‘माता का आंचल’ पाठ में भोलानाथ और उसके दोस्त सभी बच्चे कनस्तर का तंबूरा बजाकर, शहनाई बजाकर और वह टूटी चूहेदानी की पालकी बनाकर नकली बारात निकालने थे। उसमें बच्चे बाराती बनते, समधी बनते, दूल्हा दुल्हन बनते। वह किसी बकरे पर चढ़कर ऐसा स्वांग रचते जैसे दूल्हा घोड़े पर चढ़कर बारात लेकर जा रहा है। कुछ बच्चे बाराती बनते तो कुछ बच्चे समधी बनते। बच्चे आंगन के एक कोने से दूसरे कोने लगाते। जब बच्चे वापस लौटते तो खटौली लाल कपड़ा डालकर उसने दुल्हन को चढ़ा देते। वह इस तरह का खेल खेलते जैसे वह दुल्हन लेकर लौटे हैं।
वापस लौटने पर भोलानाथ के बाबूजी भी इस कार्यक्रम में शामिल हो जाते थे। वह लाल कपड़ा उठाकर दुल्हनिया का चेहरा निहारते और फिर सभी बच्चे हंसकर छुप जाते। बाबूजी का भी छोटों के साथ इस तरह बच्चों के खेल में शामिल होना उनका छोटो के प्रति वात्सल्य प्रेम का एक उदाहरण था। भोलेनाथ के बाबूजी भोले-भाले परम स्नेही व्यक्ति थे। उनके मन में सभी बच्चों के प्रति अनुराग और स्नेह की भावना थी। इसी कारण वह बच्चों के झूठे-मोटे खेल वाले नाटक में सम्मिलित हो जाते थे और बेहद खुशी से सभी बच्चों का साथ देते और उनका खेल भी देखा करते थे। हम छोटों के प्रति बाबूजी के इस प्रेम से ये प्रेरणा ग्रहण करेंगे कि बच्चे मन के निर्मल होते हैं। उनके सरल-सहज खेलों में यदि बड़े शामिल होते हैं, तो इससे बच्चों पर सकारात्मक असर पड़ता है। बच्चों के प्रति इस तरह के वात्सल्यपूर्ण व्यवहार से बच्चे और बडों को प्रति आत्मयी संबंध मजबूत होते हैं।
‘माता का आंचल’ पाठ शिवपूजन सहाय द्वारा लिखा गया एक संस्मरण पाठ है, जिसमें लेखक ने तारकेश्वरनाथ के बचपन के दिनों का वर्णन किया है। तारकेश्वरनाथ का बचपन का नाम भोलानाथ था। भोलानाथ के अपने माता और पिता के साथ कैसे सहज संबंध थे, किस तरह बचपन में भोलानाथ के माता-पिता ने उसका लालन पालन किया, इस पाठ में लेखक ने यही बताया है। बचपन की छोटी-छोटी घटनाओं को आधार बनाकर लेखक ने पूरी कहानी को रचा है।