देना। इसीलिए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने कॉर्न लॉ बिल बनाया, जिसमें मक्का, गेहूँ, जई और जौ जैसे सभी अनाजों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

ध्यान देने योग्य बात ये है कि कॉर्न लॉ के अंतर्गत केवल मक्का ही नहीं बल्कि गेहूँ, जई और जौ जैसे अनाजों पर भी प्रतिबंध लगाया था। ये भी अनाज मकई के अन्तर्गत ही आते थे।

ब्रिटिश सरकार नहीं चाहती थी कि ब्रिटेन से बाहर से आने वाला सस्ता अनाज ब्रिटेन में आए और उसके घरेलू उत्पादन पर असर पड़े। इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ-साथ घरेलू अनाज के दरों में वृद्धि करना था। हालांकि ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए इस कानून का कोई खास सकारात्मक असर नहीं हुआ।

इस कानून के बाद ब्रिटेन की कृषि व्यवस्था एकदम चरमरा गई। ब्रिटेन के किसान उसे स्तर का अनाज उत्पन्न नहीं कर सके जो बाहर से आयात किया जाता था। वे बाहर के अनाज के सस्ते मूल्य की बराबरी कर सके। वह इसमें सामंजस्य से नहीं बैठ सके। इस कारण इस कानून के कारण अनेक किसान बेरोजगार हो गए। कृषि व्यवस्था चरमरा जाने के कारण किसान इस कानून के विरुद्ध आंदोलन करने लगे। अंततः तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को 1946 में इस कॉर्न लॉ कानून को वापस लेना पड़ा।


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17-18 वीं शताब्दी में फ्रांस का दशमांश क्या था?

12वीं की परीक्षा की समाप्ति के बाद भविष्य में पढ़ाई के संबंध में पिता और पुत्र के बीच हुए संवाद को लिखें।

संवाद लेखन

12वीं की परीक्षा के बाद पढ़ाई से संबंध में पिता-पुत्र का संवाद


बहुल भूमिका और भूमिका पुंज में क्या अंतर है?

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बहुल भूमिका और भूमिका पुंज में मुख्य अंतर इस प्रकार है…

बहुल भूमिका से तात्पर्य किसी व्यक्ति की प्रस्थिति से होता है, जो सीधे तौर पर उससे जुड़ी हुई होती है, जबकि भूमिका पुंज उस व्यक्ति की प्रस्थिति से जुड़ी अनेक भूमिकाओं के समूह के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है।

जब किसी व्यक्ति की प्रस्थिति से जुड़ी हुई अनेक भूमिकाओं का समूह बन जाता है, तो उसे भूमिका पुंज के रूप में जाना जाता है। उस प्रस्थिति से जुड़ी भूमिकाओं को भूमिका पुंज कहा जाता है।

उदाहरण के द्वारा समझते हैं…

एक जिलाधिकारी है। जिलाधिकारी होना उसकी एक प्रस्थिति है क्योंकि वह सीधे तौर पर जिलाधिकारी की बनने की भूमिका से जुड़ा हुआ है।

उसके जिला अधिकारी होने के कारण उसके कई अन्य कार्य और कर्तव्य भी हैं, जैसे जिला में शासन प्रशासन व्यवस्था को देखना, जिले के सभी गांव आदि में कानून और प्रशासन की स्थिति को देखना तथा सभी जिले के सभी सरकारी विभागों में कामकाज के संबंध में उचित समन्यवय स्थापित करना यह सारी जिला अधिकारी की विभिन्न भूमिकाएँ हैं।

जिलाधिकारी इन कार्यों के समूह को भूमिका पुंज कहा जाता है।

इसलिए बहुल भूमिका और भूमिका पुंज मुख्य अंतर यही है कि बहुल भूमिका किसी व्यक्ति की प्रस्थिति है, जो व्यक्ति से सीधे तौर पर जुड़ी होती है और व्यक्ति की मुख्य भूमिका है। जबकि उस व्यक्ति की प्रस्थिति से जुड़ी हुई अनेक भूमिकाओं के समूह को भूमिका पुंज कहा जाता है।


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डॉक्टर चंद्रा किस आयु में तथा किस बीमारी का शिकार हुई​?

भारत में मानव विकास रिपोर्ट किस राज्य ने सबसे पहले जारी की थी?

‘नए निर्माण’ से कवि का क्या तात्पर्य है?

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‘नए निर्माण’ से कवि का तात्पर्य जीवन में लगातार हो रहे नए-नए परिवर्तनों से है।

‘नए इलाके’ कविता जो कवि ‘अरुण कमल’ द्वारा लिखी गई है, उसमें कवि के अनुसार नए निर्माण से कवि तक तात्पर्य हमारे आधुनिक जीवन में तेज गति से हो रहे परिवर्तन से हैं।

कवि आजकल के आधुनिक जीवन में बेहद तेज गति से हो रहे परिवर्तन के युग की बात करते हुए कहते हैं कि यह परिवर्तन इतनी तेज गति से हो रहा है कि मनुष्य इन परिवर्तनों को एकदम सहज रूप से स्वीकार भी नहीं कर पाता।
वह एक परिवर्तन को समझने का प्रतीक करता है और जब तक उसे पूरी तरह समझ आता है उससे पहले ही दूसरा परिवर्तन हो जाता है।

