इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है…
बाँध शीश पर कफन बढ़े चलो जवान,
आँधियों को मोड़ दे तू बन के तूफान।
बढ़े चलो जवान।
संदर्भ : यह पंक्तियां कवि ‘शिवराज भारतीय’ द्वारा रचित कविता ‘बढ़े चलो जवान’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने देश की रक्षा के लिए युद्ध भूमि की ओर जा रहे सैनिकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।
भावार्थ : कवि कहते हैं कि सैनिकों तुम जो युद्ध भूमि में देश की सीमा और आन-बान की रक्षा करने के लिए जा रहे हो तो अपने सिर पर कफन बांधकर चलो। तुम निरंतर आगे बढ़ते रहो। कोई भी आंधी तूफान तुम्हारे निश्चय से तुम्हें डिगा नहीं सकता बल्कि तुम्हें आंधियों की दिशाओं को भी बदल देना है। तुम तूफान बनाकर आगे बढ़ते चलो और दुश्मन पर कहर बनकर टूट पड़ो। तुम्हें देश की रक्षा करने के लिए अपनी जान की भी परिवार नहीं करनी है और ऐसी कोई भी परिस्थिति आने पर अपना बलिदान करने में संकोच नहीं करना है।
‘बढ़े चलो जवान’ नामक कविता कवि शिवराज भारतीय द्वारा लिखी गई कविता है। इस कविता के माध्यम से उन्होंने देश की रक्षा में लगे सैनिकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है। पूरी कविता इस प्रकार है…
बांध शीश पर कफन
बढ़े चलो जवान,
आंधियो को मोड़ दे,
तू बन के तूफान। बढ़े चलो जवानहिन्द की सरहद को
पार जा करे,
उसके शीश पर पलट
तू काल सा पड़े।
तुझसे होनहार पे,
हम सबको है गुमान।
आंधियो को मोड़ दे,
तू बन के तूफान। बढ़े चलो जवानवीरों की धरा पे तूने
है लिया जन्म,
मां के वीर लाड़लो की
है तुझे कसम !
काल भी हो सामने,
उखड़ न पाए पांव।
आंधियो को मोड़ दे,
तू बन के तूफान। बढ़े चलो जवान
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