भीम ने राजा विराट के यहां ‘वल्लभ’ नाम से रसोईये के रूप में कार्य किया था।
जब पांडव कौरवों द्वारा द्यूत में क्रीड़ा में हार गए तो उन्हें कौरवों की शर्त के अनुसार 12 वर्ष का वनवास तथा 1 वर्ष का अज्ञातवास मिला। 1 वर्ष के अज्ञातवास की यह शर्त थी कि पांडव इस तरह अज्ञात रूप में रहेंगे कि कोई उन्हें पहचान नहीं पाए। यदि किसी ने उन्हें पहचान लिया तो उन्हें फिर दोबारा से 12 वर्ष का वनवास बिताना पड़ेगा। इसी शर्त के अनुसार पांडवों ने 12 वर्ष का वनवास बताने के पश्चात 1 वर्ष के अज्ञातवास के लिए अलग-अलग रूप धरे, ताकि कोई भी उन्हें पहचान ना पाए।
पाँचों पांडवों ने द्रौपदी सहित विराटनगर के राजा विराट के यहां शरण ली और अपना असली परिचय नहीं दिया। यहाँ पर भीम ने राजा विराट के यहाँ ‘वल्लभ’ नामक रसोईया का रूप बनाया। भीम खाने-पीने के शौकीन थे और पाक कला में माहिर थे, इसलिए उन्होंने अपना नाम ‘वल्लभ’ बता कर राजा विराट के यहाँ रसोइये की नौकरी कर ली।
युधिष्ठिर ने ब्राह्मण का रूप अपना नाम ‘कंक’ कर लिया और राजा विराट के यहाँ नौकरी करने लगे।
उर्वशी अप्सरा द्वारा एक वर्ष तक नपुंसक होने के श्राप के कारण अर्जुन ने ‘बृहन्नला’ नामक किन्नर रखकर राजा विराट की पुत्री उत्तरा को नृत्य सिखाने लगे।
नकुल ने ‘ग्रांथिक’ नाम रखा और राजा विराट के यहाँ घोड़ों के अस्तबल में नौकरी कर ली।
सहदेव ने ‘तंत्रिपाल’ नाम रखा और राज विराट के यहाँ चरवाहे की नौकरी कर ली।
द्रौपदी ने अपना नाम ‘सैरंध्री’ रखा और राजा विराटी की पत्नी की सेविका के रूप में नौकरी कर ली।
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