कवि का कहना है कि मनुष्य की बुद्धि की संरचना इस तरह होती है कि वह किसी भी तरह के परिवर्तन को धीरे-धीरे और सहज रूप से स्वीकार करता है, अचानक होने वाले किसी भी परिवर्तन को वह सहज रूप से स्वीकार नहीं कर पाता जबकि आज का युग तेज गति वाला युग है।

बड़े-बड़े नगरों महानगरों में पल-पल, नित-नित परिवर्तन होते जा रहे हैं और मनुष्य उन परिवर्तनों को सहज रूप से स्वीकार नहीं कर पा रहा है। कवि के अनुसार जिन इलाकों को वह कुछ समय पहले जिस अवस्था में छोड़कर गया था कुछ समय बाद वापस आने पर उसे वह इलाके उसे अवस्था में बिल्कुल नहीं मिले और वहां पर पूरी तरह परिवर्तन हो चुका था।

जिन जिन पुराने मकानों को छोड़कर उस समय पहले वह जहाँ से गया था वापस आने पर उन पुराने मकान की जगह नए-नए आलीशान मकान खड़े दिखाई दे रहे हैं। आलीशान मकानों को देखकर कवि के मन में कभी-कभी यह भ्रम उत्पन्न हो जाता था कि कहीं वह किसी गलत जगह तो नहीं आ गया लेकिन बाद में उसे पता चलता है कि वह सही जगह पर आया है, लेकिन बस अंतर केवल इतना है कि उस इलाके में नए निर्माण हो चुके हैं अर्थात जीवन में तेज गति से परिवर्तन हो चुका है।

कवि स्वयं इस तेज गति से होने वाले परिवर्तनों को देखकर अचंभित है। कवि के अनुसार जीवन में आगे बढ़ाने के लिए इन नए-नए परिवर्तनों को स्वीकार करना चाहिए ताकि हम समय के साथ चल सकें।


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निज गौरव से कवि का क्या अभिप्राय है?

कवि और कोयल के वार्तालाप का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।

‘नौकरशाही’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया?

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‘नौकरशाही’ यानि ‘ब्यूरोक्रेसी’ शब्द का सबसे पहले प्रयोग फ्रांस के अर्थशास्त्री ‘जैक्स क्लौड मेरी विन्टसेंटडी गोर्ने’ (Jacques Claude Marie Vincentdi Gourney) ने किया था। उन्होंने नौकरशाही शब्द का प्रयोग 18वीं शताब्दी में सबसे पहले किया था।

नौकरशाही को अंग्रेजी में Bureaucracy कहते हैं। इस ब्यूरोक्रेसी शब्द का प्रयोग फ्रांस के अर्थशास्त्री Jacques Claude Marie Vincentdi Gourney 18वीं शताब्दी में किया था।

Bureaucracy शब्द फ्रांसीसी भाषा के शब्द Bureau  से लिया गया है। ब्यूरो शब्द का अर्थ होता है, मेज प्रशासन अथवा कार्यालय द्वारा प्रबंध करना।

जब प्रशासन का कार्यालय द्वारा प्रबंध किया जाने लगा तो उसके लिए ब्यूरोक्रेसी यानि नौकरशाही शब्द बन गया और फ्रांस के अर्थशास्त्री ने 18वीं शताब्दी में इसे सर्वप्रथम प्रचलन में लाया।

फ्रांसीसी अर्थशास्त्री 18वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थे। वह उनका जन्म 28 मई 1712 को फ्रांस के सेंट मालों में हुआ था। 27 जून 1759 फ्रांस के कैडिज में उनका निधन हुआ।


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इनमें से कौन सा तर्क लोकतंत्र के पक्ष में है? A. लोकतंत्र में लोग खुद को स्वतंत्र और समान मानते हैं। B. लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ दूसरों की तुलना में टकरावों को ज्यादा अच्छे से सुलझाती हैं। C. लोकतांत्रिक सरकारें लोगों के प्रति ज़्यादा उत्तरदायी होती हैं। D. उपरोक्त सभी।​

संयुक्त राष्ट्र महासभा का अध्यक्ष चुना/चुने जाने वाला/वाली एकमात्र भारतीय कौन था/थी ? A विजयलक्ष्मी पंडित B वी.के. कृष्णा मेनन C जवाहरलाल नेहरू D राजेश्वर दयाल

‘माँ का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा होता है।’ इस कथन के आधार अपनी माँ के गुणों को बताएं।

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‘माँ का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा होता है।’ यह बात बिल्कुल ही सत्य है और किसी व्यक्ति के जीवन में माँ का बेहद अधिक महत्व है। माँ ही किसी बच्चे की प्रथम गुरु, प्रथम शिक्षक, प्रथम मार्गदर्शक होती है।

