डॉक्टर चंद्रा डेढ़ वर्ष की आयु में पक्षाघात अर्थात पोलियो की बीमारी का शिकार हो गई थी।
‘अपराजिता’ पाठ में डॉक्टर चंद्रा अपने जीवन के 18 महीने अर्थात डेढ़ वर्ष की आयु में पक्षाघात (पोलियो) नामक बीमारी का शिकार हो गई। उसे ये बीमारी बचपन में तीव्र ज्वर होने के बाद हुई। जब मात्र डेढ़ वर्ष की आयु की थी तो एक दिन उसे तेज बुखार आया। उसके बाद उसके शरीर का गर्दन के नीचे का हिस्सा पूरी तरह निष्क्रिय हो गया था।
डॉक्टरों ने चंद्रा के माता-पिता को बताया कि वह जिंदगी भर अपने गर्दन के नीचे के हिस्से को हिला नहीं सकेगी और उसे पूरा जीवन व्हीलचेयर पर ही बिताना पड़ेगा।
‘अपराजिता’ पाठ की कहानी लेखिका शिवानी द्वारा लिखी गई एक प्रेरणादायक कहानी है, जिसमें डॉक्टर चंद्रा नामक एक ऐसे ही साहसी युवती की कहानी है, जो पोलियो पक्षाघात से प्रभावित हो गई। इस कारण उसके गर्दन के नीचे का हिस्सा निर्जीव हो गया था, लेकिन उसने अपने शारीरिक विकलांगता को कठिन चुनौती की तरह लिया और अपने जीवन से संघर्ष करती रही। उसने किसी तरह अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी की और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद विज्ञान के क्षेत्र में योगदान दिया। उसकी इस जीवन यात्रा में उसकी माँ टी सुब्रह्मण्यम का अहम योगदान था।