स्वामी जी ने जापान के विषय में यह टिप्पणी की थी कि “जापान में शायद अच्छे फल नहीं मिलते।” उनके द्वारा टिप्पणी करने का मुख्य कारण यह था कि जापान यात्रा करते समय उनका मुख्य भोजन फल ही होते थे और जापान में रेलवे यात्रा के समय भूख लगने पर उनको उनकी इच्छा के अनुसार फल नहीं मिले। इसीलिए उन्होंने जापान के विषय में यह टिप्पणी की।
स्वामी रामतीर्थ जो एक प्रसिद्ध संत और समाज सेवी थे, वह एक बार जापान की यात्रा पर गए थे। वह अधिकतर फलाहार ही करते थे। एक बार वह जापान में रेल के द्वारा किसी जगह जा रहे थे तो रास्ते में उनको भूख लगी। इसलिए वह एक स्टेशन उतरकर फल की दुकान को खोजने लगे। लेकिन काफी खोजने पर भी उन्हें अच्छे फलों की दुकान नहीं मिली। तब उन्होंने जापान के विषय में यह टिप्पणी की कि “जापान में शायद अच्छे फल नहीं मिलते”।
उनकी टिप्पणी को पास में खड़े एक जापानी युवक ने सुन लिया। वह युवक अपनी पत्नी को ट्रेन में बैठाने आया था। स्वामी रामतीर्थ की यह टिप्पणी सुनकर वह युवक तुरंत वहाँ से गया और एक टोकरी बढ़िया ताजा फल लेकर स्वामी रामतीर्थ के पास आया और उन्हें फल देते हुए कहा, कि यह लीजिए ताजे फल। स्वामी रामदेव ताजे फलों को देखकर प्रसन्न हुए। उन्होंने उस युवक का धन्यवाद करते हुए उसे फलों का मूल्य देना चाहा।
उस युवक ने स्वामी जी से कहा कि मुझे फलों का मूल्य नहीं चाहिए। यदि आप मूल्य देना चाहते हैं तो अपने देश में जाकर यह ना कहें कि जापान में अच्छे फल नहीं मिलते। स्वामी रामदेव से युवक द्वारा ऐसा कहने का मुख्य कारण यह था कि वह युवक नहीं चाहता था कि स्वामी जी उसके देश जापान के विषय में बाहर जाकर कुछ नकारात्मक बात कहें, वह अपने देश की बदनामी नहीं चाहता था। यह उसका अपने देश के प्रति प्रेम और निष्ठा को प्रकट करता था।
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