धरती चिर उर्वर कैसे है ?

धरती चिर उर्वर इस प्रकार है कि धरती में सदैव फसलें उगाई जा सकती हैं। धरती पर खेती करके बार-बार फसलें उगाई जाती हैं, काटी जाती हैं फिर उनमें नए बीज बजे बोए जाते हैं, फिर फसल उगाई जाती है यह क्रम सदियों से चलता आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा। इस तरह धरती चिर उर्वर है। अर्थात वह हमेशा के लिए उर्वर है। वह हमेशा हमें फसल के रूप में अपनी उर्वरता देती रहती है, इसीलिए धरती चिर उर्वर है।

धरती के साथ ऐसा नहीं कि उसमें एक बार फसल लगा दी जाए उसके बाद उस की उर्वरता नष्ट हो गई यानी उसमें केवल एक ही बार फसल उगाई जा सके, ऐसा नहीं है। धरती पर अनगिनत बार फसलें उगाई जा सकती हैं, इसीलिए धरती चिर उर्वर है।

कवि ‘शिवमंगल सिंह सुमन’ अपनी कविता “मिट्टी की महिमा” में धरती और मिट्टी की महिमा का गुणगान करते हैं, वह कह रहे हैं…

भोली मिट्टी की हस्ती क्या आँधी आये तो उड़ जाए,
पानी बरसे तो गल जाए! फसलें उगतीं,
फसलें कटती लेकिन धरती चिर उर्वर है,
सौ बार बने सौ बर मिटे लेकिन धरती अविनश्वर है।

अर्थात इस मिट्टी की महिमा यह है कि आंधी के साथ उड़ जाती है और पानी बरसने के साथ बह जाती है, लेकिन फिर भी धरती में फसलें उगती हैं, कटती हैं। फिर दोबारा उगती हैं, फिर कटती हैं। यानी धरती की उर्वरता बनी रहती है, वह 100 बार बनती है 100 बार मिटती है लेकिन धरती की उर्वरता नष्ट नही होती, वह अनिवश्वर है।


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