नाम कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करते हैं?

नाम कीर्तन करने के आगे कवि ग्रंथ आदि पुस्तकों का पाठ करना, अपने व्याकरण के ज्ञान का बखान करना, अपनी शिखा यानी चोटी बढ़ाकर रखाना, अपने जटाओं यानि बालों को बढ़ाना, अपने शरीर पर भस्म लगाना, वस्त्र हीन होकर नग्न होकर साधना करना या सन्यास धारण, दंड धारण करना, हाथ में कमंडल लेकर चलना, तीर्थ स्थानों का भ्रमण करना इन सभी कर्मों को  व्यर्थ मानते हैं।

कवि नानक देव के अनुसार शास्त्रीय पुस्तकों का पाठ करना, धर्म ग्रंथों का पाठ करना, शास्त्रीय ज्ञान का बखान करना, उसका महिमा मंडन करना, धार्मिक प्रतीक चिन्ह के रूप में दंड धारण करना अथवा कमंडल लेकर चलना, अपने सर पर चोटी रखना, अपने बालों को बढ़ाना,  पूजा स्थलों व तीर्थ स्थानों पर घूमना, ईश्वर प्राप्ति की आस में सब कुछ त्याग कर नग्न होकर घूमना ये सारे कर्म ईश्वर प्राप्ति के साधन माने जाते हैं, लेकिन यदि भगवत के नाम कीर्तन किया जाए तो इन सभी कर्मों का महत्व नहीं रह जाता है।

इसलिए भगवत के नाम का कीर्तन करना ही ईश्वर भक्ति का सर्वश्रेषठ उपाय है। नाम कीर्तन के आगे बाकी सारे कर्म व्यर्थ हैं।


Other questions

‘दया की दृष्टि सदा ही रखना’ – इसका क्या अर्थ है ?​

Chapter & Author Related Questions

Subject Related Questions

Recent Questions

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here