निज गौरव से कवि का अभिप्राय मनुष्य के स्वाभिमान से है। कवि मैथिलीशरण गुप्त मनुष्य को प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि जीवन में संकट और संघर्ष की स्थिति आने पर भी मनुष्य को निराश नही होना चाहिए। उसे अपने स्वाभिमान का ध्यान रहना चाहिए। उसका ये स्भाभिमान ही मनुष्य को विपरीत परिस्थितियों में झुकने नही देगा।
कविता ‘नर हो न निराश करो मन को’ की पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है…
निज गौरव का नित ज्ञान रहे, हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
सब जाये अभी, पर मान रहे, मरने पर गुंजित गान रहे।
कुछ हो, न तजो निज साधन को, नर हो, न निराश करो मन को।
भावार्थ : कवि कहते हैं कि मनुष्य को जीवन में संघर्ष करते हुए हमेशा अपने स्वाभिमान का ध्यान देना चाहिए। उसे हमेशा अपने स्वाभिमान का ज्ञान होना चाहिए। उसे यह पता होना चाहिए कि इस संसार में उसका भी अस्तित्व है, उसका भी महत्व है। यदि मनुष्य को स्वयं के स्वाभिमान स्वयं के अस्तित्व का एहसास होगा तो वह स्वयं को कभी भी कमजोर दीन हीन नहीं समझेगा और जीवन में आने वाले संघर्षों का दृढ़ता से मुकाबला कर सकेगा। भले ही संसार की सारी योग्य वस्तुएं अथवा सुख साधन नष्ट हो जाएं लेकिन मनुष्य का सम्मान बना रहे, जिससे इस संसार से जाने के बाद भी संसार में उसके कार्यों के, उसके यश के गीत गूंजते रहे। कुछ भी हो जाए अपने साधन, अपने स्वभाव को नहीं छोड़ना चाहिए अपने मन को निराश नहीं होने देना चाहिए।