सुप्रिया तथागत यानि महात्मा अनाथपिंडत की पुत्री थी, उसने महात्मा बुद्ध से कहा था कि “यह तुच्छ का सेविका आपकी आज्ञा का पालन करेगी। मैं नगर के हर आँगन में अनाज पहुंचाने का भार लेती हूँ।”
सुप्रिया द्वारा तथागत यानि महात्मा बुद्ध को दिए गए इस वचन को सुनकर आसपास के सेठों ने सुप्रिया से कहा कि खुद को तो दाने-दाने का अभाव है, फिर इतना बड़ा काम अपने सिर पर कैसे ले रही है? तेरे घर में क्या अन्न के भंडार भरे पड़े हैं?
यह प्रसंग उस समय का है, जब नगर में भयंकर अकाल पड़ा था। नगर की प्रजा अन्न के दाने-दाने को तरस गई। तब महात्मा बुद्ध से प्रजा का दुख देखा नहीं गया। महात्मा बुद्ध ने नगर के संपन्न लोगों को बुलाकर उनके सामने प्रश्न किया और बोले, ‘प्रियजनों! भूखी प्रजा को अन्न देने के लिए तुम सब में कौन-कौन तैयार है?
यह सुनकर नगर के बड़े-बड़े सेठों में कोई आगे नहीं आया। नगर के बड़े सेठ रत्नाकर सेठ ने भगवान बुद्ध के सामने हाथ जोड़ लिया और कहा, ‘भगवन! नगर के हर प्राणी तक अन्न पहुंचाना मेरे वश की बात नहीं है।’ अन्य सेठों ने भी ऐसे ही कुछ बहाने बनाए।
तब तथागत के शिष्य अनाथपिंडत की पुत्री सुप्रिया जो वहीं पर थी, उसने महात्मा बुद्ध के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उनके द्वारा दी गई जिम्मेदारी को अपने सिर पर लिया और कहा कि वह नगर के हर प्राणी, नगर के हर आंगन में अनाज पहुँचाने का भार लेती है।
उसकी इस सेवा भावना को देखकर महात्मा बुद्ध ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, तथास्तु, तुम्हारा कार्य पूरा हो।
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