स्वावलंबन का महत्व (निबंध)

निबंध

स्वावलंबन का महत्व

 

प्रस्तावना

स्वावलंबन की एक झलक पर न्योछावर कुबेर कोष है। स्वावलंबन से मनुष्य को उज्ज्वल जीवन मिलता है । यदि कोई मुझसे सुखी और सफल जीवन का एक मात्र आधार पूछे तो मैं निःसंदेह ही स्वावलंबन की ओर इशारा करूंगी । स्वावलंबन का सीधा सा अर्थ है – अपनी क्षमता पर, अपने प्रयत्नों पर आश्रित रहते हुए जीवन के संघर्ष में कूदना ।स्वावलंबन जीवन में सीखना पड़ता है । इसके लिए दृढ़ इच्छा शक्ति, कठोर परिश्रम, और निर्भीकता की आवश्यकता होती है । स्वावलंबन ना तो पुस्तकों को पढ़ कर सीखा जाता है और ना ही किसी के उपदेश सुनकर आता है।

स्वावलंबन का महत्व

स्वावलंबन तो जीवन की अन्य आवश्यकताओं की तरह धीरे–धीरे विकसित किया जाता है। स्वावलंबन की ही तरह दूसरों पर आश्रित रहना भी अभ्यास से ही आता है। जिस बच्चे को बचपन से ही काम करने की आदत नहीं डाली गई, जिसका बस्ता तक नौकर स्कूल तक छोड़ कर आते है, जिसका गृह कार्य भी उसके भाई–बहन या फिर माता- पिता करते हैं , जो बच्चा ट्यूशन पढ़ कर पास होता रहा, ऐसे बच्चे से आत्मनिर्भर होने की उम्मीद करना बेकार है । जिस व्यक्ति को अपना काम स्वयं करने की आदत नहीं होती है वह व्यक्ति सदा ही परेशान रहता है । उसमें ना तो आत्मसम्मान विकसित हो पाता है और ना ही आत्म विश्वास । दूसरों के सहारे अपने जीवन में उन्नति की आशा करने वाला व्यक्ति बैसाखियों के सहारे चलने वाला अपाहिज ही होता है जोकि विश्व चैम्पीयन बनने का सपना देख रहा है । यदि कभी सौभाग्य से वह उन्नति कर भी लेता है तो वह अधिक देर तक स्थिर नहीं रह पाता है । उसका पतन अवश्य ही होता है । पराश्रित या परावलम्बी होने का अर्थ होता है गुलाम होना, हीनता को स्वीकार करना ।

स्वावलंबन के फायदे

स्वाबलंबी होने के बहुत से फायदे है, इससे आत्मविश्वास बढ़ता है : स्वावलंबन से हमारे अंदर कई गुना आत्मविश्वास बढ़ता है । दुनिया के सामने खड़े होने की हिम्मत बढ़ती है, किसी भी परेशानी को देख मन घबराता नहीं है, बल्कि गहरे विश्वास के सहारे हम हर मुसीबत का डट कर सामना कर कर सकते हैं।

जीवन के फैसले खुद ले सकता है : सच ही कहा है, जीवन किसी जंग से कम नहीं है । हर रोज यहाँ हमें मानसिक व शारीरिक तनाव वाले युद्ध का सामना करना पड़ता है । हमारे सामने कई बार ऐसी बातें सामने आ जाती है, कि हमें बड़े से बड़े फैसले खुद लेने पड़ते है, वह भी कम समय पर । अगर हम स्वावलंबी नहीं होंगे तो हर बार हम जीवन के इन फैसलों को लेने के लिए दूसरों का दरवाजा खटखटाएंगे । जीवन में हमें दोस्त, जीवनसाथी, भाई-बहन, माँ बाप तो मिलते है, जिनसे हम जब चाहें मदद ले सकते है, लेकिन जीवन का कोई भरोसा नहीं होता है, ये कब तक आपके साथ है, आप नहीं जानते है । तो इससे बेहतर है, आपको इस काबिल होना चाहिए कि खुद फैसले ले सकें । हम अपना अच्छा बुरा खुद समझेंगे, साथ ही अपने परिवारों की भलाई को समझ कर काम करेंगे । स्वावलंबी इनसान अपने कर्तव्य को भली भांति जानता है, जीवन के किसी भी मोड़ पर वह अपने कर्तव्य से नहीं भागेगा । अपने कर्तव्य को वह रिश्तों से भी ज्यादा अहमियत देता है ।

मन प्रसन्न रहता है : स्वावलंबी के जीवन में सुख सुविधा हो न हो, लेकिन उसके मन में शांति जरूर रहती है. उसे पता होता है, उसके जीवन में जो कुछ भी है, वह उसी की मेहनत का फल है, अपने जीवन के लिए वह किसी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराता है । स्वावलंबी अपने जीवन के दुखों में भी सुख का एहसास करता है. वह हमेशा समझदारी से काम करता है ।

