लहरों के आने पर काई फटने लगती है और चारों तरफ फैल जाती है। इस तरह लहरों के आने पर काई का कोई अस्तित्व नहीं रहता। |
कवि ‘भवानी प्रसाद मिश्र’ अपनी कविता ‘प्राणी वही प्राणी है’ के माध्यम से कहते हैं कि…
तापित को स्निग्ध करे, प्यासे को चैन दे; सूखे हुए अधरों को फिर से जो बैन दे ऐसा सभी पानी है। लहरों के आने पर, काई-सा फटे नहीं; रोटी के लालच मे तोते-सा रटे नहीं प्राणी वही प्राणी है। लँगड़े को पाँव और लूले को हाथ दे, सत की संभार में मरने तक साथ दे, बोले तो हमेशा सच, सच से हटे नहीं; झूट के डराए से हरगिज डरे नहीं सचमुच वही सच्चा है।
अर्थात कवि कहना चाहता है कि लहरों के आने पर जो काई की तरह फट जाता है, वह प्राणी नहीं बनना है, क्योंकि इससे उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। यहाँ पर लहरों से तात्पर्य जीवन के संकटों से है। जो प्राणी जो मनुष्य जीवन के संकटों से घबराकर टूट कर बिखर जाता है वह कभी जीत नहीं सकता।
मनुष्य को ऐसा होना चाहिए जो अपनी संकटों के आने पर भी विचलित ना हो और दृढ़ता से मुकाबला कर संकट पर विजय पाये। जो हमेशा सच बोलता है, वो झूठ के बहकावे में नही आता है, वही सच्चा मनुष्य है।
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