रोहन के पिता सेना में कर्नल हैं। उनकी बहादुरी पर एक लघु कथा लिखिए।

लघुकथा

 

रोहन के पिताजी शमेशर सिंह गोरखा रैजिमेंट में कर्नल हैं और सन 1976 में वो उत्तर पूर्वी भारत में कार्यरत थे। एक रात तकरीबन 100 ख़ासी ट्राइब्स डाकुओं ने वहाँ के एक गाँव पर हमला कर दिया और लूट पाट करने लगे। उन्होंने लोगों  के घरों में घुस कर उनके कीमती समान निकाल लिए और उस झड़प में जो आगे आया, उसे मारने लगे ।

इसकी सूचना स्थानीय पुलिस को जब मिली तो उन्होंने जवाबी कार्रवाई की लेकिन इतने डाकुओं के आगे वो तिनका भर भी नहीं थे और जल्द ही स्थानीय पुलिस को भी उन्होने वहाँ से खदेड़ दिया।

इस दौरान 30 पुलिस वालों को उन डाकुओं ने मार गिराया। अब स्थिति नियंत्रण से बाहर थी और इसलिए अब सेना को मदद के लिए बुलाया गया। कर्नल शमशेर सिंह उस सेना की टुकड़ी की अगुवाई कर रहे थे।

उन्होंने वहाँ पहुँचते ही उन डाकुओं पर आक्रमण शुरू कर दिया और तकरीबन 60 डाकुओं को मार गिराया और 15 को अपने कब्जे में ले लिया । अब स्थिति खराब होते देख डाकू बोखला गए और उन्होंने एक घर में घुस कर वहाँ के परिवार को बंदी बना लिया। उस घर में एक बुजुर्ग और एक बच्ची थी। अब सेना के जवान भी असहाय थे क्योंकि अगर वह उन पर वार करते तो वह उन लोगों को मार भी सकते थे।
कर्नल शमशेर सिंह ने उन डाकुओं को बहुत समझने की कोशिश की लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थे और सेना को पीछे हटने को कह रहे थे।

अब रोहन के पिताजी ने एक योजना के तहत सारी सेना को पीछे हटने को कहा और खुद चुपके से घर के पीछे जाकर छुप गए। डाकुओं को जब लगा कि सेना वहाँ से चली गयी है वह निडर हो गए और वहाँ से बाहर निकालने लगे, तभी कर्नल शमशेर सिंह ने अचानक अकेले ही उन डाकुओं पर हमला कर दिया और अपनी जान की परवाह किए बिना उस घर के अंदर घुस कर उन डाकुओं पर गोलियां चलाने लगे।

तभी एक डाकू की गोली शमशेर सिंह जी के पाँव पर लगी और वह गिर पड़े । लेकिन इतने पर भी उन्होंने हार नहीं मानी और डाकुओं पर गोलियां बरसाते रहे और अंत में सभी डाकुओं को मार गिराया और उस घर में रह रहे दोनों लोगों की जान बचा ली । इस घटना में वह उनका दाहिना पैर जख्मी भी हुआ लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अंत तक उन डाकुओं का सामना करते रहे।

जिस धैर्य और वीरता से कर्नल शमशेर सिंह ने उन डाकुओं को मारा और लोगों की जान बचाई, उसके लिए सरकार द्वारा उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।


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