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अपने विद्यालय के छात्रों को कला उत्सव में विजेता होने पर एक शुभकामना संदेश लिखें

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शुभकामना संदेश

कला उत्सव में विजेता होने पर शुभकामनाएँ

 

दिनांक : 18 अप्रेल 2024

प्रिय साथी छात्रों

मुझे अभी–अभी पता चला कि आप सभी कला उत्सव प्रतियोगिता में विजेता रहे हैं। कला उत्सव में विजयी होने पर मेरी तरफ से आप सभी को हार्दिक बधाई।

आपकी इस उपलब्धि नें न केवल विद्यालय का नाम रोशन किया बल्कि हम सब का सीना भी गर्व से चौड़ा हो गया। आपने कला उत्सव में आयोजित विविध प्रतियोगिताओं में आप सभी छात्र-छात्राओं ने अपनी कला प्रतिभा दिखाई ।

कला उत्सव में गीत-संगीत के रंग बिखरे। आप सभी ने अपने विद्यालय का नाम रोशन किया है मुझे आप सभी पर गर्व है।

मेरी ओर से एक बार फिर आप सभी को आपकी इस जीत की हार्दिक शुभकामनाएं और मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आप भविष्य में तरक्की की नई ऊंचाइयों को छूएँ।

आपका अपना साथी,
विमल ।


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‘गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है’ पंक्ति में अलंकार है।

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“गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है”

अलंकार भेद : अनुप्रास अलंकार है।

स्पष्टीकरण :

“गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है” इस पंक्ति अनुप्रास अलंकार इसलिए है क्योंकि इस पंक्ति में  ‘ग’ वर्ण की दो बार आवृत्ति हुई है।

अनुप्रास अलंकार में किसी काव्य में किसी शब्द प्रथम वर्ण की एक से अधिक बार आवृ्त्ति होती है। इस काव्य पंक्ति में ‘गा-गाकर’ इस शब्द में ‘ग’ वर्ण की दो बार आवृत्ति हुई है।अनुप्रास अलंकार’ की परिभाषा के अनुसार जब किसी काव्य पंक्ति में किसी शब्द के प्रथम वर्ण की एक से अधिक बार पुनरावृति हो तो वहां पर ‘अनुप्रास अलंकार’ प्रकट होता है।

दूसरे नियम के अनुसार जब किसी समान शब्द की किसी काव्य पंक्ति में अनेक बार समान अर्थ में पुनरावृति हो तो भी वहाँ पर ‘अनुप्रास अलंकार’ प्रकट होता है।


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किसी खिलाड़ी का साक्षात्कार लिखें।

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एक खिलाड़ी का साक्षात्कार

पी. वी. सिंधु (खिलाड़ी) का साक्षात्कार

 

पत्रकार ⦂ नमस्कार! सिंधु जी, आज मेरे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात है कि मैं आपके समक्ष बैठा हूँ और आपसे बात कर रहा हूँ।

पी. वी. सिंधु ⦂ धन्यवाद यह तो आपका बड़प्पन है जो आप मुझे इतना सम्मान दे रहे हैं।

पत्रकार ⦂ सिंधु जी आपकी रुचि खेलों में किस प्रकार हुई?

पी. वी. सिंधु ⦂ मेरे माता जी और पिता जी दोनों ही भारत के पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ी रह चुके हैं और मेरे पिता जी को वर्ष 2000 में उनके खेल के लिए अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। अतः मेरी खेल में रुचि का कारण है कि मैंने घर में ही शुरू से ही ऐसा माहौल देखा है।

पत्रकार ⦂ आप अपने माता-पिता के खेल क्षेत्र की तरफ आकर्षित क्यों नहीं हुई बल्कि आपने बैडमिंटन खेल को चुना ?

पी. वी. सिंधु ⦂ दरअसल इसके पीछे कारण है कि मैं बैडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचन्द की सफलता से बहुत प्रभावित हुई थी जो वर्ष 2001 में आल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियन थे।

पत्रकार ⦂ आपने कितने वर्ष की उम्र से बैडमिंटन खेलना प्रारंभ कर दिया था ?

पी. वी. सिंधु ⦂ मैं उस समय केवल आठ वर्ष की थी।

पत्रकार ⦂ आपकी ज़िंदगी में बहुत से पुरस्कार प्राप्त किए हैं, इनमें आपके लिए सबसे खास कौन सा है?

पी. वी. सिंधु ⦂ सभी पुरस्कार मेरे लिए बहुत खास हैं लेकिन इनमें सबसे खास है जब मुझे साल 2020 में भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार–पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था, इससे पहले साल 2015 में मुझे पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

पत्रकार ⦂ आपका बहुत–बहुत धन्यवाद और आपको आपके आने वाले जीवन की ढेर सारी शुभकामनाएँ।

पी. वी. सिंधु ⦂ धन्यवाद !


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भारत ने अपना पहला T-20 क्रिकेट मैच 1 दिसंबर 2006 को दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध खेला था। यह मैच भारत ने जीता था।

भारत का एक दिवसीय भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय टी-20 मैच 1 दिसंबर 2006 को दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध हुआ था। यह मैच दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग शहर में आयोजित किया गया था। इस मैच में भारत को 6 विकेट से जीत मिली थी। इस मैच में उस समय टीम के कप्तान वीरेंद्र सहवाग थे। इस मैच में प्रसिद्ध भारतीय खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर ने भी अपना एकमात्र टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेला था, क्योंकि उसके बाद उन्होंने कोई भी T20 अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेला। वर्तमान समय की 2022 की T-20 क्रिकेट विश्व कप की टीम में दिनेश कार्तिक एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं, जो उस समय भी भारत के पहले टी-20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टीम के सदस्य थे और वह उस मैच में ‘प्लेयर ऑफ द मैच’ रहे थे।


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भारत में मानव विकास रिपोर्ट सबसे पहले ‘मध्य प्रदेश’ राज्य ने जारी की थी।

मानव विकास रिपोर्ट पूरे विश्व में 1990 से निरंतर जारी की जाती रही है। मानव विकास सूचकांक से तात्पर्य उस समग्र सूचकांक से होता है, जो किसी देश में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। स्वास्थ्य यानी जीवन प्रत्याशा दर, शिक्षा यानी विद्यालय जाने के संभावित वर्ष और जीवन स्तर यानी प्रति व्यक्ति आय मानव विकास सूचकांक के मुख्य मानक होते हैं। भारत में राज्य स्तरीय मानव विकास सूचकांक जारी करने वाला पहला प्रदेश मध्य प्रदेश था। वर्तमान समय में उच्च मानव सूचकांक में भारत के राज्यों में केरल सर्व प्रथम स्थान पर है। तथा मध्यम मानव सूचकांक में भारत के राज्यों में बिहार सबसे निचले स्थान पर है।


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म्यानमार को 4 जनवरी 1948 को ‘यू नू’ (U Nu) के नेतृत्व में आज़ादी मिली थी।

यू नू म्यानमार के पहले प्रधानमंत्री थे। वह बर्मा (म्यानमार) के राष्ट्रपिता माने जाने वाले ‘आंग सान’ के सहयोगी थे। आंग सान म्यानमार एक स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे, जो 1946 से 1947 तक तत्कालीन बर्मा जो कि अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत आता था, उसके शासनाध्यक्ष थे। उनकी 19 जुलाई 1947 को हत्या कर दी गई थी। आंग सान के सहयोगी यू नू के नेतृत्व में 4 जनवरी 1948 को म्यामार को तत्कालीन ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी। वह बर्मा के पहले प्रधानमंत्री बने। वह 4 जनवरी 1948 से 12 जून 1956 तक म्यानमार के प्रधानमंत्री रहे। यू नू का जन्म 4 अप्रैल 1960 को हुआ था और उनका निधन 2 मार्च 1962 को हुआ। आंग सान की पुत्री ‘आंग सान सू की’ वर्तमान समय में बर्मा में लोकतंत्र की स्थापना के लिए संघर्ष कर रही हैं।


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‘मेक इन इंडिया’ पर प्रधानमंत्री का संदेश

 

प्यारे देशवासियों, आज हर देशवासी देश की अर्थव्यवस्था को लेकर चिंतित है और यह चिंता कोरोना महामारी के कारण आई त्रासदी के बाद तो और बढ़ गयी है लेकिन यह समय चिंता का नहीं, मंथन का है कि कैसे हम भारत देश को फिर सोने की चिड़िया बना सकें । इस दिशा में, देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने और नौजवानों को रोजगार मुहैया करवाने के लिए हमें अब एक ऐसा कदम उठाने की जरूरत है कि हमारे नौजवानों  को रोजगार के लिए किसी बाहर देश या कंपनी पर निर्भर ना रहना पड़े ।

इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा मेक इन इंडिया नीति का प्रावधान रखा है । इस नीति का उद्देश्य देश में होने वाले निर्यात को कम करना और देश में रोजगार के अवसर पैदा करना है जिससे हमारे देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा । यह एक क्रांतिकारी नीति है जिससे भारत में कारोबार करने की प्रक्रिया बहुत आसान हो जाएगी । आज तक हमें किसी भी तरह के कच्चे माल के लिए बाहरी देशों पर निर्भर रहना पड़ता है और इसी कारण महंगाई भी बढ़ जाती है ।

इस नीति के द्वारा भारत में ही वस्तुओं के निर्माण, चाहे देशी हो या विदेशी, पर ज़ोर दिया जा रहा है । इस मेक इन इंडिया नीति के तहत महत्वपूर्ण कौशल विकास वाले क्षेत्रों को और अधिक विकसित करने पर ज़ोर दिया जा रहा है और ऐसी तकनीकों का विकास किया जा रहा है जिससे पर्यावरण भी कम प्रभावित हो। घरेलू व्यवसाय करने वालों को लाइसेंस दिये जा रहे हैं जिसकी वैधता 3 वर्ष रखी गयी है । मेक इन इंडिया के तहत आटो मोबाइल, केमिकल, इलेक्ट्रोनिक, गैस, रेलवे, खाद्य प्रसंस्करण, सोलर लाइट्स, आदि क्षेत्रों में देश को आत्मनिर्भर बनाने पर बल दिया जा रहा है ताकि भारत के अंदर विदेशी कंपनियाँ ज्यादा से ज्यादा निवेश करें ताकि भारत भी विदेशी उत्पादन कर सके । इस कदम से रोजगार के क्षेत्र में भी क्रांति आई है और कई सारे छोटे और बड़े देशी उद्योग खुलने से नौजवानों को रोजगार के नए अवसर मिल रहे हैं ।

सरकार तो इस नीति के अंतर्गत बहुत सी विदेशी कंपनियों को भारत में टैक्स की भी छूट दे रही है ताकि विदेशी कंपनियों को भारत लाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके । अभी तक इस योजना के तहत तकरीबन 10 लाख लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है । जैसे-जैसे भारत के अंदर देशी उत्पादन की मांग बढ़ती जाएगी, रोजगार के अवसर और बढ़ते जाएंगे और देश की अर्थव्यवस्था भी सुधार जाएगी । यह नीति पढ़ें लिखे नौजवानों को उनके कौशल के अनुसार रोजगार की भी गारंटी देती है ।

देशवासियों, अभी तक तो आप सब ने मेरा और मेरी सरकार का इस क्रांतिकारी कदम में दिल खोल कर साथ दिया है लेकिन अभी मंजिल बहुत दूर है और इसलिए मुझे आपका साथ लंबे समय तक चाहिए ताकि हम सब मिलकर इस मेक इन इंडिया मुहिम के तहत देश को आत्मनिर्भर बना सकें और हमारी अर्थव्यवस्था पूरे विश्व के लिए एक मिसाल बन जाए। इस नीति से ना केवल नए व्यवसाय खोलने का मौका मिल रहा है बल्कि बंद पड़े व्यवसाय भी द्वारा शुरू हो रहे हैं। इसलिए में एक बार पुनः आप सब से अनुरोध करता हूँ कि आप सब इस मुहिम में मेरा साथ दे और विदेशी वस्तुओं को जहां तक हो सके, न खरीदें और भारत में बनी वस्तुओं का ही इस्तेमाल करें ताकि कोई भी बाहरी देश हमारी इस निर्भरता का गलत फायदा न उठा सके। जय हिन्द – जय भारत


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मेले में अपने पसंदीदा व्यंजन के बारे में अपने अनुभव को हिन्दी में लिखिए।

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मेले में पसंदीदा व्यंजन बारे में अनुभव

 

मेले में पसंदीदा व्यंजन का अनुभव आज कल मैं अपने नाना नानी के पास छुट्टियों में आया हुआ हूँ और खूब मजे कर रहा हूँ। कल हमारे गाँव में शिव मंदिर के पास एक मेले का आयोजन किया गया, यह मेल हमारे गाँव में हर साल होता है और साथ के सभी गाँव इस मेले में हिस्सा लेते हैं।

मेले में तरह तरह की खेल प्रतियोगिताएं का आयोजन होता है। भांति-भांति के व्यंजन बनाए जाते हैं। इस बार मैंने भी मेले में कई तरह के व्यंजनों का आनंद लिया लेकिन सबसे ज्यादा आनंद मुझे मेरे पसंदीदा व्यंजन को खाने में आया।

मेले में एक पहाड़ी मुख्य व्यंजन सिडू भी बनाए गए थे और मेरा तो यह पसंदीदा व्यंजन है। मुझे पहले इस व्यंजन के बारे में कुछ भी पता नहीं था क्योंकि मेरे दादी के घर में यह नहीं बनाए जाते लेकिन पिछली बार जब मैं नानी के घर आया था तो नानी ने मुझे सिडू बनाकर खिलाए थे और मुझे बहुत पसंद आए थे और तब से यह मेरा पसंदीदा व्यंजन है।

यह केवल पहाड़ों में ही बनाया जाता है और यह बहुत ही पौष्टिक होता है। इसे बनाने के लिए गेहूँ के आटे का इस्तेमाल किया जाता है और इसका आकार गोल होता है और इसमें तरह-तरह के सूखे मेवे डाले जाते हैं और फिर इसे पकाने के बाद देसी घी के साथ इसका सेवन किया जाता है।

मेरी नानी बताती है कि क्योंकि सर्दियों में गरम चीज़ें सेहत के लिए अच्छी होती हैं इसलिए यह पहाड़ों में बहुत बनाई और खाई जाती हैं क्योंकि पहाड़ों में ठंड बहुत पड़ती है। मेरे साथ मेरा एक दोस्त भी ऊना से आया हुआ था और उसने भी इस मेले का बहुत आनंद उठाया और उसे मेरा पसंदीदा व्यंजन बहुत पसंद आया और उसने नानी से इसे बनाने की विधि भी का भी पूरा ज्ञान लिया। मेले में बने मजेदार वातावरण और वहाँ पर मेरे पसंदीदा व्यंजन मिलने से मेरी छुट्टियों का मज़ा दोगुना हो गया।


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लोग चूड़ियों के बदले क्या दे जाते थे ? (लाख की चूड़ियां’ पाठ)

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लोग चूड़ियों के बदले अनाज ले जाया करते थे।

‘लाख की चूड़ियां’ पाठ में बदलू लाख की चूड़ियां बनाता था। वह चूड़ियों के बदले पैसे नहीं लेता था बल्कि वस्तु विनिमय करता था और जो लोग उससे चूड़ियां ले जाते वे अनाज के बदले उससे चूड़ियां ले जाते थे। बदलू का स्वभाव बहुत सरल था। वो किसी से झगड़ता नहीं था वह अपने अनाज और अन्य जरूरत की चीजों के बदले अपनी चूड़ियां दे दे जाता। उस समय यह वस्तु विनिमय का तरीका था। हाँ, जब कभी शादी विवाह का अवसर होता था तो वह चूड़ियां के बदले पैसे भी ले लेता था। गाँव में किसी की शादी-विवाह के मौके पर कपड़े, अनाज, रुपए आदि लेता था। सामान्य तौर पर चूड़ियों के बदले अनाज या अन्य कोई जरूरी वस्तु ही लेता था।

‘लाख की चूड़ियाँ’ पाठ ‘कामतानाथ’ द्वारा लिखा गया है। उसमे बदलू नाम के कारीगर का वर्णन किया गया है जो कि लाख की चूड़ियाँ बनाता था। उसकी बनाई लाख की चूड़ियों की बहुत मांग थी। उसके गाँव एवं आसपास के गाँव से लोग आकर उसकी लाख की चूड़ियाँ ले जाते थे और बदले में उसे अनाज आदि दे जाते थे। बदलू का काम बड़ा अच्छा चल रहा था। लेकिन काँच की चूड़ियों का प्रचलन बढ़ने पर बदलू की बनाई लाख की चूड़ियों की मांग कम हो गई और धीरे-धीरे उसका धंधा चौपट हो गया।

संदर्भ पाठ :
‘लाख की चूड़ियाँ’, कामतानाथ (कक्षा – 8, पाठ – 2)


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यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है, लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं ऐसा क्यों?

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यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ खुद को ढाल पाने में सक्षम होती है, लेकिन यशोधर बाबू ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि यशोधर बाबू परंपराओं वाले वातावरण में पले-बढ़े व्यक्ति थे। वह अपनी परंपराओं को पकड़ कर जीने वाले व्यक्ति थे। उनके ख्यालात पारंपरिक और पुराने थे। वह अपनी परंपराओं को चाह कर भी छोड़ पाने में असमर्थ थे।

बचपन में ही अपनी माता-पिता का निधन हो जाने के कारण उन पर जिम्मेदारियों का बोझ समय से पहले ही आ गया था। इस कारण वे समय से पहले ही परिपक्व बन गए थे। उनके स्वभाव में गंभीरता आ गई थी।

उसके अलावा किशनदास के संपर्क में आकर किशन दा के व्यक्तित्व का भी उन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। उन्होंने किशन दा को अपना आदर्श बनाया जो स्वयं परंपराओं का पालन करना करने वाले व्यक्ति थे। यशोधर बाबू ने अपना अधिकतर समय किशनदास के साथ ही बिताया इसीलिए निश्चित और नियमित जीवनशैली जीने के आदी हो गए थे।

उनकी पत्नी अपनी संतानों के साथ रही थी। उस पर किसी व्यक्ति का प्रभाव नही था। इसीलिए उसने अपने और अपने बच्चों के अनुसार शीघ्र ही ढाल लिया। वह अपनी संतान में ही अपना सुख देखती थी। यशोधर बाबू ने अपनी परंपराओं का पालन करने को प्राथमिकता देते थे। इसीलिए वह अपनी संतान के अनुसार और समय के अनुसार स्वयं को नहीं ढाल पाए।

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‘सिल्वर वेडिंग’ पाठ जोकि ‘मनोहर श्याम जोशी’ द्वारा लिखा गया है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने दो पीढ़ियों के बीच विचारों के टकराव को लेकर संघर्ष विचारों के टकराव के संघर्ष के बारे में वर्णन किया है। कहानी के मुख्य पात्र यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि उनकी संताने नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती हैं। दोनों पीढ़ियां अपने हिसाब से जीना चाहती हैं।

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विचार लेखन

सर्वधर्म समभाव

 

सर्वधर्म समभाव का अर्थ है, सभी धर्मों को समानता की दृष्टि से देखना। अपने मन में यह भाव रखना कि दुनिया में जितने भी धर्म हैं, वह सभी धर्म समान हैं। सभी धर्मों के रास्ते भले ही अलग हों, उनकी जीवन पद्धतियां भले ही अलग हों, लेकिन उनके लक्ष्य एक ही है और वह है ईश्वर को समझना। चाहे हिंदू हों, मुस्लिम हों, सिख हों अथवा ईसाई हों, बौद्ध हो, जैन हों, बौद्ध धर्म हों, जैन हों, पारसी हों, यहूदी हों सभी धर्म एक समान है। कोई भी धर्म बड़ा या कोई भी धर्म छोटा नहीं होता है। सभी धर्मों को समान समझना चाहिए। यही सर्वधर्म समभाव है।

आज के इस युद्ध में जब धर्मों के प्रति कट्टरता बढ़ती जा रही है और अपने-अपने धर्म के अनुयायी अपने-अपने धर्म को ही श्रेष्ठ समझने लगे हैं तथा दूसरे धर्म को हीन समझते हैं। ऐसी स्थिति में सर्वधर्म समभाव की भावना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। लोगों को सर्वधर्म समभाव के प्रति जागरूक करना बेहद आवश्यक हो गया है ताकि लोग सभी धर्म को समान समझे और अपने धर्म के अलावा दूसरे धर्म को घृणा की दृष्टि से नहीं देखें। वह सभी धर्म का सम्मान करें और दूसरे धर्म के अनुयायियों को भी अपने जैसा ही समझे तभी सर्वधर्म समभाव का मूल मंत्र इस समाज में सार्थक हो पाएगा।


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सही विकल्प है…

A. विजयलक्ष्मी पंडित

स्पष्टीकरण

सयुंक्त राष्ट्र महासभा का अध्यक्ष चुनी जाने वाली प्रथम भारतीय एक महिला थीं, जिनका नाम था, ‘विजयलक्ष्मी पंडित’ थीं। ‘विजय लक्ष्मी पंडित’ संयुक्त राष्ट्र महासभा का अध्यक्ष बनने वाली प्रथम भारतीय थी । वह संयुक्त राष्ट्र महासभा का अध्यक्ष बनने वाली ना केवल प्रथम भारतीय थीं, बल्कि वह विश्व की प्रथम महिला थीं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ का अध्यक्ष चुना गया था।

विजयलक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं। उनका जन्म 18 अगस्त 1900 को हुआ था और उनका उनकी मृत्यु 1 जनवरी 1990 को 90 वर्ष की अवस्था में हुई।

उनके पति का नाम सीताराम पंडित था, जो काठियावाड़ के एक प्रसिद्ध वकील थे। विजय लक्ष्मी पंडित ने अपने जीवन काल में अन्य पदों पर कार्य किया।

वह संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रथम भारतीय थीं, विश्व की प्रथम महिला अध्यक्ष भी रही। इसके अलावा भारत की कैबिनेट मंत्री बनने वाली प्रथम महिला थी।

वह 1937 में तत्कालीन संयुक्त प्रांत जिसे आज उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है कि प्रांतीय विधानसभा के लिए भी निर्वाचित हुई थी। स्थानीय स्वशासन और स्वास्थ्य मंत्री के पद पर भी रहे। 1946 की अवधि के दौरान भारतीय संविधान सभा की सदस्य चुनी गई, उन्होंने राज्यपाल और राजदूत के रूप में भी कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया था। उनके कुल तीन संतानें थी, जिनमें प्रसिद्ध उपन्यासकार नयनतारा सहगल उनकी पुत्री थी।


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लगभग सारे सामाजिक सुधारकों ने विद्यालय व उच्च शिक्षा के संस्थान ही इसलिए स्थापित किए क्योंकि सभी सामाजिक सुधारों को को मालूम था कि समाज में परिवर्तन और जागरूकता केवल शिक्षा के माध्यम से ही लाई जा सकती है। अशिक्षा और अज्ञानता की समाज के पतन का कारण बनती है। समाज में जो भी कुरीतियां और अंधविश्वास व्याप्त था, वह सब अशिक्षा और अज्ञानता के कारण ही था। सामाजिक सुधारकों ने जब समाज के सुधार के लिए प्रयत्न किए तो उन्होंने पाया कि भारतीय समाज में शिक्षा गहरी पैठ बनाए हुए हैं। लोग अशिक्षा और अज्ञानता के कारण अपने कुरीतियों और अंधविश्वासों से चिपके हुए हैं। सामाजिक सुधारकों को पता था कि जब तक उन्हें उच्च शिक्षा प्रदान नहीं की जाएगी, लोगों में जागरूकता नहीं आएगी, और समाज सुधार संभव नहीं है। शिक्षा ही लोगों की अज्ञानता और अंधविश्वास को दूर करती है और उच्च विचारों के आगमन का द्वार खोल सकती है। इसीलिए सारे सामाजिक सुधारकों ने विद्यालय व उच्च शिक्षा के संस्थान स्थापित किए।


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रहिमन जो तुम कहत थे , संगति ही गुरा होय !
बीच इखारी रस भरा , रस काहे ना होय !!

भावार्थ : रहीम के अनुसार सज्जन व्यक्तियों की संगति यानि सत्संग करने से लाभ प्राप्त होता है और सज्जन व्यक्तियों के सद्गुण हमारे अंदर आ जाते हैं। लेकिन जो दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति होते हैं। उन पर सज्जन व्यक्तियों की संगति करने से भी कोई असर नहीं होता, बिल्कुल उसी प्रकार जिस तरह ईख यानि गन्ने के खेत में कड़वा पौधा लगा होने के बावजूद उस पर गन्ने की मिठास का कोई असर नहीं होता और वह अपना कड़वापन नहीं छोड़ता। उसी प्रकार दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति सज्जन व्यक्तियों के साथ जाकर भी अपने दुष्प्रभाव को नहीं छोड़ पाते।


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विद्यालय छोड़ने का प्रमाण पत्र लेने के लिए प्रधानाचार्य को पत्र लिखें।

औपचारिक पत्र

विद्यालय छोड़ने का प्रमाण पत्र लेने के लिए प्रधानाचार्य को पत्र

 

दिनांक : 16 अप्रेल 2024

 

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य महोदय,
आदर्श जनता विद्यालय,
जयपुर (राजस्थान)

विषय : विद्यालय छोड़ने के लिए प्रमाणपत्र की मांग

 

आदरणीय सर,
मैं अभिजीत मीणा, कक्षा 9-B, का छात्र हूँ। मेरे पिताजी एक सरकारी विभाग में काम करते हैं और उनका स्थानांतरण जोधपुर हो गया है। इस कारण हमें सपरिवार जोधपुर स्थानांतरित होना पड़ रहा है। 10 दिनों बाद हम लोग सपरिवार जोधपुर स्थानांतरित हो जाएंगे।

अतः श्रीमान प्रधानाचार्य सर से निवेदन है कि मेरा विद्यालय का स्थानांतरण प्रमाण पत्र जारी करने की कृपा करें ताकि मैं जोधपुर में नये विद्यालय में प्रवेश ले सकूं। आपकी अति कृपा होगी।
धन्यवाद,

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
अभिजीत मीणा,
कक्षा : 9-B,
अनुक्रमांक : 45,
आदर्श जनता विद्यालय, जोधपुर ।


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पूर्वी रेलवे के उप महाप्रबंधक को एक शिकायती पत्र लिखते हुए बताइए कि किस प्रकार की अव्यवस्था एवं गन्दगी आपको कोलकाता रेलवे स्टेशन पर देखने को मिली और स्टेशन मास्टर से शिकायत करने पर भी आपकी बात नही सुनी गई।

आप सुमन हैं। नई कॉलोनी, कलकत्ता से आपके नाम से प्रेषित एक हजार रुपए के मनीऑर्डर की प्राप्ति होने की शिकायत करते हेतु अधीक्षक, डाक विभाग को पत्र लिखिए।

पूर्वी रेलवे के उप महाप्रबंधक को एक शिकायती पत्र लिखते हुए बताइए कि किस प्रकार की अव्यवस्था एवं गन्दगी आपको कोलकाता रेलवे स्टेशन पर देखने को मिली और स्टेशन मास्टर से शिकायत करने पर भी आपकी बात नही सुनी गई।

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औपचारिक पत्र

रेल उप महाप्रबंधक को शिकायत पत्र

 

दिनांक : 16 मार्च 2024

 

सेवा में,
श्रीमान उप प्रबंधक,
पूर्वी रेलवे (कोलकाता)

विषय : कोलकाता रेल्वे स्टेशन पर फैली गंदगी के संबंध में शिकायत

प्रबंधक महोदय,

पिछले दिनों में अपने परिवार के साथ कोलकाता से दिल्ली जा रहा था। मेरा दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस में सेकंड एसी का टिकट था। नियत समय पर जैसे ही हम लोग कोलकाता स्टेशन पर पहुंचे, हमें वह सब देखना पड़ा जिसकी हमें उम्मीद नहीं थी। कोलकाता जैसे महानगर उसके विश्वस्तरीय स्टेशन पर गंदगी का ढेर देखकर मुझे बड़ा दुख हुआ। रेलवे स्टेशन परिसर में घुसते ही चारों तरफ कूड़ा जगह-जगह कूड़ा-करकट नजर आ रहा था और कोई भी सफाई कर्मी दिखाई नहीं दे रहा था।

पूरे स्टेशन में  इक्का-दुक्का सफाई कर्मी नजर आए भी तो वह बीड़ी पीते हुए अथवा गप्पें लड़ाते हुए नजर आए। एक जगह केले का छिलका पड़ा होने के कारण मेरा पुत्र फिसलते-फिसलते बचा। कूड़ेदान भी हर जगह नही थे, जहां पर थे, वहां पर पहले से ही भरे हुए थे, चूँकि हम अपनी ट्रेन के समय से एक घंटा पहले पहुंच गए थे, इसलिए मेरे पास समय था। इसलिये मैं स्टेशन मास्टर से शिकायत करने उनके ऑफिस गया और अपनी शिकायत दर्ज कराई। लेकिन उसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई, और किसी भी सफाई कर्मी ने सफाई करने की कोशिश नहीं की।