  • माँ के गुणों की व्याख्या को शब्दों के माध्यम से आसानी से समेटा नहीं जा सकता, फिर भी माँ के कुछ गुण इस प्रकार हैं…
  • मेरी माँ कभी हमें भूखा नहीं सोने दे सकती। वह खुद अच्छा खाना भले ही नही खाए लेकिन हमें अच्छे से अच्छा भोजन उपलब्ध कराने का प्रयत्न करती है।
  • माँ को हमारे पसंद के खाने का ख्याल रहता है।
    माँ अपने बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति हमेशा सचेत रहती है और वह अपने बच्चों को ऐसा भोजन देना चाहती है जो उसके स्वास्थ्य को अच्छा रखें।
  • मेरी एक कुशल गृहणी की भूमिका बेहद कुशलता से निभाती है। हमारे पिता की आमदनी अगर सीमित होने के बावजूद भी माँ बेहद कुशलता से घरों को चला लेती हैं और किसी भी बात की कमी को महसूस नहीं होने देती।
  • मेरी माँ हमारी हर जरूरत को प्राथमिकता देती हैं और हमे किसी बात की कमी महसूस नही होने देतीं।
  • माँ अपनी किसी भी तकलीफ और जरूरत को सामने प्रकट नहीं करती, वह अपनी इच्छाओं को परे रखकर वह अपने बच्चों की हर इच्छा को पूरा करने के लिए तत्पर रहती है।
  • माँ दिन भर हम सब देखभाल में लगी रहती है और हम सभी भाई-बहन और पिताजी तथा दादा-दादी को किसी भी तरह की तकलीफ नही होने देती।
  • मेरी माँ हमारे लिए गुरु की तरह हैं, वह हमे हर अच्छी बात सिखाती हैं। वह हमारी पथ प्रदर्शक हैं। वह हमारा पूरा ध्यान रखती है कि हम किसी भी गलत रास्ते पर नहीं चलें। वास्तव में मेरी माँ त्याग और ममता की मूर्ति हैं।

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‘नेता नहीं, नागरिक चाहिए।’ इस विषय पर निबंध लिखें।

निबंध

‘नेता नहीं, नागरिक चाहिए।

 

राजनीति के इस दौर में आज देश को सच्चे नागरिकों की जरूरत है, लेकिन आज हो इसके विपरीत रहा है, हर कोई व्यक्ति नेता बनना चाहता है और कोई व्यक्ति स्वयं को नेता समझता है और कोई व्यक्ति समझता है कि उसके अंदर दूसरों पर शासन करने का दूसरों को नेतृत्व प्रदान करने का गुण है। हर किसी में नेता बनने की धुन सवार है ।

जबकि किसी भी देश को नेता से अधिक सच्चे नागरिकों की आवश्यकता होती है। जब किसी देश के नागरिक सच्चे और इमानदार होंगे वह अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित होंगे तो वह अपने देश का नेता भी वैसा ही चुनेंगे। जिस देश के नेता योग्य, ईमानदारी, पढ़े-लिखे और समर्थ होंगे तो देश के नेता भी नागरिकों जैसे ही होंगे और ऐसे देश के विकास को कोई नहीं रोक सकता।

राजनीति के इस दौर में जब राजनीति जमीन से उतारकर सोशल मीडिया की वर्चुअल दुनिया में आ गई है और नेता और नेताओं के समर्थक एक दूसरे पर सोशल मीडिया के प्लेटफार्म के द्वारा कीचड़ करने से नहीं चूकते। ऐसी स्थिति में हमें देश को सच्चे एवं जागरूक नागरिकों की आवश्यकता है।

नेता बनना केवल स्वार्थ तक ही सीमित है क्योंकि नेताओं को केवल शासन और सत्ता चाहिए। उसे अपने विपक्षी की केवल बुराई ही करनी होती है और स्वयं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना होता है। नेताओं के अंदर छल और प्रपंच होता है यह उनके पेशे की आवश्यकता या मजबूरी कुछ भी कह लें, हैं।

नेता बनने के बाद वह जीवन के जरूरी मुद्दों से दूर हो जाता है, उसे केवल सत्ता को पाने वाले मुद्दे ही दिखाई देते हैं। वह केवल सत्ता को पाना चाहता है। उसे देश सेवा करने का रास्ता केवल सत्ता के माध्यम से ही दिखाई देता है, जबकि ये सच नही है। देश सेवा करने के लिए नेता नही बल्कि सच्चा नागरिक बनना चाहिए।

आज के समय में नेता बनने के लिए नकारात्मक गुणों का होना जरूरी हो गया है। नेता को बड़े-बड़े झूठे वादे करना आना चाहिए। उसे झूठे दावे करना आना चाहिए। विरोधी पर हर समय कीचड़ उछालने का गुण होना चाहिए। विरोधी की चाहे कोई बात अच्छी हो अगर बुरी हर बात का विरोध ही है। नेता बनने के लिए ये सारे जरूरी गुण है।

इसके विपरीत नागरिक बनने के लिए करने के लिए सकारात्मकता होनी बेहद आवश्यक है। एक अच्छा सच्चा नागरिक बनने के लिए जरूरी नहीं कि हम किसी की बुराई ही करें। किसी पर कीचड़ उछालें, हर समय अपने विरोधी की बुराई ही करें। एक सच्चा नागरिक बनने के लिए कोई विरोधी होना भी जरूरी नही।

एक अच्छा नागरिक बनने के लिए हमें केवल अपने संविधान प्रदत्त कर्तव्यों का निर्वहन करने की आवश्यकता है और देश के संविधान के अनुसार चलने की आवश्यकता है, तो वह देश के हित में ही होंगे।

माना कि नेता बनने में अलग ही आकर्षक है। नेता बनने के पीछे शक्ति और धन का आकर्षण हर किसी को नेता बनने के लिए उकताता है, यदि देश के सभी नागरिक नेता ही बनने लगेंगे तो हर जगह आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहेगा। तो सकारात्मकता का माहौल कैसे बनेगा।

सब नेता ही बनेंगे तो किसके लिए बनेंगे। नेता बनने के लिए जनता होनी भी आवश्यक है। देश के नागरिक ही देश की जनता होते हैं। देश के  सकारात्मक माहौल और सही विकास के लिए आवश्यक है कि इस देश को नेता नही नागरिकों की अधिक जरूरत है, तभी ये देश सही अर्थों मे विकास कर सकता है।


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नाम कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करते हैं?

