निबंध
वैदिक शिक्षा और विज्ञान
वैदिक शिक्षा और विज्ञान वैदिक युग में शिक्षा व्यक्ति के चहुँमुखी विकास के लिए थी । जब विश्व के शेष भाग बर्बर एवं प्रारम्भिक अवस्था में थे, भारत में ज्ञान, विज्ञान तथा चिन्तन अपने चरमोत्कर्ष पर था ।
वैदिक काल में शिक्षा
वैदिक काल में विद्वानों का मानना था कि शिक्षा ज्ञान है और वह मनुष्य का तीसरा नेत्र है । शिक्षा के द्वारा समस्त मानव जीवन का विकास सम्भव है। वैदिक काल में ईश्वर-भक्ति तथा धार्मिकता की भावना बहुत अधिक प्रबल थी।
चरित्र- निर्माण, व्यक्तित्व का विकास, नागरिक तथा सामाजिक कर्तव्यों का पालन को प्राथमिकता दी जाती थी। सामाजिक कुशलता की उन्नति तथा राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण और प्रसार भी बहुतायत से होता था।
वैदिक काल में गुरुकुल प्रणाली थी । छात्र माता-पिता से अलग, गुरु के घर पर ही शिक्षा प्राप्त करता था, यह पद्धति गुरुकुल पद्धति कहलाती थी। अन्य सहपाठियों के साथ वह गुरुकुल मे ब्रह्मचर्य का पालन करता हुआ शिक्षा प्राप्त करता था। आचरण की शुद्धता व सात्विकता को प्रमुखता दी जाती थी । अविवाहित छात्रों को ही गुरुकुल में प्रवेश मिलता था।
वैदिक युग में शिक्षा, गुरु प्रत्येक छात्र का विकास करने के लिए प्रयत्नशील रहता था तथा उनका शारीरिक तथा मानसिक विकास करता था । वैदिक युग में शिक्षा मौखिक रूप से शिक्षण किया जाता था । इसका प्रमुख कारण था-लेखन कला तथा मुद्रण कला का अभाव ।
उस समय मौखिक रूप से अध्यापक आवश्यक निर्देश देते थे । छात्र उन निर्देशों का पालन करते थे । शिक्षण विधि में प्रयोग एवं अनुभव, कर्म तथा विवेक को महत्व दिया जाता था ।
विज्ञान
वर्तमान युग में विज्ञान का प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र में देखने को मिलता है । आज विज्ञान के बिना समाज की कल्पना करना असंभव है । हमारी संस्कृति में विज्ञान घुल-मिल गया है । विज्ञान की शिक्षा के प्रचार व प्रसार से मानव की विचारधारा में बहुत परिवर्तन आया है । विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
प्राचीन समय में इसे भौतिक विज्ञान के नाम से जाना जाता था एवं उच्च शैक्षिक संस्थानों में छात्र इसे अत्यंत उत्साह से पढ़ते थे । भारतीय पुनर्जागरण के समय (बीसवीं सदी के प्रारंभ) में भारतीय वैज्ञानिकों ने उल्लेखनीय प्रगति की थी ।
1947 में देश के आजाद होने के पश्चात संस्थाओं की स्थापना की गई ताकि विज्ञान के क्षेत्र में हुई इस सहज एवं रचनात्मक प्रगति को और बढ़ावा मिल सके । इस कार्य में विभिन्न राज्यों ने भी अपना भरपूर सहयोग दिया । इसके बाद से भारत सरकार ने देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की आधुनिक अवसंरचना के निर्माण में कोई कसर नहीं छोड़ी है ।
निष्कर्ष
इस प्रकार हम पाते हैं कि वैदिक काल में शिक्षा और ज्ञान का बेहद महत्व था। आज के वैज्ञानिक युग में विज्ञान का महत्व है। वैदिक काल में शिक्षा के महत्व से हमें पता चलता है कि हमारे भारत में प्राचीनकाल से ही शिक्षा और ज्ञान की एक समृद्ध परंपरा रही है।