हमारी ट्रेन का समय होने पर हम हमारी ट्रेन में सवार हो गए, लेकिन मैंने देखा ट्रेन चलते-चलते समय भी मैंने देखा कि कोई भी सफाई कर्मी सफाई का प्रयास नहीं कर रहा था। ना ही स्टेशन मास्टर ने ऐसा कोई आदेश दिया है, ऐसा प्रतीत होता था।कृपया इस संबंध में उचित कार्रवाई करें। यह हमारे कोलकाता और उसके स्टेशन प्रतिष्ठा का सवाल है।

आशा है, यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए आप स्टेशन पर पर्याप्त सफाई करने का निर्देश देंगे, और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई में अंतर करेंगे।

आशीष गौड़,
पिरामल नगर, कोलकाता ।


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अपने कम्प्यूटर खरीदा किंतु खरीदने के 1 महीने बाद ही उसमें खराबी आ गई। आपकी शिकायत पर दुकानदार ने कोई ध्यान नहीं दिया। कंपनी के मुख्य प्रबंधक को पत्र लिखकर घटना की जानकारी देते हुए उनसे अनुरोध कीजिए कि वह उचित कार्रवाई करें।

हड़प्पा सभ्यता की मुहरों के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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हड़प्पा सभ्यता में अनेक तरह की मोहरी मिली है। इन मोहरों छोटे-छोटे को पत्थरों पर उकेरा जाता था तथा उन्हें टिकाऊ बनाने के लिए जला दिया जाता था, जिससे वह लंबे समय तक स्थाई रहती थीं।

हड़प्पा सभ्यता अधिकतर मोहरों स्टीटाइट नमक नामक पत्थर से बनी होती थीं। स्टीटाइट पत्थर जल में पाया जाने वाला एक नरम पत्थर होता था। इसके अलावा बहुत सी मोहरें तांबा, टेराकोटा, एगेट, चर्ट, फाइनास जैसी सामग्रियों से भी बनी होती थीं। सोने तथा हाथी दांत की बनी मोहरे भी हड़प्पा सभ्यता में प्राप्त हुई है।

हड़प्पा सभ्यता में कुछ मोहरे ऐसी भी मिली है, जिनमें में एक छेद होता था। इस छेद में धागा डाला जा सकता था। संभवतः ऐसी मोहरें ताबीज अथवा हार आदि बनाने के लिए उकेरी जाती थीं।

हड़प्पा सभ्यता में जितने भी मोहरे प्राप्त हुई है, उनमें अधिकतर मोहरों में प्रतीक के रूप में कोई चित्र वगैरह उकेरा हुआ होता था अथवा चित्रात्मक लिपि होती थी। यह लिपि दाएं से बाएं  अथवा बाएं से दाएं लिखी जाती थी। कुछ मोहरें प्राप्त हुई है जिनमें बाएं से दाएं और दाएं से बाएं दोनों तरह की उकेरी हुई लिपि भी मिली है।

हड़प्पा सभ्यता की मोहरों में अधिकतर मोहरों पर जानवरों के चित्र उकेरे हुए होते थे। इन जानवरों में बाघ, बैल, गैंडे, बकरी, भैंसा, कूबड़ वाला बैल, मगरमच्छ, बाइसन, आईबैक्स जैसे पशुओं के चित्र उकेरे हुए होते थे।

हड़प्पा सभ्यता की मोहरों की विशेषता यह थी की अधिकतम मोहरें चौकोर आकार की होती थी। इन मोहरों में ऊपर की तरफ प्रतीको का समूह अंकित होथा। केंद्र में किसी पशु का चित्र वगैरह उकेरा हुआ होता था और नीचे की तरफ एक या दो से अधिक प्रतीक चिन्ह उकेर गए होते थे।

हड़प्पा सभ्यता में जो सबसे उल्लेखनीय मोहर प्राप्त हुई है, वह ‘पशुपति’ मोहर कहलाती है। यह मोहर स्टीटाइट पत्थर से बनी हुई होती थी। इस मोहर में एक तरफ मानव आकृति थी, जो पालथी मारे हुए किसी देवता की आकृति थी। इतिहासकारों ने माना है कि ये मोहर देवता पशुपति है। ये देवता तीन सींग वाली टोपी पहने हुए हैं। उनके और चारों तरफ जानवर है। एक तरफ हाथी और बाघ तथा दूसरी तरफ गैंडा और भैंसे का चित्र अंकित है।  देवता की आकृति के नीचे दो मृग के चित्र भी अंकित हैं। पशुपति नाम की ये मोहर हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रसिद्ध मोहर है।

हड़प्पा काल की इन मोहरों को व्यापारिक कार्यों के लिए प्रयोग में लाया जाता था। इसके अवाला कुछ अन्य गतिविधियां भी शामिल थीं, जैसे – जैसे किसी माल की कोई एक स्थान से दूसरे स्थान लाने ले जाने या भेजने में मोरों को सील के रूप में या टैग के रूप में प्रयोग किया जाता था।

माल की बोरी को रस्सी से बांध कर गांठ में गीली मिट्टी की सहायता से मोहरों का अंकन कर दिया जाता था, जिससे गीली मिट्टी पर मोहर की छाप पड़ जाती थी। यह कुछ सामान पर टैग अथवा सील का काम करती थी।

मोहरों को जार आदि जैसे बर्तनों को सील करने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता था।


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“मकान के लिए नक्शा पसंद करना हमारी संस्कृति का परिचायक है।’ ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि-(क) घर हमारी सभ्यता की पहचान है। (ख) अन्य लोगों से जोड़ने का माध्यम है। (ग) नक्शे के बिना मकान बनाना कठिन है। (घ) हमारी सोच-समझ को उजागर करता है।”

प्रौद्योगिकी इतनी आगे बढ़ चुकी है कि इंसानों की जगह मशीनें लेती जा रही हैं। अपने विचार लिखिए।

विचार लेखन

प्रौद्योगिकी इंसानों की जगह ले चुकी है

 

प्रौद्योगिकी अब इतना आगे बढ़ चुकी है कि इंसानों की जगह मशीनें ले चुकी है। इस बात में जरा भी संदेह नहीं है। आज हम चारों तरफ प्रौद्योगिकी का प्रभाव देख रहे हैं। प्रौद्योगिकी ने हमारे जीवन में इस कदर गहरी पैठ बना ली है कि हम प्रौद्योगिकी पर अत्याधिक निर्भर हो चुके हैं।

पहले जो काम करने में हमें घंटो लगते थे, अब हम मिनटो में मशीनों की सहायता से हो जाते हैं। इसी कारण प्रौद्योगिकी के कारण इंसानों की जगह मशी लेती जा रही हैं, क्योंकि मशीनों द्वारा प्रौद्योगिकी की सहायता से हम लंबे समय में किए जाने वाले कार्य को थोड़े समय में ही संपन्न कर ले पा रहे हैं।

अगर कपड़े धोने की बात आए तो हम अब हाथ से कपड़े धोने की जगह वॉशिंग मशीन पड़ने पर निर्भर हो गए हैं। बर्तन धोने के लिए डिश वाशर का प्रयोग करते हैं। किसी इमारत में ऊपरी मंजिल पर चढ़ने के लिए सीढ़ियों की जगह अब लिफ्ट का उपयोग करते हैं। रसोई घर में मसाला पीसने के लिए मिक्सर का प्रयोग करते हैं।

इसी तरह दैनिक जीवन के रोजमर्रा के कार्यों में इंसान जो काम खुद अपने हाथ से करता था, वह अब मशीनों के माध्यम से करने लगा है।

प्रौद्योगिकी के विकास के कारण मशीनों द्वारा इंसान का जगह लिए जाने के लाभ हैं तो इससे अधिक हानियाँ भी हैं। मशीनों द्वारा कार्य जहाँ हमारे समय की बचत होती है, यही एकमात्र लाभ है तो वहीं अनेक हानियाँ हैं। अब इंसान की शारीरिक गतिविधि कम हो गई है और वो आराम पसंद हो गया है, जो उसके लिए तरह-तरह के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं उत्पन्न करने का कारण बन रहा है।

मानव की जीवन शैली बिगड़ती जा रही है और वह मशीनों पर अत्याधिक निर्भर होने के कारण अपने खान-पान और जीवनशैली को दूषित कर चुका है। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है, वही उनके पास नहीं रहेगा तो मशीन द्वारा जल्दी जल्दी काम निपटाकर समय की बचन करने का भी कोई औचित्य नही है।


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निज गौरव से कवि का क्या अभिप्राय है?

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निज गौरव से कवि का अभिप्राय मनुष्य के स्वाभिमान से है। कवि मैथिलीशरण गुप्त मनुष्य को प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि जीवन में संकट और संघर्ष की स्थिति आने पर भी मनुष्य को निराश नही होना चाहिए। उसे अपने स्वाभिमान का ध्यान रहना चाहिए। उसका ये स्भाभिमान ही मनुष्य को विपरीत परिस्थितियों में झुकने नही देगा।

कविता ‘नर हो न निराश करो मन को’ की पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है…

निज गौरव का नित ज्ञान रहे, हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
सब जाये अभी, पर मान रहे, मरने पर गुंजित गान रहे।
कुछ हो, न तजो निज साधन को, नर हो, न निराश करो मन को।

भावार्थ : कवि कहते हैं कि मनुष्य को जीवन में संघर्ष करते हुए हमेशा अपने स्वाभिमान का ध्यान देना चाहिए। उसे हमेशा अपने स्वाभिमान का ज्ञान होना चाहिए। उसे यह पता होना चाहिए कि इस संसार में उसका भी अस्तित्व है, उसका भी महत्व है। यदि मनुष्य को स्वयं के स्वाभिमान स्वयं के अस्तित्व का एहसास होगा तो वह स्वयं को कभी भी कमजोर दीन हीन नहीं समझेगा और जीवन में आने वाले संघर्षों का दृढ़ता से मुकाबला कर सकेगा। भले ही संसार की सारी योग्य वस्तुएं अथवा सुख साधन नष्ट हो जाएं लेकिन मनुष्य का सम्मान बना रहे, जिससे इस संसार से जाने के बाद भी संसार में उसके कार्यों के, उसके यश के गीत गूंजते रहे। कुछ भी हो जाए अपने साधन, अपने स्वभाव को नहीं छोड़ना चाहिए अपने मन को निराश नहीं होने देना चाहिए।


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दिए गए काव्यांश को ध्यान पूर्वक पढ़िए एवं उस पर आधारित प्रश्न के उत्तर लिखिए। पॉयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई। सॉवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई। माथे किरीट बडे दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई। जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्री ब्रज दूलह देव सहाई।। प्रश्न-1 : श्रीकृष्ण को संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा गया है? प्रश्न-2 : काव्यांश का भावार्थ लिखिए।

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द्वित्व व्यंजन और संयुक्त व्यंजन से बने दो-दो शब्द लिखिए ।

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द्वित्व व्यंजन और संयुक्त व्यंजन से बने दो-दो शब्द इस प्रकार होंगे…

द्वित्व व्यंजन से बने दो शब्द

  • कच्चा
  • पक्का

सयुंक्त व्यंजन से बने दो शब्द

  • रक्षा
  • श्रोता

द्वित्व व्यंजन और संयुक्त व्यंजन से बने कुछ और शब्द

द्वित्व व्यंजन रस्सी, लज्जा, सज्जा, गच्चा, पत्ता, डब्बा, गप्पें, खट्टा, मिट्टी, बिल्ली, बच्चा आदि।

संयुक्त व्यंजन कक्षा, क्षमा, रक्षक, परिश्रम, हश्र, श्रोता, श्रमजीवी, ज्ञानी, आज्ञा, प्रज्ञान, त्रिमूर्ति, त्रयोदशी, यात्रा, पत्रक आदि।

द्वित्व व्यंजन और संयुक्त व्यंजन क्या हैं?

द्वित्व व्यंजन से तात्पर्य उन व्यंजन से होता है, जो एक ही वर्ण दो बार समान रूप से दो बार प्रयुक्त होता है अर्थात उसी वर्ण की लगातार दो बार पुनरावृत्ति होती है। द्वित्व व्यंजन में एक वर्म अर्द्ध रूप में तथा एक वर्ण पूर्ण रूप में प्रयुक्त किया जाता है। ऊपर दिए गए द्वित्व व्ंयजनों के उदाहरणों में पहला वर्ण आधा वर्ण है और दूसरा उसका पूर्ण रूप है। द्वित्व व्यंजन ऐसे ही आधे एवं पूर्ण रूप वाले समान वर्णों से बनते हैं।

संयुक्त व्यंजन वे व्यंजन होते हैं, जो दो अलग-अलग व्यंजनों को मिलाकर बनाए जाते हैं। संयुक्त व्यंजन में दो अलग-अलग व्यंजनों का योग होता है, जिससे उन व्यंजनों का मूल स्वरूप समाप्त हो जाता है और नया व्यंजन बनता है। संयुक्त व्यंजन की संख्या चार होती है, जो कि इस प्रकार है, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र। द्वित्व व्यंजन और संयुक्त व्यंजन में मुख्य अंतर यह है कि द्वित्व व्यंजन दो समान वर्णों को एक साथ प्रयोग करने से बनते हैं, जबकि संयुक्त व्यंजन दो अलग-अलग वर्णों के मेल से बनते हैं, जिनमें उन वर्णों का मूल स्वरूप समाप्त हो जाता है।


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प्रश्न : श्रीकृष्ण को संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा गया है

उत्तर : श्रीकृष्ण को संसार रूपी मंदिक का दीपक इसलिए कहा गया है क्योंकि उनका रूप अत्यन्त शोभायमान है। उनके अत्यन्त आलोकिक रूप से पूरा संसार जगमग हो उठा है, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह दीपक से मंदिर जगमग हो जाता है। उसी श्रीकृष्ण के रूप से ये संसार जगमग हो उठा है, इसलिये उन्हे संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है।

पॉयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
सॉवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बडे दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्री ब्रज दूलह देव सहाई।।

काव्यांश का भावार्थ लिखिए।

अर्थ : कवि देव कहते हैं कि वो श्रीकृष्ण जिनके पैरों मे घुंघरु बधें हैं और जब श्रीकृष्ण चलते हैं, वह घुंघरु मधुर ध्वनि उत्पन्न कर रहे हैं। जिनकी कमर पर जो किंकणी (करधनी) बंधी हुई है वो अत्यन्त सुंदर लग रही है। श्रीकृष्ण के सावंले-सलोने अंगो पर पीले वस्त्र अत्यन्त शोभायमान हो रहे हैं। वह अपने गले में वनफूलों से बनी माला पहने हुए है, जो कि उनके हृदय पर अत्यन्त शोभायमान हो रही है।

श्रीकृष्ण के चंद्रमा के सुंदर पर उनकी मधुर मुस्कान ऐसे प्रतीत हो रही जैसे उनके चंद्रमा के समान मुख पर चाँदनी बिखर रही हो। श्रीकृष्ण संसार रूपी में मंदिर में दीपक के समान प्रतीत हो रहे है। हे ब्रज के दूल्हे, आप देव के सहायक बनें, समस्त देवगण आपसे सहायता की प्रार्थना कर रहे हैं।


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”कारतूस’ पाठ के संदर्भ में लेफ्टिनेंट को कैसे पता चला कि हिंदुस्तान में सभी अंग्रेजी शासन को नष्ट करने का निश्चय कर चुके हैं​?

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‘कारतूस’ पाठ के संदर्भ में लेफ्टिनेंट को इस प्रकार पता चला कि हिंदुस्तान में सभी अंग्रेजी शासन को नष्ट करने का निश्चय कर चुके हैं,​ जब उसने सुना कि वजीर अली अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए पूरी तरह जोर लगा रहा है और वह उसने अफगानिस्तान के शासक वाहिद जमा को हिंदुस्तान पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया है।

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हिंदुस्तान के अलग-अलग रियासतों के शासक अलग-अलग तरीकों से अपनी ना केवल अपनी सेना को बढ़ा रहे थे बल्कि अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए तैयारियां भी कर रहे थे, तो यह सब देखकर लेफ्टिनेंट को आभास हो गया की सभी अंग्रेजी शासन को नष्ट करने का निश्चय कर चुके हैं।

संदर्भ पाठ

कारतूस – हबीब तनवीर (कक्षा-10 पाठ-17, हिंदी स्पर्श)


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कल्पना कीजिए कि आप दिल्ली निवासी है, आपका नाम सोनिया है। सिक्किम निवासी अपनी मित्र रजनी को दिल्ली के प्रमुख दर्शनीय स्थलों के बारे में बताना चाहती हैं। आप दोनों के बीच हुए संवाद को लिखें।

संवाद लेखन

दिल्ली के बारे में सहेलियों के बीच संवाद


आप सुमन हैं। नई कॉलोनी, कलकत्ता से आपके नाम से प्रेषित एक हजार रुपए के मनीऑर्डर की प्राप्ति होने की शिकायत करते हेतु अधीक्षक, डाक विभाग को पत्र लिखिए।

औपचारिक पत्र

डाक अक्षीक्षक को पत्र

 

दिनांक : 24/3/2024

 

सुमन कुमारी,
इंजन घर, बरेली,
उत्तर प्रदेश

सेवा में,
डाक अधीक्षक,
बारासत, कलकत्ता,

विषय : मनीऑर्डर न मिलने के बाबत

 

श्रीमान जी, मैं इस पत्र के माध्यम से आपके संज्ञान में लाना चाहती हूँ कि पिछले माह सितम्बर 3 तारीख को मेरी माँ ने कलकता से मेरे लिए रुपये 1000/- का मनीऑर्डर भेजा था और यह मनीऑर्डर मुझे डाक विभाग के समय सारणी के मुताबिक 8-9 तारीख तक मिल जाना चाहिए था लेकिन मनीऑर्डर मेरे पास नहीं पहुंचा।

जब मैंने स्थानीय डाक कार्यालय में जाकर इसकी जांच की तो उन्होंने बताया कि उनके पास ऐसा कोई मनीऑर्डर नहीं आया है। मेरी माँ ने भी कलकत्ता डाक विभाग से जब पता लगाया तो उन्होंने बताया कि मनीऑर्डर 3 तारीख को वहाँ से भेज दिया गया था और उनके पास इस संदर्भ में सभी साक्ष्य हैं। मैं वो सभी साक्ष्य भी इस पत्र के साथ संलग्न कर रही हूँ।
मुझे यह पैसा अपनी फीस के लिए चाहिए था और इसीलिए मेरी माता जी ने मुझे यह पैसा भिजवाया था। इसलिए आपसे अनुरोध है कि कृपया इस संदर्भ में शीघ्र कार्यवाही करने की कृपा करें ताकि पता चल सके कि मेरा मनीऑर्डर अभी तक मेरे पास क्यों नहीं पहुंचा।

मुझे आशा है कि आप इस बाबत तुरंत कार्यवाही करेंगे और मेरा मनीऑर्डर जल्द से जल्द मुझ तक पहुंचाने की कृपा करेंगे।

मनीऑर्डर निम्न पते से भेजा गया था-

नई कॉलोनी, बारासात, कलकत्ता,

धन्यवाद,

आभारी
सुमन


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मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी को कॉलोनी में फैली गंदगी की शिकायत करते हुए पत्र लिखें।

आपके क्षेत्र में दुर्गा पूजा पर एक भव्य आयोजन किया गया। इस आयोजन के बारे अपने मित्र से हुई बातचीत को संवाद लेखन के रूप में लिखिए।

संवाद लेखन

दो मित्रों के बीच दुर्गा पूजा के विषय में संवाद

 

(दुर्गा पूजा के आयोजन पर दो दोस्तों अतुल एवं अंशुल में संवाद हो रहा है।)

अतुल ⦂ दोस्त अंशुल, तुम जानते हो कि हमारी कॉलोनी में दुर्गा पूजा के अवसर पर विशाल भव्य आयोजन किया गया था। तुम नहीं थे, नहीं तो तुमको भी देखने के लिए बुलाता।

अंशुल ⦂ हाँ यार, मैं अपनी नानी के घर गया था, नहीं तो मैं जरूर आता। तुम तुम विस्तार से बताओ। दुर्गा पूजा के आयोजन पर क्या-क्या हुआ?

अतुल ⦂ हमारे क्षेत्र में माँ दुर्गा की विशाल प्रतिमा की स्थापना हमारी कॉलोनी के पार्क के मैदान में की गई थी। रोज 9 दिनों तक माँ दुर्गा की मूर्ति पूजा-आराधना होती और रात में गुजराती नृत्य गरबा एवं डांडिया का आयोजन किया जाता था।

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अंशुल ⦂ हाँ, मैं जरूर आऊंगा।


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आप शोभित हैं और अपने पिताजी से अपने विद्यालय की ओर से शैक्षणिक भ्रमण पर जाने के लिए अनुमति देने के लिए कह रहे हैं। उनसे हुए संवाद को लिखिए।

एक पड़ोसी, रोज सुबह अखबार मांग कर पढ़ने के लिए ले जाता है। उनके विषय पर पति और पत्नी के बीच हुए संवाद को लगभग 60 शब्दों में लिखिए।

आपका छोटा भाई विद्यालय की तरफ से कहीं घूमने जा रहा है, उसे एक पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

घूमने के लिए जाने वाले छोटे भाई को पत्र

 

दिनांक : 16 अप्रेल 2024

 

प्रिय भाई अद्वैत
खुश रहो,

हम सब यहाँ पर ठीक प्रकार हैं, आशा करता हूँ तुम भी ठीक प्रकार से होगे। अद्वैत, तुम्हारा पत्र मिला जानकर बहुत खुशी हुई कि तुम अपने सहपाठियों के साथ पालमपुर घूमने जा रहे हो। मैं पहले पालमपुर घूम आया हूँ तो मैंने सोचा कि क्यों न तुम्हे पालमपुर के बारे में कुछ उपयोगी जानकारी दे दूं।

अद्वैत, पालमपुर बहुत ही खूबसूरत जगह है। मैं अभी पिछले हफ्ते ही अपने कार्यालय के काम से वहाँ गया था। पालमपुर चीड़ के वृक्षों से ढका हुआ और झरनों से भरपूर, हिम से ढके धौलाधार पर्वतों के बीच स्थित एक पर्यटक स्थल है।

पालमपुर में चाय के बागान भी है वहाँ पर धौलाधार नेचर पार्क (चिड़िया घर) भी जो बहुत ही खूबसूरत है, तुम वहाँ ज़रूर जाना।

पालमपुर में बहुत से पौराणिक मंदिर है बैजनाथ मंदिर और चामुंडा देवी मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है और वहाँ पर सौरभ वन विहार (इकोलॉजीकल पार्क) है तुम वहाँ अवश्य जाना ।

तुम अपने मित्रों के साथ जाओ और खूब मज़े करो और अपना ध्यान रखना । अपने साथ स्वेटर अवश्य ले जाना क्योंकि वहाँ शाम के समय काफी ठंड हो जाती है । जब वापिस आओगे तो पत्र लिखकर बताना की तुमने वहाँ क्य –क्या किया और अपना ध्यान रखना ।

तुम्हारा बड़ा भाई,
आर्यन ।


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अपने स्कूल में हुए नाटक के बारे में बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें।

अपनी माता जी को अपने हॉस्टल की व्यवस्था की सूचना देते हुए एक पत्र लिखिए।

अपने स्कूल में हुए नाटक के बारे में बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें।

अनौपचारिक पत्र

नाटक के बारे में मित्र को पत्र

 

दिनाँक – 16/4/2024

राणा निवास,
मकान नंबर – 221,
करावल नगर,
न्यू दिल्ली

प्रिय मित्र,
शुभम

आशा करता हूँ, तुम एक ठीक होगे । बहुत दिन हो गए, तुमसे बात नहीं हुई । आज मैं तुम्हें पत्र में अपने स्कूल में हुए नाटक के बारे में बताना चाहता हूँ । मेरे स्कूल में शिक्षा के महत्व पर एक बहुत अच्छा नाटक हुआ था । नाटक में मैंने भी भाग लिया था ।

स्कूल में सभी ने हमारे द्वारा प्रस्तुत किए गए नाटक की बहुत प्रशंसा की । नाटक में हम 12 लोग थे । सब ने अपने-अपने किरदार बहुत अच्छे से निभाए । कुछ बच्चे शिक्षक और माता-पिता, बच्चे बने थे। मैंने नाटक में एक बिगड़ा हुआ बच्चा बना था ।

नाटक का माध्यम सब को शिक्षा के महत्व के बारे में उजागर करना था । शिक्षा हम सब के जीवन में बहुत जरूरी होती है । तुम भी अपने स्कूल के किसी नाटक के बारे मुझे बताना । तुम भी नाटक में भाग लेना । नाटक में भाग लेने से बहुत कुछ सीखने को मिलता है । अपना ध्यान रखना । तुम्हारे पत्र का इंतजार करूंगा ।

तुम्हारा मित्र,
पार्थ,
दिल्ली ।


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औपचारिक पत्र

हॉस्टल व्यवस्था के बारे में माताजी को पत्र

दिनांक – 16/6/2024

 

आदरणीय माँ,
सादर चरण स्पर्श

मैं सकुशल हॉस्टल पहुंच गया हूँ। दो दिन अपने कमरे को व्यवस्थित करने में लग गए। तीन दिन तक मैने हॉस्टल की सारी व्यवस्था देखी। अब सब कुछ ठीक हो गया है। आपने कहा था कि पहुंचते ही हॉस्टल की व्यवस्था के बारे में बताना और कोई परेशानी हो तो लिखना।

माताजी, मैंने यहां होटल की व्यवस्था देख ली है और अभी तो फिलहाल सब कुछ ठीक-ठाक है। हमारा कमरा दूसरे मंजिल पर है। हम एक कमरे में चार विद्यार्थी कहते हैं। चारों के अलग-अलग बिस्तर हैं। हमारे हॉस्टल का मेस सबसे ऊपरी चौथी मंजिल पर है। जहां पर सुबह का नाश्ता दोपहर का भोजन और रात का खाना बनता है।

हमें सुबह 8 बजे बजे नाश्ता मिलता है और 9 बजे हम लोग विद्यालय जाते हैं। विद्यालय से हम लोग 1 बजे वापस आते हैं और फिर 1.30 पर होटल हॉस्टल के मैच में दोपहर का भोजन करते हैं।

शाम को हमें मेस की तरफ से चाय मिलती है। रात के खाने का समय 9 बजे हैं। हॉस्टल में पूरी तरह शाकाहारी खाना ही परोसा जाता है और पूरी साफ सफाई का ध्यान रखा जाता है। हमारे हॉस्टल की वार्डन बेहद अच्छे व्यक्ति हैं, जो समय-समय पर हमसे परेशानी के विषय में पूछते रहते हैं।

आगे यदि कोई परेशानी होगी तो मैं आपको उसके विषय में बताऊंगा। अभी सब ठीक है। पिता जी को चरण स्पर्श कहना और छोटी बहन निधि को मेरी तरफ से ढेर सारा स्नेह।

आपका पुत्र,
मंयक ।


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अपनी माताजी के धीरे-धीरे स्वस्थ होने का समाचार देते हुए अपने पिताजी को पत्र लिखिए। ​

आपकी बहन आई. ए. एस. की तैयारी शुरू कर रही है। शुभकामनाएँ देते हुए पत्र लिखें।

हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की कुल कितनी सीटें हैं?

