अख़बार के जिन शौकीनों की ओर लेखक ने संकेत किया है, वो अख़बार के सच्चे शौकीन नही कहे जा सकते क्योंकि वे अखबार में छपी खबरों को मनोरंजन की दृष्टि से पढ़ते हैं। वह अखबार की खबरों के बारे में गहराई से नहीं सोचते। ऐसे लोग केवल मनोरंजन की दृष्टि से अखबार की खबरों को पढ़ते हैं और खबरों को भूल जाते हैं। उन खबरों का उनके मन पर कोई असर नहीं होता।
का मानना है ऐसे लोग अखबार के सच्चे शौकीन नहीं कहे जा सकते। लेखक के अनुसार वे लोग अखबार के सच्चे शौकीन होते हैं, जो अखबार में छपी खबरों को अपने देश-दुनिया को समझने तथा अपने ज्ञान को बढ़ाने के माध्यम के रूप में पढ़ते हैं। ये लोग अख़बार की ख़बरों के माध्यम से देश-दुनिया को समझने की कोशिश करते हैं। अपने ज्ञान को परिमार्जित करते हैं। ख़बरों तथा अख़बार के अन्य सामग्री को पढ़कर अपनी समझ को विकसित करते हैं। ऐसे लोगों के मन पर अख़बार की ख़बरों का असर होता है। वह अपने मन और समझ को विकसित करते हैं, इससे उनके अंदर एक जागरूक एवं बुद्धिजीवी नागरिक विकसित होता है।
अखबार में छपी खबरों को आत्मसात करने वाले ही अखबार के सच्चे शौकीन हैं। लेखक का यही मानना है।
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