निबंध
भारत में ग़रीबी के कारण
प्रस्तावना
आज के अनुमान से भारत में आज भी 27 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा से नीचे रहते हैं । आजादी के समय देश की 80 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी । आज 22 फीसदी लोग गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं लेकिन संख्या के तौर पर इसमें कोई खास बदलाव नहीं हुआ है गरीबी एक अभिशाप है ।
शिक्षा का अभाव
आज के आधुनिक समय में भी गरीब लोगों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करने के लिए सरकारें अपने विभिन्न प्रकार के विद्यालय चलाती हैं । सभी लोग शिक्षा की इस सरकारी व्यवस्था के बारे में नहीं जानते हैं । इसी कारण से उचित प्रकार की शिक्षा गरीबों को मिल नहीं पाती है । शिक्षा के अभाव में गरीब लोग जिन्दगी में मिलने वाले मौके नहीं पाते हैं और न ही कोई नया मौका खुद बना पाते हैं । उनको ये पता ही नहीं चलता कि किस तरह से एक या दो पीढ़ी में गरीब अपनी ग़रीबी के कुचक्र को तोड़ सकते हैं ।
कुछ गरीब शिक्षा को महत्वहीन मानते हैं । वह अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाए उनसे काम करवा कर परिवार की आमदनी बढ़ाना पसंद करते हैं । ये बात कुछ हद तक कम गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों के लिए भी लागू होती है । ये लोग प्रारम्भिक और आगे की शिक्षा तो पा जाते हैं लेकिन विशेषज्ञता वाली शिक्षा जो कि या तो सरकारी सरकारी क्षेत्र में सीमित है या फिर बहुत ही महंगी है । कई प्रकार के आगे बढ़ने के अवसर उचित शिक्षा के अभाव में लोगों के हाथ से निकल जाते हैं ।
भारत की बढ़ती जनसंख्या
देखा जाए तो जनसंख्या हमारे देश में गरीबी की जड़ है । इससे निरक्षरता, खराब स्वास्थ्य सुविधाएं और वित्तीय संसाधनों की कमी भी बढ़ती जाती है। इसके अलावा उच्च जनसंख्या दर से प्रति व्यक्ति आय भी प्रभावित होती है और प्रति व्यक्ति आय घटती है । एक अनुमान के अनुसार के भारत पूरी दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने की ओर अग्रसर है । भारत की आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है उस रफ्तार से भारत की अर्थव्यवस्था नहीं बढ़ रही है ।
अब तो भारत की सड़कों पर बढ़ती हुई जनसंख्या महसूस होने लगी है । भारत में जनसंख्या इस गति से बढ़ रही है कि कुल उत्पादन बढ़ने पर प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से में अधिक धन नहीं हो पाता, जिससे जीवन-स्तर ऊंचा नहीं हो पाता । इसी वजह से बेरोजगारी बढ़ती है । बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगाने के लिये कठोर कदम उठाने का समय आ गया है ताकि गरीबी को भी काबू में किया जा सके ।
सामाजिक परिस्थितियाँ
भारत में गरीबी का एक और बहुत बड़ा कारण है सामाजिक परिस्थितियां और सामाजिक रूप से विभेद भी है । सामाजिक विभेद को तो राजनैतिक रूप से भारत में विभिन्न स्वरूपों में के आरक्षण और गरीबी हटाओ योजनाओं के द्वारा दूर किया गया है । लेकिन सामाजिक स्थितियों पर अभी भी कुछ नहीं किया गया है ।
भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल सामाजिक आधार आज तक भी पुरानी सामाजिक संस्थाएं तथा रूढ़ियां हैं । यह वर्तमान समय के अनुकूल नहीं है । ये संस्थाएं हैं – जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा और उत्तराधिकार के नियम आदि । ये सभी भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से होने वाले परिवर्तनों में बाधा उपस्थित करते हैं । चाहे तड़क भड़क भरी शादी में होने वाला खर्चा हो, शादी में दिये जाना वाला दहेज हो, मृत्यु भोज हो या फिर आये दिन आने वाले तीज-त्यौहार हों, सब पर समाज में अपना मुंह दिखाने और अपनी हैसियत बताने के नाम पर बहुत खर्चा होता है । बहुत से लोगों को तो हमने इन सब खर्चो के लिये लोन लेते हुए देखा है ।
