‘सर्वत्र एक अपूर्व युग का हो रहा संचार है’ का तात्पर्य
ये पंक्तियाँ कवि ‘मैथिलीशरण गुप्त’ द्वारा रचित ‘भारत-भारती’ काव्य के ‘भविष्यत्’ खंड से ली गई हैं। ‘भारत-भारती’ तीन खंडों में विभाजित है, अतीत खंड, वर्तमान खंड और भविष्यत् खंड। उपरोक्त पंक्तियां भविष्यत् खंड से ली गई है। पंक्तियों वाला पूरा अंतरा इस प्रकार है,
सर्वत्र एक अपूर्व युग का हो रहा संचार है,
देखो, दिनोंदिन बढ़ रहा विज्ञान का विस्तार है;
अब तो उठो, क्यों पड़ रहे हो व्यर्थ सोच-विचार में?
सुख दूर, जीना भी कठिन है श्रम बिना संसार में।।
भावार्थ : कवि मैथिलीशरण गुप्त भारतवासियों का आह्वान करते हुए कहते हैं कि पूरे संसार में चारों तरफ नए युग का आगमन हो रहा है। नवीन सोच-विचारों और विकास गूंज पूरे संसार में सुनाई दे रही है। जिधर देखो, विज्ञान का प्रचार-प्रसार बढ़ता जा रहा है। लोग विज्ञान के सहारे विकास के पद पर अग्रसर हैं, तो हे भारतवासियों! तुम क्यों बेकार की बातें सोचने विचारने में लगे हो क्यो अपना समय नष्ट कर रहे हो। इसलिए अब उठो और श्रम कार्य में लगा जाओ।
बिना परिश्रम किये इस संसार में कुछ भी नहीं मिलता। यदि सुखों की प्राप्ति करनी है, अपने जीवन को सरल बनाना है, तो श्रम करना ही पड़ेगा। यहाँ पर ‘सर्वत्र एक अपूर्व युग का हो रहा है संचार’ इस पंक्ति का तात्पर्य यह है कि कवि ये कहना चाह रहा है कि पूरे संसार में चारों तरफ में नवीन और प्रगतिशील विचारों को अपनाया जा रहा है। विज्ञान का महत्व बढ़ता जा रहा है। विज्ञान और विकास के इस युग में हर देश विकास के पथ पर चल पड़ा है।
विशेष टिप्पणी ‘भारत-भारती’ कविता एक ऐसी काव्य कृति है, जिसके माध्यम से कवि मैथिली शरण गुप्त ने भारत वासियों का आह्वान किया है। मैथिली शरण गुप्त भारतवासियों को प्रेरित करते हुए उनमें जोश भरने का प्रयास करते हैं और भारत के प्राचीन वैभवशाली इतिहास की याद दिलाकर उनके अंदर चेतना भरना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि बाहरी आक्रांताओं के कारण भारतवासियों के मन में जो वेदना और निष्क्रियता की भावना भर गई थी वह अब उस भावना से मुक्ति पा लें और एक नए युग के आरंभ में लग जाएं। |