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नाम कीर्तन करने के आगे कवि ग्रंथ आदि पुस्तकों का पाठ करना, अपने व्याकरण के ज्ञान का बखान करना, अपनी शिखा यानी चोटी बढ़ाकर रखाना, अपने जटाओं यानि बालों को बढ़ाना, अपने शरीर पर भस्म लगाना, वस्त्र हीन होकर नग्न होकर साधना करना या सन्यास धारण, दंड धारण करना, हाथ में कमंडल लेकर चलना, तीर्थ स्थानों का भ्रमण करना इन सभी कर्मों को  व्यर्थ मानते हैं।

कवि नानक देव के अनुसार शास्त्रीय पुस्तकों का पाठ करना, धर्म ग्रंथों का पाठ करना, शास्त्रीय ज्ञान का बखान करना, उसका महिमा मंडन करना, धार्मिक प्रतीक चिन्ह के रूप में दंड धारण करना अथवा कमंडल लेकर चलना, अपने सर पर चोटी रखना, अपने बालों को बढ़ाना,  पूजा स्थलों व तीर्थ स्थानों पर घूमना, ईश्वर प्राप्ति की आस में सब कुछ त्याग कर नग्न होकर घूमना ये सारे कर्म ईश्वर प्राप्ति के साधन माने जाते हैं, लेकिन यदि भगवत के नाम कीर्तन किया जाए तो इन सभी कर्मों का महत्व नहीं रह जाता है।

इसलिए भगवत के नाम का कीर्तन करना ही ईश्वर भक्ति का सर्वश्रेषठ उपाय है। नाम कीर्तन के आगे बाकी सारे कर्म व्यर्थ हैं।


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दीर्घ स्वर संधि का नियम

‘चक्रमस्ति’ मे ‘दीर्घ स्वर संधि’ होगी। इस संधि में दीर्घ स्वर संधि का वो नियम लागू होगा। जब ‘अ’ और ‘अ’ का मेल होता है तो ‘अ’ या ‘आ’ बनता है। इस संधि में चक्रम में अंतिम वर्ण ‘म’ में ‘अ’ स्वर है, तो ‘अस्ति’ का ‘अ’ स्वर है। दोनों स्वरों का मेल होकर ‘अ’ बन रहा है।

‘दीर्घ स्वर संधि’  ‘स्वर संधि’ का एक उपभेद है।  स्वर संधि के पाँच उपभेद होते हैं।

  • दीर्घ स्वर संधि
  • गुण स्वर संधि
  • अयादि स्वर संधि
  • यण स्वर संधि
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‘दया की दृष्ट सदा ही रखना’ यह पंक्ति ईश्वर की प्रार्थना की पंक्ति हैं। इस पंक्ति में एक बालक ईश्वर से यह प्रार्थना कर रहा है कि ईश्वर उस पर अपनी दया की दृष्टि रखें इसका अर्थ है कि ईश्वर उसका ध्यान रखें। ईश्वर उसकी देखभाल करते रहें। सभी बालकों को किसी भी संकट से बचाएं। संकटों से जूझने की शक्ति प्रदान करें। दया की दृष्टि रखने का तात्पर्य ईश्वर से ये अपेक्षा करना होता है कि वह अपने भक्तों अपने अनुयायियों का ध्यान रखें।

ये प्रार्थना रूपी गीत एक हिंदी फिल्म ‘मैं चुप रहूंगी’ का गीत है। उपरोक्त पंक्ति उसी गीत की पंक्ति है।

पूरा गीत इस प्रकार है…

तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो ।
तुम्ही हो बंधू, सखा तुम्ही हो ॥
तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो ।
तुम्ही हो बंधू, सखा तुम्ही हो ॥

तुम ही हो साथी, तुम ही सहारे ।
कोई ना अपना सिवा तुम्हारे ॥
तुम ही हो साथी, तुम ही सहारे ।
कोई ना अपना सिवा तुम्हारे ॥

तुम ही हो नईया, तुम ही खिवईया ।
तुम ही हो बंधू, सखा तुम ही हो ॥

तुम ही हो माता, पिता तुम्ही हो ।
तुम ही हो बंधू, सखा तुम्ही हो ॥

जो खिल सके ना वो फूल हम हैं ।
तुम्हारे चरणों की धूल हम हैं ॥
जो खिल सके ना वो फूल हम हैं ।
तुम्हारे चरणों की धूल हम हैं ॥

दया की दृष्टि, सदा ही रखना ।
तुम ही हो बंधू, सखा तुम्ही हो ॥

तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो ।
तुम्ही हो बंधू, सखा तुम्ही हो ॥
तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो ।
तुम्ही हो बंधू, सखा तुम्ही हो ॥

 


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डॉक्टर चंद्रा किस आयु में तथा किस बीमारी का शिकार हुई​?

