अनुच्छेद
निरंतर अभ्यास का छात्र पर प्रभाव
छात्र जीवन में अभ्यास का अपना ही महत्व है। निरंतर अभ्यास से अल्पबुद्धि छात्र भी बुद्धिमान बन सकता है। जब किसी बात का निरंतर अभ्यास किया जाता है तो एक न एक दिन उस कार्य में महारत हासिल हो ही जाती है। कवि वृंद का एक दोहा है कि ‘करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, रसरी आवत-जात है ते सिल पर पड़त निसान’। ये दोहा अभ्यास के महत्व को स्पष्ट करते हैं। इसके में बताया गया है कि कुएँ के पत्थर पर उस रस्सी की रगड़ से निशान पड़ जाते हैं जिससे बाल्टी बांधकर पानी निकाला जाता है। जब रोज रगड़ खाकर कोमल रस्सी से कठोर पत्थर पर निशान पड़ सकते हैं तो निरंतर अभ्यास से मंदबुद्धि भी बुद्धिमान बन सकता है। इसी से स्पष्ट हो जाता है कि यदि छात्र अपने पाठ का निरंतर अभ्यास करें तो उसे सबकुछ याद हो सकता है। छात्र जीवन में अभ्यास बहुत जरूरी है। निरंतर अभ्यास से ही छात्र पढ़ाई को सही अर्थों में ग्रहण किया जा सकता है। बिना अभ्यास के शिक्षा का कोई महत्व नही है।निरंतर अभ्यास करने से छात्र के दिमाग में उसकी पढ़ाई का मूल भाव बैठ जाता है। जिनकी कमजोर बुद्धि है वह भी निरंतर अभ्यास अपनी बुद्धि को परिमार्जित कर सकते हैं। इसलिए छात्र के लिए अभ्यास का विशेष महत्व है।
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