धरती स्वर्ग समान’ कविता में कवि ने धरती को स्वर्ग बनाने की संभावनाओं के प्रति आशावादी दृष्टिकोण अपनाया है। – स्पष्ट कीजिए।

धरती स्वर्ग समान’ कविता में कवि गोपाल दास नीरज ने धरती को स्वर्ग बनाने की संभावनाओं के प्रति आशावादी दृष्टिकोण अपनाया है क्योंकि कवि के अनुसार  जब तक मानव के अंदर आंसू हैं, उसके अंदर प्राण हैं, उसके मन में संवेदनाएँ हैं, उसके अंदर सच है, उसके अंदर प्रेम है, स्नेह है, तो फिर वह मानव भगवान के समान यानी देवतुल्य बन जाता है 

यदि मानव स्वयं देवतुल्य बन जाएगा तो यह धरती स्वर्ग के समान की हो जाएगी। कविता की अंतिम पंक्तियों में कवि ने यही आशा व्यक्त की है। कविता की अंतिम पंक्तियां इस बात को स्पष्ट करती हैं..

हर घुमाव पर छीना झपट है,
इधर प्रेम तो उधर कपट है,
झूठ किए सच का घुंघट है,
फिर भी मनुज अश्रु की गंगा,
अब तक पावन प्राण है,
और नहीं ले उसमें तो फिर
मानव ही भगवान है।

इससे स्पष्ट होता है कि पूरी कविता में कवि ने भले ही दुनिया के छल-कपट का वर्णन किया हो लेकिन अंत में आशावादी दृष्टिकोण अपनाकर ‘धरती को स्वर्ग समान’ होने की कल्पना की है।
पूरी कविता इस प्रकार है…

जाति-पाँती से बड़ा धर्म है,
धर्म-ध्यान से बड़ा कर्म है,
कर्म-कांड इससे बड़ा मर्म है,
मगर सभी से बड़ा यहाँ,
यह छोटा सा इंसान है,
और अगर यह प्यार करे,
तो धरती स्वर्ग समान है।

जितनी देखी दुनिया,
सब की देखी दुल्हन ताले में,
कोई बंद बड़ा मस्जिद में,
कोई बंद शिवाले में,
किसको अपना हाथ थमा दूं,
किसको अपना मन दे दूं,
कोई लूटे अंधियारे में,
कोई ठगे उजाले में,
सबका अलग-अलग ठनगन है,
सबका अलग-अलग वंदन है,
सबका अलग-अलग चंदन है,
लेकिन सबके सिर के ऊपर,
नीला एक वितान है,
फिर जाने क्यों यह,
सारी धरती लहूलुहान है,
हर बगिया पर तार कंटीले,
हर घर घिरा किवाडों से हर,
खिड़की पर पर्दे घायल,
आंगन और दीवारों से,
किस दरवाजे करूं वंदना,
किस देहरी मत्था टेकूं,
काशी में अंधियारा सोया,
मथुरा पटी बाजारों से,
हर घुमाव पर छीना झपट है,
इधर प्रेम तो उधर कपट है,
झूठ किए सच का घुंघट है,
फिर भी मनुज अश्रु की गंगा,
अब तक पावन प्राण है,
और नहीं ले उसमें तो फिर,
मानव ही भगवान है।

गोपालदास नीरज

‘धरती स्वर्ग समान’ यह कविता गोपालदास नीरज द्वारा रखी गई है। उनका पूरा नाम गोपालदास सक्सेना था। वह हिंदी के जाने-माने कवि रहे हैं। उनका जन्म 4 जनवरी 1924 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के छोटे से गाँव पुरावली में हुआ था। वह 2007 में पद्म भूषण से भी सम्मानित हो चुके हैं। वह गोपाल दास नीरज नाम से कविता और गीत लिखते थे। उन्होंने अनेक हिंदी फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं।


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