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डॉक्टर चंद्रा डेढ़ वर्ष की आयु में पक्षाघात अर्थात पोलियो की बीमारी का शिकार हो गई थी।

‘अपराजिता’ पाठ में डॉक्टर चंद्रा अपने जीवन के 18 महीने अर्थात डेढ़ वर्ष की आयु में पक्षाघात (पोलियो) नामक बीमारी का शिकार हो गई। उसे ये बीमारी बचपन में तीव्र ज्वर होने के बाद हुई। जब मात्र डेढ़ वर्ष की आयु की थी तो एक दिन उसे तेज बुखार आया। उसके बाद उसके शरीर का गर्दन के नीचे का हिस्सा पूरी तरह निष्क्रिय हो गया था।

डॉक्टरों ने चंद्रा के माता-पिता को बताया कि वह जिंदगी भर अपने गर्दन के नीचे के हिस्से को हिला नहीं सकेगी और उसे पूरा जीवन व्हीलचेयर पर ही बिताना पड़ेगा।

‘अपराजिता’ पाठ की कहानी लेखिका शिवानी द्वारा लिखी गई एक प्रेरणादायक कहानी है, जिसमें डॉक्टर चंद्रा नामक एक ऐसे ही साहसी युवती की कहानी है, जो पोलियो पक्षाघात से प्रभावित हो गई। इस कारण उसके गर्दन के नीचे का हिस्सा निर्जीव हो गया था, लेकिन उसने अपने शारीरिक विकलांगता को कठिन चुनौती की तरह लिया और अपने जीवन से संघर्ष करती रही। उसने किसी तरह अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी की और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद विज्ञान के क्षेत्र में योगदान दिया। उसकी इस जीवन यात्रा में उसकी माँ टी सुब्रह्मण्यम का अहम योगदान था।


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इनमें से कौन सा तर्क लोकतंत्र के पक्ष में है? A. लोकतंत्र में लोग खुद को स्वतंत्र और समान मानते हैं। B. लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ दूसरों की तुलना में टकरावों को ज्यादा अच्छे से सुलझाती हैं। C. लोकतांत्रिक सरकारें लोगों के प्रति ज़्यादा उत्तरदायी होती हैं। D. उपरोक्त सभी।​

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कौन सा तर्क लोकतंत्र के पक्ष में है? तो इसका सही विकल्प होगा :

D. उपरोक्त सभी।

समझे कैसे..?

लोकतंत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि लोकतंत्र में सभी जन खुद को समान और स्वतंत्र मानते हैं।लोकतंंत्र की मूल अवधारणा ही समानता और स्वतंत्रता है। ये लोकतंत्र की सबसे बड़ी विशेषता है।

लोकतांत्रिक व्यवस्था की दूसरी विशेषता यह है कि वह दूसरों की तुलना में टकरावों को ज्यादा अच्छे तरीके से सुलझाती हैं और यहां पर किसी एक का वर्चस्व नहीं होता। लोकतात्रिक व्यवस्था में जो भी मुद्दे या विवाद अथवा मतभेद होते हैं, वे मिलजुलकर आपसी समन्वय से सुलझा लिए जाते हैंं। यहाँ पर सभी के मत और विचार को सम्मान  दिया जाता है।

लोकतांत्रिक सरकारे लोगों के प्रति ज्यादा उत्तरदाई होती है, क्योंकि वह लोगों द्वारा ही चुनी जाती है। उन्हे जो भी कार्य करना होता है वो जनता के हित में करना होता है। लोकतंत्र की सच्ची परिभाषा ही जनता के लिए, जनता का शासन है।

इसलिये चौथा विकल्प सही होगा क्योंकि इस विकल्प लोकतंत्र की सारी विशेषताएं आ जाती हैं।


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आप हाल ही में महाबलेश्वर गए हैं। आप वहां किन जगहों पर गए थे? इस पर एक यात्रा वृत्तांत लिखिए।

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वृत्तांत लेखन

महाबलेश्वर के बारे यात्रा वृत्तांत

 

मैं हाल ही में अपने परिवार के साथ महाबलेश्वर घूमने गया था। मैंने वहाँ के बारे में सुना था कि वह एक खूबसूरत पर्यटक स्थल है लेकिन वह खूबसूरत नहीं बल्कि बेहद ही खूबसूरत है । इसकी खूबसूरती शब्दों में बयान नहीं की जा सकती। मैं यहाँ पर बहुत सी जगहों पर घुमा,

महाबलेश्वर का सबसे प्रसिद्ध शिव मंदिर : महाराष्ट्र के महाबलेश्वर शहर से 6 कि.मी दूर महाबलेश्वर मंदिर स्थित है। महाबलेश्वर मंदिर अति प्राचीन मंदिरो में से एक है। मंदिर के अंदर 500 साल पुराने स्वयंभू लिंगम हैं जिन्हें महालिंगम कहा जाता है। यह शिवलिंग रुद्राक्ष के आकार में है और यह स्थान बारह ज्योतिर्लिंगों में श्रेष्ठ माना जाता है। इस मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण शिव लिंगम है जो 6 फीट लंबा है ।

पंचगंगा नामक मंदिर : भी महाबलेश्वर में महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है, जिसका आध्यात्मिक महत्व सर्वोपरि है । मंदिर ठीक उसी बिंदु पर स्थित है जहाँ पाँच नदियाँ कृष्णा, सावित्री, कोयना, वीणा और गायत्री अपना जल मिलाती हैं ।
ऐलिफेंट हेड : इसकी समुन्द्र तल से ऊचाई लगभग 4067 फुट है। यहाँ एक पहाड़ी है जो प्राकृतिक रूप से हाथी के सिर की तरह दिखाई देती है । जिस के कारण इसे ऐलिफेंट हेड के नाम से भी जाना जाता है । यहां से सामने स्थित दूर तक फैली कोयना घाटी के सुंदर दृश्य दिखाई देते है । जो पर्यटकों को अपना दिवाना बना देते है ।