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हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की कुल 4 सीटें हैं।

हिमाचल प्रदेश भारत का उत्तरी राज्य है। ये भारत के उत्तरी भाग में स्थित एक छोटा सा पहाड़ी राज्य है। इस राज्य की राजधानी शिमला है। हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य जिनकी सीमा हिमाचल प्रदेश से छूती है, वे राज्य पंजाब, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड हैं।

हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की 4 लोकसभा सीटों के नाम इस प्रकार हैं,

  1. शिमला
  2. कांगड़ा
  3. मंडी
  4. हमीरपुर

शिमला लोकसभा सीट के विधानसभा क्षेत्र

  • अर्की- (सोलन)
  • नालागढ़- (सोलन)
  • दून- (सोलन)
  • सोलन- (सोलन)
  • कसौली- (सोलन)
  • पच्छाद -(सिरमौर)
  • नाहन- (सिरमौर)
  • श्री रेणुकाजी- (सिरमौर)
  • पौंटा साहिब- (सिरमौर)
  • शिलाई- (सिरमौर)
  • चौपाल- (शिमला)
  • ठियोग- (शिमला)
  • कुसुम्पटी- (शिमला)
  • शिमला- (शिमला)
  • शिमला – ग्रामीण (शिमला)
  • जुब्बल-कोटखाई (शिमला)
  • रोहड़ू- (शिमला)

कांगड़ा लोकसभा सीट के विधानसभा क्षेत्र

  • चुराह- (चम्बा)
  • चंबा- (चम्बा)
  • डलहौजी- (चम्बा)
  • भटियात- (चम्बा)
  • नूरपुर- (कांगड़ा)
  • इंदौरा- (कांगड़ा)
  • फतेहपुर- (कांगड़ा)
  • जवाली- (कांगड़ा)
  • ज्वालामुखी- (कांगड़ा)
  • जयसिंहपुर- (कांगड़ा)
  • सुलह- (कांगड़ा)
  • नगरोटा- (कांगड़ा)
  • कांगड़ा- (कांगड़ा)
  • शाहपुर- (कांगड़ा)
  • धर्मशाला- (कांगड़ा)
  • पालमपुर- (कांगड़ा)
  • बैजनाथ- (कांगड़ा)

मंडी लोकसभा सीट के विधानसभा क्षेत्र

  • भरमौर (चम्बा)
  • लाहौल और स्पीति
  • मनाली (कुल्लू)
  • कुल्लू (कुल्लू)
  • बंजार (कुल्लू)
  • आनी (कुल्लू)
  • करसोग (मंडी)
  • सुंदरनगर (मंडी)
  • नाचन (मंडी)
  • सिराज (मंडी)
  • दरंग (मंडी)
  • जोगिंदर नगर (मंडी)
  • मंडी (मंडी)
  • बल्ह (मंडी)
  • सरकाघाट (मंडी)
  • रामपुर (शिमला)
  • किन्नौर (किन्नौर)

हमीरपुर लोकसभा सीट के विधानसभा क्षेत्र

  • देहरा- (कांगड़ा)
  • जसवां-परागपुर- (कांगड़ा)
  • धर्मपुर- (मंडी)
  • भोरंज- (हमीरपुर)
  • सुजानपुर- (हमीरपुर)
  • हमीरपुर – (हमीरपुर)
  • बड़सर- (हमीरपुर)
  • नादौन- (हमीरपुर)
  • चिंतपूर्णी -(हमीरपुर)
  • गगरेट- (ऊना)
  • हरोली- (ऊना)
  • उना -(ऊना)
  • कुटलेहड़- (ऊना)
  • झंडूता- (बिलासपुर)
  • घुमारवीं- (बिलासपुर)
  • बिलासपुर- (बिलासपुर)
  • श्री नैना देवी जी- (बिलासपुर)

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मुंबई में लोकसभा की कितनी सीट हैं?

भारत में कुल कितनी लोकसभा सीटें हैं? हर वर्ष कितनी लोकसभा सीटों के लिए चुनाव होता है?

मुंबई में लोकसभा की कितनी सीट हैं?

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मुंबई में लोकसभा की कुल 6 लोकसभा सीटे है ।

पूरा मुंबई महानगर लोकसभा की दृष्टि से 6 सीटों में विभाजित है।

मुंबई महानगर की ये 6 लोकसभा सीटें इस प्रकार हैं…

  1. उत्तर मुंबई
  2. उत्तर पश्चिम मुंबई
  3. उत्तर पूर्व मुंबई
  4. उत्तर मध्य मुंबई
  5. दक्षिण मध्य मुंबई
  6. दक्षिण मुंबई

मुंबई महानगर की जो 6 लोकसभा सीटों में कौन-कौन से विधानसभा क्षेत्र आते है, ये भी जानते हैं…

उत्तर मुंबई लोकसभा सीट के विधानसभा क्षेत्र

  • बोरीवली
  • दहिसर मागाठाणें
  • कांदिवली पूर्व
  • चारकोप
  • मलाड पश्चिम

उत्तर पश्चिम मुंबई लोकसभा सीट के विधानसभा क्षेत्र

  • जोगेश्वरी पूर्व
  • दिंडोशी
  • गोरेगांव
  • वर्सोवा
  • अंधेरी पश्चिम
  • अंधेरी पूर्व

उत्तर मध्य मुंबई लोकसभा सीट के विधानसभा क्षेत्र

  • विले परले
  • चांदीवली
  • कुर्ला
  • कालीना
  • बांद्रा पूर्व
  • बांद्रा पश्चिम

उत्तर पूर्व मुंबई लोकसभा सीट के विधानसभा क्षेत्र

  • मुलुंड
  • विक्रोली
  • भांडुप पश्चिम
  • घाटकोपर पश्चिम
  • घाटकोपर पूर्व
  • मानखुर्द
  • शिवाजी नगर

दक्षिण मध्य मुंबई लोकसभा सीट के विधानसभा क्षेत्र

  • अणु शक्ति नगर
  • चेंबूर
  • धारावी
  • सायन-कोलीवाडा
  • वडाला
  • माहिम

दक्षिण मुंबई लोकसभा सीट के विधानसभा क्षेत्र

  • वरली
  • शिवडी,
  • भायखला
  • मलाबार हिल
  • मुंबा देवी
  • कोलाबा

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स्तंभ लेख से क्या तात्पर्य है?

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‘जैसा करोगे वैसा भरोगे’ विषय पर लघु कथा लगभग 100 शब्दों में लिखिए।

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लघुकथा लेखन

जैसा करोगे वैसा भरोगे

 

एक गाँव में एक दुकानदार की किराने की दुकान थी। उसके पास दूसरे गाँव का एक ग्रामीण हफ्ते में एक बार आता था और उसे 5 किलो की देसी घी दे जाता था तथा वह बदले में 5 किलो चावल और 5 किलो गेहूँ ले जाता था।

यह सिलसिला कई महीनों से चल रहा था। एक बार दुकानदार ने सोचा मैं गाँव वाले से 5 किलो घी का डिब्बा यूं ही ले लेता हूँ, उसे तोलता नहीं हूँ। इस बार लोल कर देखता हूँ कि यह 5 किलो घी देता है कि नही। जब उसने घी तोला उसमें साढ़े 4 किलो घी ही निकला।

अब दुकानदार को बड़ा गुस्सा आया। उसने इसकी शिकायत पंचायत में कर दी। पंचायत बैठी और पंचायत के सामने ग्रामीण बोला कि मेरी कोई गलती नहीं है। मेरे पास वजन तोलने के बाट नही हैं। मैं इनसे 5 किलो चावल और 5 किलो गेहूँ ले जाता हूँ। उन्हीं में से 5 किलो चावल या 5 किलो गेहूँ तराजू में एक तरफ रखता हूं और दूसरी तरफ उतना ही घी रख लेता हूँ वही उनको देता थ।

अब आप उनसे पूछो कि यह 5 किलो चावल या गेहूँ मेरे को पूरा देते थे या नही। पंचायत को अब सच्ची बात पता चल गयी। पंचायत ने दुकानदार पर बेईमानी के करने  जुर्माना लगाया और वे ग्रामीण के देने के लिए कहा। सच बात यही थी कि वह दुकानदार ही बेईमान था और ग्रामीण को हमेशा कम सामान ही तोलकर देता था। अब उसकी चालाकी उल्टी पड़ गई और उसकी चोरी पकड़ी गई।

सच कहते हैं, ‘जैसा करोगे, वैसा भरोगे।’


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‘काश मैं पक्षी होता’ इस विषय पर अनुच्छेद लिखें।

‘कला की साधना जीवन के दुखमय क्षणों को भुला देती है।’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए। (पाठ – अपराजेय)

‘जिसने आत्मा का रहस्य जान लिया हो।’ (अनेक शब्दों के लिए एक शब्द)

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जिसने आत्मा का रहस्य जान लिया हो : आत्मज्ञानी

स्पष्टीकरण 

‘जिसने आत्मा का रहस्य जान लिया हो’ इस अनेक शब्द समूह के लिए एक शब्द होगा, ‘आत्मज्ञानी’

व्याख्या

जिसने आत्मा का रहस्य जान लिया हो, ऐसे व्यक्ति को आत्मज्ञानी कहते है। आत्म का अर्थ होता है अंदर। आत्मा अर्थात  स्वयं के अंदर जाना।

जिसने आत्मा का रहस्य जान लिया यानि जिसने खुद को समझ लिया हो, जिसने अपने अंदर के स्वरूप को पहचान कर अपने अंदर के अंधकार को दूर लिया हो उसे आत्मज्ञानी कहते हैं।

स्वयं को पहचानना एक कठिन प्रक्रिया है। जो व्यक्ति स्वयं को समझ लेता है, वह अपने अंदर की बुराइयों को पहचान लेता है। स्वयं को पहचान कर अपनी अज्ञानता को पहचानकर अपनी कमियों को दूर करने वाला व्यक्ति आत्मज्ञानी कहलाता है।

अनेक शब्दों के लिए एक शब्द हिंदी व्याकरण में शब्दों को एक शब्द में सुंदर रूप देने की एक बेहद ही अद्भुत विधि है। इस विधि में एक पूरे शब्द समूह को केवल एक ही शब्द में समेट लिया जाता है, जिससे पूरे शब्द समूह के शब्दों की सार्थकता एक ही शब्द में सिमट आती है और वह शब्द बेहद प्रभावशाली और वजनदार दिखाई पड़ता है।

कुछ मिलते जुलते उदाहरण…

  • जो सब कुछ जानता हो : सर्वज्ञानी
  • जो कुछ भी न जानता : अज्ञानी
  • जो बहुत कुछ जानता हो : परम ज्ञानी

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‘जो किसी से न डरे’ अनेक शब्दों के लिए एक शब्द।

जनसंचार माध्यमों के क्या खतरे है?​ बताइए।

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जनसंचार  से तात्पर्य उन सभी साधनों से है जो एक साथ बहुत बड़ी जनसंख्या के साथ संचार सम्बन्ध स्थापित करने में सहायक होते हैं। आज के तकनीक युग में जनसंचार के माध्यमों की आवश्यकता और भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।  जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, टेलीविजन, सिनेमा और इंटरनेट आदि हैं। जनसंचार के माध्यमों के बढ़ते उपयोग के साथ अनेक खतरे भी उत्पन्न होेते जा रहे हैं। जनसंचार के माध्यमों से उत्पन्न खतरे इस प्रकार हैं…

  • जनसंचार के माध्यमों में इंटरनेट बेहद तेजी से बढ़ने वाला माध्यम है। इस माध्यम के बढ़ते प्रचलन के साथ ही नेट-क्राइम बढ़ता जा रहा है।
  • सिनेमा, टी.वी. वास्तविकता से परे काल्पनिक दुनिया में पहुँचा देते हैं, वहीं वे अपराधों के नए-नए तरीके भी सिखा रहे हैं और हिंसा और अश्लीलता युवा वर्ग को बहुत अधिक प्रभावित कर रही है।
  • विज्ञापनों के जाल में मनुष्य फँसकर अपने बहुमूल्य धन को यूँ ही बर्बाद कर रहे है। वह उन चीजों को भी खऱीद रहे हैं जो उनकी आवश्यकता की नही है। क्योंकि विज्ञापन का मायाजाल उन्हें अपने आकर्षण में फंसा लेता है।
  • टीवी पर डिबेट शो के नाम पर केवल शोर-शराबा रह गया है। इन शो में भाषा की मर्यादा और आचरण की सीमाएं लांघी जा रही हैं। ऐसे शो को देखकर बच्चे व युवाओं पर गलत असर पड़ रहा है।
  • सोशल मीडिया पर भ्रामक और झूठी सूचनाओं का जाल फैला हुआ है, जिससे लोग दिग्भ्रमित हो रहे हैं।

कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि जनसंचार के कारण जहाँ  एक ओर तो लोग शिक्षित, सचेत और जागरूक हो रहे हैं तो दूसरी ओर वे भ्रमित और पथभ्रष्ट भी हो रहे हैं। जनसंचार के नकारात्मक पहलू लोगों के जीवन पर गलत प्रभाव डाल रहे हैं।


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दूरदर्शन शिक्षा में बाधक या साधक (निबंध)

भारत के पहले बैंक का नाम क्या था? इसकी स्थापना कब हुई?

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भारत के पहले बैंक का नाम बैंक ऑफ़ हिंदुस्तान था, इसकी स्थापना 1770 में की गई थी। इस बैंक की स्थापना भारत की आजादी से पहले ब्रिटिश काल में की गई थी।

जब बैंक आफ हिंदुस्तान की स्थापना की गई तो उसी वर्ष भारत में बैंकों की वित्तीय व्यवस्था आरंभ हुई थी और भारत के वित्तीय क्षेत्र में एक बड़ा परिवर्तन आया था।

बैंक ऑफ हिंदुस्तान की स्थापना कोलकाता में की गई थी। 1770 में ब्रिटिश भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी चलाते थे और उनका कोलकाता में ही शासन था। ऐसी स्थिति में कोलकाता में भारत के पहले बैंक की स्थापना की गई।

बैंक आफ हिंदुस्तान था 1770 में खुलने के बाद का 1832 में इसका परिचालन बंद कर दिया गया। इसी अवधि में भारत में और कई बैंक खुल चुके थे।

इन बैंको में बैंक ऑफ बंगाल, बैंक ऑफ मद्रास, बैंक ऑफ बांब जैसे बैंक प्रमुख थे। बैंक ऑफ बंगाल 1803 में, बैंक ऑफ बांबे 1840 में तो बैंक ऑफ मद्रास 1843 में खोला गया। ये तीनों बैंक उस समय प्रेसीडेंशियल बैंक के नाम से जाने जाने थे

1921 में ये तीनों बैंक मर्ज होकर इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया के नाम से जाने जाने लगे। भारत की आजादी के बाद 1955 में भारत में बैंको राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना जाने लगा।

 


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भारत में अब तक कुल कितने लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। 2024 में कौन सी लोकसभा का चुनाव है?

महाराज छत्रसाल ने अपने घोड़े का स्मारक क्यों बनाया?

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महाराजा छत्रसाल ने अपने घोड़े का स्मारक इसलिए बनवाया था क्योंकि उनका घोड़ा बेहद बहादुर और स्वामिभक्त घोड़ा था। उनके घोड़े युद्ध में घायल होने पर  महाराजा छत्रसाल रक्षा की थी।

देवगढ़ युद्ध के दौरान महाराजा छत्रसाल युद्ध में बुरी तरह घायल हो गए और जगह पर घायलावस्था में पड़े रहे। तब उनका प्यारा घोड़ा रातभर वहीं पर उनकी रक्षा करता रहा। उसने किसी दुश्मन को वहाँ फटकने नहीं दिया। इससे महाराजा छत्रसाल की जान बच गई। बाद में स्वस्थ होने पर अपने घोड़े की स्वामी भक्ति से प्रसन्न होकर महाराजा छत्रसाल ने उसे ‘भले भाई’ की उपाधि दी। जब कुछ समय बाद उनके घोड़े का निधन हो गया तो उन्होंने उसकी याद में स्मारक बनवाया। महाराजा छत्रसाल ने ‘दुबेला’ नामक जगह पर अपने घोड़े का स्मारक बनवाया था।

महाराज छत्रसाल बुंदेलखंड के एक वीर योद्धा थे, जिन्होंने बुंदेलखंड केसरी के नाम से जाने जाते थे। उन्होंने बुंदेलखंड की स्वतंत्रता के लिए मुगलों से बड़ा संघर्ष किया और मुगलों को हराकर अपने एक स्वाधीन पन्ना राज्य की स्थापना की।

महाराजा छत्रसाल के पिता का नाम वीर चंपतराय था वह भी अपने पूरे जीवन मुगल शासकों शाहजहां और औरंगजेब का विरोध करते रहे। अपने पिता के ही गुण महाराज छत्रसाल में भी आए। जब मुगलों ने बुंदेलखंड पर कब्जा कर लिया तो उन्होंने  अपनी मातृभूमि बुंदेलखंड को स्वतंत्र करने के लिए सेना बनाई और मुगलों से युद्ध करके न केवल बुंदेलखंड को स्वतंत्र कराया बल्कि एक स्वतंत्र राज्य पन्ना की भी स्थापन की।


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शकुन-अपशकुन के बारे में अपने विचार संक्षेप में लिखो।

उत्पादन बंदी बिंदु किसे कहते हैं? विस्तृत वर्णन कीजिए।

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उत्पादन बंदी बिंदु से तात्पर्य उस बिंदु से है, जिस बिंदु पर व्यवसाय या उत्पादन सुविधा को बंद कर देना चाहिए क्योंकि अगर का परिचालन जारी रहेगा तो उत्पादन बंद रखने की तुलना में अधिक नुकसान होगा। ऐसी स्थिति में उत्पादन को बंद कर देना ही बेहतर होता है। उत्पादन बंदी बिंदु को शटडाउन बिंदु भी कहा जाता है। अर्थशास्त्र और उत्पादन प्रबंधन के क्षेत्र में उत्पादन एक महत्वपूर्ण अवधारणा है।

उत्पादन बंदी बिंदु निर्धारित करने के लिए निम्नलिखित कारक जिम्मेदार होते हैं…

1. परिवर्तनीय लागत : ये वो लागतें होती हैं जो उत्पादन के स्तर के साथ सीधे बदलती रहती हैं। जैसे कच्चा माल, श्रम लागत और ऊर्जा व्यय। जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता है, परिवर्तनीय लागत भी बढ़ती है।

2. निश्चित लागत : ये वो लागतें होती हैं जो आउटपुट के स्तर के साथ नहीं बदलती हैं, जैसे किराया, बीमा और ओवरहेड खर्च। चाहे व्यवसाय उत्पादन कर रहा हो या नहीं, निश्चित लागत वही रहती है।

3. कुल राजस्व : यह उत्पादों या सेवाओं की बिक्री से उत्पन्न धन की कुल राशि है।

उत्पादन बंदी बिंदु तब पहुँच जाता है जब कुल राजस्व उत्पादन की परिवर्तनीय लागतों को कवर करने के लिए पर्याप्त नहीं रह जाता है। इस बिंदु पर, उत्पादन जारी रखने से बंद होने की तुलना में अधिक नुकसान होगा, क्योंकि व्यवसाय उन्हें कवर करने के लिए पर्याप्त राजस्व उत्पन्न किए बिना निश्चित लागत वहन करेगा।

उत्पादन को कब जारी रखना है या बंद करना है, इसके बारे में सूचित निर्णय लेने के लिए व्यवसायों के लिए उत्पादन रोक बिंदु का निर्धारण करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे उन्हें आगे के नुकसान से बचने और अपने संचालन को अनुकूलित करने में मदद मिलती है। इस अवधारणा को समझकर, व्यवसाय अपने संसाधनों का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं और अपनी उत्पादन प्रक्रियाओं के संबंध में अधिक रणनीतिक निर्णय ले सकते हैं।


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गठबंधन की राजनीति क्या है? गठबंधन की राजनीति के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव क्या हैं? विस्तार से लिखिए।

गठबंधन की राजनीति क्या है? गठबंधन की राजनीति के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव क्या हैं? विस्तार से लिखिए।

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गठबंधन की राजनीति

गठबंधन राजनीति से तात्पर्य कई राजनीतिक दलों का एक साथ मिल कर सरकार बना लेने से है। हम जानते हैं कि लोकतंत्र में सरकार बनाने के लिए एक निश्चित बहुमत की आवश्यकता होती है। जब किसी राजनीतिक दल को आवश्यक बहुमत नही मिल पाता तो वह राजनीतिक दल दूसरे किसी एक दल या कई अन्य दलो के साथ गठबंधन कर लेता है, जिससे उसके सरकार बनाने योग्य आवश्यक बहुमत प्राप्त हो जाता  है।  इसी प्रकार की राजनीति को गठबंधन की राजनीति कहते हैं। गठबंधन की राजनीति में दो तरह का गठबंधन होता है।

पहली तरह का गठबंधन तब होता है, जब किसी एक दल को आवश्यक बहुमत नहीं मिल पाता और वह सरकार बनाने के लिए अन्य दलों के साथ परिवर्तन करके सरकार बना लेता है। यह गठबंधन चुनाव के बाद होने वाला गठबंधन है। दूसरी तरह का गठबंधन तब होता है, जब किसी को पहले से ही आशंका होती है। वह अपने दम पर आवश्यक बहुमत के लायक सीटें जीत पाएगा।  ऐसी स्थिति में वह दूसरे दल के साथ चुनाव से पूर्व ही गठबंधन करने लेता है और गठबंधन के सभी घटक दल मिलकर सीटों का बंटवारा करके चुनाव लड़ते हैं। ऐसी स्थिति में अगर गठबंधन वाली पार्टियां मिलकर बहुमत वाली सीटें जीत लेती हैं तो जो सरकार बनती है वह गठबंधन की सरकार बनती है।

गठबंधन की राजनीति भारत में 90 के दशक से काफी प्रचलित हो गई है। 90 के दशक से पहले भारत में एक दलीय सरकार ही बनती थी। 1990 के बाद गठबंधन की राजनीति भारत की राजनीति में हावी हो गई और अनेक गठबंधन की सरकारें बनती रहीं। लगभग 25 सालों तक भारत में गठबंधन की राजनीति बेहद प्रभावी रही।

2014 के बाद भले ही भारत में केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार हो, लेकिन पूर्ण बहुमत की सरकार होने के बाद भी वो गठबंधन की सरकार ही है क्योकि उसमें अनेक दल शामिल हैं।

एक ओर गठबंधन की राजनीति अपने कई सकारात्मक प्रभावों को समेटे हुए हैं तो वहीं उसके कई नकारात्मक प्रभाव भी हैं। इन दोनों प्रभावों का विवेचन करते हैं। गठबंधन की राजनीति के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव इस प्रकार हैं…

गठबंधन की राजनीति के सकारात्मक प्रभाव

  • गठबंधन की राजनीति परस्पर सहयोग और समन्वय की भावना से काम करने की राजनीति विकसित करती है। इस राजनीति के कारण अलग-अलग विचारधाराओं वाले दल जब परस्पर सहयोग की भावना से काम करते हैं तो कई मुद्दों पर विरोधाभास टल जाता है और इसे एक स्थिर और अधिक लचीली सरकार देखने को मिलती है।
  • गठबंधन की राजनीति में आपसी सहयोग की भावना मजबूत होती है जिससे वो देश के विकास की गति को आगे बढ़ाता है।
  • गठबंधन की राजनीति में अलग-अलग विचारधाराओं के दलों के एक मंच पर एक साथ आ जाने के कारण उनके बीच जो सामाजिक दूरियां हैं, वह घटती है। इससे राजनीतिक सौहार्द्र भी बढ़ता है।
  • ऐसा माना जाता है कि गठबंधन की राजनीति का सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि इसमें जनता का हित अधिक होता है। क्योंकि कोई दल अपनी विचारधारा को थोप नहीं पाता क्योंकि उसे दूसरे दल के अनुसार भी चलना होता है। इस कारण गठबंधन राजनीति में अक्सर एक तरफा और निरंकुश निर्णय नहीं लिए जा पाते और एक सर्वमान्य निर्णय लिए जाते हैं, जिस पर सबकी सामान सहमति हो।
  • गठबंधन की राजनीति से ऐसे अनेक छोटे दलों को भी अपनी राजनीति को प्रभावी बनाने का मौका मिलता है जो एक बेहद छोटे क्षेत्र में सीमित हैं, लेकिन उसे गठबंधन की राजनीति के कारण केंद्रीय परिदृश्य में अपना असर जमाने का मौका मिलता है।

गठबंधन की राजनीति के नकारात्मक प्रभाव

  • गठबंधन की राजनीति के बारे में माना जाता है कि यह स्वार्थ की राजनीति है। विभिन्न विचारधाराओं वाले दल जो गठबंधन से पहले एक दूसरे को कोसते थे, एक दूसरे के धुर विरोधी होते थे, वह केवल सत्ता को पाने के लिए और अपने राजनीतिक हितों को पूरा करने के लिए एक साथ आ जाते हैं और सत्ता पर काबिज हो जाते हैं।
  • गठबंधन की राजनीति पर यह आरोप भी लगता है कि उन्हें जनता के हितों से कोई लेना-देना नहीं होता क्योंकि कई दल केवल अपने निजी स्वार्थ के कारण ही एक मंच पर एक साथ आए हैं।
  • गठबंधन की राजनीति का एक कमजोर पहलू यह भी है कि गठबंधन की राजनीति में अक्सर सरकार कमजोर और अस्थिर होती हैं, क्योंकि विभिन्न विचारधाराओं वाले दलों में अक्सर खींचतान उत्पन्न हो जाती है, जिससे कोई एक दल यदि अलग हो जाता है तो सरकार गिर जाती है।
  • गठबंधन की राजनीति का एक कमजोर पहलू यह है कि इसमें बहुत से आम मुद्दों पर अक्सर सहमति नहीं बन पाती, क्योंकि हर दल की अपनी विचारधारा होती है, इसलिए बहुत से ऐसे निर्णय जो वास्तव में तो राष्ट्रहित में है वह लागू नही हो पाता और इससे देश के हित को हानि पहुंचती है।
  • गठबंधन की राजनीति अविश्वसनियता को भी जन्म देती है क्योंकि अलग-अलग विचारधाराओं वाले दल जिनकी अपने-अपने सिद्धांत थे जो दूसरी विचारधारा और सिद्धांत का खुलकर विरोध करते थे वह गठबंधन की राजनीति में जब साथ में आ जाते हैं तो जनता के मन में संदेह उत्पन्न होता है। इससे जनता के मन में उनकी विश्वसनयीता कम होती है।

इस तरह गठबंधन की राजनीति के अनेक सकारात्मक और नकारत्मक प्रभाव होते हैं।


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दक्षेस को सफल बनाने के लिये कोई चार सुझाव दीजिए।​

अपने कम्प्यूटर खरीदा किंतु खरीदने के 1 महीने बाद ही उसमें खराबी आ गई। आपकी शिकायत पर दुकानदार ने कोई ध्यान नहीं दिया। कंपनी के मुख्य प्रबंधक को पत्र लिखकर घटना की जानकारी देते हुए उनसे अनुरोध कीजिए कि वह उचित कार्रवाई करें।

औपचारिक पत्र

कम्प्यूटर खराब होने के संबंध में शिकायत पत्र

 

दिनांक : 15 अप्रेल 2024

 

सेवा में,
श्रीमान प्रबंधक महोदय,
एचटी कंप्यूटर,
दिल्ली जोनल ऑफिस

विषय : कम्प्यूटर की खराबी के संबंध में शिकायत

 

प्रबंधक महोदय,
मेरा नाम कमल कुमार शर्मा है। मैंने दिनाँक 10 मार्च को दिल्ली की एक इलेक्ट्रॉनिक्स शॉप ‘न्यू सिटी इलेक्ट्रॉनिक्स’ से आपकी ‘एचटी’ कंपनी का कंप्यूटर जिसका नंबर – HT-562359BC है, खरीदा।

मुझे अत्यंत खेद के साथ यह बताना पड़ रहा है कि 1 महीने के अंदर ही कंप्यूटर में खराबी आ गई। मैं इस संबंध में उसे इलेक्ट्रॉनिक शॉप के मालिक से कई बार शिकायत की और मैं अपना लैपटॉप कहां पर लेकर भी गया। लेकिन दुकान के मालिक ने कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी। उन्होंने कहा कि आप कंप्यूटर को लेकर सर्विस सेंटर जाओ या कंपनी में शिकायत करो।

लैपटॉप गारंटी पीरियड के अंदर था, इसलिए मैंने सर्विस सेंटर में लैपटॉप को जमा कराया। सर्विस सेंटर वालों ने 5 दिन बाद लैपटॉप दिया और कहा कि यह बिल्कुल सही हो गया है, लेकिन दो दिन बाद वापस लैपटॉप खराब हो गया।

महोदय, आपके ब्रांड के नाम पर विश्वास करके मैंने आपका लैपटॉप खरीदा था। जिस दुकान से मैंने लैपटॉप खरीदा था, उसने भी बड़े-बड़े दावे करके मुझे लैपटॉप बेचा था और कहा था कि किसी भी तरह की परेशानी में वह मेरी पूरी मदद करेगा, लेकिन जब मेरा लैपटॉप खराब हुआ, मुझे परेशानी आई तो उसने कोई ध्यान नहीं दिया। सर्विस सेंटर में भी मेरा लैपटॉप ठीक होकर नहीं मिला।

मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि इस संबंध में आप उचित कार्रवाई करें। यह आपके ब्रांड की विश्वसनीयता का सवाल है। हम ग्राहक आपके ब्रांड के नाम और साख के आधार पर ही प्रोडक्ट खरीदते हैं, क्योंकि हमें यदि सही गुणवत्ता वाला प्रोडक्ट नहीं मिलेगा तो आपके ब्रांड का नाम खराब होगा और भविष्य में हम आपके ब्रांड का कोई भी प्रोडक्ट खरीदते समय कई बार विचार करेंगे।

आशा है एक अच्छे उत्पादक होने के नाते आप ग्राहक के हित को ध्यान में रखते हुए उचित कार्रवाई करेंगे और मेरे साथ न्याय करेंगे और मुझे मेरे खराब लैपटॉप की जगह एक सही लैपटॉप उपलब्ध कराने की कृपा करेंगे।

धन्यवाद,

भवदीय,
विमल कुमार शर्मा,
A-41, रामा विहार,
दिल्ली।


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डाक विभाग में लिपिक की नौकरी के आवेदन के लिए प्रार्थना पत्र लिखिए।

‘काश मैं पक्षी होता’ इस विषय पर अनुच्छेद लिखें।

अनुच्छेद लेखन

‘काश मैं पक्षी होता’

काश मैं पक्षी होता तो स्वच्छंद होकर आकाश में उड़ रहा होता। काश मैं पक्षी होता तो मैं सीमाओं के बंधन से परे होता। मुझ पर एक जगह से दूसरी जगह जाने का कोई बंधन नहीं होता। मैं अपने पंखों से सारे संसार को माप लेने की ताकत रखता।  पक्षी होने पर मैं चाहता कि मैं संसार के हर कोने में जाऊं और हर जगह की खूबसूरती को निहारूँ। पक्षी होने पर मैं सीमाओं के बंधन में नहीं बंधा होता क्योंकि पक्षियों के लिए देशों की, राज्यों की कोई सीमा नहीं होती। मैं एक देश से दूसरे देश आसानी से जा सकता था। इस तरह मैं संसार के हर कोने को देख सकता था। पक्षी होने पर मैं अपने पंखों की उड़ान से स्वच्छंद होकर आकाश में उड़ान भरकर। मैं इस सुंदर संसार को निहारता। काश मैं पक्षी होता पेड़ों की टहनियों पर बैठकर मधुर स्वर में गीत गाता, गाँव-गाँव, खेत-खेत जाकर दाने चुगता। खुले आकाश में उड़ान भरने का अपना ही मजा है, यदि मैं पक्षी होता तो मैं इस खुले आकाश में उड़ान भर सकता था। उस आनंद का अनुभव कर सकता था।


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व्यवहारिकता की तुलना लेखक ने सोने और ताँबे के संदर्भ में क्यों की है। गांधीजी को केंद्र में रखकर लेखक क्या स्पष्ट करना चाहते है?

