साइमन कमीशन भारत कब आया था? उसके क्या परिणाम हुए?

साइमन कमीशन ‘3 फरवरी, 1928’ को भारत आया।

साइमन कमीशन 3 फरवरी को भारत में आया और सबसे बंबई पहुँचा। साइमन कोलकाता लाहौर लखनऊ, विजयवाड़ा और पुणे सहित जहाँ-जहाँ भी पहुंचा उसे जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा और लोगों ने उसे काले झंडे दिखाए ।

लखनऊ में साइमन कमीशन का विरोध करते हुए जवाहर लाल नेहरू और गोविंद बल्लभ पंत को पुलिस की लाठियाँ खानी पड़ी थी । इसके अलावा लखनऊ में खलीकुज्जमा ने भी साइमन कमीशन का विरोध किया था । मद्रास में साइमन कमीशन का विरोध टी प्रकाशम के नेतृत्व में किया गया था । 30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया ।

पुलिस ने लाला लाजपत राय की छाती पर निर्ममता से लाठियाँ बरसाई । वह बुरी तरह घायल हो गए और मरने से पहले उन्होंने बोला था कि आज मेरे ऊपर बरसी हर एक लाठी कि चोट अंग्रेजों की ताबूत की कील बनेगी अंततः इस कारण 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई । लाला लाजपत राय की मृत्यु पर मोतीलाल नेहरू ने श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें ‘प्रिंस अमंग पीस मेकर्स’ कहकर पुकारा था । जबकि मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि “इस क्षण लाला लाजपत राय की मृत्यु भारत के लिए एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य है।”

महात्मा गांधी ने भी लाला लाजपत राय की मृत्यु पर खेद प्रकट करते हुए कहा था कि “लाला जी की मृत्यु ने एक बहुत बड़ा शून्य उत्पन्न कर दिया है, जिसे भरना अत्यंत कठिन है। वे एक देशभक्त की तरह मरे हैं और मैं अभी भी नहीं मानता हूँ कि उनकी मृत्यु हो चुकी है, वे अभी भी जिंदा है।”

इसके अलावा, महात्मा गांधी ने लाला लाजपत राय की मृत्यु पर यह भी कहा था कि “भारतीय सौर मंडल का एक सितारा डूब गया है ।”

लाला लाजपत राय की मृत्यु पर शोक प्रकट करते हुए साइमन कमीशन के अध्यक्ष जॉन साइमन ने खुद कहा था कि “एक उत्साही सामाजिक कार्यकर्ता और एक मुख्य राजनीतिक कार्यकर्ता का अवसान हो गया है ।”


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