बालगोबिन भगत ने अपनी जवानी वाली टेक को अंतिम दिनों तक कैसे बनाए रखा​?

बालगोबिन भगत ने बालगोबिन भगत ने अपनी जवानी वाली टेक को अपने बुढ़ापे तक बनाए रखा। जब तक उनकी मृत्यु नहीं हो गई उन्होंने अपनी दिनचर्या वैसे ही बना कर रखी जो दिनचर्या उनकी जवानी में थी।

वह हर साल गंगा स्नान करने को जाते थे, गंगा स्नान में उनकी बहुत अधिक आस्था नहीं थी, लेकिन संतों के समागम और लोक दर्शन के मोह में वह हर साल गंगा स्नान करने जाते थे। गंगा स्नान करने के लिए वह हमेशा पैदल ही जाते थे। पैदल तीन कोस चलकर गंगा स्नान के लिए जाना उनका नियम था। वह अपने को साधु नहीं बल्कि गृहस्थ मानते थे इसलिए यात्रा पर जाते समय खाना किसी से मांगना ना पड़े इसलिए घर से खाना खाकर ही निकलते थे और गंगा स्नान करने के पश्चात घर लौटकर ही खाना खाते थे।

गंगा स्नान के लिए जाते समय रास्ते पर वह खंजड़ी बजाते हुए जाते थे और प्यास लगने पर पानी पी लेते थे। उनकी इस पूरी यात्रा में चार-पाँच दिन का समय लगता था और इस चार-पाँच दिन की अवधि में उनका उपवास हो जाता था। लेकिन उनके माथे पर शिकन नहीं आती और वह मस्ती में झूमते गाते गंगा स्नान को जाते और वापस लौटते।

उनकी जवानी बीत गई और बुढ़ापा आ गया लेकिन उनका यह क्रम उनकी यह टेक यानी उनकी यह आदत नहीं छूटी और बुढ़ापे में भी उन्होंने अपने इस दिनचर्या का ही पालन करना जारी रखा। एक बार गंगा स्नान से लौट के बाद उनकी तबीयत कुछ खराब हो गई और बुखार आ गया। उसके बाद भी उन्होंने अपना व्रत नहीं छोड़ा स्नान, ध्यान, खेती-बाड़ी आदि जैसे नियमित काम जारी रखें। एक दिन सोते-सोते  ही उनका निधन हो गया।

इस तरह वह अपनी धुन और नियम के पक्के थे और उन्होंने बुढ़ापे में भी अपनी जवानी वाली टेक बनाए रखी थी।


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