मंकी प्वाइंट : यहाँ पर प्राकृतिक रूप से पत्थर पर बनी बंदर की तीन मूर्तियाँ है । जो गांधी जी के तीन बंदरों को चित्रित करते है । इसलिए इस स्थान का नाम मंकी प्वाइंट है ।

पुराना महाबलेश्वर : पुराने महाबलेश्वर में महादेव के प्राचीन मंदिर में नंदी के मुख से निकलने वाली धारा से कृष्ण नदी बनकर निकलती है । कहा जाता है कि सावित्री ने तीनों महादेव ब्रह्मा विष्णु और महेश को नदी हो जाने का श्राप दिया था । इसलिए विष्णु कृष्ण नदी बन गए और शिव वेन्ना नदी तथा ब्रह्मा कोयना नदी बन गए । इसलिए यहाँ के दर्शनीय स्थल में पुराने महाबलेश्वर का मुख्य स्थान है।

कृष्ण मंदिर महाबलेश्वर : कृष्ण मंदिर पुराने महाबलेश्वर में स्थित है । इस मंदिर को पंचगना के नाम से भी जाना जाता है । क्योंकि यहां पांच नदिया कृष्ण कोयना वेन्ना गायत्री तथा सावित्री बहती है । यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है ।

लिंगमाला झरने : यह खूबसूरत झरने महाबलेश्वर के करीब में ही स्थित है यहां पानी 600 फिट की ऊचांई से गिरता है यह शीतल जल वेन्ना लेक में गिरता है । ऊंचाई से गिरते पानी के दृश्य काफी मनोहारी दिखाई पड़ते है ।


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आपने अमरकंटक की यात्रा की है। अमरकंटक के सुंदर दृश्य का वर्णन करते हुए पत्र आप अपने मित्र को लिखें।

अपने विद्यालय के छात्रों को कला उत्सव में विजेता होने पर एक शुभकामना संदेश लिखें

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शुभकामना संदेश

कला उत्सव में विजेता होने पर शुभकामनाएँ

 

दिनांक : 18 अप्रेल 2024

प्रिय साथी छात्रों

मुझे अभी–अभी पता चला कि आप सभी कला उत्सव प्रतियोगिता में विजेता रहे हैं। कला उत्सव में विजयी होने पर मेरी तरफ से आप सभी को हार्दिक बधाई।

आपकी इस उपलब्धि नें न केवल विद्यालय का नाम रोशन किया बल्कि हम सब का सीना भी गर्व से चौड़ा हो गया। आपने कला उत्सव में आयोजित विविध प्रतियोगिताओं में आप सभी छात्र-छात्राओं ने अपनी कला प्रतिभा दिखाई ।

कला उत्सव में गीत-संगीत के रंग बिखरे। आप सभी ने अपने विद्यालय का नाम रोशन किया है मुझे आप सभी पर गर्व है।

मेरी ओर से एक बार फिर आप सभी को आपकी इस जीत की हार्दिक शुभकामनाएं और मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आप भविष्य में तरक्की की नई ऊंचाइयों को छूएँ।

आपका अपना साथी,
विमल ।


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‘गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है’ पंक्ति में अलंकार है।

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“गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है”

अलंकार भेद : अनुप्रास अलंकार है।

स्पष्टीकरण :

“गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है” इस पंक्ति अनुप्रास अलंकार इसलिए है क्योंकि इस पंक्ति में  ‘ग’ वर्ण की दो बार आवृत्ति हुई है।

अनुप्रास अलंकार में किसी काव्य में किसी शब्द प्रथम वर्ण की एक से अधिक बार आवृ्त्ति होती है। इस काव्य पंक्ति में ‘गा-गाकर’ इस शब्द में ‘ग’ वर्ण की दो बार आवृत्ति हुई है।अनुप्रास अलंकार’ की परिभाषा के अनुसार जब किसी काव्य पंक्ति में किसी शब्द के प्रथम वर्ण की एक से अधिक बार पुनरावृति हो तो वहां पर ‘अनुप्रास अलंकार’ प्रकट होता है।

दूसरे नियम के अनुसार जब किसी समान शब्द की किसी काव्य पंक्ति में अनेक बार समान अर्थ में पुनरावृति हो तो भी वहाँ पर ‘अनुप्रास अलंकार’ प्रकट होता है।


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एक खिलाड़ी का साक्षात्कार

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पत्रकार ⦂ नमस्कार! सिंधु जी, आज मेरे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात है कि मैं आपके समक्ष बैठा हूँ और आपसे बात कर रहा हूँ।

पी. वी. सिंधु ⦂ धन्यवाद यह तो आपका बड़प्पन है जो आप मुझे इतना सम्मान दे रहे हैं।

पत्रकार ⦂ सिंधु जी आपकी रुचि खेलों में किस प्रकार हुई?

पी. वी. सिंधु ⦂ मेरे माता जी और पिता जी दोनों ही भारत के पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ी रह चुके हैं और मेरे पिता जी को वर्ष 2000 में उनके खेल के लिए अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। अतः मेरी खेल में रुचि का कारण है कि मैंने घर में ही शुरू से ही ऐसा माहौल देखा है।

पत्रकार ⦂ आप अपने माता-पिता के खेल क्षेत्र की तरफ आकर्षित क्यों नहीं हुई बल्कि आपने बैडमिंटन खेल को चुना ?

