इस प्रश्न का सही उत्तर है:
(1) सावयवी
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व्याख्या
मनुस्मृति, जो प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्र का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, राज्य की अवधारणा को दो दृष्टिकोणों से देखती है:
1. उत्पत्ति की दृष्टि से दैवीय
मनुस्मृति के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति दैवीय है। यह माना जाता है कि राज्य का निर्माण ईश्वरीय इच्छा या दैवीय आदेश से हुआ है। यह विचार राजा को दैवीय अधिकार प्रदान करता है, जिससे उसके शासन को वैधता मिलती है।
2. प्रकृति की दृष्टि से सावयवी
हालांकि राज्य की उत्पत्ति दैवीय मानी जाती है, मनुस्मृति राज्य की प्रकृति को सावयवी मानती है।
सावयवी दृष्टिकोण का अर्थ है कि राज्य को एक जीवित जैविक इकाई के रूप में देखा जाता है, जिसके विभिन्न अंग हैं जो एक साथ मिलकर कार्य करते हैं।
इस दृष्टिकोण के अनुसार, राज्य के विभिन्न घटक (जैसे राजा, मंत्री, न्यायालय, सेना, नागरिक) एक जीवित शरीर के अंगों की तरह एक-दूसरे पर निर्भर हैं और एक साथ कार्य करते हैं।
यह दृष्टिकोण न तो पूरी तरह से यंत्रवादी है (जो राज्य को केवल एक मशीन के रूप में देखता है), न ही केवल राजनीतिक या आर्थिक। यह राज्य को एक जीवंत, विकासशील और परस्पर संबंधित इकाई के रूप में देखता है, जिसमें सभी भाग एक-दूसरे पर निर्भर हैं और समग्र रूप से कार्य करते हैं।
इस प्रकार, मनुस्मृति में राज्य की अवधारणा दैवीय उत्पत्ति और सावयवी प्रकृति का एक संयोजन है, जो राज्य को एक जटिल, जीवंत और आध्यात्मिक रूप से प्रेरित संस्था के रूप में प्रस्तुत करती है।