बचपन में हमने भी अपने माता-पिता में अक्सर नोंक-झोंक होते देखी है। घर की छोटी-छोटी बातों पर माता-पिता में नोंक-झोंक होने लगती थी। मैं जब कोई शरारत करता तो पिता डांटते लेकिन माता मेरा पक्ष लेती। इस बात को लेकर भी माता-पिता में नोंक-झोंक हो जाती थी। माँ का अपने बच्चों के प्रति स्नेह अधिक होता है। वह बच्चों की छोटी-मोटी गलतियों को नजर अंदाज कर देती हैं, लेकिन पिता सख्त स्वभाव वाले होते हैं। वह छोटी सी गलती पर भी दांट लगाते हैं। वह जब छोटी सी गलती पर डांटने लगते तो इसी बात को लेकर अक्सर मेरे माता-पिता में अक्सर नोंकझोंक हो जाती थी।
खाना खाने में मैं अक्सर बहुत नखरे किया करता था। मुझे बहुत सी सब्जियां नापसंद थीं। इसी बात को लेकर माता-पिता में नोंक-झोंक हो जाती थी। मैं अपनी पसंद का खाना ही खाता था और मेरी माँ मुझे मेरी पसंद का खाना बनाकर खिलाती थीं, लेकिन पिताजी चाहते थे कि वह मैं हर तरह का खाना खाऊं, इसलिए मैं मुझे वह हर तरह का खाना खाने के लिए दवाब डालते थे। माँ को ये सब अच्छा नहीं लगता था। उनका मानना था कि बच्चा अगर किसी सब्जी आदि को नापंसद कर रहा है तो उस पर वह सब्जी आदि खाने का दवाब नहीं डालना चाहिए। इसी बात को लेकर भी माता-पिता मे नोक-झोंक हो जाती थी।
घर की अन्य कई छोटी-मोटी बातों पर मेरे माता-पिता मे नोंक-झोंक हो जाती थी। बाद में सब ठीक हो जाता। थोड़ा बड़े होकर मैंने जाना कि ये हर घर की कहानी थी। मेरे कई मित्रों के माता-पिता में ऐसी नोंक-झोंक होते मैं तब देखता था जब मित्र के घर मिलने जाता था।
Other questions
छोटों के प्रति बाबूजी के प्रेम के इस उदाहरण से आप क्या प्रेरणा ग्रहण करेंगे? (माता का आंचल)