पी. वी. सिंधु ⦂ दरअसल इसके पीछे कारण है कि मैं बैडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचन्द की सफलता से बहुत प्रभावित हुई थी जो वर्ष 2001 में आल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियन थे।

पत्रकार ⦂ आपने कितने वर्ष की उम्र से बैडमिंटन खेलना प्रारंभ कर दिया था ?

पी. वी. सिंधु ⦂ मैं उस समय केवल आठ वर्ष की थी।

पत्रकार ⦂ आपकी ज़िंदगी में बहुत से पुरस्कार प्राप्त किए हैं, इनमें आपके लिए सबसे खास कौन सा है?

पी. वी. सिंधु ⦂ सभी पुरस्कार मेरे लिए बहुत खास हैं लेकिन इनमें सबसे खास है जब मुझे साल 2020 में भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार–पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था, इससे पहले साल 2015 में मुझे पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

पत्रकार ⦂ आपका बहुत–बहुत धन्यवाद और आपको आपके आने वाले जीवन की ढेर सारी शुभकामनाएँ।

पी. वी. सिंधु ⦂ धन्यवाद !


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यू नू म्यानमार के पहले प्रधानमंत्री थे। वह बर्मा (म्यानमार) के राष्ट्रपिता माने जाने वाले ‘आंग सान’ के सहयोगी थे। आंग सान म्यानमार एक स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे, जो 1946 से 1947 तक तत्कालीन बर्मा जो कि अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत आता था, उसके शासनाध्यक्ष थे। उनकी 19 जुलाई 1947 को हत्या कर दी गई थी। आंग सान के सहयोगी यू नू के नेतृत्व में 4 जनवरी 1948 को म्यामार को तत्कालीन ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी। वह बर्मा के पहले प्रधानमंत्री बने। वह 4 जनवरी 1948 से 12 जून 1956 तक म्यानमार के प्रधानमंत्री रहे। यू नू का जन्म 4 अप्रैल 1960 को हुआ था और उनका निधन 2 मार्च 1962 को हुआ। आंग सान की पुत्री ‘आंग सान सू की’ वर्तमान समय में बर्मा में लोकतंत्र की स्थापना के लिए संघर्ष कर रही हैं।


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इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा मेक इन इंडिया नीति का प्रावधान रखा है । इस नीति का उद्देश्य देश में होने वाले निर्यात को कम करना और देश में रोजगार के अवसर पैदा करना है जिससे हमारे देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा । यह एक क्रांतिकारी नीति है जिससे भारत में कारोबार करने की प्रक्रिया बहुत आसान हो जाएगी । आज तक हमें किसी भी तरह के कच्चे माल के लिए बाहरी देशों पर निर्भर रहना पड़ता है और इसी कारण महंगाई भी बढ़ जाती है ।

इस नीति के द्वारा भारत में ही वस्तुओं के निर्माण, चाहे देशी हो या विदेशी, पर ज़ोर दिया जा रहा है । इस मेक इन इंडिया नीति के तहत महत्वपूर्ण कौशल विकास वाले क्षेत्रों को और अधिक विकसित करने पर ज़ोर दिया जा रहा है और ऐसी तकनीकों का विकास किया जा रहा है जिससे पर्यावरण भी कम प्रभावित हो। घरेलू व्यवसाय करने वालों को लाइसेंस दिये जा रहे हैं जिसकी वैधता 3 वर्ष रखी गयी है । मेक इन इंडिया के तहत आटो मोबाइल, केमिकल, इलेक्ट्रोनिक, गैस, रेलवे, खाद्य प्रसंस्करण, सोलर लाइट्स, आदि क्षेत्रों में देश को आत्मनिर्भर बनाने पर बल दिया जा रहा है ताकि भारत के अंदर विदेशी कंपनियाँ ज्यादा से ज्यादा निवेश करें ताकि भारत भी विदेशी उत्पादन कर सके । इस कदम से रोजगार के क्षेत्र में भी क्रांति आई है और कई सारे छोटे और बड़े देशी उद्योग खुलने से नौजवानों को रोजगार के नए अवसर मिल रहे हैं ।

सरकार तो इस नीति के अंतर्गत बहुत सी विदेशी कंपनियों को भारत में टैक्स की भी छूट दे रही है ताकि विदेशी कंपनियों को भारत लाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके । अभी तक इस योजना के तहत तकरीबन 10 लाख लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है । जैसे-जैसे भारत के अंदर देशी उत्पादन की मांग बढ़ती जाएगी, रोजगार के अवसर और बढ़ते जाएंगे और देश की अर्थव्यवस्था भी सुधार जाएगी । यह नीति पढ़ें लिखे नौजवानों को उनके कौशल के अनुसार रोजगार की भी गारंटी देती है ।

