रहीम के अनुसार सत्संग का जीवन में बहुत ही महत्व है। सत्संग का मनुष्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जिसकी जैसी संगत होती है, वो वैसा ही बन जाता है। यानि सत्संग के अनुसार ही मनुष्य का आचरण और चरित्र का निर्माण होता है। इसलिये सज्जन व्यक्तियों के सत्संग में ही रहना चाहिए।
रहीम कहते हैं कि….
रहिमन जो तुम कहत थे , संगति ही गुरा होय !
बीच इखारी रस भरा , रस काहे ना होय !!
भावार्थ : रहीम के अनुसार सज्जन व्यक्तियों की संगति यानि सत्संग करने से लाभ प्राप्त होता है और सज्जन व्यक्तियों के सद्गुण हमारे अंदर आ जाते हैं। लेकिन जो दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति होते हैं। उन पर सज्जन व्यक्तियों की संगति करने से भी कोई असर नहीं होता, बिल्कुल उसी प्रकार जिस तरह ईख यानि गन्ने के खेत में कड़वा पौधा लगा होने के बावजूद उस पर गन्ने की मिठास का कोई असर नहीं होता और वह अपना कड़वापन नहीं छोड़ता। उसी प्रकार दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति सज्जन व्यक्तियों के साथ जाकर भी अपने दुष्प्रभाव को नहीं छोड़ पाते।
Other questions
वकालत के साथ-साथ मुंशीराम आर्य समाज के किन कामों में लगे रहते थे?
हड़प्पा सभ्यता की मुहरों के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।