शीत युद्ध से क्या तात्पर्य है?

शीत युद्ध से तात्पर्य उस युद्ध से होता है जो दो या दो से अधिक पक्षों के बीच बिना किसी हथियार के लड़ा जाता है। ऐसा युद्ध सामान्यतः दो देशों के बीच होता है। इस युद्ध में युद्ध से मैदान में हथियारों से युद्ध नही लड़ा जाता ना ही इस युद्ध में सक्रिय रूप से कोई सैनिक भाग लेते हैं। इस युद्ध में कोई हताहत नहीं होता।

शीत युद्ध एक तरह की तनावपूर्ण होड़ होती है जो दो शक्तियों के बीच एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी रहती है।ये युद्ध राजनीतििक और कूटनीतिक स्तर पर दो देशों के बीच लड़ा जाता है।

दुनिया का सबसे बड़ा और लोकप्रिय शीतयुद्ध अमेरिका और सोवियत संघ के बीच लड़ा गया था।  द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चला लंबा तनावपूर्ण संघर्ष, जो लगभग 1947 से 1991 तक चला।

इसकी मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार थीं:

1. प्रत्यक्ष सैन्य संघर्ष का अभाव : दोनों देशों ने कभी सीधे युद्ध नहीं किया।

2. वैचारिक प्रतिद्वंद्विता : पूंजीवाद बनाम साम्यवाद का टकराव।

3. हथियारों की होड़ : दोनों पक्षों ने बड़े पैमाने पर परमाणु हथियार जमा किए।

4. प्रभाव क्षेत्र का विस्तार : दोनों देश अन्य देशों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में लगे रहे।

5. अप्रत्यक्ष युद्ध : कोरिया, वियतनाम जैसे देशों में परोक्ष रूप से लड़ाई।

6. जासूसी और प्रचार युद्ध : O-दूसरे की गतिविधियों पर नज़र रखना।

7. अंतरिक्ष और तकनीकी प्रतिस्पर्धा : चंद्रमा पर पहुँचने की दौड़ जैसी गतिविधियाँ।

8. गुटनिरपेक्ष आंदोलन: कई देशों ने तटस्थ रहने का प्रयास किया।

शीतयुद्ध का अंत 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ हुआ, जिसने विश्व राजनीति को एक नया आकार दिया।

इस तरह इस युद्ध को शीत युद्ध कहा गया। जब भी किन्हीं दो देशों के बीच ऐसे ही तनावपूर्ण होड़ वाले संबंध होते हैं तो ऐसी स्थिति को शीत युद्ध ही कहा जाता है।


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