देशवासियों, अभी तक तो आप सब ने मेरा और मेरी सरकार का इस क्रांतिकारी कदम में दिल खोल कर साथ दिया है लेकिन अभी मंजिल बहुत दूर है और इसलिए मुझे आपका साथ लंबे समय तक चाहिए ताकि हम सब मिलकर इस मेक इन इंडिया मुहिम के तहत देश को आत्मनिर्भर बना सकें और हमारी अर्थव्यवस्था पूरे विश्व के लिए एक मिसाल बन जाए। इस नीति से ना केवल नए व्यवसाय खोलने का मौका मिल रहा है बल्कि बंद पड़े व्यवसाय भी द्वारा शुरू हो रहे हैं। इसलिए में एक बार पुनः आप सब से अनुरोध करता हूँ कि आप सब इस मुहिम में मेरा साथ दे और विदेशी वस्तुओं को जहां तक हो सके, न खरीदें और भारत में बनी वस्तुओं का ही इस्तेमाल करें ताकि कोई भी बाहरी देश हमारी इस निर्भरता का गलत फायदा न उठा सके। जय हिन्द – जय भारत


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मेले में अपने पसंदीदा व्यंजन के बारे में अपने अनुभव को हिन्दी में लिखिए।

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मेले में पसंदीदा व्यंजन बारे में अनुभव

 

मेले में पसंदीदा व्यंजन का अनुभव आज कल मैं अपने नाना नानी के पास छुट्टियों में आया हुआ हूँ और खूब मजे कर रहा हूँ। कल हमारे गाँव में शिव मंदिर के पास एक मेले का आयोजन किया गया, यह मेल हमारे गाँव में हर साल होता है और साथ के सभी गाँव इस मेले में हिस्सा लेते हैं।

मेले में तरह तरह की खेल प्रतियोगिताएं का आयोजन होता है। भांति-भांति के व्यंजन बनाए जाते हैं। इस बार मैंने भी मेले में कई तरह के व्यंजनों का आनंद लिया लेकिन सबसे ज्यादा आनंद मुझे मेरे पसंदीदा व्यंजन को खाने में आया।

मेले में एक पहाड़ी मुख्य व्यंजन सिडू भी बनाए गए थे और मेरा तो यह पसंदीदा व्यंजन है। मुझे पहले इस व्यंजन के बारे में कुछ भी पता नहीं था क्योंकि मेरे दादी के घर में यह नहीं बनाए जाते लेकिन पिछली बार जब मैं नानी के घर आया था तो नानी ने मुझे सिडू बनाकर खिलाए थे और मुझे बहुत पसंद आए थे और तब से यह मेरा पसंदीदा व्यंजन है।

यह केवल पहाड़ों में ही बनाया जाता है और यह बहुत ही पौष्टिक होता है। इसे बनाने के लिए गेहूँ के आटे का इस्तेमाल किया जाता है और इसका आकार गोल होता है और इसमें तरह-तरह के सूखे मेवे डाले जाते हैं और फिर इसे पकाने के बाद देसी घी के साथ इसका सेवन किया जाता है।

मेरी नानी बताती है कि क्योंकि सर्दियों में गरम चीज़ें सेहत के लिए अच्छी होती हैं इसलिए यह पहाड़ों में बहुत बनाई और खाई जाती हैं क्योंकि पहाड़ों में ठंड बहुत पड़ती है। मेरे साथ मेरा एक दोस्त भी ऊना से आया हुआ था और उसने भी इस मेले का बहुत आनंद उठाया और उसे मेरा पसंदीदा व्यंजन बहुत पसंद आया और उसने नानी से इसे बनाने की विधि भी का भी पूरा ज्ञान लिया। मेले में बने मजेदार वातावरण और वहाँ पर मेरे पसंदीदा व्यंजन मिलने से मेरी छुट्टियों का मज़ा दोगुना हो गया।


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लोग चूड़ियों के बदले क्या दे जाते थे ? (लाख की चूड़ियां’ पाठ)

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लोग चूड़ियों के बदले अनाज ले जाया करते थे।

‘लाख की चूड़ियां’ पाठ में बदलू लाख की चूड़ियां बनाता था। वह चूड़ियों के बदले पैसे नहीं लेता था बल्कि वस्तु विनिमय करता था और जो लोग उससे चूड़ियां ले जाते वे अनाज के बदले उससे चूड़ियां ले जाते थे। बदलू का स्वभाव बहुत सरल था। वो किसी से झगड़ता नहीं था वह अपने अनाज और अन्य जरूरत की चीजों के बदले अपनी चूड़ियां दे दे जाता। उस समय यह वस्तु विनिमय का तरीका था। हाँ, जब कभी शादी विवाह का अवसर होता था तो वह चूड़ियां के बदले पैसे भी ले लेता था। गाँव में किसी की शादी-विवाह के मौके पर कपड़े, अनाज, रुपए आदि लेता था। सामान्य तौर पर चूड़ियों के बदले अनाज या अन्य कोई जरूरी वस्तु ही लेता था।

‘लाख की चूड़ियाँ’ पाठ ‘कामतानाथ’ द्वारा लिखा गया है। उसमे बदलू नाम के कारीगर का वर्णन किया गया है जो कि लाख की चूड़ियाँ बनाता था। उसकी बनाई लाख की चूड़ियों की बहुत मांग थी। उसके गाँव एवं आसपास के गाँव से लोग आकर उसकी लाख की चूड़ियाँ ले जाते थे और बदले में उसे अनाज आदि दे जाते थे। बदलू का काम बड़ा अच्छा चल रहा था। लेकिन काँच की चूड़ियों का प्रचलन बढ़ने पर बदलू की बनाई लाख की चूड़ियों की मांग कम हो गई और धीरे-धीरे उसका धंधा चौपट हो गया।

संदर्भ पाठ :
‘लाख की चूड़ियाँ’, कामतानाथ (कक्षा – 8, पाठ – 2)


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