साइकिल चलाने पर शुरु में महिलाओं को अनेक तरह के ताने सुनने पड़ते थे। जब उन्होंने साइकिल चलाना शुरु किया तो उनके आसपास के लोगों ने उन पर जमकर प्रहार किया। लोग उन्हें तरह-तरह के ताने देते। उनका मजाक उड़ाते। उन पर गंदी-गंदी टिप्पणियां करते। लेकिन महिलाओं ने इन सारी बातों को नजर-अंदाज कर दिया और साइकिल चलाने के अपने प्रयासों को जारी रखा। वह धीरे-धीरे अपने सारे दैनिक क्रियाकलापों को करने के लिए साइकिल का सहारा लेने लगीं यानी उन्हें बाहर किसी कार्य से जाना होता, कोई सामान लेकर जाना होता तो वह साइकिल का उपयोग करने लगीं।
अब कार्य जल्दी होने लगे। इस तरह धीरे-धीरे उनके साइकिल चलाने को सामाजिक स्वीकार्यता मिलती लगी। कुछेक महिलाओं से शुरू हुआ यह आंदोलन धीरे-धीरे पुडुकोट्टई जिले के सभी गाँवों में फैल गया और महिलाओं ने साइकिल चलाने को अपनी सहज आदत के रूप में विकसित कर लिया। अब हालात यह हो गए हैं कि महिलाएँ साइकिल चलाने के प्रशिक्षण शिविर भी लगाने लगी हैं, जहाँ साइकिल चलाना सीखने की इच्छुक महिलाएं इकट्ठी होती है।
‘जहाँ पहिया है’ पाठ में लेखक पी. साईनाथ ने पुडुकोट्टई जिले के बारे में वर्णन किया है, जोकि तमिलनाडु का बेहद पिछड़ा हुआ जिला माना जाता है। मुस्लिम बाहुल्य इस जिले में महिलाओं को घर से बाहर निकलने की आजादी नहीं थी। उन्हें घर से बाहर अपने किसी कार्य के लिए जाना भी पड़ता था तो पैदल जाना पड़ता था। इस कारण उन्हें अपने कार्यों को करने में बेहद परेशानी होती थी। जब एक महिला ने साइकिल चलाना सीखा तो अन्य महिलाएं भी साईकिल चलाना लगीं, जिससे उनके कार्यों में आसानी हो गई। अब है बिना रोक-टोक के दूर-दूर तक चली जाती है और अपने सारे जरूरी कार्यों को निपटा लेती हैं।
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