संस्मरण
जब मैंने साईकिल चलाना सीखा
मुझे साइकिल सीखने का बचपन में काफी शौक था। जब भी मैं ओर लड़कियों को साइकिल चलाता देखती थी तो सोचती थी कि साइकिल चलना कौन सी बड़ी बात है । बस फिर हर रोज़ पापा के पीछे पड़ जाती की मुझे भी साइकिल चाहिए । एक दिन मेरी ज़िद से तंग आकर मेरे लिए साइकिल ले ही आए । फिर सब ने कहा कि चलो अब चलाओ लेकिन मैंने जैसे ही साइकिल पर बैठने की कोशिश की मैं गिर गई। फिर मैंने दोबारा साइकिल को हाथ भी नहीं लगाया, सब ने मुझे समझाया कि साइकिल स चलाना सीखते समय सब लोग गिरते हैं तो कोई बात नहीं, हम तुम्हें सिखा देंगे, लेकिन मैं तो साइकिल के पास भी नहीं गई।
मेरा छोटा भाई जोकि अभी सिर्फ आठ साल का था उसने दो दिन में साइकिल चलाना सीख लिया। फिर तो सब लोग मुझे चिढ़ाते थे कि तुम तो बस खड़े होकर देखती रहो। साइकिल चलाना तुम्हारे वश की बात नहीं है । मुझे बहुत बुरा लगता था । एक दिन रात को मैं अपने कमरे मैं बैठ कर चुपचाप रो रही थी । मेरे छोटे भाई नें मुझे रोते हुए देखा तो वह बोला कि दीदी, मैं तुम्हें साइकिल चलाना सिखाऊँगा।
अगले दिन हम सुबह 5 बजे उठकर घर के पास वाले पार्क में चले गए । उसने जैसे ही मुझे सिखाना शुरू किया मैं साइकिल के साथ उस पर ही गिर गई। उसे बहुत ज्यादा चोट लगी थी, लेकिन उसनें घर पर किसी को कुछ नहीं बताया। बस कह दिया कि मैं गिर गया था । वह बेचारा मेरी वजह से डाँट खाता रहा लेकिन मुंह से उफ़ तक नहीं किया।
फिर तो मैंने फैसला कर लिया कि अब चाहे कुछ भी हो जाए मैं साइकिल चलाना सीख के रहूँगी। मैं अगले दिन जल्दी उठ कर चुपचाप साइकिल लेकर पार्क में चली गई और मैंने वो बातें याद कीं, जो पिछले दिन मेरे छोटे भाई नें मुझसे कही थी कि अगर मन में एक बार इस डर को निकाल दो कि तुम साइकिल नहीं चला सकती, बस यह याद रखो कि जब एक लड़की हवाई जहाज़ उड़ा सकती है तो फिर यह साइकिल क्या चीज़ है।
बस फिर क्या था मैंने पैडल मारा और उछल कर सीट पर बैठ गई। मेरा भाई वहीं पर मुझे छुप कर देख रहा था। अब कुछ ही दिनों में साईकिल चलाना सीख चुकी थी। बस वह दिन और आज का दिन है मैं पायलट हूँ और मैं आज हवाई जहाज़ भी उड़ा रही हूँ।
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