महाराजा छत्रसाल ने अपने घोड़े का स्मारक इसलिए बनवाया था क्योंकि उनका घोड़ा बेहद बहादुर और स्वामिभक्त घोड़ा था। उनके घोड़े युद्ध में घायल होने पर महाराजा छत्रसाल रक्षा की थी।
देवगढ़ युद्ध के दौरान महाराजा छत्रसाल युद्ध में बुरी तरह घायल हो गए और जगह पर घायलावस्था में पड़े रहे। तब उनका प्यारा घोड़ा रातभर वहीं पर उनकी रक्षा करता रहा। उसने किसी दुश्मन को वहाँ फटकने नहीं दिया। इससे महाराजा छत्रसाल की जान बच गई। बाद में स्वस्थ होने पर अपने घोड़े की स्वामी भक्ति से प्रसन्न होकर महाराजा छत्रसाल ने उसे ‘भले भाई’ की उपाधि दी। जब कुछ समय बाद उनके घोड़े का निधन हो गया तो उन्होंने उसकी याद में स्मारक बनवाया। महाराजा छत्रसाल ने ‘दुबेला’ नामक जगह पर अपने घोड़े का स्मारक बनवाया था।
महाराज छत्रसाल बुंदेलखंड के एक वीर योद्धा थे, जिन्होंने बुंदेलखंड केसरी के नाम से जाने जाते थे। उन्होंने बुंदेलखंड की स्वतंत्रता के लिए मुगलों से बड़ा संघर्ष किया और मुगलों को हराकर अपने एक स्वाधीन पन्ना राज्य की स्थापना की।
महाराजा छत्रसाल के पिता का नाम वीर चंपतराय था वह भी अपने पूरे जीवन मुगल शासकों शाहजहां और औरंगजेब का विरोध करते रहे। अपने पिता के ही गुण महाराज छत्रसाल में भी आए। जब मुगलों ने बुंदेलखंड पर कब्जा कर लिया तो उन्होंने अपनी मातृभूमि बुंदेलखंड को स्वतंत्र करने के लिए सेना बनाई और मुगलों से युद्ध करके न केवल बुंदेलखंड को स्वतंत्र कराया बल्कि एक स्वतंत्र राज्य पन्ना की भी स्थापन की।