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व्यवहारिकता की तुलना में लेखक ने सोने और ताँबे के संदर्भ में इसलिए ही है, क्योंकि ताँबे का अकेले में इतना अधिक मूल्य नहीं होता, लेकिन यदि ताँबे में सोने को मिला दिया जाए तो ताँबे का मूल्य बढ़ जाता है।  गांधीजी व्यवहारिकता का मूल्य जानते थे। उन्होंने अपने सत्य और अहिंसा के आदर्शों पर चलकर अपने आदर्शों को एक नई ऊंचाई प्रदान की थी, लेकिन वह व्यावहारिकता का भी उतना ही महत्व जानते थे। इसीलिए उन्होंने अपने व्यवहार में अपने विलक्षण आदर्शों को मिला दिया और अपने आदर्शों को व्यवहार के स्वर पर उतरने दिया। इस तरह उन्होंने अपने आदर्शों को अपने व्यवहार में थोड़ा सा मिलाकर अपने व्यवहार का मूल्य बढ़ा दिया था। इसीलिए लेखक ने गांधीजी को केंद्र में रखकर यह बात स्पष्ट करने की कोशिश की है।

संदर्भ पाठ

झेन की देन (रविंद्र केलकर) कक्षा-10 पाठ-18 हिंदी स्पर्श


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शकुन-अपशकुन के बारे में अपने विचार संक्षेप में लिखो।

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शकुन-अपशकुन एक अंधविश्वास है । जो लोग शकुन-अपशकुन में विश्वास रखते है, वह जीवन में कभी भी सफल नहीं होते है । जो लोग इन बातों में विश्वास रखते है, वह लोग मेहनत नहीं करना चाहते है । वह हमेशा अपनी सफलता को लेकर हमेशा शकुन-अपशकुन के विश्वास में रहते है ।

जीवन में शकुन-अपशकुन कुछ नहीं होता है, यह सब हम लोगों का वहम होता है। जब हम जीवन में मेहनत करते है, तभी हमें सफलता मिलती है। जब हम मेहनत करते, तब हमें उसका फल जरुर मिलता है । जब हम शकुन-अपशकुन के भरोसे बैठे रहते है, तब हमें कभी सफलता नहीं मिलती है ।

हमें जीवन में हमेशा मेहनत करके आआगे बढ़ना चाहिए । कभी भी अंधविश्वास को अपने मन में नहीं लाना चाहिए । शकुन-अपशकुन हमेशा मनुष्य को असफलता पर लेकर जाता है । शकुन-अपशकुन के चक्कर में मनुष्य मेहनत करके अपने लक्ष्य को पूरा नहीं करता है ।


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संकट एक हिन्दी शब्द है जिसका तात्पर्य है मुसीबत । संकट एक कष्टकारी स्थिति है जिसकी आशा नहीं की जाती और जिसका निदान पीड़ा (शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, अथवा सामाजिक) से मुक्ति के लिये अनिवार्य है । हर व्यक्ति के जीवन में एक वक्त ऐसा जरूर आता है जब व्यक्ति को परेशानियों का सामना करना पड़ता है । दरअसल, इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसका सुख-दुख से सीधा नाता होता है और बुरा वक्त हमारी परीक्षा लेने के लिए आता है ।

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निबंध

साक्षरता अभियान

 

प्रस्तावना

साक्षरता का अर्थ होता है शिक्षा की प्राप्ति । बिना शिक्षा के जीवन अंधकार के समान हो जाता हैं । जबकि एक शिक्षित व्यक्ति का जीवन ज्ञान के उजाले से हमेशा प्रकाशवान रहता हैं। वह न केवल अपने जीवन में तमाम सुख पा सकता हैं बल्कि सब के जीवन में भी खुशियाँ व आनन्द ला सकता हैं । निरक्षरता एक दुर्गुण बन गया है । इसलिए आजकल हर कोई पढ़ना-लिखना चाहता है । सरकार तथा समाज की ओर से देश के हर नागरिक को साक्षर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं । इसके लिए सभी स्थानों पर स्कूल खोले गए हैं । हर बालक को साक्षर बनाने के लिए अभियान चलाए गए हैं । इस नेक कार्य में जनता की भागीदारी आवश्यक है । इक्कीसवीं सदी में यदि भारत का हर नागरिक साक्षर हो जाए तो यह हमारी महान उपलब्धि होगी ।

साक्षरता के इस अभियान की शुरुआत

साक्षरता के इस अभियान की शुरुआत 1966 में यूनेस्को द्वारा शुरू की गई, हर साल 8 सितम्बर को विश्व साक्षरता दिवस मनाना इसी अभियान का हिस्सा हैं । विश्व का प्रत्येक नागरिक अच्छी एवं गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्राप्त करें तथा अपने पैरो पर खड़ा हो सके व कोई भी इस मिशन से न छुट जाए इस हेतु साक्षरता आन्दोलन सभी देशों में जोरों से आगे बढ़ाया जा रहा हैं। हालांकि यूनेस्कों के साक्षरता अभियान अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो पाया हैं । मिशन के लक्ष्यों में प्रमुखता से इस बात पर ध्यान दिया गया कि वर्ष 1990 तक दुनिया के हर इंसान तक शिक्षा उनके द्वार पहुँच सके।

भारत में प्रत्येक नागरिक को बेसिक शिक्षा का मौलिक अधिकार दिया गया हैं । साक्षरता के इस अभियान से वे जुड़कर अपने जीवन के सारे सपने साकार कर सफल इंसान बन सकता हैं। जीवन के किसी भी क्षेत्र में मुकाम पाने के लिए जितनी जरूरत मेहनत की होती हैं उतनी ही आवश्यकता ज्ञान की भी हैं । यही वजह है कि जीवन में साक्षरता के महत्व को देखते हुए जन-जन तक साक्षरता अभियान के जरिए सब की शिक्षा तक पहुंच सुलभ की जाती हैं। मगर यदि हम भारत की बात करें तो यहाँ कि पुरुष साक्षरता 74 % तथा महिला साक्षरता बिहार तथा राजस्थान जैसे राज्यों में 50 फीसदी तक ही हैं |

साक्षरता अभियान के शुरुआती चरण

साक्षरता अभियान के शुरुआती चरणों में उन देशों को चुना गया जहाँ का अधिकतर वर्ग शिक्षा से अछूता रहा हैं । कई  वर्षों  तक उपनिवेशवाद का शिकार रहे तीसरी दुनियां के देश प्रमुखतया थे जिनमें भारत भी एक था। 1995 के दौर में शुरू हुए आंदोलन के जरिए भारत में शिक्षा का खूब प्रसार प्रचार हुआ । सरकार तथा यूनेस्कों के सहयोग से सर्व शिक्षा अभियान प्रौढ़ शिक्षा अभियान, मिड डे मील योजना और राजीव गांधी साक्षरता मिशन मुख्य योजनाएं थी । साक्षरता अभियान बड़े जोर से दशकों तक चला, जिसका असर आज भी देखा जा रहा हैं । गाँवों के गरीब परिवारों के बच्चें भी आज शहरों में जाकर उच्च शिक्षा तथा तकनीक शिक्षा प्राप्त कर नए प्रतिमानों को स्थापित कर रहे हैं । खासकर बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओ जैसे अभियानों से शिक्षा का केंद्र बेटी व महिला शक्ति को बनाकर समाज में शिक्षा क्रांति तेजी से आगे बढ़ रही हैं।

साक्षरता अभियान का स्वरूप

स्वतंत्रता मिलने के बाद साक्षरता का प्रतिशत बढ़ाने के लिए सबसे पहले बुनियादी शिक्षा प्रारम्भ की गई | इसके बाद सारे देश में प्रौढ़ शिक्षा का कार्यक्रम राष्ट्रीय नीति के रूप में प्रारम्भ किया गया । इसके लिए प्रौढ़ शिक्षा अधिकारी नियुक्त किये गये और बेरोजगार शिक्षित युवक, सेनानिवृत कर्मचारी एवं समाज सेवक लोग इस कार्य में लगाए गए । साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में जगह-जगह पाठशालाएं खोली गई और जनजातियों हरिजनों तथा कृषक श्रमिकों को साक्षर बनाने का पूरा प्रयास किया गया । इस तरह के अभियान से निरक्षरता कम होने लगी और साक्षरता का प्रतिशत बढ़ रहा हैं । अब प्रत्येक नागरिक शिक्षा का महत्व समझने लगा हैं।

साक्षरता अभियान से लाभ

इस अभियान से जन जागरण हुआ हैं ।  राजस्थान में निरक्षरता का प्रतिशत पहले अधिक था, परन्तु अब साक्षरता का प्रतिशत काफी बढ़ गया हैं । छोटे गाँवों और ढाणियों में हजारों विद्यालय राजीव गांधी पाठशाला के नाम से खोले गये हैं । उनमें निम्न वर्ग व गरीब लोगों के बच्चों को दिन में भोजन दिया जाता हैं । रात्रि में प्रौढ़ शिक्षा केंद्र चलाए जा रहे हैं, जिनसे बूढ़े लोग भी साक्षर बन रहे है। सरकार ने माध्यमिक स्तर तक निशुल्क शिक्षा देने की व्यवस्था की हैं।  इससे भी साक्षरता अभियान काफी सफल हो रहा हैं ।

उपसंहार

साक्षरता का अर्थ चंद किताबी ज्ञान नहीं हैं बल्कि व्यक्ति को सही गलत उनके अधिकारों कर्तव्यों अपने इतिहास भूगोल की सामान्य जानकारी हैं । गरीबी , लिंग अनुपात सुधारने , भ्रष्टाचार और आतंकवाद जैसी समस्याओं का मूल कारण ही साक्षरता का अभाव हैं। भारत की साक्षरता दर में सुधार के साथ ही विकास के उच्च लक्ष्यों की प्राप्ति तथा सामाजिक समस्याओं की समाप्ति भी साक्षरता के प्रचार से ही संभव हैं। साक्षरता अभियान में धन की कमी एक बड़ी बाधा हैं, फिर भी शिक्षित बेरोजगार युवकों के सहयोग से यह योजना चल रही हैं। जन सहयोग से प्रौढ़ शिक्षा का प्रसार हो रहा हैं। निरक्षरता हमारे समाज पर एक काला दाग हैं उसे साक्षरता अभियान से ही मिटाया जा सकता हैं।


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आप सौम्य गर्ग हैं। आपके भैया-भाभी की पहली वैवाहिक वर्षगाँठ (एनिवर्सरी) है। इस अवसर पर उनके लिए लगभग 60 शब्दों में शुभकामना एवं बधाई संदेश लिखिए।

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बधाई संदेश

भैया-भाभी प्रणाम

 

मैं आप दोनों को मेरी तरफ़  से आपके पहली वैवाहिक वर्षगाँठ (एनिवर्सरी) की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ। आप दोनों मेरे लिए दुनिया की सबसे प्यारी जोड़ी हो। भगवान आप दोनों की जोड़ी को यूँ ही बनाए रखे।

मैं दुआ करता हूँ, आप दोनों हमेशा ऐसे खुश रहे । आपकी जोड़ी हमेशा ऐसे ही बनी रही है । हर साल हम ऐसे ही आपको वैवाहिक वर्षगाँठ की शुभकामनाएँ देते रहें । आप दोनों हमेशा ऐसे खुश रहो।

आपका भाई,
सौम्य गर्ग।


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आप शोभित हैं और अपने पिताजी से अपने विद्यालय की ओर से शैक्षणिक भ्रमण पर जाने के लिए अनुमति देने के लिए कह रहे हैं। उनसे हुए संवाद को लिखिए।

संवाद लेखन

शैक्षणिक भ्रमण की अनुमति के लिए पिता-पुत्र के बीच संवाद

 

शोभित ⦂ पिताजी, मुझे आपसे कुछ कहना है।

पिता ⦂ शोभित बेटा बोलो क्या कहना चाहते हो?

पिताजी ⦂ मुझे हजार रुपए की जरूरत है और एक अनुमति भी चाहिए।

पिता ⦂ हाँ-हाँ हजार रुपए तो दे दूंगा। लेकिन यह बताओ हजार रुपए क्यों चाहिए और किस बात की अनुमति चाहिए?

शोभित ⦂ पिताजी, हमारे विद्यालय की तरफ से एक शैक्षणिक भ्रमण का आयोजन किया जा रहा है। हर छात्र को हजार रुपए जमा करने होंगे, जिसमें आने जाने की बस का खर्चा तथा नाश्ता एवं भोजन आदि का खर्चा सब शामिल है।

पिताजी ⦂ अच्छा बेटा, यह तो बहुत अच्छी बात है। इसमें न केवल घूमने को मिलेगा। बल्कि बहुत कुछ सीखने को भी मिलेगा। लेकिन तुम लोग कहाँ जा रहे हो?

शोभित ⦂ पिताजी हमारा शैक्षिक भ्रमण शहर के बाहर स्थित प्राचीन किले में आयोजित किया गया है। यह किला 1000 साल पुराना बताया जाता है। वहाँ पर हम लोग पिकनिक मनाएंगे और किले के बारे में जानेंगे समझेंगे।

पिता ⦂ हाँ बेटा, बहुत ऐतिहासिक किला है। तुम्हें उस किले के बारे में बहुत कुछ बातें पता चलेंगी। तुम्हारे विद्यालय की तरफ से अच्छे भ्रमण का आयोजन किया जा रहा है। यह लो हजार रुपए, तुम अपने विद्यालय में जमा कर देना।

शोभित ⦂ धन्यवाद पिताजी।

पिता ⦂ कल तुम्हें कितने बजे जाना है?

शोभित ⦂ पिताजी कल सुबह 7 बजे मुझे यहाँ से निकल जाना है। 8 बजे हमारी बस विद्यालय से रवाना हो जाएगी।

पिता ⦂ अच्छा सो जाओ। मैं तुम्हें 6 बजे जगा दूंगा।


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संवाद लेखन

अखबार के संबंध में पति-पत्नी के बीच संवाद

 

पति ⦂ (चाय की चुस्की लेते हुए) सुनती हो, आज अखबार नहीं आया क्या?

पत्नी ⦂ (अखबार हाथ में लाते हुए) जी, अभी लाई।

पति ⦂ अच्छा , लाओ।

पत्नी ⦂ (अखबार पकड़ाते हुए) लीजिए।

पति ⦂ आओ तुम भी बैठो।

पत्नी ⦂ (दरवाज़े की घंटी बजी) कौन है? अभी आई।

पति ⦂ (मन ही मन सोचते हुए) लगता है पड़ोस वाले शर्मा जी आए होंगे।

पत्नी ⦂ नमस्ते! भाई साहब। आइए–आइए।

पति ⦂ आइए–आइए, चाय पीजिए।

पड़ोसी ⦂ अरे! नहीं बस अभी–अभी पीकर ही आया हूँ। बस आप अखबार दे दीजिए, थोड़ी देर मे लौटा दूंगा।

पति ⦂ लीजिए ले जाइए, कोई बात नहीं।

पत्नी ⦂ (पड़ोसी के जाते ही) सुनिए मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है, शर्मा जी की ये आदत, रोज़ अखबार लेने आ जाते है। अपना क्यूँ नहीं लगवा लेते।

पति ⦂ (मुसकुराते हुए) अरी भाग्यवान! कोई बात नहींं, आखिर वो हमारे पड़ोसी ही तो हैं।

पत्नी ⦂ वो तो हैं, लेकिन रोज-रोज अखबार ले जाना ठीक नही। अभी आप अखबार पढ़ने ही वाले थे कि वो ले गए। इससे आपको परेशानी हुई।

पति ⦂ कोई बात नही हमें अपने पड़ोसियों के साथ सामंजस्य बिठाकर रहना चाहिए। चलो अब तुम ज्यादा मत सोचो और मेरे लिए एक कप चाय और बनाकर ले आओ।

पत्नी ⦂ अभी लाती हूँ।


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अनौपचारिक पत्र

माताजी को पत्र

 

दिनांक : 16 दिसंबर 2023

 

प्यारी माँ,
प्रणाम

आशा करती हूँ आप सभी घर में स्वस्थ होगे।​ माँ यहाँ शिमला में मेरी पढ़ाई ठीक चल रही है। माँ, पिछले हफ्ते हमारे विद्यालय की चार दिन की छुट्टियां पड़ीं। पहले तो मैंने घर आने का सोचा, लेकिन फिर अचानक से मेरा प्लान बदल गया। अपनी कुछ सहेलियों के साथ हम सभी ने मनाली घूमने का प्लान बनाया।

मनाली यहाँ शिमल से काफी दूर है। हमें वहाँ पहुँचने में 9-10 घंटे लग गए।​  हम वहाँ पर चार दिन रुके थे।​ हम सबने सब पहली बार इतने ऊँचे-ऊँचे पहाड़ देखे थे।​ पहली बार प्रकृति का इतना सुंदर नजारा अपनी आँखों से देखा था। पहले दिन हम सभी शाम तक पहुँच पाए। हमने रात में ही होटल में आराम किया। अगले दिन सुबह को बर्फ़ पड़ रही थी ।

आसमान से बर्फ़ गिरती हुई बहुत प्यारी लिख रही थी। मन कर रहा था, आसमान को देखते रहे । सुबह जैसे हमें बाहर देखा, चारों तरफ़ बर्फ़ ही बर्फ़ थी । हम सब बर्फ़ में गए और खेलने लग गए । हम सबने एक-दूसरे से पर बर्फ फेंककर खूब मस्ती की। बर्फ़ में बैठने और लेटने का बहुत मज़ा आ रहा था । हम सबने बर्फ़ भी खाई । हम सब ने मनाली में खूब इंजॉय किया। घर आकर आपको फोटो दिखाउंगी । आप सब अपना ध्यान रखना ।

आपका बेटी,
अपूर्वा


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नैनीताल जाने के लिए माँ से अनुमति पत्र हिंदी में लिखिए।

छुट्टियों के सदुपयोग के बारे में दो छात्रों के बीच हुए संवाद को लिखिए।

संवाद लेखन

छुट्टियों के सदुपयोग के बारे में दो छात्रों के बीच संवाद

 

मोहन ⦂ अरे सोहन मित्र, इस साल की छुट्टी में क्या कर रहे हो?

सोहन ⦂ मैं तो अपने परिवार के साथ जयपुर जा रहा हूँ, दरअसल मेरे मामा जी भी वहीं रहते हैं।

मोहन ⦂ अरे वाह ! मैंने तो सुना है जयपुर चारों ओर से दीवारों से घिरा हुआ है।

सोहन ⦂ हाँ यह शहर बहुत ही आकर्षक है और यहाँ पर बहुत सारे पर्यटक स्थल है, जयगढ़ दुर्गा, सिटी पैलेस, जंतर मंतर, हवा महल, आमेर का किला आदि।

मोहन ⦂ सुना है, यह किला गुलाबी रंग से रंगा हुआ है।

सोहन ⦂ हाँ मित्र, तुम भी चलो ना हमारे साथ, मेरे मामा जी गणित के अध्यापक हैं। घुमने के साथ⦂साथ पढ़ाई भी हो जाएगी।

मोहन ⦂ ठीक है मैं एक बार घर में पूछ कर बताता हूँ।

सोहन ⦂ ठीक है शाम को जरूर बताना ।

मोहन ⦂ अच्छा तो मैं अभी चलता हूँ । घर जाकर तैयारी भी करनी है ।

सोहन ⦂ ठीक है ।


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क्या जीव-जंतुओं को पिंजरे में बंद करके रखना उचित है? अपने विचार लिखिए।

विचार लेखन

क्या जीव-जंतुओं को पिंजरे में बंद करके रखना उचित है?

जीव-जंतुओं को पिंजरे में बंद रखना जरा भी उचित नही है। धरती के हर प्राणी को इस धरती पर अपनी स्वतंत्रता से जीने का अधिकार है। किसी भी जीव-जंतु को पिंजरे में बंद करके हम उसकी स्वतंत्रता का हनन करते हैं। यदि हमें कोई पिंजरे में बंद करके कैद कर ले तो हमें कैसा लगेगा। सीधी सा बात है कि हमें बुरा लगेगा। उसी प्रकार यदि इन बेकसूर जीव-जंतुओं को पिंजरे में कैद कर ले तो हमें इन्हे कितना बुरा लगता होगा।

हम जीव-जंतुओ को पिंजरे में क्यों कैद करके रखते है? अपने मनोरंजन के लिए और दिखावा करने के लिए। अपने मनोरंजन मात्र के लिए किसी की जिंदगी को कैद कर लेना कहाँ तक उचित है। ये बात बिल्कुल भी ठीक नही है।

जीव-जंतुओं को स्वतंत्र होकर अपना स्वच्छंद जीवन जीने दें। उन्हें पिंजरे में कैद न करें। जिस तरह हमें स्वतंत्र होकर रहने का अधिकार है, और स्वतंत्रता का हम आनंद लेते हैं उसी तरह जीव-जंतुओं को भी स्वतंत्र रहने का अधिकार है। उन्हें स्वतंत्र रहने दें और उन्हें अपना जीवन जीने दें।

हमारे विचार में जीव-जंतुओं को पिंजरे में बद करके रखना बिल्कुल भी उचित नही है। अनेक चिड़ियाघरों में ऐसे बेकसूर जीव-जंतुओं को लोगों के मनोरंजन मात्र के लिए पिंजरे मे कैद करके रखा गया है वह भी बिल्कुल उचित नही है।

 


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‘प्रकृति हमारी शिक्षक है।’ स्पष्ट कीजिए।​

निम्न पंक्तियों में निहित अलंकारों का नाम बताइए- मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के। 1. रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गए न उबरै, मोती, मानस, चून। 3. ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो। 4. कढत साथ ही म्यान ते,असि रिपु तन ते प्राण।

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मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के।

अलंकार : मानवीकरण अलंकार 

स्पष्टीकरण

इस काव्य पंक्ति में  मेघ यानि बादलों को मानव के रूप में क्रिया करते हुए दिखाया गया है। इसलिए यहाँ पर मानवीकरण अलंकार की छटा प्रकट हो रही है।

मानवीकरण की परिभाषा के अनुसार जब प्रकृति के तत्वों को मानवीय रूप में क्रिया करते हुए दर्शाया जाए तो वहां पर ‘मानवीकरण अलंकार’ प्रकट होता है।


रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। 
पानी गए न उबरै, मोती, मानुष, चून। 

अलंकार : यमक अलंकार 

स्पष्टीकरण

इन पंक्तियों में ‘यमक अलंकार’ इसलिए है क्योंकि यहां पर एक ही शब्द ‘पानी’ के अलग-अलग अर्थ प्रकट हो रहे हैं, इसीलिए यहां पर ‘यमक अलंकार’ है।

यमक अलंकार की परिभाषा के अनुसार जब किसी का भी पंक्ति में एक ही शब्द प्रयुक्त किया जाए लेकिन एक ही शब्द अलग अलग अर्थ के संदर्भ में प्रयुक्त हो तो वहां पर ‘यमक अलंकार’ होता है। इन पंक्तियों में पानी शब्द के तीन अर्थ निकल रहे हैं, मोती, मनुष्य और आटा और आता इसलिए यहां पर यमक अलंकार होगा।


ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो। 

अलंकार : उत्प्रेक्षा अलंकार 

स्पष्टीकरण 

इस काव्य पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार इसलिए है क्योंकि इन पंक्तियों में उपमान का अभाव है, और उपमेय को ही उपमान मान लिया गया है।

उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा के अनुसार जहाँ पर उपमान के ना होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाए अर्थात उपमेय को ही उपमान बनाकर प्रस्तुत कर दिया जाए वहां पर उस ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ होता है। इन पंक्तियों में उपमेय को उपमान की तरह प्रस्तुत कर दिया गया है। इसलिए यहां पर ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ होगा।


कढत साथ ही म्यान ते, असि रिपु तन ते प्राण।

अलंकार : अतिश्योक्ति अलंकार 

स्पष्टीकरण

इस काव्य पंक्ति में अतिश्योक्ति अलंकार इसलिए है क्योंकि इन पंक्तियों में कवि ने अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन यानि बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया है।

अतिशयोक्ति अलंकार किसी काव्य में वहाँ पर प्रकट होता हैस जहाँ किसी काव्य पंक्ति के माध्यम से कवि किसी बातों को बढ़ा चढ़ाकर वर्णन करता है अर्थात वीरता, साहस या करुणा या प्रेम आदि सभी बातों का बढा-चढ़ा कर अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन किया जाए तो वहां पर ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ प्रकट होता है। इन पंक्तियों में कवि ने अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन किया है, इसलिए यहाँ पर ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ है।


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पंडित अलोपदीन कौन थे? पंडित अलोपदीन की चारित्रिक विशेषताएं लिखिए। (नमक का दरोगा)

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‘नमक का दरोगा’ कहानी में पंडित अलोपदीन शहर के जाने-माने प्रतिष्ठित और  धनी व्यवसायी थे। पूरे शहर में उनका रसूख था। वह शहर के एक प्रसिद्ध और अमीर व्यक्ति थे। शहर में उनका प्रभाव इतना था कि कोर्ट कचहरी से लेकर सरकारी विभाग तक उनकी पहुंच थी।

कोर्ट कचहरी के न्यायाधीश से लेकर किसी भी विभाग के कर्मचारी-अधिकारी तक उनके धनबल और रसूख के प्रभाव में रहते थे। वह भ्रष्टा व्यवसायी भी थे क्योंकि वह कर की चोरी किया करते थे। वह अवैध रूप से नमक का व्यवसाय करते थे और उस पर कर नहीं चुकाया करते थे। इसी कारण दरोगा वंशीधर ने उनके अवैध नमक से भरी हुई गाड़ियोंंको पकड़ लिया था।

पंडित अलाउद्दीन की चारित्रिक विशेषताएं इस प्रकार है…

  • पंडित अलोपदीन एक बेहद अमीर, धनबली और बाहुबली व्यक्ति थे। पूरे शहर में उनकी प्रतिष्ठा और रसूख था।
  • वह अपने धनबल के करण किसी भी मुकदमे को अपने पक्ष में कर लेते थे, चाहे उसे मुकदमे में उनकी गलती क्यों ना हो। दरोगा मुंशी वंशीधर का केस भी उन्होंने इसी तरह अपने पक्ष में कराया  था।
  • वह पूरी तरह गलत व्यक्ति नहीं थे क्योंकि उन्हें अपने गलत कार्यों का पछतावा भी हुआ था। जब उनके कारण दरोगा वंशीधर की नौकरी चली गई तो उन्होंने अपनी गलती का प्रायश्चित करते हुए वशीधर के पास जाकर न केवल माफी मांगी बल्कि उसे अपने यहां मैनेजर की नौकरी का प्रस्ताव भी दिया।
  • इस तरह वह वंशीधर की ईमानदारी से प्रभावित भी हुए।
  • यहां पर पंडित अलोपदीन के चरित्र के दो पहलू उभरकर सामने आते हैं।
  • एक पहलू एक भ्रष्ट व्यवसायी का था जो जो अपने धनबल के आधार पर अपनी गलत कार्यों से भी बच निकलते थे।
  • वहीं दूसरी तरफ उनके मन में ईमानदारी के प्रति सम्मान भी था। इसी कारण उन्होंने दरोगा वंशीधर की नौकरी जाने पर उसे अपने यहाँ काम पर रख लिया क्योंकि वह दरोगा बंशीधर की ईमानदारी के कायल हो गए थे।

‘नमक का दरोगा’ कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहानी है, जिसमें पंडित अलाउद्दीन कहानी के दो प्रमुख पात्रों में से एक पात्र हैं। दूसरा प्रमुख पात्र दरोगा बंशीधर था। दरोगा वंशीधर ईमानदार दरोगा था। पंडित अलोपदी एक भ्रष्ट व्यवसायी थे जिनके अवैध नमक से भरी बोरियों को दरोगा ने पकड़ लिया था। पंडित अलोपदीन में उसे रिश्वत देने की कोशिश की, लेकिन ईमानदार दरोगा अपने कर्तव्य से डिगा नहीं और उसने अलोपदीन को गिरफ्तार करके अदालत में पेश कर दिया। लेकिन पंडित अलोपदीन अपने धनबल के कारण पर छूट गए। मुंशी प्रेमचंद ने इसी पूरे घटनाक्रम को कहानी के ताने-बाने में प्रस्तुत किया है।


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न्यायालय से बाहर निकलते समय वंशीधर को कौन-सा खेदजनक विचित्र अनुभव हुआ?

