‘विराटा का पद्मिनी‘ उपन्यास में ‘देवी सिंह‘ का चरित्र–चित्रण इस प्रकार है:
- ‘विराटा का पद्मिनी’ उपन्यास में देवी सिंह उपन्यास का एक प्रमुख पात्र है।
- वहएक योग्य व कुशल शासक था। उसमें शासन करने के सभी गुण थे।
- वह दरबारियों तथा सामंतो के बीच संतुलन स्थापित करके रखता था और उन्हें अपने अनुकूल बनाए रखता था।
- देवीसिंह निवासी युवक था। अपने विवाह के समय जब दुल्हन के द्वार पर पहुंचता है और यह देखता है कि राजा नायक सिंह और मुस्लिम आक्रमणकारियों के बीच युद्ध हो रहा है तो वह बिना कुछ परवाह किए हुए दूल्हे के भेष में ही आक्रमणकारियों से लड़ने लगता है। देवीसिंह चरित्रवान युवक था और धर्म के प्रति श्रद्धा का भाव रखने वाला धर्म परायण युवक था।
- वह व्यवहार कुशल युवक था और सभी का आदर करता था।
- युवक देवी सिंह एक संवेदनशील शासक था। उसके अंदर अपनी प्रजा के हित की चिंता रहती थी।
- अपने कुशल प्रशासन के कारण ही बेहद कम समय में अपने राज्य में प्रसिद्ध हो जाता है।
‘विराटा की पद्मिनी‘ उपन्यास ‘वृंदावन लाल वर्मा‘ द्वारा लिखा गया हिंदी का प्रथम ऐतिहासिक उपन्यास है। ये उपन्यास उन्होंने सन 1933 ईस्वी में लिखा था। उपन्यास का प्रकाशन 1936 ईस्वी में हुआ था। विराटा की पद्मिनी उपन्यास कुमुद नामक एक दांगी युवती के संघर्ष की कहानी है। इस उपन्यास में कुमुद के प्रेम और बलिदान की कहानी प्रस्तुत की गई है।
उपन्यास की पृष्ठभूमि बुंदेलखंड पर आधारित है। वृंदावन लाल वर्मा हिंदी के प्रथम ऐतिहासिक उपन्यास का माने जाते हैं। उनका जन्म 1890 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के मऊरानीपुर नामक गाँव में हुआ था। ‘विराटा की पद्मिनी’ के अलावा उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, टूटे कांटे, माधवजी सिंधिया, भुवन विक्रम नामक उपन्यास लिखे। उनका निधन सन 1969 ईस्वी में हुआ था।