जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी का प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण इस प्रकार बनी है, क्योंकि जाति प्रथा के कारण व्यक्ति विशेष को किसी एक निश्चित पेशे से ही बांध दिया जाता था। जाति प्रथा के अंतर्गत हर समुदाय को एक पेशा निश्चित कर दिया गया था, उस समुदाय को वही पेशा करना पड़ता था।
उदाहरण के लिए बढ़ाई जाति केवल फर्नीचर आदि बनाने का ही काम करते थे। नाई जाति से संबंधित लोग केवल बाल काटने का ही कार्य करते थे। उसी प्रकार जूते-चप्पल बनाने और मरम्मत का कार्य वह मोची समुदाय के लोगों को निश्चित कर दिया गया था। लोहार जाति के लोग लोहे से संबंधित कार्य ही करते थे। वैश्य समुदाय के लोग व्यापार के कार्य में संलग्न होते थे। ब्राह्मणों के लिए शिक्षा प्रदान करना और पूजा पाठ के कार्य निश्चित थे। क्षत्रियों का कार्य शासन-प्रशासन का कार्य करना होता था।
इस तरह भारत में जाति प्रथा के अंतर्गत हर समुदाय के लिए एक निश्चित पेशा ही सुनिश्चित कर दिया गया था। इसी कारण वह व्यक्ति दूसरा कोई पेशा नहीं अपना पाता था। यदि उस व्यक्ति के सामने अपने पेशे में पर्याप्त रोजगार उपलब्ध नहीं होता था तो वह कोई दूसरा पेशा नहीं कर पता था। इसी कारण उस विशेष जाति से संबंधित लोग अपने जाति से संबंधित पेशे में पर्याप्त रोजगार न होने पर बेरोजगार रह जाते थे।
प्राचीन भारत में यह व्यवस्था बड़े जोरों पर प्रचलित थी, लेकिन आधुनिक भारत में ऐसा नहीं है। हालाँकि कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह प्रथा अभी भी जारी है। आज के आधुनिक भारत में जाति प्रथा अब पूरी तरह प्रासंगिक नहीं रह गई है। अब व्यक्ति को अपने योग्यता के आधार पर किसी भी पेशे को चुनने का अधिकार है। वह अपनी शिक्षा और योग्यता के आधार पर किसी भी तरह के पेशे में जा सकता है।
भारतीय संविधान के मुताबिक किसी जाति के आधार पर एक व्यक्ति को एक निश्चित पेशे में नहीं बांधा जा सकता है। हालांकि पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में जाति प्रथा अभी भी जारी है, जिस कारण यह बेरोजगारी का प्रमुख कारण भी बनी है।
यही कुछ बिंदु हैं, जिनके कारण जातिप्रथा भारत में बेरोजगारी का प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।