समाज व देश का विकास होता है : देश व समाज के विकास के लिए, स्वावलंबी होना मुख्य बात है । स्वावलंबी न होने पर हम किसी के पराधीन होते है, हम स्वतंत्र होकर कोई भी काम नहीं पाते है । देश की आजादी के पहले ऐसा ही था, भारत देश ब्रिटिश सरकार के अधीन था, वह उन्हें स्वावलंबी बनने ही देना चाहती थी ।क्योंकि ब्रिटिश सरकार को पता था, अगर देश की जनता स्वावलंबी हो जाएगी तो उनकी कोई नहीं सुनेगा । आज भारत देश की जनता स्वावलंबी है, इसलिए देश तेजी से विकास कर रहा है । हमारा समूचे दुनिया में नाम है । स्वावलंबी मनुष्य को ही आज के समय में सम्मान दिया जाता है । मनुष्य को सिर्फ अपनी आत्मनिर्भरता के बारे में नहीं सोचना चाहिए । हम सब इस देश, समाज के अभिन्न अंग है, हमें इसे आगे बढ़ाने के लिए साथ में काम करना होगा । स्वावलंबन को अपने तक सीमित न रखें, इसे समूचे देश के विकास का हिस्सा बनायें।

बड़ा आदमी बनाता है : आज जो देश विदेश के बड़े-बड़े अमीर, कामयाब इनसान है, उन्होंने ने भी स्वावलंबन का हाथ थामा। जब इन लोगों ने अपने काम की शुरुआत की, तब इनके पास अपनी मेहनत, लगन थी, जिसके सहारे ये लोग अपने आप को कामयाब बना पाये है। यह बड़े बड़े आदमी आज हजारों को स्वावलंबी बना रहें है । इनकी सफलता की पहली सीढ़ी परिश्रम होती है।

औरतें आत्मनिर्भर होती है : आज के समय में महिलाओं को सशक्त बनाने की बात कही जाती है। अब पहले जैसा नहीं रह गया है कि घर के लड़कों को ही शिक्षा दी जाये, उन्हें ही घर से बाहर काम करने की इजाजत है। आज समय बदल चूका है, लड़कियां, महिलाएं बाकी लोगों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर काम कर रही है। ऐसा कोई काम या क्षेत्र नहीं है, जहाँ लड़कियों से अपना लोहा नहीं मनवाया है। महिलाएं शादी के बाद अपने घर, बच्चे व ऑफिस का काम बखूबी संभाल लेती है। महिलाओं के स्वावलंबी होने से उनमें आत्मविश्वास तो आता ही है, इसके साथ ही वे जीवन की हर लड़ाई से लड़ने के लिए तैयार भी होती है। कब कैसी समस्याएं आ जाये, हम नहीं जानते । महिलाओं पर पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी होती है, धन संबंधी समस्या आने पर स्वावलंबी औरतें अपने दम पर इसे हल कर लेती है ।

अंग्रेज़ी में एक कहावत है कि “God helps those who help them अर्थात भगवान उनकी सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करता है । स्वावलंबी व्यक्ति अवसर का गुलाम नहीं होता है । अपने जीवन में आने वाले हर अवसर को पकड़ लेता है। राष्ट्रीय स्तर पर जो राष्ट्र अपनी सहायता स्वयं नहीं कर सकता, स्वावलंबी नहीं बनते । अन्ततः उनकी आजादी समाप्त हो जाती है ।

नन्हा सा जापान अमेरिका के औद्योगिक साम्राज्य को चुनौती दे रहा है क्योंकि उन्होंने स्वावलम्बन का पाठ पढ़ लिया है। भारत ने खाद्यान्नों में स्वावलंबन होने में सफलता प्राप्त कर ली है। 2004 में सुनामी समुद्री तूफान से भारत में भयंकर विनाश हुआ, परंतु भारत सरकार ने अमरीकी सहायता लेने से इनकार करके स्वावलम्बन का परिचय दिया है। विश्व इतिहास के पन्नों पर जिन महापुरुषों के चरणों की छाप लगी है, वे सभी स्वावलंबी थे। अब्राहम लिंकन एक झोंपड़ी से निकलकर व्हाइट हाऊस मे जा पहुंचे। नेपोलियन एक निर्धन परिवार से निकलकर फ्रांस का ही नहीं, आधे विश्व का सम्राट बन गया ।

उपसंहार

इस तरह स्वावलंबन के महत्व को हमने जाना। स्वाबलंबी होकर जीने से जो अपार सुख और संतोष मिलता है, वो परालंबी होकर अर्थात दूसरों पर निर्भर रहने से नही मिलता है। स्वालंबन से व्यक्ति के जीवन में जो आत्म विश्वास आता है, वो उसके जीवन को उच्चता की ओर ले जाता है, और उसके चरित्र को उज्जवल बनाता है। इसलिए स्वावलंबी बनकर जीना सीखें।


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