अनुच्छेद
सेल्फी शाप या वरदान
सेल्फी शब्द कोई बहुत पुराना शब्द नहीं है और यह अभी हाल के कुछ वर्षों में ही प्रयोग में होने लगा है। सेल्फी का प्रचलन आरंभ में स्वयं का फोटो निकालने के लिए सुविधा के तौर पर हुआ था। ऐसे व्यक्ति जो अकेले होते थे और कोई दूसरा व्यक्ति उनका फोटो खींचने के लिए उपलब्ध नहीं होता था तो वह मोबाइल के माध्यम से खुद ही स्वयं का फोटो निकाल सकते थे। इस तरह यह एक आयडिया था। लेकिन धीरे-धीरे सेल्फी का शौक लोगों पर जुनून की तरह चढ़ने लगा है। आज सेल्फी वरदान की जगह शाप बनती जा रही है। ऐसी अनेक घटनाएं आए दिन टीवी में देखने व अखबार में पढ़ने को मिलती है कि सेल्फी खींचते-खींचते खींचने वाले का ध्यान बंट गया और उसके उसके साथ दुर्घटना हो गई। कुछ दिनों पूर्व एक लड़की सेल्फी निकाल रही थी और सेल्फी निकालते निकालते उसका ध्यान पीछे नही गया औरअचानक वह नदी के पानी में गिर गई और नदी के पानी के साथ बह गई। इस तरह उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। सेल्फी निकालने का लोगों पर जुनून छाता जा रहा है। जहाँ देखो लोग सेल्फी निकालने में व्यस्त हो जाते हैं जिससे अन्य लोगों को भी असुविधा होती है। आज के संदर्भ में देखा जाए तो सेल्फी आज एक वरदान नहीं बल्कि शाप बन चुका है क्योंकि इसके कारण अनेक दुर्घटनाएं हुई है और बहुत से लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। इसलिए हमें सेल्फी निकालने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना होगा और सेल्फी को एक सामान्य आदत की तरह लेकर उसे सीमित करना होगा ।
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