मृदुला गर्ग ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान तब दिया जब उनका स्थानांतरण कर्नाटक में हो गया और वह कर्नाटक के बागलकोट कस्बे में रहने को आ गई। तब तक उनके दो बच्चे हो चुके थे और दोनों की स्कूल जाने की आयु हो चुकी थी। बागलकोट कस्बे में कोई भी ढंग का स्कूल नहीं था। तब मृदुला गर्ग ने वहाँ पास के कैथोलिक बिशप से प्रार्थना की कि उनके बागलकोट कस्बे में एक प्राइमरी स्कूल खोल दें, लेकिन बिशप ने यह कहते हुए मना कर दिया कि कस्बे में क्रिश्चन जनसंख्या कम है, इसलिए वह स्कूल नहीं खोल सकते।
मृदुला गर्ग ने वापस प्रार्थना की कि गैर क्रिश्चन लोगों को भी शिक्षा पाने का अधिकार है, तब बिशप ने कहा हम कोशिश कर सकते हैं लेकिन आप गारंटी ले कि अगले 100 साल तक स्कूल चलता रहेगा। तब मृदुला गर्ग को गुस्सा आ गया और उन्होंने कहा इस बात की कौन गारंटी ले सकता है। बिशप ने उनकी बात नहीं मानी। तब मृदुला गर्ग ने स्वयं स्कूल का जिम्मेदारी लेते हुए, वहां एक प्राइमरी स्कूल खोलने का निश्चय किया।
उन्होंने आसपास के लोगों की मदद से उन्होंने शीघ्र ही अंग्रेजी, हिंदी और कन्नड़ भाषाओं में पढ़ाने वाला एक प्राइमरी स्कूल वहां पर खोल दिया। उस स्कूल में बागलकोट कस्बे के सभी बच्चे अच्छी तरह पढ़ने लगे। धीरे-धीरे स्कूल प्रसिद्ध होता गया और दूसरी जगह से भी बच्चे आते गए।
इस तरह मृदुला गर्ग ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान दिया।
संदर्भ पाठ :‘मेरे संग की औरते’ – मृदुला गर्ग, कक्षा 10, पाठ 2 |
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