‘रिक्त तूणीर हुए’ से आशय युद्ध भूमि में सैनिकों के पास से हथियार खत्म हो जाने से है। ‘तूणीर’ अर्थ तरकश होता है। तरकश वह होता है जिसमें सैनिक अपने तीर रखते हैं। युद्ध भूमि में जो सैनिक युद्ध के मोर्चे पर शत्रुओ से युद्ध करने गए हैं और युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है लेकिन उससे पहले ही उनके तरकश के तीर खत्म हो चुके हैं।
यहां पर तरकश और तीर से तात्पर्य युद्ध भूमि में हथियारों से है। प्राचीन युद्ध संदर्भ में इन्हें तीर कहा जा सकता है। आधुनिक संदर्भ में सैनिकों के पास हथियार खत्म हो चुके हैं। युद्ध भूमि में युद्ध समाप्त होने से पहले ही सैनिक हथियार विहीन हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में उनकी पराजय और उनके जीवन को संकट उत्पन्न हो गया है।
कवि नागार्जुन ऐसे वीरों को भी प्रणाम कर रहे हैं, क्योंकि भले ही युद्ध समाप्ति से पहले उनके तरकश के तीर खत्म हो गए अर्थात उनके हथियार खत्म हो गए लेकिन पूरे साहस के साथ उन्होंने तब तक युद्ध लड़ा, जब तक उनके पास हथियार रहे। कवि उनके साहस के प्रणाम कर रहे हैं।
‘उनको प्रणाम’ कविता में कवि ‘नागार्जुन’ ने छोटे-छोटे पदों के माध्यम से अलग-अलग क्षेत्र में असफल हुए उन सभी व्यक्तियों को प्रणाम किया है, जिन्होंने अपने अलग-अलग लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास किए। भले ही वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सके।
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सागर पार करने की इच्छा मन में ही क्यों रह गई? (‘उनको प्रणाम’ कविता)