तानाशाही और राजशाही यानी राजतंत्र में मुख्य अंतर केवल निरंकुशता का है। जब कोई राजा निरंकुश बन जाता है तो वह तानाशाह कहलाता है। यदि राजा विधि सम्मत नियमों का पालन करते हुए जनता हितैषी शासन स्थापित करता है तो वह तानाशाह नहीं है।
तानाशाही हमेशा बुरी ही होती है और वह नकारात्मकता को लिए होती है, जबकि राजा जरूरी नहीं कि निरंकुश हो, वह नकारात्मक हो, या बुरा ही हो। इतिहास में ऐसे अनेक अच्छे राजाओं का भी उदाहरण है, जिन्होंने अपनी उत्तम और जनहितैषी शासन व्यवस्था से उदाहरण प्रस्तुत किया।
इसके विपरीत तानाशाहों का इतिहास हमेशा रक्तरंजित और खराब ही रहा है। इसलिए तानाशाही और राजशाही में केवल अंतर निरंकुशता का ही होता है। तानाशाह हमेशा निरंकुश होता है वह केवल अपने बने-बनाए नियमों को ही थोपना चाहता है।
तानाशाह को सत्ता जरूरी नहीं विरासत में ही मिली हो। तानाशाह अपनी शक्ति के बल पर भी सत्ता हासिल कर लेता है। तानाशाह एक व्यक्ति नहीं कल बल्कि कई व्यक्तियों का समूह भी हो सकता है, जबकि राजा के संदर्भ में यह बातें पूरी तरह सच लागू नहीं होतीं। राजा को सत्ता विरासत में मिलती है, क्योंकि उसके पिता या दादा आदि राजा थे। राजा शक्ति के बल पर नहीं बल्कि वंशानुगत व्यवस्था के आधार पर सत्ता प्राप्त करता है। राजा सहृदय और विनम्र भी हो सकता है। वह अपनी प्रजा का हितैषी भी हो सकता है, लेकिन तानाशाह केवल स्वहितैषी ही होता है।
लेकिन इतिहास में अनेक राजा हुए हैं, जो अत्याचार, शोषण और दमन का प्रतीक थे, वे सभी राजा एक प्रकार के तानाशाह ही थे। राजा कभी भी तानाशाह बन सकता है। तानाशाह बनने के लिए उसे निरंकुश होना होगा।
हालाँकि वर्तमान समय में राजतंत्र यानि राजशाही विश्व से लगभग समाप्त हो चुकी है। अब पहले जैसे राजा नहीं रहे जिन्हें वंश के आधार पर सत्ता प्राप्त होती थी। कुछ देशों में राजशाही (जैसे ब्रिटेन, जापान) आदि में है भी तो भी ये नाममात्र का राजतंत्र है। इनके हाथ में नाममात्र की शक्ति है।
जबकि तानाशाही आज के समय में कई देशों में धड़ल्ले से चल रही है, जैसे चीन, उत्तरी कोरिया, अफगानिस्तान आदि।