विचार/अभिमत
संस्कृत भाषा के प्रोत्साहन पर विचार
संस्कृत भाषा हमारी संस्कृति की पहचान है इस बात में संदेह वाली कोई बात ही नहीं है। संस्कृत भाषा भारत की पहचान है और सभी भारतीय भाषाओं की जननी है। विश्व की अनेक भाषाएं भी संस्कृत से ही प्रभावित हैं। संस्कृत भाषा देव भाषा है। हमारे भारत के सारे शास्त्र संस्कृत भाषा में ही रचे गए। हमारा भारत प्राचीन काल में ज्ञान का केंद्र रहा है।
किसी समय में भारत विश्व गुरु था और ज्ञान के विषय में विश्व के लोग भारत की ओर देखते थे। भारत में जो भी ज्ञान की धारा बही, वह सब संस्कृत भाषा में ही रची गई। इसीलिए संस्कृत भाषा का महत्व और अधिक स्पष्ट हो जाता है। लेकिन आज दुखद बात यह है कि संस्कृत भाषा बोलने वालों की संख्या ना के बराबर है। आज संस्कृत भाषा लुप्तप्राय हो गई है। हमें अपने इस धरोहर को बचा कर रखना होगा। आज हमारा नैतिक कर्तव्य बनता है कि हम संस्कृत भाषा रूपी धरोहर को संजोकर रखें। लुप्त होती जा रही हमारी संस्कृत भाषा को बचाने के प्रयास के लिए हमें संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार को बढ़ाना होगा। हमें अपने विद्यालयों में संस्कृत भाषा को प्रोत्साहन देने हेतु पाठ्यक्रम में संस्कृत भाषा को दसवीं तक अनिवार्य करना होगा। क्योंकि भारत की सभी भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा है, इसी कारण भारत के हर राज्य में स्थित भाषा अपना महत्व है।
हर राज्य संस्कृत भाषा को अन्य भाषा बनाने के लिए सहज रूप से सहमत हो जाएगा। भारत में हमें त्रिभाषा फार्मूला को चलाना होगा। जिसके अंतर्गत संस्कृत भाषा. हिंदी भाषा और क्षेत्रीय भाषा सिखाई जाएं। हर राज्य की अपनी क्षेत्रीय भाषा अनिवार्य हो तथा संस्कृत एवं हिंदी भाषा अनिवार्य हो। इस तरह विद्यार्थी संस्कृत भाषा से परिचित होंगे और अपनी संस्कृति विरासत को समझ सकेंगे। इन प्रयासों से ही हमारी संस्कृत भाषा पुनर्जीवित हो सकती है।
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