इसकी छाया में रंग गहरा किसलिए और क्यों कहा गया है​?

‘इसकी छाया में रंग गहरा’ इस पंक्ति को हिमालय की महिमा का गुणगान करने के लिए कहा गया है।

‘हिमालय और हम’ कविता में कवि ‘गोपाल सिंह नेपाली’ कहते हैं कि हिमालय पर्वत बेहद विशाल और विस्तृत पर्वत है। इसके नीचे गंगा का विशाल मैदान विस्तृत मैदान है, इनमें से हिमालय से निकलने वाली गंगा बहती है। जिसके कारण यह विशाल मैदान हरा-भरा रहता है।

हिमालय पर्वत की छत्रछाया में और इससे निकलने वाली गंगा-यमुना और अन्य की नदियों के कारण ही ये विशाल मैदान बेहद हरे-भरे और उपजाऊ मैदान है, जो न केवल भारत की समृद्धता का प्रतीक हैं, भारत के कई पड़ोसी देश भी इससे समृद्ध हुए हैं। इसीलिए कवि ने ‘इसकी छाया में रंग गहरा, है हरा देश परा परदेश हरा’ कहकर हिमालय की महिमा का बखान किया है।

कवि ‘गोपाल दास नेपाली’ द्वारा रचित ‘हिमालय और हम’ कविता की इन पंक्तियों कवि कहते हैं कि….

हर संध्या को इसकी छाया सागर-सी लंबी होती है
हर सुबह वही फिर गंगा की चादर-सी लंबी होती है।
इसकी छाया में रंग गहरा
है देश हरा, परदेश हरा
हर मौसम है, संदेश-भरा
इसका पद-तल छूनेवाला वेदों की गाथा गाता है।
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।

भावार्थ :

कवि हिमालय और भारतवासियों के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि हिमालय पर्वत की छाया शाम के समय सागर के जैसी प्रतीत होती है। हिमालय की पर्वत की तलहटी से शुरू होकर आगे विशाल-विस्तृत मैदान हैं, जो बेहद हरे-भरे हैं।

हिमालय पर्वत की हर सुबह गंगा की चादर की तरह लंबी होती है, क्योंकि हिमालय पर्वत का पूरा क्षेत्र ही विशाल और विस्तृत है। इसके मैदान हरे भरे विशाल और विस्तृत हैं। इन मैदानों में हिमालय से निकलने वाली गंगा-यमुना जैसी नदियां बहती है। जिसके कारण गंगा के लिए ये विशाल अत्यंत उपजाऊ हैं। चारों तरफ हरे-भरे खेत और हरी-भरी फैसले लहराती रहती है।

कवि कहते हैं कि हिमालय की गोद में बसा भारत ही नहीं इस आसपास के दूसरे देश भी हिमालय से निकलने वाली नदियों के कारण ही हरे-भरे हैं। हिमालय के कारण केवल भारत ही समृद्ध नहीं हुआ है बल्कि बल्कि आसपास के देश भी समृद्ध हुए हैं। हिमालय बेहद पवित्र पर्वत है। यहां पर वेदों की रचना हुई। यहां पर अनेक ज्ञानी-तपस्वी संत-साधक हुए हैं। ज्ञान की साधना के लिए लोग हिमालय जाते हैं, इसलिए हिमालय के साथ हम भारतीयों का कुछ ना कुछ अनोखा संबंध रहा है।


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