गरीबी का कुचक्र इसी प्रकार के खर्चो के कारण बना रहता है । इन खर्चो में मध्यम आय वर्ग भी शामिल है । मध्यम आय वर्ग में तो आजकल अपनी सामाजिक हैसियत में दिखावा करने के लिये अपनी क्षमता से ज्यादा खर्च करके बच्चों को महंगी शिक्षा, कार खरीदना, विदेश यात्रा करना इत्यादि भी शामिल हो गये हैं । उधार चुकाते- चुकाते अपनी मेहनत की कमाई लोग ऐसे ही कामों में लगा देते हैं और गरीबी में आ जाते हैं ।
भारत में गरीबी का मुख्य कारण आर्थिक विषमता एवं राष्ट्रीय आय का असमान वितरण है करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर है । ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों का सर्वा था अभाव है । अधिकांश मजदूर खेतों में काम करते है । उनके पास अपनी भूमि का अभाव है । भूमिहीन मजदूरों की आर्थिक स्थिति बद से बदतर है । भू स्वामी उन्हें काम के बदले उचित मजदूरी भी नहीं देते है ।
महानगरों में कारखानों में काम करने वाले मजदूरों के पास रहने के लिए अपना घर नहीं है । मजदूरों के बच्चों को स्वास्थ्य सुविधा एवम् शिक्षा की कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है । उन्हें रोजगार से किसी भी समय निकाला जा सकता है । असंगठित क्षेत्र के 37 करोड़ों मजदूरों कि स्थिति अत्यंत ही सोचनीय है। दैनिक मजदूरी के द्वारा उनके परिवार का भरण पोषण होता है । सरकार ने स्वतंत्रता के बाद योजना आयोग का गठन किया। जिसके द्वारा योजना बुद्ध तरीके से योजना बनाकर देश से गरीबी दूर करने का प्रयास प्रारंभ किया । लेकिन अभी तक सरकार को वांछित सफलता प्राप्त नहीं हुई है ।
मोदी सरकार ने योजना आयोग को खत्म कर नीति आयोग का गठन किया है। नीति आयोग देश से गरीबी दूर करने के लिए नई योजनाएं बना रही है। इसके अंतर्गत मुद्रा बैंक के द्वारा गरीबों एवं बेरोजगारों को अपना रोजगार शुरू करने के लिए लोन दिया जा रहा है। इसमें महिलाओं को प्राथमिकता दी जा रही है।
सरकारी योजनाएं भी लोगों को गरीब बना रही हैं ।
भारत की केन्द्रीय सरकार हो या फिर राज्यों की सरकारें, सब गरीबों के लिए दम भरते हैं और गरीबों के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं को चलाते रहते हैं । इन सब योजनाओं से थोड़ा बहुत लाभ गरीबों का होता है और बहुत सारा फायदा बीच के दलालों, सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों और नेताओं को होता है ।
इन योजनाओं को चलाने के लिए अनेक कंपनियां, स्वयं सेवी संस्थाएं और कर्मचारी लगते हैं और वे ही इसके वास्तविक लाभार्थी बनते हैं । दूसरी तरफ गरीब लोगों के लिए जो ये कल्याणकारी योजनाएं चलती हैं इनमें गरीबों को गरीब ही रहने का पुरस्कार मिलता है । अधिकांश सरकारी गरीबी को योजनाओं में गरीब के किसी न किसी पैमाने के अन्दर होने के कारण लाभार्थियों को तरह-तरह की राशन, घर, पढ़ाई इत्यादि की सुविधाएं मिलती हैं । अगर कोई गरीब अपनी मेहनत से गरीबी के पैमाने से ऊपर आ गया तो उसको मिलने वाली सारी सुविधाएँ बंद हो जाती हैं ।
गरीबी के पैमाने से ऊपर आने पर भी गरीब आदमी कोई अमीर व्यक्ति नहीं बन जाता है । लेकिन सरकार उसकी फ्री मिलने वाली सुविधाएं बन्द कर देती है । इसलिए भी गरीब अपने आप को गरीब बनाये रखने में ठीक महसूस करता है । दूसरी बात ये कि जब सब कुछ सरकार दे ही रही है तो गरीब लोग सोचते हैं फिर गरीबी से ऊपर उठ कर मेहनत कर के कमाने की व्यवस्था करने से क्या फायदा ? क्या आपने कोई ऐसी सरकारी योजना देखी है जो लोगों से कहती हो कि यदि आप अपनी मेहनत और सरकारी सहायता से अपनी गरीबी से निकल कर कम से कम अल्प आय वर्ग में आ जाओगे तो आपको कई प्रकार की विशेष सुविधाएं मिलेंगी ? नहीं न ।
सरकार द्वारा बनाई गई गलत नीतियां