वंशीधर के पिता वंशीधर को कैसी नौकरी दिलाना चाहते थे?

वंशीधर के पिता वंशीधर को कैसी नौकरी दिलाना चाहते थे?

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बंशीधर के पिता बंशीधर को एक ऐसी नौकरी दिलाना चाहते थे, जिस नौकरी में बंशीधर को ऊपरी कमाई हो। यहाँ पर ऊपरी कमाई से तात्पर्य सीधे तौर पर रिश्वत से था।

बंशीधर के पिता का मानना था कि नौकरी में ऊपरी कमाई ही वास्तविक कमाई हैं। नौकरी का वेतन तो पूर्णमासी के चांद की तरह है, जो महीने में केवल एक बार दिखाई देता और धीरे-धीरे कम होता जाता है। जिस तरह पूर्णमासी का हर महीने में एक बार दिखने के बाद उसका आकार लगातार कम होता जाता है, उसी तरह के वंशीधर के पिता के अनुसार नौकरी वेतन भी महीने की पहली तारीख को मिलने के बाद लगातार खर्च होता रहता है और कम होता जाता है।

वंशीधर के पिता का मानना था कि  नौकरी में ऊपरी कमाई जरूरी होती है ताकि अपने खर्चों को पूरा किया जा सके। उनके अनुसार ऊपरी कमाई ही बहता स्रोत है, जो बरकत करता है। इसलिए बंशीधर के पिता चाहते थे कि बंशीधर ऐसी नौकरी करें, जहां पर ऊपरी कमाई की गुंजाइश हो। यहाँ पर बंशीधर के पिता वंशीधर को सीधे तौर पर लेने के लिए प्रेरित कर रहे थे।

‘नमक का दरोगा’ कहानी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक सामाजिक कहानी है। इसमें एक ईमानदार दरोगा मुंशी वंशीधर के अपने ईमानदार के सिद्धांत पर टिके रहने की कथा का वर्णन किया है। एक भ्रष्ट व्यवसायी पंडित अलोपदीन से सामना होने पर भी दरोगा वंशीधर ने अपनी ईमानदारी को नहीं छोड़ा और अपने कर्तव्य का निर्वहन किया। इसके लिए उसे अपनी नौकरी तक गवाँनी पड़ी।


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दूरदर्शन से समाचार मिला है कि पटना के गांधी मैदान में बम विस्फोट हुआ है। वहाँ आपका ननिहाल है। अपने नाना जी और उनके के परिवार का कुशल-क्षेम पूछते हुए उन्हें पत्र लिखिए।।​

अनौपचारिक पत्र

कुशल क्षेम पूछते हुए नानाजी को पत्र

दिनाँक – 14 अप्रेल 2024

 

रमणीक सिंह
संस्तुति कॉटेज,
पटना-250101, बिहार

 

पूजनीय नानाजी एवं नानीजी,
प्रणाम।

आशा करता हूँ कि आप सब गाँव में स्वस्थ होंगे। कल ही दूरदर्शन पर समाचार देखते हुए यह जानकारी मिली कि पटना में गांधी मैदान में दशहरा मेले के दौरान जबरदस्त बम विस्फोट हुआ है और कई लोगों की इस हादसे में मौत हो गयी है और कई घायल हुए हैं।

यह खबर सुनते ही हमारे सब के तो जैसे पाँव ही फूल गए। माँ आपके बारे में बहुत चिंता कर रहीं थीं। हम सभी आप लोगों के लिए बहुत चिंतित हैं। भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि आप सब कुशल पूर्वक हों। समाचार मिलते ही हमने आप को दूरभाष के द्वारा संपर्क करने की भी कोशिश की थी लेकिन आप दोनों ने फोन नहीं उठाया और इससे हमारी चिन्ता और बढ़ गयी। जब समाचार में यह बताया गया कि हादसे में 3 बुजुर्ग लोगों की भी मौत हो गयी है तो हम लोग बहुत डर गए थे।

माँ ने वहाँ पटना में अपनी सहेली को भी फोन लगाया ताकि आपके बारे में पता लगाया जा सके तो माँ की सहेली भी इस समय पटना में नहीं थीं और वो दिल्ली आई हुई थीं। उन्होंने बताया कि दिल्ली आने वाले दिन उनकी आपसे मुलाकात हुई थी।

नाना जी, आप की उम्र बहुत हो गयी है और ऊपर से आप को सांस की भी बीमारी है, इसलिए कृपया बाहर अकेले न जाया कीजिये। कृपया हमें पत्र लिख कर अपना कुशल-क्षेम ज़रूर बताएं क्योंकि यहाँ पर सभी आप दोनों की चिन्ता में चैन से बैठ भी नहीं पा रहे हैं।

आशा करता हूँ कि हमारे परिवार का कोई भी सदस्य इस भयानक हादसे का शिकार नहीं हुआ है और सब कुशल से हैं। मैं इस हादसे में मरने वालों की आत्मा की शांति के लिए परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ। मुझे पता है आपका फोन कई बार खराब हो जाता है और इस कारण आप से बात नहीं हो पाती, इसलिए पिताजी ने आप के लिए एक नया फोन खरीदा है जो मैं कूरियर के माध्यम से आप के पास भेज रहा हूँ ताकि हम आप से सदा फोन पर कुशल-क्षेम पूंछ सकें।

आगे सर्दियों की छुट्टियाँ भी आ रही है और फिर हम सब आपके पास आ जाएंगे। बाकी यहाँ सब ठीक है और आपके स्वस्थ रहने की कामना करता हूँ।

 

आपका प्यारा नाती
रंजन सिंह
मकान न. 24,
जनता कॉलोनी,
शिमला-171002,

 


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अपनी माताजी के धीरे-धीरे स्वस्थ होने का समाचार देते हुए अपने पिताजी को पत्र लिखिए। ​

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‘जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी’ यह विज्ञापन आप रेडियो के लिए तैयार कीजिए।

‘प्रकृति हमारी शिक्षक है।’ स्पष्ट कीजिए।​

विचार

प्रकृति हमारी शिक्षक है।

 

प्रकृति हमारी शिक्षक है क्योंकि हम प्रकृति से हर पल कुछ ना कुछ सिखाती रहती हैं। जीवन के हर क्षण में प्रकृति से हम कुछ ना कुछ सीखते रहते हैं।

सहनशीलता का संदेश

प्रकृति हमें सहनशीलता सिखाती है। प्रकृति हमेश सहनशील बनी रहती है। प्रकृति के प्राणी प्रकृति के साथ लगातार छेड़छाड़ करते रहते हैं लेकिन प्रकृति हमेशा सहनशील बनी रहती है।

सबकुछ प्रदान करने का संदेश

प्रकृति हमारे लिए माँ के समान है। एक माँ अपनी संतान को सब कुछ देने के लिए तत्पर पर रहती है। वह अपनी सभी संतानों  को  बिना किसी भेदभाव के अपना सब कुछ देने के लिए हमेशा तैयार रहती है। उसी तरह प्रकृति भी पृथ्वी पर रहने वाले हर प्राणी को सब कुछ प्रदान करती है और हमेशा प्रदान करने के लिए तत्पर रहती है। प्रकृति का मूल भाव भी देना है। माँ अपनी संतान से कुछ पाने की आकांक्षा नहीं रखती है और हमेशा देना जानती है। उसी तरह प्रकृति भी हमसे कुछ पाने की आकांक्षा नही रखती वह केवल देना जानती है

मिलजुल कर रहने का संदेश

प्रकृति हमें मिल बांटकर हर चीज का उपयोग करना सिखाती है। प्रकृति हमें सिखाती है कि हमारे पास जो संसाधन है, वह सारे संसाधन सीमित मात्रा में नहीं हैं, इसलिए संसाधनों का अपव्यय नहीं करना चाहिए। वह हमें सभी प्राकृकित संसाधनों का उपयोग मिलजुल कर करने की सीख देती है।

समानता का संदेश

प्रकृति समानता का भाव सिखाती है, जो प्राकृतिक तत्व हैं वह सभी प्रकृति बिना किसी भेदभाव प्रकृति सब को प्रदान करती है। प्रकति वायु, जल, प्रकाश, मिट्टी, पर्वत, नदी आदि को बिना किसी जाति-धर्म-लिंग-नस्ल के भेदभाव के सबको समान रूप से प्रदान करती है। प्रकृति अपनी नदी जल प्रदान करते  यह नहीं देखती कि उसे पीने वाला किस धर्म का है, वह किस जाति का है। नदी के जल को हर कोई पी सकता है। इस घरती पर जो जो भी वायु है, वह सब के लिए उपलब्ध है। प्रकृति की मूल अवधारणा ही समानता और समरसता की अवधारणा है। इसके संसाधनों का उपयोग हर प्राणी कर सकता है। इस तरह प्रकृति बिना किसी भेदभाव के हमें समानता से रहना सिखाती है।

संयम से रहने का संदेश

प्रकृति हमें संयम और मितव्ययता से रहना भी सिखाती है। प्रकृति कहती है कि तुम अपनी सीमा से बाहर जाओगे और संसाधनों का उपयोग करने की अति कर दोगे तो उसका परिणाम भी भोगना पड़ेगा। इसीलिए प्रकृति अपनी प्राकृतिक आपदाओं के माध्यम से यदा-कदा अपना क्रोध प्रकट करती रहती है। वह हमें ये संदेश देती कि न तो प्राकृतिक तत्वों के साथ छेड़छाड़ करो और न ही संसाधनों का अत्याधिक दोहन करो। इस तह प्रकृति हमें संयम से रहना भी सिखती है।

कर्मशील रहने का संदेश

प्रकृति हमें बिना रुके लगातार काम करते रहने की सीख भी देती है। प्रकृति निरंतर अपने कर्मों में लगी रहती है। निश्चित समय पर बारिश होती है। निश्चित समय पर मौसम बदलते रहते हैं, प्रकृति का चक्र नियमित रूप से चलता रहता है। प्रकृति निरंतर क्रमशील रहती है। वह ये संदेश देती है कि बिना किसी लाग-लेपट के अपने कर्मों में निरंतर लगे। रहो प्रकृति कभी नहीं रुकती इस तरह प्रति हमें अभी भी ना रुकने का संदेश देती है

प्राकृतिक जीवन शैली संदेश

प्रकृति हमें अपने निकट होने का भी संदेश देती है ।मानव जीवन आज के भौतिक संसाधनों की दौड़ में प्रकृति से दूर होता जा रहा है। इससे उसे अनके स्वास्थ संबंधी समस्याओं की स्ख्या में बढॉत्ररी से जितना अधिक प्राकृतिक जीवन शैली से दूर होगा उसके स्वास्थ्य और जीवन को इतना ही अधिक खतरा होगा प्रकृति हमें संदेश देती है कि अधिक से अधिक प्रकृति के निकट रहो. प्रकृति से जुड़ो। प्राकृतिक जीवन को अपनाओ। इसीलिए प्रकृति हमें प्राकृतिक बने रहने का संदेश देती है।

निष्कर्ष

यदि हम प्रकृति के व्यवहार का गहराई से अवलोकन करें तो हम पाएंगे की प्रकृति के हर पलस हर क्षण में कुछ ना कुछ संदेश छुपा है। हम प्रकृति से बहुत कुछ सीख सकते हैं। वह हमारे लिए एक बेहतरीन शिक्षक है इस बात में कोई संदेह नही  है।


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प्रकृति और मनुष्य के बीच हुए एक संवाद को लिखें।

‘प्रकृति अपना रंग-रूप बदलती रहती है।’ इसका आशय है- (i) मौसम बदलते रहते हैं (iii) पृथ्वी परिक्रमा कर रही है। (ii) परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है। (iv) जलवायु सुहानी हो रही है।​

जो मनुष्य किसी व्यक्ति की कला पर प्रसन्न होकर उसे कुछ नहीं देता वह किसके समान होता है? (क) पशु से भी अधिक निम्न (ख) पशु के समान (ग) कंजूस व्यक्ति के समान (घ) साधारण मनुष्य के समान

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सही विकल्प होगा..

() पशु के समान 

स्पष्टीकरण

मनुष्य किसी पर प्रसन्न हो जाए तो वह उसे धन देता है या उसकी भलाई के लिए कोई कार्य करता है। लेकिन ऐसे मनुष्य जो दूसरों पर प्रसन्न होकर भी उसे कुछ नहीं प्रदान करते, ऐसे मनुष्य पशु के समान होते हैं।

कवि रहीम अपने इस दोहे के माध्यम से कहते हैं कि…

नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत ।
ते ‘रहीम’ पसु से अधिक, रीझेहु कछू न देत।।

हिरण एक ऐसा पशु है, जो संगीत पर मुग्ध होकर शिकारियों को अपना जीवन तक देता है अर्थात वह संगीत में इतना खो जाता है कि शिकारी उसका शिकार कर लेता है, यानी हिरण अपना अस्तित्व ही समाप्त कर लेता है। 

इस दोहे के माध्यम से कवि ये कहना चाहता है, हिरण को संगीत प्रिय होता है। उसे संगीत प्रिय है, तभी तो वह शिकारी के संगीत मे खो जाता है और अपने जीवन की सुरक्षा करना भूल जाता है, और उसे अपने शरीर की भी सुबबुध नही रहती और शिकारी उसका शिकार कर लेता है।


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”अब मैं नाच्यौ बहुत गोपाला” में कौन सा रस है?

अगर चिड़िया और शार्क बोल पाती तो उनके बीच क्या वार्तालाप होता। एक काल्पनिक संवाद लिखिए।

संवाद लेखन

चिड़िया और शार्क के बीच संवाद

 

चिड़िया ⦂ शार्क बहन, सुनाओ, तुम्हारे क्या हाल-चाल हैं?

शार्क ⦂ मेरे हाल-चाल ठीक हैं। तुम सुनाओ, कहाँ से घूम कर आ रही हो?

चिड़िया ⦂ बहन मैं बच्चों के लिए दाना लेने गई थी। मेरे बच्चे छोटे-छोटे हैं। वह दाने इकट्ठा करने के लिए अभी उड़ नहीं सकते। वे घोंसले में ही रहते हैं।

शार्क ⦂ बहुत अच्छा। मेरे बच्चे भी छोटे थे, तो मुझे उन्हें भोजन का इंतजाम करना पड़ता था। धीरे-धीरे वह जब बड़े हुए तो अपना भोजन स्वयं करने लगे।

चिड़िया ⦂ बहन तुम तो मांसाहारी हो। तुम छोटी-छोटी मछलियों को खाती हो लेकिन मैं शाकाहारी हूँ। मैं केवल अनाज के दानों को ही खाती हूँ।

शार्क ⦂ हाँ, बहन, मैं मांसाहारी हूँ। लेकिन इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। प्रकृति ने मुझे ऐसा ही बनाया है। तुम्हें प्रकृति ने शाकाहारी होने के लिए बनाया है, इसलिए तुम अनाज के दाने खाती हो।

चिड़िया ⦂ हाँ, बहन तुम सही कह रही हो। मेरा कहने का वह मतलब नहीं है। शायद तुम्हें मेरी बात का बुरा लगा है।

शार्क ⦂ नहीं, नहीं ऐसी कोई बात नहीं। मुझे तुम्हारी बात का बुरा नहीं लगा। हम सब प्राणियों को जैसा प्रकृति ने बनाया है, हम वैसा ही व्यवहार करते हैं।

चिड़िया ⦂ इस बारे में मैं तुम्हारी राय से पूरी तरह सहमत हूँ।

शार्क ⦂ अब देखो तुम्हें लिए प्रकृति ने हवा में घूमने के लिए बनाया है, तो इसलिए तुम खुले आकाश में सीमाओं के बंधन के परे कहीं पर भी आ जा सकती हो। मुझे प्रकृति ने जल में रहने के लिए बनाया है, मैं इसलिए मैं जल की सीमा तक ही सीमित हूँ। मैं जल से बाहर कहीं पर भी नहीं जा सकती। तालाब, झील, समुद्र आदि में जहाँ पर भी मैं रहती हूँ, वह जिस क्षेत्र तक फैले हैं, मैं वहीं तक ही जा सकती हूँ। जब कि तुम एक देश से दूसरे देश, एक राज्य से दूसरे राज्य, एक शहर से दूसरे शहर आसानी से आ-जा सकती हो।

चिड़िया ⦂ यह बात सही है, लेकिन मैं जल में नहीं रह सकती। मैं जल में एक पल को भी नहीं रह सकती। जो खासियत मेरे अंदर हैं, वे तुम्हारे अंदर नहीं है और जो खासियत तुम्हारे अंदर है, वह मेरे अंदर नहीं है।

शार्क ⦂ काश ऐसा होता कि मैं जल में भी रह पाती और मेरे पास तुम्हारी तरह पंख भी होते। जब जब चाहती मैं आकाश में उड़कर, घूमकर वापस आ जाती। तुम्हें भी प्रकृति ने ऐसा बनाया होता कि तुम भी जल के अंदर जा पातीं तो कितना मजा आता।

चिड़िया ⦂ हाँ, प्रकृति ऐसा बना सकती थी, लेकिन प्रकृति ने किसी भी प्राणी को ऐसा नहीं बनाया है। हर प्राणी की एक सीमाएं हैं। प्रकृति  सबको सारी विशेषताएं नहीं दी हैं। शायद प्रकृति ने कुछ सोचकर ही ऐसा किया होगा। जो भी किया है, वह ठीक है। किसी भी प्राणी को हर तरह की विशेषता और शक्ति मिलना ठीक नही होता। मैं तो जैसी हूँ उसमें ही खुश हूँ।

शार्क ⦂ तुम ठीक कह रही हो। प्रकृति ने जिसको जैसा बनाया है, वह ठीक है। मैं ही ज्यादा सोचने लगी थी। हमें अपने हाल में खुश रहना चाहिए।

चिड़िया ⦂ हाँ बहन, हमें अपने हाल में ही संतुष्ट रहना चाहिए। अच्छा चलो मैं चलती हूँ, अंधेरा होने को आया। मेरे छोटे-छोटे बच्चे घोंसले में मेरा इंतजार कर रहे होंगे।


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पिंजरे में बंद पक्षी और आज़ाद पक्षी के बीच संवाद लिखिए।

चॉक और ब्लैकबोर्ड के बीच संवाद लिखें।

गिटार और सितार के बीच एक काल्पनिक संवाद लिखिए।

‘दो बैलों की कथा’ में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति विषयक मूल्य उभर कर सामने आए हैं?

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‘दो बैलों की कथा’ कहानी के माध्यम से लेखन ने पशुओं तथा मनुष्यों के बीच भावनात्मक संबंधों का वर्णन किया है। इस कहानी के माध्यम से निम्नलिखित नीति-विषयक मूल्य उभरकर सामने आते हैं।

  • एकता में शक्ति होती है, अपने साथ–साथ दूसरों का हित भी सोचना चाहिए।

दोनों बैलों हीरा और मोती ने जिस तरह एकता दिखाई और हर मुसीबत का मिलकर सामना किया उससे एकता का महत्व स्पष्ट हो जाता है।

  • सच्चा मित्र मुसीबत के समय किसी भी स्थिति में कभी साथ नहीं छोड़ता है।

हीरा-मोती ने कभी एक दूसरे का साथ नही छोड़ा। अगर एक मुसीबत में फंसा तो दूसरा उसके साथ खड़ा रहा। दोनों के मित्रता के धर्म को पूरी तरह निभाया। इससे ये नीति-विषयक मूल्य उभरकर सामने आता है, कि सच्चा मित्र किसी भी स्थिति में साथ नही छोड़ता है।

  • पशुओं के अंदर संवेदनाएं और भावनाएं होती है। हमे उनके साथ संवेदनात्मक व्यवहार करना चाहिए।

इस कहानी के माध्यम से लेखक ये संदेश देने की पशु भी भावनाओं को समझते हैं। उनके अंदर भी संवेदनाएं होती हैं। वे समझदार भी होते हैं। पशुओं के साथ हमें पशुवत व्यवहार नही बल्कि मानवीय व्यवहार करना चाहिए। अपने पालतू पशुओं के साथ प्रेम से कोई भी काम करवाया जा सकता है। यदि हम उनके साथ क्रूरता करेंगे तो वे बगावत भी कर सकते हैं।

  • आज़ादी बहुत बड़ा मूल्य है। इसे पाने के लिए मनुष्य को बड़े से बड़ा कष्ट उठाने को तैयार रहना चाहिए।

ये कहानी हमें आजादी के मूल्य से परिचित कराती है। इस कहानी से पता चलता है कि कष्टों वाली आजादी सुख-सुविधाओं वाली गुलामी से बेहतर है। अपनी आजादी को पाने के लिए हमें कोई भी कीमत चुकाने को तैयार रहना चाहिए।

इस तरह मुंशी प्रेमचंद की ‘दो बैलों की कथा’ के माथ्यम से उपरोक्त नीति विषयक मूल्य उभरकर सामने आए हैं।


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‘दो बैलों की कथा’ में गधे से शुरुआत क्यों हुई?

‘दो बैलों की कथा’ में जालिम किसको कहा गया है?

‘दो बैलों की कथा’ में गधे से शुरुआत क्यों हुई?

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दो बैलों की कथामें गधे से शुरुआत इसलिए की गई है, क्योंकि गधे के उदाहरण द्वारा मुंशी प्रेमचंद ने बुद्धिमानी का परिचय देने की कोशिश की है।

लेखक मुंशी प्रेमचंद के अनुसार जानवरों में गधा सबसे बुद्धिमान समझा जाता है, लेकिन आदमी बेवकूफ के रूप में प्रयोग करता है और जिस किसी व्यक्ति को बेवकूफ कहना हो तो उसे गधा कह देते हैं, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। गधा बेवकूफ नहीं बल्कि सीधा और सहनशील प्राणी है और उसके उसकी सीधेपन और सहनशीलता के कारण ही लोग उसे बेवकूफ कहने की पदवी दे दी है।

गधा वास्तव में एक बुद्धिमान प्राणी होता है। गधा कभी क्रोध नहीं करता। चाहे उसे कितना भी मारो, लेकिन वह कभी भी क्रोध नही करता। इसके विपरीत कुत्ता यहाँ तक कि गाय जैसे जानवर भी क्रोध कर लेता है।

लेखक ने कहानी का आरंभ गधे से करके यही समझाने की कोशिश की है कि गुणों की इस संसार में कदर नहीं होती। कहानी के मुख्य पात्र हीरा मोती में भी अनेक गुण थे, लेकिन उन्हें काफी तकलीफें सहनी पड़ी।

संदर्भ : दो बैलों की कथा, मुंशी प्रेमचंद (कक्षा -9, पाठ – 1), हिंदी-क्षितिज


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‘दो बैलों की कथा’ में जालिम किसको कहा गया है?

‘लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।’ – हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्री के प्रति प्रेमचंद्र के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए। (दो बैलों की कथा)

‘दो बैलों की कथा’ में जालिम किसको कहा गया है?

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दो बैलों की कथाकहानी में जालिम झूरी के साले ‘गयाको कहा गया है।

दो बैलों की कथा’ मुंशी प्रेमचंद की कहानी है। “दो बैलों की कथा” में झुरी जो बैलों का मालिक है। झुरी के साले  (पत्नी का भाई)  जिसका नाम ‘गया’ है, उसे ‘जालिम’ कहा गया है, क्योंकि  एक बार जब ‘गया’ उन्हें अपने साथ ले गया तो उसनें उन्हें सूखा चारा डाला था। हीरा और मोती ने इसे अपना अपमान समझा और अगले दिन हल जोतने से ना-नुकर करने लगे। इस पर ‘गया’ ने उन्हें डंडे से खूब पीटा और अगले दिन फिर से उन्हें सूखा चारा खाने को दिया।

इस तरह दो बैलों की कथा कहानी में झूरी के साले ‘गया’ द्व्रारा दोनों बैलों हीरा-मोती के प्रति किए क्रूरतापूर्ण व्यवहार के कारण ही उसे ‘जालिम’ कहा गया है।

‘दो बैलों की कथा’ पाठ की कहानी मुशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई है। इस कहानी में उन्होंने हीरा-मोती नामक दो बैलों को आपसी संबंध तथा उनके अन्य मनुष्यों से संबंध का आधार बनाया है। उन्होंने इस कहानी में बताया है कि पशुओं में भी संवेदना होती है। लेखक ने पशुओं तथा मनुष्यों के बीच भावनात्मक सम्बन्धों का वर्णन किया है।

संदर्भ पाठ : दो बैलों की कथा, मुंशी प्रेमचंद (कक्षा -9, पाठ – 1), हिंदी-क्षितिज


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‘लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।’ – हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्री के प्रति प्रेमचंद्र के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए। (दो बैलों की कथा)

‘साप्ताहिक धमाका’ को बच्चे किस गोपनीयता के साथ निकालते थे ?​

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‘साप्ताहिक धमाका’ को बच्चे बेहद गोपनीयता से निकलते थे। साप्ताहिक धमाका को निकालने वाले चार बच्चे थे। चारों बच्चों ने अपनी गोपनीयता बनाए रखी थी। उन्होंने अपनी गोपनीयता बनाए रखने के लिए किसी को भी अपना नाम जाहिर नहीं होने दिया था।

सबसे पहले चारों बच्चे एक प्रति निकलते थे। उसके बाद चार प्रतियां निकाली जातीं। फिर कार्बन कॉपी से और कई सारी प्रतियां तैयार की जाती थीं। खबार की खबरों के लिए चारों बच्चे पहले सारी जानकारी इकट्ठी करते फिर अपने हाथ से लिखते। वह अपनी लिखावट को भी अलग ढंग से लिखते थे। चारों बच्चों ने बाएं हाथ से लिखने का अभ्यास कर लिया था ताकि उनकी लिखावट पकड़ी ना जाए।

चारों बच्चों ने अपना और पहचान भी किसी पर जाहिर नहीं होने दी। वह अपना काम कब और कहां करते हैं, यह बात भी उन्होने किसी को पता नहीं लगने दी। अखबार तैयार होने के बाद हर इतवार को सुबह सुबह ही अखबार बंट जाता था।

संदर्भ पाठ – साप्ताहिक धमाका (कक्षा-6 पाठ-12 हिंदी मंजरी

‘साप्ताहिक धमाका’ पाठ 4 बच्चों पर आधारित एक कहानी है, जिसमें उन्होंने मोहल्ले में फैले भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए साप्ताहिक धमाका नाम से एक साप्ताहिक समाचार पत्र निकालना शुरू किया था।

यह समाचार पत्र हस्तलिखित होता था। चारों बच्चों ने बेहद गोपनीयता से साप्ताहिक पत्र को निकलना शुरू किया। पहले वो मोहल्ले में फैले भ्रष्टाचार की खबरें इकट्ठे करते फिर उसे अपने हाथ से लिखकर एक प्रति तैयार करते थे। फिर चार प्रतियां तैयार करते। चार प्रतियां तैयार करने के बाद और कई प्रक्रिया तैयार की जातीं। सब कुछ तैयार हो जाने के बाद वह बच्चे हर इतवार को महल्ले के हर मकान के दरवाजे पर अखबार बांट आते थे। इस साप्ताहिक समाचार पत्र में मोहल्ले के दुकानदारों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार जैसे मिलावट आदि की खबरें होतीं थी और कुछ चटपटी रोचक खबरें भी होती थीं।

 


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‘बेवक्त जागने’ का परिणाम क्या होता है? (कविता – इसे जगाओ)

‘भई, सूरज’ में ‘भई’ संबोधन किस प्रकार का है- (क) औपचारिक (ख) आदरसूचक (ग) श्रद्धासूचक (घ) आत्मीय​

‘लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।’ – हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्री के प्रति प्रेमचंद्र के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए। (दो बैलों की कथा)

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‘लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।’ – हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्रियों के प्रति प्रेमचंद के सम्मानजनक दृष्टिकोण की भावना स्पष्ट होती है।

प्रेमचंद के तात्कालीन समय में स्त्रियों की स्थिति समाज में जैसी रही हो, लेकिन उनके इस कथन से यह तो अवश्य स्पष्ट हो रहा है कि तत्कालीन समाज में स्त्रियों को सम्मान देने की भावना भी प्रचलित थी। स्त्रियों पर हाथ उठाना बुरा-माना जाता था।

हमारे भारतीय समाज में भी स्त्रियों को देवी तुल्य दर्जा दिया गया है। संस्कृत की उक्ति यत्र नार्येस्तु पूजयन्ते, तत्र रमन्ते देवता’  के माध्यम से भी स्त्रियों के प्रति सम्मान प्रकट किया किया गया है।

कालांतर में स्त्रियों की स्थिति भले ही खराब होती गई हो लेकिन समाज में यह प्रयास भी निरंतर जारी रहे कि स्त्रियों को सम्मानजनक दर्जा मिलता रहे। प्रेमचंद के तत्कालीन समाज में भी स्त्रियों के प्रति सम्मान देने की भावना जरूर बलवती रही होगी इसीलिए स्त्रियों के ऊपर हाथ उठाना बुरा माना जाता होगा। यही प्रेमचंद ने अपनी कहानी ‘दो बैलों की कथा’ के एक पात्र हीरा बैल के कथन के माध्यम से भी स्पष्ट किया है।

इससे पता चलता है कि प्रेमचंद स्त्रियों के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण रखते थे और स्त्रियों के प्रति किसी भी तरह की हिंसा जैसे हाथ उठाना आदि को बुरा मानते थे। इस कथन के माध्यम से प्रेमचंद का स्त्रियों के प्रति सम्मानजनक द़ष्टिकोण प्रकट हो रहा है।

संदर्भ पाठ : दो बैलों की कथा (लेखक मुंशी प्रेमचंद)


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अपनी माताजी के धीरे-धीरे स्वस्थ होने का समाचार देते हुए अपने पिताजी को पत्र लिखिए। ​

अनौपचारिक पत्र

माताजी के स्वास्थ्य के संबंध में पिताजी को पत्र

 

दिनाँक : 12 अप्रेल 2024

 

द्वारा : रोहित भटनागर,
मकान नं. – 2/85,
जनता कॉलोनी,
आगरा (उ. प्र.)

