संवाद लेखन
राम और रावण के बीच हुआ एक संवाद
राम ⦂ रावण, मेरा कहना मान लो अभी भी सही रास्ते पर आ जाओ, नहीं तो तुम्हारा अंत निश्चित है।
रावण ⦂ राम, तुम साधारण से मानव मेरा क्या बिगाड़ सकते हो। मुझे तुमसे कोई डर नहीं।
राम ⦂ कभी भी किसी को निर्बल नहीं समझना चाहिए और ये भी जान लो कि असत्य पर सदैव सत्य की विजय होती है। तुम असत्य के मार्ग पर चल रहे हो और मैं सत्य का साथ दे रहा हूँ। इसलिए डरने की तुम्हें आवश्यकता है, मुझे नहीं।
रावण ⦂ हा हा हा, राम तुम्हारी बातों से मुझे हंसी आ रही है।
राम ⦂ मैं तुम्हें आखिरी बार चेतावनी देता हूँ, मेरी पत्नी सीता जिनका तुमने अपहरण किया हुआ है, उन्हें तुम ससम्मान मुझे वापस सौंप दो और सीताजी से अपने कृत्य के लिए क्षमा मांग लो, तो हो सकता है कि वो तुम्हें क्षमा कर दें।
रावण ⦂ क्षमा और तुम लोगों से? ये रावण के स्वभाव में नही। तुम्हें मेरी शक्ति का आकलन नहीं है। तुम जैसे साधारण मानव के आगे में राक्षस राज रावण क्षमा मांगूंगा, हा हा हा।
राम ⦂ तुम किसी की नहीं सुनने वाले। मुझे तुम्हारे भाई विभीषण ने सच ही कहा था कि तुम बेहद जिद्दी हो। अब तुम्हारा भला नहीं हो सकता। अब इस इस संसार से तुम्हारे अत्याचारों का अंत करने के लिए मुझे तुम्हारा वध करना ही पड़ेगा।
रावण ⦂ मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। तुम्हें अपनी सुरक्षा की चिंता होनी चाहिए। जिस तरह तुम्हारे भाई लक्ष्मण को मेरे पुत्र मेघनाथ ने बुरी तरह घायल कर दिया था, वैसे ही मैं तुम्हारा हाल करूंगा। हर बार संजीवनी बूटी तुम्हारी रक्षा नहीं करेगी।
राम ⦂ ठीक है, कौन किसको घायल करता है, देखते हैं। मिलते हैं रणभूमि में।
रावण ⦂ हाँ अब रणभूमि में मैं तुम्हारा वही हाल करूंगा, जो मेरे पुत्र मेघनाथ ने तुम्हारे भाई लक्ष्मण का किया था। इस बार तुम दोनों भाई बच नहीं पाओगे।
राम ⦂ चलो देखते हैं, कौन किसका बुरा हाल करता है। तुम्हें समझाना मेरा कर्तव्य था। ना समझना तुम्हारा स्वभाव। कल के युद्ध के लिए तैयार रहो। कल का दिन इतिहास में विजयादशमी के नाम से जाना जाएगा, जब मैं तुम्हारा वध करूंगा।
रावण ⦂ हा हा हा