भारत की धरती जिस पर भगवान ने इतने प्राकृतिक संसाधन जिसमें लंबे मैदानी क्षेत्र, नदियां, जिनमें एक अच्छी जलवायु और ढेर सारे प्राकृतिक संसाधन शामिल हैं, दिए हैं कि अगर ढंग से सरकारी नीतियां रहें तो ये देश वापस प्राचीन काल की तरह सोने की चिड़िया बन सकता है । फिर भी सवाल यह है कि आज़ादी के इतने साल बाद भी भारत एक बेहद गरीब देश क्यों है ? दरअसल भारत में मेहनत करके गरीबी से ऊपर आने को कभी प्रोत्साहित नहीं किया गया । लोगों को उत्पादकता के कामों में लगने के बजाय केवल नौकरी करने को ही रोजगार का माध्यम बना दिया ।
सरकारों ने सोशलिस्ट समाजवादी नीतियां बना कर ऐसे श्रम कानून और नीतियां बनाईं कि लोगों के लिये मेहनत करके अपना काम करना मुश्किल हो गया । इस दौरान अच्छे पढ़े लिखे लोग उचित अवसरों की तलाश में भारत से बाहर जाते रहे । मानव संपदा जो कि भारत को आगे लो जाती वह दूसरे देशों के विकास में काम आती रही ।
भारत में अधिकांश लोगों खास कर व्यवसायियों पर इतने प्रकार के टैक्स (कर) लगा दिए गए हैं कि लोग कर बचाने के लिए बड़े पैमाने पर काला धन बनाने लगे । और इस प्रकार जो धन भारत में लगता और देश को आगे ले जाता वह विदेशी बैंकों में जमा होने लगा । इस प्रकार भारत की सरकारी नीतियों के कारण भी लोग गरीब होते जाते हैं।
कीमतों में वृद्धि और विकास की धीमी गति
उत्पादन में कमी तथा जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण भारत जैसे अल्प विकसित देशों में कीमतों में वृद्धि हो जाती है। जिसके कारण गरीब व्यक्ति और गरीब हो जाता है । पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि में औसत वार्षिक दर में वृद्धि बहुत कम रही GDP की विकास दर 4 प्रतिशत होने पर भी यह लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि करने में असफल रही।
जनसंख्या में 2 प्रतिशत की वृद्धि होने पर प्रति व्यक्ति आय मात्र 2.4 प्रतिशत रही । प्रति व्यक्ति आय में कमी गरीबी का मुख्य कारण है। बुनियादी वस्तुओं की लगातार बढ़ती कीमतें भी गरीबी का एक प्रमुख कारण हैं । गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले व्यक्ति के लिए जीवित रहना ही एक चुनौती है । भारत में गरीबी का एक अन्य कारण जाति व्यवस्था और आय के संसाधनों का असमान वितरण भी है।
औद्योगीकरण और कृषि का पिछड़ापन
उत्पादन के परंपरागत साधनों का स्थान मशीनों ने लिया तो फैक्ट्री प्रणाली अस्तित्व में आई। बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हुए, ग्रामीण कुटीर उद्योग प्रायः नष्ट हो गए हैं। परिणामस्वरूप जो लोग कार्य करके आर्थिक उत्पादन कर रहे थे, उनके सामने संकट खड़ा हो गया। भारत में कृषि मोटे तौर पर मानसून पर आधारित है। कभी मानसून अति सक्रिय तो अभी अति निष्क्रिय होने पर कृषि उत्पादन पर असर पड़ता है। कृषि की गिरी हुई दशा, संसाधनों की कमी, उन्नत खाद, बीजों तथा सिंचाई सुविधाओं के अभाव भी ग़रीबी को बढ़ाते हैं।
राष्ट्रीय उत्पादन की धीमी वृद्धि
भारत का कुल राष्ट्रीय उत्पाद जनसंख्या की तुलना में काफी कम है। इस कारण भी प्रति व्यक्ति आय में कमी के कारण ग़रीबी बढ़ी है।
प्राकृतिक आपदाएँ
भारत में ग़रीबी के अनेक कारणों में से एक भारत के विभिन्न भागों में किसी न किसी समय आने वाली प्राकृतिक आपदाएँ भी कहीं न कहीं दोषी हैं। कहीं अत्यधिक ठंड का मौसम रहता और वर्ष के अधिकांश समय बर्फ़ रहती है, कहीं ज्यादा बारिश से बाढ़ रहती है, कहीं सूखा रहता, कहीं जमीन रेगिस्तानी है, कहीं जंगल हैं । कभी-कभी भूकंप भी आ जाता है । इन सब प्राकृतिक कारणों से बड़ी जनसंख्या प्रभावित होती है । जब काम करने का मौका प्राकृतिक आपदाओं की वजह से चला जाता है तो लोगों की आय भी गिर जाती हैं अतः ग़रीबी बनी रहती है ।
उपसंहार
भारत में गरीबी दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है । गरीब बहुत गरीब होते जा रहे है, और अमीर और अमीर बनते जा रहे है । जनसंख्या बढ़ने के कारण गरीबी बढ़ती ही जा रही है । लोगों के पास रहने के लिए जगह नहीं रही है । हम सब को भारत की ग़रीबी को हटाने के लिए एक साथ जुट होकर प्रयत्न करना चाहिए ।