मिले : श्री स्वरूपंचद्र भटनागर,
A-35, संत नगर, दिल्ली

 

आदरणीय पिताजी,
चरण स्पर्श

हम सब यहां पर कुशलता पूर्वक हैं। आपके भी कुशलपूर्वक होने की कामना करता हूँ। आपका पत्र दो दिन पहले मिला था। आपने माताजी के स्वास्थ्य सुधार के विषय में हालचाल पूछ था। पिताजी, मुझे आपको यह बताते हुए बड़ी खुशी हो रही है कि माताजी के स्वास्थ्य में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है।

पिताजी, आज सुबह डॉक्टर माताजी का चेकअप करके गए थे और उन्होंने बताया कि एक हफ्ते के अंदर माताजी का स्वास्थ्य पूरी तरह ठीक हो जाएगा और उनकी जो नियमित दवाइयां चल रही हैं, उनमें केवल एक दो दवाइयां ही आगे कुछ दिनों तक लेनी पड़ेंगी। बाकी सारी दवाइयां बंद कर दी जाएंगी। उन्होंने चेकअप करके बताया कि माता जी के स्वास्थ्य सुधार में अच्छी खासी प्रगति देखी गई है।

एक हफ्ते बाद वह दैनिक जीवन के कार्य सरलता से कर सकेंगी। आप माताजी के विषय में बिल्कुल भी चिंता नहीं करना। हम सब उनका खूब ध्यान रख रहे हैं। आप अपनी नौकरी की व्यस्तता के कारण यहाँ नही आ पा रहे हैं हम समझते हैं। जैसे ही कल डॉक्टर ने चेकअप करके सारी रिपोर्ट दी तो माताजी ने मुझे तुरंत ही आपको पत्र लिखने को बोला था। आपको जैसे ही अपनी नौकरी से छुट्टी मंजूर हो जाए आप तुरंत घर आ जाना हम सबको आपकी बहुत याद आती है। अब पत्र समाप्त करता हूँ। हम सभी की तरफ से आपको प्रणाम।

आपका पुत्र,
रोहित

 


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माताजी की बीमारी से पीड़ित मित्र को धीरज बंधाते हुए पत्र लिखिए। अधीर होने से समस्या घटती नहीं बढ़ती है।

कवि ने सही वक्त पर जागने की बात क्यों कही है? (क) दिन का समय गुजर जाएगा। (ख) फिर उसके जागने का फायदा नहीं होगा। (ग) वह दुनिया के मुकाबले में पिछड़ जाएगा। (घ) वह आलसी बन जाएगा

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सही विकल्प होगा…

(ग) वह दुनिया के मुकाबले में पिछड़ जाएगा।

 

स्पष्टीकरण :

कवि ने सही वक्त पर जाग की बात इसलिए कही है क्योंकि यदि व्यक्ति सही वक्त पर नहीं जागेगा तो वह दुनिया के मुकाबले पिछड़ जागेगा। क्योंकि सही वक्त पर न जागने से उसके सारे कार्य समय पर नही हो पाएंगे।

सही वक्त पर जाग जाने से सारे कार्य समय पर हो जाते हैं। ऐसे लोग जीवन में सदैव ही आगे बढ़ते हैं, क्योंकि वह सही वक्त पर जाग जाते हैं।

यहाँ पर कवि सही वक्त पर जागने से तात्पर्य आलस्य न करने, समय का सदुपयोग करने और हाथ में आए अवसर को कभी भी न छोड़ने से है। कवि के अनुसार जो लोग समय के साथ चलते हैं और हर कार्य समय पर पूरा करते हैं, वह जीवन में कभी भी पिछड़ते नहीं हैं। ऐसे लोग जीवन में हमेशा आगे बढ़ते रहते हैं और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं।

जो लोग सही वक्त पर नहीं जागते वह जीवन की दौड़ में और लोगों से पिछड़ जाते हैं। उनके सारे कार्य विलंब से होते हैं। समय पर कोई भी कार्य न कर पाने के कारण दूसरों से पीछे रह जाते हैं और वह जीवन में सफल नहीं हो पाते।

इसीलिए कवि ने वक्त पर जागने की बात कही है, ताकि समय के साथ चला जा सके और समय का सदुपयोग किया जा सके।

टिप्पणी

‘इसे जगाओ’ कविता में कवि भवानीशंकर मिश्र समय पर जागने के महत्व को बताते हैं। वह कहते हैं कि हमें अपने जीवन में सफल होने के लिए आवश्यक है कि हम अपने जीवन में सुबह जल्दी उठ जाए और अपने कार्य सारे कार्य समय पर पूरा करें। जो लोग सही समय पर हर कार्य कर लेते हैं, वह अपने जीवन में सफल होते हैं।

कविता में वक्त पर जाग जाने का मतलब केवल सुबह जल्दी जाग जाने से ही नहीं बल्कि जीवन में हर समय और हर घड़ी और क्षेत्र में समय और अनुशासन के दायरे में रहकर काम करने से भी है।

 


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‘बेवक्त जागने’ का परिणाम क्या होता है? (कविता – इसे जगाओ)

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‘बेवक्त जागने’ का परिणाम क्या होता है? (कविता – इसे जगाओ)

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‘बेवक्त’ जागने का परिणाम यह होता है कि व्यक्ति जीवन की दौड़ में औरों से पीछे रह जाता है। जब वह समय पर नहीं जागाता तब उसे अपने पिछड़े होने का बोध होता है। वह समय पर जागकर अपने कार्यों को समय पर पूरा नहीं कर पाता।

जब वह बेवक्त जागता है तो वह जीवन के कार्यों में औरों से पिछड़ जाता है। उसके सारे कार्य देरी से शुरू होते हैं। ऐसे में दूसरे लोग उससे आगे निकल जाते हैं। वह उनकी बराबरी करने के लिए हड़बड़ाहट में कार्य करने लगता है, इससे उसके कार्य और अधिक बिगड़ते जाते हैं।

इसीलिए ‘बेवक्त’ जागने का परिणाम यह होता है कि व्यक्ति न केवल जीवन की दौड़ में दूसरों से पिछड़ जाता है बल्कि उसके सारे कार्य भी बिगड़ जाते हैं और वह अपने किसी भी कार्य को सही समय पर नहीं कर पाता। इसलिए समय पर जगकर अपने सारे कार्य समय पर कर लेने चाहिए। तभी जीवन में आगे बढ़ सकते हैं।

‘इसे जगाओ’ कविता में कवि ‘भवानी प्रसाद मिश्र’ कहते हैं कि सही समय पर अगर आदमी सचेत न हो तो वह घबराने लगता है। घबराकर भागना और तेज गति से भागने में अंतर होता है। तेज गति से चलने का अर्थ है, सही अवसर पर सचेत होकर अपने कार्य को समय पर करना यानी सही समय पर मिले अवसर को नहीं छोड़ना और उसे लपक लेना।

इसके विपरीत घबराकर कर भागने का मतलब होता है कि बेवक्त जगकर समय से पीछे क घबराकर वही भागते हैं जो समय से पीछे चल रहे होते हैं, वह समय के साथ चलने के बाद में प्रयास में हड़बड़ा कर भागते हैं, इससे उनके सारे कार्य में बिगड़ते जाते हैं। इसीलिए हमेशा समय पर सारे कार्य कर लेने चाहिए।


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सही विकल्प होगा :

(घ) आत्मीय​

स्पष्टीकरण :

‘भई, सूरज’ शब्द में ‘भई’ संबोधन एक ‘आत्मीय’ संबोधन है। ‘भई’ शब्द ‘भाई’ शब्द का अनौपचारिक और देसी रूप है, जो किसी पुरुष व्यक्ति से बातचीत करते समय अनौपचारिक रूप से बोला जाता है।

‘भई’ शब्द भारत के उत्तरी भाग में अधिकतर आत्मीय संबोधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। जैसे…

भई, बहुत दिनों बाद दिखाई दिए।
भई, आजकल कहाँ रह रहे हो।

भई, भाई शब्द का ही बिगड़ा हुआ और संक्षिप्त रूप है। ये आम बोलचाल की भाषा में धड़ल्ले से प्रयुक्त होता है। इस शब्द में आत्मीयता प्रकट होती है।


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शाकाहार की पौष्टिकता के विषय में डॉक्टर और रोगी के बीच हुए संवाद को लिखें।

संवाद लेखन

शाकाहार की पौष्टिकता के विषय में डॉक्टर और रोगी का संवाद

 

रोगी ⦂ (अस्पताल में प्रवेश करते हुए) डॉक्टर साहब, नमस्कार !

डॉक्टर ⦂ नमस्कार आइए, कहिए क्या हाल है ?

रोगी ⦂ पहले से अच्छा हूँ। बुखार उतर गया है लेकिन कुछ भी पच नहीं रहा है, पेट खराब रहने लगा है।

डॉक्टर ⦂ अच्छा आजकल खाने में क्या खा रहें हैं आप?

रोगी ⦂ (पेट को पकड़ते हुए) डॉक्टर साहब परसों तो मैंने थोड़ा सा मीट खाया था और कल मछली और भात खाया था और सुबह हर रोज़ बस चार ही अंडे खाता हूँ।

डॉक्टर ⦂ (हैरानी से देखते हुए) आप कमाल करते है, आप अभी भी बीमारी से पूरी तरह ठीक नहीं हुए हैं और आप इतना मांसाहारी खाना खा रहे हो। यह आपकी सेहत के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है क्योंकि अभी आपका पाचन तंत्र इतना भी ठीक नहीं हुआ है। आपको खाने में शाकाहारी भोजन का सेवन करना चाहिए। शाकाहारी भोजन में बहुत पौष्टिकता होती है।

रोगी ⦂ लेकिन मांसाहारी चीज़ें तो बहुत ही पौष्टिक होती है।

डॉक्टर ⦂ (समझाते हुए) देखिए यह सब मांसाहारी चीज़ें बहुत ही ज़्यादा गरम होती है और इन्हें पचाना आसान नहीं है, और आजकल तो वैसे भी जानवरों में बहुत सी बीमारियाँ फैल रही है जैसे- बर्ड-फ्लू (bird flue)। महाराष्ट्र और बिहार में बर्ड-फ्लू के कारण सैकड़ों मुर्गे-मुर्गियों की मौत हो गई है और तो और भेड-बकरे और बकरियों में भी (पी पी आर) नामक बीमारी फैल रही है, जिसे बकरियों की महामारी भी कहते हैं, यह भी इंसानों के लिए जानलेवा है।

रोगी ⦂ (घबराते हुए) डॉक्टर साहब तो फिर बताइए कौन सा भोजन पौष्टिक है?

डॉक्टर ⦂ (मुसकुराते हुए) शुद्ध शाकाहारी भोजन जैसे, ताज़े फल, ताज़े फलों का जूस, हरी सब्जियाँ, दालें इत्यादि इस सब में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा आदि होते है जो हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं, ताकत देते हैं और हमारा शारीरिक ही बल्कि मानसिक विकास भी होता है।

रोगी ⦂ (हाथ जोड़ते हुए) धन्यवाद ! डॉक्टर साहब, आपने मेरे आँखें खोल दी अब मैं केवल शुद्ध शाकाहारी भोजन का ही सेवन करूँगा।


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दिए गए वाक्यों का वाच्य परिवर्तन करें। 1. माँ द्वारा परंपरा से हट कर सीख दी जा रही है । (कर्तृवाच्या) 2. आओ पेड़ की छाया में बैठें। (भाववाच्य) 3. मैंने तुम्हारी समस्याओं को लेखन का विषय बनाया है। (कर्मवाच्य)

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दिए गए वाक्यों का परिवर्तन इस प्रकार होगा :

1. माँ द्वारा परंपरा से हट कर सीख दी जा रही है । (कर्तृवाच्य)

कर्तृवाच्य : माँ परंपरा से हट कर सीख दे रही है।

2. आओ पेड़ की छाया में बैठें। (भाववाच्य)

भाववाच्य : आओ पेड़ की छाया में बैठा जाये।

3. मैंने तुम्हारी समस्याओं को लेखन का विषय बनाया है। (कर्मवाच्य)​

कर्मवाच्य : मेरे द्वारा समस्याओं को लेखन का विषय बनाया गया है।

वाच्य क्या होते हैं?
वाच्य की परिभाषा :- क्रिया के उस परिवर्तन को वाच्य कहते हैं, जिसके द्वारा हमें इस बात का ज्ञान हो कि वाक्य में कर्ता, कर्म या भाव मे से किसकी प्रधानता है।

वाच्य के भेद –
1. कर्तृवाच्य : जिस वाक्य में कर्ता की प्रधानता का बोध होता है।
2. कर्मवाच्य : जिस वाक्य में कर्म की प्रधानता का बोध हो।
3. भाववाच्य : जिस वाक्य में क्रिया अथवा भाव की प्रधानता का बोध हो।


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वह उसकी ओर देखती है। इस वाक्य को ‘अपूर्ण भूतकाल’ में बदलें।

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मूल वाक्य : वह उसकी ओर देखती है। (सामान्य वर्तमान काल)

अपूर्ण भूतकाल : वह उसकी ओर देख रही थी।

अपूर्ण भूतकाल क्या होता है?

‘अपूर्ण भूतकाल’ में भूतकाल की उस क्रिया का बोध होता है, जिसमें भूतकाल में कोई क्रिया संपन्न तो हो रही होती है, लेकिन यह पूर्ण नहीं हुई होती है, यह बात स्पष्ट होती है। अपूर्ण भूतकाल में भूतकाल में किसी क्रिया के चलते रहने का बोध होता है, अर्थात भूतकाल में चल रही क्रिया पूरी नहीं हुई हुई थी। इस तरह के काल का बोध कराने वाले वाक्यों को ‘अपूर्ण भूतकाल’ कहते हैं। ‘अपूर्ण भूतकाल’ भूतकाल के छः उपभेदों में से एक उपभेद है।

भूतकाल के छः उपभेद होते हैं, जोकि इस तरह होंगे :

  • सामान्य भूतकाल
  • पूर्ण भूतकाल
  • अपूर्ण भूतकाल
  • आसन्न भूतकाल
  • संदिग्ध भूतकाल
  • हेतुहेतुमद भूतकाल

‘काल’ से तात्पर्य किसी वाक्य में क्रिया या कार्य करने के समय से होता है अर्थात किसी वाक्य में क्रिया के जिस रुप से हमें कार्य के समय का बोध होता हो, उसे ‘काल’ कहा जाता है।

काल के तीन भेद होते हैं, जो इस प्रकार है ।

  • वर्तमान काल
  • भूतकाल
  • भविष्य काल

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वर्तमान समय में विद्यार्थी की स्थिति पर निबंध लिखें।

निबंध

वर्तमान समय में विद्यार्थी की स्थिति

 

विद्यार्थी शब्द की रचना ‘विद्या’ और ‘अर्थी’ से हुई है। इसका अर्थ है विद्या की इच्छा रखने वाला। यूँ तो व्यक्ति सारा जीवन कुछ–न-कुछ सीखता ही रहता है। सारी आयु उसका अध्ययन चलता ही रहता है, परंतु बाल्यकाल ही विद्याध्ययन का उचित समय है। इस अवस्था में विद्यार्थी संसार की सभी चिंताओं से मुक्त हो पूरा समय पढ़ाई में व्यतीत कर सकता है।

विद्यार्थी परिश्रमी, अनुशासन प्रिय, सत्यनिष्ठ, परोपकारी तथा उच्च चरित्र वाला होता है। वह परिश्रम के महत्व को जानता है। इस दुनिया में जितने भी महापुरूष, नेता, एवं संत प्रसिद्ध हुए हैं, वे सब परिश्रम के बल पर ही खरे उतरे हैं। लेकिन वर्तमान समय में विद्यार्थी की स्थिति बहुत खराब हो चुकी है। वर्तमान समय में फैशन नें भी विद्यार्थी की स्थिति खराब कर दी है। फैशन के प्रति झुकाव स्वभाविक है और यह कोई बुरा भी नहीं है लेकिन एक सीमा तक ही ठीक है। उसके आगे फैशन हानिकारक हो जाता है क्योंकि ये विद्यार्थी के शैक्षणिक जीवन को प्रभावित करता है। लेकिन विद्यार्थी फैशन के चंगुल में फस कर अपनी संस्कृति का अपमान करते है, और पश्चिमी दुनिया की दौड़ में शामिल हो रहे हैं।

वर्तमान समय में विद्यार्थी की स्थिति बहुत खराब हो चुकी है और इसका सबसे बड़ा कारण है, अनुशासनहीनता। अनुशासनहीनता के कई कारण है जैसे व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक अनेक कारण है। वर्तमान शिक्षा-पद्धति के कारण भी आज के समय में विद्यार्थी की स्थिति खराब हुई है। छात्रों की रूचियों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है, केवल परीक्षाओं पर ही ध्यान दिया जाता है।

चरित्र निर्माण और नैतिक शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। छात्र की प्रतिभा का माप केवल प्राप्तांक ही माने जाते हैं। इस कारण परिश्रमी एवं प्रबुद्ध छात्रों में असंतोष फैल रहा है|। भाई भतीजेवाद के कारण तथा सगे संबंधियों की सहायता से कमज़ोर छात्र अच्छी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश पा जाते हैं, जबकि मेधावी छात्र सिफारिश ना होने के कारण पिछड़ जाते हैं। अगर वर्तमान समय में विद्यार्थी की स्थिति पर ध्यान न दिया गया तो यह हमारे देश के भविष्य के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकता है।


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युद्ध से पीछे हटना कायरता है, क्षमाशीलता नहीं-अपने विचार बताइए।

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विचार लेखन

युद्ध से पीछे हटना  कायरता है

 

कोई नहीं चाहता कि युद्ध हो और उसमें किसी की जान जाए, लेकिन इस सच्चाई से भी कोई इंकार नहीं कर सकता कि अगर सही कारण और अपने हक़ के लिए अगर युद्ध करना पड़े तो उससे भी पीछे नहीं हटना चाहिए। युद्ध तभी होता है जब किसी धैर्य की इंतेहा हो जाती है या फिर जब किसी की इज्ज़त पर बन आती है। लेकिन अगर युद्ध में हमारी सहभागिता जरूरी है तो हमें कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए क्योंकि जब बात अपने मान-सम्मान बचाने की आती है तो कुछ और उससे उपर नहीं है, चाहे वो जीवन ही क्यों न हो।

जब युद्ध क्षेत्र में कूद गए तो फिर सिर पर कफन बांधना ही पड़ता है और उस समय अगर कोई पीछे हटता है तो उसे समस्त बिरादरी से तिरस्कार झेलना पड़ सकता है और उसे ताउम्र कायर कह कर ही बुलाया जाता है। माना कि युद्ध में कई निर्दोष भी मारे जाते हैं और साथ में बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं भी इसका शिकार होती हैं, लेकिन एक योद्धा जब शस्त्र लेकर निकलता है तो इन सब चीजों से ऊपर उठ कर मैदान में उतरता है। अगर कोई योद्धा यह सोच कर युद्ध से पीछे हटता है कि उसके कारण बहुत से निर्दोष लोग मारे जाएंगे, तो उस योद्धा को कोई बहादुर या महान नहीं कहता, वो यह सोच रखने के बावजूद कायरता ही कहलता है।

इसलिए, अगर युद्ध की ठान ली है और युद्ध क्षेत्र में कदम रख दिया है तो कदम पीछे कभी भी नहीं हटना चाहिए, चाहे वो अच्छाई के लिए हो या बुराई के लिए क्योंकि युद्ध का निर्णय भी तो आपका ही है और अगर आप पीछे हटते है तो आप सदा के लिए कायर की उपाधि से अपमानित होते ही रहेंगे।


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भारत विविधता में एकता दर्शाने वाला देश है। भारतीयों पर ‘भारतीयता की गहरी छाप दिखाई पड़ती है। इस कथन को सही साबित करते हुए पाठ ‘तलाश’ के आधार पर अपने विचार लिखिए।

नेहरू जी स्मारकों, गुफाओं तथा इमारतों की ओर आकर्षित होते थे। स्मारकों, गुफाओं तथा इमारतों के सहारे अपने देश का इतिहास जानने की कोशिश करते थे। कैसे? अपने विचार लिखिए।

मृदुला गर्ग ने शिक्षा मे अपना योगदान कैसे दिया?

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मृदुला गर्ग ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान तब दिया जब उनका स्थानांतरण कर्नाटक में हो गया और वह कर्नाटक के बागलकोट कस्बे में रहने को आ गई। तब तक उनके दो बच्चे हो चुके थे और दोनों की स्कूल जाने की आयु हो चुकी थी। बागलकोट कस्बे में कोई भी ढंग का स्कूल नहीं था। तब मृदुला गर्ग ने वहाँ पास के कैथोलिक बिशप से प्रार्थना की कि उनके बागलकोट कस्बे में एक प्राइमरी स्कूल खोल दें, लेकिन बिशप ने यह कहते हुए मना कर दिया कि कस्बे में क्रिश्चन जनसंख्या कम है, इसलिए वह स्कूल नहीं खोल सकते।

मृदुला गर्ग ने वापस प्रार्थना की कि गैर क्रिश्चन लोगों को भी शिक्षा पाने का अधिकार है, तब बिशप ने कहा हम कोशिश कर सकते हैं लेकिन आप गारंटी ले कि अगले 100 साल तक स्कूल चलता रहेगा। तब मृदुला गर्ग को गुस्सा आ गया और उन्होंने कहा इस बात की कौन गारंटी ले सकता है। बिशप ने उनकी बात नहीं मानी। तब मृदुला गर्ग ने स्वयं स्कूल का जिम्मेदारी लेते हुए, वहां एक प्राइमरी स्कूल खोलने का निश्चय किया।

उन्होंने आसपास के लोगों की मदद से उन्होंने शीघ्र ही अंग्रेजी, हिंदी और कन्नड़ भाषाओं में पढ़ाने वाला एक प्राइमरी स्कूल वहां पर खोल दिया। उस स्कूल में बागलकोट कस्बे के सभी बच्चे अच्छी तरह पढ़ने लगे। धीरे-धीरे स्कूल प्रसिद्ध होता गया और दूसरी जगह से भी बच्चे आते गए।

इस तरह मृदुला गर्ग ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान दिया।

संदर्भ पाठ :

‘मेरे संग की औरते’ – मृदुला गर्ग, कक्षा 10, पाठ 2

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मोबाइल के फायदे क्या हैं और वह हमारी लिए हानिकारक कैसे है। उसके लिए अनुच्छेद लिखें।

आठवीं लोकसभा के चुनाव कब हुए था?

मोबाइल के फायदे क्या हैं और वह हमारी लिए नुकसानदायक कैसे है? बताएं कैसे?

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मोबाइल के हमारे जीवन में बहुत महत्व है और साथ में यह हमारे लिए हानिकारक भी है। यदि हम मोबाइल का सही कामों के लिए प्रयोग करें तब यह हमारे लिए एक वरदान है। जब हम किसी भी चीज़ का प्रयोग हद से ज्यादा करते है , वह हमारे लिए हानिकारक साबित होता है।

मोबाइल के फायदे 

मोबाइल के हमारे जीवन में बहुत महत्व है। मोबाइल के सही उपयोग से हम घर बैठे बहुत से कार्य कर सकते है। मोबाइल को हम आसानी से एक जगह से दूसरे जगह आसानी से ले जा सकते है। हम कभी भी दूसरे देश में बैठे लोगों से बात कर सकते है। मोबाइल से हम पढ़ाई कर सकते है। घर बैठे ही अपने बैंक का काम कर सकते है, सभी तरह के बिलों का भुगतान कर सकते है। मोबाइल की सहायता से हम व्यापार कर सकते है, घर बैठे लोगों से बात कर सकते है। मोबाइल का सही तरीके से प्रयोग किया जाए, तो इसके बहुत फायदे है।

मोबाइल के नुकसान

मोबाइल का सही से प्रयोग न किया जाए तो, यह हमारे लिए हानिकारक है। यदि हम मोबाइल का इस्तेमाल गेम खेलने, गाने सुनना, सारा दिन फिल्में देखना, आदि ऐसे काम करेंगे तो यह हमारे लिए नुकसानदायक है। ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करने से हमारी आँखों को नुकसान होता है। हमारी दिमाग में फर्क पड़ता है। हमें भूलने की बीमारी लग जाती है। मोबाइल के इस्तेमाल करना हमारे हाथ में हमें इसके फायदे लेने या नुकसान। हमें समझ कर इसका प्रयोग करना चाहिए।


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दुर्गा पूजा पर 100 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखें।

खेलों के महत्व पर अनुच्छेद लिखिए।

1. मानव मन की कमजोरी के क्या कारण हैं ? 2. ज्वालाएं किसके प्रतीक के रूप में हैं? 3. उत्तेजित मन कब शान्त होता हैं ? 4. कठिनाई के क्षण हमें क्या करना चाहिए ? 5. फूल व कांटे बोने से क्या आशय है ?

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अगम चेतना की घाटी, कमजोर पड़ा मानव का मन,
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ज्वालायें जब धुल-धुल जाती हैं, खुल खुल जाते हैं मुदे नयन,
होकर निर्मलता में प्रशांत, बहता प्राणों का क्षुब्घ पवन संकट।
संकट में यदि मुसका ना सको, भय से कातर हो मत रोओ,
यदि फूल नहीं बन सकते हो, कांटे कम से कम मत बोओ।

1.  मानव मन की कमजोरी के क्या कारण हैं ?

उत्तर : मानव मन की कमजोरी के मुख्य कारण चेतना का अभाव है।

2. ज्वालाएं किसके प्रतीक के रूप में हैं?
उत्तर : ज्वालाएं अज्ञानता के प्रतीक के रूप में हैं।

3.  उत्तेजित मन कब शान्त होता हैं ?
उत्तर : उत्तेजित मन तब शांत हो जाता है, जब उसे प्रेम-स्नेह की शीतल छाया में बैठने का अवसर प्राप्त होता है।

4. कठिनाई के क्षण हमें क्या करना चाहिए ?
उत्तर : कठिनाई के क्षण हमें भय से घबराना नही चाहिए और ना ही संकट के समय रोना चाहिए।

5.  फूल व कांटे बोने से क्या आशय है ?
उत्तर : फूल व कांटे बोने से आशय है कि फूल खुशी और प्रेम का प्रतीक है, कांटे दुख एवं कष्ट का प्रतीक हैं। किसी के जीवन में यदि फूल न बिखेर सको तो उसके जीवन में कांटे भी मत बोओ यानि किसी को खुशी न दे सको तो उसे किसी तरह का दुख भी न दो।

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“मकान के लिए नक्शा पसंद करना हमारी संस्कृति का परिचायक है।’ ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि-(क) घर हमारी सभ्यता की पहचान है। (ख) अन्य लोगों से जोड़ने का माध्यम है। (ग) नक्शे के बिना मकान बनाना कठिन है। (घ) हमारी सोच-समझ को उजागर करता है।”

पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो। वस्तु अमोलक दई म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥ जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो। खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो।। सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो। ‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस गायो॥ मीरा के इस पद का भावार्थ लिखिए।

आठवीं लोकसभा के चुनाव कब हुए था?

