‘वृक्षारोपण का महत्व’ समझाते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखें।

अनौपचारिक पत्र

‘वृक्षारोपण का महत्व’ इस विषय पर मित्र को पत्र

 

दिनांक : 4 मई 2024

 

प्रिय मित्र हेमंत,

हमारी पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग का संकट दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण क्या तुम्हें पता है? इसका सबसे बड़ा कारण है, वृक्षों की निरंतर हो रही कटाई। हम मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए वृक्षों को निरंतर काटते जा रहे हैं। हमें अपने शहरों का विस्तार करने और कंक्रीट के जंगलों को बनाने की इतनी बड़ी धुन सवार हो गई है कि हम जंगलों को साफ करते जा रहे हैं। हम सड़कों और पुलों का जाल बिछाने के लिए जंगलों को पूरी तरह नष्ट करने पर तुले हुए हैं।

हमारी पृथ्वी पर वृक्षों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है। वृक्षों की इस घटती संख्या को रोकने का एकमात्र उपाय वृक्षारोपण है। वृक्षारोपण की सहायता से ही हम वृक्षों की घटती संख्या को नियंत्रित कर सकते हैं। एक जागरूक नागरिक होने के नाते हम सभी का यह कर्तव्य बनता है कि हम अधिक से अधिक वृक्ष लगाएं ताकि हमारे गाँव, हमारे नगर, हमारे देश की हरियाली में वृद्धि हो। भले ही हम मनुष्य ही वृक्षों की घटती संख्या के लिए जिम्मेदार हैं तो हम मनुष्यों को आगे बढ़कर वृक्षारोपण के लिए पहल करनी होगी। वृक्ष हमारे सबसे बड़े मित्र होते हैं। ये हमारे लिए शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करने का सबसे बड़ा स्रोत हैं। ये हमारे लिए प्राणदाता हैं। हमें अपने मित्र को बचाना है।

वृक्षारोपण करना एक बेहद पुण्य वाला कार्य है। एक वृक्ष को लगाना और उसकी देखभाल करना किसी बच्चे के पालन पोषण से कम नहीं। हम सभी को यह संकल्प लेना होगा कि हम अपने जीवन में अधिक से अधिक वृक्ष लगाएं। हम ना केवल वृक्ष लगाएं बल्कि उसकी निरंतर देखभाल करें ताकि वह पौधा विकसित होकर एक बड़े वृक्ष का रूप ले सके। वृक्षारोपण करने वाले वृक्ष लगाकर उसके बाद उसे भूल जाते हैं। उसके बाद उन्हें पता ही नहीं रहता कि वह पौधा विकसित हुआ कि नहीं। हमें ऐसा नहीं करना है। हमें निरंतर वृक्षारोपण करना है। नए नए पौधे लगाने हैं और समय-समय पर भी उनकी देखभाल भी करती रहनी है।

यदि हम सभी लोग ऐसा संकल्प लेंगे तो हमारी पृथ्वी की हरियाली वापस लौट आएगी। तभी हम अपनी पृथ्वी को बचा सकते हैं और हम ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से निपट सकते हैं। आशा है, मेरे इस पत्र से तुम्हें वृक्षारोपण का महत्व पता चल गया होगा।

तुम्हारा मित्र,
विनीत ।


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