आपने महान व्यक्तियों और संतों को कहते हुए सुना ही होगा कि चाहे जीवन में सुख आए या दुख मनुष्य को हमेशा एक सा ही रहना चाहिए। सुख आने पर बहुत खुश नहीं होना चाहिए और दुख आने पर बहुत दुख नहीं मनाना चाहिए। सुख-दुख में एक समान रहने वाला व्यक्ति ही श्रेष्ठ है। सुख और दुख तो मनुष्य के जीवन में धूप और छाँव की तरह आते-जाते रहते हैं। सच्चा व्यक्ति वही व्यक्ति है जो सुख और दुख को समान भाव से ग्रहण करें। हमारे सुख दुःख का आधार हमारा मन है मन से ही सुख दुख पैदा होता है मन जो चाहता है वह मिले तो सुख न मिले तो दुख। क्रोध लोभ लालच आदि भी मन से ही उत्पन्न होता है हमारे दुख का मूल हमारा मन है।
सुख-दुख में हमारा व्यवहार एक सा होना चाहिए जैसे :-
- हमें विनम्र रहना चाहिए ।
- हमें सब्र रखना चाहिए ।
- थोड़ा बर्दाश्त करना सीखें ।
- बहुत कुछ नजरंदाज करना सीखें ।
- किसी से भी ज्यादा उम्मीद ना करें ।
- हर तरह की स्थिति में रहना सीखें ।
- क्रोध ना करें ।
- संतुष्टि रखें ।
- खुश रहें ।
- दूसरों पर अपने विचार ना थोपें ।
- ईश्वर पर भरोसा रखें ।
- हमेशा दूसरों की मदद करें ।
- अपने मन पर काबू रखें ।
Related questions
सुख-दुख के समय हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए? अपने विचार लिखें।