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आठवीं लोकसभा के चुनाव 1984 में हुए थे।

आठवीं लोकसभा के चुनाव 1984 हुए थे। ये चुनाव तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए थे। इन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को विशाल बहुमत मिला।

कांग्रेस पार्टी ने 414 लोकसभा सीटों पर विजय प्राप्त की थी।

1984 का आठवीं लोकसभा का चुनाव वही लोकसभा चुनाव था जिसमें लोकसभा चुनाव के इतिहास में किसी राजनीतिक दल को सर्वाधिक सीटें प्राप्त हुईं।

कांग्रेस पार्टी को लोकसभा चुनाव में कुल 414 सीटें प्राप्त हुई थी। इससे पहले और बाद में किसी को भी राजनीतिक दल को 400 या 400 से अधिक सीटें नहीं मिली हैं।

आठवीं लोकसभा के चुनाव  1984 के दिसंबर माह में संपन्न किए गए थे। कुल 543 लोकसभा सीटों में से 541 लोकसभा सीटों पर चुनाव आयोजित किए गए, जिनमें कांग्रेस पार्टी ने 414 सीटों पर विजय प्राप्त की और सबसे बड़ी पार्टी बनी।

उसके बाद तेलुगुदेशम पार्टी 30 लोकसभा सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। 23 सीटें जीतकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी।

आठवीं लोकसभा में लोकसभा सीटें जीतने वाली सभी पार्टियां

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) 426
  2. तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) 30
  3. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (सीपीआई (एम))—  23
  4. जनता पार्टी (जनता पार्टी) 16
  5. ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) 12
  6. स्वतंत्र (इंड.) 9
  7. अकाली दल (अकाली दल) 7
  8. असम गण परिषद (एजीपी) 7
  9. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) 6
  10. कांग्रेस (एस) (कांग्रेस (एस)) 5
  11. लोकदल(लोकदल) 4
  12. अनासक्त (अनअटैच्ड)  4
  13. जम्मू एवं कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (जेकेएन) 3
  14. रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) (आरएसपी) 3
  15. ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (एआईएफबी) 2
  16. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 2
  17. द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) 2
  18. केरल कांग्रेस (एम) (केसी(एम)) 2
  19. इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) 2
  20. नामांकित (एनएम) 2

 

कांग्रेस पार्टी को प्रचंड बहुमत मिलने का मुख्य कारण इंदिरा गांधी के हत्या के बाद कांग्रेस पार्टी के प्रति जनता में उमड़ी सहानुभूति लहर दी। इस सहानुभूति लहर के कारण जनता ने कांग्रेस पार्टी को खुलकर वोट दिया था। आठवीं लोकसभा में चुनाव के बाद इंदिरा गांधी के पुत्र राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री बने थे।

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भारत के पहले आम चुनाव भारत में अभी तक कुल 17 लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। भारत के पहले आम लोकसभा चुनाव 1951-52 में हुए थे। तब लोकसभा की कुल 489 सीट थीं।

भारत के दूसरे लोकसभा चुनाव 1957 में हुए और लोकसभा सीटों की संख्या बढ़कर 494 हो गई। 1962 में तीसरे, 1967 में चौथे लोकसभा चुनाव हुए।  इस तरह 2019 का भारत की कुल 17 लोकसभा के चुनाव हो चुके हैं।

1991 तक भारत में कुल 534 लोकसभा सीटें थी। जिनकी संख्या बढ़कर 1996 में 543 हो गई। वर्तमान समय में 543 लोकसभा सीटे हैंं।

2024 में भारत की 18वीं लोकसभा के चुनाव होंगे।

भारत की कुल 17 लोकसभा चुनावों का विवरण इस प्रकार है…

  1. 1951-52 पहली लोकसभा
  2. 1957 — दूसरी लोकसभा
  3. 1962 तीसरी लोकभा
  4. 1967 चौथी लोकसभा
  5. 1971 पांचवीं लोकसभा
  6. 1977 छठी लोकसभा
  7. 1980 सातवीं लोकसभा
  8. 1984 आठवीं लोकसभा
  9. 1989 नौवीं लोकसभा
  10. 1991 दसवीं लोकसभा
  11. 1996 ग्यारहवीं लोकसभा
  12. 1998 बारहवीं लोकसभा
  13. 1999 तेरहवीं लोकसभा
  14. 2004 चौदहवीं लोकसभा
  15. 2009 पन्द्रहवीं लोकसभा
  16. 2014 सोलहवीं लोकसभा
  17. 2019 सत्रहवीं लोकसभा

भारत में वर्तमान समय में कुल 543 लोकसभा सीटें हैं और बहुमत के लिए कुल 272 सीटों की आवश्यकता होती है।

भारत के पहले आम लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को विजय हासिल हुई थी और उसने कुल 364 सीटें जीतकर सत्ता प्राप्त की थी। जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री बने थे।

उसके बाद 1957, 1962, 1967 और 1971 के आम लोकसभा चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ही लगातार लोकसभा चुनाव जीत कर सत्ता में बनी रही।

1977 के आम लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस पार्टी को हराकर पहली बार सत्ता प्राप्त की और पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। जनता पार्टी ने कोई 295 लोकसभा सीटें प्राप्त की थीं।

1980 में कांग्रेस पार्टी फिर सत्ता में आई और 1984 में भी दोबारा सत्ता में आई। उसके बाद 1989 में जनता दल ने चुनावों में विजय प्राप्त करके सस्ता संभाली।

1991 में फिर कांग्रेस पार्टी को सत्ता प्राप्त हुई। उसके बाद 1996 में भारतीय जनता पार्टी को कुछ दिनों के लिए सत्ता मिली। 1998 से 2004 तका भारतीय जनता पार्टी से ही सत्ता में रही।

2004 से 2014 तक कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार रही।

2014 से 2024 तक भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में पूर्ण गठबंधन की सरकार है। भारतीय जनता पार्टी को 2014 में 282 और 2019 में 303 सीटें प्राप्त हुईं।

 


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1. चित्रकार किसे कहा गया है?

उत्तर : कविता में चित्रकार विधाता यानी ईश्वर को कहा गया है। ईश्वर ने ही इस सुंदर प्रकृति की रचना की है। इतनी सुंदर प्रकृति की रचना करने वाले विधाता ईश्वर को ही चित्रकार कहा गया है।

2. पर्वतों की चोटियों की तुलना किससे की गई है?

उत्तर : पर्वतों की चोटियों की तुलना तपस्वियों से की गई है क्योंकि पर्वत की यह चोटियां तपस्वियों सी अटल खड़ी हैं। इन चोटियो को देखकर ऐसा लग रहा है कि कोई तपस्वी अपनी तपस्या में मगन हो। यह निश्चल भाव से सदियों से यूं ही खड़ी हैं।

3. कविता में घाटियों को सर्प के समान क्यों बताया गया है?​ 

उत्तर :  कविता में घाटियों को सर्प के समान इसलिए बताया गया है, क्योंकि पर्वत की एक घटना लहराती हुई बलखाती हुई दिखाई दे रही है। ये घुमावदार घटियां ऐसी प्रतीत हो रही है, जैसे कोई सर्प अपनी चाल में चल रहा हो। सर्प लहराते हुए,  बलखाते हुए चलते हैं। यह घटिया भी उसी तरह लहराती हुई फैली हैं।  इसीलिए कविता में घाटियों को सर्प के समान बताया गया है।

पंडित भरत व्यास

‘पंडित भरत व्यास’ हिंदी के जाने-माने कवि और गीतकार थे, जिन्होंने हिंदी की अनेक सुंदर कविताओं की रचना की। उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए अनेक सुंदर गीत भी लिखे हैं। उनके लिखे गीत कई हिंदी फिल्मों में फिल्म लिए गए हैं और बेहद लोकप्रिय हुए हैं।

‘यह कौन चित्रकार है’ गीत भी उन्होंने हिंदी फिल्म ‘बूंद जो बन गई मोती’ के लिए लिखा था। उसके अलावा उन्होंने दो आँखें बारह हाथ का ऐ मालिक तेरे बंदे हम जैसा गीत भी लिखा। उन्होंने गूंज उठी शहनाई, संत ज्ञानेश्वर जैसी फिल्मों के लिए भी गीत लिखे। उनका जन्म 6 जनवरी 1918 को हुआ और निधर 4 जुलाई 1982 को हुआ।

‘ये कौन चित्रकार है’ गीत

हरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन
के जिस पे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशाएँ देखो रंग भरी, चमक रही उमंग भरी
ये किसने फूल फूल पे किया सिंगार है
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार है….

तपस्वियों सी है अटल ये पर्बतोंकी चोटियाँ
ये सर्पसी घूमेरदार घेरदार घाटियाँ
ध्वजा से ये खडे हुए है वृक्ष देवदार के
गालिचे ये गुलाब के, बगीचे ये बहारके
ये किस कवी की कल्पना का चमत्कार है
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार है

कुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो
इनके गुणों को अपने मन में तुम उतार लो
चमका लो आज लालिमा अपने ललाटकी
कण कण से झाँकती तुम्हें छबी विराट की
अपनी तो आँख एक है, उस की हजार है
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार


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इसकी छाया में रंग गहरा किसलिए और क्यों कहा गया है​?

‘दाह जग-जीवन को हरने वाली भावना’ क्या होती है ? ​

‘ मर्म को छूना’ इस मुहावरे का अर्थ पहचानकर लिखिए। (क) हँसी उडाना (ख) हृदय को छूना (ग) दुखित होना

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सही विकल्प होगा…

(ख) हृदय को छूना

मर्म को छूना इस मुहावरे का सही अर्थ इस प्रकार होगा :

मुहावरा : मर्म छूना।

अर्थ : हृदय को छूना’

मर्म से तात्पर्य मन और हृदय से होता है। जो बात बहुत अच्छी लगती हो, दिल यानि हृदय को बहुत अच्छी लगे, उसे मर्म छूना कहेंगे।

वाक्यों के प्रयोग द्वारा समझते हैं :

वाक्य प्रयोग-1 : शिवानी ने मोहन से कहा कि तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो तो यह बात मोहन के मर्म को छू गयी।

वाक्य प्रयोग-2 : अपने सारगर्भित भाषण से वक्ता ने श्रोताओं के मर्म को छू लिया।

मुहावरे क्या है?

मुहावरे वे वाक्यांश होते हैं, जिनका स्वतंत्र रूप से कोई अर्थ नहीं होता, लेकिन वह किसी वाक्य के साथ प्रयोग किये जाते हैं। मुहावरे किसी बात को वजनदार कहने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

मुहावरे अरबी भाषा का शब्द है, जिसको हिंदी में ‘कहावत’ भी कहा जाता है। यहाँ  पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि मुहावरे लोकोक्ति से भिन्र होते हैं। मुहावरे जहाँ वाक्यांश होते हैं, वहीं लोकोक्तियां पूर्ण रूप से एक वाक्य हैं जिनका अपना निश्चित स्वतंत्र अर्थ होता है।


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घोड़ा-गाड़ी शब्द का तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशज शब्द क्या होंगे?

“मकान के लिए नक्शा पसंद करना हमारी संस्कृति का परिचायक है।’ ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि-(क) घर हमारी सभ्यता की पहचान है। (ख) अन्य लोगों से जोड़ने का माध्यम है। (ग) नक्शे के बिना मकान बनाना कठिन है। (घ) हमारी सोच-समझ को उजागर करता है।”

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सही विकल्प होगा…

(क) घर हमारी सभ्यता की पहचान है।

स्पष्टीकरण :

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भारत विविधता में एकता दर्शाने वाला देश है। भारतीयों पर ‘भारतीयता की गहरी छाप दिखाई पड़ती है। इस कथन को सही साबित करते हुए पाठ ‘तलाश’ के आधार पर अपने विचार लिखिए।

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‘भारत विविधता में एकता वाला देश है’ यह कथन और धारणा पूरी तरह से सही साबित होती है। ‘तलाश’ पाठ के आधार पर यदि हम इस कथन का विवेचन करें तो हम इस कथन को पूरी तरह सत्य पाएंगे। भारत बहुल संस्कृति वाला देश है। भारतीय संस्कृति की विशेषता यह है कि यह संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति तो है ही, इसके साथ इस सबसे प्राचीन संस्कृति में अनेक नवीन संस्कृतियों का भी मिलन हुआ है।

भारत में संसार के हर जगह से लोग आकर बसते रहे हैं, इसलिए ने भारत की संस्कृति में प्राचीन और नवीन संस्कृति का अनोखा सामंजस्य देखने को मिलता है। भारतीय संस्कृति की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें पुराने को भी बनाए रखा है और नए विचारों को भी आत्मसात किया है।

भारत के हर राज्य की अपनी अलग भाषा है, अलग संस्कृति है, अलग वेशभूषा है, अलग खानपान है, फिर भी भारत एक मजबूत देश है। भारत विभिन्न विचारधाराओं, विभिन्न जीवन शैली एवं संस्कृति को मानने वाले लोग मिलजुलकर रहते हैं, ऐसा उदाहरण विश्व के अन्य किसी देश में नहीं मिलता। केवल भारत की संसार का एकमात्र देश है, जहाँ पर इतनी अधिक सांस्कृतिक विविधता है। इसीलिए भारतीयों में भारतीयता की छाप पूरी तरह दिखाई पड़ती है, क्योंकि भारत में अनेक विदेशियों ने आक्रमण किया लेकिन वे भारत के भारतीयता को पूरी तरह मिटा नहीं पाए और भारत की संस्कृति कभी भी नहीं झेल पाए। इसलिए यह बात पूरी तरह सच है कि भारत विविधता में एकता वाला अनोखा देश है। भारतीयों पर भारतीयता की गहरी छाप हैं।

संदर्भ :

‘भारत की खोज – तलाश’ – कक्षा – 8 पाठ – 2 तलाश

 


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‘आपका पाला हुआ प्राणी लापता हो गया है।’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

बुजुर्ग और बच्चों को एक-दूसरे से क्या जानने और सीखने को मिलता है?

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बच्चों से हम ये सीख सकते हैं

‘बच्चे मन के सच्चे’ आप सब ने तो यह बात सुनी ही होगी। बच्चों से हम सबसे बड़ी बात सीख सकते हैं, वह है ईमानदारी। हम बच्चों से चाहें तो बहुत कुछ सीख सकते हैं, लेकिन उसके लिए हमें अपने अहंकार को छोड़ना होगा ।

चिन्ता ना करना :- बच्चे हमें सिखाते है कि हमें हमेशा खुश रहना चाहिए, व्यर्थ की चिन्ता  नहीं करनी चाहिए। बच्चे नया तो बीते हुए कल के बार में सोचते हैं और ना ही आने वाले कल के बारे में वह तो बस आज में जीते हैं। सबसे बड़ी बात जो वह हमें सिखाते हैं वह यह है कि लोग क्या सोचेंगे, लोग क्या कहेंगे, इसकी फिक्र ना करना ।

भेदभाव की भावना :- हर एक से निस्वार्थ दोस्ती करना और निस्वार्थ प्रेम से रहना सिखाते हैं। बच्चे कभी–भी भेदभाव नहीं करते चाहे वह कोई भी हो, गरीब हो या अमीर, बड़ा हो या छोटा, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का क्यों ना हो। वह हमेशा इतना मीठा बोलते हैं कि मन करता है कि बस उनकी बातें सुनते रहें।

खुशी से रहना :- हालत चाहे कैसे भी हो बच्चे हर पल का आनंद उठाते हैं और खुश रहते हैं। बच्चे हमेशा मुसकुराते रहते हैं और उन्हें देखकर कोई भी हो वह मुसकुरा देता है। बच्चे हमेशा ऊर्जा से भरे रहते हैं। वह सारा दिन व्यस्त रहते हैं। खेल–कूद में लगे रहते है।

सच्चे और दयालु :- बच्चों में सबसे बड़ी खासियत होती है कि वह बुरी से बुरी बात को जल्दी भूल जाते है, माफ कर देना और माफी माँग लेना यह छोटी सी बात वह हमें सिखा देते हैं। बच्चों का दिल इतना सच्चा होता है कि वह हमेशा दूसरों के बारे में बिना स्वार्थ के सोचता है।

धोखेबाजी :– बच्चे कभी भी धोखेबाजी नहीं करते क्योंकि वह जानते ही नहीं है की धोखा क्या होता है। वह तो सच्चे मन से हर काम करते हैं बिना किसी नुकसान और फायदे की चिन्ता के।

बुजुर्गों से हम ये सीख सकते हैं

बुजुर्गों से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। आज के समय में परिवार संयुक्त ना रह कर एकाकी परिवार हो गए है क्योंकि लोगों को बड़े बुजुर्गों का उनके मामले में बात करना उचित नहीं लगता और उन्हें घर के बुजुर्गों के साथ रहना पसंद नहीं उन्हें लगता है कि वह उनकी आज़ादी पर अंकुश लगा रहे हैं और यही कारण है कि उनके बच्चे समझ ही नहीं पाते कि दादा-दादी , नाना-नानी का प्यार क्या होता है।

आजकल अधिकतर दंपति नौकरी पेशे वाले होते हैं इस कारण बच्चे घर पर अकेले रहते हैं और अकेलापन उन्हें चिड़चिड़ा बना देता है वह लोगों से किस तरह बरताव करना चाहिए नहीं सीख पाते हैं। लेकिन अगर घर में बुजुर्ग हो तो वह बच्चों को बहुत सी बाते सिखाते है जैसे जब घर पर कोई मेहमान आए तो उन्हें प्रणाम करना चाहिए और उनके चरण स्पर्श करने चाहिए।

सबसे पहले उन्हें बैठने को कहना चाहिए फिर चाय पानी पूछना चाहिए। जब घर में कोई छोटा बच्चा आ जाए तो उसे प्यार से अपने साथ खिलाना चाहिए उससे प्यार से बात करनी चाहिए। हर रोज सुबह और श्याम घर में पूजा–पाठ करना चाहिए।

वह हमें सिखाते हैं कि हमें बाहर का क्या खाना चाहिए और कितना ताकि हमें अस्पताल ना जाना पड़े। वह हमें अच्छे संस्कार देते हैं ताकि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को भी यही संस्कार दे सकें। वह हमें सबसे मिलकर रहना सिखाते हैं | संयुक्त परिवार के फायदे बताते हैं और अपने माता–पिता का आदर करना सिखाते हैं।


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बच्चे की मुस्कान मृतक में भी जान कैसे डाल देती है ?

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बच्चे की मुस्कान में इतनी प्रफुल्लता, इतनी जीवंतता होती है कि वह उदासीन एवं गंभीर चेहरे में भी प्रसन्नता भर देती है। बच्चे की मुस्कान निश्छल ,कोमल, निस्वार्थ , सच्ची और मनोहर होती है। बच्चे की मुस्कान सबको अपनी ओर आकर्षित करती है एवं आनंद प्रदान करती है। उस मुस्कान में ऐसा अपार सुख है कि मरे हुए व्यक्ति में भी प्राणों का संचार कर देती है अर्थात ऐसा कौन सा व्यक्ति होगा जो बालक की मुस्कान को प्राप्त कर प्रसन्नता से न भर उठे। बच्चे बहुत मासूम होते है। वह अपने साफ दिल से सब को खुश रखते हैं। बच्चे अपनी बातों से सबका मन खुश कर देते है । यह सही कहा गया कि बच्चे की मुस्कान मृतक में भी जान डाल देती है।

संदर्भ पाठ :

‘ये दंतुरित मुस्कान’ — नागार्जुन

 


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बच्चे अपने आप को बीमारी से कैसे बचा सकेंगे ?

नैनीताल जाने के लिए माँ से अनुमति पत्र हिंदी में लिखिए।

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खराब भोजन या पानी या अनियमित जीवन शैली की वजह से डायरिया या फूड पॉइजनिंग जैसे इन्फेक्शन हो जाते हैं। इसलिए आजकल बच्चों को अपने-आप को बीमारी से निम्नलिखित तरीकों से बचा सकते हैं…

नियमित रूप से हाथ धोएँ : संक्रमण से बचने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप बार–बार साबुन और पानी से हाथ धोते रहें। इसके लिए एक एल्कोहल आधारित हैंड सेनिटाइज़र का भी उपयोग किया जा सकता है।

निजी स्वच्छता से जुड़ी अच्छी आदतें अपनाएं : संक्रमण की रोकथाम के लिए रोजमर्रा से जुड़ी आदतें को नियमित रूप से पालन करना होगा।
जैसे,

  • नियमित रूप से सुबह और शाम दांतों को साफ करना होगा।
  • रोजाना नहाना होगा।
  • नंगे पाँव न चले।
  • घर को नियमित रूप से साफ रखें।
  • जमीन पर ना थूकें क्योंकि थूकने से बीमारी फैलती है।
  • बच्चों को चाहिए कि वह ताज़ा फलों और फूलों से दूर रहें क्योंकि उनमें ऐसे कीटाणु और फफूंदी पाई जाती है जो हानिकारक होती है।
  • मक्खियों और दूसरे कीड़े–मकड़ों को भोजन पर बैठने दें, इससे बीमारी हो सकती है।

पालतू पशु और जानवर : जो जानवर पालतू नहीं है, उनके संपर्क ना आएं। अगर घर में पालतू जानवर है तो इस बात का ध्यान रखें कि वे स्वस्थ हों, उनका टीकाकरण किया गया हो और उन्हें नियमित रूप से स्नान करवाया जाता हो।

इन बातों का भी ध्यान रखें…
1. भोजन को ढक कर रखें।
2. बासी भोजन से बचें। उनके खाने से बहुत तरह की बीमारियाँ हो सकती है।
3. पानी को उबाल कर पीने के लिए प्रयोग करें।
4. ना जूठा खाना खाएं और ना ही जूठा पानी पिएँ।


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धरती स्वर्ग समान’ कविता में कवि ने धरती को स्वर्ग बनाने की संभावनाओं के प्रति आशावादी दृष्टिकोण अपनाया है। – स्पष्ट कीजिए।

खेलों के महत्व पर अनुच्छेद लिखिए।

पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो। वस्तु अमोलक दई म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥ जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो। खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो।। सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो। ‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस गायो॥ मीरा के इस पद का भावार्थ लिखिए।

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पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दई म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो।।
सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस गायो॥
मीरा के इस पद का भावार्थ लिखिए।

संदर्भ : यह पद प्रसिद्ध संत-कवयित्री ‘मीराबाई’ द्वारा रचित किया गया है। इस पद के माध्यम से मीराबाई ने कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति भाव और अपने सतगुरु की महिमा का बखान किया है।

इन पंक्तियों की व्याख्या इस प्रकार है :

भावार्थ : मीराबाई कह रही हैं कि उन्होंने कृष्ण के नाम का रत्न धन पा लिया है, अर्थात वह कृष्ण के नाम की महिमा को समझ गई हैं। उन पर यह कृपा अपने सतगुरु के कारण हुई है। अपने सतगुरु के कारण ही उन्होंने कृष्ण नाम के महत्व को समझा और उस अमूल्य धन को पा लिया। सतगुरु ने ही उनकी सेवा से प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाई और उन्हें कृष्ण नाम का अमूल्य धन प्रदान किया।

मीराबाई कहती हैं उन्होंने पूरे जीवन अनेक तरह के दुख-कष्ट सहे और अपना सब कुछ खोया। लेकिन अब उन्हें कृष्ण नाम का धन मिल गया है जो कि जनम-जनम की पूंजी है। यह एक ऐसा धन है जो जितना भी खर्च करो वह कम नहीं होगा इस धन को ना तो कोई चोर चोरी कर पाएगा और ना ही कोई लुटेरा लूट पाएगा। उनका यह कृष्ण भक्ति रूपी धन दिन-ब-दिन बढ़ता ही जाएगा।

मीराबाई कहती है कि सत्य की जिस नाव पर वह सवार है, उसके खेवनहार सतगुरु है और उस सत्य की नाव पर बैठकर सतगुरु उन्हें भवसागर से पार लगा देंगे। भवसागर के उस पार उनके प्रभु गिरिधर श्रीकृष्ण हैं, जहाँ वह अपने प्रभु से मिल जाएंगी और उनका जन्म सफल हो जाएगा। इसीलिए मीराबाई भक्ति-भाव से अपने प्रभु गिरिधर श्रीकृष्ण के यश के गीत गा रही हैं।


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नैनीताल जाने के लिए माँ से अनुमति पत्र हिंदी में लिखिए।

औपचारिक पत्र

नैनीताल जाने के लिए माँ से अनुमति पत्र

 

दिनाँक – 9 अप्रेल 2024

मकान न. 24,
ग्रीन पार्क कॉलोनी,
खलिनी, शिमला-171002

पूजनीय माँ,
चरण स्पर्श।

आशा करता हूँ कि आप आने स्थान पर कुशलता से होंगे। मैं भी यहाँ छात्रावास में कुशलता से हूँ। मेरी पढ़ाई ठीक से चल रही है और मैं अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रख रहा हूँ।

माँ, हमारी अर्द्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम आ गया है और मैंने कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। अभी हमारी एक हफ्ते की छुट्टियाँ होने वाली है परंतु इस बार इन छुट्टियों में विद्यालय के सभी छात्र व छात्राएं घूमने के लिए नैनीताल जा रहे हैं , मैं भी उन सब के साथ घूमने जाना चाहता हूँ।

माँ, मैं जानता हूँ कि आपको मेरी बहुत चिन्ता होती है परंतु घबराने वाली कोई बात नहीं है क्योंकि मेरे साथ बहुत से छात्र–छात्राएं, हमारे शिक्षकगण तथा विद्यालय प्रबंधक भी होंगे।

माँ, नैनीताल एक बहुत ही खूबसूरत जगह है। नैनीताल को झीलों का शहर भी कहा जाता है इतना ही नहीं नैनीताल को भारत का लेक डिस्ट्रिक कहा जाता है। यह एक पर्यटक स्थल है यहाँ पर सैलानी घूमने केवल भारत से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी आते हैं।

कहते हैं कि नैनीताल में एक ऐसी झील भी है जो अपना रंग बदलती है। मैं भी वहाँ जाना चाहता हूँ। विद्यालय प्रबंधक का कहना है कि वह हमें तभी लेकर जाएंगे, जब हमारे अभिभावक हमें जाने की अनुमति देंगे। मेरा वहाँ जाने का बहुत मन है।

आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप मुझे भी वहाँ जाने की अनुमति दे दें। पिता जी को मेरी ओर से प्रणाम कहना।

आपका लाड़ला बेटा
अनुभव ।


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आपकी बहन आई. ए. एस. की तैयारी शुरू कर रही है। शुभकामनाएँ देते हुए पत्र लिखें।

नेहरू जी स्मारकों, गुफाओं तथा इमारतों की ओर आकर्षित होते थे। स्मारकों, गुफाओं तथा इमारतों के सहारे अपने देश का इतिहास जानने की कोशिश करते थे। कैसे? अपने विचार लिखिए।

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नेहरू जी भारत के स्मारकों, गुफाओं तथा इमारतों की ओर आकर्षित होते थे। वह इन स्मारकों, गुफाओं तथा इमारतों के सहारे अपने देश का इतिहास जानने की कोशिश करते थे। उन्हें इन सभी इमारतों, गुफाओं और स्मारकों से अपने देश के इतिहास को बारीकी से जानने का अवसर मिलता था। नेहरू जी के अनुसार भारत के की सभी इमारतों का प्रत्येक पत्थर तथा भारत के अतीत ही सुंदर कहानी को कहता है। उन्हें इन सभी ऐतिहासिक स्मारकों, इमारतों और गुफाओं एव उनके अवशेषों तथा अन्य प्रतीक चिन्हों के माध्यम से भारत के इतिहास को बारीकी से जानने और समझने का अवसर मिलता था। इसीलिए वह भारत की प्राचीन इमारतों, गुफाओं और स्मारकों की ओर आकर्षित होते थे।

अपनी इसी तलाश में उन्होंने अजंता, एलोरा, एलिफेंटा की गुफाएं देखी तो दिल्ली और आगरा की इमारतों को भी काफी बारीकी से अध्ययन किया। भारत के अतीत में झांकने और उसे समझने के लिए इन सभी भारत के इन सभी ऐतिहासिक धरोहर का अवलोकन करना बहुत जरूरी था। इसी कारण नेहरू जी इन सभी ऐतिहासिक धरोहरों की ओर आकर्षित होते थे।

संदर्भ :
(‘भारत की खोज – तलाश’ – कक्षा – 8 पाठ – 2 तलाश)


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विश्व-नागरिक होने की भावना ही व्यक्ति के मन में सच्ची मानवता का संचार करती है। इस पर अपने विचार लिखिए।

धरती स्वर्ग समान’ कविता में कवि ने धरती को स्वर्ग बनाने की संभावनाओं के प्रति आशावादी दृष्टिकोण अपनाया है। – स्पष्ट कीजिए।

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धरती स्वर्ग समान’ कविता में कवि गोपाल दास नीरज ने धरती को स्वर्ग बनाने की संभावनाओं के प्रति आशावादी दृष्टिकोण अपनाया है क्योंकि कवि के अनुसार  जब तक मानव के अंदर आंसू हैं, उसके अंदर प्राण हैं, उसके मन में संवेदनाएँ हैं, उसके अंदर सच है, उसके अंदर प्रेम है, स्नेह है, तो फिर वह मानव भगवान के समान यानी देवतुल्य बन जाता है 

यदि मानव स्वयं देवतुल्य बन जाएगा तो यह धरती स्वर्ग के समान की हो जाएगी। कविता की अंतिम पंक्तियों में कवि ने यही आशा व्यक्त की है। कविता की अंतिम पंक्तियां इस बात को स्पष्ट करती हैं..

