‘शिरीष’ नामक निबंध में लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘वह भी क्या कवि है’ इस पंक्ति के माध्यम से एक कवि की विशेषताओं के बारे में ये बताया है कि वह कवि नही हो सकता है जिसमें अनासक्ति का भाव नही हो। जो सांसारिक विषय-वासनाओं में उलझकर रह गया हो, जो सांसारिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति रखता हो, जिसमें फक्कड़पन नहीं आया हो, वह भी क्या कवि है? अर्थात वह कवि नहीं हो सकता।
लेखक इस निबंध में कहते हैं कि कवि बनने के लिए पहले अनासक्त बनना पड़ता है। सांसारिक लेखा-जोखा अर्थात सांसारिक कर्मों के आकर्षण से खुद को बचाए रखना होता है। जीवन की सभी परिस्थितियों मे एक समान भाव बनाए रखना होता है। कवि के विचारों में निरंतरता और समानता होनी चाहिए। उसे हर परिस्थिति को समान भाव से परखने के सामर्थ्य होनी चाहिए।
लेखक के अनुसार कवि को शिरीष के फूल की तरह अवधूत होना चाहिए। शिरीष का फूल भी विपरीत परिस्थितियों में भी विचलित नही होता। ऐसा ही गुण कवि में भी होगा तो वह सुंदर कविता की रचना कर सकता है।
लेखक के अनुसार केवल छंदों की रचना करके उन्हें जोड़ लेने से कवि नही बना जाता बल्कि कविता में भाव भी डालना पड़ता है।
‘शिरीष के फूल’ नामक निबंध हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध है जिसमें उन्होंने शिरीष के फूल की विशेषताओं का वर्णन किया है। इस निबंध में लेखक ने बताया है कि शिरीष का फूल कठिन और दुर्गम परिस्थितियों में भी किस तरह स्वयं को बचाए रखता है। इसका मुख्य कारण उसके अंदर अनासक्ति का भाव होना है। शिरीष के फूल की विशेषताओं के बारे में बताते हुए लेखक ने कवि होने की विशेषताओं को भी रेखांकित किया है।