लघुकथा लेखन
जैसा करोगे वैसा भरोगे
एक गाँव में एक दुकानदार की किराने की दुकान थी। उसके पास दूसरे गाँव का एक ग्रामीण हफ्ते में एक बार आता था और उसे 5 किलो की देसी घी दे जाता था तथा वह बदले में 5 किलो चावल और 5 किलो गेहूँ ले जाता था।
यह सिलसिला कई महीनों से चल रहा था। एक बार दुकानदार ने सोचा मैं गाँव वाले से 5 किलो घी का डिब्बा यूं ही ले लेता हूँ, उसे तोलता नहीं हूँ। इस बार लोल कर देखता हूँ कि यह 5 किलो घी देता है कि नही। जब उसने घी तोला उसमें साढ़े 4 किलो घी ही निकला।
अब दुकानदार को बड़ा गुस्सा आया। उसने इसकी शिकायत पंचायत में कर दी। पंचायत बैठी और पंचायत के सामने ग्रामीण बोला कि मेरी कोई गलती नहीं है। मेरे पास वजन तोलने के बाट नही हैं। मैं इनसे 5 किलो चावल और 5 किलो गेहूँ ले जाता हूँ। उन्हीं में से 5 किलो चावल या 5 किलो गेहूँ तराजू में एक तरफ रखता हूं और दूसरी तरफ उतना ही घी रख लेता हूँ वही उनको देता थ।
अब आप उनसे पूछो कि यह 5 किलो चावल या गेहूँ मेरे को पूरा देते थे या नही। पंचायत को अब सच्ची बात पता चल गयी। पंचायत ने दुकानदार पर बेईमानी के करने जुर्माना लगाया और वे ग्रामीण के देने के लिए कहा। सच बात यही थी कि वह दुकानदार ही बेईमान था और ग्रामीण को हमेशा कम सामान ही तोलकर देता था। अब उसकी चालाकी उल्टी पड़ गई और उसकी चोरी पकड़ी गई।
सच कहते हैं, ‘जैसा करोगे, वैसा भरोगे।’
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