हर घुमाव पर छीना झपट है,
इधर प्रेम तो उधर कपट है,
झूठ किए सच का घुंघट है,
फिर भी मनुज अश्रु की गंगा,
अब तक पावन प्राण है,
और नहीं ले उसमें तो फिर
मानव ही भगवान है।

इससे स्पष्ट होता है कि पूरी कविता में कवि ने भले ही दुनिया के छल-कपट का वर्णन किया हो लेकिन अंत में आशावादी दृष्टिकोण अपनाकर ‘धरती को स्वर्ग समान’ होने की कल्पना की है।
पूरी कविता इस प्रकार है…

जाति-पाँती से बड़ा धर्म है,
धर्म-ध्यान से बड़ा कर्म है,
कर्म-कांड इससे बड़ा मर्म है,
मगर सभी से बड़ा यहाँ,
यह छोटा सा इंसान है,
और अगर यह प्यार करे,
तो धरती स्वर्ग समान है।

जितनी देखी दुनिया,
सब की देखी दुल्हन ताले में,
कोई बंद बड़ा मस्जिद में,
कोई बंद शिवाले में,
किसको अपना हाथ थमा दूं,
किसको अपना मन दे दूं,
कोई लूटे अंधियारे में,
कोई ठगे उजाले में,
सबका अलग-अलग ठनगन है,
सबका अलग-अलग वंदन है,
सबका अलग-अलग चंदन है,
लेकिन सबके सिर के ऊपर,
नीला एक वितान है,
फिर जाने क्यों यह,
सारी धरती लहूलुहान है,
हर बगिया पर तार कंटीले,
हर घर घिरा किवाडों से हर,
खिड़की पर पर्दे घायल,
आंगन और दीवारों से,
किस दरवाजे करूं वंदना,
किस देहरी मत्था टेकूं,
काशी में अंधियारा सोया,
मथुरा पटी बाजारों से,
हर घुमाव पर छीना झपट है,
इधर प्रेम तो उधर कपट है,
झूठ किए सच का घुंघट है,
फिर भी मनुज अश्रु की गंगा,
अब तक पावन प्राण है,
और नहीं ले उसमें तो फिर,
मानव ही भगवान है।

गोपालदास नीरज

‘धरती स्वर्ग समान’ यह कविता गोपालदास नीरज द्वारा रखी गई है। उनका पूरा नाम गोपालदास सक्सेना था। वह हिंदी के जाने-माने कवि रहे हैं। उनका जन्म 4 जनवरी 1924 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के छोटे से गाँव पुरावली में हुआ था। वह 2007 में पद्म भूषण से भी सम्मानित हो चुके हैं। वह गोपाल दास नीरज नाम से कविता और गीत लिखते थे। उन्होंने अनेक हिंदी फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं।


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‘परिस्थिति के सामने हार न मानकर उसे सहर्ष स्वीकार करने में ही जीवन की सार्थकता है।’ स्पष्ट कीजिए। (पाठ – अपराजेय)

दुर्गा पूजा पर 100 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखें।

अनुच्छेद

दुर्गा-पूजा

 

दुर्गा पूजा भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जो माँ दुर्गा की आराधना के लिए मनाया जाता है, यूं तो देवी की पूजा-आराधना पूरे भारत में अलग-अलग रूप में मनाई जाती है, परंतु दुर्गा पूजा भारत के बंगाल राज्य का एक प्रमुख उत्सव है।

देवी की आराधना के रूप में दुर्गा पूजा उत्सव बंगाल का सबसे प्रमुख उत्सव है। यह शारदीय नवरात्रि में मनाया जाने वाला एक हिंदू उत्सव है। इस उत्सव के अंतर्गत 9 दिन तक देवी दुर्गा की आराधना की जाती है, उनकी भव्य मूर्ति स्थापित की जाती है और दशमी के दिन देवी दुर्गा की मूर्ति ढोल-नगाड़ा, बाजे बाजे की धूम में विसर्जित कर दिया जाता है।

इस उत्सव में छः दिनों तक महालय षष्ठी, महासप्तमी, महाअष्टमी, महानवमी के रूप में मनाया जाता है। उसके पश्चात दसवें दिन विजयदशमी के रूप में उत्सव मनाया जाता है, और देवी दुर्गा की मूर्ति को विसर्जित कर दिया जाता है। देवी दुर्गा हिंदू धर्म के प्रमुख देवी हैं, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं। उन्होंने महिषासुर राक्षस का वध किया था और इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।

दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल के अलावा असम, बिहार, मणिपुर, त्रिपुरा झारखंड जैसे भारत के पूर्वी राज्यों में प्रमुखता से मनाई जाती है। देवी के रूप में भारत के अन्य राज्यों में नवरात्रि का अलग-अलग रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि का पर्व उत्तर भारत में नवरात्रि के नाम से मनाया जाता है, जिसमें 9 दिनों तक देवी दुर्गा की आराधना देवी माँ की आराधना की जाती है। गुजरात राज्य में यही पर्व गरबा डांडिया उत्सव के रूप में मनाया जाता है।


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अनौपचारिक पत्र

दशहरे का वर्णन करते हुए मित्र को पत्र

 

मकान नंबर 10,
देव नगर,
शिमला,
हिमाचल प्रदेश- 171001,

दिनांक 25-10-2023,

 

प्रिय मित्र कमल,
स्नेह!

आशा करता हूँ कि तुम्हारा परिवार भी कुशलता से होगा। हम सब भी यहाँ पर बिल्कुल कुशलता से हैं।

मित्र, कल दशहरा हमने बड़ी ही धूम-धाम से मनाया लेकिन तुम्हारी बहुत याद आई क्योंकि पिछले वर्ष तुम इस दिन हमारे साथ थे। लेकिन आशा करता हूँ कि अगले वर्ष हम दशहरे पर साथ होंगे।

इस बार पिता जी हमें दशहरा मेला दिखाने ले गए और हमने वहाँ पर रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण का दहन होते हुए देखा और उसके बाद हम ने  मेले में कई तरह के झूला-झूले तथा मिठाइयाँ भी खाई। मैंने वहाँ से अपने लिए और तुम्हारे लिए त्रिशूल तथा धनुष बाण भी खरीदे हैं। मैंने तुम्हारे छोटे भाई के लिए गदा भी खरीदी। उसे बता देना वह खुश हो जाएगा।

मित्र काश! तुम भी यहाँ पर हमारे साथ होते तो बहुत मज़ा आता। आशा है कि तुमने भी खूब मज़े किए होंगे। अपने माता–पिता को मेरी तरफ से चरण वंदना कहना।

तुम्हारा मित्र,
राहुल ।


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घोड़ा-गाड़ी शब्द का तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशज शब्द क्या होंगे?

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घोड़ा-गाड़ी का तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशज रूप

शब्द : घोड़ा-गाड़ी

तत्सम शब्द : अश्वरथ
तद्भव शब्द : घोड़ा-गाड़ी
देशज शब्द : तांगा
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तत्सम, तद्भव देशज और विदेशी शब्द क्या होते हैं?

तत्सम शब्दों से तात्पर्य उन शब्दों से होता है, जो संस्कृत भाषा से ज्यों के त्यों अन्य भाषाओं विशेषकर हिंदी में ग्रहण कर लिए गये हैं। हिंदी में जो शब्द संस्कृत भाषा से उसी रूप में सीधे ग्रहण कर लिए गए हैं, जिस रूप में संस्कृत भाषा में प्रयोग किए जाते हैं, तो उन्हें ‘तत्सम शब्द’ कहते हैं। ‘तत्सम’ का शाब्दिक अर्थ ही है, ‘ज्यों का त्यों’।

तद्भव शब्द वे शब्द होते हैं, जो संस्कृत भाषा से हिंदी भाषा में लिए तो गए हैं, लेकिन हिंदी भाषा में उनका रूप परिवर्तित हो चुका है और वह ज्यों के त्यों प्रयोग नहीं किए जाते जाते हैं।

देशज शब्द वे शब्द होते हैं जो भारत की प्रादेशिक भाषाओं में अलग-अलग रूप में बोले जाते हैं, और उन भाषाओं से हिंदी में लिए गए हैं।

विदेशज शब्द वे शब्द होते हैं, जो हिंदी भाषा में विदेशी भाषा जैसे अंग्रेजी, अरबी, फारसी तथा अन्य विदेशी भाषाओं से ग्रहण किए गए हैं।


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खेलों का महत्व

 

खेलों का जीवन में बहुत महत्व है ॉ। खेल हम सब के जीवन में उतने ही आवश्यक है, जितनी पढ़ाई। पढ़ाई के लिए स्वस्थ मस्तिष्क की आवश्यकता होती है। स्वस्थ मस्तिष्क स्वस्थ शरीर में ही निवास करता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए खेल अनिवार्य हैं। खेल समय की बरबादी नहीं है बल्कि खेल एक अच्छा व्यायाम है । खेलों से शरीर पुष्ट होता है । हर तरह के खेल खेलने से हमारे शारीरिक और मानसिक शरीर का विकास करते है। खेल खेलने से हमारा शरीर एक दम स्वस्थ्य रहता है, बीमारियाँ दूर हो जाती हैं, भूख लगती है और पाचन क्रिया में सुधार होता है। बढ़ने वाले बच्चों का शारीरिक विकास होता है । खेलों से चुस्ती-स्फूर्ति प्राप्त होती है । आलस्य दूर भागता है, चित्त प्रसन्न होता है । चित्त की इस अवस्था में पढ़ाई जैसा कोई भी कार्य भली भाँति किया जा सकता है।


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कई नदियां वर्ष में कई बार समुद्र तक पहुंचने से पहले क्यों सूख जाती हैं?

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कई नदियां वर्ष में कई बार समुद्र तक पहुंचने से पहले ही इसलिए सूख जाती है, क्योंकि यह नदियां सदानीरा नहीं होती। इन नदियों का उद्गम स्थल हिमालय क्षेत्र नहीं है। हिमालय से निकलने वाली अधिकतम नदियां ग्लेशियर के बर्फ पिघलने से बनी हुई नदियां हैं, जिन्हें निरंतर पानी की आपूर्ति होती रहती है। जबकि अन्य स्थानों से निकलने वाली नदियों का उद्गम स्थल अन्य पहाड़ी क्षेत्र होते है, जहां पर बर्फ के ग्लेशियर नहीं है। इसलिये इन नदियों को निरंतर पानी की आपूर्ति नहीं मिल पाती है।

इसलिये जब अधिक गर्मी का मौसम आता है तो इन नदियों को अपने उद्गम स्थल से लगातार पानी की आपूर्ति नही मिलती है, और ये नदियां समुद्र से पहले ही सूख जाती हैं।


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विचार लेखन

पाला हुआ प्राणी लापता हो गया

 

मैं जब दसवीं कक्षा में थी, तब मुझे मेरे पिता जी ने मुझे एक प्यारा सा कुत्ते का बच्चा उपहार में दिया था। पहले तो मुझे वह पसंद नही था। मुझे डर लगता था , बहुत छोटा सा था। धीरे-धीरे मुझे उससे प्यार होने लगा। मैं उसका बहुत ध्यान रखती थी। स्कूल के जाने पहले और आने के बाद उसके साथ खेलना। मैंने उसका नाम ‘ब्लुई’ रखा था।

उसकी आँखे नीले रंग की थीं और बहुत सुंदर थीं। वह मेरे साथ मेरे कमरे में रहता था। वह मेरा इंतजार करता था। मेरे बिना वह खाना भी नहीं खाता था। उसके बिना मेरा मन एक मिनट के लिए नहीं लगता था।

वो दिन जो मेरे जीवन का सबसे बुरा दिन था। मैं ब्लुई को लेकर पार्क में गई। हम खेल रहे थे। जब मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो ब्लुई नहीं था। ब्लुई को कोई अगवा करके ले गया था। ब्लुई लापता हो गया था। मैंने उसे सब जगह खोजा। सबसे पूछा, उसका कुछ पता नहीं चला। वो अचानक से कहाँ गायब हो गया समझ नहीं आ रहा था।

मुझे बहुत दुःख हुआ। ऐसे लगा मेरे जीवन से प्यारा हिस्सा चला गया। जिसके बिना मैं नहीं रह सकती। ब्लुई के लापता होने के बाद मेरा जीवन एक दम निराश भरा हो गया। मुझे दिन-रात उसकी याद आती थी। मैंने जगह-जगह उसकी तस्वीर की फोटो लगवाई। किसी को मिले तो हमें वापिस कर दे।

बहुत दिन दिन बीत गए, उसका कोई पता नहीं चला। आज भी हम सभी  उसके बिना जीवन बहुत दुखी से व्यतीत कर रहे है। हमें उसकी बहुत याद आती है।  वह मेरे परिवार में हम सबके जीवन का हिस्सा था। वह सबका मन लगाए रखता था।


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आजकल अभिभावकों का अपनी संतान के साथ कैसा संबंध बनता जा रहा है। इस बारे में अपने विचार लिखें।

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अस्माकं देशस्य नाम भारतवर्षम् अस्ति। भारतवर्षम् एकः महान् देशः अस्ति। अस्य संस्कृतिः अति प्राचीना अस्ति। अस्य प्राचीनं नाम आर्यावर्तः अस्ति। पुरा दुष्यन्तः नाम नृपः अभवत्। सः महर्षेः कण्वस्य सुतया शकुन्तलया सह विवाहम् अकरोत्। तस्य भरतः नाम्नः पुत्रः अभवत्। इति कथयन्ति स्म यत् तस्य नामानुसारेण देशस्य नाम अपि भारतम् अभवत्।​ इस संस्कृत गद्यांश का हिंदी अनुवाद करें।

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अस्माकं देशस्य नाम भारतवर्षम् अस्ति। भारतवर्षम् एकः महान् देशः अस्ति। अस्य संस्कृतिः अति प्राचीना अस्ति। अस्य प्राचीनं नाम आर्यावर्तः अस्ति। पुरा दुष्यन्तः नाम नृपः अभवत्। सः महर्षेः कण्वस्य सुतया शकुन्तलया सह विवाहम् अकरोत्। तस्य भरतः नाम्नः पुत्रः अभवत्। इति कथयन्ति स्म यत् तस्य नामानुसारेण देशस्य नाम अपि भारतम् अभवत्।

संस्कृत के इस अनुच्छेद का हिंदी में अनुवाद इस प्रकार होगा :

हमारे देश का नाम भारतवर्ष है। भारतववर्ष एक महान देश है। इसकी संस्कृति बहुत प्राचीन है। इसका प्राचीन नाम आर्यावर्त है। पुराने समय में दुष्यन्त नाम के एक राजा थे। उन्होने महर्षि कण्व की पुत्री शकुन्तला के साथ विवाह किया था। उनके भरत नाम का एक पुत्र हुआ। ऐसा कहते हैं कि उनके नाम पर ही इस देश का नाम भारत पड़ा।


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दादा जी के जन्मदिन का वर्णन करते हुए डायरी लेखन करिए।

अर्द्धवार्षिक परीक्षा में गणित में कम अंक आने पर अभिभावक और शिक्षक के बीच हुई बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।

संवाद लेखन

अर्द्धवार्षिक परीक्षा में गणित में कम अंक आने पर अभिभावक और शिक्षक के बीच संवाद

 

अभिभावक ⦂ (कक्षा में प्रवेश करते हुए) अध्यापक जी! नमस्कार, हम मोहन के माता–पिता हैं।

शिक्षक ⦂ (चश्मा उतारते हुए) नमस्कार, आइए-आइए बैठिए।

अभिभावक ⦂ अध्यापक जी मोहन ने बताया कि आप मुझसे मिलना चाहते हैं।

शिक्षक ⦂ (परेशानी चेहरे पर झलकती हुई) जी हाँ, आपने शायद गणित का पेपर देखा होगा।

अभिभावक ⦂ जी अध्यापक महोदय, इस बार मोहन के गणित में बहुत कम अंक आए हैं और हम उसे लेकर बहुत परेशान हैं।

शिक्षक ⦂ (अपने सिर पर हाथ रखते हुए) आपने बिल्कुल सही कहा, मैं भी उसके गणित के अंक देखकर हैरान हो गया हूँ। पहले तो उसके ऐसे अंक कभी भी नहीं आए हैं, परंतु वह एक बहुत ही होनहार बच्चा है।

अभिभावक ⦂ हमें लग रहा है कि वह बहुत लापरवाह हो गया है।

शिक्षक ⦂ जी, आप सही कह रहे हैं लेकिन जो हो चुका सो हो चुका। परन्तु अब आगे आप लोगों को ज़्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि अगले महीने के अंत में वार्षिक परीक्षाएं शुरू होने वाली है।

अभिभावक ⦂ जी अध्यापक जी आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। हम अब उस पर पूरा ध्यान देंगे।


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अकबर और बूढ़ी महिला के बीच हुए एक संवाद को तैयार करो।

पिंजरे में बंद पक्षी और आज़ाद पक्षी के बीच संवाद लिखिए।

“अब वे कद्रदान कहाँ जो पकाने-खिलाने की कद्र करना जानते थे?” मियाँ नसीरुद्दीन ने यह बात किस सदंर्भ में कही? इसके पीछे छिपी व्यथा पर प्रकाश डालिए।

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“अब वे कद्रदान कहाँ जो पकाने-खिलाने की कद्र करना जानते थे?” मियाँ नसीरुद्दीन ने यह बात अपनाी नानाबाइयों (रोटियों) शौकीन लोगों के संंदर्भ में कही थी।

‘मियाँ नसीरुद्दीन’ पाठ में मियां नसीरुद्दीन लेखिका कृष्णा सोबती से बातचीत करते हुए अपनी यह व्यथा प्रकट करते हैं। उनकी इस व्यथा के पीछे वह दर्द है, जिसमें उनके नानाबाइयों (रोटियों) की अब वह कदर नहीं थी। यानि उनकी रोटियों को पसंद करने वाले वैसे लो नही रहे ते। उनके अनुसार पहले उनकी दुकान पर अलग-अलग तरह की रोटियों के शौकीन लोग आते थे और अपनी अपनी पसंद की रोटियां बनवा कर बड़े चाव से खाते थे। वो रोटियों को तारीफ करते थे।

लोग उनकी अलग-अलग तरह की रोटियां खाने के लिये दूर-दूर से आते थे। लोग उनकी बाकरखानी, शीरमाल, खमीरी, ताफ़तान, बेसनी, रुमाली, तुनकी, गाजेबना, गाव, दीदा ये प्रकार की रोटियां खाने के आते थे।

लेकिन अब वह जमाना चला गया। अब तो लोग कोई सी भी रोटी खाने आते हैं कैसी भी रोटी खाते है और बस खा कर चले जाते हैं। पहले उनकी रोटियों की तारीफ करते थे और अलग-अलग रोटियों की फरमाइश करते थे। अब लोग वैसी रोटियों की फरमाइश नहीं करते। इस कथन के पीछे मियां नसीरुद्दीन की यही व्यथा है।

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संदर्भ पाठ :

‘मियाँ नसीरुद्दीन’ लेखिका – कृष्णा सोबती (कक्षा-11, पाठ-2)

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“अगर तुम्हें कोई ज़्यादा दे तो अवश्य चले जाओ जाओ। मैं तनख्वाह नहीं बढ़ाऊँगा।” a) प्रस्तुत कथन का वक्ता कौन है ? उसका पूरा परिचय दीजिए। b) प्रस्तुत कथन का श्रोता कौन है ? इसका संदर्भ स्पष्ट कीजिए। c) प्रस्तुत कहानी का उदेश्य स्पष्ट कीजिए।​ (बात अठन्नी की)

कवि के जीवन में सबसे बड़ी त्रासदी क्या थी? ‘आत्मकथ्य’ कविता के आधार पर बताएं।

आपकी बहन आई. ए. एस. की तैयारी शुरू कर रही है। शुभकामनाएँ देते हुए पत्र लिखें।

शुभकामना संदेश लेखन

 

A1/24, गली नं. 4,
पटेल नगर,
दिल्ली

दिनांक : 2 अप्रेल 2024

 

प्रिय आशिमा,
कैसी  हो? आशा करती हूँ। तुम ठीक प्रकार से होगी। आशिमा, मुझे जानकर बहुत खुशी हुई कि तुमने आई. ए. एस. एग्जाम की तैयारी करना शुरू कर दी है | अपने करियर के विषम में तुमने ये बहुत अच्छा निर्णय लिया है। बहुत अच्छी बात है कि तुमने अपने लक्ष्य के लिए पहला कदम ले लिया है।

आई. ए. एस. परीक्षा में मेरी तरफ़ से तुम्हें बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। मेरा सहयोग हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा। तुम्हें कभी भी किसी भी प्रकार की आवश्यकता हो , मुझे जरूर बताना। मैं हमेशा तुम्हारा साथ दूंगी। तुम्हें लगातार प्रयास करना है और अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए बहुत मेहनत करनी है। तैयारी करते हुए , राह में जितनी भी मुश्किलें या असफलता सामने आए, तुम्हें कभी भी हार नहीं माननी है।

एक बार मेरी तरफ़ से तुम्हें बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। तुम मन लगाकर तैयारी करो। तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। शीघ्र ही तुम आईएएस बनकर हम सबको गर्व का अनुभव कराओगी। शुभकामनाओं सहित,

तुम्हारी बहन,
रुचिता ।


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अपने मित्र के क्रिकेट टीम में चुने जाने पर मित्र को बधाई देते हुए पत्र लिखें।

पिताजी को पत्र लिखकर बताइए कि ग्रीष्म ऋतु में पिकनिक मनाना चाहते हैं ?

अकबर और बूढ़ी महिला के बीच हुए एक संवाद को तैयार करो।

संवाद लेखन

अकबर और बूढ़ी महिला के बीच संवाद

 

बूढ़ी महिला ⦂ महाराज की जय हो।

अकबर ⦂ आइए माता जी, अकबर के दरबार में आपका स्वागत है। बताइये क्या बात है?

बूढ़ी महिला ⦂ मैं आज तुमसे कुछ प्रश्नों का उत्तर लेने आई हूँ।

अकबर ⦂ जी पूछिये, क्या पूछना चाहती हैं?

बूढ़ी महिला ⦂ सुना है, आप बड़े विद्वान हैं, लेकिन आप तो केवल मुस्लिमों के बारे में ही सोचते है, दूसरी प्रजा के बारे में तो आप ने कभी नहीं सोचा।

अकबर ⦂ नहीं-नहीं, आप ने गलत सुना है। मैं सब का राजा हूँ, इसलिए मुझे सबका सोचना पड़ता हैय़ अगर ऐसा न होता तो मैं क्यों महाभारत, रामायण, अथर्व वेद, भगवत गीता और पंचतंत्र का अनुवाद संस्कृत से फारसी भाषा में करवाता। मैंने यह इसलिए किया है ताकि और धर्मों के लोग भी इन ग्रन्थों के बारे में जान सकें और उनसे अच्छी बातें सीख सकें।

बूढ़ी महिला ⦂ तो इसका मतलब, आप हिन्दू और मुस्लिम में कोई भेदभाव नहीं रखते।

अकबर ⦂ नहीं मोहतरमा, मैं कभी धर्मों के आधार पर भेदभाव नहीं करता और शायद इसलिए मुझे मेरे पूरे शासन काल में हिन्दू-मुस्लिम दोनों वर्गों का प्यार और सम्मान मिला है। इसलिए मैंने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियाँ कम करने के लिए दीन-ए-इलाही धर्म की स्थापना की है।

बूढ़ी महिला ⦂ तो फिर आप अपने सैनिकों में ज्यादा मुस्लिमों को नौकरी क्यों देते हो, क्या तुम्हें दूसरों पर विश्वास नहीं है।

अकबर ⦂ नहीं माता जी, आपकी जानकारी लगता है, कुछ कम है, मेरे दरबार में तो मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार ज्यादा हैं।

बूढ़ी महिला ⦂ फिर तो, राजा जी, आप कई पुरानी सामाजिक कुरीतियों को भी खत्म करने के पक्ष में होंगे।

अकबर ⦂ जी माता जी, मैं सती प्रथा पर रोक लगाने के निरंतर प्रयास कर रहा हूँ और विधवा विवाह को प्रोत्साहित कर रहा हूँ और अगर सब का साथ रहा तो मैं इन सामाजिक कुरीतियों को जल्दी जड़ से खत्म कर दूंगा।

बूढ़ी महिला ⦂ फिर तो आज मेरा आपके पास आना सफल हो गया, क्योंकि आपके बारे में समाज में कुछ अलग ही सुन रखा था और मेरे मन में सच जानने की भरपूर जिज्ञासा थी।

अकबर ⦂ अल्लाह का शुक्र है मोहतरमा कि मुझसे बात करके आपकी कई भ्रांतियाँ समाप्त हुई और मुझे भी यह जानकारी हुई कि मेरी रियायत की जनता मेरी कितनी चिंता करती है।

बूढ़ी महिला ⦂ ठीक है, महाराज, आप ऐसे ही समाज के भले के लिए कार्य करते रहें, मेरा यही आशीर्वाद है।

अकबर ⦂ धन्यवाद! मैं आप सब का विश्वास कभी टूटने नहीं दूंगा।


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नौकर और मालिक के मध्य वेतन वृद्धि को लेकर संवाद लिखिए।

झपटमारी करते हुए जब चोर पकड़ा गया। (रिपोर्ट राइटिंग करें)

रिपोर्ट लेखन

झपटमारी करते हुए जब चोर पकड़ा गया।

 

7 अप्रेल 2024. नई दिल्ली। जनता की सूझबूझ के कारण आज सरेबाजार झपटमारी करते हुए एक चोर पकड़ा गया।

रविवार की छुट्टी का दिन होने के कारण बाजार में चहल-पहल का वातावरण था, लोग चारों तरफ शॉपिंग कर रहे थे। उसी समय एक परिवार भी एक शॉपिंग मॉल से शॉपिंग करके निकल रहा था।

परिवार में स्त्री पुरुष और उनके दो बच्चे थे। पुरुष के हाथ में एक बैग था तो महिला के हाथ में भी दो-तीन थैलियां थीं, जिनमे शॉपिंग किया हुआ सामान था। जैसे ही वे लोग शॉपिंग मॉल के बाहर निकले, एक झपटमारी करने वाला चोर महिला के हाथ से थैली छीन का भाग निकला। वह थोड़ी दूर ही गया था कि एक व्यक्ति ने उसको पकड़ लिया और उसको भागने नहीं दिया। उसकी देखा देखी आसपास के चार-पाँच लोग और आ गए और उन्होंने चोर को पकड़कर उसकी पिटाई कर दी। फिर उसको पुलिस के हवाले कर दिया।

जो थैली वो महिला के हाथ से छीन कर भाग रहा था, उसे उस महिला को वापस कर दिया गया। महिला ने बताया कि थैली में 40 हजार की कीमत का मोबाइल था, जो उन्होंने अभी-अभी शॉपिंग मॉल से खरीदा था। इस तरह आसपास लोगों की सतर्कता के कारण परिवार का कीमती सामान लुटने से बच गया। उस परिवार ने सभी लोगों के लिए बहुत धन्यवाद दिया। हम सभी नागरिक अगर हमेशा इसी तरह सतर्क रहें तो चोरो के हौसले पस्त होंगे। आए दिन चोरी, लूटपाट और झपटमारी की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर अगर जनता यूँ ही सावधान रहे तो अपराधियों के हौसले पस्त होंगे और इन घटनाओं में कमी आएगी।


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